VYAKHYA
सोमवार, 30 जून 2025
सड़क जो आगे से बंद है
शुक्रवार, 20 जून 2025
महुवे का पेड़
महुवे का पेड़
- आशीष कुमार
तमाम बार उस रात की याद आयी , तमाम बार दिल किया लिखुँ उस रात के बारे में पर आलस में लिख न पाया। कल रात "कोहरे में कैद रंग" उपन्यास पढ़ रहा था। शुरू के पन्नों में ही जो घटना थी , जहाँ लड़के को उसका पिता कस्बे जाने के लिए अकेले आधे रास्ते में छोड़ देता है और लड़का शव यात्रा को देख डर सा जाता है। मुझे फिर से वहीं महुवे के पेड़ के नीचे गुजारी एक सर्द रात याद आ गयी।
मेरे गांव के पास एक क़स्बा है पुरवा , वहाँ से नहर गुजरती है। उसी नहर से एक छोटी नहर मेरे गांव के पास से गुजरती है। इस छोटी नहर से छोटी छोटी नाली निकली थी। जिनसे मेरे खेतों तक पानी आता था। खेतों में पानी लगाना भी उन दिनों काफी बड़ा काम हुआ करता था। तमाम लोग दिन में लगा लेते थे , कुछ लोगो को रात में बारी मिलती थी। एक शाम खेतों में मैं , मम्मी और पापा थे। पता चला कि आज रात में अपने खेतों में पानी लगेगा। कुछ सूखी लकड़ियाँ, पुवाल आदि महुवे के पेड़ के नीचे डाल दी गयी. उसके बाद हम सब घर चले गए।
वो सर्दी की एक अँधेरी रात थी। मैं , पापा के साथ घर से कुछ खाना लेकर खेतों की ओर चला। मुझे ठीक से याद नहीं पर उम्र 6 - 7 साल ही रही होगी। मैंने एक लाठी ले रखी थी , अपने चारो तरफ कम्बल लपेट रखा था जो बार बार जमीन में घिसट रहा था. एक हाथ में स्टील वाला तीन खाने का टिफिन भी था। पापा के पास वो तीन सेल वाली एक टॉर्च थी. हम बात करते चले जा रहे थे। बातें हमारी घूम फिर कर कुछ निश्चित विषयों पर होती थी। पिता जी के अपने परिवार और उनके रिश्तेदारों ने उनका बहुत कभी कोई सहयोग या सम्मान न किया। उन्ही दिनों से सोचा करता था कि बड़ा होकर उन सबसे बदला लूंगा।
महुवे के पेड़ के पास पहुँच कर लकड़ी जला दी गयी। सर्दी काफी बढ़ गयी थी। चारों ओर घना अँधेरा था। पिता जी ने नाली में जाकर पानी का बहाव देखा। पानी में कुछ पत्ते या घास तोड़ के डाल कर देखा तो पता चला पानी कम आ रहा है। दरअसल नाली के ऊपरी हिस्से में दूसरे किसान भी भी पानी काट लेते थे , कई बार इधर का बहाव ही बंद कर देते थे। उन दिनों खेतों में पानी लगाने को लेकर लड़ाई हो जाया करती थी। पिता जी ने बोला मैं आगे तक जाकर आता हूँ। मुझे वहीं महुवे के पेड़ के नीचे रुके रहने को बोला। वो चले गए। मैं अकेला वहीं रुका रहा। कुछ देर तक आग जलती रही फिर वो मंद पड़ती गयी।
पिता जी को गए काफी देर हो गयी। अँधेरा काफी था। मुझे डर लग रहा था। एक उम्मीद में कि थोड़ा आगे ही पिता जी होंगे मैं कुछ दूर आगे तक गया। आवाज भी लगाई पर बदले में पिता जी की कोई आवाज न आयी. मैं परेशान था कि कम से कम महुवे के पेड़ के नीचे कुछ हद तक सुरक्षित था। जगह क्यू ही छोड़ी। जब मैं परेशान , डरा हुआ वापस लौट रहा था , मुझे लगा कोई मेरा पीछा कर रहा है. मैं जैसे तैसे महुवे के पेड़ के पास पहुँचा। पुवाल में कंबल ओढ़ के रोता हुआ सो गया। मुझे पता नहीं कब पिता जी लौटे और कब सुबह हुयी।
