राग दरबारी पढ़ते ही मैं श्री लाल शुक्ल का दीवाना हो गया था । तब से निरंतर उनकी अन्य रचनाये खोजता रहा है । राग दरबारी हर जगह उपलब्ध है पर अन्य दुर्लभ । ऑनलाइन भी नही ।
पिछले वर्ष मुझे लखनऊ में एक जगह पर एक साथ उनकी कई रचनाये मिल गयी । आँख मुद कर खरीद लिया ।
पहले भी यह रोना बहुत बार रो चूका हूँ कि जब से मैं सरकारी चाकर हुआ तब से पैसे तो रहे पर समय न रहा । किताबें पड़ी रही । एक रचना कुछ समय पहले पढ़ी थी
* विश्रामपुर का संत * जिसकी समीक्षा अपने ब्लॉग ( for my blog, Google pr search kre ias ki preparation hindi me ) पर लिखी थी ।
कल से मैंने सुनी घाटी का सूरज पढ़ना शुरू किया । पूरा आनंद मिल रहा है एक जबरदस्त चीज मिली तो यह मन हुआ अपने पाठको से भी शेयर करू ।
शुक्ल जी सबसे खास बात उनका भदेसपन , देशज संस्कृति , ग्रामीण मुहावरे, अनूठी उक्तियाँ होती है । एक प्रसंग आया
* तो जाओ भईया जहाँ सींघ समाये वहां जाने का इंतजाम करो *
सींघ समाना अद्भुत प्रयोग है । खैर अपने सभी सुधि पाठको से एक विशेष आग्रह है अगर आपके गांव , कसबे में कोई अनोखी कहावत , उक्ति चलती हो तो कमेंट में शेयर करें । कुछ उदाहरण मैं दे रहा हूँ ---
1 बकैती पेलना ।
2 जो चोच देता है वही चुग्गा देता है ।
3 सब कुकुर बनारस न जाहियें ।
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