शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

Gulal film

"गुलाल"फ़िल्म  

बात 2011..12 की होगी। उन्नाव से अहमदाबाद ट्रैन से आ रहा था। उन दिनों स्लीपर डिब्बे से चलना होता था। ट्रैन में बहुत सफर किया और अनुभव से जाना कि जिंदगी सही में स्लीपर डिब्बे में जीवन्त रहती है। 

सहयात्रियों बातचीत करते हुए सफर बड़े मजे में कट जाता है। कितने ही प्रकरण, किस्से सुने, सुनाये गए। जब से AC डिब्बों मे चलना शुरू हुआ, किसी सफर में 10 शब्द से ज्यादा न बोले गए होंगे। जाने कैसा ये बदलाव है.. शब्दों में भी इतनी मितव्ययिता..।

तो बात उस ट्रैन यात्रा की.. एक हमउम्र लड़का भी सामने बैठा था। बात फ़िल्मों की शुरू हो गयी। बातों बातों में उसने कहा-"गुलाल देखी?" 
मैंने कहा "नहीं"। नाम सुनकर लगा ये अपने टेस्ट की न होगी। गुलाल मतलब रंग..प्रेम मोहब्बत.. भई अपने को ऐसी फिल्में जरा भी न भाती। पर उस सहयात्री ने इतनी जबरदस्त तारीफ की मन हो रहा था कि काश अभी देख डाला जाय। 

खैर सफर खत्म हुआ और खोज शुरू हुई कि गुलाल फ़िल्म कैसे मिले। उन दिनों टोरेंट का दौर था। लोग फिल्मों को पेन ड्राइव / हार्ड डिस्क में लोड करके एक दूसरे से शेयर कर लिया करते थे। इसी किसी जुगाड़ से गुलाल फ़िल्म मिली होगी।
जिस दिन से मिली तब से आज तक दर्जनों बार देखी होगी। एक एक शब्द, डायलॉग रोंगटे खड़े कर देने वाले। समझ बढ़ी तो पता चला कि ये अनुराग कश्यप ने ही लिखी व बनाई है ,तो उनकी और भी फिल्में देख डाली। पर 'गुलाल' जैसी बात न मिली।

अहमदाबाद में ठेले वाले मोमफली के छोटे छोटे दानों वाली किस्म , बालू में गर्म करके बेचते हैं। उसका स्वाद आम मूमफली से कही हटके होता है, बहुत ही स्वादिष्ट। वो  चीज कहीं और देखी नहीं।मुझे वो बहुत पसंद थी। जिस वीकेंड पर ऑफिस से आते समय वो ठेलिया  दिख गयी तो समझो एक बेहतरीन शाम बन गयी।

वो छोटे वाले गर्मागर्म सिंग दाना (मूमफली), एक बियर की बेहद ठंडी बोतल और सामने टीवी/लैपटॉप पर गुलाल को मगन होके देखना...आय हाय मजे ही मजे।

फ़िल्म की शुरुआत में वो कमरा दिखाने वाला, बाँसुरी वाला, रानशा.. उसका वो डायलॉग..
जो कुछ न करता लॉ करने आता...दिलीप का होस्टल जाते वक्त रामलीला वाले पात्र..फिर कमरे में जो रैंगिग होती है..

दुबारा रानशा का दिलीप बदला लेने जाना  और मेरे पास मां है वाला डायलॉग.. हर दृश्य बड़ा ही गजब का है। 
केके मेनन, पीयूष मिश्रा और उनका वो अजीबोगरीब साथी..वो आरम्भ है प्रचंड वाला गाना.. माही गिल का अभिनय..

माही गिल को उसी टाइप के रोल में कई जगह देखा.. अपहरण, साहब बीबी गैंगेस्टर.. सब जगह मुझे परफेक्ट लगी। ऐसा लगता है कि फ़िल्म नहीं अपने आस पास को ही देख रहे हैं।

बातें तो बातें है उनका अंत कहाँ.. अब बाकी फिर कभी ..जैसे मुझे उस अजनबी से गुलाल जैसी मूवी मिली, आपको भी एक मूवी अनुशंसित करना चाहता हूँ.. "मनोरमा सिक्स फ़ीट अंडर"। आप भी कुछ इस तरह के टेस्ट वाली मूवी बता सके तो जरूर बताइये...

विदा।


आशीष कुमार, उन्नाव। 
02अप्रैल, 2022। 

रविवार, 14 नवंबर 2021

Different people

भांति भांति के लोग

कुछ रोज हुए पर बात है कि जेहन से उतर ही नही रही। कोई तो था, सामने जो बातों में तल्लीन इस कदर था कि उसे जरा भी होश न था कि जाने अनजाने में क्या कर रहा है..

