BOOKS

गुरुवार, 30 नवंबर 2017

Creativity


रचनाशीलता का सीधा संबंध मन की मुक्ति से होता है यानि जितना आप सहज और सुकून में होंगे उतना ही आपके पास विचारों का जमावड़ा होगा। आपको बहुत कुछ नया और अनोखा सूझेगा करने के लिए।

पिछले कुछ महीनों में मैं छुट्टी पर था न जाने कितने ही विचार , संकल्पना। सोचता था यह लिखूंगा , वह लिखूंगा। बिलकुल अलग , अनूठी चीजे। जैसे ही ऑफिस जॉइन किया , धीरे धीरे सब ठप होने लगा। वही रूटीन सी जिंदगी। वैसे भी लम्बी छुट्टी से लौटने पर ऑफिस में बहुत काम जमा हो जाता है , जम कर काम पड़ रहा है। यह लगातार तीसरा शनिवार होगा जिसमें भी काम जारी रहेगा। अब न वो पहले सा सकून है , न ही वे अनूठे विचार। कितनी ही चीजों पर लिखने के लिए वादे कर रखे है खुद से पर ऐसा लगता है वो सुनहरे दिन आने से रहे। बहुत पहले गेहूं और गुलाब ( रामवृक्ष बेनीपुरी ) पर एक निबंध पढ़ा था। चाहत तो गुलाब की है पर गेहूं बगैर काम नहीं चल सकता। मतलब यह कि नौकरी न करोगे तो गेहूं कैसे मिलेगा। इसलिए गुलाब के बारे में यानि सौंदर्य के बारे सोचना , कल्पना करना अच्छी बात है पर गेहूं की फ़िक्र में गुलाब के ख्याल मरते जा रहे है।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

रविवार, 12 नवंबर 2017

one year of Demonetization


नोटबंदी के १ साल 

नोटबंदी के एक साल पूरे हो गए है। इतना समय किसी योजना का सटीक विश्लेषण करने के लिए  काफी होता है। नोटबंदी के लाभ और हानि को लेकर विद्वान एक मत नहीं है। नोट बंदी के होने वाले लाभों में सबसे महत्वपूर्ण से कुछ कर-आधार का बढ़ना , बैंको के पास काफी मात्रा में पूंजी जमा होना , कर अनुपालन की दर  बढ़ना को माना जा सकता है। निश्चित ही इन बिंदुओं के आधार पर नोटबंदी का कदम भारत की इकोनॉमी के लिहाज से काफी लाभदायक रहा  है। आयकर विभाग के पास बहुत विशाल मात्रा में डाटा इकठ्ठा हो गया है जरूरत है उसका सही विश्लेषण कर, कर चोरी करने वालो को पकड़ना और उनको सख्त सजा देना। आयकर विभाग प्रोजेक्ट इनसाइट जैसी योजना के जरिये बड़ी लगन से जुटा है। 

अगर नोटबंदी के दूसरे पहलू की बात की जाय तो नोट छापने की लागत , लगभग 99 प्रतिशत नोटों का वापस आना दिखलाता है कि इस कदम के काफी उद्देश्य पूरे न हुए। नोटबंदी  भारत के  असंगठित क्षेत्र के लिए बेहद घातक रही  है। बहुतायत छोटी फर्म बंद होने की कगार में आ गयी। इसका असर बेरोजगारी  पर पड़ा साथ ही कृषि पर दबाव भी बढ़ा। चूँकि कृषि , उद्योग अन्योन्याश्रित होते है इसके चलते भारत की विकास दर निम्नतर स्तर पर आ गयी है। उम्मीद की जा रही थी कि भारत 2017 में लगभग 9 प्रतिशत की दर से विकास करेगा पर यह 5.7 प्रतिशत पर ही आगे बढ़ रहा है। डिजिटल पेमेंट के लिए कई तरह के कदम यथा भीम एप , प्रोत्साहन जैसे लकी ग्राहक योजना आदि के बावजूद इसका प्रचलन उम्मीद से कम हो रहा है। शुरू के दो महीनों की तेजी को छोड़ दे तो भारतीय , डिजिटल पेमेंट के लिए अनिच्छुक दिखते है।

समग्रतः नोटबंदी के 1 साल बाद भारत अपनी पूर्ण क्षमताओं के बावजूद  भले ही कई तरह की चुनौतियों से जूझ रहा है पर भारत की इकोनॉमी असंगठित से संगठित होने की ओर  तेजी से बढ़ रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह भारत में समावेशी विकास में सहायक होगी।  


आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।    












A very motivational story : Finally she got a government job


और अंततः उसे सरकारी नौकरी मिल गयी


भूमिका - काफी समय से पहले मैंने एक योजना के तहत मोटिवेशनल स्टोरी /लेख लिखना बंद कर दिया था और अपना लेखन समंसामियक विषयों की ओर मोड़ लिया था। हालांकि मोटिविशनल लेख को लोग ज्यादा पसंद कर रहे थे उसके बावजूद मैंने अपनी योजना के अनुरूप उनको लिखना बंद कर दिया था।

पिछले काफी समय से जब मै एकांतवास कर रहा था ( मतलब फेसबुक , ब्लॉग आदि से कटा था ) मुझे तीन कहानियां लिखने के विचार सूझ रहे थे। पहली कथा डॉक्टर की , दूसरी कथा रोबोट की और तीसरी एक लड़की की। इनका यही क्रम था। जब डॉक्टर के बारे में लिखने के बारे में सोच रहा था तो लगा कि इसकी कहानी शानदार है। फिर रोबोट के बारे जब सोचना शुरू किया तो लगा कि यह पोस्ट तो लोगों के दिलों में पढ़ाई की आग लगा देगी। आपको जिज्ञासा हो रही होगी कि आखिर रोबोट कौन है? दरअसल पिछले दिनों में  लड़का मिला जिसको देखकर लगा कि चिंतक जी के बाद यही गुरु बनाने के लायक है , उसके बारे  ज्यादा बाते फिर कभी , बस रोबोट के मतलब बता देता हूँ उसके पढ़ाई के घंटे  देख कर मेरे मन में शीर्षक के तौर पर रोबोट का ही खायल आया।  आईये आप उसकी बात शुरू करे जिसकी कहानी आज आप पढ़ने वाले है। कॉपी पेस्ट के दौर में आपको सचेत करते हुए बता दू यह कहानी आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश द्वारा उनके ब्लॉग व फेसबुक पेज  हेतु लिखी गयी है। )


मुझे ठीक से यह  याद नहीं  है  कि बात 2013 या 2014 की है पर इतना जरूर याद है कि शुरुआती दिनों में मैंने उसे झिड़क दिया था ( उसके मुताबिक मै उन दिनों भाव खाता था ) वजह थी उसके हर रोज , सुबह , शाम गुड मॉर्निंग तथा गुड नाईट के मेसेज। मेरी यह समस्या रही है कि लोगो की हेल्प करना तो बहुत अच्छा लगता है पर जैसे मुझे अहसास होता है कि मेरे समय जाया हो रहा तो बहुत ऊबता हूँ। यही कारण था कि उसकी यह हरकत मुझे अच्छी न लगती थी। उस डॉट के बाद जब उसने अपने बारे में बताया तो मुझे बहुत दुःख हुआ।

वो एक गावं से थी। पिता जी की मौत हो गयी थी। माँ और एक छोटे भाई के साथ जीवन संघर्ष कर रही थी। वह टूशन पढ़ाती थी (  इंटर मैथ के , मेरे लिए यह काफी महत्व की थी , दरअसल इंटर के दिनों से ही मेरी मैथ खराब होती गयी। हलांकि मैंने  मैथ से b.sc. कर रखा है और सेन्ट्रल गवर्नमेंट की उस जॉब में हूँ जिसके लिए अच्छी मैथ सबसे जरूरी है। दरअसल अपनी अंकगणित शानदार रही है और एग्जाम में वही काम आती है। कैलकुलस को मैंने जॉब के एग्जाम में ज्यादा उपयोगी न पाया। ). चुकि वो गांव से थी , गरीब थी ,छोटी उम्र में आत्मनिर्भर थी , मेरे उसके साथ सम्पर्क गहन होते गए। मुझे ऐसे लोगों से बहुत जुड़ना बहुत अच्छा लगता है जो अपनी दम पर , अपनी किस्मत बदलने के लिए जूझते है। 

अपनी बात का कोई निश्चित टाइम न था। 3  महीने , 6 महीने में उसकी काल आती थी। उन दिनों जिओ का जमाना न था , उसके फ़ोन जब तक रूपये होते तब तक बात करती -नहीं तो पुरे हक से कहती मुझे काल करो। बात अपनी 30 से ४० मिनट होती। वही पढ़ाई लिखाई की बाते , घर की , माँ की , गांव की बाते। अक्सर वो आईएएस के बारे  पूछती , किताबे के नाम आदि। सच कहु तो मुझे उसे झूठी दिलाशा देनी पड़ती कि पढ़ती रहो  जॉब जरूर लगेगी। वो उस राज्य से है जहां पर सरकारी जॉब के लिए सबसे ज्यादा करप्शन है , समझ रहे हो न अरे वही जहाँ एक पूर्व  cm जेल में है। खैर समय गुजरता रहा। लोग आते है जुड़ते है और चले जाते है वजह मेरे स्वभाव को झेलना, सबके वश की बात नहीं। वो जुडी रही और अपने संघर्ष में लगी रही। बीच में कोई प्राइवेट स्कूल ज्वाइन कर लिया था। तमाम बाते है पर उनका कोई विशेष मतलब नहीं। एक और बात जरूरी लग रही है बताना , कभी उसने अपने घर के संघर्ष के चलते परेशान होकर  जहर पीकर आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी और यह राज उसके अनुसार मेरे अलावां दुनिया में कोई नहीं जानता कि वो आत्महत्या थी। मुझे लगता है कि इतना काफी है यह समझने के लिए वो किस परिवेश से थी , वो अपने खेत में काम करती , भैंस का दूध दुहती , गोबर फेकती और मन में कही न कही आगे बढ़ने की आस लिए जीवन जीती जा रही थी।

इस ऑक्टूबर एक रोज मुझे अपने नंबर पर मैसेज मिला कि उसने मुझे कॉल लगाई थी। दरअसल पिछले ३ महीनों से मेरा मोबाइल अक्सर बंद ही रहता। यह वह समय था जब  मुझे अपने 10 मिनट भी  बहुत कीमती लग रहे थे पता नही  क्या सोचा और उसे फ़ोन लगाया।  कुछ फॉर्मल बातों यथा कैसे हो , घर में सब ठीक है आदि के बाद उसने कहा सर, एक ख़ुशख़बरी है। मेरा  क्रेन्दीय विद्यालय में टीचर के पद पर सिलेक्शन हो गया है। सफलता की खबर हमेशा बहुत ऊर्जादायक होती है। अपने आँखो से मैंने न जाने कितने लोगो को संघर्ष करते और सफल होते देखा था पर इसकी बात निराली थी। काफी देर तक बात होती रही , उसका कहना था कि इस सफलता की एक बड़ी वजह आप है आपसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। देखा जाय तो मैंने तो समय ( वैसे यह बहुत कीमती चीज है ) को छोड़ कुछ न दिया। फेसबुक की दोस्ती , कभी कोई रूबरू मुलाकात नहीं फिर भी मुझे बेहद खुशी हुयी शायद आपको भी पढ़कर बहुत खुशी महसूस हो रही होगी।

मैंने इन दिनों लोगों तो तमाम तरह का रोना देखा है - जनरल कैटगरी से हूँ , वेकन्सी नहीं आती है , सब पैसे से होता है , नौकरी पाने के लिए अच्छी कोचिंग की जरूरत होती , लड़की  हूँ , घर में पढ़ाई का माहौल नहीं है। मेरे घर वाले एग्जाम दिलाने बाहर नहीं जाते। वो भी जनरल कैटेगरी से ही है बाकि परिवेश ऊपर बता ही चूका हूँ। मैंने उससे हर पहलू पर विस्तार से बात  की  मसलन इंटरव्यू देने कहाँ गयी , कैसे गयी , क्या पहना था आदि आदि। उसे 60 में 52 अंक मिले , उसका कहना था कि अगर उसके पास शूज होते तो शायद 55 मिल जाते क्युकी उनके बगैर सैंडल में अटपटा महसूस कर रही थी।

उसकी जॉइनिंग भी हो गयी है। उसका कहना था कि वो काफी बदल गयी है , मुझे लग रहा था कि शायद पहनावे में बदलाव हुआ पर नहीं मैंने उसे हमेशा कम आँका। पिछले 4 सालों से टच में होने के बावजूद मेरे पास उसकी कोई तस्वीर न थी। एक आध बार उसने व्हाट एप  पर अपनी किसी फोटो की फोटो खींच कर भेजी थी पर मेरे दिमाग में उसका कोई चित्र था। हालांकि फेसबुक पर मै कभी किसी लड़की को रिक्वेस्ट सेंड नहीं करता और लड़की की  रिक्वेस्ट आने पर उसकी तस्वीर मांगने पर पूरा जोर देता हूँ वजह हमेशा यही लगता है कि आखिर कोई अनजान लड़की मुझे रिक्वेस्ट क्यू सेंड करेगी। इसको कभी इंसिस्ट न किया। ग्रामीण परिवेश , अपने आप में विश्वास की वजह होता है।  

मै  अभी उसके व्यक्तित्व में आये बदलाव की बात कर रहा था। जोइनिंग के बाद उसने अपनी नई तस्वीर भेजी। सच कहता हूँ मै स्तब्ध रहा गया। उसने अपने बॉब कट बाल कटा लिए थे। सबसे पहला ख्याल दंगल  गर्ल ( वो दंगल फिल्म का वो गाना तो सुना ही होगा , नेकर और टी शर्ट पहन कर आया ----------)  का आया। संयोग से यह भी उसी स्टेट से है। मैंने पूछा यह क्यों और कब क से। "बस मेरी मर्जी , पिछले कई महीनों  से ऐसे ही हूँ।" उसने कहा।  

अब जा कर यही निष्कर्ष निकला जा सकता है। उसे अपनी मर्जी से जीना था। रूढ़ियाँ उसे पसंद नहीं। यह अंतिम बात सुनकर आपको कैसा लग रहा है। भारतीय समाज में लड़की के बाल , लड़कों जैसे रखने का चलन नहीं है।  मुझे तो उसके बाल कटाने में भी लड़कियों की मुक्ति नजर आयी। हर लड़की की यह इच्छा होती है कि वह अपनी मर्जी से जिए , उसे कोई रोके , टोके न। मैंने इस बात तो हमेशा जोर दिया है कि अगर तुम्हे आजादी चाहिए , अपनी जिंदगी अपनी शर्तो पर जीनी है तो अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ। रात दिन एक कर दो। जरूरी नहीं कि आईएएस , pcs ही बनो पर कुछ न कुछ अपने दम पर करो। 

मेरे तमाम पाठकों , विशेष कर लड़कियों के लिए इससे उम्मदा, मोटिवेशनल उदाहरण कोई नहीं हो सकता है।  अब वो आईएएस की तैयारी में लगी है ,  होगा या न होगा अलग बात है पर उसने  जो आदर्श सामने रखा है , उससे मै बहुत प्रभावित हुआ। जाते जाते आपके लिए एक प्रश्न छोड़ कर जाता हूँ उत्तर जरूर देना।  

एक लड़की जिसके माता पिता दोनों क्लास वन अधिकारी , 4 साल दिल्ली में आईएएस की कोचिंग , दिल्ली के नामचीन कॉलेज से पढ़ाई , अनुसूचित जाति ( इसका उल्लेख करना जरूरी न था पर इसको लेकर काफी बवाल हुआ था उस वक़्त अपनी राय न रखा था आज रख रहा हूँ , भारत में आरक्षण एक बड़ा और जटिल मुद्दा है। निश्चित ही कम से कम इतने आमिर और सशक्त परिवेश की लड़की द्वारा आरक्षण का लाभ लेना उचित न था। ऐसा करके वह अपने ही समुदाय / वर्ग का हिस्सा खा रही है। उन दिनों जब आईएएस टॉपर को लेकर विवाद हुआ था तो मेरी यही सोच थी कि इसका सलेक्शन तो तय ही था पर कोटे को लेकर वह अपने ही वर्ग की गरीब , कमजोर लड़की का हिस्सा , सीट खा गयी ) की लड़की आईएएस में जबरदस्त रैंक लाती है। पहला प्रयास , 21  साल की आयु , नाम का उल्लेख जरूरी नहीं पर आईएएस की तैयारी से जुड़ा हर कोई समझ सकता है कि मै किसकी बात कर रहा हूँ ?

आपके सामने दो लड़कियों की कहानी रख दी है। ऊपर वाली लड़की की नौकरी कोई बड़ी नहीं है , नीचे वाली लड़की की नौकरी सबसे बड़ी है। आप बताईये आप के लिए कौन ज्यादा प्रेरक है , सारी बातों को ध्यान  में रख कर सोचिये , किसकी  उपलब्धि बड़ी है और क्यों ? 

( Dear reader, above mentioned girl is one of from you , even your views & comments will be read by her . Thanks , keep reading .)

- आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  
( e mail- ashunao@gmail.com )

शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

Rehan pr Ragghu : a novel by Kashinath Singh


रेहन पर रग्घू 


कल और आज दोनों दिन में काशीनाथ सिंह का कालजयी उपन्यास रेहन पर रग्घू पढ़ डाला। काशीनाथ को मैंने काफी देर से जाना पर जब से जाना तब से वह मेरे पसंदीदा लेखक रहे है। काशी का अस्सी को काफी पहले पढ़ लिया था। देखा जाय तो काशी का अस्सी उनका अब तक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। उनको साहित्य अकादमी का हिंदी के लिए 2011  पुरुस्कार रेहन पर रग्घू ( 2008 में प्रकाशित ) के लिए दिया गया 

यह नावेल काफी हद तक ममता कालिया के नावेल दौड़ से समता रखता है। इसका फलक हालांकि ज्यादा विस्तृत है। नावेल में रघुनाथ क्रेद्रिय चरित्र है उसकी , उसके 2 पुत्र संजय व धनन्जय तथा बेटी सरला की कहानी ही विस्तार लेती है। बड़ा बेटा संजय बहुत महत्वाकांक्षी है, अमेरिका जाने के लिए पिता की मर्जी के खिलाफ सोनल  से शादी करता है बाद में यह अमेरिका में अंजली से शादी कर लेता है , वजह क्युकि आरती के पिता गुजराती आमिर है। सोनल  भी अमेरिका से लौटकर बनारस में अपने पुराने प्रेमी समीर के साथ रहने लगती है। 

रघुनाथ के छोटा बेटा अपने बड़े भाई से भी आगे निकल जाता है। नोयडा में एक विधवा के साथ , उसकी दौलत के लालच में साथ रहता है। रघुनाथ की बेटी सरला , अपने घर से दूर रहती है। पिता की इज्जत और अपनी मर्जी की शादी के निर्णय के बीच दुविधा में रहती है। शादी तो नहीं करती पर वह एक नीची जाति के pcs अधिकारी के साथ घूमती फिरती है। यह pcs अधिकारी शादीशुदा है पर पत्नी के साथ नहीं रहता है। 

नावेल में और भी बहुत कुछ है पर सब कुछ बेहद निर्मम यथार्थ। बनारस के एक गांव पहाड़पुर की कहानी है जो कुछ समय के लिए बनारस के आनंद विहार में चलती है जहां पर रघुनाथ की बहु सोनल अपने प्रेमी समीर के साथ रहती है हालाकि सोनल ने अपने ससुर रघुनाथ तथा सास शीला की खूब सेवा की है। नावेल के अंत में रघुनाथ को अपने आप अपहरण होते दिखाया गया है वह जानना चाहते है कि क्या उसके आमिर बेटे , उसे बचाने के लिए फिरौती देना पसंद करेंगे। यह प्रश्न अनुत्तरित रहता है।  

