BOOKS

गुरुवार, 9 सितंबर 2021

Motivational quotes






प्रिय पाठकों, अब आपको समय समय पर मेरे एक बहुत अच्छे collection से ऐसे ही चुने हुए मोती आपके लिए मिलते रहेंगे।

अगर यह आपको अच्छी लगी हो तो कमेंट में जरूर बताना। आपको किस तरह के quotes पंसद है। आप इसे अपने मित्रों से भी शेयर कर सकते हैं।


रविवार, 5 सितंबर 2021

TEACHERS DAY

शिक्षक दिवस 


आज अपने सभी Readers को मै teachers day की शुभकामनाएं देना चाहता हूँ। वास्तव में कबीर ने जो गुरु के बारे में कहा है कि वो भगवान से भी बड़ा होता है। मैंने यह बात बहुत अच्छे से महसूस की है। 

कभी कभी सोचता हूँ कि अगर मुझे वो न मिले होते तो मैं कहाँ होता। मैंने हमेशा से एक बात कही है कि सदगुरु पर आंख बंद करके आस्था रखे. अगर आपका गुरु का चयन उचित है तो आप को असीम success मिलने से कोई रोक नहीं सकता।  


उनका हमेशा सम्मान करें। 


उनकी शिक्षा के प्रति कृतज्ञ रहे। 


उनके प्रति सेवा भाव रखे। 


- आशीष कुमार, उन्नाव। 

सोमवार, 23 अगस्त 2021

Bribe

रिश्वत 

कुछ घटनायें ऐसे होती है, वर्षों बीत जाने का बाद भी मन से नहीं मिटती। 

10 साल बीतने को हैं पर आज भी वो घटना अक्सर याद आ जाती है। उन दिनों मैं रक्षा लेखा विभाग में auditor हुआ करता था। उन्नाव से लखनऊ रोज ट्रैन से जाना होता था। charbag station के पीछे की तरफ मेरे विभाग का मुख्यालय था। स्टेशन से वहाँ तक पैदल चला जाता था। कुछ वक़्त बाद, एक सहकर्मी शाम को अपनी bike से मुझे स्टेशन तक छोड़ने लगा। 
एक रोज की बात है, मुझे लेकर वो ऑफिस से निकला। ऑफिस के पास के चौराहे पर अक्सर police खड़ी रहती।  वो अक्सर हेलमेट के चालान काटती रहती थी। सहकर्मी ने बहुतायत लोगों की तरह अपना helmet सर में लगाने के बजाय बाइक के हैंडल पर टाँग रखा था। 

वही हुआ जो तय था, सहकर्मी अपनी सफाई दे रहे थे, ट्रैफिक हवलदार कानून बता रहा था। जब बात न बनती दिखी तो सहकर्मी ने आखिरी दावं चला - 
" साहब छोड़ दीजिए, यही आर्मी वाले ऑफिस में काम करता हूँ .."

और बात बन गयी। हम खुश होकर आगे बढ़े कि सहकर्मी बोला-
" बड़े बेकार पुलिस वाले हैं .." 
मैंने हैरानी से पूछा "क्यों भाई.. बगैर चालान काटे/कुछ लिए दिए बगैर छोड़ दिया ...इसके बाद भी ऐसा क्यूँ बोल रहे हो.."
" कहाँ कुछ बगैर लिए छोड़ा.. आगे मेरा आज का newspaper  रखा था ..वो निकाल लिया "  सहकर्मी फीकी हँसी के साथ बोला। 
वो दिन है और आज का..अभी तक समझ न आया..उसे क्या कहेंगे ..न्यूज़पेपर पढ़ने के लिया था..पर तरीका क्या ठीक था..दूसरी ओर जब पुलिस वाले ने उदारता दिखाते हुए छोड़ दिया था तो फिर न्यूज़पेपर का रोना मेरा सहकर्मी क्यूँ रो रहा था.आप का विवेक क्या कहता है..?

©आशीष कुमार, उन्नाव।
23 अगस्त, 2021।




बुधवार, 18 अगस्त 2021

Adhuri Yatra

अधूरी यात्रा।


Highway से गुजरते वक़्त , ऊपर साइनबोर्ड पर नजर गयी लिखा था , .
हुलासखेड़ा पुरातात्विक स्थल 5km
 बहुत आराम से drive कर रहा था, घर पहुँचने की कोई जल्दी न थी। ख्याल आया चलो देखकर आते है क्या है वहाँ। 

लोथल (गुजरात) को देख चुका था, पता था पुरातात्विक स्थल किस तरह के होते हैं..हाईवे से कट लेकर 2 किलोमीटर पहुंचा तो सामने दो रास्ते थे। जैसे कि हमेशा होता है, गलत रास्ते पर बढ़ा ..और घूम घाम के फिर उसी हाईवे के पीछे पहुँचने वाला था, अब लगा कि पूछ ही लेता हूँ ..सामने एक bike मैकेनिक की दुकान थी ..2 ..3 लोग थे वहाँ। 
कार के शीशे गिरा कर पूछा ..
"भइया इधर कहीं खुदाई --वुदाई हुई है क्या ..?"
" हाँ ..भइया उधर नहर के किनारे -किनारे खुदाई हुई तो है ..मिट्टी भी पड़ी है साइड में "

