बुधवार, 21 मई 2014

ENGLISH LANGUAGE COMPULSORY TIPS IN HINDI

असमंजस का दौर चल रहा है ठीक से पता नही कि एग्जाम का नया पैटर्न क्या होगा। जाहिर है पढ़ाई में मन नही लग रहा होगा। कुछ भी पढ़ने बैठते है तो मन उचट जाता है  कि क्या पढ़े ? मैन्स के साथ साथ प्री में भी बदलाव होने की अफवाहे फ़ैल रही है।
ऐसी समय में अपनी निरंतरता बनाये रखने के लिए कुछ नया और रोचक काम किया जाय। यहाँ पर ज्यादातर दोस्त हिंदी माध्यम से है। हमारे साथ एक सामान्य समस्या होती है वह है english से जुड़ा भय। अब मैन्स के साथ प्री में भी english आ रही है। इस बार के mains में जिस स्तर का इंग्लिश का पेपर था उसे देख कर बहुत अच्छे इंग्लिश एक्सपर्ट को भी पसीना सकता है। बहुत बड़ा और जटिल। न तो पैसेज , एस्से , प्रेसी ,या ग्रामर किसी भी हिस्से में कुछ समझ न आया। अपवादों को छोड़ दे तो मेरी बात से आप जरूर सहमत होगे।
इंग्लिश में इस तरह की कठिनाई की मुख्य वजह उस पर टाइम न देना है। हम सारा वर्ष अपने सब्जेक्ट तैयार करते रहते है। सामान्य अध्यन की तैयारी करते रहते है पर इंग्लिश को लास्ट टाइम १ , २ दिन पढ़ कर मैन्स देने चले जाते है। upsc की तैयारी से जुड़े लोग यह अच्छे से जानते है कि अगर आप इंग्लिश के पेपर में निर्र्धारित अंक नही लाते है तो अपनी दूसरी कॉपी चेक नही की जाती है आप को अपने अंक जानने का अवसर नही मिल पता है।
इसलिए क्यों न इन दिनों इस समस्या को कुछ कम कर किया जाय। इस बार की क्रॉनिकल में विजय अग्रवाल जी काफी टिप्स दिए है उनको फॉलो कर सकते है।
मैंने पहले भी इंग्लिश पर एक पोस्टENGLISH TIPS लिखी थी। इस बार उसमे कुछ और नई चीजे जोड़ सकते है।
१. मैन्स के पेपर में आपकी इंग्लिश की क्षमता को जांचने का तरीका है कि आप इंग्लिश में अपने विचार व्यक्त कर पाते है कि नही। मेरे विचार से अगर हम नियमित तौर पर किसी पेपर के सम्पादकीय को हिंदी से इंग्लिश में translate करे और इंग्लिश पेपर की न्यूज़ को हिंदी में translate करे तो काफी हद तक mains वाले पेपर में सहज हो सकते है।

मै भी इंग्लिश में विशेष एक्सपर्ट नही हूँ। पर इतना जरूर जानता हूँ कि  अभ्यास से  इंग्लिश में बहुत सहजता हासिल की जा सकती है। अगर किसी ने अपने आप इंग्लिश में दक्षता हासिल की हो तो प्लीज शेयर चीजो की शुरुआत कैसे की जाय।  बहुत से लोग ias main के इंग्लिश पेपर जिसकी मैंने बात की देखने के लिए उत्सुक होगे। वह पेपर आप upsc की वेब से डाउनलोड कर सकते है या फिर इस नाम(ias ki prepration hindi me ) के ग्रुप FACEBOOK में मैंने pdf फाइल upload की है वहाँ से देख सकते है। पेपर को सरसरी निग़ाह से पढ़ने के बजाय उसे पूरा हल करने की कोशिस करे फिर अपना अनुभव यहाँ पर शेयर करे।  

सोमवार, 19 मई 2014

विषय : भाग्य साहसी का साथ देता है (दूसरा और अंतिम भाग )

विषय : भाग्य साहसी का साथ देता है (दूसरा और अंतिम भाग )

History में ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जायेगे जिसमें साहसी नायको की अप्रत्याशित जीत हुई। उनके साथ मिथक जुड़ गया कि उनमें दैवीय गुण है। उनका भाग्य बहुत अच्छा है। Napoleon bonaparte का जीवन ऐसे बहुत से उदाहरणों से भरा है। उसकी सेना को अपराजेय माना जाता था। नेपोलियन कहता था कि Impossible नामक शब्द उसे शब्दकोष में नही है। नेपोलियन के समकालीनों ने उसे बहुत भाग्यशाली माना था पर क्या सच में ऐसा था। वह तो बहुत ही साधारण परिवार में पैदा हुआ था। शिक्षा -दीक्षा भी बहुत साधारण हुई थी तो फिर ये कहना कहाँ उचित है कि वो बहुत भाग्यशाली था। वास्तव में नेपोलियन को जब भी अवसर मिला उसने साहस के साथ निर्णय लिया। अपनी क्षमता -योग्यता को साबित किया। उसकी निर्भीकता ने ही उसको अप्रत्याशित सफलताये दिलायी। इस प्रकार देखा जा सकता है कि Luck भी साहसी व्यक्ति का ही साथ देता है। 

इस संसार में विविध विचारो वाले लोग रहते है। कुछ लोग हमेशा अपने संसाधनो का रोना रोते रहते है। उन्हें हर चीज से शिकायत रहती है। उन्हें अफ़सोस होता है कि काश वो किसी दौलतमंद के यहाँ पैदा होते , जीवन की सभी सुख सविधाओं का उपभोग करते। यह कितनी ख़राब सोच है। वो भूल जाते है कि सभी दौलतमंद भी कभी सामान्य आदमी थे। उन्होंने या उनके पूर्वजो ने अथक परिश्रम से ये मुकाम हासिल किया है। वैसे भी हमारे शास्त्रो में कहा गया है कि धन (लक्ष्मी) भी कर्म न करने वालो का साथ छोड़ जाती है। ऐसे लोग बहुत जल्दी भाग्य जैसी चीजो पर यकीन करने लगते है। तरह तरह के कर्मकांड , पूजा , मनौती , आदि के माध्यम से अपना समय बदलने का प्रयास करते है। अनपढ़ो कि बात छोड़ दीजिए , ऐसा करने वाले आपको उच्च शिक्षित ज्यादा मिल जायगे।
पर आप इस बारे में कभी सोचा है कि वास्तव में ये सब करने से कैसे समय बदल सकता है। यह world गतिमान है यहाँ पर हर घटना के पीछे कोई न कोई कारण होता है। ऊपर जिनका मैंने जिक्र किया है क्या वो reason हो सकते है। नही कदापि नही। 
हर सफल व्यक्ति के कहानी के मूल में एक ही कारण होता है। उसने सही Direction में लगातार प्रयास किया। सफलता असफलता से परे उसने सिर्फ कर्म पर जोर दिया। इसलिए ऐसा भी कहा गया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता खुद होता है। जिम रो के अनुसार किताबी शिक्षा आपको जीविका दे सकती है पर स्व शिक्षा आपको बताएगी कि भाग्य वास्तव में क्या होता है। आप क्या सीखते है कैसे सीखते है इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है। आप का नजरिया ही आपके भाग्य का निर्माण करता है। हमे हमेशा चीजो को सकारात्मक तौर पर देखना चाहिए। 