हम चाय या कॉफी पी रहे थे। सामने नमकीन भी थी, मिठाई भी थी। सामने बैठे शख्स के हाथों पर नजर गयी तो वो काजू कतली का एक टुकड़ा उठा कर मुँह में रखा, फिर चाय सिप की। यह घटनाक्रम फिर उसने दोहराया।
उस वक़्त से लेकर अभी तक यह न समझ आया कि यह कोई नया ट्रेंड तो न चल पड़ा है या फिर वो बातों में बहुत गहराई से डूब गया था। मीठी चाय के साथ मिठाई ..भगवान ही जाने ...यह नई लीला।

© आशीष कुमार, उन्नाव।
14 नवंबर, 2021।

गुरुवार, 9 सितंबर 2021

Motivational quotes






प्रिय पाठकों, अब आपको समय समय पर मेरे एक बहुत अच्छे collection से ऐसे ही चुने हुए मोती आपके लिए मिलते रहेंगे।

अगर यह आपको अच्छी लगी हो तो कमेंट में जरूर बताना। आपको किस तरह के quotes पंसद है। आप इसे अपने मित्रों से भी शेयर कर सकते हैं।


रविवार, 5 सितंबर 2021

TEACHERS DAY

शिक्षक दिवस 


आज अपने सभी Readers को मै teachers day की शुभकामनाएं देना चाहता हूँ। वास्तव में कबीर ने जो गुरु के बारे में कहा है कि वो भगवान से भी बड़ा होता है। मैंने यह बात बहुत अच्छे से महसूस की है। 

कभी कभी सोचता हूँ कि अगर मुझे वो न मिले होते तो मैं कहाँ होता। मैंने हमेशा से एक बात कही है कि सदगुरु पर आंख बंद करके आस्था रखे. अगर आपका गुरु का चयन उचित है तो आप को असीम success मिलने से कोई रोक नहीं सकता।  


उनका हमेशा सम्मान करें। 


उनकी शिक्षा के प्रति कृतज्ञ रहे। 


उनके प्रति सेवा भाव रखे। 


- आशीष कुमार, उन्नाव। 

सोमवार, 23 अगस्त 2021

Bribe

रिश्वत 

कुछ घटनायें ऐसे होती है, वर्षों बीत जाने का बाद भी मन से नहीं मिटती। 

10 साल बीतने को हैं पर आज भी वो घटना अक्सर याद आ जाती है। उन दिनों मैं रक्षा लेखा विभाग में auditor हुआ करता था। उन्नाव से लखनऊ रोज ट्रैन से जाना होता था। charbag station के पीछे की तरफ मेरे विभाग का मुख्यालय था। स्टेशन से वहाँ तक पैदल चला जाता था। कुछ वक़्त बाद, एक सहकर्मी शाम को अपनी bike से मुझे स्टेशन तक छोड़ने लगा। 
एक रोज की बात है, मुझे लेकर वो ऑफिस से निकला। ऑफिस के पास के चौराहे पर अक्सर police खड़ी रहती।  वो अक्सर हेलमेट के चालान काटती रहती थी। सहकर्मी ने बहुतायत लोगों की तरह अपना helmet सर में लगाने के बजाय बाइक के हैंडल पर टाँग रखा था। 

वही हुआ जो तय था, सहकर्मी अपनी सफाई दे रहे थे, ट्रैफिक हवलदार कानून बता रहा था। जब बात न बनती दिखी तो सहकर्मी ने आखिरी दावं चला - 
" साहब छोड़ दीजिए, यही आर्मी वाले ऑफिस में काम करता हूँ .."

और बात बन गयी। हम खुश होकर आगे बढ़े कि सहकर्मी बोला-
" बड़े बेकार पुलिस वाले हैं .." 
मैंने हैरानी से पूछा "क्यों भाई.. बगैर चालान काटे/कुछ लिए दिए बगैर छोड़ दिया ...इसके बाद भी ऐसा क्यूँ बोल रहे हो.."
" कहाँ कुछ बगैर लिए छोड़ा.. आगे मेरा आज का newspaper  रखा था ..वो निकाल लिया "  सहकर्मी फीकी हँसी के साथ बोला। 
वो दिन है और आज का..अभी तक समझ न आया..उसे क्या कहेंगे ..न्यूज़पेपर पढ़ने के लिया था..पर तरीका क्या ठीक था..दूसरी ओर जब पुलिस वाले ने उदारता दिखाते हुए छोड़ दिया था तो फिर न्यूज़पेपर का रोना मेरा सहकर्मी क्यूँ रो रहा था.आप का विवेक क्या कहता है..?

©आशीष कुमार, उन्नाव।
23 अगस्त, 2021।




बुधवार, 18 अगस्त 2021

Adhuri Yatra

अधूरी यात्रा।


Highway से गुजरते वक़्त , ऊपर साइनबोर्ड पर नजर गयी लिखा था , .
हुलासखेड़ा पुरातात्विक स्थल 5km
 बहुत आराम से drive कर रहा था, घर पहुँचने की कोई जल्दी न थी। ख्याल आया चलो देखकर आते है क्या है वहाँ। 

लोथल (गुजरात) को देख चुका था, पता था पुरातात्विक स्थल किस तरह के होते हैं..हाईवे से कट लेकर 2 किलोमीटर पहुंचा तो सामने दो रास्ते थे। जैसे कि हमेशा होता है, गलत रास्ते पर बढ़ा ..और घूम घाम के फिर उसी हाईवे के पीछे पहुँचने वाला था, अब लगा कि पूछ ही लेता हूँ ..सामने एक bike मैकेनिक की दुकान थी ..2 ..3 लोग थे वहाँ। 
कार के शीशे गिरा कर पूछा ..
"भइया इधर कहीं खुदाई --वुदाई हुई है क्या ..?"
" हाँ ..भइया उधर नहर के किनारे -किनारे खुदाई हुई तो है ..मिट्टी भी पड़ी है साइड में "

" अरे नहीं.. कोई पुरातात्विक स्थल है क्या पास में..घूमने की जगह..लोग आते होंगे "
अब कठिनाई सी लगी कि इनको कैसे समझाया जाय। 

"नहीं ऐसा तो कुछ न है..एक temple है मेला लगता है वहाँ.." एक सज्जन बोले। 
" तुम राजा महाराजा के time की खुदाई के बारे में पूछ रहे हो क्या ..हां वही है " बाइक बना रहे लड़के ने कहा। 

मैंने जल्दी से हां कहते हुए कार बढ़ा ली। इस बार तिराहे से दूसरे रास्ते पर बढ़ा। 100 मीटर भी न गया होऊंगा.. पक्के रास्ते पर छोटे 2 स्वीमिंगपूल बने थे, जिनपर बरसात पर पानी भरा था। वर्षो बाद ऐसे आलौकिक दृश्य से साक्षात्कार हो रहा था।

ठीक एक दिन पहले लखनऊ में एक car wash करने वाले ने इनर क्लीनिंग, डीप क्लीनिंग के नाम पर कार धुलाई के 1000 रुपये का चूना लगाया था। अभी सामने वाले स्वीमिंगपूल में अपने सफेद कार को नहलाने की इच्छा न हुई।

कार मोड़ रहा था कि एक बाइक वाला आते दिखा। मुझसे रहा न गया फिर से पूछा 
" आगे कहीं खुदाई वुदायीं हुई है क्या.."
"खुदाई...! वो आगे एक कच्चा रास्ता है उस पर तो मिट्टी डाली गई है..बाकी ये रास्ता आगे ठीक है..ये थोड़ा सा ही खराब है.."
अब जितना जल्दी हो वापस लौट लेना चाहिए.. सोचते हुए मैं हाईवे पर लौट आया, वही जहां हरे रंग के बड़े से साइनबोर्ड पर सफेद पेंट से लिखा था
हुलासखेड़ा, पुरातात्विक स्थल दूरी 5 किलोमीटर..

©आशीष कुमार, उन्नाव। 
18 अगस्त, 2021।


मंगलवार, 27 जुलाई 2021

Zomato Boy

लेख : खाने पहुँचाने वाले लोग


आज अभी थोड़ी देर पहले की ही बात है, एक व्यक्ति बाइक पर zomatto के बैग लिए दिखा। पिछले कुछ समय से इन लोगों के लिए मन में बहुत भाव आने लगे हैं.. कुछ घटनायें/समाचार भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। एक दिन पढ़ा कोई साइकल से food delivery कर रहा है..एक दिन कि कोई महिला बगैर लेट हुए कई सालों से ये काम कर रही है। अक्सर ये शांत, स्वाभिमान से भरे नजर आते हैं...

कैसी अजब स्थिति है कोई खाना पहुँचा रहा है ताकि उसे , उसके परिवार को खाना मिल सके। मैंने कहीं शायद किसी novel में पढ़ा था कि कलकत्ता में ऐसे रिक्शा होते है जिनको आदमी खुद चलकर/दौड़कर दूरी तय करते हैं.. सवारी पीछे बैठी है, उसे थकान न हो याकि उसके पास पैसे है तो वो एक आदमी को जोकि गरीब है, उसकी गरीबी उसे बाध्य करती है कि वो किसी आदमी को रिक्शा पर बैठाकर उसे पैदल खीचता फिरे.. जाने उसके मन मे कैसे भाव रहते होंगे..
ऐसा ही कुछ उन मजदूरों/मिस्त्री के साथ होता होगा, जो किसी के लिए शानदार/भव्य घर बना रहे होते हैं ताकि उनके घर पर भी छप्पर पड़ सके..

जब मैं छोटा था किसी भिखारी, गरीब निर्धन व्यक्ति को देखता था बहुत दुःख होता था। पता नहीं क्या हुआ ज्यों 2 बड़ा हुआ धीरे धीरे भिखारी लोगों के लिए दया आना बंद हो गयी..आश्चर्य होता है ऐसे व्यक्ति को देखकर क्यूँ निर्वकार रहने लगा हूँ..पर अब ऊपर वर्णित व्यक्तियों को देख मन बड़ा व्यथित हो जाता है..

आज दिल्ली में खूब बारिश हो रही है..जिस ज़ोमोटो वाले को देखा ..बारिश की चिप चिप.. कीचड़ में बेपरवाह तेजी से घर में बैठे किसी आरामतलब, सुविधा संपन्न व्यक्ति को कुछ गर्म गर्म समय से देने  चला जा रहा था। हो सकता उस बॉक्स में महज tea हो..हाँ सच में किसी ने बताया कि इससे लोग चाय भी मंगाते है..सुनकर यकीन न हुआ.चाय बनाने में क्या ही वक़्त लगता है और इस तरह के order में चाय ठंडी न हो जाती होगी..(निजी क्षेत्र में काम करने वाली लड़की जिसकी आय 30/40 हजार होगी..हाँ वो घर से सम्पन्न है जॉब शौक के लिए कर रही है ..यह घटना किसी से सुनी थी..अब इसपर ज्यादा क्या बात की जाय)

तो मैं बात कर रहा था आज दिल्ली में बहुत बारिश हो रही है..यह सब विचार एक सरकारी गाड़ी में एक सरकारी ड्राइवर के साथ पिछली सीट पर बैठकर सोच व लिख रहा हूँ.. उतरूंगा तो कोई छाता लेकर खड़ा होगा ताकि साहब भीगने न पाय..(जाहिर है स्पष्ट रूप से मना करता हूँ)..रास्ता लंबा है ..किसी किसी फ्लाईओवर के नीचे बाइक, सायकिल वाले लोग बारिश के कम होने का wait कर रहे हैं.. देर होगी तो उनका बॉस चिल्लायेगा.. हो सकता आज का वेतन ही काट दिया जाय..उस ज़ोमोटो वाले को आर्डर देर से लाने के लिए चार बातें सुननी पड़े..

अपने शायद ऑक्सफैम की रिपोर्ट के बारे में पढ़ा हो ..जो अमीर गरीब के गैप के बारे में आकंड़े जारी करती है..पता है हमारे देश में यह विषमता बढ़ती ही जा रही है..अपने पढ़ा होगा बंदी के दौरान भी तमाम अमीरों की आय कई गुना बढ़ गयी है..ज़ोमोटो की बात करें तो पिछ्ले दिनों उसका ipo आया है..तमाम लोगों का जबरदस्त पैसा बना है..इसके प्रारंभिक निवेशकों ने कई गुना पैसा बना लिया.( कुछ भी इसमें गलत नही है ..कोई गड़बड़ घोटाला न हुआ..सब कानूनी रूप से सही है )

(ये लेखक के निजी विचार हैं )
©आशीष कुमार, उन्नाव।
28 जुलाई, 2021।


शनिवार, 24 जुलाई 2021

strange issue

अनोखी समस्या 

उसका एकहरा शरीर था। पढ़ते 2 आंखे कमजोर हो गयी। ऐनक बनवाया गया। कुछ पैसे बचाने के चक्कर मे उसका फ्रेम जरा भारी ही रखा गया।
 अब जब चश्मा लगता है तो उसके भार से नाक पर जोर पड़ता है नाक पर दर्द और न लगाया जाय तो सर में दर्द। 

#सुना हुआ यथार्थ
©आशीष कुमार, उन्नाव।
24 जुलाई, 2021।

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