" अरे नहीं.. कोई पुरातात्विक स्थल है क्या पास में..घूमने की जगह..लोग आते होंगे "
अब कठिनाई सी लगी कि इनको कैसे समझाया जाय। 

"नहीं ऐसा तो कुछ न है..एक temple है मेला लगता है वहाँ.." एक सज्जन बोले। 
" तुम राजा महाराजा के time की खुदाई के बारे में पूछ रहे हो क्या ..हां वही है " बाइक बना रहे लड़के ने कहा। 

मैंने जल्दी से हां कहते हुए कार बढ़ा ली। इस बार तिराहे से दूसरे रास्ते पर बढ़ा। 100 मीटर भी न गया होऊंगा.. पक्के रास्ते पर छोटे 2 स्वीमिंगपूल बने थे, जिनपर बरसात पर पानी भरा था। वर्षो बाद ऐसे आलौकिक दृश्य से साक्षात्कार हो रहा था।

ठीक एक दिन पहले लखनऊ में एक car wash करने वाले ने इनर क्लीनिंग, डीप क्लीनिंग के नाम पर कार धुलाई के 1000 रुपये का चूना लगाया था। अभी सामने वाले स्वीमिंगपूल में अपने सफेद कार को नहलाने की इच्छा न हुई।

कार मोड़ रहा था कि एक बाइक वाला आते दिखा। मुझसे रहा न गया फिर से पूछा 
" आगे कहीं खुदाई वुदायीं हुई है क्या.."
"खुदाई...! वो आगे एक कच्चा रास्ता है उस पर तो मिट्टी डाली गई है..बाकी ये रास्ता आगे ठीक है..ये थोड़ा सा ही खराब है.."
अब जितना जल्दी हो वापस लौट लेना चाहिए.. सोचते हुए मैं हाईवे पर लौट आया, वही जहां हरे रंग के बड़े से साइनबोर्ड पर सफेद पेंट से लिखा था
हुलासखेड़ा, पुरातात्विक स्थल दूरी 5 किलोमीटर..

©आशीष कुमार, उन्नाव। 
18 अगस्त, 2021।


मंगलवार, 27 जुलाई 2021

Zomato Boy

लेख : खाने पहुँचाने वाले लोग


आज अभी थोड़ी देर पहले की ही बात है, एक व्यक्ति बाइक पर zomatto के बैग लिए दिखा। पिछले कुछ समय से इन लोगों के लिए मन में बहुत भाव आने लगे हैं.. कुछ घटनायें/समाचार भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। एक दिन पढ़ा कोई साइकल से food delivery कर रहा है..एक दिन कि कोई महिला बगैर लेट हुए कई सालों से ये काम कर रही है। अक्सर ये शांत, स्वाभिमान से भरे नजर आते हैं...

कैसी अजब स्थिति है कोई खाना पहुँचा रहा है ताकि उसे , उसके परिवार को खाना मिल सके। मैंने कहीं शायद किसी novel में पढ़ा था कि कलकत्ता में ऐसे रिक्शा होते है जिनको आदमी खुद चलकर/दौड़कर दूरी तय करते हैं.. सवारी पीछे बैठी है, उसे थकान न हो याकि उसके पास पैसे है तो वो एक आदमी को जोकि गरीब है, उसकी गरीबी उसे बाध्य करती है कि वो किसी आदमी को रिक्शा पर बैठाकर उसे पैदल खीचता फिरे.. जाने उसके मन मे कैसे भाव रहते होंगे..
ऐसा ही कुछ उन मजदूरों/मिस्त्री के साथ होता होगा, जो किसी के लिए शानदार/भव्य घर बना रहे होते हैं ताकि उनके घर पर भी छप्पर पड़ सके..

जब मैं छोटा था किसी भिखारी, गरीब निर्धन व्यक्ति को देखता था बहुत दुःख होता था। पता नहीं क्या हुआ ज्यों 2 बड़ा हुआ धीरे धीरे भिखारी लोगों के लिए दया आना बंद हो गयी..आश्चर्य होता है ऐसे व्यक्ति को देखकर क्यूँ निर्वकार रहने लगा हूँ..पर अब ऊपर वर्णित व्यक्तियों को देख मन बड़ा व्यथित हो जाता है..

आज दिल्ली में खूब बारिश हो रही है..जिस ज़ोमोटो वाले को देखा ..बारिश की चिप चिप.. कीचड़ में बेपरवाह तेजी से घर में बैठे किसी आरामतलब, सुविधा संपन्न व्यक्ति को कुछ गर्म गर्म समय से देने  चला जा रहा था। हो सकता उस बॉक्स में महज tea हो..हाँ सच में किसी ने बताया कि इससे लोग चाय भी मंगाते है..सुनकर यकीन न हुआ.चाय बनाने में क्या ही वक़्त लगता है और इस तरह के order में चाय ठंडी न हो जाती होगी..(निजी क्षेत्र में काम करने वाली लड़की जिसकी आय 30/40 हजार होगी..हाँ वो घर से सम्पन्न है जॉब शौक के लिए कर रही है ..यह घटना किसी से सुनी थी..अब इसपर ज्यादा क्या बात की जाय)

तो मैं बात कर रहा था आज दिल्ली में बहुत बारिश हो रही है..यह सब विचार एक सरकारी गाड़ी में एक सरकारी ड्राइवर के साथ पिछली सीट पर बैठकर सोच व लिख रहा हूँ.. उतरूंगा तो कोई छाता लेकर खड़ा होगा ताकि साहब भीगने न पाय..(जाहिर है स्पष्ट रूप से मना करता हूँ)..रास्ता लंबा है ..किसी किसी फ्लाईओवर के नीचे बाइक, सायकिल वाले लोग बारिश के कम होने का wait कर रहे हैं.. देर होगी तो उनका बॉस चिल्लायेगा.. हो सकता आज का वेतन ही काट दिया जाय..उस ज़ोमोटो वाले को आर्डर देर से लाने के लिए चार बातें सुननी पड़े..

