सोमवार, 9 दिसंबर 2019

Story : A Vegetable seller in delhi

                धनिया पत्ती

बात कुछ पहले की है अब उतने महत्व की भी न रही पर लिख ही डालते है। कुकिंग बहुत बहुत पहले से करने लगा था, ज्यों 2 बड़ा हुआ त्यों 2 कुकिंग और ज्यादा व्यवस्थित होती गयी। धीरे 2 समझ आया कि धनिया पत्ते के बगैर तो कुछ भी बना हो स्वाद आता ही नहीं। कहने के मतलब कुछ भी हो धनिया पत्ते के अभाव में सब्जी न बनेगी।

पाठकों में पता नहीं कितने लोग सब्जी लेने जाते है या नहीं पर मुझे यह काम फिलहाल तो खुद ही करना पड़ता है। जब रूम पार्टनर थे तब यह उनकी जिम्मेदारी हुआ करती थी। सब्जी खरीदना भी बड़ी कला है पर मुझसे न होती है। अपन तो कपड़े भी 10 मिनिट में खरीद के निकलने वालों में है फिर सब्जी में कौन जांच परख में दिमाग लगाए। रुकते है वरना सब्जी खरीद शास्त्र लिख डालूंगा, धनिया पत्ते पर आते हैं।

पिछले दिनों मालूम है धनिया पत्ता के दाम कहाँ थे। 400 रुपये किलो यानी 10 रुपये की 25 ग्राम। आम तौर पर धनिया मिर्चा लोग फ्री में डलवा लेते हैं। उन दिनों भूल से भी ऐसी मांग नही की जा सकती थी। सब्जी वाले भड़क उठते थे। अगर आशंका होती कि फ्री में मांगेगा तो अक्सर बोल देते की है ही नहीं।

जैसा कि लोग कहते है कि विक्रेता गाड़ी देख के दाम बताते हैं, तमाम लोग इसी होशियारी में गाड़ी दूर खड़ी करके , फल खरीदने पीछे आते हैं। कुछ ऐसे भाव रहे होंगे जब मैंने उससे वैसी बात की।

उस दिन जब एक ठेले वाले से पूछा -
कि भाई धनिया पत्ती कैसे दिए ?
"40 की 100 ग्राम " उसने सर तक न उठाया , उसके सामने तमाम ग्राहक थे।
" यार कल तो उस ठेले वाले ने तो 30 रुपये में दिया था, क्या गाड़ी देख के दाम बता रहे हो ?" प्रसंगवश मैं रॉयल एनफील्ड से गया था।

" घर में दो दो खड़ी हैं...." ठेले वाले से कुछ ऐसे ही बड़बोले जबाब की ही उम्मीद मैंने की थी, आखिर मैं दिल्ली में खड़ा था।

" भाई, अब तीसरी भी जल्द खड़ी होने वाली है तेरे घर ..." मैंने मुस्कुरा कहा।
"क्या मतलब " सब्जी वाले ने अब सर उठाया।

" कुछ नहीं , तुम अमिधा ही समझ सकते हो, लक्षणा, व्यंजना तुम्हारे बस की बात नहीं" उस सब्जी वाले को, जिसके घर दो दो बुलट खड़ी थी, थोड़ा उलझन में डालकर आगे बढ़ आया।

उसको क्या खबर कि इस दिल्ली में किराए के पैसे से ऐश, मजे करने वालों के बीच ठेठ ग्रामीण परिवेश से आये भी लोग रहते है जो कितना ऊपर उठ जाए, उनसे बेफजूली खर्च चाहकर न हो पाती है।

( रेल सफर के बीच रचित )

9 दिसम्बर, 2019
© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तरप्रदेश।

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

Unnao : a sad truth

उन्नाव

उन्नाव फिर से चर्चा में है, मेरी व्यथा यह है कि यह हर बार अपराध के लिए ही राष्टीय स्तर पर चर्चा में आता है। कहते है जन्मभूमि स्वर्ग समान होती है, अपनी मिट्टी से बड़ा लगाव होता है। मेरी तमाम तरह से कोशिश होती है कि उन्नाव , पूरे भारत में बढ़िया चीजों के लिये जाना जाय। मेरी पोस्ट के अंत में हर बार जो उन्नाव का जिक्र देखते है उसके पीछे की मंशा उक्त ही है।
कलम व तलवार की धरती उन्नाव को न जाने कब अतीत वाला गौरव मिलेगा। प्रताप नारायण मिश्र, निराला, रामविलास शर्मा व चन्द्रशेखर आजाद की धरती को न जाने किसकी नजर लग गयी है। तमाम बार जब लोग पूछते है कि उन्नाव कहाँ पड़ता है तो कुछ भी बताओ तो लोग शायद ही समझ पाए पर अगर चर्चित रेप कांड का नाम ले लो या फिर वो बाबा के सपने में 1000 टन सोने की खुदाई वाली घटना का नाम ले लो फिर सब समझ जाते है। है न अजीब पर सत्य यही है। यह चीजें इसलिए कह रहा हूँ कि मुझे तमाम बार काफी बड़े मंचो व अति प्रतिष्ठित लोगों से मिलने पर बड़े गर्व से बताना होता है कि मैं उन्नाव से हूँ।
खैर
अच्छी उम्मीदों के साथ,

