2015 के आईएएस इंटरव्यू जोकि मई 2016 था , में मुझसे एक सदस्य ने पूछा कि इन दिनों ग्रामीण लोग किस चीज पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च कर रहे है। मैंने कहा " खेती में " क्योंकि इन दिनों निवेश लागत काफी बढ़ गयी है। बात मेरी सही थी पर वो सदस्य संतुष्ट न लगे। उन्होंने ने जबाब दिया कि स्वास्थ्य पर।
बाद में मैंने कई जगह इस बारे में पढ़ा वो वाकई सही कह रहे थे। अभी हाल में ही मैंने कही पढ़ा कि हर साल जितने आदमी , गरीबी से बाहर निकलते है उसके आधे फिर से गरीबी में पहुच जाते है क्योंकि उनका हेल्थ पर खर्च , उनकी आय से कई गुना ज्यादा होता है। वैसे भी आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति शुद्ध पेयजल , पोषण युक्त भोजन तथा स्वच्छ परिवेश के आभाव में जल्द बीमार पड़ जाता है या यूँ कहे कि उसके बीमार होने का अनुपात ज्यादा होता है।
ऐसे में इस समस्या के निपटने के लिए बहुआयामी कदम उठाये जाने चाहिए। एक और स्वास्थ्य सेवाओं तक सबकी पहुँच आसानी से होनी चाहिए दूसरी ओर सरकार की ओर से चलाई जा रही स्कीम्स का उचित क्रियान्वयन , सटीक निगरानी के साथ साथ इनसे जुड़े अधिकारियों की जबाबदेही भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इस दिशा में विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा चलाये जा रहे सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज कार्यक्रम की भी उपयोगिता साबित होगी।
अपने पढ़ा होगा कि भारत विश्व का सबसे युवा देश है उसको आने वाले वर्षो में डेमोग्राफिक डिविडेंड यानी जनसंख्या लाभांश प्राप्त होगा। ऐसे में भारत की बड़ी आबादी द्वारा स्वास्थ पर बढ़ता खर्च , इस दिशा में भारत के सपनों को चूर कर सकता है। पर्याप्त आय के आभाव में ग्रामीण परिवार शिक्षा पर ज्यादा खर्च भी नही कर पाएंगे इसलिए ग्रामीण क्षेत्र के लिए वैकल्पिक रोजगार का भी बड़ी मात्रा में सृजन किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार द्वारा रुबन मिशन चलाया जा रहा है जिसमे क्लस्टर आधारित विकास पर जोर दिया गया है।
( दोस्तों , इस तरह के लेख , एक प्रकार से निबंध के लिए मेरी प्रैक्टिस है जो किसी भी विचार पर छोटे छोटे लेख के रूप में लिखने की कोशिस करता हूँ। आप इन पर अपनी अमूल्य राय , समीक्षा जरूर दीजियेगा। थैंक्स। )
By - आशीष कुमार
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