पुरन्दर का किला नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा (03 )
आशीष कुमार
अंततः किले के दरवाजे तक पहुंच गए। अब उसमें कोई लकड़ी का दरवाजा नहीं है। पूरी तरह से सन्नाटे से भरा, अजीब सीलन से भरी महक, गेट में लोहे के पुराने कुंडे में दरवाजे के कुछ अवशेष और न जाने कितनी घटनाओं का साक्षी। इस दरवाजे तक पहुँचने में पूरी तरह से पसीने से कपड़े गीले हो चुके थे. अब पुराने पत्थरो की सीढियाँ बनी थी. एक भी सीढ़ी चढ़ी न जा पा रही थी पर अब हम पहुंचने ही वाले थे। ऊपर जा कर देखा तो कुछ नहीं था। बस पहाड़ , कही कही पर कुछ पुराने दीवारे। यहाँ दूर तराई में गांव छोटे छोटे दिख रहे थे।
यहाँ से नवनाथ जी कुछ बड़ी रोचक बातें बताई , जैसे पुराने दिनों में इन किलों में हाथी भी रहा करते थे जो बहुतों को आश्चर्य का विषय लगता। लोग सोचते कि इतने ऊपर हाथी कैसे चढ़ कर आते ? दरअसल हाथी के छोटे छोटे बच्चो को ही ऊपर चढ़ा दिया जाता था और वही बाद में बड़े हो जाते थे। किले के ऊपर भी साल/२ साल तक के लिए पानी , अनाज की भी व्यवस्था हुआ करती थी। पुराने दौर में जब सेना की मजबूती घोड़े , हाथी की सेना समझी जाती थी, ऐसे किले जीतना बहुत ही कठिन था। ऊपर तक चढ़कर आने में ही सेना थक जाती फिर वो किसी भी लड़ाई में नकाम रहती। बहुत बार , जैसे ही दुश्मन का पता लगता , ऊपर से बड़े बड़े पत्थर लुढ़का दिए जाते। यही कारण था कि मराठा लम्बे समय तक अजेय बने रहे।
तमाम लोगों को यह लग सकता है कि यहाँ देखा क्या जाय ? ज्यादातर जगह पथरीली थी. अच्छा हुआ जो नवनाथ जी साथ थे। उन्होंने मुझे ऊपर पानी को इकठ्ठा करने वाली जगह दिखाई। सामने एक जगह पीने का पानी था जो वर्षा से अपने आप इक्क्ठा हो जाता था। दूर पहाड़ी पर एक मंदिर दिख रहा था जो किले का हिस्सा था। वो दिखने में ही बहुत दूर लग रहा था। हिम्मत जरा भी न था कि अब वहाँ क्या जाया जाय। नवनाथ जी जोर दिया और मैंने भी सोचा कि अब यहां तक आ गए तो वहाँ तक भी चला जाय।
मंदिर की सीढ़िया अब पास लगने लगी थी। ऊपर दो आदमी और कुछ बंदर नजर आ रहे थे। पास जाने पर पता चला कि वो दोनों सेना के जवान थे। उनकी ड्यूटी खत्म हो रही थी , अब बाद में कोई दो और जवान आएंगे। इतनी ऊंची जगह पर चढ़ना और ड्यूटी करना , सच में टफ टास्क था। यह शिव जी का प्राचीन मंदिर था। अंदर बहुत सकूँन महसूस हुआ। यहाँ पर हवा बहुत स्फूर्तिदायक थी। सारी थकान दूर हो गयी। और भी तमाम रोचक बातें है पर उन बातों को रहने देते हैं। काफी लम्बी सीरीज हो गयी है , आप भी पढ़ते पढ़ते तक गए होंगे। बस उपसंहार पढ़ लीजिये अच्छा है।
लौटे समय इतना थका हुआ था कि डैम देखने का प्लान कैंसिल कर दिया। भोर से पुणे की बस ली। रात 8 बजे पुणे एयरपोर्ट पर था। सबसे ज्यादा कमर और तलुवे दर्द कर रहे थे। नाइके के हलके वाले शूज होने के चलते चढ़ाई में आराम तो मिला पर पत्थरों की चुभन बहुत दर्द दे रही थी। फ्लाइट 11 बजे थी। एक जगह पर मसाज चेयर दिखी। उनके विज्ञापन पर नजर गयी। "रिलैक्स एंड गो" का दावा था कि उनकी मसाज चेयर में 5 मिनट , एक एक्सपर्ट मसाज देने वाले के 30 मिनट के बराबर है। मैंने 20 मिनट वाला , जोकि सबसे बड़ा और फुल पैकेज था , लिया और आँख बंद कर लेट गया। एक एक्सपर्ट मसाज करने वाले के दो घंटे के बराबर मसाज कराने के बाद और एक आम व्यक्ति के पुरे दिन की कमाई के बराबर रुपए देने के बाद जब उठा तो कम से कम कमर और तलुवे की हालत काफी ठीक हो चुकी थी।
पास में चाय वाले से चाय पूछी।
"80 रूपये "
"मिल्क है "
"नहीं मिल्क पावडर है "
"क्या यार इतनी मॅहगी चाय और दूध भी नहीं "
"मिल्क पावडर 600 रूपये किलो वाला है "
इसीलिए एयरपोर्ट पर कुछ लेने से , सिनेमाघर में पॉपकॉर्न खाने से बचता हूँ , उस दिन मन मार कर 600 रूपये किलो वाले मिल्कपॉवडर की चाय पी। पुणे में आखिरी अंतिम घंटे थे. यहाँ जीवन में तमाम नए अनुभव मिले थे। भारत में दक्षिण की ओर इतनी दूर तक पहली बार आया था। बहुत सारे रोमांचक, सुखद अनुभवों के साथ यात्रा समाप्त हुयी।
( समाप्त )
© आशीष कुमार,उन्नाव उत्तर प्रदेश।
यहाँ से नवनाथ जी कुछ बड़ी रोचक बातें बताई , जैसे पुराने दिनों में इन किलों में हाथी भी रहा करते थे जो बहुतों को आश्चर्य का विषय लगता। लोग सोचते कि इतने ऊपर हाथी कैसे चढ़ कर आते ? दरअसल हाथी के छोटे छोटे बच्चो को ही ऊपर चढ़ा दिया जाता था और वही बाद में बड़े हो जाते थे। किले के ऊपर भी साल/२ साल तक के लिए पानी , अनाज की भी व्यवस्था हुआ करती थी। पुराने दौर में जब सेना की मजबूती घोड़े , हाथी की सेना समझी जाती थी, ऐसे किले जीतना बहुत ही कठिन था। ऊपर तक चढ़कर आने में ही सेना थक जाती फिर वो किसी भी लड़ाई में नकाम रहती। बहुत बार , जैसे ही दुश्मन का पता लगता , ऊपर से बड़े बड़े पत्थर लुढ़का दिए जाते। यही कारण था कि मराठा लम्बे समय तक अजेय बने रहे।
(ऊपर से तस्वीर तो नहीं ले पाया पर यह ज़ूम तस्वीर बता रही है कि काफी ऊंचाई चढ़नी है )
तमाम लोगों को यह लग सकता है कि यहाँ देखा क्या जाय ? ज्यादातर जगह पथरीली थी. अच्छा हुआ जो नवनाथ जी साथ थे। उन्होंने मुझे ऊपर पानी को इकठ्ठा करने वाली जगह दिखाई। सामने एक जगह पीने का पानी था जो वर्षा से अपने आप इक्क्ठा हो जाता था। दूर पहाड़ी पर एक मंदिर दिख रहा था जो किले का हिस्सा था। वो दिखने में ही बहुत दूर लग रहा था। हिम्मत जरा भी न था कि अब वहाँ क्या जाया जाय। नवनाथ जी जोर दिया और मैंने भी सोचा कि अब यहां तक आ गए तो वहाँ तक भी चला जाय।
(समझ सकते है कि हम कितने ऊपर चढ़ कर गए थे )
किले का ऊपरी भाग काफी हद तक समतल है। रास्तें में एक परिवार सुस्ता रहा था। हम आगे बढ़े और रास्ते में पानी को इक्क्ठा करने के कई स्थान मिले। मोबाइल बहुत याद आ रहा था कि काश ये सब जगहें , तस्वीरों में कैद कर ली जाये। नवनाथ जी तमाम बातें बताते चल रहे थे , जैसे कि आस पास के युवा कभी कभी किसी खास मौके पर आकर इन पानी की जगहों को साफ कर जाते है। ज्यादतर जगहों पर लगभग 10 लाख लीटर तक पानी जमा हो सकता था।
मंदिर की सीढ़िया अब पास लगने लगी थी। ऊपर दो आदमी और कुछ बंदर नजर आ रहे थे। पास जाने पर पता चला कि वो दोनों सेना के जवान थे। उनकी ड्यूटी खत्म हो रही थी , अब बाद में कोई दो और जवान आएंगे। इतनी ऊंची जगह पर चढ़ना और ड्यूटी करना , सच में टफ टास्क था। यह शिव जी का प्राचीन मंदिर था। अंदर बहुत सकूँन महसूस हुआ। यहाँ पर हवा बहुत स्फूर्तिदायक थी। सारी थकान दूर हो गयी। और भी तमाम रोचक बातें है पर उन बातों को रहने देते हैं। काफी लम्बी सीरीज हो गयी है , आप भी पढ़ते पढ़ते तक गए होंगे। बस उपसंहार पढ़ लीजिये अच्छा है।
लौटे समय इतना थका हुआ था कि डैम देखने का प्लान कैंसिल कर दिया। भोर से पुणे की बस ली। रात 8 बजे पुणे एयरपोर्ट पर था। सबसे ज्यादा कमर और तलुवे दर्द कर रहे थे। नाइके के हलके वाले शूज होने के चलते चढ़ाई में आराम तो मिला पर पत्थरों की चुभन बहुत दर्द दे रही थी। फ्लाइट 11 बजे थी। एक जगह पर मसाज चेयर दिखी। उनके विज्ञापन पर नजर गयी। "रिलैक्स एंड गो" का दावा था कि उनकी मसाज चेयर में 5 मिनट , एक एक्सपर्ट मसाज देने वाले के 30 मिनट के बराबर है। मैंने 20 मिनट वाला , जोकि सबसे बड़ा और फुल पैकेज था , लिया और आँख बंद कर लेट गया। एक एक्सपर्ट मसाज करने वाले के दो घंटे के बराबर मसाज कराने के बाद और एक आम व्यक्ति के पुरे दिन की कमाई के बराबर रुपए देने के बाद जब उठा तो कम से कम कमर और तलुवे की हालत काफी ठीक हो चुकी थी।
पास में चाय वाले से चाय पूछी।
"80 रूपये "
"मिल्क है "
"नहीं मिल्क पावडर है "
"क्या यार इतनी मॅहगी चाय और दूध भी नहीं "
"मिल्क पावडर 600 रूपये किलो वाला है "
इसीलिए एयरपोर्ट पर कुछ लेने से , सिनेमाघर में पॉपकॉर्न खाने से बचता हूँ , उस दिन मन मार कर 600 रूपये किलो वाले मिल्कपॉवडर की चाय पी। पुणे में आखिरी अंतिम घंटे थे. यहाँ जीवन में तमाम नए अनुभव मिले थे। भारत में दक्षिण की ओर इतनी दूर तक पहली बार आया था। बहुत सारे रोमांचक, सुखद अनुभवों के साथ यात्रा समाप्त हुयी।
( समाप्त )
© आशीष कुमार,उन्नाव उत्तर प्रदेश।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें