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बुधवार, 18 जून 2014

क्या दया दुःख का कारण है ?

क्या दया दुःख का कारण है ?

बहुत सी बाते हमे तब तक समझ न आती है जब तक स्वम अनुभव न की जाय। दो बरस पहले यही अहमदाबाद की बात है। दीपावली के २ या ३ रोज पहले की बात होगी। मेरे रूम पार्टनर मनोज श्रीवास्तव शाम को ऑफिस से लौट कर आये तो काफी परेशान थे। मुझे लगा कि हमेशा की तरह ऑफिस की प्रॉब्लम होगी पर उनकी परेशानी का कारण कुछ और था। दरअसल जब वह पैदल घर लौट रहे थे कुछ कुछ अधेरा हो गया था। उन्होंने एक बुढ़िया को सड़क के किनारे मिट्टी की दिवाली बेचते देखा था। एक दीपक जला कर वह बुढ़िया अपने दोनों पैरो बीच सर गड़ाए बैठी थी। बुढ़िया की अवस्था और गरीबी उनके मन को बहुत द्रवित कर दिया था। मुझे बार बार यही कह रहा था कि पता नही आज रात उसके पास क्या कुछ खाने को होगा। उसकी दिवाली कैसे मनेगी। उस रोज मुझे मनोज की बात का ज्यादा कुछ असर न हुआ था मुझे लगा पता नही इनको क्यू ऐसी चिता होने लगी।
पर जब चीजे सामने आती है तब आप उनसे निरपेक्ष नही रह सकते है। ऑफिस के करीब मै भी रहता हु और पैदल ही आता जाता हूँ। अहमदाबाद का सबसे पॉश एरिया मेमनगर को माना जाता है चारो तरफ आसमान से बाते करती इमारते खड़ी है। सारे शहर के लोग यहाँ पर शॉपिंग करने आते है। देर रात तक चहल पहल बनी रहती है। यही मानव मंदिर के पास साम्राज्य टावर है १०, १० मंजिल के ५ , ६ ब्लॉक होंगे। अंदर स्वीमिंग पूल भी है। वीक एंड पर मैं भी वहाँ स्वीमिंग करने चला जाता हूँ। पर इस टॉवर के बाहर वो बैठता है. रोज तो नही दिखता पर जिस रोज दिखता उस रोज सारा दिन उसके बारे में सोचता रहता हूँ। इतनी कड़ी धूप में वो सारा दिन कोने में बैठा रहता है। कई बार एक फटी टाट की पल्ली तान लेता है और अपने ग्राहकों का इंतजार करता है। मै एक पोलिश करने वाले , चप्पल सिलने वाले की बात कर रहा हूँ। सामने एक मैदान से होकर जब भी गुजरता हूँ हमेशा सोचता हूँ यह दिन में कितने रूपये कमा पाता होगा। १०० रूपये या २०० इसके घर में कौन कौन होगा। तरह तरह के प्रश्न , मुझे भी उस रोज की तरह जब मनोज परेशान था उलझन होती है। समझ में नही आता ये विद्रूपता क्यू है। इस चका चौंध भरे शहर में इनका जीवन कैसी बीतता होगा। आखिर क्यू ये हाशिये पर है। ऐसे समय में मुझे निराला जी की प्रसिद्ध कविता "वह तोड़ती पत्थर " याद आती है शायद ऐसे ही कुछ मनोभाव रहे होंगे उनके मन में। ऎसे लोग से निरपेक्ष न रह पाने के एक वजह और भी। आप उन्हें इतनी मेहनत करते देखते है उनकी काम में तल्लीनता आप का ध्यान खीच ही लेती है। हो सकता है आज इस पोस्ट के भाव को पूर्ण रूप में न ले पर एक रोज आप भी ऐसे ही किसी को देख कर दिल में रो देंगे। न जाने कब ये विषमता और गरीबी खत्म होगी।

यह वो नही है पर उसका के साथी है। एक रोज उसके पास बैठ कर गुरुकुल रोड में गुजरने वाली bmw , ऑडी , मर्सडीज को देखते हुए ऊपर लिखे मनोभावों को महसूस कर रहा था

