सोमवार, 28 अप्रैल 2014

इलाहाबाद पूर्व का आक्सफोर्ड (2)

इलाहाबाद पूर्व का आक्सफोर्ड (2)

पूर्व में मैने जिक्र किया था कि लगातार पढाई करने में इलाहाबाद का कोई जवाब नहीं है । एक वाकया याद आ रहा है मेरी ट्रेन पयाग स्टेशन से रात में 3.50 बजे थी मै पास ही एक लाज में वऱिष्ठ गुरु के पास ठहरा था मै परेशान था कि मै उतने सुबह कैसे उठ पाउगा ? गुरु ने कहा कि परेशान मत मैं उठा दूगा । मै बहुत थका था लेटते ही नींद आ गई । गुरु जी वर्णवाल वाली भूगोल पढ़ रहे थे । रात में १ बजे नींद खुली तब भी गुरु जी पढ़ रहे थे । मैं पुनः एक सो गया । 3 बजे मुझे उठाया तब भी वह पढ़ रहे थे मुझे बहुत आश्चर्य हुआ मैंने पूछा कि क्या मेरे लिए जग रहे थे? वो बोले कि मैं तो रोज ही 4 बजे तक जग कर पढता हूँ । यह 2008-09 की बात होगी मुझे यह बात बहुत नयी लगी । एक स्कूल के दिनों में मम्मी रोज सुबह मुझे 5 बजे उठा देती थी मैं कम्बल या चद्दर ओढ कर बैठता था उसका बहुत सहारा मिला करता था मौका देख कर सो जाता था पर मम्मी बहुत सख्त थी बीच बीच में पूछती रहती सो रहे हो मैं चिल्ला कर कहता कहॉ सो रहा हूँ । पर वो अक्सर मुझे सोते देख मेरे सामने से किताब हटा कर पूछती पढ़ रहे हो? जाहिर है कि मैं पकड़ा जाता क्योंकि चौक कर जगने पर देखता कि किताब सामने न होने पर भी चिल्ला कर बोल रहा हूँ ।
तैयारी के दिनों मे कुछ घन्टे खुद ही पढ़ने लगा पर इलाहबाद वाले गुरु की लगन देख कर असली गति आयी । पढ़ने का जनून सा हो गया । चितक जी की भी बात जोड कर कहूं तो चाहे जितनी गर्मी लगे चाहे जितना पसीना बहे पढते रहो कितना ही जाड़ा क्यों न हो पढते रहो किसी के लिए नहीं अपने लिए । आप एक सफलता के लिए परेशान हो मैं कहता हूँ आप इतना करो तो सही असफलता नामक शब्द आप के शब्द कोश से मिट जायेगा ।

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

जो परेशान है

जो परेशान है 
इस ब्लॉग  के जरिए बहुत से नये और अच्छे मित्रों से परिचित होने का अवसर मिला है. आज कुछ ऎसी बात करन जा रहा हूँ जो हर किसी से जुड़ी है . कुछ दिनों पहले यहाँ  पर मुझे एक मैसेज मिला. एक मित्र विदेश में जाब कर रहे हैं बहुत परेशान थे देश आने के लिए और सरकारी सेवक बनने के लिए... इस के पहले एक दोस्त का व्हाट एप पर मैसेज आया था कि सर कोई नावेल बताये बहुत परेशान हूँ कुछ प्रेरणादायक हो. 

आज भी इक मैसेज मिला सार था कि संघर्ष कर रहे हैं. 
मैंने सबसे वादा किया था कि एक पोस्ट इस पर जरूर करूगा आज मन हल्का करने का प्रयास करता हूँ. 
सच तो यह है मेरे दोस्त कि यहाँ हर कोई परेशान है जो बेरोजगार है नौकरी पाने के लिए परेशान है जो नौकरी में है वह सरकारी नौकरी पाने के लिए परेशान है जो सरकारी नौकरी में है वह बड़ी नौकरी पाने को परेशान है और जो बड़ी नौकरी में है वह कलेक्टर बनने के लिए परेशान है थोड़ा और बात करें तो जो मुख्यमंत्री है वह पधानमंत्री बनने के लिए परेशान है और जो पधानमंत्री है वह इतना परेशान है कि खामोशी इख्तियार कर लेता है. 
सच तो यह है कि परेशान मैं भी हूँ आप भी है हर कोई परेशान है. वजह पता क्या है ? जो होना चाहिए और जो है उसके बीच का अंतर । आप जो बनना चाहते थे और जो बन पाए उसके बीच का तनाव । जो बेरोजगारी झेल रहे हैं उन्हें यह जानकर बहुत हैरानी होगी पर सच यही है कि आप से कहीं ज्यादा तनावग्रस्त नौकरी कर रहे मित्र उठा रहे हैं । ( आशा करता हूँ मैं आप के मन की बात रख पाया हूँ पोस्ट अधूरी है बहुत सी बातें हैं अगला भाग आपके कमेंट पर निर्भर करेगा । मैं कभी अपनी पोस्ट के लिए लाइक या शेयर का आग्रह नहीं करता हूँ वजह मुझे लगता है कि पोस्ट में गुणवत्ता होगी तो लोग इक रोज खुद ही साथ आ जायेेगे । यह पोस्ट अपवाद सरीखी है सबको नही पर जिसको इस की जऱूरत उनके साथ इसे जरूर शेयर करे. पेज पर भीड़ बढ़ाने का उद्देश्य जरा भी नहीं है पर समान विचार धारा के लोगो को इससे जरूर जोडे. )

इलाहाबाद : पूर्व का आक्सफोर्ड वाला शहर

इलाहाबाद : पूर्व का आक्सफोर्ड वाला शहर 

मेरे बड़ी हसरत रही है कि किसी नामचीन विश्वविद्यालय से पढाई करू और तैयारी करने के लिए इलाहाबाद में रहूँ । दोनों ही इच्छा अधूरी रह गयी । इलाहबाद से मेरी दोनों तरह की यादें जुड़ी हैं । इसी शहर में मेरे सारे पढाई से जुड़े मूल डाक्यूमेंट रेलवे स्टेशन पर किसी ने पार कर दिया तो दूसरी ओर चिंतक जी जैसे अजीज दोस्त दिये । इन्द्रजीत राना, अरविन्द चौधरी (दोनों असिस्टेंट कमांडेंट ), शिवेन्द (सीपियो इंसपेक्टर ), अमित गुप्ता ( पी. सी. एस. आयोग ) अनिल साहू (टी. जी टी ) जैसे मित्रों की लम्बी फेरहिस्त है जिनकी कहानी सुनकर सुस्त से सुस्त युवा भी दिलोजान से पढाई करने लगे.. जिनकी जीवन कथा मायूस, हताश युवा के लिए अमृत से कम न होगी । इस ब्लॉग  के माध्यम से बहुत नये इलाहाबादी मित्र जुड़ गए हैं मुझे टूटे हुए अंतराल जुड़ने की ख़ुशी है ।
मुझे जरा हिचक हो रही हैं इस पर  ऐसी पोस्ट करते हुए क्योंकि इसमें डायरेक्ट पढाई से जुड़ा कुछ भी नहीं है । पोस्ट करने के पीछे कुछ मित्रों का इलाहाबाद से जुड़े संस्मरण लिखने का पुराना आग्रह था । पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ कि मैं इलाहाबाद में कभी भी नियमित नही रहा हूँ । मेरे सारी पढाई मेरे शहर उन्नाव में ही हुई हैं । इलाहाबाद मैं २ , ३ महीने में एक दो दिन के किताबें खरीदने जाता था इस दौरान ही मैने इस खूबसूरत शहर को जाना । २० , २५ दिनों के अनुभवों के आधार पर ही लिखने की जुर्रत कर रहा हूँ । गलती से अगर शहर के अनुरूप न बन पड़े तो माफ करना । यह 2006 से 2010 तक के दौरान का इलाहाबाद है ।
मैने बताया कि इलाहाबाद किताबो के लिए जाता था पता है क्यों क्योंकि इलाहाबाद का खरा दावा है कि उससे सस्ती किताबें कोई शहर उपलब्ध नहीं करा सकता है । आप हैरानी होगी कि यहाँ योजना, कुरूक्षेत्र मे भी कुछ ऱुपये की छूट मिल जाती हैं. दर्पण, कृानिकल की बात ही मत करिए ।
इलाहाबाद की सबसे अच्छी बात, चीजों का सस्ता होना है उन दिनों समोसा और चाय 1 रूपये में मिला करती थी (ताज़ा रेट क्या है? ) । किसी यार दोस्त की आवभगत 10 रूपये में अच्छे से की जा सकती है । शहर में बहुत ही मिठास है यहाँ पर अनजान मित्र का भी स्वागत बहुत हर्ष से किया जाता है । खाना बनाने खासकर पनीर में बड़े बड़े खानसामे मात खा जाय । खाने से याद आया कि दोपहर में बहुतायत साथी दाल चावल ही बनाते हैं (थे ) इससे दोहरा फायदा होता है समय की बचत और पेट भी हल्का (है न सीखने वाली बात ) । दोपहर में हल्की नींद लेना वहाँ के जीवन का अनिवार्य हिस्सा हैं.. अ.. अ.. क्या लगता कि वो यह सब करते हैं तो पढते कब है?
अगर आप को कभी कोई इलाहाबादी यह कहे कि पढ़ने में अभी तुम बच्चे हो तो बुरा मत मानना । जितनी देर, एकाग्र होकर वह पढ सकते हैं आप से शायद ही हो पाये । चिंतक जी वाली कहानी याद है न कैसे मुझे डॉटा था कि इस कमरे में भी बात नहीं होगी । सब बातें ठीक है पर एकाग्रता से समझौता नहीं ।
इलाहाबाद से मैने बहुत कुछ सीखा है पर एक जरुरी चीज़ न सीख पाया.. वह है सर कहना । शायद यह छोटे शहर के, साधारण कालेज की पढ़ाई का नतीजा है कि हमउम्र के लिए सर नहीं निकल पाता । इलाहाबाद मे सर के विशेष मायने है सर मतलब केवल रोब गाठने से नहीं है । सर आप के हर काम में मदद करते हैं... कमरा दिलाना, सामान, किताबें, प्रेम मोहब्बत से लेकर मार पीट तक... ( भागीदारी भवन में एक सर काफी परेशान लग रहे थे पता चला कि किसी को साथी के रूम पर पुलिस गई थी सर उसको हास्टल में छुपाने के लिए परेशान थे ) भागीदारी भवन में ही मुझे किताब की जरूरत थी मैने एक मित्र को रूपये दिए । मित्र जब किताब लाये तो पता चला कि उसके दाम बढ़ गये । मैने जब रूपये देने चाहे तो नाराज होकर बोले कि सर कहने के मायने जानते हो । इलाहाबाद मैं सच में नहीं जानता था ( राना सर किरण इतिहास के 10 रूपये आज भी मुझ पर उधार है पर मैं उन्हें चुका नही सकता शायद कभी नहीं )


यदि आप इस बार आईएएस के प्रीएग्जाम में बैठने जा रहे है तो आपके लिए कुछ जरूरी सलाह



नोट: इस पोस्ट के लिए अपने गैलेक्सी फोन का जिसके चलते इतनी बड़ी पोस्ट हिंदी में लिख पाया और एक ३ घण्टे के ट्रेन सफर का आभारी हूँ । इलाहाबाद क्या आप इसे पढ़ रहे है ? पोस्ट जारी रहेगी । इलाहाबाद के मित्र कृपया इसे शेयर करे.. बदलाव के बारे में बताएं

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

न्यू डील कार्यक्रम


न्यू डील कार्यक्रम : 1929की मंदी से निपटने के लिएअमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट ने1933 से इसकी शुरूआत की । इसमें रिलीफ, रिकवरी रिफोर्म परजोर दिया गया । इसे 3 आर केनाम से भी जाना जाता है ।रिलीफ यानी राहत गरीबी भुखमरी बेरोजगारी से दी गई ।रिकवरी का संबंध अर्थव्यवस्था से था । रिफोर्म यानी सुधार वित्तीय संस्थानों मेंकिया गया ।

विश्व आर्थिक मंदी

विश्व आर्थिक मंदी : 1929 में अमेरिका के शेयर बाजार में गिरावट के साथ इसकी शुरूआत मानी जाती है । पहले विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में वस्तुओं के उत्पादन में बहुत तेजी आई । उत्पादन में इस तेजी के अनुकूल बाजार में खरीदने की शक्ति का विकास न हुआ था । यूरोप के देश जो अमरीका के लिए बजार थे पहले विश्व युद्ध की मार से पीड़ित थे। इस प्रकार इस संकट का कारण वस्तुओं की कमी न हो कर उनका अति उत्पादन था । बड़े स्तर पर बेरोजगारी, उत्पादन में कमी, गरीबी और भुखमरी इस मंदी के परिणाम थे. 1933 में रूजवेल्ट अमेरिका के राष्ट्रपति बने जिन्होंने ने " न्यूडील " कार्यक्रम लागू किया । इसमें मजदूरों की दशा सुधारने और रोजगार पैदा करने के लिए सरकारी कदम उठाये गए

रविवार, 13 अप्रैल 2014

संगम साहित्य

संगम साहित्य :  दक्षिण भारत के प्राचीन समय के  इतिहास के बारे में संगम साहित्य की उपयोगिता अनन्य है . इस साहित्य में उस समय के तीन राजवंसो के बारे में जिक्र है  चोल , चेर , पाण्ड्य . संगम तमिल कवियों का संघ था . यह पाण्ड्य शासको के संरक्षण में हुए थे . कुल तीन संगम का जिक्र हुआ है . प्रथम संगम मदुरा में अगस्त्य ऋषि के अध्यक्षता में हुआ था . तोल्क्पियम , सिल्प्दिकाराम , मणिमेखले कुछ महत्वपूर्ण संगम महाकाव्य है . जैसा कि प्राचीन भारतीय इतिहास ग्रंथो में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णनों की भरमार मिलती है संगम साहित्य भी इसका अपवाद नही है . इसलिए इन ग्रंथो को आधार मानकर इतिहास लिखना उचित नही माना गया है फिर भी   दक्षिण भारत के प्राचीन समय के  इतिहास की रुपरेखा जानने में यह बहुत सहायक है .

बुधवार, 2 अप्रैल 2014

EVERGREEN TOPICS FOR UPSC IN HINDI


       वैसे तो सिविल सेवा में कहा जाता है कि सूरज और उसके नीचे आने वाली सभी चीजो के बारे में पूछा जा सकता है और यह बात सही भी है। कभी भी एक तरह का ट्रेंड नही रखा जाता है। फिर भी कुछ ऐसे टॉपिक है जो हमेशा ही आयोग की  नजरो में रहे है। यहाँ पर मै कुछ ऐसे ही टॉपिक के बारे में बात कर रहा हूँ जिनको एग्जाम से ठीक पहले दोहराना , काफी लाभदायक हो सकता है। आप इनसे जुड़े सभी आयामों के बारे गहराई से जानने का प्रयास करे।
पेसा १९९६ 
नीति निर्देशक तत्व , मूल अधिकार , मौलिक कर्त्तव्य 
१९०९ , १९१९, १९३५  के अधिनियमों के प्रावधान 
संसद , इसकी सीमितियां , कार्य संचालन 
संकटापन्न जातियाँ  
पंचायती राज 
वनो के विविध प्रकार 
मिट्टियाँ 
मुद्रास्फीति कारण और इसे स्थिर करने के उपाय 
पूजीगत लाभ 
भारतीय बैंकिंग प्रणाली
रिज़र्व बैंक 
विविध प्रकार के घाटे यथा राजस्व घट , राजकोषीय घाटा , प्राथमिक घाटा आदि 
न्यायिक प्रणाली ,सर्वोच्च न्यायालय  

(आशा है आपको मेरा यह प्रयास पसंद आया होगा। समय मिलने पर इसका अगला भाग लिखने का प्रयास करुँगा। कृपया ध्यान दें इन टॉपिक के परे  भी बहुत कुछ आता है इसलिए प्लीज अपने स्तर पर भी प्रयास करते रहे , धन्यवाद।  इलेक्शन ड्यूटी के चलते मैं ३० दिनों के लिए स्टैटिक मजिस्ट्रेट के तौर पर व्यस्त रहने वाला हूँ इसलिए पोस्ट कुछ छोटी और अनियमित हो सकती है। मेरी पूरी कोशिस रहेगी कि यहाँ कुछ वक़त देता रहूँ। 





बुधवार, 26 मार्च 2014

चिंतक ( तीसरा और फिलहाल अंतिम भाग )


चिंतक ( तीसरा और फिलहाल अंतिम भाग )

         जिंदगी में हमेशा वैसा ही नही  होता जैसा आप सोचते है। चिंतक जी के साथ यही हुआ।  मई में दिल्ली चले गये थे। अगस्त में प्री का रिजल्ट आया।  उनका हुआ नही था।  अब आप विचार करे उनकी कैसी दशा  रही होगी पर चिंतक जी उनमे थे जो टूट नही सकते थे। हमेशा कुछ न कुछ खोज ही लेते थे। अब कोचिंग में उतना मन तो लगता नही था। खाली समय में बोर न हो इसलिए एक अजीब शौक पाल लिया था। हिन्दू समाचार पत्र से तस्वीरे काट काट कर एक फ़ाइल बनाने लगे।   दिल्ली से लौटने के बाद मै उनसे इलाहाबाद मिलने गया तो मैंने उनके पास बहुत सी चीजो में इस फ़ाइल को भी देखा था।

    (समय के अभाव में मै उनकी कहानी पूरी नही कर रहा हूँ। चिंतक जी के बारे जितना लिखना चाहता था उससे ज्यादा मेरे पास विचार जमा हो गये है। समय मिलने पर मै उनकी कहानी जरुर पूरी करुँगा।  वित्त वर्ष का अंत हो रहा है विभागीय सक्रियता काफी बढ़ गयी है।  अगले माह चुनाव ड्यूटी में काफी समय मिलने की आशा है तब इस पूरा करुगा। चिंतक जी के बारे में आपकी काफी जिज्ञासा होगी कि वो अब कहाँ और क्या कर रहे है ? संक्षेप में , यही बता सकता हुँ। इस वर्ष की शुरुवात में मेरी उनसे बात हुई तो मुझे उनकी एक बात याद रह गयी। कह रहे थे कि बेरोजगारी क्या होती है तुम क्या जानो। यह उनका दुःख था वरना वह मुझे उन दिनों से जानते थे जब मै टुअशन पढ़ाकर अपना खर्च निकला करता था। मैंने उन्हें कोई जबाब नही दिया। उनके बारे में बात होती ही रहेगी पर एक बात जरुर कहना चाहुँगा सही समय पर सही निर्णय  न लेने से आपका जीवन बहुत कष्ट में पड़ सकता है। निर्णय हमेशा यथार्थवादी ले। ) 

मंगलवार, 25 मार्च 2014

चिंतक (भाग २ )

चिंतक (भाग २ )

भागीदारी भवन में मैंने चिंतक जी से बहुत सी बाते सीखी।  उनकी हर चीज अनोखी होती थी। जाड़े के दिनों में वह कम कपड़े पहनकर पढ़ाई करते थे उनका कहना कि जब शरीर में जाड़ा लगेगा तो नींद नही आयेगी। सुबह जल्दी उठ कर पढ़ने बैठ जाते थे। यह बात विरलो में ही होती है मैंने कितनी कोशिस कि पर सुबह उठकर पढ़ाई करना न सीख पाया। एक और अनोखी बात और याद आ रही है एक दिन मैंने उन्हें भारत का मानचित्र लिए देखा मै उनके पास १ घंटे बैठा रहा पर उन्होंने मेरी और न देखा। काफी देर बाद वो मेरी और मुखातिब हुए मैंने उनसे काफी विनती कि वो नक़्शे में क्या देख रहे थे पर वो बोले समय आने पर बताऊगा। वो समय तब आया जब मुझे भी सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा देने का अवसर मिला। चिंतक जी ने मुझे बताया कि मैप से भी पढ़ाई करनी चाहिए। उनके अनुसार मैप पर प्रतिदिन कुछ समय देना चाहिए। सच में ये चीज हटकर लगी। 
 चिंतक जी जब मेरी मुलाकात हुई थी तब उनके सिविल सेवा में २ अवसर समाप्त हो चुके थे। पहली बार मुख्य परीक्षा देने के बाद दूसरी बार में उनका प्री में ही न हुआ था। उन्हीं दिनों वह मुखर्जी नगर के बारे में बाते करने लगे। मुझसे बताने लगे कि इल्लाहाबाद में कोचिंग करने से कुछ ने होगा। दिल्ली में गति है वहाँ एक बार कोचिंग करलो बस। मैंने उनसे बताया कि मै आपके साथ न चल सकुंगा। बात ५०००० हजार रुपयों की थी। मैंने उनसे पूछा कि तुम इतने रुपए कहा से लाओगे तो उनका जबाब था कि आप के अंदर लगन हो तो सब कुछ हो जाता है। अगर जिंदगी में रिस्क नही लोगे तो पिछड़ जाओगे। उनका कहना सही था पर मुझे पता था कि मेरे घर में ऐसा प्रस्ताव कभी न स्वीकारा  जायेगा। खैर अगले साल वो प्री देने के तुरंत  बाद दिल्ली चले गये। पैसे उनके रिश्तेदारों , मित्रो ने जुटाया था। सबको चिंतक जी पर यकीन था। मुझे उनकी मेहनत पर भरोसा था।
मेरी उनसे बात होती रहती थी। वो मुझे हर बात शेयर करते थे हर तरह की बात करते थे। एक जरूरी बात तो छूट ही गयी चिंतक जी मुझसे मिलने के कुछ दिनों बाद ही बता दिया था कि सफलता के लिए ब्रम्ह्चर्य सबसे जरूरी चीज है उनके अनुसार ज्यादातर लोग इसके लिए ही असफल हो जाते है। अब आप समझ सकते है वो कैसी शख्सियत के मालिक थे। समय आने पर मै उनका सबसे करीबी बन गया पर याद नही आता कि वो कभी घटिया मजाक तक किया हो। 
उनके दिल्ली के दिनों की कुछ बाते याद आ रही है। जाते ही उन्होने  १५०-१५०  रुपए वाली ६ , ७ टी शर्ट खरीद ली। मुझसे बताया कि  ऐसा करके वह रोज क्लास करने टी शर्ट  बदल बदल कर जाते रहे और अपनी सही स्थिति को छुपा लिया। चिंतक जी से कोई भी मिले तो निश्चित ही उनसे  प्रभावित हो जायेगा। कितना ही पढ़ाकू क्यों न हो पर उसे खुद लगेगा कि पढ़ाई के नाम पर मै तो कुछ नही कर रहा हु असली पढ़ाई तो मुझे इस शख्श से सीखना चाहिए। इतिहास और हिंदी साहित्य उनके  विषय था। दोनों विषयो के नामी संस्थानो में एडमिशन लिया था। हिंदी साहित्य वाली क्लास में पहली बार उनका मन भटकने लगा। कोई लड़की उनके पास रोज बैठने लगी थी नोट्स भी मांगा होगा। मुश्किल से चार पांच रोज हुए होगे चिंतक जी को अपनी गलती का अहसास हुआ। वो अपने कमरे में आकर ग्लानि से अपना सर दीवार में पटक दिया। उन्हें इस बात का पश्चाताप हो रहा था कि उधार ले कर वो यहाँ प्रेम मोहब्ब्त करने नही आये है। यह उन लोगो के साथ धोखा होता जिन लोगो ने उनके लिए रुपए जुटाए थे। ( मुझे एक लोगो का जिक्र करना जरूरी लग रहा है। उनके एक दोस्त है जिनकी पत्नी सरकारी स्कूल में शिक्षामित्र है  शिक्षामित्र का वेतन तो आपको पता ही है कितना होता है ३००० रुपए। ऐसे लोगो ने उन्हें धन दिया था कि एक रोज चिंतक जी सफल होगे तो उनके भी दिन  बदल जायेगे।)  ये बात उन्होंने मुझे से खुद बतायी थी  ये बात भी मेरे लिए अनोखी थी। मानव  मन कितना चंचल होता उस पर चिंतक जी ने मन पर विजय पाली थी।   

सोमवार, 24 मार्च 2014

LESSONS FORM A CIVIL ASPIRANT

ये पोस्ट का ख्याल बहुत लम्बे समय से था पर लगता था कि लिखू किसके लिए।  पर अब सही वक्त  है उसकी कहानी बताने का। यह कहानी सच्ची है मेरे दोस्त से जुडी है।सुविधा के लिए उसका नाम चिंतक रख लेते है।  उसका सही नाम नही लिख रहा हु पर शहर का जिक्र सही सही कर रहा हु। यह कहानी किसी कि भी हो सकती है मेरी आपकी आपके दोस्त की किसी की भी। सफल लोगो की कहानी बहुत सुनी होगी , बहुत से साक्षात्कार पढ़े होगे पर आप ने कभी किसी हारे हुए इंसान से बात की है। वास्तव में एक सफल व्यक्ति से कही ज्यादा असफल व्यक्ति से सीखा  जा सकता है। 
वो कक्षा १० में था तब उसके किसी टीचर ने बताया कि सबसे बड़ी नौकरी आईएएस की  होती है बस इतना काफी था उसके लिए। बहुत जुनूनी था वह। उसने सोच लिया कि कुछ भी हो जाये पर वह आईएएस बन कर ही मानेगा। जैसा कि हर कथा नायक के साथ होता है हमारे इस कथा नायक इस आर्थिक दशा बहुत खराब थी। इलाहाबाद के एक छोटे से गाव से वह था घर में एक छोटी सी दुकान थी जिसमे उसके पिता बैठते थे। खेती इतनी कम थी कि वह और उसकी माँ उसे टैक्टर या बैलों से जुतवाने के बजाय  फावड़े से ही जोत लेते थे। ये सब इस लिए बता रहा हु ताकि पता चले इतनी विकट परिस्थिति में भी वो अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित था। 
मेरी उसके मुलाकात लखनऊ के भागीदारी भवन में हुई थी। भागीदारी भवन , आर्थिक रूप से कमजोर पर मेधावान छात्रो के लिए निःशुल्क आवास , कोचिंग , सलाह देने के लिए है (कभी उसके बारे में विस्तार से लिखूगा ) . 
भागीदारी भवन में १०० लड़को में वो अलग था। हमेशा रूम में रहना , किसी से भी बात न करना , समय पर नास्ते के लिए निकलना। एक कमरे में दो लोग रहते थे। मेरी पहली बार उसके रूम में ही मुलाकात हुई थी। उसके रूम पार्टनर से मै कुछ पूछ रहा था चिंतक जी ने  बहुत तेज आवाज ने कहा इस कमरे में बात नही होगी। उन दिनों मेरी दशा खरगोश जैसी थी हमेशा डरा हुआ। छोटे शहर से , साधारण कॉलेज से पढ़ा और बहुत साधारण नम्बरो से पास।चिंतक जी पूर्व के ऑक्सफ़ोर्ड कहे जाने वाले इल्हाबाद विश्वविदालय से पढ़ कर निकले थे।  सबसे बड़ी बात स्नातक की परीक्षा पास करते ही आईएएस का एग्जाम दिया और  पहली ही बार में आईएएस की प्री परीक्षा पास कर ली थी। ये बात २००७ की है।  ऐसे में चिंतक जी द्वारा डॉट दिया जाना बुरा नही लगा। महान गुरु तो पहले पहल डाटते ही है लोगो के पहचान करना मुझे आता था मैंने भी सोच लिया था कि अगर कुछ सीखना है तो चिंतक जी से ही सीखना है। । सच कहु तो अगर आज जो भी मैंने पाया है जो भी सफलता पायी है इसमें चिंतक जी का अप्रत्यक्ष  रूप में हाथ है। उनके जोश और जूनून को देखते ही बनता था। मैंने उन्हें कभी अपने अभावो का रोना रोते नही देखा। उन दिनों सिविल सेवा में कुछ ऐसे लोग सफल हो रहे थे जो बहुत ही साधारण थे। रिक्शे वाले के लड़के , मजदूर , सब्जी बेचने वाली  की  बेटी। जो ऎसी खबरो को बहुत गम्भीरता से पढ़ते। मै ऎसे परिवार से था जहाँ ज्यादा आभाव तो नही था पर जिम्मेदारी जल्द उठानी थी। मै कर्मचारी चयन आयोग की तैयारी कर रहा था। आईएएस को ज्यादा महत्व नही देता था  क्योकि मुझे लगता था एक जॉब मिल जाये बस। चिंतक जी से मिलने के बाद मै भी सिविल सेवा में कूद पडा पर साथ में कुछ और एग्जाम भी देता रहा। चिंतक जी की सोच थी कि सिविल सेवा के अलावा दूसरी परीक्षा देने से भटकाव होगा। अर्जुन की तरह केवल एक लक्ष्य। बस यही पर मेरा उनसे मतभेद था। मेरा यह सोचना था कि जोश और जूनून कितना क्यों न हो। धन के आभाव में ये सब व्यर्थ है।

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