कभी कभी मै सोचता हूँ कि क्यू दिनो दिनों विषमता बढ़ती जा रही है। सरकार की सैकड़ो स्कीम चल रही है पर उनका समाज पर प्रभाव नही दिखता है। अगर इनसे जुडी रिपोर्ट का अवलोकन करे तो पाएंगे कि आजादी के बाद धन , पूंजी कुछ सीमित वर्ग तक ही इकठा होती रही। इन सब के पीछे बहुत सी वजह है पर मैंने एक चीज विशेष तौर पर महसूस किया है कि इस बढ़ती विषमता के पृष्ठ में सबसे बड़ी वजह आम लोगो तक खास ज्ञान की पहुँच न होना या सिमित होना है।
उदाहरण के तौर पर मैं बहुत रोचक बात बताता हूँ। सिविल सेवा के एग्जाम में मुझे बहुत लंबा अनुभव रहा है। मैंने बहुत बार इस एग्जाम में ऐसी चीजो से जुड़े प्रश्न देखे है जो समाज में प्रचलित होने में २ या ३ साल लग गए। कहने आशय यह कि जैसे पिछले साल आईएएस के प्री एग्जाम में li-fi से जुड़ा प्रश्न पूछा गया था। अब यह तकनीक इतनी एडवांस है कि भारत में इसे प्रचलित होने में ५ साल से कम क्या समय लगेगा। इसी तरह काफी पहले wi fi के बारे में पूछा था जो अब हर व्यक्ति तक पहुच गयी है।
हलाकि इस तरह के उदाहरण ज्यादा सटीक नही होते है क्योंकि सिविल सेवा , सर्वोत्तम का चयन करती है पर अगर कोई आम व्यक्ति इसकी तैयारी करता है और उस तक सर्वोत्तम ज्ञान की पहुँच नही है तो इसमें उसका क्या दोष है ?
इससे तो यही लगता है कि सिविल सेवा जोकि विषमता दूर करने का एक बड़ा , बढ़िया माध्यम हो सकता है पर वो हो न पायेगा। अब हर कोई the hindu , test series , english में expert नही हो सकता है इन सब के लिए जरूरी है कि उम्मीदवार की आर्थिक दशा बहुत अच्छी हो।
इसी लेख में आप उन कारणों को भी खोज सकते है जो कि हिंदी / क्षेत्रीय भाषा में चयन के निरन्तर गिरते स्तर का कारण है।
By - आशीष कुमार।
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