आपका ही
आशीष, उन्नाव।
7 दिसंबर, 2019

#unnao #Nirala #azad

That old days

शहर छूटा पर भाषा न छूटी

अहमदाबाद

2012 में जब अहमदाबाद में रहना शुरू किया तो भाषागत कुछ दिक्कतें आयी। जब हम घूमने को निकलते और किसी से कोई पता पूछते तो जो भी जबाब आता उसमें "चार रास्ता" का जिक्र जरूर आता जैसे कि अगले चार रस्ते से बाएं । कुछ दिनों में समझ आ गया कि अपने यहाँ के चौराहे को ही यहाँ चार रास्ता बोला जाता है। 7 साल हुए अब मेरे मुँह भी चार रास्ता ही निकलने लगा।

दिल्ली

कल मेट्रो माल से बाहर e रिक्शे वाले पूछा "  मेरी अकेडमी तक चलोगे"
"किधर" रिक्शे वाले ने पूछा ।
" वो आगे जो डीएमसी ऑफिस वाला चार रास्ता है , उसी के पास "
" चार रास्ता ? " रिक्शे वाला बड़े कंफ्यूजन में दिखा।
" अरे भाई , यही अगला चार रास्ता ... अरे यार यही अगला चौराहा " दिमाग मेरा शून्य सा हो रहा था। मन से चौराहा ही निकला पर शब्दों में चार रास्ता।
मॉरल ऑफ द स्टोरी - शहर पीछे छूटते रहते हैं पर भाषा साथ जुड़ी रहती है।

7 दिसंबर, 2019
© आशीष, उन्नाव, उत्तर प्रदेश।

सोमवार, 2 दिसंबर 2019

Poem 2 : Uniqueness

अद्वितीयता

अपनी कुछ पुरानी, नाममात्र की सीमित उपलब्धिओं पर,
छाती फुलाये जाना,
चलना चौड़े से अकड़ कर
दोहराना उन्हीं सतही चीजों को
जतलाना जैसे कि बुद्धत्व मिल गया हो
हमेशा आतुर सुनने को कुछ प्रसंशा के शब्द
या कि अपना नाम लिया जाय महफिलों में बार बार।

बैठकर उसके सामने ,बोलते रहना उन्हीं चीजों पर
जो वो पहले भी सुन  चुकी है कई बार,
हमेशा इस उम्मीद में कि वो हर बार
अपनी आँखों को विस्मय में भरकर बोलेगी
" आप गजब के इंसान हैं " और दे देगी
अपने नाजुक हाथ आपके हाथों में।

नहीं , कतई नहीं, जरा भी फर्क नहीं पड़ता दुनिया को,
आपकी सीमित, पुरानी नाममात्र की
उपलब्धिओं  से,
अद्वितीयता भला कहीं दोहराने से आती है ।

3 दिसंबर, 2019
©आशीष कुमार, उन्नाव उत्तर प्रदेश।

गुरुवार, 7 नवंबर 2019

Three years in college

कॉलेज के वो तीन साल ।

हम वहाँ से आते है मतलब जहां आपको सब कुछ खुद ही करना है, गाइडेन्स नाम की कोई चीज नही होती है। बहुत समय से सोच रहा हूँ कि इस पर लिखू पर लगता था कि कॉलेज की आलोचना होगी पर कभी न कभी लिखना ही था।