वो महुवे का पेड़ सूख गया। उसके कटने के बाद वहां काफी जगह निकल आयी। आज जब खेत जाना होता है तो कार खड़ी व मोड़ने की जगह वही है। चीजें बहुत बदल गयी है। बड़े वाले बोरवेल हो गए है। अपने साथ साथ पड़ोसियों का भी भला हो रहा है।
पिता जी असमय 2010 में चले गए। चीजे बदलना बस उसी वक़्त शुरू हुयी थी। 2010 में पहली सरकारी नौकरी लगी थी। मन में कसक सी रहती है कि उन्होंने अपने बदले हुए दिन ज्यादा न देख पाए। उनके संघर्षो के जिम्मेदार लोगों से बदला लेने के मेरे पास दो रास्ते थे एक हिंसक , दूसरा उन्हें सामाजिक आर्थिक तौर पर इतना पीछे छोड़ देना कि जब भी सामने पड़े तो खुद ही नजरे न मिला पाएं। मैंने दूसरा रास्ता चुना। कहते है समय के साथ लोगों को माफ़ कर देना चाहिए, तमाम बार सोचा कि सब भूल जाऊ और शायद काफी हद तक भूल भी चूका हूँ पर तमाम बार करीबी रिश्तेदार , पारिवारिक लोगों को ये समझ न आता है कि मै इतना रिज़र्व क्यू रहता हूँ। वजह उपर वर्णित कुछ ऐसी ही यादें है , जो गाहे , बगाहे याद आ जाती है।
©- आशीष कुमार , उन्नाव।
20 जून 2025
मंगलवार, 13 मई 2025
किताबें और रेड सैंडल्स
2014 -15 के बीच में मुझे लिखने का बहुत जूनून सा हो गया था। डायरी से बाहर दिन प्रतिदिन के अनुभव , प्रेक्षण आदि अब ब्लॉग , फेसबुक पर आने लगे थे। लोगों को सरल शब्दों में अपनी बात रखने का तरीका बड़ा पसंद आया। धीरे धीरे फैन फॉलोविंग भी बढ़ी। देश में ही नहीं विदेश में भी अपने कुछ पाठक थे। हजारों कहना तो गलत होगा पर , सैकड़ो की संख्या में लोग , पोस्ट को बड़ी रूचि से पढ़ा करते थे। उनमें तमाम बार लोग लाइक , कमेंट से बढ़कर इनबॉक्स में भी आ जाते।
उन दिनों अहमदबाद में अपनी सर्विस चल रही थी। सिविल सेवा की तैयारी भी चल रही थी पर कोई खास जोश न था। प्री , मैन्स , इंटरव्यू के क्रमिक असफलताएं ने मुझे डिजिटल दुनिया में ज्यादा रमने में बाध्य कर दिया था। मैं लोगों से बात करता था , तमाम बार चैट से बाहर फ़ोन , मेसेज , व्हाट ऍप तक लोग आ जाते। लोग मतलब विपरीतलिंगी। तो उनमें दर्जनों लोग होंगे , जिनसे तमाम बातें हुयी। एक मैडम स्वीडन से थी , इंडियन थी। उच्च शिक्षित , उच्च कुल से पर प्रेम मुस्लिम लड़के से हो गया। दोनों विदेश सेटल हो गए। कैडबरी , में बड़ी पोस्ट पर थी। लड़का भी उच्च वेतनमान पर था , पर इसके बावजूद घर वालों से सहयोग न मिला। ऐसे में तमाम बार , अपने बातों को सुनाने के लिए मेरा इनबॉक्स मुफीद जगह थी। तमाम बार स्वम् से अपने पिक्स शेयर किये जोकि पहली बार में फेक से लगे पर वो वाकई बहुत सुन्दर थी , दरअसल लड़का भी परफेक्ट था। उनकी कहानी फिर कभी , किसी दूसरी पोस्ट में। मुझे नहीं पता , हो सकता हो अभी भी हो फेसबुक पर जुडी हो।
