गर्मी के सीजन में अगर आप का टिकट कन्फर्म है तो बहुत सकून की बात है पर आपकी यात्रा के एक सप्ताह पहले आपका प्लान बदल कर कुछ दिन पहले जाना पड़ जाय तो .....
जाना २९ अप्रैल को था . ट्रेन में वातानुकूलित टिकट कन्फर्म थी पर कुछ वजह ऐसी बनी कि २५ अप्रैल को ही निकलना पडा . लम्बे समय बाद घर जाना हो तो समान भी काफी होता है . प्लेन के टिकट वैसे तो काफी सस्ते हो गये पर उसमे में अंतिम समय में टिकट लेने का मतलब अच्छा खासा खर्च .
इधर गुजरात , राजस्थान , देल्ही में स्लीपर बसो का खूब चलन है . रेड बस से टिकट बुक करायी और रात में १० बजे जयपुर जाने वाली एक बस में बैठ गया . सुबह ११ बजे जयपुर में था . यहाँ से शाम 7 बजे बस थी कानपुर के लिए . इसलिए जयपुर में मेरे पास काफी समय था घूमने के लिए . फेसबुक से काफी मित्र जुड़े है जयपुर के , बहुत लोगो ने जयपुर आने के लिए बोला भी था पर जब वक्त आया तो मेरे पास किसी का नंबर मौजूद नही . कुछ दिनों से जयपुर के एक मित्र से बात भी हो रही थी पर मेरी लापरवाही , उनका नंबर सेव नही किया . काफी खोजा पर .......
गर्मी बहुत थी सामान भी काफी था . मै वहां उतरा था जहाँ पोलो विक्ट्री है . पास में एक शाकाहारी भोजनालय था . उस दोपहर मै बहुत स्वादिस्ट खाना खाया . १५० रूपये में अच्छा खासा खाना था . काफी दिनों बाद दाल मखानी खायी बहुत लजीज थी .
अब कहाँ जाऊ , हवामहल के लिए बस जा रही थी पर गर्मी में हिम्मत न हुई . पास में पता किया कोई सिनेमाघर हो तो फिल्म ही देख लू . किसी ने राज मंदिर का नाम लिया तो मुझे कुछ याद आ गया , मैंने बचपन में इसके बारे में कुछ पढ़ा था शायद यह भारत का सबसे खुबसुरत सिनेमाघर है .
वहां भी नही गया क्युकि पता चला कि पोलो विक्ट्री , जहाँ मै था वो खुद एक सिनेमाघर था . सिंगल स्क्रीन में बहुत दिन बाद पिक्चर देखने जा रहा था . इस सप्ताह बहुत बकवास फिल्म रिलीज हुई थी . फिल्म लगी थी “ इश्क के परिंदे ” . उसका पोस्टर देख लगा राजस्थानी फिल्म है .
फिल्म की टिकट २. ३० बजे मिलनी थी पर अभी १ ही बजा था . उपर कोई भी नही था . इतना सन्नाटा ..... एक चेयर खाली पड़ी थी . थिएटर शायद उपर था . मै नीचे ही हाल में अकेला बैठा था . रोमिंग में होने की वजह से किसी से फ़ोन पर बात करके भी टाइम नही काटा जा सकता था . व्हाट एप तो चल रहा था पर वहा भी कोई नही था ..जब मै किसी को वक्त नही देता तो भला मेरी बोरियत को कौन मिटाए . पर मुझे चरित्र मिल ही जाते है . कुछ लोग धीरे धीरे आने लगे थे . तभी मैंने कुछ सुना “ साला आज १५ , २० साल बाद फिल्म देखने आया हूँ .” मै समझ गया आ गया कोई आस पास है जो अपने मतलब का है . पास में ही दो लोग खड़े थे . एक कसे बदन का ३५ – ३६ साल का इन्सान था . मैंने भी बात करने की गरज से पूछा “ऐसा क्या हुआ जो अपने इतने सालो से पिक्चर नही देखी . बस उस बातूनी आदमी को छेड़ने ने की जरूरत थी वो शुरू हो गया और तब तक शुरू रहा जब तक हम सिनेमाघर के अंदर नही गये .
वो पहले CISF में जॉब करता था . फिर जॉब छोड़ थी . अब कोई कोचिंग चला रहा था और ठेकेदारी शुरु करने वाला था . आज मुझे माफ़ करना वजह उस इन्सान के व्यक्तित्व को दिखाने के लिए मुझे कुछ सीमाये तोडनी पड़ेगी .
सिनेमाघर में शा 4 -5 जोड़े भी फिल्म देखने आये थे . उसमे हैरानी की बात बस इतनी थी कि महिलाये शादीशुदा थी और उनके साथ जो लड़के थे वो बहुत कम उमर के थे . यह दूर से ही समझा जा सकता था कि वो सब पति पत्नी नही थे . बातूनी आदमी इस बात को बहुत नोटिस कर रहा था . वो सारा ज्ञान दिखाने लगा . उसने बताया कि अमुक शहर में इससे ज्यादा ऐसा चलन है ... फिर उसने कुछ और ज्ञान बताया जैसे केरल की महिलाये का चेहरा अच्छा होता है पर रंग काला और जम्मू – कश्मीर की तरफ रंग साफ होता है पर चेहरा लोटे की तरह होता है पूर्व में तो परी जैसी लड़कियाँ रहती है ..बस कयामत ..मुझे उसके सारे शब्द नही याद आ रहे थे पर उसका ये ज्ञान मुझे बहुत मजेदार लग रहा था . वो इस जगहों पर जॉब कर चूका था . उसने बोला उधर असम में जहाँ परी जैसी लडकियाँ रहती है वहां कोई चक्कर नही शुरु कर सकते वरना तुमको उनसे जबरदस्ती शादी करनी पड़ेगी और यह मत सोचना कि शादी के बाद उनको तुम अपने घर ले आओगे . मैंने पूछा की अपने यहाँ का भी कुछ बता दीजिये तो बातूनी आदमी में तुरंत बोला अपने यहाँ सब मिक्स है . बातूनी आदमी अपने पुरे रंग में था . इतना रोचक बाते कि मेरे आस पास करीब ५ -६ लोग घेरा बना कर खड़े बात सुनने लगे . अब सारी बाते बताने लायक नही है .
जब टाइम हो गया तो हम सभी सीढियों पर चढ़ कर उपर गये . उपर जो गैलरी थे वो बहुत ही भव्य थी . अपने जवानी के दिनों में यह सिनेमाघर भी क्या लगता रहा होगा . न जाने कितनी ही प्रेम कथाये इसमें पनपी होंगी . चोरी चोरी कितने ही “इश्क के परिंदे” इस खुबसूरत सिनेमाघर में प्रेम के दाने चुगे होंगे .
उपर भी बातूनी आदमी शुरु था . जहाँ वो कपल थे उनके पास जाता और जोर जोर से कुछ सुनाता . ऐसा लग रहा था कि वो जो चोरी से फिल्म देखने आये थे उनको और नर्वस करना उसको बड़ा आनंद दे रहा था। मुझे अक्षय कुमार पर फिल्माया वो गाना याद आ गया “ लड़की देखी मुँह से सिटी बजी हाथ से ताली
Ladki dekhi munh se seeti baje haath se taali - 2
Saala aila usma aiga pori aali aali.......
Chaahe Ghadwaal ki ho, ya Nainitaal ki ho
Chaahe Punjab ki ho ya phir Bangaal ki ho
Lovely haseen koi bheed se dhoondenge - 2
Not permanent, temporary dhoondenge re “
. अन्दर जा कर मुझे कुछ और भी पता चला . अंदर जो बातूनी टाइप, सिटी बजाने वाले आदमी थे उनको हाल के एक तरह बैठाया गया और जो कपल थे उनको दूसरी तरफ सबसे पीछे . शायद हाल वाले कपल की भावनाए समझते थे .
पोस्ट काफी लम्बी हो चुकी है इसलिए इसे यही से खत्म समझ सकते है बाकि मेरी स्टाइल तो पता ही है ....मेरी कहानियाँ कभी पूरी नही होती .....
© आशीष कुमार ( पिछले दिनों मेरी पोस्ट चुरा कर किसी ने अपनी बता कर पोस्ट की है ...कृपया ऐसा न करे . आप जैसे कुछ लोगो की वजह से लिखने का मन नही होता है ....काफी दिनों बाद कुछ लिखा है .....आशा है पसंद आयेगा )