अगर जूतों से रेस होती तो मैं भी खरीद लेता
इस साल जुलाई से मैंने अपने फिटनेस प्रोग्राम में रनिंग भी जोड़ ली। जुलाई में मेरी कोशिस ३ किलोमीटर दौड़ने की होती थी। अगस्त में मैंने इसे ५ से ७ किलोमीटर कर लिया। 22 सितम्बर 2024 को पहली बार डेकाथलान की दिल्ली वाली रेस में भाग लिया। 10 किलोमीटर मैंने 75 के अंदर कर लिया जोकि मेरा खुद का टारगेट था। मुझे बहुत ख़ुशी मिली। रेस के सर्टिफिकेट और मैडल बहुत संभाल के रखा है।
इसके साथ ही मन में बहुत से ख्याल आने लगे। लगा कि मुझे एक ऐसा लक्ष्य मिल गया है जिसमें कोई अंत न है। जितना मन करे , जिस टाइम मन करे , जितना तेज मन करे दौड़ो। किसी भी उम्र तक इसे किया जा सकता है। इसीलिए मैंने बहुत सी रेस में एनरोल करा लिया। मैंने टारगेट रखा कि 2026 में टाटा मुंबई मैराथन जोकि जनवरी में होगी , में भाग लूँगा।
इसी बीच काफी सारे जूते जोकि रनिंग के लिए अच्छे माने जाते है भी खरीदे। डेडिकेटेड फिटनेस वाच भी लेनी पड़ी। वेदांत दिल्ली मैराथन में मैंने 10 किलोमीटर में भाग लिया। मुझे पता न था कि यह बहुत अच्छी रेस मानी जाती है। रूट , सभी तरह की व्यवस्था , हर लिहाज से अच्छी थी। जब मैं इंडिया गेट के पास से दौड़ते हुए जा रहा था तो एक बुजुर्ग ने मुझे टोका कि जुटे बहुत अच्छे है तो मैंने कहा थैंक यू। अगली ही लाइन में बोले अगर जूते से रेस होती तो मै भी खरीद लेता। दरअसल वो व्यंग्य कर रहे थे क्युकि मै काफी धीरे दौड़ रहा था। वैसे भी लॉन्ग रेस में प्रैक्टिस और कितने साल से दौड़ रहे हो यह बहुत मैटर करता है। यह सच है कि आपकी स्पीड धीरे धीरे ही बनती है। रेस में बहुत से लोग मिलते है जो काफी उम्र दराज होते है पर बहुत अच्छी स्पीड से दौड़ते है।
मै उन अंकल की बात सुनकर मुस्कुराते होये आगे बढ़ गया। रेस में तमाम लोग एक दूसरे को मोटीवेट करते रहते है। मैंने उनकी बात का बुरा न माना और उनसे प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़ गया। मन में संकल्प लिया कि आने वाले दिनों में अपने महगे जूते को जस्टिफाई जरूर करूंगा।
- आशीष कुमार ,उन्नाव।
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