कितने उचित है बैंकिंग सेवाओं पर शुल्क ?
पिछले दिनों कुछ बैंक द्वारा विविध सेवाओं के लिए ग्राहकों से शुल्क वसूलने या उनमें वृद्धि के लिए घोषणा की गयी है। भारत में अभी भी बहुत से लोग वित्तीय समावेशन से महरूम है। सरकार ने जन धन योजना के माध्यम से करोड़ो की संख्या में खाते खुलवाए है। इन खातों के माध्यम से , गरीब , पिछड़े आम तबके के लोगों को संस्थागत वित्तीय प्रणाली में बने रहने के उद्देश्य की पूर्ति के लिहाज से बैंकिंग सेवाओं पर शुल्क उचित नहीं कहे जा सकते है। निश्चित तौर पर बैंक इनके जरिये अपनी आमदनी बढ़ा कर , अपने घाटे की पूर्ति करना चाहते है। यहाँ पर प्रश्न उठता है कि करोड़ो रूपये की अनर्जक परिसम्पति के घाटे की कीमत आम खाता धारक क्यों उठाये। आखिरकार इन बढ़े शुल्कों के बदले में खाताधारक के कौन से हितों की पूर्ति होगी। यह कौन सा न्याय है कि बड़े कर्जदारों की चोरी का परिणाम , आम खाताधारक भुगते। सरकार को इसमें हस्तझेप कर इसे रोकना चाहिए ताकि जन धन योजना जैसे वित्तीय समवेशी उपायों का लाभ समुचित रूप से आम जन उठा सके।
आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
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