वो कनपुरिया पान वाला
काफी पहले किसी कक्षा में अंग्रेजी लेखक विलियम सी डगलस की एक कहानी A GIRL WITH BASKET पढ़ी थी। जिसमें लेखक को भारत की एक छोटी सी लड़की ने किसी रेलवे स्टेशन पर अपने स्वाभिमान से प्रभावित किया था। उस रोज कानपुर में एक छोटी से गुमटी में एक पानवाले ने मुझे निरुत्तर कर दिया।
हमारी संस्कृति में पान की जगह बड़ी महत्वपूर्ण हैं। पान खाना दरअसल पूरी तरह से नशे का रूप नहीं माना जाता। हाँ , रंगे हुए दाँत भद्दे जरूर लगते है। पान भी कई तरह के होते है। एक होता है -मीठा पान। जिससे जुडी एक कहानी आज लिख रहा हूँ।
अगर मैं कहूँ कि मैं भी मीठा पान खाता हूँ तो इसका यह मतलब मत निकाल लीजियेगा कि मैं पान का लती हूँ। दरअसल मेरे पान खाने की दर साल में दर्जन /2 दर्जन से ज्यादा न होगी। कभी शादी -बरात , किसी मित्र का ख़ास आग्रह या फिर यूँ ही कभी कभार ऑफिस से लंच के बाद , बाहर टहलते हुए मीठा पान खा लेता हूँ।
पान से याद आया कि बचपन में इसे खाने का विशेषकर शादी -बारात में, एक ही उद्देश्य होता था कि हमारे ओठ कितने लाल होते है ? हमारे उत्तर प्रदेश में पान का चलन खूब है। शादी /बारात /गोद भराई /मुण्डन /छेदन कार्यक्रम कोई भी हो अगर मेहमानों को खाना खिला रहे है तो खाने के बाद पान पेश करना बनता ही है।
ऐसा कम ही हो सकता है कि भारत में रहते हो और बनारसी पान के बारे में न सुना हो। भारतीय सिनेमा का महानायक अमिताभ बच्चन भी इसकी महिमा का वर्णन कर चुके है -
" खाइके पान बनारस वाला , खुली जाय बंद अक्ल का ताला "
हिंदी साहित्य में भी पान का वर्णन खूब हुआ है। सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु ने तो " लाल पान की बेगम " शीर्षक से एक कहानी भी लिखी है जो महिला सशक्तिकरण को बखूबी बखानती है।
इधर अहमदाबाद में मीठे पान को सिंगोड़ा पान बोलते है। प्रायः पनवारी पान बनाकर फ्रिज में रख देते हैं और ग्राहकों को ठंडा पान पेश करते है। इसके दाम अमूमन 20 रूपये हैं। नेशनल हैंडलूम , रानिप के बाहर 15 रूपये में मिलेगा और ठन्डे पान के ऊपर गरी -बुरादा लपेट कर दिया जाता है। मेरे ख्याल से यहाँ सबसे सही पान मिलता है। मिलने को तो मानिक चौक ( अहमदाबाद में खान -पान के सबसे प्रसिद्ध जगह , जहाँ आप रात के 2 बजे तक खाना /फास्टफूड खा सकते है। ) में 10 रूपये का भी मिल जायेगा। हाल में ही उधर गया था तो एक आदमी साइकिल पर 10 रूपये का पान बेच रहा था।
आप सोच रहे होंगे कि मैंने शीर्षक में जिस पान वाले का जिक्र किया है , उसकी कहानी क्यों नहीं बता रहा हूँ। दरअसल ऊपर भूमिका बताना जरूरी था वरना आप उस रोज घटित घटना के मर्म को न समझ पाएंगे।
मेरे ख्याल से पिछले साल इन्हीं दिनों में uppcs की परीक्षा का pre एग्जाम था। वही जिसका मैन्स अभी जून 2018 में हुआ है और जिसमे हिंदी के पेपर में गड़बड़ी हो गयी थी। मैं एग्जाम देने कानपुर गया था। मेरा सेण्टर DAV डिग्री कॉलेज था। हाँ , वही जो ग्रीन पार्क स्टेडियम के सामने है। पहला पेपर देने के बाद , लंच के लिए बाहर आया।
कॉलेज के बगल की गली में एक चाय की दुकान थी। चाय पी। चाय थी 6 रूपये की। संयोग से 5 रूपये खुले थे। भीड़ की मारामारी इतनी थी कि उसके पास खुले रूपये देने का वक़्त न था क्योंकि मैंने उसके 50 रूपये देने की कोशिश तो उसने यह बोलते हुए मना कर दिया कि चलेगा।
चाय पीकर मैं रोड के दूसरी तरफ खड़ा हो गया और समोसे /चाय के लिए परेशान भीड़ को देखने लगा। दूसरे पेपर शुरु होने में कुछ देर ही बाकी थी , तभी उस पर नजर गयी। जहाँ मैंने चाय पी थी उसके बगल में ही सरकारी नाली के ऊपर उसकी गुमटी रखी थी। गुमटी के दो पैर नाली के इस तरफ , दो दूसरी तरफ थे। कहने का मतलब जगह का खूब सदुपयोग किया गया था।
गुमटी ? अरे भाई , लकड़ी की बनी दुकान। वैसे कानपूर में गुमटी नामक एक जगह भी है। उसी गुमटी में पूरी तल्लीनता से वो पान बनाने में जुटा था। अगर निराला जी के शब्दों में कहूं तो -
"वो पान बनाता हुआ ,
मैंने देखा उसे , कानपूर की एक दुकान पर"
मुझे लगा कि मीठा पान खाये , एक अरसा हो गया है । एक और भी प्रबल कारण था -दरअसल मुझे चाय वाले के 1 रूपये का अहसान काफी परेशान कर रहा था। सोचा पान के बहाने , रूपये खुले करा लेता हूँ। मैं रोड पार करके , फिर उधर आ गया और उससे जाकर पूछा -
"भइया मीठा पान कितने का ? "
" सात रूपये "
" तो बनाइये फिर " . मैं फिर एक बार सोच में पड़ गया कि यहां भी टूटे रूपये का लफड़ा होगा। मैंने उससे कहा - " हमारे अहमदाबाद में तो 20 रूपये का मिलता है मीठा पान ( कुछ वैसा ही जैसा कि विजय राज , रन फिल्म में बोलते है कि हमारे यहाँ तो 4 लेग पीस मिलते है )।
"एक काम करो , सब चीजे अच्छे से डाल दो और मैं 10 रूपये दे दूँगा "
इतनी देर बाद , उसने नजर उठा कर मेरी तरफ देखा और बोला - " यह चुतियापा ( इस शब्द के प्रयोग बगैर कानपुर का अहसास न होगा ) हमसे न होगा। पान 7 रूपये का ही बनेगा और खा कर देखो तब कहना " .
मैंने उससे बोला कि" दरअसल मैं सीधा 10 रूपये देना चाहता था ताकि खुले रुपयों का लफड़ा न हो। "
" उसके लिए परेशान क्यों हो , मैं दूंगा खुले रूपये लेकिन हमारा पान 20 रूपये वाले पान से कम न होगा " . मैं निरुत्तर था। शायद उसकी नजर में मैंने उसके 7 रूपये वाले पान को कम आंक कर , उसके स्वाभिमान को चोट पहुंचा दी थी।
उसने खूब तल्लीनता से एक शानदार मीठा पान बना कर दिया। उससे टूटे रूपये लेकर , मैंने बगल में चाय वाले को 1 रुपया दिया। वो समझ न सका किस बात के 1 रूपये। मैंने वो कड़क पान गटकते हुए , अगला पेपर दिया और शानदार अंको से पास हुआ यह अलग बात है कि मुझे उसका मैन्स देने की जरूरत न पड़ी।
© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
मौलिकता प्रमाण पत्र
मैं आशीष कुमार , प्रमाणित करता हूँ कि उक्त लेख मौलिक व अप्रकाशित है।
दिनांक - 09.10.2018
अहमदाबाद
परिचय : युवा लेखक आशीष कुमार शौकिया तौर पर हिंदी लेखन करते है। उनकी कुछ रचनाएँ पुनर्नवा ( दैनिक जागरण ), कुरुक्षेत्र, बाल भारती जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। पिछले 7 सालों से अहमदाबाद में एक्साइज एंड कस्टम विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर सेवारत। हाल में वो संघ लोक सेवा आयोग की भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में भी चयनित हुए है।
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