नावेल पढ़कर मुझे कई तरह के भाव आये। निश्चित ही यह अपने समय की विद्रूपता को ही वर्णित करता है। रिश्तों में कोई मिठास नहीं , हर कोई उलझा हुआ है। सबके अवैध सम्बन्ध है किसी न किसी के साथ। रघुनाथ जोकि एक टीचर है अपनी सहायक टीचर के साथ जुड़े है। अतीत में लारा के साथ भी उसका छोटा सा प्रकरण है। इसी तरह सरला भी अपने टीचर के साथ जुडी थी। पुरे नावेल में ऐसे प्रसंग यत्र तत्र बिखरे पड़े है। गांव व शहर का टकराव , उलझाव भी है। मैला आंचल की तरह इस नावेल में गांव में जाति की प्रबलता , बदलाव को दिखलाया गया है। ठाकुर , अहीर तथा चमार के सम्बन्ध को काफी गहनता से चर्चा की गयी है। दशरथ के बेटे जसवंत ने टैक्टर का लेकर गांव की इकॉनमी को बदल दिया। पहले चमार , ठाकुर के खेत जोतते थे, अब अहीर दसरथ के सामने ठाकुरों को खेत जुटाने के लिए टाइम लेना पड़ता है। गोदान में सिलिआ ( चमार ) और पंडित के लड़के में प्रसंग में जो दलित चेतना ( पंडित के बेटे के मुँह में हड्डी डालकर अशुद्ध करना ) दिखाई गयी थी वह इस नावेल में काफी आगे बढ़ी दिखाई गयी है।  इसमें चमारों ने पुरे प्लान के तहत एक ठाकुर पहलवान को बेहद बुरी तरह ( जननांग काट कर ) से मार देते है वजह वही पहलवान , चमार की बीवी के साथ जोर व दबाव के सम्बन्ध बनाये दिखाई देता है।   

काशीनाथ की भाषा , उनकी कथा को काफी रोचक व सरस् बना देती है। लोचे ( इसमें बड़े लोचे है ), लौड़े ( तुम जैसे लौंडो को मै पढ़ाया करता था ), जैसे शब्द समकालीन यथार्थ को बखूबी दिखलाने में सक्षम है।  

--आशीष कुमार 
    उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

Daud : A novel by Mamta Kalia


दौड़ : ममता कालिया का एक नावेल 


काफी अरसे के बाद कोई हिंदी नावेल पढ़ा और उसे खत्म किया। काफी समय से उपन्यास खरीदता जा रहा था पर उनको शुरू कर कभी पूरी तरह से खत्म न कर पाता। 

यह नावेल 2000 में प्रकाशित हुआ था। आकार में यह लघु उपन्यास है। इसकी विषय वस्तु बहुत ही रोचक व सारगर्भित है। ममता कालिया ने अपने समय की तमाम विडंबनाओं को इसमें समेट दिया है। पवन , उसके छोटे भाई सघन तथा इनके माता रेखा व पिता राकेश की कहानी पुरे उपन्यास में फैली है। एक संयोग ही है कि इसमें अहमदाबाद का जिक्र भी हुआ है। दरअसल मै पिछले 6 सालों से अहमदबाद में ही रह रहा हूँ तो कई प्रसंग जैसे मेम नगर , एलिस ब्रिज आदि मुझे काफी रोचक लगे। मेम नगर में मै 4 साल रहा भी हूँ।  

पुरे नावेल में पीढ़ी अंतराल ,  बाजारवाद , उपभोक्तावाद के विविध पहलू छाये हुए है। पवन , अहमदाबाद mba करता है और नौकरी बदलता रहता है। स्टेला से शादी करना उसके लिए बस एक डील है। अपने परिवार की इच्छा के विपरीत सामूहिक विवाह में अपनी शादी करता है। दरअसल उन दोनों के पास वक़्त की बेहद कमी है।  छोटा बेटा सघन चीन चला जाता है और उसके माता पिता , बूढ़ा बूढी कॉलोनी में अकेले रह जाते है।  ममता कालिया ने इस लघु उपन्यास में यह दिखाया है कि लोगो के घरो में ओवन , वैक्यूम क्लीनर जैसी आधुनिक चीजे है पर उनके पास उनके बेटे नहीं है। एक जगह रेडीमेड बेटे का जिक्र कर ममता ने अपने समय की तमाम विद्रूपताओं को उजागर कर दिया है। 