आज कहानी ऐसे ही एक दूसरे व्यक्ति की , जिससे ऐसे ही सम्पर्क हुआ। धीरे धीरे तमाम बातें होने लगी। उनकी किशोरावस्था थी। बातों में बड़ी रूचि व आकर्षण था। जब हम किसी अच्छे लगने वाले विपरीतलिंगी से बातें करते हैं तो धीरे धीरे हर बात शेयर करने लगते है। ऐसे ही एक रोज वो प्रकरण हुआ था।
इन दिनों , हर घर , सोसाइटी में ऐमज़ॉन , फ्लिपकार्ट , मिंत्रा से समान मांगना बड़ी आम बात हो गयी है। उन दिनों चलन था पर काफी कम स्तर पर। मैं इन प्लेटफार्म से किताबें मंगाया करता था। तो उस दिन उसने बातों बातों में बताया कि आज उसने रेड सैंडल ऑनलाइन मंगाई है साथ ही उनकी तस्वीर भी भेज दी।
सच कह रहा हूँ , मैं चौंक गया. मै हैरान था , मेरे समझ में न आ रहा था कि इनसे भी सैंडल भी मगाई जा सकती है। मैंने बोला - मै पहली बार सुन रहा हूँ , कि फ्लिपकार्ट से कोई सैंडल भी माँगता है। मैंने तो बस किताबें ही मंगाई हैं। अब चौकने की बारी सामने वाले की थी। फिलिपकार्ट से बुक्स , भला कौन मंगवाता है ? मैं पहली बार सुन रही हूँ कि कोई किताबें ऑनलाइन मंगवाता है। हम दोनों बहुत दिनों तक , इस प्रकरण को लेकर हसते रहे। यह किस्सा , मैंने तमाम बार अपने मित्र मण्डली में सुनाया है। आज आपसे शेयर कर रहा हूँ क्युकि पिछले दिनों फ्लिपकार्ट में मेगा सेल लगी थी और कुछ जल्दी सोने वाले लोग भी उस दिन जग कर इसका इंतजार कर रहे थे तो मुझे पुराने किस्से याद आ गए।
©आशीष कुमार , उन्नाव।
बुधवार, 7 मई 2025
बनारस यात्रा
बनारस यात्रा
बनारस घूमने की चाह बहुत सालों से थी , पर संयोग न बना। पूर्व में प्रयागराज , गोरखपुर से आगे न गया। इतिहास की पढ़ाई की है और साहित्य का शौक रहा है। दोनों में ही बनारस का विशेष स्थान है। महाजनपद के समय से लेकर , साहित्य में नीला चाँद , काशी का अस्सी , फिल्मों में मशान आदि से मन में तमाम छवि अंकित थी।
इस साल होली में विशेषरूप से बनारस जाने के लिए सोचा था। प्रिय मित्र प्रीतम सिंह , बनारस सदर में ही तहसीलदार के तौर पर पदस्त है , उनसे अक्सर बात , मुलाकात होती थी तो तमाम आमंत्रण उनके भी थे। सुबह सुबह , गूगल मैप के सहारे , गाड़ी से निकले। फतेहपुर के हाईवे पर चाय पी। जब इलहाबाद पार किया तो मुझे पूर्वांचल की झलक दिखना शुरू हुयी। हाईवे से गुजरते हुए , किसी क्षेत्र का ज्यादा अनुमान न लग पाता है , इसके बावजूद ऐसा लग था कि अतीत की तरफ सफर कर रहा हूँ।
प्रीतम सिंह की कहानी पहले भी लिखी है , बहुत सज्जन , विनम्र , मेरे प्रति विशेष आदर व लगाव रखते है। अपने सरकारी आवास पर बहुत अच्छी व्यवस्था कर रही थी. बड़ा सा घर था। स्नान आदि के बाद , उनके मगवाये बनारसी व्यंजन चखे। बनारस कचौड़ी तो बहुत फेमस है , खाकर मज़ा आ गया। मीठा भी बहुत अच्छा था। अलसुबह में निकलने व सफर की थकान के चलते आराम करने का मन था।
कुछ देर आराम के बाद प्रीतम के सौजन्य से एक बनारसी सज्नन हमारे साथ गाड़ी में थे जो कि आगे हमारे पथ प्रदर्शक बने। सबसे पहले हनुमान मंदिर गए। ट्रैफिक बहुत ज्यादा था। गाड़ी पार्क करने की जगह न थी। रास्ते भीड़ ही भीड़ थी. मंदिर में काफी जल्दी दर्शन हो गए। उसके बाद बाबा विश्वनाथ मंदिर गए।
यहां की भीड़ देखकर हिम्मत डोलने लगी। दर्शन vip कोटे से हुए , पर उसमे भी एक कहानी बन गयी। चारों तरफ से लाइन लग के दर्शन हो रहे थे। एक अलग कम छोटी लाइन में लगकर मंदिर के कपाट तक गया। मै बस वो दूध चढ़ाने के बाद उसका नीचे तक जाना ही देख पाए। बाबा विश्वनाथ की मूर्ति देख ही न पाया। मेरे साथ मंदिर के प्रबंधन से जो साथ थे , उनसे बताया कि जब तक नजर आगे जाये , तब तो लाइन आगे बढ़ा दी गयी। इस बार वो और शॉर्टकट से , ले गए। अच्छे से दर्शन हुये। उन्ही से काफी इतिहास पता चला , प्राचीन कुएं का पानी पिया। काफी खुशी थी। बगैर सम्पर्क के उस भीड़ मै शायद दर्शन न कर पाता।
मंदिर में दर्शन के बाद , बनारस की भीड़ ,गलियों में वहां की संस्कृति को करीब से जानने का मौका मिला। एक जगह टमाटर चाट, पापड़ी चाट, आइसक्रीम , पानी बताशे खाये। वापस प्रीतम के आवास पर आराम किया। शाम को प्रीतम ने बनारस के घाट , गंगा आरती के लिए बोट का इंतजाम करा रखा था। नमो घाट से पीछे की तरफ आते कितने घाट दिखे , एक बढ़कर एक, सब जगह आरती शुरू हो गयी थी. गंगा में सैकड़ो बोट थे, हजारों तीर्थ यात्री। दिन में गर्मी , भीड़ में काफी परेशान हुआ था, बनारस को लेकर मेरा उत्साह मर गया था, दिल कर रहा लौट जाऊ, अब क्या ही घुमू।
पर शाम का नौका सफर पुरे दिन की थकान मिटा दी। ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। नाव में बैठ , किनारे घाटों की भीड़ , पूजा का माहौल देखना बहुत सुखद था। बीच में मणिकर्णिका घाट दिखा , इसके बारे में खूब पढ़ा और सुना था। मुझे ऐसा लगता था कि वो गंगा के दूसरे साइड होगा पर यहां बीचोबीच देखकर , हैरान हुआ। उस घाट में जलती चिता , देख एक पल को दिमाग रुक सा गया। ज्यादातर घाट में आरती शुरू हो गयी थी , हमारी बोट जरा देर से निकली थी। इसलिए हमें सबसे आखिर वाले घाट आना पड़ा , दो घाट पास पास में थे , बोट से उतरकर बड़े आराम से आरती देखी। उन छटा का को शब्दों में बयान करना कठिन है। अद्भुत, अद्वितीय , पारलौकिक सा।
उसी शाम मन थक चुका था , दिल में आया कि रात को ही घर लौट जाऊ। प्रीतम दिन में व्यस्त थे , शाम को साथ में डिनर किया। डिनर के बाद गाड़ी वापसी के लिए मोड दी ,सुबह के ५ बजे फिर से घर में थे। सुबह ४ बजे निकले थे। बनारस यात्रा से समझ आया कि कुछ जगह पर गाड़ी के बजाय पैदल घूमना चाहिए और सही से आनंद के लिए अकेले , बगैर किसी ताम झाम के साथ घूमना चाहिए। तामझाम से चीजे आसान तो हो जाती है पर जल्दी जल्दी में यात्रा व देशाटन से जो आनंद मिलता है , उससे मन वंचित रह जाता है। बनारस एक बार फिर से जाऊँगा पर सही मौसम व तरीके से , आराम व तसल्ली से घाट घाट , गली गली भटकूंगा , तभी मन को तृप्ति मिलेगी.