अपने शायद ऑक्सफैम की रिपोर्ट के बारे में पढ़ा हो ..जो अमीर गरीब के गैप के बारे में आकंड़े जारी करती है..पता है हमारे देश में यह विषमता बढ़ती ही जा रही है..अपने पढ़ा होगा बंदी के दौरान भी तमाम अमीरों की आय कई गुना बढ़ गयी है..ज़ोमोटो की बात करें तो पिछ्ले दिनों उसका ipo आया है..तमाम लोगों का जबरदस्त पैसा बना है..इसके प्रारंभिक निवेशकों ने कई गुना पैसा बना लिया.( कुछ भी इसमें गलत नही है ..कोई गड़बड़ घोटाला न हुआ..सब कानूनी रूप से सही है )

(ये लेखक के निजी विचार हैं )
©आशीष कुमार, उन्नाव।
28 जुलाई, 2021।


शनिवार, 24 जुलाई 2021

strange issue

अनोखी समस्या 

उसका एकहरा शरीर था। पढ़ते 2 आंखे कमजोर हो गयी। ऐनक बनवाया गया। कुछ पैसे बचाने के चक्कर मे उसका फ्रेम जरा भारी ही रखा गया।
 अब जब चश्मा लगता है तो उसके भार से नाक पर जोर पड़ता है नाक पर दर्द और न लगाया जाय तो सर में दर्द। 

#सुना हुआ यथार्थ
©आशीष कुमार, उन्नाव।
24 जुलाई, 2021।

गुरुवार, 3 जून 2021

Second wave Of corona

कोरोना की दूसरी लहर (01)

यह 25/26 अप्रैल की शाम के लगभग 4 बजे की बात होगी। ADM सर के पास बैठा चाय पी रहा था, सर फोन पर बात कर रहे थे कोई oxygen bed  के लिए कह रहा था, सर कह रहे थे कि देख रहा हूँ, पर मुश्किल है। ठीक इसी वक्त मेरा फोन बजा, मनोज नोएडा... ये मनोज श्रीवास्तव,उन्नाव से मेरे बहुत अजीज साथी थे, लगा कि उनको किसी के लिए बेड चाहिए होगा तभी याद किया।

फोन के दूसरी तरफ कोई महिला थी जो रोते हुए पूछ रही थी कि भैया आप आशीष बात कर रहे है ..मैंने कहा हाँ..आप मनोज की वाइफ बात कर रही हैं.. वो बोली हाँ भैया..प्लीज् भैया इनको बचा लीजिये..ये पलवल में भर्ती है ऑक्सिजन घट गई है 73.. प्लीज भैया इनको वेंटीलेटर वाला बेड दिला दीजिये दिल्ली में प्लीज्..

यह कोरोना की दूसरी लहर का पीक टाइम था, अस्पताल 100%भर चुके थे, लोग ऑक्सीजन बेड के लिए तड़प रहे थे..ऐसे में वेंटीलेटर बेड.. खैर जहाँ 2 हो सकता था पता किया ..पर कुछ न कर पाया..समझ में न आ रहा था कि अब इस वक़्त पलवल से दिल्ली कैसे आएंगे ..हरियाणा वाले कुछ sdm मित्र थे..उनसे कहूँ ..

इस बीच अपने excise के एक पुराने मित्र रविन्द्र यादव को भी बताया ..वो भी मनोज के परिचित थे.
वो भी मनोज के बारे चकित थे..अपने स्तर पर वो भी प्रयास करने लगे..मेरी हिम्मत पलट कर फ़ोन करने की न हुई कि मनोज की तबियत कैसी है..

उसी शाम 8 बजे के करीब रविन्द्र का ही फोन आया कि मनोज अब इस दुनिया में नहीं रहे.. पूरी रात नींद न आयी.. उसकी wife ने बताया था कि इनकी कोविड रिपोर्ट negative थी। 

सुबह उठकर मैं max वैशाली गया, मेरी तबियत भी 1 हफ्ते से खराब थी, कोविड पिछले अगस्त में ही हो गया था, इस बार कोविड टेस्ट नेगेटिव था पर मनोज की मौत से डर लगा कि CT स्कैन करा डाला, तमाम blood test भी। खैर सब ठीक रहा..2 दिन बाद एम्स के डायरेक्टर का व्यक्तव्य आया कि ct स्कैन , x रे से 300 गुना घातक है..यार समझ न आ रहा था , उन दिनों क्या चल रहा था.

मनोज अगर मैं कहूँ कि मेरा best friend था तो गलत न होगा। एक लंबा कालखंड रहा है.. 2006-07 का टाइम रहा होगा, उन्नाव की राजकीय पुस्तकालय जोकि कचहरी के पास है के रीडिंग रूम से मनोज से पहली मुलाकात हुई थी..दोनों ही स्ट्रगल कर रहे थे.. Cycle से घर घर ट्यूशन पढ़ाने जाया करते थे, साथ ही कंपीटीशन की तैयारी भी..

