भइया क्या चाहिए ?
हमेशा की तरह इस बार शुरुआत खाने से हुई । अग्रवाल स्वीट्स में इमरती खाने से हुई , काफी अरसा हो गया था इसे खाये हुए । इसके बाद कुछ पत्रिकाओं , किताबों की खरीद और फिर यूँ ही घूमना और भीड़ को देखना । जब भी मुखर्जी नगर आना होता है लगभग यही रूटीन रहता है। शाम का वक़्त, सैकड़ो युवा चाय, काफी , मोमोज, रोल खाने में मस्त और हाँ किताबों , नोट्स, फ़ोटोकॉपी खरीदने में व्यस्त। इस भीड़ में मैं कुछ पढ़ने की कोशिस करता हूँ । एक युवा , पीठ पर बैग लटकाये, रोल खाने में व्यस्त। शायद किसी कोचिंग से 4 घंटे की क्लास करके निकला होगा। सोचता हूँ क्या सपना लेकर यह यहां आया होगा।
एक फोटोकॉपी की दुकान के सामने से गुजरा तो दूर से ही लड़के ने पुकारा -भइया क्या चाहिए ? मैंने गंभीरता से कहा - स्टूल ।
वो अकबकाते हुए मुझसे पूछा -स्टूल?
"हाँ , वो अंदर जो स्टूल पड़ा है वो यहां बाहर लाकर डाल दो । मैं तापमान नापने वाला हूँ और कुछ देर यहाँ बैठ कर तापमान नापना चाहता हूँ।"
पता नही उसको मेरी अलंकारिक भाषा समझ आयी या नही पर उसने बाहर स्टूल लाकर डाल दिया। लगभग 30 मिनट , वहाँ बैठा , भीड़ को पढ़ता रहा।
( ठीक 4 घण्टे पहले , बत्रा सिनमा के सामने की घटना )