©आशीष कुमार , उन्नाव।
शुक्रवार, 2 मई 2025
मैं किंग नहीं किंगमेकर हूँ
साल 2012 -13 की बात है , अहमदबाद में एक्साइज इंस्पेक्टर के तौर पर जॉब कर रहा था , उन्हीं दिनों चुनाव में ड्यूटी लगी। अहमदाबाद से कुछ दूर दंधुका तालुका में। मेरा सर्विसलांस-(चुनाव में अवैध धन का प्रयोग न होने पाए ) का काम था। एक महीने पहले से ड्यूटी शुरू हो गयी थी।
अहमदाबाद से धधुका की दुरी कुछ ज्यादा थी ,जिसे रोज आ जाकर करना मुश्किल था। सीधा कोई साधन न था। मैंने एक सीनियर (सुपरिंटेंडेंट ) सर को अपनी प्रॉब्लम बतायी उन्होने कहा कोई दिक्क्त नहीं वहाँ उनका कोई रिश्तेदार था। बोले उससे मिल लेना सारी हेल्प मिल जाएगी। मैंने कुछ आशंका जाहिर कि तो बोले तुम कुछ न सोचो , बस एक बार उससे मिल लेना।
अगले दिन धंधुका पहुँचा , दिन में अपनी ड्यूटी ज्वाइन करके , उन सज्जन को फोन किया और अपने सीनियर का जिक्र किया। बोले- हा ठीक है. यही पेट्रोल पंप पर आ जाओ। कुछ देर बाद मैं धंधुका के मुख्य चौराहे पर स्थित एक पेट्रोल पंप पर था। वही एक ऑफिस में उनसे मुलाकात हुयी। उस समय वहाँ काफी भीड़ थी। मुझे अब ठीक से न चेहरा याद है न ही नाम पर उनको देख कर कुछ ऐसा हुआ कि कई सालों तक उनकी छवि अंकित रही। काफी रोबीला चेहरा , सर पर बाल छोटे छोटे , लम्बी चौड़ी पर्सनालिटी।
जब लोग चले गए तो उनसे बात हुयी। मेरे मन में बड़ी जिज्ञासा थी कि वो करते क्या है , मुझे उस समय तक पता न था कि पेट्रोल पंप उनका है या किसी और का. जब कुछ बातें हुयी तो ऐसा समझ आया कि इनका बड़ा कारोबार है , खुद से कुछ बता न रहे थे। आप ने देखा होगा कि छोटा आदमी ही बेवजह दिखावा करता है , एक लेवल के बाद आदमी जो धन या पद में उच्चतम स्तर पर जा पहुँचता है वो अपने बारे में कम से कम बात करता है। उन सज्जन की यही बात नोटिस कि मैं उन्हें काफी हलके में ले रहा था और वो थे कि मुस्कुरा रहे थे। बातों बातों में मैंने पूछा - आप चुनाव नहीं लड़ते या ऐसा ही कुछ। उस वक़्त भी कुछ वहां बैठे थे बोले भैया को क्या जरूरत, अभी जो इधर बैठे थे वो राज्य सभा सांसद थे, उनके बगल में विधायक जी थे, ये जिला पंचायत अध्यक्ष जी है। मै हैरान हो गया। भैया जी बोले - मैं किंग नहीं , किंगमेकर हूँ , मुझे इसमें ज्यादा अच्छा लगता है।"
मुझे एक पल को यकीन न हुआ , भाई ये सज्जन कौन हैं , इस स्तर के लोग यहाँ बैठ के मीटिंग कर रहे थे। दरअसल मै एक ऐसे प्रदेश से सम्बन्ध रखता हूँ , जहाँ का छुटभैया नेता के काफिले में दो चार गाड़ी जरूर होती है। वहां इस स्तर को लोग शांति से मीटिंग कर रहे थे।
शाम हो चुकी थी , मैंने भैया से बोलै - कहाँ रुकूंगा। उन्होंने किसी को आवाज देकर बुलाया और बोले वो सरकारी वाला गेस्ट हाउस खुलवा दो जाकर। मेरे पुराने पाठकों को लोथल वाली पोस्ट याद होगी। ये उसी समय की बात है। उस टाइम कुछ फूलों की तस्वीर पोस्ट की थी , ये उसी गेस्ट हाउस का गार्डन थे। गेस्टहॉउस वाला बता रहा था , इसी गेस्टहॉउस में कुछ दिन पहले CM भी आकर रुके थे। उस गेस्ट हाउस का केयर टेकर पहले आनाकानी कर रहा था , फिर भइया जी के नाम पर तुरंत एक कमरा