मैंने भी तमाम लोगो की तरह की बीएससी की है। गणित, भौतिक विज्ञान व कंप्यूटर एप्लिकेशन में। स्वीकार करना कठिन है पर सच है कि तीनों ही में मुझे कुछ भी नही (स्नातक स्तर का ) आता। हमने ऐसे कॉलेज में एडमिशन लिया था जहाँ  वर्षो से एक विकट समस्या चली आ रही थी। अध्यापक क्लास इस लिए नही लेते थे क्योंकि उन्हें शिकायत होती कि छात्र पढ़ने ही नही आते और छात्रों का कहना था कि अध्यापक पढ़ाने नहीं आते इसलिए वो क्लास नही जाते । ऐसे में  होता यह कि अध्यापक अपने कॉमन रूम में बैठकर देश दुनिया का चिंतन करने में , समाज के नैतिक पतन, नेताओं की मक्कारी पर अपना कीमती समय देते। इससे उन्हें सन्तोष रहता कि वो हराम की कमाई नहीं ले रहे है। दूसरी ओर छात्र अपनी युवा ऊर्जा अन्य जगहों पर लगाते। हम जैसे कुछ जो गांव देहात से आते अपना ट्यूशन पढ़ाने जैसे कार्यों में लग जाते ताकि घर पर बोझ न बने।

मैं पूरे साल  साईकल लेकर घर 2 ट्यूशन पढ़ाता रहता फिर एग्जाम के समय दुपतिया ( अलग 2 नामों से बिकती है जैसे कानपुर यूनिवर्सिटी में इजी नोट्स चलते है ) जैसी पतली किताबें पढ़कर पेपर देने जाते। पहले साल तो दुपितया लिया पर अगले साल वो भी न ली तब भी पास हो गया यह मेरे लिए भी खुद रहस्य है आखिर कैसे ? । तीसरे साल प्रैक्टिकल होते हैं ।
मेरे पिता जी को कुछ चीजों का बढ़िया ज्ञान था। उनकी सलाह के अनुसार एक गुरु जी के घर प्रैक्टिकल वाले दिन सुबह 2 देसी माठा ( छाछ ) , कुछ ताजे करेले लेके दे आया। उनका बेटा निकला तो उसको बोला कि पापा से बोल देना कि आप का स्टूडेंट हूँ नाम आशीष है।

इसी तरह से कंप्यूटर के प्रैक्टिकल वाले सर को मधुशाला की प्रति दी। ( यह सलाह एक नेक मित्र की थी।) यहाँ मेरे टीचर भड़क गए बोले कि यह बिल्कुल गलत है पर प्रैक्टिकल वाले सर ने किताब रख ली यह कहते हुए कि लड़कें की भावना समझो। हो सकता है कि मैंने उन्हें यह भी बोला हो कि sir मैं लेखन करता हूँ आदि आदि ) । प्रैक्टिकल के नाम पर 100 -100 रुपये भी जमा कराए गए थे। अब यह मत कहना कि आपने कभी नही जमा किये प्रैक्टिकल के नाम पर रुपये।

गणित में 45 में 42 अंक दिए गए। 40 से कम किसी को कम नही मिले थे। 2 अंक गुरु की सेवा के थे या नही कह पाना मुश्किल है। कंप्यूटर वाले सर  ने कम अंक दिए थे। इसमें मुँह दिखाई ज्यादा चली  थी। मेरी मधुशाला काम न आई। बाद के वर्षों में मुझे इस बात का बेहद अफसोस होता रहा कि मैंने तीन सालों में एक पन्ने (बीएससी से जुड़ी )की भी पढ़ाई न की। न तो मुझे किसी बुक का नाम पता था और न ही कौन 2 से पेपर होते हैं। हालांकि इस धक्का परेड डिग्री के विषयों की उपयोगिता कभी समझ न आई। अंकगणित मेरी बहुत अच्छी थी , इंग्लिश में सर के बल मेहनत की। gk में बचपन से बहुत मजा आता था। बस इन्ही के दम पर तमाम नौकरी मिली।

यह कड़वी सच्चाई है पर कुछ नामचीन यूनिवर्सिटी को छोड़ दे यथा इलाहाबाद / प्रयागराज, BHU, DU तो सब जगह की स्थिति ले देकर उक्त सी है। और नामचीन जगहों पर पढ़ने वाले लोग पूरे देश के ग्रेजुएट का कितना परसेंट होंगे। माफ करना यह 15 साल पुरानी बात है। हो सकता अब काफी बदलाव हो गया हो। क्योंकि अब देश में बदलाव की बयार आयी है हो सकता हो अब उन कॉलेज में उस वर्षो से चली आ रही समस्या का समाधान हो गया हो।

© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तर प्रदेश ।

7 नवंबर 2019, दिल्ली

गुरुवार, 19 सितंबर 2019

Story of a disciplined man


एक सिद्धांतप्रिय व्यक्ति 

आप अगर पहली बार पढ़ेंगे तो शायद आपको अजीब लगे पर यह मेरे लिए नया नहीं है। इससे पहले इसी तरह की तीन घटनाएं लिख चुका हूँ। 

यह घटना अनायास ही पता चली थी। यह अपने पूर्व विभाग यानि कस्टम एंड एक्साइज , अहमदाबाद  की बात है. एक दिन एक सीनियर से एक पुराने अधीक्षक सर के बारे  में बड़ा दुखद पता चला।  

जहाँ मेरी सबसे पहले पोस्टिंग हुयी थी। वहाँ से बगल की रेंज में मेरा ट्रांसफर हो गया था। उस बिल्डिंग में एक डिवीज़न व 5 रेंज थी। मैं पहले से पांचवी में चला था। पहली रेंज में नए साहब आये उनके बारे में पहले अपने साथी मित्र से बातचीत किया करता था , बाद में सीधा सर से ही बात होने लगी थी। बड़े सैद्धांतिक व्यक्ति थे। उनके अपने बड़े गहरे विचार हुआ करते थे। शायद उनके बेटे ने  iit का एग्जाम दिया था , कभी कभी वो मुझसे रिजर्वेशन की बात किया करते थे कि बड़ा गलत है , मेरे बेटे के इतने नंबर है पर उसका न हुआ , अमुक कटैगरी में इतने पर ही हो गया। मैं ऐसे मसलों पर कभी तर्क करने की भूल नहीं करता हूँ , हमेशा ही उनसे सहमत रहता था। इसलिए वो खुश रहते थे। एक दिन बताया कि मेरा बेटा बिल्डिंग के नीचे वाले कार स्कूल में कार सीखने आता है। मैंने पूछा कौन सी  कार है आपके पास , बोले अभी कोई न है जब सीख लेगा तो कार भी ले लूंगा। मुझे थोड़ा अजीब ही लगा क्योकि विभाग में उनकी पोस्ट पर नौकरी करने वाले लोग आम तौर पर पूरी तरह से सेटल होते थे , कार तो बड़ी मामूली बात थी।  

खैर , अब कई सालों बाद उनके व्यक्तित्व की तमाम बातें याद नहीं आ रही है पर इतना याद है कि अगर उनके केबिन में जब भी जाना हुआ तो पकड़ कर बैठा लेते थे और अक्सर कोई न कोई मुद्दा उठाकर गरमा गर्म बहस छेड़ दिया करते थे। एक बात याद आती है। उनका जो इंस्पेक्टर था वो मेरा सबसे पहला कलीग था। हम दोनों ही इंस्पेक्टर के और पर पहली रेंज में कुछ दिन साथ रहे थे। ये जो साथी इंस्पेक्टर थे , वो भी बड़े दुर्लभ किस्म के इंसान थे। उनके बारे में पूरा का पूरा एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है आज थोड़ा इशारा करके बढ़ते है। 

ये इंस्पेक्टर बिहार से थे , पहले मुंबई में टैक्स असिस्टेंट थे। उनको देखकर मुझे बिहार से जुडी वो कहानियाँ /लड़के याद आते जो रात दिन पढ़ाई करके अपनी किस्मत लिखते है। अगर आप उनसे मिले तो सोचेंगे कि यह इंसान किस समय में जी रहा है। बहुत ज्यादा ही सीधे , मासूम, मंद ( कार्य करने की गति ) व पिछड़े ( इसे जाति से न जोड़े , वो ज़माने से बहुत पीछे चल रहे थे ) थे। ऊपर जिन साहब की बात की है वो इनको तमाम तरह के काम सौंपते। जिसे मुझे याद आ रहा है कि एक बार उन्होंने इनसे हिंदी से जुडी रिपोर्ट तैयार करने को बोली। यह फील्ड के लिहाज से रेगुलर कार्य न था। अब इंस्पेक्टर साहब ने धीरे धीरे काम करना शुरू किया और कई हफ्ते तक उसी में व्यस्त रहे। कई साल पुरानी फाइल से हिंदी में लिखे  लेटर निकाले गए और उनका क्रमवार विवरण तैयार किया गया। दरअसल उस रेंज में कार्य न के बराबर था , इसलिए बड़े साहब इस तरह के कार्य खोजते व इंस्पेक्टर साहब अपनी मंथर गति से कार्य करते रहते। अन्य प्रकरण याद नहीं , यह भी याद आ रहा है कि उन्हें यह पता था कि मैंने upsc का इंटरव्यू दे रखा है, इसलिए वो मुझे तमाम तर्क करना चाहते थे. 

ऊपर जो अनायास वाली बात लिखी है वो इसलिए है। उस विभाग में अंतिम समय मैं ऑडिट में पोस्टेड था। वो मंथर गति वाले इंस्पेक्टर साहब भी साथ ही पोस्टेड थे। उन सीनियर से बातों बातों में पुराने साहब का जिक्र छिड़ा तो सर ने बताया कि उन्होंने तो सुसाइड कर लिया था। मैं सन्न रह गया। मेरे सामने उनका चेहरा कौंध गया। सर ने बताया कि एक रात (शायद सर्दियों की ) सुबह ४ बजे अपनी स्कूटर पर पत्नी के साथ वो साबरमती नदी ( अहमदाबाद ) के पुल पर गए, स्कूटर एक तरफ खड़ी करके पति पत्नी ने छलांग लगा दी। मेरी तरह आप सोच रहे होंगे वजह क्या रही होगी। सर के अनुसार अपने बच्चों की अनुशासनहीनता , बात न सुनने की वजह।  तमाम बार वो पढ़ाई -लिखाई को कहते पर शायद बच्चों को उनकी बात का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था। शायद उनके पैतृक निवास में माँ ( निश्चित नहीं ) आदि बीमार रहा करती थी। यही  मिश्रित कारण थे।

आप भी हैरान होंगे पर मैंने बाद में धीरे धीरे यह महसूस किया कि उक्त  बातें ही रही होंगी। कितनी विडंबना की बात है , संतान अपने माता पिता को कितना दुःख देती है , यह शायद ही वो कभी समझ सके। आत्महत्या से जुड़ी यह चौथी कहानी है जो पिछले दिनों अचानक याद आयी और रह रहकर बाध्य करती है कि इसको शब्दरूप में जरूर ढालों।  

( कृपया उक्त विवरण को काल्पनिक रूप में लिया जाय , किसी भी  जीवित या मृत व्यक्ति से इसका कोई लेना देना नहीं है।)

दिनांक - 19 सितंबर 2019                                                                                          ©    आशीष कुमार , 
                                                                                                                               उन्नाव उत्तर प्रदेश।

रविवार, 1 सितंबर 2019

Motivational story of amit chaudhry

सफलता की एक और प्रेरक कथा 


परसों शाम की बात है, रोज की तरह मैं अपनी अकादमी के जिम में वर्कआउट कर रहा था , रेस्ट के टाइम बीच बीच में मोबाइल चेक कर रहा था , तभी अमित का व्हाट एप पर मैसेज मिला सर , जिस  एग्जाम के बारे में आप से डिस्कस कर रहा था ,  उसमें मेरा अन्तिम  चयन हो गया है। जॉब किसी को भी मिले विशेषकर तमाम संघर्षो के बाद , मुझे व्यक्तिगत रूप में बेहद खुशी होती है। 

अमित के लिए मुझे अपार प्रसन्नता हुयी। ठीक से याद नहीं वो मुझसे कब जुड़े पर धीरे धीरे काफी करीब हो गए। मुखर्जी नगर, दिल्ली  जब भी आना होता, उन्ही के पास रुकना होता। हमउम्र ही है पर सम्मान हद से ज्यादा करते है। तमाम मसलों पर उनसे खुलकर बात होती रहती। जितना मैंने उन्हें जाना वो बहुत ज्यादा प्रतिभाशाली तो नहीं लगे पर उनके जुझारूपन की मन ही मन  हमेशा प्रशंसा करता। काफी पहले आईएएस की मुख्य परीक्षा लिखी थी , बाद में उनका pre कुछ अंको से रह जाता। दिल्ली में रहते रहते काफी समय हो गया था। घर से पैसों को दिक्क्त न थी पर उन्हें अब खुद उलझन होने लगी थी कि अब इतने समय के बाद घरवालों पर बोझ बना रहना उचित है भी कि नहीं। 

बीच बीच में मुझे फ़ोन करते व इस तरह की चीजों पर बात करते। शायद इस साल फरवरी में उनका मैसेज मिला , सर कुछ समय दीजिये। मिलने पर उन्होंने  अपनी दुविधा बताई। मध्य प्रदेश में प्रवक्ता पद की जगह निकली थी। फॉर्म पड़ा था पर वो अनिर्णय की हालत में थे। उन्हें आईएएस का pre देना था , जिसके लिए वो बहुत ज्यादा गंभीर थे। प्रवक्ता वाली परीक्षा देने का मतलब समय खराब होना। 

मैं हमेशा से इसी बात पर जोर देता हूँ कि सबसे पहले रोजगार , बाद में आईएएस। अगर बेरोजगार लम्बे समय तक बने रहो तो upsc के इंटरव्यू पर भी इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। वैसे भी आईएएस में हिंदी माध्यम की सम्भावनाये काफी सीमित है, इसलिए मध्यमवर्गीय लोगों को हमेशा यही सलाह रहती है कि पहले नौकरी पक्की कर लो। अमित को भी यही समझाया कि एग्जाम दे आओ , बाकि फोकस upsc पर ही रखना। 

अब समझा सकता है कि कितना बढ़िया निणर्य था। आज वो 4800 ग्रेड पे की बढ़िया , सकून व संतुष्टिदायक पद पर चयनित है। अमित के चयन ने एक बार मेरे उस विश्वास को बढ़ा दिया। अक्सर , मजाक मजाक में कहा करता हूँ कि मेरे आस पास रहने वाले यानि मुझसे जुड़े लोग विशेषकर जो गहरी आस्था रखते है बेरोजगार नहीं रहते है , संघर्ष भले लम्बा हो पर उन्हें एक न एक दिन जॉब जरूर मिल जाती है। पता नहीं यह कैसे व क्यों होता है पर होता जरूर है। 

अमित के लिए खुशी इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि यह पुराने दिनों के साथी है , अहमदाबाद से कभी दिल्ली आना होता तो सवाल उठता था कि रुके कहाँ ? जब से अमित जुड़े , तब से चिंता खत्म हुयी, कई बार वो अपनी एक्टिवा लेकर , मुझे अंतिम समय पर स्टेशन पहुँचाने भी गए। बातें तमाम है पर वक़्त कम है। 

मैंने काफी समय से लिखना रोक सा रखा है पर अमित से वादा किया था कि आपकी कहानी जरूर लिखूंगा। बड़ी प्रेरक है। उन्हें आँखो में कुछ प्रॉब्लम भी हो गयी है। तमाम लेंस , उपकरणों के जरिये अपनी पढ़ाई करते रहे है, उनके रूम पर जब जाना होता तो मन में एक दुआ सी उठती कि भगवान , कहीं  भी इनका सिलेक्शन जल्दी करवा दो , बहुत जूझ रहे है। वो  ज्यादा देर पढ़ नहीं पाते क्योंकि आँखो में दर्द होने लगता। 

इस परीक्षा में उन्हें पुरे मध्य प्रदेश में 41 रैंक मिली है। अभी सिविल सेवा में उनके एटेम्पट बाकि है , कुछ और अच्छे की उम्मीद की जा सकती है। बाकि पहली जॉब के अलग ही ख़ुशी होती है। उनके लिए , अच्छे भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएं। 


- आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

My birthday : A thank you note

सामूहिक धन्यवाद ज्ञापन

आप सभी मित्रों, शुभचिंतकों को मेरे जन्मदिन पर , समय निकालकर अपने जो शुभकामनाएं दी, उनके लिए ह्रदय से धन्यवाद। आज कुछ बड़ी अनोखी बातें शेयर कर रहा हूँ, एक आध साल अपवाद को छोड़ दे तो कभी मैंने न तो बर्थडे केक काटा और न इसको कभी स्पेशल तरीके से ट्रीट किया। दरअसल मुझे बड़ी अजीब सी शर्म सी आती है, खासकर जब वो केक काटते समय गाने गाते है। दरअसल मुझे वो पूरा तामझाम ही बड़ा अजीब लगता है।

मैं अपने आसपास देखता हूँ तो बड़े अच्छे अच्छे लोग दिखते है , बहुत बढ़िया से अपना बर्थडे सलेब्रिट करते है। एक मित्र बर्बे कयु नेशन में जाकर पार्टी देते है, कुछ ऐसे भी लोग है जो पहले से बताएंगे कि अमुक दिन मेरा बर्थडे है और मुझे गिफ्ट क्या दोगे, इससे बढ़कर वो जो बोलकर मांगते है कि मुझे बर्थडे में अमुक चीज दे दो .उदाहरण के लिए वो I PHONE के कटे वाले हैडफोन ।

जब भी मैं अपने स्वभाव के विश्लेषण करता हूँ तो इन चीजों के उत्तर मिलते है। मैं समूह, भीड़ से अक्सर असहज रहता हूँ। मेरे एक एक कर या व्यक्तिगत संबंध हमेशा बहुत प्रगाढ़, मजबूत व आत्मीय बनजाते है पर समूह शायद ही कभी मेरे व्यवहार को स्वीकार करे ।

हर साल मुझे दो लोगों से एक विशेष तरह की शिकायत मिलती है, कि मैंने उन्हें बर्थडे विश क्यों न किया जबकि वो हर बार ध्यान से मुझे करते है। दोनों ही लोगों का बर्थडे ठीक एक दिन पहले यानी 15 अगस्त को होता है। इसबार एक लोगों का याद करके बैठा और उन्हें विश कर भी दिया पर कल शाम मुझे दूसरी शिकायत मिली। अब मुझसे कुछ कहते न बना। ये ऐसे लोग है जो पूरे साल गायब से रहते है प्रायः नाराज कि मैं बहुत बिजी रहता हूं पर बर्थडे पर विश जरूर करेंगे। उम्मीद करता हूँ कि पोस्ट लिखने से शायद मुझे अगले साल 15 अगस्त को याद रहे, कोई शिकायत न रहें।

तो दिन भले मेरा सामान्य सा गुजरे पर फेसबुक पर जब तक आप जैसे लोगों है तबतक हमारे जीवन में 16 अगस्त विशिष्ट या कहे जलवा कायम रहेगा। पुनश्च आपको बहुत बहुत शुक्रिया, आभार, अभिनंदन।

आपका - आशीष कुमार, उन्नाव ( उत्तर प्रदेश)

शनिवार, 22 जून 2019

kabir singh : a story


01 . कबीर सिंह : एक कानों सुनी , बिलकुल ताजी घटना 

हाँ , यह बात कबीर सिंह फिल्म की ही है। कल की बात है , मैंने किसी को फ़ोन पर इसके बारे में बात करते हुए सुना। जब उसकी बातें खत्म हो गयी तो मैंने पूछा "यार कबीर सिंह को लेकर क्या बात हो रही थी ( मैंने मूवी का काफी पहले ट्रेलर देखा था तब लोग बात कर रहे थे कि  यह सलमान खान की भारत मूवी से ज्यादा पॉपुलर हो रहा है ) . साथी ने बताया कि यार वाइफ का फ़ोन था कह रही थी कबीर सिंह मूवी देखने चले। अब जब वाइफ , पति से डिमांड करे वो भी जोकि सिविल सेवा का मैन्स देने वाली हो , जिसका पल पल कीमती हो तो जाहिर है मूवी बहुत खास होगी। मैंने साथी से पूछा कि तो फिर जा रहे हो क्या ? नहीं यार मैंने उसे समझा दिया कि दुनिया में दो ही तरह के लोग होते है - शासित व शासक। अब तुम्हें निर्णय लेना है कि तुम्हें क्या बनना है ? कबीर सिंह , फकीर सिंह तो आते जाते रहेंगे तुम्हें शासक बनना है कि नहीं, तुम कहाँ इन तुच्छ बातों में पड़ी हो । जाहिर है कि अब इतनी उच्च , दार्शनिक बातें सुनकर भाभी जी क्या ही बोली होंगी। हम दोनों बहुत देर तक इस बात को लेकर हसँते रहे। अगर कोई सिविल सेवा की तैयारी कर रहा हो तो वो भी इस बात से प्रेरणा ले सकता है कि तुम्हें बनना क्या है - शासक या शासित।

[मेरे नियमित पाठकों को पता है कि मैं इतनी छोटी पोस्ट नहीं लिखता फिर  इतने दिनों बाद लिखा है तो  नैतिक दबाव है कि कुछ और भी लिख ही दूँ। ]

०२. "अब जिंदगी में कोई उद्देश्य बचा नहीं "

यह कहानी दो ऐसे लोगों कि है जो दुनिया की सबसे कठिन समझी जाने वाली ( पता नहीं यह बात कब से और कैसे विरासत में चली आ रही है ) और जो हर साल देश के सबसे योग्य युवाओँ का दिमाग का दही करने वाली प्रतियोगी परीक्षा को पास कर चुके है। जी यह सिविल सेवा परीक्षा की बात हो रही है। जिन दो लोगों की बात हो रही है , उनमें एक ने अपने अंतिम प्रयास में यह परीक्षा पास की है , वो आईएएस नहीं बना फिर भी वो मुक्त हो गया, UPSC  ने उसे आजाद कर दिया कि अब तुम मोक्ष्य को पा  चुके , 9 साल तक गुलाम रहे अब अपनी जिंदगी जियो। दूसरे के पास एटेम्पट है पर उसे आईएएस मिल गया तो वो भी मुक्त हो गया। संयोग से दोनों रूम पार्टनर है। एक जनवरी से सोच रहा है कि अब क्या किया जाय , उसे पुरे साल सिविल सेवा की तैयारी की आदत पड़ गयी थी अब एकाएक सब खत्म। दूसरे को इसी साल आईएएस मिल गया। जिस दिन रिजल्ट आया और रैंक से आईएएस मिलना निश्चित हो गया , उसी दिन से वो भी मुक्त हो गया।  