हालांकि मैंने काशी नाथ का नावेल रेहन पर रग्घू पढ़ा तो नहीं है पर उसमे भी इस तरह की समस्या को ही दिखाया गया है।  दरअसल उदारीकरण के बाद जिस तरह से संयुक्त परिवार टूट कर एकल परिवार में बनने लगे और दो नौकरी का चलन बढ़ा उससे भारतीय समाज में पश्चिम जैसे समस्याओं की झलक मिलने लगी। सन 2002 के परिवेश को ममता ने इस लघु उपन्यास में समग्रता  समेटने की कोशिश की है और वह इसमें पूर्णता सफल भी है।  अगर आपको भी यह नावेल पढ़ना हो तो नीचें लिंक से फ्री में डाउनलोड कर सकते है।  


आशीष  कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  











शनिवार, 4 नवंबर 2017

we have to fill the gap between Men and Women

दो सूचकांक के निहितार्थ 


आज के समय में  किसी देश की स्थिति का अनुमान प्रायः विविध सूचकांकों से आधार पर लगाया जाता है. भारत को पिछले दिनों दो विरोधी स्थितियों का सामना करना पड़ा। एक ओर भारत ने विश्व बैंक द्वारा जरिये किये जाने वाले इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस इंडेक्स (2004  में शुरू )में अपने रैंक भारी इजाफा किया। इसमें भारत ने 2016 की रैंक 130 से 2017 में 100 स्थान में आ गया है। 30  स्थान की बढ़त , निश्चित ही भारत में कारोबारी माहौल में किये गए सुधार का परिणाम माना जा सकता है। 

इससे इतर एक दूसरे महत्वपूर्ण सूचकांक में भारत को कई स्थानों को गवाना पड़ा है। विश्व के महत्वपूर्ण थिंक टैंक विश्व आर्थिक परिषद ( ) द्वारा जारी ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स ( 2006  में शुरू ) में भारत 2016  में  87  के मुकाबले 2017 में 108 स्थान पर है। यह सूचकांक भारत में लैंगिक विभेद की गिरती स्थिति को दिखलाता है। इस सूचकांक का निहितार्थ यह है कि भारत में पिछले साल के मुकाबले इस साल महिलाओं और पुरुषों के बीच विषमता बढ़ी है। इसको आप शिक्षा , सामाजिक , आर्थिक व न्याय के क्षेत्र में विभेद के रूप में समझ सकते है।  

हम प्रायः समावेशी विकास की बात करते है जिसका सरल आशय प्रगति और विकास का लाभ समाज के हाशिये पर खड़े , वंचित वर्ग को समरूपता से वितरित करने से है। ऊपर के दो आकंड़ो से यही लगता है कि विकास तो उलटी दिशा में हो रहा है। अगर कारोबार में आसानी हो रही है तो उसका लाभ महिलाओं को भी मिलना चाहिए। उनकी आर्थिक दशा पर भी इसका पड़ना चाहिए।  

भारत में रोजगार के क्षेत्र में महिलाओ की भागीदारी पश्चिम की तुलना में बेहद निम्न है। इसके पीछे शिक्षा , स्वास्थ्य में लड़कियों के साथ होने वाले विभेद के साथ साथ हमारी पितृसत्तामक सोच भी है। यह वही बात है जो पश्चिमी स्त्री विमर्शक सिमोन द बुआ ने कही थी कि स्त्री पैदा नहीं होती , स्त्री बना दी जाती है। इसलिए भारत की सरकार के साथ साथ समाज को भी इस विषम स्थिति में बदलाव लाने के बहुआयामी प्रयास करने चाहिए। आप ऐसे समाज में शांति , स्थिरता व् समरसता की उम्मीद नहीं कर सकते है जो स्त्री को दोयम दर्जे में रखता हो , भले ही यह समाज कितनी ही आर्थिक प्रगति कर ले , कितना ही समद्ध क्यों न हो।  


आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

My letter published in Yojna issue October 2017







प्रिय दोस्तों , कैसे है आप सभी। एक लम्बे अंतराल के बाद आप से मुखातिब हो रहा हूँ। पिछले माह ( अक्टूबर ) में मेरा एक पत्र योजना में प्रकाशित हुआ है। आप भी पढ़िए और बताइये कैसा है। पात्र में अंत में दो बहुत सुन्दर लाइन भी है जिनका उपयोग आप किसी भी निबंध /लेख /उत्तर में प्रयोग कर सकते है।


अगर यह पढ़ने में न आ रहा हो तो इसे डाउनलोड करके देख सकते है।  धन्यवाद। 

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