BOOKS

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

repetitions

#दोहराव के मायने 

तमाम बार जब तुम्हें
बुलाता हूँ अपने करीब
नहीं बेहद करीब 
और दोहराता हूँ 
वही बातें
कि तुम मुझे 
बेहद पसंद हो

या कि मैं तुम्हें बहुत 
ज्यादा चाहता हूँ,
करता हूँ जुनून से
शिद्दत से, तुमसे प्यार

तब तुम मेरे इन 
दोहराव से कभी
न परेशान होना
या कि ऊबना

इन तमाम दोहराव
में निहित अर्थ 
यही है कि तुम 
मेरे लिए हमेशा 
रहोगी सर्वोपरि
और मेरे तुम्हारे प्रति प्रेम
कभी न होगा जीर्ण 

© आशीष कुमार, उन्नाव।
( 17 जनवरी 2020 )

with you

#तुम्हारे साथ

मैं चाहता हूँ रहना
 हमेशा ही तुम्हारे साथ 
मैं चाहता हूँ जुनूनी प्रेम
ताउम्र तुम्हारे साथ,

मैं चाहता हूँ जीना भरपूर 
हर पल, हर क्षण
केवल व केवल 
तुम से ही , प्रिय केवल तुम्हारे साथ।

©आशीष कुमार , उन्नाव।
(17 जनवरी, 2020)

Death of love

#ठंड

कॉफी पीने के बाद वो बाहर खुली छत के किनारे खड़े थे। कई दिनों से वो मिल रहे थे तमाम बातें भी करते। दोनों ही एक दूसरे की बातें बड़े गौर से सुनते, प्रायः उनकी आंखों में खुशी की एक चमक दिखती। 
वो काफी देर से बाहर खड़े थे। लड़की अपनी धुन में बातें किये जा रही थी, लड़का हूँ हा करते हुए वो उसके गोरे, नाजुक हाथों को गौर से देख रहा था। वो बहुत देर से उन हाथों को छूना चाहता था पर अजब कसमकश थी। वो छू न पा रहा था। वो शंकित था कि पता नहीं उसके भावों को कहीं गलत न समझा जाय।लड़की ने अपने दोनो हाथ जीन्स की पॉकेट में डाल रखे थे।

लड़के से जब रहा न गया, उसने पूछा कि तुम्हारे हाथों को काफी ठंड लग रही है क्या ? 
"हां,आज काफी ठंड है । " कहते हुए उसने अपने हाथों को और भीतर कर लिया।

खलील जिब्रान ने कहा है कि जो कहा गया पर समझा नहीं  गया और जो समझा गया पर कहा न गया के बीच में तमाम मुहब्बत की मौत हो जाती है।

(17 जनवरी, 2020)
© आशीष कुमार, उन्नाव।

गुरुवार, 9 जनवरी 2020

poem :fresh rose

कविता : ताजा गुलाब 

"जब तुम मेरी करीब होती हो
मुक्त मन से, आवरण रहित,
तुम मुझे एक ताजे गुलाब 
सरीखी लगती हो
अति कोमल, नाजुक 
भीनी भीनी खुसबू से भरी"

10 जनवरी, 2020,😌
© आशीष कुमार, उन्नाव

सोमवार, 6 जनवरी 2020

wait

इंतजार

"मैं थोड़ी देर में करती हूँ"
"अरे कोई नहीं "
" अरे मैं करती हूँ, पक्का"...
और वो हमेशा की तरह उसके फ़ोन का इंतजार करता रहा, यह जानते हुए भी कि घर में हजार तरह के काम होते हैं।

6 जनवरी 2020
© आशीष कुमार, उन्नाव


Poem : promise

एक वादा

प्रिय सुनो,
मुझसे करो एक वादा
नहीं नहीं 
शंकित न हो
बस एक छोटा आसान सा वादा

वादे हमेशा ही
आसान व सहज होने 
चाहिए ताकि वो निभाये 
जा सके ताउम्र 
बगैर किसी दुविधा के।

मुझे करो बस इतना
वादा कि हम आज 
जितने करीब है
उतने करीब रहेंगे उम्रभर

जैसे पकड़ लेता हूँ हाथ
सुलझा देता हूँ आपके बाल
अपनी अगुलियों से
लगा लेता हूँ गले से
निःसंकोच,

वादा करो कि जैसे
तुम भी टिका देती हो 
अपना खूबसूरत चेहरा 
मेरे कंधों पर,
सिमिट आती हो आगोश में मेरे
बगैर किसी परवाह के
सहलाती हो मेरे हाथों को
कभी कभी अनायास ही

आ जाती हो कभी भी, कहीं भी
बुलाने पर मेरे
नहीं करती हो अस्वीकार
साथ में देखने को चलचित्र
पढ़ती हो मेरे चेहरे को 
समझती जाती हो मेरे हर इशारे को
और उन तमाम बातों को
जो प्रेम में कभी कही नहीं जाती है।

प्रिय, बस इतना सा वादा करो 
कि उम्र के किसी भी दौर में
कैसे भी मोड़ पर 
जब हम मिले तो
रहे कम से कम इतना करीब
जितना कि इन दिनों हैं।

*6 जनवरी, 2020
©आशीष कुमार, उन्नाव 


रविवार, 5 जनवरी 2020

कविता 6: A love latter

 कविता 6: एक प्रेमपत्र

एक सुहानी रात
तुमने कहा कि
मैं लिखूँ एक प्रेमपत्र
जिसमें बतलाऊँ कि
मेरे हदृय में क्या 
जगह है आपकी,
क्या मायने है आपके होने
मेरे जीवन में। 

सुनो प्रिय,
मैं कोई उपमा
नहीं दे सकता
जो परिभाषित कर
सके हमारे 
अनाम रिश्ते को

मैं अमिधा में 
ही कहूँगा कि
तुम सबसे खास हो
सबसे करीब,
सबसे राजदार

तुम्हें सुन सकता हूँ
अनवरत, अविचल
बोल सकता हूँ तुमसे
हर वो बात जो
किसी से कभी नहीं
कहता,

कर सकता हूँ वर्षों इंतजार
आपके आने का,
नहीं रखता अपेक्षा जरा सी भी
न ही कोई उम्मीद। 

तुम जब भी साथ होती हो
तब महसूस करता हूँ
दुनिया की सबसे अनमोल खुशी
आँखों में आ जाती है
बयाँ न कर सकने वाली चमक।

दिसंबर की सबसे ठंढी शाम 
पार्क की कोने वाली बेंच पर,
बैठ सकता हूँ कई घंटे
तुम्हारे साथ, 
बस हाथों में लेकर हाथ। 

दे सकता हूँ और भी 
लंबे, चौड़े व गहरे 
आत्मीय बयान 
शर्त यह है कि आप 
समझ सके मुझे 
और माप सके 
अपनी जगह को
मेरे हदृय में ।

*5 जनवरी, 2020
© आशीष कुमार, उन्नाव







बुधवार, 1 जनवरी 2020

2 पेन व डायरी

                                                           2 पेन व डायरी

कुछ दिन से वो चौकीदार अंकल बहुत याद आ रहे है। काफी साल पहले की बात है , वो हमारे पड़ोसी थे। उस घर में तमाम किरायेदार रहा करते थे। मेरा रूम , उनके सामने ही था। मस्त मौला आदमी थे। हमेशा कुछ न कुछ मजाकिया बातें किया करते थे। उनके कुछ छोटे २ किस्से याद आते हैं।

१.  पहला किस्सा वो था जिसमें वो एक ऐसे आदमी का जिक्र करते जो बिलकुल भी पढ़ा लिखा नहीं था। ऐसे लोग काफी गुनी होते हैं। उसने लोगों को देख देख कर कुछ बातें सीख ली। उन्हीं बातों में एक बात उस अनपढ़ आदमी ने यह भी सीखी। उसकी जेब में हमेशा दो पेन व एक छोटी पॉकेट डायरी जरूर होती। एक बारात में वो इस रूप में गया। अच्छे से बाल सवारे , साफ स्तरी किये हुए कपड़े, शर्ट की जेब में दो पेन , एक छोटी पॉकेट डायरी। उसी बारात में किसी लड़की ने इन सज्जन को देखा और उसके मन में बड़े मधुर विचार पनपे। लड़की पढ़ी लिखी व काफी समझदार थी। उसने हमेशा से सोचा था कि किसी पढ़े लिखे इंसान से प्रेम विवाह ही करेगी। अंकल खूब हसँते -हसँते  बताया करते थे कि इस तरह से एक अनपढ़ इंसान ने दो पेन व एक पॉकेट डायरी के सहारे सुंदर -पढ़ी लिखी समझदार बीवी पा ली।

२.  अंकल ने मुझको लेकर एक भविष्यवाणी की थी कि देखना आशीष तुम एक दिन बहुत बड़ी नौकरी पाओगे। जब मैं उनसे पूछता कि ऐसा क्यों लगता है तो कहते कि तुम इतनी मोटी -२ किताबें जो पढ़ते हो। मैं बहुत मुस्कुराता और कहता कि ये तो फालतू के नावेल हैं , जो बेरोजगार खाली इंसान समय गुजारने के पढ़ा करते हैं। उन दिनों गोर्की का मां, शरत बाबु का देवदास, टालस्टाय का वॉर एंड पीस, कामु का प्लेग जैसी किताबें मेरे बिस्तर पर पड़ी रहती। रूसी भाषा के कुछ अनुदित नावेल 700-800 पेज के हुआ करते थे। बाद के तमाम सालों में मुझे अंकल वो तर्क याद आता रहा कि जो मोटी 2 किताबें पढ़ सकता है वो बड़ी नौकरी करेगा।

तो अब कहानी खत्म करू, नहीं कहानी तब तक खत्म न होगी जब तक आपको यह न बता दूँ कि अंकल चौकीदार जरूर थे पर रात में भी वो अपनी शर्ट में दो पेन व एक छोटी डायरी लेकर जाया करते थे।

(1 जनवरी 2020, दिल्ली)
© आशीष कुमार, उन्नाव

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