लुइस पैस्टर के अनुसार भाग्य केवल सक्रिय दिमाग का साथ देता है। इसका मतलब है कि हमे हमेशा सक्रिय रहना चाहिए। अवसरो के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। आप हमेशा से सुनते आ रहे है कि अवसर एक बार आपके दरवाजे पर दस्तक देता है। तो क्या आप अपने अवसर की उसकी प्रतीक्षा करेगे कि कब वह आपके दरवाजे पर दस्तक दे और आप उस अवसर का लाभ उठाये। नही मित्र नही आज के समय के अनुसार बी. सी. फोर्ब्स का कथन याद रखना चाहिए “ अवसर शायद ही कभी आपके दरवाजे पर दस्तक दे। आप खुद अवसर के दरवाजे पर दस्तक दे कर प्रवेश कर जाईये। आज का समय चुनौतियों से भरा है। अवसर कम , प्रतिभागी ज्यादा। ऐसे में आप को दुसरो से बेहतर तरीके से अपने आप को प्रस्तुत करना होगा। 
नेपोलियन हिल के अनुसार सभी प्रकार के भाग्य का शुरुवाती बिंदु विचार होते है। सच में विचारों की Energy जिसने पहचान ली उसका समय बदलते देर नही लगती है। वास्तव में हम वैसा ही बनते है जैसे हमारे विचार होते है। अपने विचारों को सदा सकारात्मक रखिये। मन में हमेशा खुशी महसूस कीजिये। यही Life का फलसफा है। अपने लक्ष्य के बारे में हर पल सोचते रहे। अपने संसाधनो की कमी का रोना रोने के बजाय , यह सोचे कि आप अपना सर्वोतम , best कैसे दे सकते है। अपने वो पंक्तियाँ तो सुनी ही होगी पंखो से कुछ नही होता है हौसलों से उड़ान होती है। 
थामस फुलर के अनुसार एक बुद्धिमान व्यक्ति अवसर को एक अच्छे भाग्य में बदल देता है। इसलिए यह सोचना कि मेरा भाग्य खराब है, उचित नही है। ऐसी सोच लेकर आप अपना कीमती समय नष्ट न करें। स्वंय को मिले अवसरो को सफलता में बदल दीजिये। सफलता को अपनी आदत बना लीजिये। हमारे आस पास ऐसे कई लोग होते है जो सदैव सफल होते है। क्या आप ने इस बारे में विचार किया है कि उनकी सफलता का secret क्या है ? आप उनसे बात करे उनका Answer निश्चित ही यही होगा कि उनके मन में डर नाम कि कोई चीज नही है। 
वर्जिल के अनुसार डर कमजोर दिमाग की निशानी है इसलिए अपने दिमाग से डर को हमेशा के लिए निकल देना चाहिए। डर के चलते ही शंका का जन्म होता है। शंका व्यक्ति के मन में कमजोरी लाती है। धीरे धीरे व्यक्ति की सोच नकारात्मक हो जाती है। ऐसे में उसका असफल होना स्वाभाविक है। लगातार असफलता व्यक्ति के साहस को खत्म कर देती है और जैसे ही साहस ने साथ छोड़ा , भाग्य भी आप का साथ छोड़ जाता है।
Friends इस लिए अपनी असफलताओ को भूल कर नये सिरे से पयास करे । Geeta की शिक्षा फल की इच्छा छोड़ कर कर्म करने पर यकीन करते रहे । धीरे धीरे आपका भी समय बदलेगा। जीवन में आये अवसरों को पहचाने , साहस के साथ निर्णय ले। अपने निर्णय पर अडिग रहे। आप भी एक दिन कह उठेगे कि भाग्य साहसी का ही साथ देता है।

