रेहन पर रग्घू
कल और आज दोनों दिन में काशीनाथ सिंह का कालजयी उपन्यास रेहन पर रग्घू पढ़ डाला। काशीनाथ को मैंने काफी देर से जाना पर जब से जाना तब से वह मेरे पसंदीदा लेखक रहे है। काशी का अस्सी को काफी पहले पढ़ लिया था। देखा जाय तो काशी का अस्सी उनका अब तक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। उनको साहित्य अकादमी का हिंदी के लिए 2011 पुरुस्कार रेहन पर रग्घू ( 2008 में प्रकाशित ) के लिए दिया गया।
यह नावेल काफी हद तक ममता कालिया के नावेल दौड़ से समता रखता है। इसका फलक हालांकि ज्यादा विस्तृत है। नावेल में रघुनाथ क्रेद्रिय चरित्र है उसकी , उसके 2 पुत्र संजय व धनन्जय तथा बेटी सरला की कहानी ही विस्तार लेती है। बड़ा बेटा संजय बहुत महत्वाकांक्षी है, अमेरिका जाने के लिए पिता की मर्जी के खिलाफ सोनल से शादी करता है बाद में यह अमेरिका में अंजली से शादी कर लेता है , वजह क्युकि आरती के पिता गुजराती आमिर है। सोनल भी अमेरिका से लौटकर बनारस में अपने पुराने प्रेमी समीर के साथ रहने लगती है।
रघुनाथ के छोटा बेटा अपने बड़े भाई से भी आगे निकल जाता है। नोयडा में एक विधवा के साथ , उसकी दौलत के लालच में साथ रहता है। रघुनाथ की बेटी सरला , अपने घर से दूर रहती है। पिता की इज्जत और अपनी मर्जी की शादी के निर्णय के बीच दुविधा में रहती है। शादी तो नहीं करती पर वह एक नीची जाति के pcs अधिकारी के साथ घूमती फिरती है। यह pcs अधिकारी शादीशुदा है पर पत्नी के साथ नहीं रहता है।
नावेल में और भी बहुत कुछ है पर सब कुछ बेहद निर्मम यथार्थ। बनारस के एक गांव पहाड़पुर की कहानी है जो कुछ समय के लिए बनारस के आनंद विहार में चलती है जहां पर रघुनाथ की बहु सोनल अपने प्रेमी समीर के साथ रहती है हालाकि सोनल ने अपने ससुर रघुनाथ तथा सास शीला की खूब सेवा की है। नावेल के अंत में रघुनाथ को अपने आप अपहरण होते दिखाया गया है वह जानना चाहते है कि क्या उसके आमिर बेटे , उसे बचाने के लिए फिरौती देना पसंद करेंगे। यह प्रश्न अनुत्तरित रहता है।
नावेल पढ़कर मुझे कई तरह के भाव आये। निश्चित ही यह अपने समय की विद्रूपता को ही वर्णित करता है। रिश्तों में कोई मिठास नहीं , हर कोई उलझा हुआ है। सबके अवैध सम्बन्ध है किसी न किसी के साथ। रघुनाथ जोकि एक टीचर है अपनी सहायक टीचर के साथ जुड़े है। अतीत में लारा के साथ भी उसका छोटा सा प्रकरण है। इसी तरह सरला भी अपने टीचर के साथ जुडी थी। पुरे नावेल में ऐसे प्रसंग यत्र तत्र बिखरे पड़े है। गांव व शहर का टकराव , उलझाव भी है। मैला आंचल की तरह इस नावेल में गांव में जाति की प्रबलता , बदलाव को दिखलाया गया है। ठाकुर , अहीर तथा चमार के सम्बन्ध को काफी गहनता से चर्चा की गयी है। दशरथ के बेटे जसवंत ने टैक्टर का लेकर गांव की इकॉनमी को बदल दिया। पहले चमार , ठाकुर के खेत जोतते थे, अब अहीर दसरथ के सामने ठाकुरों को खेत जुटाने के लिए टाइम लेना पड़ता है। गोदान में सिलिआ ( चमार ) और पंडित के लड़के में प्रसंग में जो दलित चेतना ( पंडित के बेटे के मुँह में हड्डी डालकर अशुद्ध करना ) दिखाई गयी थी वह इस नावेल में काफी आगे बढ़ी दिखाई गयी है। इसमें चमारों ने पुरे प्लान के तहत एक ठाकुर पहलवान को बेहद बुरी तरह ( जननांग काट कर ) से मार देते है वजह वही पहलवान , चमार की बीवी के साथ जोर व दबाव के सम्बन्ध बनाये दिखाई देता है।
काशीनाथ की भाषा , उनकी कथा को काफी रोचक व सरस् बना देती है। लोचे ( इसमें बड़े लोचे है ), लौड़े ( तुम जैसे लौंडो को मै पढ़ाया करता था ), जैसे शब्द समकालीन यथार्थ को बखूबी दिखलाने में सक्षम है।
--आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
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