तो अब ऐसे लोगों के जीवन पर नजर डालते है , दोनों ने ही तमाम कल्पना की थी कि बस एक बार UPSC से मुक्ति मिले तो जिंदगी में ऐश ही ऐश करेंगे पर दोनों करते क्या है - कल रात की बात है , जिसे आईएएस मिला है वो बोलता है यार अब जिंदगी में कोई उद्देश्य नहीं बचा है , दूसरा बोलता है हाँ भाई मैं तो जनवरी से यही सोच रहा हूँ। फिर दोनों टिक टॉक पर भारत के नए उभरते हुए एक्टर एक्ट्रेस की फूहड़ एक्टिंग देखते है। बीच बीच में बोलते है कि देश का युवा किस किस तरह की बकैती में लगा है ( अगर अपने आप टिक टॉक के वीडियो नहीं देखे तो आप उन बचे हुए दुर्लभ लोगों में है जिनकी प्रजाति तेजी से खत्म हो रही है ) ----दूसरा बोलता है - हाँ भाई सही कह रहे हो।  फिर दोनों एक दो घंटे तक अपने अपने फ़ोन में डूबे रहते है , एक हल्के होने के लिए उठता तो अहसास होता है कि रूम में ac ठंठक कम  कर रही है , रूम में दो ac है। दोनों में 18C तापमान कर दिया गया है। कंबल ओढ़ लिए क़र  फिर एक ने बोला -भाई जिंदगी में अब कोई उद्देश्य नहीं बचा , हाँ भाई मैं तो जनवरी से यही सोच रहा हूँ। रात के 1 बज गए है। अब मोबाइल से मन भर गया है। एक बोलता है कि भाई कौन सी मूवी दिखाओगे ? अब ipad  खुल गया। यू tube पर तिग्मांशु धुलिया की 'हासिल' फिल्म देखी जा रही है। रात  3 बजे दोनों का सोना शुरू हुआ पता नहीं कब सोये। सुबह 10  बजे उठे वो भी इसलिए कि इसके नाश्ता न मिलेगा। वापस आकर फिर सो गए।  दोपहर 1 बजे दोनों उठे - दोनों फिर एक बार दोहराया - "यार जीवन में अब कोई उद्देश्य नहीं बचा है।" ऐसी ही जिंदगी चल रही है। आप सोच रहे होंगे कि भला जीवन में उद्देश्य कैसे खत्म हो सकते है , मेरे ख्याल से  दोनों के पास अब  सिविल सेवा की परीक्षा जैसा तगड़ा उद्देश्य नहीं बचा है, इसलिए ही वो इस तरह से जी रहे हैं। यह  कहानी याद जरूर रखना , क्या पता उनके जीवन के बाद के भी कभी अपडेट लिखे जाय।  

फुटनोट : उक्त कहानी पूर्णतः काल्पनिक है, किसी जीवित या मृत व्यक्ति से इसका सम्बन्ध मात्र एक संयोग होगा। काफी दिनों बाद कुछ लिखा है, लिखना कुछ और ही था और सोचा था कि जो भी लिखूंगा वो अपने दो खास मित्रों को समर्पित करूंगा। महर सिंह ( भारतीय सुचना सेवा 2011 बैच ) व शिवेंद्र मिश्रा ( IRS - IT 2016 बैच ) आप दोनों को यह पोस्ट समर्पित है , आप दोनों ही  मेरे लिखे बड़े चाव से पढ़ते है और बीच बीच में लिखते रहने के लिए प्रोत्साहित करते रहते है , उम्मीद करता हूँ यह पोस्ट भी पसंद आएगी। 

रचनाकाल : रात 1 बजे, 23 जून 2019 , दिल्ली।  

© आशीष कुमार, उन्नाव उत्तर प्रदेश।  

शुक्रवार, 7 जून 2019

Brida

काफी दिनों बाद , पाउलो कोएल्हो को पढ़ने जा रहा हूँ। उनके उपन्यास अलकेमिस्ट ने मेरे व्यक्तिगत जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव डाला था, जोकि मैंने पहली बार लखनऊ के भागीदारी भवन के पुस्तकालय में पाया था।
वैसे पिछले मैंने विनोद कुमार शुक्ल का प्रसिद्ध उपन्यास ' दीवार में एक खिड़की रहती थी ' पढ़ा। उसकी समीक्षा, मेरी उस नावेल के प्रति समझ लिखना बाकि है।
प्रसंगवश यह दोनों नावेल और शुक्ल जी का नॉवेल और भी हिंदी की प्रसिद्ध किताबें, मैंने अपनी अकादमी के पुस्तकालय में आग्रह करके मंगवाया है, धीरे धीरे उनको पढ़ना जारी रखूँगा।

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