गुरुवार, 1 मई 2014

पेरणादायक कहानी

बहुत बार हम इतना हताश होते हैं कि कुछ भी नहीं सूझता है आज एक ऎसी ही सत्य कथा... कुछ बरस पहले इसे दैनिक जागरण ने सबसे पेरणादायक कहानी के तौर पर पकाशित कर चुका है । शेयर करना मत भूलना हो सकता है किसी को नयी राह दिख जाय

मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

विषय : भाग्य साहसी का साथ देता है (पहला भाग )

विषय : भाग्य साहसी का साथ देता है   (पहला भाग )
                       


प्राचीन यूनानी कवि वर्जिल ने उस समय के युवाओ को सम्बोधित करते हुए लिखा था कि  fortune favors the brave. भाग्य को किसी निश्चित रूप में परिभाषित करना कठिन है।  यदि कोई लगातार सफल होता है तो कहा  जाता है कि  वह किस्मत का धनी है।  उसका luck अच्छा है जहाँ सफलता की सम्भावना न्यूनतम हो पर सफलता मिल जाय तो भाग्य को श्रेय दिया जाता है।  वास्तव में जो सफल होता है उसे पता होता है कि भाग्य जैसी कोई चीज नही थी।  उससे जुड़े लोग होते है जो व्यक्ति की मेहनत , उसके साहस को श्रेय देने के बजाय व्यक्ति के भाग्य पर जोर देने लगते है।
    इस संसार में दो तरह के लोग होते है जो success  को कुछ निश्चित गुणों पर आधारित मानते है।  दूसरे वो है जो सफलता भाग्य आधारित मानते हैं।  देखा जाय तो असफल आदमी ही भाग्य पर अधिक जोर देते है। वास्तव में भाग्य जैसी कोई चीज होती ही नही है। यह सबकुछ साहस ही होता है जो व्यक्ति को लगातार सफलता दिलाता है।  जिसके भीतर साहस है व्यक्ति सफल है।  साहसी व्यक्ति चुनौती स्वीकार करता है।  निर्भीकता से हर तरह की कठनाईयों पर विजय पाता है।  साहसी व्यक्ति काटों भरे पथ पर चलने के लिए तत्पर रहता है।  डर  क्या होता है वह नही जानता है। ऐसे व्यक्ति ही भाग्यवान कहलाते है।
     मुहम्म्द अली ने courage  के बारे में लिखा है जो व्यक्ति जीवन में ज्यादा खतरे नही उठता  है वो एक साधारण जिंदगी जीने से ज्यादा कुछ नही कर सकता है। अली के इस कथन में बहुत मतलब का तत्व छुपा है। अगर आप ने जीवन में साहस नही दिखाया तो निश्चित है आप कुछ भी उल्लेखनीय नही कर सकते है।  साहस एक ऐसा मानवीय गुण है जो व्यक्ति की सफलता की  संभावना  को बड़ी मात्रा में बढ़ा देता है।  साहसी व्यक्ति के mind में हिचक नही होती है।  उसे निर्णय लेने में असमंजस का सामना नही करना पड़ता है।  एक बार जो निर्णय ले लेता है उस पर अडिग रहता है भले ही कितनी कठनाईयों का सामना क्यों ही न करना पड़े।
हम प्रायः किसी विचार को फलक पर उतारने से पहले ही अन्य लोग क्या कहेगे , कही कोई हँस न दे जैसे कारणो के चलते ही अपना मनोबल कम कर लेते है।  वास्तव में लीक तोडना , परम्परागत नियमो की अवहेलना करके अपना खुद का रास्ता बनाना आसान कर्म नही है।  साहसी लोग ही  result के बारे में विचार किये बगैर कर्म में लीन रहते है। साहसी व्यक्ति में असफलता का ख्याल आता ही नही है। वह अपनी सम्पूर्ण क्षमता , energy   अपने लक्ष्य को पाने में लगा देते है।  वास्तव में सफलता के लिए मानसिक तौर पर मजबूत होना बहुत जरूरी है।  मानसिक मजबूती , व्यक्ति को लक्ष्य के लिए हमेशा motivate करती रहती है।

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

इलाहाबाद पूर्व का आक्सफोर्ड (2)

इलाहाबाद पूर्व का आक्सफोर्ड (2)

पूर्व में मैने जिक्र किया था कि लगातार पढाई करने में इलाहाबाद का कोई जवाब नहीं है । एक वाकया याद आ रहा है मेरी ट्रेन पयाग स्टेशन से रात में 3.50 बजे थी मै पास ही एक लाज में वऱिष्ठ गुरु के पास ठहरा था मै परेशान था कि मै उतने सुबह कैसे उठ पाउगा ? गुरु ने कहा कि परेशान मत मैं उठा दूगा । मै बहुत थका था लेटते ही नींद आ गई । गुरु जी वर्णवाल वाली भूगोल पढ़ रहे थे । रात में १ बजे नींद खुली तब भी गुरु जी पढ़ रहे थे । मैं पुनः एक सो गया । 3 बजे मुझे उठाया तब भी वह पढ़ रहे थे मुझे बहुत आश्चर्य हुआ मैंने पूछा कि क्या मेरे लिए जग रहे थे? वो बोले कि मैं तो रोज ही 4 बजे तक जग कर पढता हूँ । यह 2008-09 की बात होगी मुझे यह बात बहुत नयी लगी । एक स्कूल के दिनों में मम्मी रोज सुबह मुझे 5 बजे उठा देती थी मैं कम्बल या चद्दर ओढ कर बैठता था उसका बहुत सहारा मिला करता था मौका देख कर सो जाता था पर मम्मी बहुत सख्त थी बीच बीच में पूछती रहती सो रहे हो मैं चिल्ला कर कहता कहॉ सो रहा हूँ । पर वो अक्सर मुझे सोते देख मेरे सामने से किताब हटा कर पूछती पढ़ रहे हो? जाहिर है कि मैं पकड़ा जाता क्योंकि चौक कर जगने पर देखता कि किताब सामने न होने पर भी चिल्ला कर बोल रहा हूँ ।
तैयारी के दिनों मे कुछ घन्टे खुद ही पढ़ने लगा पर इलाहबाद वाले गुरु की लगन देख कर असली गति आयी । पढ़ने का जनून सा हो गया । चितक जी की भी बात जोड कर कहूं तो चाहे जितनी गर्मी लगे चाहे जितना पसीना बहे पढते रहो कितना ही जाड़ा क्यों न हो पढते रहो किसी के लिए नहीं अपने लिए । आप एक सफलता के लिए परेशान हो मैं कहता हूँ आप इतना करो तो सही असफलता नामक शब्द आप के शब्द कोश से मिट जायेगा ।