खोल दिया। शाम को वहीं व्यक्ति लेने आया , शाम को भोजन उन भैया के घर था। मेरे मन में उनके घर को लेकर अलग सी कल्पना थी , जब घर पंहुचा तो वो एक बहुत बड़ा सा घर घर था। एक बुजुर्ग थे जो रसोई में थे। मैं अकेला खाना खा रहा था और वो गर्म गर्म खाना बनाकर दे रहे थे। कुछ बात हुयी , गुजराती मुझे ज्यादा आती न थी। यही समझा कि इधर तमाम गेस्ट आते ही रहते है और उनका काम सबके लिए खाना बनना होता है। रात में उन भैया का फोन आया पूछा कोई दिक्क्त तो नहीं। मैने कहा नहीं सब बहुत अच्छा है।
मुझे वहां २ या ३ दिन रहना पड़ा , उसके बाद मुझे गाड़ी और कुछ पुलिस का स्टाफ ड्यूटी के लिए मिल गया। उन्हीं लोगो ने ड्यूटी के बाद , किसी न किसी की कार रुकवा के अहमदाबाद रोज आने जाने का इंतजाम करा दिया।
मेरे मन उन सज्जन की छवि बहुत सालों तक बनी रही , उनके प्रभाव का मन में बड़ा असर हुआ। उनका बोलना " किंग नहीं , किंगमेकर " बड़ा गजब लगता। सच में पर्दे के पीछे रहकर शक्तिशाली प्रभाव रखना , उसका अलग ही आनंद है। भले दुनिया आपको बहुत न जानती हो पर आप के नाम से काम हो जाये, उसकी बात ही अलग होती है।
©-आशीष कुमार, उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
मंगलवार, 29 अप्रैल 2025
मेरा मोटापा और इसकी कहानी
मेरा वजन B.Ed. करने के दौरान बढ़ना शुरू हुआ , उन दिनों इसका कारण मिठाई खाना था , खूब मिठाई , क्रीम वाले बिस्कुट , नमकीन खाता। इसके चलते वजन बढ़ना तो शुरू हुआ पर उसके साथ फैट भी बढ़ने लगा।
शुरू में तो बड़े मजे से कहता कि पेट निकला है तो क्या हुआ, खाते पीते घर का हूँ। मुझे बीच का वजन याद न आता। लखनऊ में आर्मी वाली जॉब में भी फोटो देखता हूँ तो वहां भी एकहरा शरीर दिखता है , जब अहमदाबाद गया एक्साइज डिपार्टमेंट में तब शरीर बहुत तेजी से फैला। उसके कुछ कारण थे, उसी दौरान बाहर होटल में खाने की आदत पड़ी , कई बार खुद से और कई बार दोस्तों के साथ।
अहमदाबाद में वीकेंड पर बाहर खाने का चलन सा है। अधिकतर शनिवार शाम को बहार ही खाना खाया होगा। ऑडिट में काम करने के दौरान , लंच बाहर होता , प्रायः कम्पनी की तरफ से , किसी अच्छे , फेमस होटल में। नई नई जगह , नए नए व्यंजन। उन दिनों 80 किलो वजन फिक्स सा था। पेट बाहर निकला था पर अपने आप को स्मार्ट फील करता , तमाम बार यह भी सुनने को मिलता कि वर्दी के लिए शरीर भरा पूरा होना चाहिए तभी जँचती है।
उन दिनों भी बड़ा मन होता था फिट होने का पर समय न था , नौकरी से जो भी समय बचता , upsc में चला जाता।
2018 में चयन के बाद लगा जिंदगी आसान हो जाएगी। रिजल्ट के कुछ दिन बाद ही रानिप , अहमदाबाद में एक जिम ज्वाइन किया। कुछ महीने ही गया होगा , थोड़ा बहुत चीजे पता चली , वजन फिर भी न कम हुआ। कारण था चयन के बाद पार्टी काफी बढ़ गयी , कुंदन भाई के घर अक्सर देर रात तक पार्टी हो जाती , उन दिनों कुंदन भाई अहमदाबाद एयरपोर्ट पर पोस्टेड थे , इसलिए पार्टी भी काफी शानदार होती थी।
2019 में दिल्ली आ गया , ट्रेनिंग के दौरान जिम शुरू किया , अपने आप ही जो समझ आता करता। ट्रेनर अफ़्फोर्ड कर सकता था पर किया नहीं पता नहीं सब खुद से करने की आदत सी है। uspc में इसी जिद के चलते कोई कोचिंग न ज्वाइन की। खैर अपने आप ट्रेनिंग सेण्टर के छोटे से जिम में कुछ न कुछ करता, टिक टॉक का दौर था , उसी में वीडियो देखता और कभी कभी अपने भी डाल देता।
दो साल में तमाम गैप आये पर वर्कआउट जारी रहा और अंत में वजन 73 kg था , जोकि 83 kg से गिर कर आया था। इस समय मेरा ट्रांसफॉर्मेशन काफी विज़िबल था , लोग टोकते कि काफी बदल गए हो। वैसे इसमें एक सबसे बड़ा राज था कि लक्ष्यदीप में ट्रेनिंग के दौरान मुझे चिकनपॉक्स हो गया था , कोच्चि में अकेले होटल में पड़ा था , कई दिनों तक मुँह से खाना न जा पाता। गले के अंदर भी दाने थे। उसी दौरान पहली बार वजन 78kg तक आया था बाकि उसके बाद जोश में , खाना कम करके 73kg तक गया था।
ट्रेनिंग के बाद, फिटनेस के लिहाज सबसे बुरा वक़्त आया, पार्टी का इतना ज्यादा दौर आया कि हर वीक में कोई न कोई पार्टी। बस कोई मिले तो बोलना होता था चलो बैठते है। पद के हिसाब से गिफ्ट में भी ऐसी चीजे जो आपके फिटनेस की ऐसी तैसी कर दे। पूरा जाड़ा गाजर का हलवा , गर्मी की तरफ घेवर। कहते है खाना बुरा न होता पर हिसाब से खाना चाहिए। मै बेहिसाब खाता था, ४ किलो तक गाजर हलवा एक साथ था , इस तरह से घेवर के दर्जनों पीस। इसके चलते वजन 85 kg तक चला गया। काजू कतली , मेवा लड्डू , छोला भटूरा , दाल मखनी मतलब कुछ भी बेहिसाब खाना।
पिछले दिसंबर 23 की 25 को ऐसे जैसे की बुध्दत्व मिला हो। उन दिनों मैंने एटॉमिक हैबिट पढ़ी थी. उससे काफी बढ़िया बातें पता चली। फिर से वर्कआउट शुरू किया, हर रोज की पिक्स ली और संभाल के रखी। जुलाई 24 आते आते काफी हद तक फैट कम हो गया और मसल भी उभरने लगे। अगस्त 24 , से रनिंग करने लगा। धीर धीरे रनिंग बढ़ गयी , स्ट्रेंथ ट्रेनिंग कम हो गयी। तब से अब तक एक फुल मैराथन (42 km ), 7 हाफ मैराथन (21km ) में प्रतिभाग कर चूका हूँ। स्टमिना काफी हद तक बढ़ चूका है पर खान पान अभी भी बंद न हुआ है। इसके चलते वो परिणाम न मिले है जो मिलने चाहिए।
इस पोस्ट के जरिये, यह सब बातें इसलिए भी शेयर कर रहा हूँ ताकि अब इसका दबाव मुझ पर पड़े , जब लोग पूछते नहीं तब तक दबाव नहीं पड़ता। तमाम बार सोचा कि पोस्ट करू पर लगता था कि यह सफर आसान न है। लोग मजे लेंगे पर अब लिखकर बता रहा हूँ अब से खान पान पर सबसे ज्यादा ध्यान रखा जायेगा। तभी परिणाम मिलेंगे।
6 साल पहले किसी से शर्त लगी थी। उसका सलेक्शन न हो रहा था। मैंने कहा चलो शर्त लगाते है कि तुम्हारा सिलेक्शन पहले होगा या मेरे एब्स बनेंगे। मेरे एब्स बनते बनते रह गए। उसका सलेक्शन अब लगभग होने को है इसलिए मुझे ज्यादा गंभीर होना पड़ रहा है , आखिर हारना किस को पसंद है।
(इन दिनों )
© आशीष कुमार, उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
बुधवार, 29 जनवरी 2025
एक अद्वितीय लड़की की अद्वितीय प्रेम कथा
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नीला चाँद कल रात में अंततः इस उपन्यास का पठन पूरा हो गया। शिव प्रसाद सिंह द्वारा लिखे गए इस बहुचर्चित उपन्यास की विषय वस्तु 11 वी सदी के स...