चिंतक जी और ज्ञानी गुरु
क्या आप सोच सकते है कि चिंतक जी जो खुद अहम ब्रह्म हो किसी के , हमउम्र के पैर छु सकते है ......वैसे भारतीय संस्कृति में पैर छूना आदर की बात होती है ..पर इस घटना में पैर छुवाना ,,एक प्रकार से उन्हें नतमस्तक करना था ... यानि इस कहानी में आप देखगे कि बात कि बात में चिंतक जी को किसी के पैर छूने पड़ गये ..
चिंतक जी के बारे में आप काफी कुछ पढ़ चुके है पर अभी तक आपको ज्ञानी गुरु के बारे में कुछ भी नही बताया है ......दरअसल कई किरदार है एक दुसरे से जुड़े और जीवंत भी .ज्ञानी गुरु के चरित्र को किसी रोज फिर विश्लेषित करेगे आज सीधे कहानी पर आते है ......
चिंतक जी का वो पुराना रूम याद है न जो किसी ज़माने में पुरानी रेलवे कालोनी का था ..उसी रूम की बात है ज्ञानी गुरु भी मेरे भागीदारी भवन , लखनऊ से ही परिचित थे .. वही पर चिंतक जी मुलाकात हुई थी तो जब भी मेरा इलाहाबाद जाना होता ज्ञानी गुरु भी मिलने आ जाते थे ( ज्ञानी गुरु से मेरी ४ सालो से बातचीत बंद है आज लिखते वक्त उनकी बड़ी याद आ रही है ...लगता है मुझे ही पहल करके उन्हें फ़ोन करना होगा ..)
पता नही कैसे हुआ पर मेरे सामने ही जोरदार बहस शुरू हो गयी . वैसे इलाहाबाद में इस तरह की बहस होना बड़ी स्वाभाविक बात है ..
ज्ञानी गुरु और चिंतक जी इतिहास के एक प्रश्न को लेकर भिड गये प्रश्न यह था कि मुहम्मद तुगलक के राजधानी परिवर्तन का कारण किस ने यह बताया है कि delhi के लोग उसे गाली भरे पत्र लिखते थे ? बरनी या इब्नबतूता ( अब याद नही यही आप्शन थे या कुछ और ..)
मैंने कई बार इस बात पर जोर दिया है कि इलाहाबाद में जितना बारीकी से , तथ्य आधारित पढाई कि जाती है उतनी पुरे देश या कहू विश्व में कही नही होती ....इसके पीछे लोक सेवा आयोग की कारस्तानी है .. लगे हाथ बता दू .. uppcs के जैसे सवाल शायद ही कही पूछे जाते हो ..एक नमूना भी देख लो .. एक बार पूछा गया कि गाँधी जी २ गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने जिस जहाज से लन्दन गये थे उसका नाम क्या था ............यही कारण है मेरे जैसे लोग uppcs से हमेशा दूर रहे इस तरह के प्रश्नों से दिमाग का दही हो जाता है ......)
जब चितंक जी और ज्ञानी गुरु में बहस हुई तो मेरे लिए प्रश्न ही नया था पर बहस थी कि गर्म होती जा रही थी कोई हार मानने को तैयार नही था ऐसा लग रहा था मेरे जैसे नैसिखिये के सामने कोई हार कैसे मन सकता है ..
बात इतनी बढ़ गयी कि शर्त लगने लगी तय यह हुआ कि जो हारेगा वो दुसरे के पैर छुवेगा ( मतलब यह कि शिष्यत्व स्वीकार करेगा )
ज्ञानी गुरु अपने आंसर के प्रति इतना sure थे कि बोले अमुक बुक का फला पेज खोलो .. ( आज भी ऐसे लोग है जो पेज सहित जबाब रट जाते है )
किताब का वो पेज खोला गया वहां जबाब न था पर उसके अगले पन्ने पर जो जबाब था उसके अनुसार ज्ञानी गुरु ने चितंक जी को परास्त कर दिया था ..
शर्त के मुताबिक चिंतक जी ने ज्ञानी गुरु के पैर छुवे यह कहते हुए कि ज्ञानी गुरु उम्र में बड़े है तो उनके पैर छूने में क्या शर्म.... तो इस प्रकार अपने दो शूरवीरो की कहानी पढ़ी .. ( ज्ञानी गुरु बाद में अपने रटने की विशेष क्षमता के चलते आयोग द्वारा उप समीक्षा अधिकारी पर चुन लिए गये )
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