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

जो परेशान है

जो परेशान है 
इस ब्लॉग  के जरिए बहुत से नये और अच्छे मित्रों से परिचित होने का अवसर मिला है. आज कुछ ऎसी बात करन जा रहा हूँ जो हर किसी से जुड़ी है . कुछ दिनों पहले यहाँ  पर मुझे एक मैसेज मिला. एक मित्र विदेश में जाब कर रहे हैं बहुत परेशान थे देश आने के लिए और सरकारी सेवक बनने के लिए... इस के पहले एक दोस्त का व्हाट एप पर मैसेज आया था कि सर कोई नावेल बताये बहुत परेशान हूँ कुछ प्रेरणादायक हो. 

आज भी इक मैसेज मिला सार था कि संघर्ष कर रहे हैं. 
मैंने सबसे वादा किया था कि एक पोस्ट इस पर जरूर करूगा आज मन हल्का करने का प्रयास करता हूँ. 
सच तो यह है मेरे दोस्त कि यहाँ हर कोई परेशान है जो बेरोजगार है नौकरी पाने के लिए परेशान है जो नौकरी में है वह सरकारी नौकरी पाने के लिए परेशान है जो सरकारी नौकरी में है वह बड़ी नौकरी पाने को परेशान है और जो बड़ी नौकरी में है वह कलेक्टर बनने के लिए परेशान है थोड़ा और बात करें तो जो मुख्यमंत्री है वह पधानमंत्री बनने के लिए परेशान है और जो पधानमंत्री है वह इतना परेशान है कि खामोशी इख्तियार कर लेता है. 
सच तो यह है कि परेशान मैं भी हूँ आप भी है हर कोई परेशान है. वजह पता क्या है ? जो होना चाहिए और जो है उसके बीच का अंतर । आप जो बनना चाहते थे और जो बन पाए उसके बीच का तनाव । जो बेरोजगारी झेल रहे हैं उन्हें यह जानकर बहुत हैरानी होगी पर सच यही है कि आप से कहीं ज्यादा तनावग्रस्त नौकरी कर रहे मित्र उठा रहे हैं । ( आशा करता हूँ मैं आप के मन की बात रख पाया हूँ पोस्ट अधूरी है बहुत सी बातें हैं अगला भाग आपके कमेंट पर निर्भर करेगा । मैं कभी अपनी पोस्ट के लिए लाइक या शेयर का आग्रह नहीं करता हूँ वजह मुझे लगता है कि पोस्ट में गुणवत्ता होगी तो लोग इक रोज खुद ही साथ आ जायेेगे । यह पोस्ट अपवाद सरीखी है सबको नही पर जिसको इस की जऱूरत उनके साथ इसे जरूर शेयर करे. पेज पर भीड़ बढ़ाने का उद्देश्य जरा भी नहीं है पर समान विचार धारा के लोगो को इससे जरूर जोडे. )

इलाहाबाद : पूर्व का आक्सफोर्ड वाला शहर

इलाहाबाद : पूर्व का आक्सफोर्ड वाला शहर 

मेरे बड़ी हसरत रही है कि किसी नामचीन विश्वविद्यालय से पढाई करू और तैयारी करने के लिए इलाहाबाद में रहूँ । दोनों ही इच्छा अधूरी रह गयी । इलाहबाद से मेरी दोनों तरह की यादें जुड़ी हैं । इसी शहर में मेरे सारे पढाई से जुड़े मूल डाक्यूमेंट रेलवे स्टेशन पर किसी ने पार कर दिया तो दूसरी ओर चिंतक जी जैसे अजीज दोस्त दिये । इन्द्रजीत राना, अरविन्द चौधरी (दोनों असिस्टेंट कमांडेंट ), शिवेन्द (सीपियो इंसपेक्टर ), अमित गुप्ता ( पी. सी. एस. आयोग ) अनिल साहू (टी. जी टी ) जैसे मित्रों की लम्बी फेरहिस्त है जिनकी कहानी सुनकर सुस्त से सुस्त युवा भी दिलोजान से पढाई करने लगे.. जिनकी जीवन कथा मायूस, हताश युवा के लिए अमृत से कम न होगी । इस ब्लॉग  के माध्यम से बहुत नये इलाहाबादी मित्र जुड़ गए हैं मुझे टूटे हुए अंतराल जुड़ने की ख़ुशी है ।
मुझे जरा हिचक हो रही हैं इस पर  ऐसी पोस्ट करते हुए क्योंकि इसमें डायरेक्ट पढाई से जुड़ा कुछ भी नहीं है । पोस्ट करने के पीछे कुछ मित्रों का इलाहाबाद से जुड़े संस्मरण लिखने का पुराना आग्रह था । पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ कि मैं इलाहाबाद में कभी भी नियमित नही रहा हूँ । मेरे सारी पढाई मेरे शहर उन्नाव में ही हुई हैं । इलाहाबाद मैं २ , ३ महीने में एक दो दिन के किताबें खरीदने जाता था इस दौरान ही मैने इस खूबसूरत शहर को जाना । २० , २५ दिनों के अनुभवों के आधार पर ही लिखने की जुर्रत कर रहा हूँ । गलती से अगर शहर के अनुरूप न बन पड़े तो माफ करना । यह 2006 से 2010 तक के दौरान का इलाहाबाद है ।
मैने बताया कि इलाहाबाद किताबो के लिए जाता था पता है क्यों क्योंकि इलाहाबाद का खरा दावा है कि उससे सस्ती किताबें कोई शहर उपलब्ध नहीं करा सकता है । आप हैरानी होगी कि यहाँ योजना, कुरूक्षेत्र मे भी कुछ ऱुपये की छूट मिल जाती हैं. दर्पण, कृानिकल की बात ही मत करिए ।
इलाहाबाद की सबसे अच्छी बात, चीजों का सस्ता होना है उन दिनों समोसा और चाय 1 रूपये में मिला करती थी (ताज़ा रेट क्या है? ) । किसी यार दोस्त की आवभगत 10 रूपये में अच्छे से की जा सकती है । शहर में बहुत ही मिठास है यहाँ पर अनजान मित्र का भी स्वागत बहुत हर्ष से किया जाता है । खाना बनाने खासकर पनीर में बड़े बड़े खानसामे मात खा जाय । खाने से याद आया कि दोपहर में बहुतायत साथी दाल चावल ही बनाते हैं (थे ) इससे दोहरा फायदा होता है समय की बचत और पेट भी हल्का (है न सीखने वाली बात ) । दोपहर में हल्की नींद लेना वहाँ के जीवन का अनिवार्य हिस्सा हैं.. अ.. अ.. क्या लगता कि वो यह सब करते हैं तो पढते कब है?
अगर आप को कभी कोई इलाहाबादी यह कहे कि पढ़ने में अभी तुम बच्चे हो तो बुरा मत मानना । जितनी देर, एकाग्र होकर वह पढ सकते हैं आप से शायद ही हो पाये । चिंतक जी वाली कहानी याद है न कैसे मुझे डॉटा था कि इस कमरे में भी बात नहीं होगी । सब बातें ठीक है पर एकाग्रता से समझौता नहीं ।
इलाहाबाद से मैने बहुत कुछ सीखा है पर एक जरुरी चीज़ न सीख पाया.. वह है सर कहना । शायद यह छोटे शहर के, साधारण कालेज की पढ़ाई का नतीजा है कि हमउम्र के लिए सर नहीं निकल पाता । इलाहाबाद मे सर के विशेष मायने है सर मतलब केवल रोब गाठने से नहीं है । सर आप के हर काम में मदद करते हैं... कमरा दिलाना, सामान, किताबें, प्रेम मोहब्बत से लेकर मार पीट तक... ( भागीदारी भवन में एक सर काफी परेशान लग रहे थे पता चला कि किसी को साथी के रूम पर पुलिस गई थी सर उसको हास्टल में छुपाने के लिए परेशान थे ) भागीदारी भवन में ही मुझे किताब की जरूरत थी मैने एक मित्र को रूपये दिए । मित्र जब किताब लाये तो पता चला कि उसके दाम बढ़ गये । मैने जब रूपये देने चाहे तो नाराज होकर बोले कि सर कहने के मायने जानते हो । इलाहाबाद मैं सच में नहीं जानता था ( राना सर किरण इतिहास के 10 रूपये आज भी मुझ पर उधार है पर मैं उन्हें चुका नही सकता शायद कभी नहीं )


