हिंदी साहित्य
देवसेना व् स्कन्दगुप्त का प्रेम , पाठकों के लिए अबूझ पहेली सा रहा । पहले देवसेना मोहित थी पर बाद में उदासीन हो गयी । यह कुछ कुछ गोदान की मालती और मेहता के बीच live in relationship जैसा भी न है ।
देवसेना प्रेम बहुत करती है पर सम्बन्ध में बंधने के लिए विमुख हो जाती है क्योंकि प्रेम में पड़कर स्कन्द देश के लिए समय न दे पाता । दिव्या में भी यही द्वन्द है पर उसमें दिव्या विवाह से पूर्व ही अपने प्रेमी को सौंप देती ताकि वह पूर्ण मन से युद्ध में भाग ले पर इस अनैतिक कृत्य के लिए उसे बिन ब्याही माँ बन ना पड़ता है और पुरे उपन्यास में उसे संघर्ष करते चित्रित किया गया है ।
सिविल सेवा में हिंदी साहित्य का पाठ्यक्रम बहुत रोचक व् जीवनदृष्टि विकसित करने वाला है । लंबे समय से इसे पढ़ते हुए , मेरी जीवन, समाज, प्रेम, के प्रति विशेष समझ विकसित हुयी है जिसके फलस्वरूप इन जटिल विषयों पर सरलता व् सहजता से विचार अभिव्यक्त कर पाता हूँ । thanks
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें