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शुक्रवार, 14 मार्च 2014

FOR UNSUCCESSFUL PERSON

कई बार ऐसा होता है कि बहुत मेहनत करने पर भी असफलता का सामना करना पड़ता है। मन बहुत दुखी होता है क्योंकि आप ही जानते है आपने इसके लिए क्या क्या नही किया। आईएएस का नशा है कि उतरता ही नही। अकेले रहना जॉब करना सब कुछ अपने आप ही मैनेज करना। ऑफिस में सभी बोलेंगे कि मेहनत करो यहा से निकल जाओ पर छुट्टी के नाम पर चुप। बाते व्यकितगत है पर वास्तविकता यही है शादी को आप टाल जा रहे है कि एक बार आईएएस में हो जाये तभी करेगे। दोस्तों इसी का नाम जिंदगी है हमेशा आप के सोचने के अनुसार नही होता है।  इस बार भी हिंदी माध्यम का रिजल्ट बहुत हताशाजनक रहा। मेरे ज्यादातर दोस्तों या कहु सभी को मैंस परीक्षा से बाहर होना पड़ा है। गड़बड़ी कहा हुई ये तो नंबर आने के बाद ही पता चलेगा। इस साल के प्रारंभिक परीक्षा को पास करने वाले को ये भी नही कह सकते है कि वो होनहार नही है।  नये पैटर्न पर पहला एग्जाम था इसलिए कुछ पता नही था कि पेपर कैसे आयेगे। एक बार अपने मैंस के पेपर निकाल कर देखिये क्या आपने वाकई उत्तर गुणवत्तापूर्ण लिखे थे। उत्तर होगा लिखा तो बहुत था पर उनमे गुणवत्ता नही थी। दूसरा एक प्रमुख कारण बहुत ज्यादा सामग्री पढ़ना भी हो सकता है। चौथे पेपर के लिए क्या क्या पढ़ा पर मतलब क्या निकला। उसमे कुछ भी न पढ़ा होता तो भी कोई फर्क न पड़ता। 
अब अफ़सोस करने से क्या फायदा। नये सिरे से जुटा जाये। किताबो और नोट्स से धूल मिट्टी साफ कर पुनः पढ़ाई शुरू। अबकी बार अभी से सामान्य अधययन के चारो पेपर के लिए उत्तर लेखन के लिए अभ्यास किया जाय। शुरुआत पिछले साल के पेपर के प्रश्नो को हल करने से की जा सकती है। इसके साथ ही प्रारंभिक परीक्षा के लिए विशेष तैयारी जारी रखनी होगी क्योंकि उसे हलके में लेने की भूल नही की जा सकती है। 


सिविल सेवा की प्रारम्भिक परीक्षा में इस समय बहुत ही जटिल प्रष्न पूछे जा रहे है। पहला पेपर जो कि सामान्य अध्ययन का है, उसके लिये हिन्दी माध्यम में सटीक सहायक साम्रगी का आभाव है। बाजार में कितनी ही किताबें उपलब्ध है पर उन को पढना अपने समय को जाया करना है। यहाॅ पर एक ऐसी वेबसाइट का पता दे रहा हूॅ जो कि हिन्दी में सामान्य अध्ययन के पेपर हेतु आपको बहुत ही सटीक जानकारी देगी। मैं इस बात का यकीन दिलाता हूॅ कि यदि आप इस को नियमित तौर पर देखते रहे तो आपको यह सिविल से में बहुत उपयोगी साबित होगी। इसका नाम है पत्र सूचना कार्यालय। यह भारत सरकार की वेबसाइट है। यहाॅ पर आप नियमित तौर पर आकर अपने लिये महत्वपर्ण नोट्स तैयार कर सकते है।
PRESS INFORMATION BUREAU

बुधवार, 12 मार्च 2014

पंचशील सिद्धांत

 29 अप्रैल 1954  को भारत और चीन के बीच तिबबत को लेकर एक संधि हुई थी जिसमे पहली बार पंचशील सिद्धांत को मान्यता दी गयी।

  1. एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना 
  2. एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही न करना 
  3. एक दूसरे के आंतरिक मसलो में हस्तक्षेप न करना 
  4. समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना 
  5. शांतिपूर्ण सह - अस्तित्व बनाये रखना 

Millennium Development Goals in Hindi

  1. अत्यधिक गरीबी और  भूख का उन्मूलन 
  2.  सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करना 
  3. लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना 
  4.  शिशु मृत्यु को कम करना 
  5. मातृ स्वास्थ में सुधार लाना 
  6.  एचआईवी /एडस मलेरिया और अन्य बीमारी की रोकथाम करना 
  7.  पयावरणीय स्थिरता को सुनिश्चित करना 
  8.  विकास के लिए एक वैसविक भागीदारी विकसित करना  

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

Topics for upsc interview 2014 in hindi

           दिसंबर में जब मुख्य़ परीक्षा दे रहे थे तो सोचा था कि एग्जाम खत्म होते ही इंटरव्यू  की तैयारी में जुट जायेगे। पर ऐसा न हुआ कुछ दिन सोचा कि छुट्टी मना ली जाये। और तब से छुट्टी ही मनायी जा रही है। 
समझ में न आता कि पढ़ा क्या जाय ? कई ब्लॉग पर भी जाकर देखा सब जगह इंतजार हो  रहा है कि mains का रिजल्ट आ जाये फिर शुरुआत की जाये।  

        काफी दिनों से सोच रहा कि कुछ इंटरव्यू पर लिखा जाये। प्रारम्भ कुछ ज्वलंत मुद्दो से। IAS INTERVIEW ये महत्वपूर्ण नही होता है कि आप कितने प्रश्नो के जबाब दे पाते है वरन आप जो जबाब दिए है वो कितने आयामो को समेटे हुए थे यह ज्यादा मायने रखता है । आप कठिन प्रश्नो पर घबराये नही बस आप शांति से सही मौके का वेट करे। और जैसे ही आप से सरल , परिचित प्रश्न पूछा जाये आप उससे जुड़े सभी आयामो पर प्रकाश डालते हुए जबाब दे। INTERVIEW BOARD को पता चलना चाहिए कि आप का ज्ञान बहुआयामी है। यहा पर कुछ टॉपिक है जिनसे प्रश्न पूछे जाने कि पूरी सम्भावना है। आप को इनसे जुड़े सभी पहलू पर नजर डाल लेनी चाहिए।  

१. लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक : आप को पता होना चाहिए कि इसका चयन कैसे होगा और क्या यह प्रभावी होगा। 

२. तेलेंगाना : किसी नए राज्य का गठन कैसे होता है और आप का क्या नजरिया है। 

३. बांग्लादेश में हुए चुनाव और भारत : विपक्ष  ने चुनाव का क्यों  बहिस्कार किया ? 

४. नेपाल की राजनैतिक दशा : काफी दिनों से NEPAL मे गतिरोध क्या बना है और सुशील कोइराला के प्रधानमंत्री चुने जाने से क्या स्थिति में सुधार आयेगा या नही 
५. लोकसभा चुनाव और भष्टाचार : यद्धपि आयोग राजनैतिक प्रश्न नही पूछता है पर आम आदमी पार्टी के उदय , भ्रस्टाचार के उन्मूलन , और लोकसभा चुनाव पर कुछ पूछे जा सकते है।

६   देवयानी खोबगडे और वियना समझौता


७  श्रीलंका में तमिल और भारत

 ८  लेखानुदान (इस वर्ष क्यों )

९   निर्वाचन आयोग और चुनाव प्रकिया

१०. राज्य में राष्टपति शासन  कैसे और क्यों (दिल्ली में उचित या अनुचित )

११ फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलना : आपका का क्या नजरिया है ?

१२ यूक्रेन संकट : COLD WAR का नया दौर 

१३ SEBI  और सहारा विवाद 





आशा है आप के पढ़ाई से जुड़े ठहराव को कुछ गति देने में यह लेख कुछ मदद करेगा।  

सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

Beggary in india



भीख : कुछ विचार 
मै और मनोज सुबह नास्ता करने के लिए निकले। गुरकुल रोड (अहमदाबाद) में एक हनुमान जी का मंदिर है। उसी के पास  रोड पर ही भिखारिन बैठी थी। सामने मंदिर से एक  युवती निकली। मैंने उत्सुकतावश वहा नज़र टिका दी कि देखे कितने रूपये देती है। युवती ने 500 रूपये का नोट उस भिखारिन को थमा दिया। मुझे ये बात हजम न हो पाई कि जो 500 भीख दे सकती है वो कैसी जॉब करती होगी। मैंने मनोज इस बारे में बात की उसने काफी संतोषजनक जबाब दिया। कई बार हम पॉकेट जब हाथ डालते है तो खुले रूपये न होने पर ऐसे ही करना पड़ता है। मैंने भिखारिन पर फिर नजर डाली मुझे लगा कि आज के लिए उसके पास रुपए हो गये है शायद अब वो वहा से चली जाये। मै गलत था उसने तेजी से नोट अंदर रख लिया और दूसरे लोगो से भीख मागने लगी।

आश्रम एक्सप्रेस से अहमदाबाद से दिल्ली  जा रहा था। कैंट स्टेशन से एक छोटी लड़की चढ़ी। वो करतब दिखा रही थी। एक छोटे लोहे के छल्ले से निकल रही थी (ऐसे करतब आपको हर ट्रैन में देखने को मिल सकते है ) . खेल दिखाने के बाद उसने भीख मांगना शुरू किया। मै दुविधा में था मुझे भीख देना पसंद नही क्योंकि जरूरतमंद लोगो की मदद करना उचित होता है। लड़की को चंद सिक्के देने से कुछ भला न होने वाला था। मेरे पास बैग में काफी पेन पड़े थे। मैंने उसे एक पेन दे दिया। लड़की भी थोडा हिचकी और मुझे भी अजीब लग रहा था कि मैंने क्या किया। खैर काफी दिनों तक मै उसके बारे में सोचता रहा कि उसने पेन का क्या किया होगा। पता नही उसे पढ़ना लिखना आता भी होगा या नही। मुझे लगता है कि मैंने उसको कुछ हद तक सोचने पर मजबूर कर दिया  था ।
इसी ट्रैन में मेरे साथी कुंदन भी थे पुरानी दिल्ली में उतरने पर इसी बात होने लगी। वो बहुत नाराज थे कि लड़की को ऐसे करतब दिखने कि क्या जरूरत है।  उनका कहना था कि जब हर जगह  जगह सरकारी स्कूल है फीस भी नही लगती है। तो उसे ये सब करने कि क्या जरूरत है। मै उसे पेन देकर बहुत अच्छा किया। कुंदन ने बताया कि उन्होंने एक बुढ़िया को भीख दी क्योंकि वो बहुत लाचार थी। मै इस बारे सहमत न हूँ कई बार पेपर में ऐसी न्यूज़ पढ़ने को मिलती है कि कुछ भिखारियो के पास मरने के बाद लाखों रूपये मिले।
ऐसे बहुत सी घटनाये है पर यक्ष प्रश्न है कि भीख देनी चाहिए या नही। अगर देनी चाहिए तो किसको ? अगर हम  भीख देते है तो कुछ लोगो को आश्रित बना रहे होते है। वास्तव में जिन्हे सच में हेल्प कि जरूरत होती है वो कभी मांग ही नही पाते है। अगर आप ऐसे लोगो कि हेल्प कर पाते है तो निश्चित ही आप को अच्छा लगेगा। अगर समय हो तो आप भी अपने विचार प्रस्तुत करे। 





















गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

Vienna Convention on Diplomatic Relations in Hindi

      Vienna Convention हाल में काफी चर्चित रहा है। भारत की एक राजनयिक Devyani khobragade   को अमेरिका में जिस तरह से बंदी बनाया गया वो Vienna Convention की भावना के अनुरूप नही माना गया।  यहाँ मै उस  के बारे में कुछ जानकारी share कर रहा हूँ। 

      इसे 18 अप्रैल 1961 में पारित किया गया था पर लागू  24 APRIL 1964 से किया गया।  इसमें  हस्ताक्षर करने वाले देशों के द्वारा दूसरे देशो के राजनयिकों को विशेष सुविधाए उपलब्ध करायी जाती है ताकि राजनयिक बगैर किसी डर के अपने मूल देश के हितो के बारे में पक्ष रख सके।  इसमें 53 प्रावधान है।  जून 2013 तक विश्व के १८९ देशो ने इसे अनुमोदित किया था। 


गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

SAVE MONEY EARLIER, ENJOY LIFE IN FUTURE

           


           अपनी संस्कृति में बहुत सी अच्छी बाते है। हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि बुजुर्गो का कहना मानना चाहिए। मुझे एक सज्ज्न की दी हुई सीख बहुत प्रभावी लगी।  शायद यह आपको भी बहुत अच्छी लगी ।

              इस जॉब से पहले मै लखनऊ में INDIAN ARMY ऑडिटर के पोस्ट पर job  करता था।  अपने शहर UNNAO से रोज ट्रैन से LUCKNOW जाता था।  ट्रेन में हर रोज नये नए लोग मिलते थे। सबके पास कुछ न कुछ विशेष हुआ करता था बात करने के लिये।  मुझे उनके बारे ठीक से याद नही पर उनकी सलाह हमेशा याद  रहेगी।  मेरी नयी नयी जॉब थी। मुझे अपनी सैलरी बहुत लगती थी।  २००० रूपये महीने से सीधे २२००० रुपए मिलने लगे तो ऐसा ही महसूस होता है। पर महीने के अंत में मेरे अकाउंट में कुछ भी न बचता था।  ब्रांड का भूत उन दिनों बहुत हावी रहता था।  Army  की कैंटीन से न जाने क्या क्या खरीद लिया करता था।  

            उस रोज अंकल जी ने एक बात कही थी कि बेटा अभी कुछ साल बहुत सभल कर खर्च कर लो आगे बहुत मौज करोगे।  कभी भी रूपये कि किल्लत न होगी। यह बात मेरे मन में बैठ गयी।  उस रोज से सिर्फ जरूरत कि चीजे लेने लगा। एक example के तौर पर मुझे job करते ४ वर्ष हो गये है पर bike २ महीने पहले ही खरीदी वो भी भाई के लिए।  मुझे उसकी जरूरत ही नही लगती है। ऐसी बहुत सी चीजे है पर सार यही कि जहाँ तक हो अपनी आवश्कताएं सीमित रखकर बहुत सकून पाया जा सकता है।  पिता जी कि  death  के बाद सब कुछ मेरे पर आ गया था पर सब कुछ धीरे धीरे ठीक होता गया।  आज सब कुछ बहुत  अच्छा है दोनों भाइयो को job मिल गयी है बहुत ही सस्ती पढाई करके वो दोनों ही जॉब पा गये है। 

               Economics  तो मैंने कभी नही पढ़ी पर उन अंकल जी कि सीख में सबसे बड़ी इकोनॉमिक्स economics नजर आती है।  मुझे लगता है मुझे शायद ही कभी पैसे की किल्ल्त हो। बहुत अच्छा लगता जब किसी यार दोस्त को मै हेल्प कर पाता  हूँ खास कर जिनसे मै कभी उधार लिया करता था। अंकल जी पता नही कहा है पर मेरा जीवन तो सदा उनका आभारी रहेगा।

  © आशीष कुमार 
मेरी कुछ रोचक पोस्ट

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

PERSONALITY DEVELOPMENT




जिंदगी में कई बार ऐसे मुकाम आते है जब आपको कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने पड़ते है। आप से कोई सहमत नही होता है न घर न परिवार न यार न रिश्तेदार। सभी आपको को आसान, परम्परागत रास्ता चुनने को कहते है सलाह देते है। परम्पराओ को तोडना आसान नही होता है। अगर आप लीक से हटकर विकल्प को चुनते है तो आपको बहुत सा विरोध , तरह तरह कि बाते सुनने को मिलती है। आप के सामने या पीठ पीछे कहा जाता है कि पगला गया है , दिमाग खराब हो गया है, सटक गया है ( अवधी में) . और अंततः आप का साहस खत्म हो जाता है। चाह कर भी आप अपने तरीके से नही जी पाते है। प्राय : दूसरो की इच्छाओ का पालन करने में ही जीवन समाप्त हो जाता है।

रूसो ने लिखा है कि मनुष्य स्व्तंत्र पैदा होता है पर हमेशा जंजीरो में जकड़ा रहता है। हममे से कुछ लोग ही इन जंजीरो को तोड़ पाने का साहस जुटा पाते है। कभी ऐसे इंसान से आप मिले जिसने हमेशा परम्पराओं को तोडा हो। वह आपसे हमेशा यही कहेगा कि पहले पहल आपका खूब विरोध होगा पर जब आपके निर्णय सही साबित होने लगेगें सब आप के साथ आ जायगें।( किसने सोचा था कि आम आदमी मुख्यमंत्री को हरा देगा )

एक उम्र तक हम अपने माता पिता के अनुशासन में रहते है और रहना भी चाहिए। हमे पता नही होता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित ? पर एक समय के बाद आपके विचारो में टकराव होना शुरू हो जाता है। पिता कहते है कि बेटा तुमसे न हो सकेगा ( गैंग्स ऑफ़ वसेपुर के रामधीर सिंह कि तरह ) .आप मन ही मन सोचते है कि तुम अभी देखना मै क्या कर दिखाऊगां।

पाओ कोहलो लिखते है कि आप तब तक स्व्तंत्र है जब तक आप विकल्प नही चुनते। एक बार आप ने विकल्प को चुना आप कि स्व्तंत्रता खत्म हुई। विकल्प कैसा ही हो आप को उसे सही साबित करना ही होगा।

वो जो लीक पर चल रहे है या चलने जा रहे है उनसे सहानुभूति जतायी जा सकती है। और वो जो परम्पराओ को तोड़ कर , सबकी बातो ,सलाहो को अनसुना कर अपने अनुसार , अपनी शर्तो पर , अपने बनाये नियमों पर , चल रहे है या चलने जा रहे है उनसे क्या कहा जाय। …… दोस्त जिंदगी तो आप ही जी रहे हो बाकि तो सब केवल जिंदगी काट रहे है।

© आशीष कुमार , उन्नाव उत्तर प्रदेश। 

UPSC INTERVIEW


हॉबी 


प्रायः हॉबी के बारे में दो ही बार सोचना पड़ता है या तो कही इंटरव्यू देना हो या फिर शादी का मामला हो ..........मुझे कुछ रोचक वाकिये याद आते हैं . पहले शादी से जुड़े . मेरे गुरु कम भइया जी की शादी की कही बात चल रही थी . भाई जी को साहित्य में बहुत गहरी रूचि थी . पता चला कि लड़की को भी ऎसी ही रूचि थी . भाई जी बहुत खुश हुए कैंसिल। एक और करीबी दोस्त कि वाइफ बहुत होनहार लगी। दोस्त ने बताया कि उसे पेंटिंग से बहुत गहरा लगाव है। मुझे भी सुनकर अच्छा लगा। शादी के बाद वो बहुत सी पेंटिंग भी साथ लेकर आयी थी। जब भी मै मित्र से मिलने जाता उन तस्वीरो को बहुत चाव से देखता। तस्वीरे वाकई सुन्दर थी। शादी के कई बरस बीत गये पर नई तस्वीरे न बनी। एक बार मैंने उन महान कलाकार से इस विषय पर बात की तो उनका कहना था कि शादी के बाद टाइम कहाँ रहता है ? सच ही तो कह रही थी वो। पर अफ़सोस एक रोज मैंने उन तस्वीरो को एक दुकान में थोक के भाव बिकते देखा तो वास्तविकता का पता चल गया।


अब कुछ वाकिये इंटरव्यू से जुड़े हो जाये। शुरुआत संघ लोक सेवा आयोग से कर रहा हूँ। मैं अपनी बारी कि प्रतीक्षा कर रहा था कि साथी काफी परेशान होकर बोर्ड रूम से बाहर निकले। पता चला कि उन्होंने अपनी हॉबी में लिखा था कुकिंग। इंटरव्यू लेने वाली मैडम ने उनसे पूछा कि बोलो नागालैंड, जम्मू, गुजरात और केरल में कौन से तैल में खाना पकाया जाता है ? जाहिर है परेशान होने वाली बात ही थी। आईपीएस में चुने गये एक दोस्त कि हॉबी थी बाँसुरी बजाना। बाद में उनसे जब मै मिला तो भाई साहब ने बताया कि उनको भी हॉबी को लेकर इंटरव्यू में असमंजस का सामना करना पडा था उनसे जुड़ा एक रोचक प्रश्न याद आ रहा है। उनसे पूछा गया कि क्रिकेट एक मूर्खो का खेल है क्या आप इससे सहमत हैं।


वैसे आज की तनाव भरी दुनिया में वो लोग खुसनसीब हैं जो अपनी हॉबी को वक़त दे पाते हैं।मुझे खशी इस बात कि रहती है कि मेरे उच्च अधिकारी हमेशा अच्छे ही मिलते हैं। कस्टम में इंस्पेक्टर बनने के बाद सबसे पहले सुपरिंटेंडेंट राठौड़ के अधीन काम करने का अवसर मिला। सर से मुझे बहुत सी अच्छी बाते सीखने को मिली। सर की एक बात हमेशा याद आती है। सर ने कहा था कि आशीष इस जॉब में रहना है तो कोई न कोई हॉबी जरुर रखना, ऑफिस की टेंसन से बचे रहोगे। सर खुद एक प्रसिद्ध वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर हैं।

जहाँ तक अपनी हॉबी के बारे में सोचता हूँ तो बचपन से मुझे नोवेल पढने का बड़ा शौक रहा है। अपने ग्रेजुएशन के दिनों तक मेरी छवि कुछ ऐसी ही थी। मौरावाँ के लाइब्रेरी से लेकर उन्नाव की दोनों लाइब्रेरी के हमेशा दो दो मेम्बरशिप कार्ड हुआ करते थे। रात दिन एक ही काम था नोवेल पढना। सच में वो दिन बहुत खूबसूरत थे। सुबह शाम कुछ स्टूडेंट को तुअशन पढ़ाना और बाकि टाइम अपने मन से अपनी जिंदगी जीना। अब नोवेल तो ऑनलाइन खरीद तो लेता हु पर पढने का पहले जैसा आंनद कहा।


डायरी लिखने का शौक क्लास ८ से ही शुरू होगया था। आज भी डायरी लिखी जा रही पर नियमित नही लिख पाता हुँ। सार यही कि जॉब में आने के बाद अपनी हॉबी को जारी रख पाना काफी मुश्किल होता है पर एक सफल और सुखद जीवन जीने के लिए , हॉबी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है। लेख तो बहुत लम्बा होता जा रहा है पर अब विराम लेता हूँ। शेष भाग फिर कभी। आपकी कि टिप्पणियो का स्वागत रहेगा।

©Asheesh 

गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013

WILL POWER

          सफलता में दृढ़ इच्छाशक्ति  का महत्व यदि हमारा लक्ष्य बहुत महत्वपूर्ण है तो हमें इसके महत्व को सदैव स्मृत रखना चाहिये। इच्छा जितनी प्रबल होगी हमारा प्रयास उसी अनुपात में गहरा होगा। मार्ग के अवरोधकों को समझिये, वक्त में अपने लक्ष्य को पा लीजिये। शिथिलता लाने से प्राय: हमें असफलता ही मिलती है। अपनी निश्चय क्षमता को पुन: प्रबल करिये ऐसे निर्णय लेना प्रारभ्भ करें कि आप डिगे  नहीं। शनै: शनै: अपनी शक्ति  का नमूना दिखार्इ पडेगा।


HINDI BHASHA

       भारतीय संस्कृति को हिन्दी द्वारा ही विश्व तक पहुंचाया जा सकता है किंतु भारतीय संस्कृति विश्व में तब तक प्रतिषिठत नहीं हो सकती है जब तक हिंदी अपने देश में प्रतिषिठत नहीं होती

                                                                               फादर कामिल बुल्के

भारत के बाहर हिन्दी बोलना आसान है, भारत में नहीं।


                                                                           अटल बिहारी बाजपेर्इ

बुधवार, 10 जुलाई 2013

लघु कथाः गिरगिट

लघु कथाः गिरगिट
आशीष कुमार

गिरगिट आमतौर पर पेड़ों या झाडि़यों पर नजर आता है, पर उस दिन सिंह साहब के लाॅन में जाने कहाॅ से आ गया था। उस समय सिंह साहब लाॅन में बैठकर एक गभ्भीर समस्या पर विचार कर रहे थे। सुबह पत्नी का नर्सिंग होम से फोन आया था, कह रही थी ‘‘ जाॅच करा ली है। इस बार भी लड़की है, अबार्सन करवा लें क्या?‘‘ पूछा था। दो लड़की पहले से ही हैं और अब फिर ! समस्या वाकई गम्भीर थी। इतने बड़े शहर के एस.पी. रहते सिंह साहब का कितने ही अपराधियों से सामना हुआ था, कभी परेशान नहीं हुए। आज पसीना आ रहा था।

अरे ! सिंह साहब चैंक गये, गिरगिट यहाॅं कहाॅं से आ गया? अजीब होता है यह! कभी इस रंग में कभी उस रंग में! सिंह साहब ने गिरगिट को भगाना चाहा पर जाने क्या सोचकर रूक गये। शायद वह गिरगिट को रंग बदलते देखना चाह रहे थे।

  पर वह समस्या़...........! वैसे जहाॅं दो लड़कियाॅ हैं वहाॅं एक और सही। यॅू भी आजकल लड़का लड़की में भेद कहॅ रहा। भ्रूणहत्या होगी तो पाप भी सिर पर आयेगा। पर .....लड़के की बात ही कुछ और होती है।

अरे! गिरगिट ने वाकई रंग बदल लिया था। सिंह साहब गिरगिट को हरी घास के रंग में देखकर चकित हो गये। किस फिराक में है यह! पास में जरूर कोई शिकार होगा।

सिंह साहब ने पुनः सोचा-आजकल लड़की को पालना पोसना कितना कठिन हो गया है। सबसे कठिन शादी करना। कंगाल हो जाउॅगा मैं दहेज चुकाते चुकाते।सिंह साहब ने सिगरेट ऐश ट्रे  में कुचल दी।

गिरगिट ये किस रंग में हो गया है कुछ लाल पर पीलापन लिये। अरे हाॅ पास में ही तो वह झींगुर है।शायद उसे ही खायेगा.... । सिंह साहब ने उठकर गिरगिट को कुचल देना चाहा। पर.......छोड़ो भी, खाने दो। सभी खाते हैं, इस बेचारे का तो भोजन है। सिंह साहब पुनः कुर्सी पर बैठ गये।

......आजकल तो बेटा होना ही सबसे बड़ी सम्पत्ति है। लड़का होना तो आजकल स्टेटस सिम्बल भी बन चुका है। कितनी आशा थी मिसेज सिंह को। इस बार जरूर लड़का होगा। कितनी ही बार कह चुकी थी। गिरगिट ने अपनी करीब एक फुट लम्बी जीभ निकालकर झींगुर को निगल लिया। सिंह साहब ने यह भी देखा। जाने क्या सोचा। तभी मोबाइल की रिंगटोन बज उठी।

मिसेज सिंह कह रही थी-‘‘ अबार्शन करा लिया।‘‘ सिंह साहब प्रसन्न हो गये। पत्नी ने समाजशास्त्र में पी.एच.डी. की है। इस बात का अहसास आज वास्तव में हो रहा था।

(अविराम त्रैमासिक में प्रकाशित) 
©Asheesh Kumar

बुधवार, 26 जून 2013

Weekend Tour : Aaksherdham Temple , Gandhinagar




पिछले सप्ताहांत अपने सहकर्मी मुकल के साथ मउडी जैन मन्दिर गया था। इस मन्दिर की खास बात यह है कि यहाॅ जो प्रासाद मिलता है उसे मन्दिर में खाना होता है वापस आते समय अपने कपड़ों को भी साफ़ करके आना होता है।वापस लौटते समय अमरनाथ वाटर पार्क गया। गाॅधीनगर से बाहर जंगल के बीच बना यह वाटर पार्क अपनी सुन्दरता के लिये दूर दूर तक जाना जाता है।


फिर गाॅधीनगर के विश्व प्रसिद्व अक्षरधाम मन्दिर गया। यहाॅ मैं दूसरी बार गया था। इस बार वी आई पी गेट से प्रवेश करने का अवसर मिला तो काफी समय बच गया। मन्दिर बहुत ही सुन्दर, आकर्षक और शान्त वातावरण वाला है। इसका निर्माण कुछ इस तरह से किया गया है कि कितनी ही भीड़ क्यों न हो यहाॅ पर कभी अव्यवस्था न फैले। शाम को लेजर शो देखा। बहुत ही मनोरम दृश्य थे। तकनीक और आध्यात्म के अद्भुत संगम का परिचायक है यह लेजर शो।सच में यह एक शानदार,यादगार सप्ताहंात था।

Baba Nagarjun Ki kvita,

कविता : बाबा नागार्जुन



 ताड़ का तिल है तिल का ताड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है
किसकी है जनवरी किसका अगस्त है
कौन यहाॅ सुखी है कौन यहाॅ मस्त है।
 सेठ ही सुखी है सेठ ही मस्त है।
मंत्री ही सूखी है मंत्री ही मस्त है।
उसी की जनवरी है उसी का अगस्त है।

जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाउ
जनकवि हॅू मैं साफ कहुॅगा क्यूॅ हकलाउ।।

जनकवि बाबा नागार्जुन द्वारा रचित

शुक्रवार, 21 जून 2013

लग्गड़ की दौड़

लग्गड़ की दौड़
आशीष कुमार

             राग दरबारी में एक पात्र है लग्गड़। जो कि तहसील में एक दस्तावेज की नकल पाने के लिये महीनों चक्कर लगाता है। नकल देने वाला बाबु कुछ रिश्वत की माॅग करता है न मिलने पर लग्गड़ को चक्कर लगवाता रहता है।

           कुछ ऐसा ही घटित हुआ हमारे साथ। 19 जून 2010 को मेरे पिता जी की आकस्मिक मृत्यु हो गयी थी। सरकारी योजना के तहत परिवार को एकमुश्त 20000 रू की मदद मिलनी थी। उस वक्त धन की वाकई बहुत जरूरत थी। फार्म भर दिया गया। अच्छा गाॅव में कुछ व्यक्ति इस तरह की दौड़ भाग में बहुत दक्ष होते है। कई लोग बता गये कि पाॅच सात हजार खर्च कर दो हम दिलवा देगें। मै उन्नाव जिले के मुख्यालय में काफी समय से रह रहा था। मुझे यकीन था कि कुछ न कुछ जुगाड़ कर मै रिश्वत देने से बच जाउगाॅ। उन्नाव के विकास भवन के पास में ही मै रहता था। अपने कनिष्ठ बन्धु को मैने समझा दिया कि रोज विकास भवन जाकर बाबू से मिलते रहो एक न एक दिन काम जरूर हो जायेगा।

            वर्ष 2010 के अंत से शुरू हुई दौड़ भाग अनवरत चलती रही। हमने भी सोच रखा था कि रिश्वत नही देनी है पैसा मिले चाहे न मिले। मैं सरकारी सेवा में आ गया। परिस्थितियाॅ काफी बदल चुकी थी। अब पैसा का कोई मतलब न था पर दौड़ भाग जारी थी। मेरे छोटे दोनो भाई चक्कर काटते रहे पर पैसा न मिला। बाबू ने भाई से एक मार्कर भी माॅग लिया।एक भाई ने दिमाग लगा कर सूचना के अधिकार के तहत दबाव बनाना चाहा। पता नही उनकी आर टी आई कहीं दूसरे विभाग पहुॅच गई। इससे भी बात न बनी। 

            कनिष्ठतम भाई ने अभय ने हार कर एक बाबू से रिश्तेदारी निकाली उनको 500 रू दिये। यह वर्ष 2012 की बात है। कई बार धन उन्नाव से गाॅव की बैंक तक भी पहुॅच गया पर बैंक मैनेजर ने उसे पुनः उन्नाव भेज दिया। समझ न आ रहा था किया क्या जाय। 

             घटनायें बहुत है उनका विश्लेषण किया जाना यहाॅ सम्भव नही। एक आम आदमी तक किसी सरकारी योजना का धन पहुॅच पाना बहुत कठिन है। विशेषकर जब आप लग्गड़ की तरह नियम से सरकारी काम कराना चाहे। 19 जून 2013 को पिता जी के निधन को 3 वर्ष हो गये। भाई ने खबर दी आज ही पूरे 20000 रू बैंक में माता जी के खाते में आ गये हैं।

                   विडम्बना यही है कि कभी इतने रू मेरे परिवार की वार्षिक आय भी न हुआ करती थी। सोचिये उस वक्त इस सहायता की कितनी जरूरत थी। आज यह मेरे 15 दिन का वेतन है। अब इसका मूल्य नहीं।
  यक्ष प्रश्न यह है कि क्या प्रशासन आने वाले लग्गड़ों की दौड़ को आसान कर सकेगा ? 

©ASHEESH KUMAR, UNNAO

संत और बेरोजगार

               बहुत रोज से कुछ लिखना चाह रहा था पर लिख न पा रहा हॅू क्योंकि अब चिंतन मनन के लिये समय न मिल पाता है। कुछ पुरानी प्रकाशित रचनाओं को ही सोचा डिजटिल रूप में एकत्र कर लूॅ।इसी कडी़ में एक लघु कथा प्रस्तुत है। यह दैनिक जागरण में 2003 में प्रकाशित है। वर्ष 2008 में दैनिक जागरण की साहित्यिक वार्षिकी ’पुनर्नवा’ में इसका पुर्नप्रकाशन हुआ है।

लघु कथा :संत और बेरोजगार 

             विजय जी बेरोजगार थे। अविवाहित थे। आयु चालीस पार कर चुकी थी। इस पर वह बहुत सनकी थे। एक महफिल में किसी से उलझ गऐ। ज्यादातर लोग विजय जी की बात स्वीकार कर लेते थे पर वह न माना। वह भी बेरोजगार था। तर्क पर तर्क करता चला गया। विजय जी को अपशब्द भी कहना शुरू कर दिया। आखिरकार विजय जी ही शान्त हो गये। वह भी लड़-झगड़ कर महफिल से चला गया। उसके जाने के बाद विजय जी अपने रंग में आ गए। उसे पीठ पीछे जमकर कोसा। अन्य लोगों से कहने लगे मुझ जैसे संत को गाली दी है, इसकी या इसके परिवार में कोई मौत के करीब है। उस बेरोजगार को विजय जी की बातें जाननें को मिल गयी पर वापस उलझनेे नहीं आया।

महीने भर बाद बेरोजगार के अध्यापक पिता मर गए, दिल का दौरा पड़ा था। बेरोजगार खुश था क्योंकि उसे अपने पिता की जगह नौकरी मिल गई थी। नौकरी मिलते ही बेरोजगार सभ्य हो गया। विजय जी के अहसान को बेरोजगार ने भुलाया नहीं। उसकी कोशिशों से विजय जी कोसने वाले संत के रूप में विख्यात हो गए। 

©आशीष कुमार

बुधवार, 19 जून 2013

Change In Hindi Language




पिछले दिनों जब घर  उन्नाव गया तो पड़ोस के एक मित्र ने कहा और ब्रो ........ जब तक मै कुछ समझता बन्धुवर ने पूछा कैसे हो डयूड.........। अब भाषा का ऐसा रूप देख कर बडा़ आश्चर्य हुआ। मुझे लगा मै रहता हूॅ मेगा सिटी में तो बन्धु मुझसे इतनी अपेक्षा तो कर ही सकते थे कि मैं ब्रो और डयूड जैसे आधुनिकता दर्शाने वाले शब्दों को प्रयोग कर ही रहा होउगाॅ। नही मित्र ऐसी शब्दावली मेरे बस की नही। बस डर इस बात का है कि बोली से ही भाषा उपजती है और आने वाली हिन्दी भाषा का रूप विकृत न हो जाय. 

आज के समय में हर कोई आधुनिक बनने , दिखने की कोशिश में लगा है। पता नहीं हमको क्या हो गया है कि हम अपनी जड़ो को भूलते जा रहे है। दरअसल पश्चिमी संस्कृति में इस तरह लिप्त हो गए है कि हम अपने संस्कारो को ही भूलते जा रहे हैं। अपनी बोली , भाषा की मिठास , भला अंग्रेजी क्या मुकाबला कर पायेगी। इसलिए जब तक जरूरी न हो हिंदी में बात करना ही उचित होगा।  

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