यदि आप इस बार आईएएस के प्रीएग्जाम में बैठने जा रहे है तो आपके लिए कुछ जरूरी सलाह



नोट: इस पोस्ट के लिए अपने गैलेक्सी फोन का जिसके चलते इतनी बड़ी पोस्ट हिंदी में लिख पाया और एक ३ घण्टे के ट्रेन सफर का आभारी हूँ । इलाहाबाद क्या आप इसे पढ़ रहे है ? पोस्ट जारी रहेगी । इलाहाबाद के मित्र कृपया इसे शेयर करे.. बदलाव के बारे में बताएं

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

न्यू डील कार्यक्रम


न्यू डील कार्यक्रम : 1929की मंदी से निपटने के लिएअमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट ने1933 से इसकी शुरूआत की । इसमें रिलीफ, रिकवरी रिफोर्म परजोर दिया गया । इसे 3 आर केनाम से भी जाना जाता है ।रिलीफ यानी राहत गरीबी भुखमरी बेरोजगारी से दी गई ।रिकवरी का संबंध अर्थव्यवस्था से था । रिफोर्म यानी सुधार वित्तीय संस्थानों मेंकिया गया ।

विश्व आर्थिक मंदी

विश्व आर्थिक मंदी : 1929 में अमेरिका के शेयर बाजार में गिरावट के साथ इसकी शुरूआत मानी जाती है । पहले विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में वस्तुओं के उत्पादन में बहुत तेजी आई । उत्पादन में इस तेजी के अनुकूल बाजार में खरीदने की शक्ति का विकास न हुआ था । यूरोप के देश जो अमरीका के लिए बजार थे पहले विश्व युद्ध की मार से पीड़ित थे। इस प्रकार इस संकट का कारण वस्तुओं की कमी न हो कर उनका अति उत्पादन था । बड़े स्तर पर बेरोजगारी, उत्पादन में कमी, गरीबी और भुखमरी इस मंदी के परिणाम थे. 1933 में रूजवेल्ट अमेरिका के राष्ट्रपति बने जिन्होंने ने " न्यूडील " कार्यक्रम लागू किया । इसमें मजदूरों की दशा सुधारने और रोजगार पैदा करने के लिए सरकारी कदम उठाये गए

रविवार, 13 अप्रैल 2014

संगम साहित्य

संगम साहित्य :  दक्षिण भारत के प्राचीन समय के  इतिहास के बारे में संगम साहित्य की उपयोगिता अनन्य है . इस साहित्य में उस समय के तीन राजवंसो के बारे में जिक्र है  चोल , चेर , पाण्ड्य . संगम तमिल कवियों का संघ था . यह पाण्ड्य शासको के संरक्षण में हुए थे . कुल तीन संगम का जिक्र हुआ है . प्रथम संगम मदुरा में अगस्त्य ऋषि के अध्यक्षता में हुआ था . तोल्क्पियम , सिल्प्दिकाराम , मणिमेखले कुछ महत्वपूर्ण संगम महाकाव्य है . जैसा कि प्राचीन भारतीय इतिहास ग्रंथो में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णनों की भरमार मिलती है संगम साहित्य भी इसका अपवाद नही है . इसलिए इन ग्रंथो को आधार मानकर इतिहास लिखना उचित नही माना गया है फिर भी   दक्षिण भारत के प्राचीन समय के  इतिहास की रुपरेखा जानने में यह बहुत सहायक है .

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मुझे किसी भी  सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE  में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेर...