मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

Two book of Neeraj Musafir

नीरज मुसाफिर की दो किताबे

दो किताबें और आ गयी । अब लग रहा कि काफी लोड हो गया है । अब जब तक सारा खत्म न हो जाये  तब तक कोई नया आर्डर नही ।

आज जो किताबे आई है वो यात्रा विवरण है । नीरज जी के बारे में अभी हाल में ही सुना था फेसबुक पर ।
दुनिया में विरला ही कोई होगा जिसे घूमना पसंद न हो । पर यायावरी करना सबके बस की बात नही । जरूरी नही कि आपके पास बहुत पैसा हो तो घूम सको। ये किताबे कम पैसे में घूमने का विवरण देती है । एक में तो सायकल से ही घूमने का विवरण है ।

समय मिलने पर , मैं भी घूमने का प्लान बना ही लेता हूँ पर अभी तक पुरे मन के साथ नही घूम सका हूँ, कुछ प्रतिबद्धता है ।
भारत सरकार, अपने कर्मचारी को हर 4 साल में भारत घूमने का ख़र्चा देती है (LTC)।
मेरी एक लैप्स हो गयी निकल ही न पायाअब जब भी निकलूंगा  तो एक बार में ही सब खत्म कर दूंगा पता नही जिन्दगीं की   दौड़ भाग कब खत्म होगी ।

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

Pushpashpant ji ki ek book

पुष्पेश पंत जी की एक बुक

पहले पहल इनके लेख किसी पेपर में पढ़े थे । बहुत अच्छे लगे थे । फिर इन्हें एक रोज शुक्रवार पत्रिका में कढ़ी के बारे बताते पढ़ा तो चौक गया , लगा कि ir का एक्सपर्ट  आदमी  ये क्या  करने लगा पर कुछ लोग बहुआयामी पतिभा के धनी होते है । पंत जी का लेखन भी बहुआयामी है ।
ये किताब मैंने जून 17 में अमेज़न से ली थी । बुक के आर्डर में भी एक बवाल हो गया था सोचा था उस बवाल पर अलग से पोस्ट लिखूंगा पर वक़्त न मिला । आज जिक्र हुआ तो कुछ बता देता हूँ दरअसल ये बुक का प्राइस 125 रूपये था और डिलीवरी चार्ज 175 रूपये, जबकि मैंने कई बुक एक साथ ली थी ताकि फ्री डिलेवरी मिले । जब आर्डर दिया था तब अमेज़न ने फ्री डिलेवरी दिखाया था ।
मैंने इसके बिल को भी सभाल कर रखा था ताकि अपने तमाम पाठको को अमेज़न की लूट दिखा सकूँ वो किस तरह से ठगते है ।
खैर , मेरी प्रवत्ति तो 10 रूपये भी बर्बाद न करने की है यहाँ तो बात 175 की थी। यह तो वही मसल हो गयी 9 की लकड़ी और 90 रूपये चिराई । अब ज्यादा विस्तार में न बताने का वक़्त नही है बस अंत में हुआ ये कि मुझे सेलर ने सम्मानपूर्वक 175 रूपये का चेक भेज दिया साथ में यह आग्रह कि उसे मैं अमेज़न पर 5 स्टार दे दू । गनीमत यह है उसका नाम नही बता रहा हूँ यही काफी है ।
अब पुस्तक के बारे में।कुछ पुस्तके होती सरल है पर आप चाह कर भी तेजी से नही पढ़ सकते वजह उनमे ज्ञान दबा दबा कर भरा जाता है।इस पुस्तक में बहुत से कांसेप्ट है जो बेहद सरलता से समझाये गए है,
मजा आ गया पढ़ कर , यह अलग बात है देखने में यह बुक बेहद पतली है पर इसको पढ़ने में काफी वक़्त लग गया । कम से कम एक दर्जन बैठक में खत्म हो पायी है । यह पुस्तक सीधा सीधा upsc के mains के gs के कोर्स से जुडी है पर आप इसे शौकिया तौर भी पढ़ सकते है ।

आशीष , उन्नाव ।

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

diwaswapn : A novel by GijuBhai



दिवास्वप्न : गिजुभाई का एक नावेल 


पिछले कुछ दिनों से गिजुभाई का प्रसिद्ध नावेल दिवास्वप्न पढ़ रहा था। वैसे गिजुभाई का नाम शायद आपके लिए नया हो। मैंने भी इनके बारे काफी देर से जाना। ये गुजरात के प्रसद्धि शिक्षाविद थे। इन्होने ने शिक्षण पर बहुत सुंदर पुस्तकें लिखे है। इनका जोर प्राथमिक शिक्षा में अमूल चूल बदलाव पर था।  यह खेल के जरिये शिक्षा देने पर जोर देते थे। रटने पर जोर देने के बजाय , बच्चों को खेल के जरिये सरल तरीके से ज्ञान देने पर जोर था। गाकर , अभिनय , चित्र बनाकर बच्चों को भाषा , व्याकरण , भूगोल आदि विषय को आसानी से बच्चों को सिखाया जा सकता है।  

दिवास्वप्न (1932 ) में प्रकाशित हुआ था। इसमें एक शिक्षक लक्ष्मीशंकर एक विद्यालय में अपने अनूठे प्रयोग करते है। वह बच्चो को साफ सफाई , अनुशासन आदि के बारे सरलता से अपने प्रयोगों के जरिये प्रेरित करते है। उनको , अन्य शिक्षक के प्रतिरोध , व्यंग्य आदि का सामना करना पड़ता है पर अंत में वह सफल होते है।  

आज के समय में भी गिजुभाई जैसे शिक्षको की जरूरत है। पिछले दिनों , मेरी एक मित्र से बात हुयी उन्होंने बताया कि उनकी ढाई साल की बेटी पढ़ने के लिए स्कूल जाने लगी है। दिल्ली से है वो। कम उम्र में बच्चों को स्कूल भेजने की बात सुनी थी पर इतनी कम उम्र में , मुझे बहुत हैरानी हुयी। उन्होंने बताया की 10000 फ़ीस ली है। मेरे ख्याल से इतने रूपये के अगर बच्चे को खिलौने दे दिए जाय या फिर उसे नई नई जगहों पर घुमा दिया जाय तो बच्चे का मनोरंजन के साथ साथ ज्ञान परिवर्धन भी हो जायेगा।  प्लेस्कूल के नाम पर इन दिनों कम उम्र के बच्चों के मन पर बहुत बोझ डाला जाने लगा है। दिवास्वप्न का डिजिटल अंक , इंटरनेट पर मुफ्त उपलब्ध है। इसके न केवल शिक्षको वरन अभिवावकों के साथ साथ शिक्षा नीति निर्माण से जुड़े लोगों को जरूर पढ़ना चाहिए।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  




शनिवार, 9 दिसंबर 2017

Vyas prize Mamta kaliya



ममता कालिया जी को व्यास सम्मान दिया गया है । पिछले दिनों उनके एक नावेल दौड़ के बारे में लिखा था ।
व्यास सम्मान उनके नावेल दुखम सुखम् के लिए दिया गया है, आपको अगर यह नावेल पढ़ने की इच्छा हो तो आप गूगल में hindisamay की वेबसाइट पर जाकर उपन्यास सेक्शन में ममता कालिया लिंक पर पा सकते है, दौड़ भी वहाँ पर उपलब्ध है ।.

जल्द ही मैं भी उसे पढ़ने वाला हूँ, आप भी पढ़े और अपनी राय दे तो अच्छा लगेगा ।Ias की तैयारी करने वाले अक्सर अपनी हॉबी को लेकर बहुत sure नही होते । अगर आप भी किसी दुविधा से गुजर रहे हो तो मेरी राय माने और अपनी हॉबी रीडिंग नावेल बना ले , हिंदी या अंग्रेजी अपनी सुविधानुसार । नावेल मैं बताता रहूंगा काफी नावेल ऑनलाइन pdf में free में ही मिल जायेगे । 

इस हॉबी की सबसे खास बात यह है कि ias या pcs में सेलेक्ट न भी हुए तो आपको ज्यादा दुःख न होगा क्योंकि नावेल रीडिंग , आपके जीवन में , आपकी सोच में अलग किस्म का बदलाव लाएगी ।



आशीष, unnao।

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

Daar se bichhudi : A novel By Krishna Sobti

डार से बिछुड़ी : कृष्णा सोबती जी का एक नावेल 





कृष्णा सोबती जी को इस साल (2017 ) ज्ञानपीठ अवार्ड दिया गया है। काफी पहले उनके कुछ नावेल पढ़े थे पर समझ न आये , वजह उनकी पंजाबी मिश्रित हिंदी। मुझे कुछ कुछ मित्रों मरजानी का कथानक याद भी है।  

आईएएस मैन्स के लिहाज से भी कृष्णा जी काफी महत्वपूर्ण है। इस साल भी उन पर टिप्पणी  पूछी गयी थी।राजेंद्र यादव द्वारा सम्पादित एक दुनिया समानांतर में भी उनकी एक कहानी  ' बादलो के घेरे ' संकलित है।  

कल उनका चर्चित नावेल , डार से बिछुड़ी पढ़ा।  इसमें पाशो की कहानी है। पाशो , खत्री परिवार में जन्मी होती है पर सारा जीवन उसे भटकना पड़ता है , उसकी माँ शेखों के घर भाग जाती है , इसके चलते पाशो को उसके मामा , मामी बहुत तंग करते है। पाशो एक दिन घर छोड़ कर भाग जाती है , पहले शेखो के घर , फिर बूढ़े दिवान एक घर।  वहां उसे एक बच्चा होता है पर बूढ़े दीवान मर जाते है तो उस बूढ़े दीवान का भाई शोषण करता है और उसे बेच देता है। पाशो , अब जिस घर जाती है वहां पर एक बूढ़ा और उसके 3 बेटे होते है। मझला बेटा पाशो को महत्व देता है। इस दौरान चिलियाँ वाली लड़ाई (1849) शुरू हो जाती है , फिरंगी और पंजाबी लोगों के बीच। एक रोज मझला भी मारा जाता है। पाशो भटकती रहती है। अंत में , उसे उसका भाई , माँ मिल जाती है। तमाम संघर्ष , शोषण के बाद नावेल का सुखद अंत दिखाया गया है। नावेल पढ़ते समय मुझे यशपाल कृत दिव्या याद आया। दिव्या भी इस तरह भटकती और अंत में मारिश के साथ सुखद अंत होता है।  

( चित्र में कृष्णा जी का एक और नावेल ऐ लड़की का भी दिख रहा है। उसको भी पढ़ चूका जल्द ही उस पर भी लिखूंगा ) 

अशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

Desh Birana : A Novel by Suraj Prakash


देश बिराना : सूरज प्रकाश जी का लिखा एक नावेल 



204 पन्नों में सिमिटा यह नावेल (2010 में प्रकाशित ) कुछ रोज पहले पढ़ना शुरू किया था। पीडीऍफ़ में निःशुल्क उपलब्ध है। ऑफिस में समय मिलने पर पढ़ता गया। कुछ पङने पढ़ कर लेखक के बारे में जिज्ञासा हुयी , तुरत फुरत उन्हें मेल भी कर दिया , उधर से दूसरे रोज जबाब भी आ गया। अच्छा लगा कि बड़े लोग , इतने भी व्यस्त नहीं होते। 

नावेल के बारे में बात कर ली जाय। नावेल के क्रेन्द्र में सिख नौजवान गगनदीप  है जो 14 साल में घर से भाग जाता है , पहले बॉम्बे भी लन्दन। सेल्फ मेड है , लंदन में छल से उसकी शादी होती है गौरी से पर उसके साथ हो घुटता रहता है , अंत में उसे मालविका से साथ जुड़ते , वापस लौटते दिखाया जाता है। मालविका भी एक पंजाबी लड़की है जो लन्दन में योगा टीचर है , जिसका अतीत बहुत कड़वा है। उसके घर वाले लन्दन में रहने वाले बलविंदर नाम झूठे इंसान के साथ शादी कर देते है। नावेल में दीप के घर के कड़ुए प्रसंग भी चलते रहते है , उसके पिता उसे बस पैसे के लिए ही मतलब रखते है , बहन की दहेज हत्या हो जाती है। नावेल में समकालीन समय के तमाम विसंगतियों के बारे में चर्चा है। आपकी पढ़ने की इच्छा हो तो मै सूरज प्रकाश जी साइट का लिंक दे रहा हूँ , जैसा कि उन्होंने बताया था कि उनका सारा लेखन ऑनलाइन निशुल्क उपलब्ध है , आप भी पढ़िए , अच्छा लगेगा।  

( एक योजना के तहत मै समकालीन समय के हिंदी नावेल को पढ़ रहा हूँ, उम्मीद से अधिक तेजी से नावेल खत्म हो रहे है बस उनका रिव्यु लिखने में थोड़ा आलस हो रहा है , फिर भी समय समय पर आपको छोटा ही सही पर उनसे परिचय करता चुलुंगा।  ) 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

सोमवार, 4 दिसंबर 2017

neem ka ped

नीम का पेड़ 


यह नावेल , राही मासूम रजा ने लिखा था। यह भी लघु नावेल और उनकी लिखी अंतिम कृति  है। कभी मुझे उनका आधा गावं भी पढ़ने को मिला था पर पढ़ न सका। वजह उस नावेल की भाषा। वैसे भी आधा गांव को हिंदी के कुछ प्रसिद्ध आंचलिक उंपन्यास में गिना जाता है। आधा गांव , में गंगोली गांव की भाषा मेरे लिए काफी अवरोध वाली थी। इसलिए जब नीम का पेड़ पढ़ने बैठा तो लगा यह भी पूरा न पढ़ सकूगा।  

धीरे धीरे पढ़ा और 3 बैठक में खत्म हो गया। लघु नावेल ( 100 से भी कम पन्ने ) जरूर है पर कथा काफी विस्तार में है। कहानी नीम का पेड़ कहता है जिसे बुधिया ( दलित ) ने अपने बेटे सुखिया के जन्म पर लगाया था। देखा जाय तो यह नावेल आजादी के बाद की राजनीति को क्रेन्द्र में रखता है। दलित , मुस्लिम के m.p. , mla बनना , दूषित राजनीति के बारे में कथा है। जमींदारी के ढलान , उसका राजनीति में परिवर्तन को दिखाया गया है। देश के टुकड़े होने तथा आजादी के बाद सपने टूटने की कथा है। 
राही जी को महाभारत के डायलॉग लेखन के लिए भी जाना जाता है। नीम के पेड़ में मुस्लिम समाज के बारे में लिखा गया है इसलिए भाषा थोड़ी , बहुत कठिन लग सकती है पर ज्यादा अवरोध नहीं है। कथा , सरस , रोचक है। इस नावेल पर  टीवी सीरियल भी बना था , जिसमे पंकज कपूर ने बुधई राम का रोल निभाया था।   

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

Ta ta professor by Manohr shyam joshi

ट टा प्रोफेसर

पिछले दिनों 10 नावेल मंगवाए है ऑनलाइन । कृष्णा सोबती, राही मासूम रजा , मनोहर स्याम जोशी आदि की किताबें है । 

अभी जोशी जी का संक्षिप्त किंतु बहुत रोचक नावेल खत्म किया । जोशी जी को बहुत पहले पढ़ा था । उन्नाव के गांधी पुस्तकालय में एक ही पुस्तक में उनके तीन नावेल सकलित थे , कसप, हरिया हरक्लिज की हैरानी , एक और जिसका नाम अब याद नही । उस समय जोशी जी को पढ़ना बहुत अच्छा लगा । उनके कुछ प्रसंग बहुत भाये थे जैसे एक चरित् था जो किसी के घर जाता और जैसे ही उससे चाय के बारे पूछा जाता वो समझ जाता कि अब यहाँ से विदा लेने का वक़्त आ गया ।

जोशी जी की एक खास लेखन शैली है , उनकी कथा शैली में बहुत रोचकता होती है, अनोखे व्यंग्य होते है । टाटा प्रोफेसर एक उत्तर आधुनिक नावेल है । एक प्रोफेसर पर क्रेंद्रित इस नावेल का सार यह है कि 'काम मनुष्य को कामुक से अधिक कामिक बनाता है और अस्तित्व को एक कॉमिक कामुक और कास्मिक त्रासदी बना देता है । '

नावेल को पढ़ते हुए मुझे लगा कि भूमिका पढ़ रहा हूँ पर नावेल उसी रूप में ही खत्म हो गया । जोशी जी कहानी लिख नही रहे बल्कि वो कहानी कह रहे है ।
वैसे आपको यह पता ही होगा कि जोशी जी दूरदर्शन पर आने वाले लोकप्रिय सीरियल हम लोग, बुनियाद के लेखक भी रहे है और उन्हें उत्तर आधुनिक समय के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार माना जाता है । जादुई यथार्थवाद को भी उनसे जोड़ा जाता है ।वैसे अपने सुधी पाठकों से जानना चाहता हूँ कि उत्तर आधुनिक और जादुई यथार्थ वाद से आप क्या समझते है ?☺

ASHEESH KUMAR 

गुरुवार, 30 नवंबर 2017

Creativity


रचनाशीलता का सीधा संबंध मन की मुक्ति से होता है यानि जितना आप सहज और सुकून में होंगे उतना ही आपके पास विचारों का जमावड़ा होगा। आपको बहुत कुछ नया और अनोखा सूझेगा करने के लिए।

पिछले कुछ महीनों में मैं छुट्टी पर था न जाने कितने ही विचार , संकल्पना। सोचता था यह लिखूंगा , वह लिखूंगा। बिलकुल अलग , अनूठी चीजे। जैसे ही ऑफिस जॉइन किया , धीरे धीरे सब ठप होने लगा। वही रूटीन सी जिंदगी। वैसे भी लम्बी छुट्टी से लौटने पर ऑफिस में बहुत काम जमा हो जाता है , जम कर काम पड़ रहा है। यह लगातार तीसरा शनिवार होगा जिसमें भी काम जारी रहेगा। अब न वो पहले सा सकून है , न ही वे अनूठे विचार। कितनी ही चीजों पर लिखने के लिए वादे कर रखे है खुद से पर ऐसा लगता है वो सुनहरे दिन आने से रहे। बहुत पहले गेहूं और गुलाब ( रामवृक्ष बेनीपुरी ) पर एक निबंध पढ़ा था। चाहत तो गुलाब की है पर गेहूं बगैर काम नहीं चल सकता। मतलब यह कि नौकरी न करोगे तो गेहूं कैसे मिलेगा। इसलिए गुलाब के बारे में यानि सौंदर्य के बारे सोचना , कल्पना करना अच्छी बात है पर गेहूं की फ़िक्र में गुलाब के ख्याल मरते जा रहे है।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

रविवार, 12 नवंबर 2017

one year of Demonetization


नोटबंदी के १ साल 

नोटबंदी के एक साल पूरे हो गए है। इतना समय किसी योजना का सटीक विश्लेषण करने के लिए  काफी होता है। नोटबंदी के लाभ और हानि को लेकर विद्वान एक मत नहीं है। नोट बंदी के होने वाले लाभों में सबसे महत्वपूर्ण से कुछ कर-आधार का बढ़ना , बैंको के पास काफी मात्रा में पूंजी जमा होना , कर अनुपालन की दर  बढ़ना को माना जा सकता है। निश्चित ही इन बिंदुओं के आधार पर नोटबंदी का कदम भारत की इकोनॉमी के लिहाज से काफी लाभदायक रहा  है। आयकर विभाग के पास बहुत विशाल मात्रा में डाटा इकठ्ठा हो गया है जरूरत है उसका सही विश्लेषण कर, कर चोरी करने वालो को पकड़ना और उनको सख्त सजा देना। आयकर विभाग प्रोजेक्ट इनसाइट जैसी योजना के जरिये बड़ी लगन से जुटा है। 

अगर नोटबंदी के दूसरे पहलू की बात की जाय तो नोट छापने की लागत , लगभग 99 प्रतिशत नोटों का वापस आना दिखलाता है कि इस कदम के काफी उद्देश्य पूरे न हुए। नोटबंदी  भारत के  असंगठित क्षेत्र के लिए बेहद घातक रही  है। बहुतायत छोटी फर्म बंद होने की कगार में आ गयी। इसका असर बेरोजगारी  पर पड़ा साथ ही कृषि पर दबाव भी बढ़ा। चूँकि कृषि , उद्योग अन्योन्याश्रित होते है इसके चलते भारत की विकास दर निम्नतर स्तर पर आ गयी है। उम्मीद की जा रही थी कि भारत 2017 में लगभग 9 प्रतिशत की दर से विकास करेगा पर यह 5.7 प्रतिशत पर ही आगे बढ़ रहा है। डिजिटल पेमेंट के लिए कई तरह के कदम यथा भीम एप , प्रोत्साहन जैसे लकी ग्राहक योजना आदि के बावजूद इसका प्रचलन उम्मीद से कम हो रहा है। शुरू के दो महीनों की तेजी को छोड़ दे तो भारतीय , डिजिटल पेमेंट के लिए अनिच्छुक दिखते है।

समग्रतः नोटबंदी के 1 साल बाद भारत अपनी पूर्ण क्षमताओं के बावजूद  भले ही कई तरह की चुनौतियों से जूझ रहा है पर भारत की इकोनॉमी असंगठित से संगठित होने की ओर  तेजी से बढ़ रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह भारत में समावेशी विकास में सहायक होगी।  


आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।    












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