बाद में उसने अपने घर पर कोचिंग देना शुरू दिया, कुछ टाइम बाद उसने गांधीनगर, उन्नाव में रेंट पर जगह लेकर बड़ी कोचिंग खोल दी, मनोज क्लासेस के नाम से ..उसकी math बहुत अच्छी थी. इन्ही दिनों एक लड़की उसके पास पढ़ने आयी(जो बाद में उसकी वाइफ बनी, जिसने मुझे फ़ोन किया था)।

उससे इतनी यादें जुड़ी है कि 100 पन्ने भी कम पड़ेंगे..उन्ही दिनों एक शाम वो मेरे रूम अपने दोस्त के साथ आया , SSC Graduate level 2008 के फाइनल रिजल्ट आया था। उन दिनों मैं केवटा तालाब, उन्नाव में एक बहुत छोटे से कमरे में किराये पर रहा करता था, मनोज का चयन ऑडिटर पद पर हो गया था, मैंने भी exam दे रखा था, उसने कहा रिजल्ट चेक करो चल के बहुत कम मेरिट गयी हैं, उसके साथ एक और लड़का आया था उसका भी selection हो गया था। खैर हम साथ कैफे गए, मुझे जरा भी उम्मीद न थी पर मेरा भी ऑडिटर पद पर चयन हो गया था। उस शाम हमने बढ़िया पार्टी की..उन दिनों के हिसाब से बढ़िया पार्टी का मतलब अंजलि स्वीट्स जाकर समोसे, खस्ता और एक राजभोग ..शायद एक एक cold drink भी था।  पैसे  मनोज के शिष्य (अरविंद गौतम, जिसे मनोज छोटा ऑडिटर कहा करता था, अरविंद का चयन पहले प्रयास में हो गया था) ने दिए थे। ऑडिटर में मुझे लखनऊ, मनोज को मेरठ, अरविंद को इलहाबाद मिला था।

एसएससी ग्रेड्यूट 2010 मेरा व मनोज का चयन एक्साइज इंस्पेक्टर पद के लिए हो गया। दोनों ने अहमदाबाद में जॉइन किया, 23 जनवरी 2012 को। दोनों लोग उन्नाव से साबरमती एक्सप्रेस से एक साथ ही अहमदाबाद गए थे। 7 सोनल सोसाइटी, मेमनगर में एक कमरा किराये पर लिया गया औऱ यहाँ मनोज 2 साल तक मेरा रूम पार्टनर रहा। 

आज सोचता हूँ वो हमारे सबसे बढ़िया दिन थे,मनोज के अंदर ऐसी जिंदादिली व ताजगी थी जो बड़ी जल्दी किसी को पसंद आ जाती. वो ऐसे इंसानो में था जिनके भीतर जरा भी कलुषता नही होती। 

उन्हीं दिनों एक शाम हम बाहर खाना खाने गए तब हार्दिक ठक्कर से मुलाकात हुई। जो बाद में बढ़िया मित्र बन गए। यही पर एक रोज रणधीर को मनोज साथ लेकर रूम आया और मेरी मुलाकात कराई थी, ( दुर्भाग्य से हार्दिक की 2/3 मई को, रणधीर की 15 मई के करीब कोरोना से ही death हो गई, इस पोस्ट के दूसरे व तीसरे हिस्से में कुछ उनकी भी यादें)।

बाद में मनोज ट्रांसफर लेकर नोएडा चला आया, मैं अहमदाबाद ही रह गया। उसकी शादी एक तरह से love marriage था, उसे हमेशा से नौकरी वाली ही लड़की चाहिए थी, आज यह भी राज खोल दूँ। जिस लड़की से उसकी शादी हुई, वो कुछ दिन उसके पास कोचिंग पढ़ने आयी थी। वही मेमनगर,अहमदाबाद वाले रूम से मैंने उसके लिए एक love letter लिखा, जिसे उसने facebook से लड़की को मैसेज कर दिया। जबाब नकारात्मक आया तो उसके साथ मुझे भी दुख हुआ क्योंकि मैंने कहा था कि मैं बढ़िया प्रेमपत्र लिखूंगा। लगभग एक साल बाद लड़की का जबाब सकारात्मक तौर पर आ गया, और उसकी शादी हो गयी। उसकी शादी में मैं, कुंदन भाई(झारखंड) अहमदाबाद से आये थे।

जब से मनोज नोएडा आया ( शायद 2015/16) संपर्क कम से हो गया, वो फोन अक्सर किसी के भी नही उठाता था। मेरा 2017 में upsc चयन हो गया। 2019 की पहली जनवरी से मैं भी अहमदाबाद से दिल्ली आ गया। मनोज से सम्पर्क किया और यही वक़्त था जब उसका no मनोज नोएडा के नाम से सेव किया। 
वो एक सुखद जीवन जी रहा था। वाइफ bank में, एक flat भी ले लिया,एक बेटी भी हो गयी। बेटी काफी मुश्किलों से हुई थी। मेरी बात कम हो पाती पर जब होती लंबी होती। वो नोएडा कस्टम में था, बढ़िया posting थी, अक्सर उसकी कहानी सुनाया करता था। 

उसकी बेटी का मुंडन था, उसने बुलाया और मैं गया भी, नोएडा में। वो मेरी आखिरी सामने से मुलाकात थी। उसके बाद 1 ..2 बार फोन पर बात हुई थी। फिर उस शाम अचानक से उसकी वाइफ का फोन.. फिर उसकी असमय मृत्यु..

बहुत सोचता हूँ काश वो शुरू में जब बीमार पड़ा था तब ही दिल्ली के लिए बोल देता.. काश ऐसा होता काश वैसा होता..

रविंद से बात हुई थी कि किसी दिन अगर मौका मिला उसके घर जाएंगे, उसकी बेटी के लिए जो सके करेंगे ..सच कहूँ मेरी उस रोज से हिम्मत न हो रही सम्पर्क करने की ..
मनोज आपको सादर श्रद्धाजंलि 💐💐


-आशीष कुमार, उन्नाव।
4 जून 2021।


गुरुवार, 27 मई 2021

Complete life

जीवन समग्र

तुम्हारे घर के काफी निकट
या कि बहुत ही दूर 
एक झील जरूर होगी
हर झील की तरह
इसके किनारे पर
एक गलियारा भी होगा

प्रिय तुम वही, 
उसी गलियारे पर
जहाँ दोनों तरफ 
घने, हरे, लंबे पेड़ो
की कतारें,
बनाती है एक 
अजब वीरानगी,
मुझसे मिलने आना

पर ध्यान रहे,
तुम आना
अपने कृत्रिम
आवरण को
परे रखकर,
रंग, रूप
जाति धर्म
को पीछे छोड़कर
ही आना
(संजय लेेेक,मयूर विहार, दिल्ली)

उस वीरान
गलियारे पर
साथ चलेंगे
कुछ कदम
जियेगें जीवन
पूर्ण सम्पूर्णता में

©आशीष कुमार, उन्नाव।
28 मई, 2021।




बुधवार, 19 मई 2021

RAIN

बारिश 

बारिश में एक अद्भुत संगीत होता है, इनसे भीगे पत्तो मधुर धुन , यूँ चुपचाप इन्हें सुनना, महसूस करना  स्व को देखना हैं। परिवेश में न जाने कैसी अजब शांति है, मन में बारिश का भीना संगीत भीतर तक आह्लादित कर जाता है।
न जाने कितने कवि, लेखक इसको महसूस कर क्या सुंदर रचनाये दी है। बारिश प्रकृति के सौंदर्य को सबसे खूबसूरत रूप होता है।

©आशीष कुमार, उन्नाव।
19 मई 2021।

गुरुवार, 6 मई 2021

RAIN

बेमौसम बारिश 

जैसे आज शाम
बेमौसम बारिश 
हुई
ठीक वैसे ही 
एक शाम
तुम मेरे जीवन
में आ गयी।

©आशीष कुमार, उन्नाव
6 मई, 2021।

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

with my eyes

मेरी नजर में तुम 

तुम्हारी सूरत
जैसे सौम्य मूरत

तुम्हारी आँखे
मीठा सा शर्बत

तुम्हारी नजर
कतई जहर

तुम्हारे काले बाल
जैसे रेशमी जाल

तुम्हारी मुस्कान
बसती मेरी जान

तुम्हारे लब
लाल गुलाब
तुम्हारी सांसे 
दहकती आग

तुम्हारी बातें
शुद्ध शहद

तुम्हारी कमर
नदी का मोड़

तुम्हारे पाव 
पीपल की छांव 

तुम्हारा बदन
अनमोल रतन

तुम्हारा अहसास 
नाजुक खरगोश

तुम्हारा प्यार
असीम ताकत

©आशीष कुमार, उन्नाव
28 अप्रैल 2021


सोमवार, 26 अप्रैल 2021

Unoccurred

अघटित

मेरी प्रिय
तुमको वो कविता लिख
रहा हूँ जो कई बार
लिखकर मिटा दी 


मुझे तुम वो अपने तमाम पत्र
फिर से लिख दो, 
जो तुमने तमाम बार लिखकर 
फाड् दिए थे।
दोहरा दो वो तमाम पल
जब तुमने मुझे फ़ोन करने के
लिए उठाकर 
फिर रख दिया था।

और हाँ उन्हीं कदमों को
फिर से गति दो
जो मुझसे मिलने के लिए 
बढ़ाकर रोक लिया था। 

© आशीष कुमार, उन्नाव।
26.04.2021

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

खजोहरा

खजोहरा 

होली के अभी कुछ दिन ही बीते हैं, खजोहरा का विचार होली वाले दिन आया था। दरअसल एक गुरु जी सामने पड़ गए थे तो याद आया कि ये तो बहुत पीटने वाले अध्यापक थे अपने जमाने में। शिक्षक तो अभी भी हैं पर पता नहीं अब पहले की तरह से क्लास में पिटाई करते हैं कि नहीं। 

खजोहरा बचपन में किसी बड़े रहस्य की तरह था। क्लास के कुछ खुरापाती छात्र अक्सर इसके बारे में बात किया करते थे। खजोहरा के बारे में कहा जाता था कि जो कोई उसे छुएगा, उसे बहुत ज्यादा खुजली होने शुरू हो जाएगी। खुजलाते खुजलाते अंग लाल पड़ जायेगा।


Class में पीछे बैठने वाले छात्र, जिन पर हर गुरु जी कुछ ज्यादा ही पीटने के लिए उत्सुक रहा करते थे, अक्सर ऐसे plan बनाया करते थे कि किसी दिन खजोहरा लाकर गुरु जी की कुर्सी पर डाल देंगे, फिर गुरु जी की खुजली कर करके जो हालत पतली होगी, वो दर्शनीय होगी।

जैसा कि सार्वभौमिक तथ्य है कि क्लास में आगे बैठने वालों और पीछे बैठने वालों में कभी नहीं बनी, मेरी भी उनसे कभी नहीं बनी। गुरु जी के प्रिय विद्यार्थियों में हमेशा रहा पर खजोरहा के लिए न जाने क्यों उत्सुकता बनी रही।

हमेशा सोचा करता कि कैसा होता होगा खजोहरा। शायद एक बार गांव के पास जंगल में घूमते हुए किसी ने खजोहरा का पेड़ दिखाया था। कुछ काले भूरे रंग की रोयेंदार फली थी, बताया गया कि यही खजोरहा है। मैंने सोचा कि लोग इसको कैसे लेते होंगे, मान लो उसको खुद ही लग गया तो ? 

खैर खजोरहा के साक्षात प्रयोग तो न देखे पर उससे जुड़ी stories बहुत सुनता रहा कि अमुक को किसी ने खजोरहा डाल दिया था तो ऐसा हुआ वैसा हुआ ..आदि आदि। 

होली में अक्सर यह कयास लगाये जाते कि अमुक मोहल्ले वाले लड़कों के पास खजोरहा है, उनसे रंग नहीं खेलना, उनसे बचके रहना...हालांकि यह कयास कभी सच न साबित हुआ।

आज यह post लिखते वक्त भी यह संदेह हो रहा है कि वास्तव में खजोहरा जैसी कोई चीज सच में होती भी है या फिर यह किदवंती मात्र है। 

© आशीष कुमार, उन्नाव।
03 अप्रैल, 2021।

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

Last Meeting

आखिरी मुलाकात

सुनों
एक दिन
अनायास ही कहोगी
कि अब यह हमारी
अंतिम मुलाकात है

याकि फिर 
एक रात देर में
करोगी आखिरी फ़ोन
बतलाने के लिए
कि अब न हो सकेगी
कभी हमारी बात 
उस दिन, उस रात
के संवेदनशील क्षणों 
में आपको जरा 
भी ख्याल न रहेगा
कि कैसे तुम
मिटा रही हो
एक अमिट प्रेम को

अपने सुखद भविष्य
के सुखद सपने
देखते हुए,
 जब तुम आखिरी
विदा लेने की
असफल कोशिस
कर रही होगी

उस वक़्त
मैं चुपचाप
खामोशी से
तुम्हारे उस 
आखिरी फैसले 
पर सहमति दूँगा
हमेशा की तरह

क्योंकि मैं
जानता हूँ
कि 
अनन्य प्रेम
को यूँ ही एकायक
खत्म न किया
जा सकता है

और प्रेम
में आखिरी
बात, मुलाकात
जैसा कुछ न होता है

सुनो प्रिय
तुम्हारे आखिरी
फैसले पर मेरी
खामोश सहमति
हमेशा बाध्य 
करती रहेगी

तुम्हें वापस
लौटने को
अनन्य प्रेम
की अनन्त, 
असीम गलियों में। 

©आशीष कुमार, उन्नाव
दिनांक- 02 अप्रैल 2021। 



शनिवार, 21 नवंबर 2020

बथुए का साग और मास्टर जी

 

बथुए का साग और मास्टर जी 


आज जब सब्जी वाले के ठेले पर बथुए का साग देखा तो बहुत खुशी  हुयी। delhi में देशी चीज मिल जाये तो अलग ही आनंद मिलता है। वैसे कुछ दिनों से  पालक तो थोक के भाव खूब मिल रही थी पर बथुआ पहली बार दिखा। अब तो बढ़िया स्वादिष्ट साग व् पराठे बनेंगे , यही ख्याल बुनते हुए घर आ रहा था , इसी वक़्त मास्टर साहब याद आ गए। 

कक्षा 9  व 10 के समय वो मेरे अध्यापक थे। उनकी छवि बहुत सख्त व कंजूस किस्म के इंसान की थी। Government school me पढ़ाने के साथ साथ अलग से टूशन भी पढ़ाया करते थे। स्कूल से दूर एक बाग में नलकूप की एक कोठी थी , उसी में वो पढ़ाया करते थे। गुरु जी के बारे में तमाम कहानियां छात्रों के बीच में प्रचलित थी।जैसे कि उनके पास बहुत पैसे है फिर भी बड़ी कंजूसी से रहते है , एक कथा के अनुसार किसी बदमाश किस्म के छात्र ने गुरु जी को देसी असलहा दिखाकर उनसे उनकी सायकल लदवाकर 100 मीटर तक चलवाया था। दरअसल गुरु जी स्कूल में बहुत ज्यादा ही पीटा करते थे , इसके लिए भी लोग कहते थे जैसे कोई धोबी अपने खोये गधे को मिलने पर तबियत से पीटता है , वैसे ही गुरु जी छात्रों को पीटा करते थे। खैर वो अलग ही दौर था , अलग ही स्कूल हुआ करते थे , जहाँ अभिवावक खुद जाकर बोलते थे कि मास्टर साहब लड़का बिगड़ने न पाए मतलब बस हाथ पैर न टूटे बाकि चाहे जैसे पीटो। 


    

वैसे  तो तमाम किस्से है, जैसे कि एक जाड़े की सुबह मै tution जरा देर से पहुँचा तो गुरु जी ने बॉस के चार डंडे कस के हाथ में चिपका दिए , इस आरोप के साथ की रास्ते में कहीं आग लगाकर तापने बैठ गया होगा। उम्र 14 की थी , घर से स्कूल 10 किलोमीटर दूर था। सुबह 6 बजे पहुंचना था , पहला दिन था न पहुंच पाया तो गुरु जी ने माहौल बनाने के लिए पीट दिया। मेरे साथ दो चार और साथी थे वो पिटे। गुरु जी को टूशन के पैसे से बड़ा मोह था। डरे भी रहते कि कहीं कोई देख न ले , शिकायत न कर दे। आते व् जाते वक़्त सख्त हिदायत दे रखी थी कि एक साथ न निकलना ( वरना लोग देखते कि गुरु जी टूशन से बहुत पैसे छाप रहे हैं ). मेरे साथ में एक दलित छात्र भी टूशन पढ़ा करता था , उसको वो बड़ा बेइज्जत करते। उम्र छोटी थी पर इतना जरूर समझ आता कि उसके साथ वो ठीक न कर रहे है।किसी को fee देने में जरा भी देर हुयी कि समझो गुरु जी का पारा चढ़ा। 


गुरु जी को मुझसे कुछ स्नेह सा था। स्कूल के रास्ते में एक मेला लगा करता था। गुरु जी को मेरी आर्थिक स्थिति का ज्ञान था।एक दिन बोले मेला देखने जाओगे , मैंने कहा- नही , वो बोले अरे चले जाओ 2 रूपये मै दे रहा हूँ बस अगले महीने ध्यान से वापस जरूर कर देना। दो रूपये को कैसे खर्च करना है वो भी बता दिया पर मैंने गुरु जी को मना कर दिया। वजह आप समझ ही सकते हैं। 


गुरु जी की एक ही बेटी थी , सुनने में आता था कि उन्होंने अपने भाई के बेटे को गोद सा लिया है पर वो लड़का गुरु जी के सिद्धांतो में खरा न उतरा। बथुए के साग वाली बात भी बता रहा हूँ बस थोड़ी सी भूमिका और बना लूँ। उन्हीं दिनों उनकी बेटी , माँ के साथ आगे की पढ़ाई के unnao में जाकर रहने लगी। गुरु जी हर सप्ताह के अंत में वहाँ जाते और सोमवार को वापस आ जाते। शनिवार को जब वो गांव से उन्नाव जाते तो तमाम राशन पानी में बथुआ भी जाया करता। गुरु जी बथुए की दिल खोल कर प्रसंशा किया करते। मसलन कि बहुत पौष्टिक , सेहत के लिहाज से बहुत उपयोगी चीज है , बथुआ। आप सोच रहे है कि इसमें क्या खास बात है--- रुकिए गुरु जी बथुआ भी बाजार से न खरीदा करते थे। उनके अनुसार वो अपने गांव के कुछ छोटे छोटे लड़कों से यह काम कराया करते थे। उनके अनुसार 50 पैसे , एक रूपये में यह लड़के झोला भर बथुआ ला दिया करते है। मुझे उस टाइम भी यह लगता था कि गुरु जी उन लड़कों को इतने कम रूपये देकर शोषण कर रहे हैं पर कही दूसरे बहाने से मुझे पीट न दे , इसलिए मै भी इस अन्याय पर चुप ही रहा। 

पढ़ाई के बाद कुछ दिन तक तो गुरु जी से सम्पर्क रहा पर धीरे २ वो टूट गया।अब खबर न है कि वो किस हाल में हैं और अब बथुआ तोड़ कर लाने पर गांव के छोटे छोटे लड़कों को कितने रूपये देते हैं।  

©आशीष कुमार, उन्नाव।

21 नवंबर, 2020।

 






 









 

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

Chandni chauk

#चाँदनी चौक 

मेरी उस पर नजर पड़ी ही थी कि वो पास आ गया,
"भाई, ले लो। market में 1900  का बिकता है, मैं 500 में दे दूंगा। 
"नहीं "मैंने power bank पर हल्की सी नजर डाल कर नजर फेर ली। 
" साहब Samsung का है , सस्ते में दे रहा हूँ। चोरी करके लाया हूँ। नशा करने जाना है.. ले लो आप।" 
"नहीं "
उसके हाथ में दो पेन ड्राइव सी दिख रही थी।
" भाई, सब ले लो 500 में "  
"नहीं" 
"अच्छा 400..300..200 में भी नहीं " 
" नहीं " इस बार भी बस इतना ही बोला। उस नकली सी दिखने वाली समान न मुझे जरूरत थी, न ही उसके इस विचार में सहयोग करने की इच्छा कि चोरी का सामान है, नशा करने जाना है . 
लालकिला के ठीक सामने बेशुमार भीड़ में मेरी नजरें से फिर कुछ तलाशने लगी।

© आशीष कुमार, उन्नाव । 
29 अक्टूबर 2020।

शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

करेली व अरहर की दाल

एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा 

वैसे ये करेली हैं, इनका स्वाद लाजबाब होता है। अरहर की गाढ़ी दाल, करेली की प्याज वाली बढ़िया खरी खरी सूखी सब्जी व चावल ( अगर थोड़ा चिपचिपे वाले भात बन जाय तो क्या ही पूछना ) ..इस पर बढ़िया शुद्ध देशी घी डालिये और स्वाद का अलौकिक आनंद लीजिये।

-आशीष

बुधवार, 26 अगस्त 2020

AAM PAPAD OR AMAVAT

अमावट/आम पापड़ 

पता नहीं जब आप इसे पढ़ने जा रहे, उससे पहले उक्त शब्दों को सुना है या नहीं। अगर आप गांव देहात से जुड़े है तो आपने अमावट के बारे में जरूर सुना होगा। अमावट यानी जिसको सुनकर ही मुँह में पानी आ जाय, क्या बच्चे क्या जवान सबके मुँह को भाने वाला। 

अभी अमावट खाते खाते इसके तमाम पहलुओं पर मन विचार करने लगा। अच्छा बता तो दूँ कि अमावट यानी क्या ...फलों के राजा आम के बारे में तो आप जानते ही होंगे। अमावट , Mango के रस से बनाया जाता है। आमों का रस निकालिये, एक कपड़े पर उसकी परत बनाइये, धूप में सुखाइये। अगले दिन उसी परत पर यही किया दोहराइए। आपको कई दिनों तक ऐसा करना पड़ेगा। तब जाकर तैयार होगा अमावट, जिसे ज्यादा साफ सुथरी भाषा में लोग आम पापड़ कह देते हैं।
मेरा जब भी home जाना होता, mother से एक ही फरमाइश होती कि कहीं से अमावट खरीद लेना। धीरे धीरे लोग अमावट बनाना बन्द कर रहे है, वजह इसमें बहुत ताम झाम होता है और यह बड़ी मेहनत व धैर्य का काम है।

मैंने ऐसा सुना है कि मेरे दादा के childhood में आम की बहुत बड़ी बाग हुआ करती थी। रोज बैलगाड़ी भर आम आया करते थे। मेरे बचपन मे पुरानी बाग के एक्का दुक्का पेड़ बचे थे, बड़े जबर व तगड़े। हमारे बचपन में एक झोला आम न मिलते तो bullckcart भर रोज के आम वाली बात फर्जी लगती।

खैर मेरे बाबा ने फिर से बाग लगाई, पुरानी बाग में देसी पेड़ ज्यादा थे। इस बार बाबा ने मीठे व स्वादिष्ट पेड़ो की पौध तैयार की। पेड़ रोपे गए, वो बड़े हुए और हमने अपनी आँखों से देखा। किसी किसी दिन बाग में 4 से 5 बोरा आम इक्क्ठा होते। घर आते। अब इतने आमों को खाये कौन..कुछ इधर उधर बाटे जाए । 
बचे आमों  दादी को बड़े से कठोलवा ( लकड़ी का बना बड़ा सा भगोना/ओखली) में मूसल से मसल मसल कर आमरस बनाते देखा। छत पर अमावट के लिए तमाम कपड़े पड़े रहते। वैसे अगर आप अमावट को बनते देख ले तो शायद कभी खाने का मन न करे। तमाम मखियाँ, पीली बर्र आमरस चाटने को बेताब दिखेंगी। आमरस को निकाल कर कपड़ो पर रोज परत बनाने का चाची करती थी। आम का सीजन खत्म होने पर घर में 50/70 किलो तक अमावट तैयार होता। यही हाल मौसी के घर पर भी देखा। मुझे याद है एक बार उनके घर 1 कुन्तल अमावट बेचा गया था। घर के खाने के लिए लोग अच्छे व मीठे आमों के रस को अलग निकाल कर अमावट के अच्छे साफ टुकड़े तैयार करते। बाकी काला, खट्टा, गीला अमावट बेचने को तैयार किया जाता। जितना साफ अमावट, उतने बढ़िया दाम।
( आम पूूड़ी )

इस बार भी घर गया तो अमावट याद आया। मां से पूछा कि अमावट तो बोली अब लोगों ने अमावट बनाना बन्द सा कर दिया। अबकि औरतों से कहाँ इतना काम हो पायेगा। एक दो लोगों को बताया कि उन्होंने अपनी जरुरत भर के लिए अमावट बनाया है, बेचेंगी नहीं। खैर , मुझे इस बार भी मां ने किसी जगह से अच्छी क्वालिटी के अमावट का जुगाड़ कर दिया। 
एक बात बताना भूल गया, अमावट को चाहे तो आप सूखा खाये अगर मन करे तो उसे एक दिन पहले पानी मे भिगो कर बढ़िया मीठी चटनी के रूप में खाये, मजा दोनों तरह से आएगा।
(अमावट को दांतों से चबाने में अलग ही आनंद आता है)

थोड़ा बौद्धिक स्तर पर बात करें तो अमावट के रूप में हमारे यहाँ अतीत से food processing का चलन है। लोग जब बहुत मात्रा में आम गिरने लगते तो उसके रस को धूप में सुखाकर संरक्षित कर लिया करते। उसे पूरे साल ( कई बार 2, 3 साल) तक उपयोग में लाते।

तो अब आप बताइए कि आप ने अमावट को चखा है या अभी इसके स्वाद से वंचित है ?

© आशीष कुमार, उन्नाव।
26 अगस्त, 2020।


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