सोमवार, 16 जून 2014

वो जो झंडा उठाये है हिंदी का




सभी मित्र जो इस वर्ष सिविल सेवा में सफल हुए है उनको हार्दिक शुभकामनाये। हिंदी की क्या पोजीशन रही है अभी साफ नही है। मेरे दो परिचितों का चयन हुआ है जो कि हिंदी से है। एक १०७ रैंक पर है दूसरा २७० रैंक आस पास है। पहला आईएएस और दूसरा ips . दोनों ही मित्र पहले से भारतीय राजस्व सेवा में चयनित हो चुके थे। जब अपने किसी आस पास के साथी का चयन होता है बहुत अच्छा लगता है। मुझे बेहद खुशी है जिन मित्र का आईएएस के लिए चयन हुआ है उनसे दिल्ली में मुलाकात हुई थी। हो सकता है उनका किसी पत्रिका में इंटरव्यू भी आपको पढ़ने को मिले पर मै अपना दृश्टिकोण रखना चाहूंगा। वो बहुत ही सामान्य , सरल स्वभाव के लगे। पिछले वर्ष जबकि वह irs बन चुके थे उसके बावजूद उनके स्वभाव में कहीं भी इस बात का प्रभाव नजर नही आता। मुझे उनके बारे ज्यादा तो नही पता है पर कुछ चीजे जरूर बताना चाहूँगा। उनकी सफलता इस लिए भी खास हो जाती है कि वह शादी हो जाने के बाद भी इस परीक्षा में सफलता पाने के लिए लगे रहे। उनको प्रदर्शन में जरा भी रूचि नही है। दिल्ली में एक कोचिंग में वो पढ़ते थे पिछले साल उनके सर ने कहा कि पत्रिका में इंटरव्यू देना है तो उन्होंने मना कर दिया। वजह आप समझ सकते है इससे उनका ध्यान भंग होता। वह ख़ामोशी से लगे रहे और अपने मुकाम को पा लिया। अगर आप को सर्वोच्च तक पहुँचना है तो खामोशी अख्तियार करना ही पड़ेगा। फेसबुक में एक pic में अक्सर दिख जाती है " मेहनत इतनी खामोशी से करो कि सफलता शोर मचा दे" . साथी के बगैर अनुमति के मै यहाँ पर लिख रहा हूँ इसलिए उनके नाम का उल्लेख नही कर रहा हुँ. अभी तक वह फेसबुक पर उपलब्ध नही है (वजह फिर वही है खामोशी से काम करने की आदत ). अब शायद वह यहाँ पर उपलब्ध हो अगर सम्भव हुआ तो आप सभी से जरूर परिचय करवाऊंगा और जो पत्रिका के इंटरव्यू में बाते सामने नही आ पाती है उनको सामने लाने का प्रयास रहेगा। हिंदी की उम्मीद जीवित रखने के लिए उनको बहुत बहुत धन्यवाद। 

फुटनोट :- प्रिय मित्रो , आपने इस पेज को लाइक किया , यहाँ की पोस्ट को पसंद किया अपने मित्रो को इस पेज के लिए invite किया , पोस्ट को शेयर करते है। इसके लिए आप का हार्दिक आभार। मुझे कई लोगो ने कहा आपका पेज सबसे अलग है यहाँ की पोस्ट सबसे अलग होती है आप इनमे कुछ करने की पेरणा पाते है। यह बाते ही मुझे लिखने के  लिए प्रेरित करती है। मेरे पास अक्सर कुछ मैसेज आते है मै लगभग सभी को जबाब देने का प्रयास करता हूँ पर कुछ चीजे मुझे लगता है साफ कर देना चाहिए। दोस्तों इन प्रश्नो के जबाब देना कठिन होता है 
१.  बेस्ट किताबे कौन सी है? 
२. बेस्ट ऑप्शनल कौन सा है या फिर मै कौन सा सब्जेक्ट लू ?
३. कौन सी कोचिंग बेस्ट है ?
४. मुझे कुछ ट्रिक्स बता दीजिये ?

लगभग सभी लोग जानते है कि  मैं न तो कोई विषय का एक्सपर्ट हूँ , न मेरी कोई कोचिंग है और सबसे बड़ी बात मै इस फील्ड में सफल नही हूँ। बस हिंदी से गहरा लगाव है लेखन का शौक है उसी का रिजल्ट यह पेज है। 
वैसे इसी नाम से एक ग्रुप और ब्लॉग  है।  ग्रुप में कुछ फाइल अपलोड करने की सुविधा रहती है और ब्लॉग में सारी पोस्ट टॉपिक वाइज आसानी से जल्दी पढ़ी जा सकती है। नए मित्रो से निवेदन है कि अपनी जिज्ञासा मैसेज करने के पूर्व शुरुआत से देख ले पेज पर असुविधा हो रही है तो ब्लॉग पर देख ले ,  ध्यन्यवाद। 

कुछ दोस्तों को मै विशेष रूप से ध्यन्यवाद देना चाहुगा जो लगातार मेरी पोस्ट को शेयर करते रहते है।   








सोमवार, 9 जून 2014

वक़्त है कुछ सफाई कर ली जाए

वक़्त है  कुछ सफाई कर ली जाए 

हर पतियोगी की तरह आपको भी पुस्तको और मैगज़ीन्स से बहुत गहरा लगाव होगा। योजना , कुरुक्षेत्र , विज्ञानं पगति , frontline , क्रॉनिकल , प्रतियोगिता दर्पण जैसी कितनी ही पत्रिकाऍ आपके स्टडी रूम की शोभा बढ़ाती होंगी। जनरल स्टडी के हर सेक्शन जैसी इतिहास , भूगोल , के लिए भी कई कई टेक्स्ट बुक होगी। इसके साथ आपके ऑप्शनल की भी बहुत सी बुक होंगी। ncert की बहुत सी फोटोकॉपी भी अनिवार्य रूप से होंगी ही। ऐसे में आपका स्टडी रूम बहुत भरा भरा लगता होगा। अच्छा लगता है कि जॉब चाहो जो मन हो वो पढ़ो। पर कई बार इस लगाव और चाव के चलते काफी दिक्क़ते भी फेस करनी पड़ सकती है। जरूरत के वक़्त वांछित पुस्तक नही मिलती है उसे खोजने में काफी वक़्त जाया करना पड़ता है न मिलने पर मानसिक तनाव अलग से कि किसी साथी ने उड़ा तो नही दी। 
अगर आप किस्मत के धनी है और वैसे भी धनी है तो अलग बात है नही तो प्रशासनिक सेवा में आने के लिए औसतन ४ से ५ साल लगना तय है। इतने समय में आप के पास इतनी पुस्तके जमा हो जाती है कि छोटा मोटा पुस्तकालय खोल ले। अगर इस बीच में आपको कमरा चेंज करना पड़े तो बोरे चाहे कितने ही लादना पड़े पर आपसे एक पुस्तक या मैगज़ीन छोड़ी नही जाती। मैगज़ीन या पुस्तक से न जाने कैसा लगाव होता है कि उन्हें बेचने का दिल नही करता वो भी कबाड़ी के पास। 
पर मित्र सफाई तो करनी ही होगी वरना एक रोज आपका यह लगाव बोरियत में बदल जायेगा। शुरुआत में आप पुरानी मैगज़ीन कि छटनी कर ले। मेरे अनुसार मासिक मैगज़ीन ६ माह से पुरानी रखने का कोई मतलब नही है। बेचना नही चाहते है तो अपने आस पास के किसी ऐसे लड़के को दे दीजिए जिसने अभी अभी इंटर पास किया हो यकीन मानिये उसके लिए यह बहुत अच्छा तोहफा होगा और आपको भी अच्छा लगेगा। उससे यह कहना मत भूलना कि हर सरकारी नौकरी का रास्ता इन मैगज़ीन से होकर जाता है। टेक्स्ट बुक को हटाना उचित न होगा पर उनमे भी छटनी की जा सकती है मान लीजिये अपने दर्पण का अर्थव्यस्था वाला अतिरिक्तांक २ साल पहले लिया था तो उसका वर्तमान में सीमित उपयोग होगा। इसी नजरिये से आप अपने स्टडी रूम की अव्यवस्था काफी हद तक कम कर सकते है। 
( पोस्ट कैसी लगी ? अपने अनुभव और सुझाव प्लीज हमसे शेयर करे।) 

बुधवार, 4 जून 2014

हर एक की यही कहानी है


         जिंदगी में और कुछ हो या न पर उसे व्यवस्थित होना बहुत जरूरी लगता है। हम में बहुत से लोग सब कुछ होने के बाद भी पूरी तरीके से अपनी मानसिक शक्तियों का प्रयोग नही कर पाते है उसकी वजह यही अव्यवस्था होती है। सबसे रोचक बात यह कि इसका आपकी आर्थिक स्थिति से कोई लेना देना नही होता है। बहुत बार या कहु ज्यादातर दोस्त जो अच्छी जॉब में है (मै भी इसमें शामिल हूँ ) का जीवन बहुत अस्त व्यस्त होता है। इससे कही बेहतर और व्यवस्थित जीवन जॉब को तलाश कर रहे मित्र जीते है। आप किसी भी जॉब कर रहे साथी से , जो कि अभी अपनी पढ़ाई जारी रखे है से इस बारे में बात कर के देखे फिर आप मेरी बात से शत प्रतिशत सहमत होगे। मुझे अपने एक साथी की बात याद आती है वो कहते है कि हम अपने आप को नष्ट कर रहे है। 8 घंटे की जॉब फिर घर आकर एक स्टूडेंट की तरह पढ़ाई करना , खाना बनाना और सारे काम करना। पढ़ाई अच्छे हो इसके लिए इस बात के बहुत मायने होते है कि आप किन परिस्थितियों में पढ़ रहे है। पोस्ट लिखते समय मेरे दिमाग में सबसे हाशिये में खड़े , संसाधनहीन दोस्त का ख़्याल रहता है। मै अच्छे से जानता हूँ कि आप को अपनी पढ़ाई के साथ साथ और भी बहुत सी चीजो से जूझना पड़ता है। बहुत बार आपका टैलेंट आपके आस पास के माहौल के चलते धीरे धीरे मंद पड़ने लगता है। इसलिए जरूरी है कि कैसे भी हो अपने उत्साह को बनाये रखे। बहुत बार आपको लगेगा की अब ये संघर्ष आप से झेला न जायेगा पर अपने आप को टूटने न दे। कोशिस जारी रखे।

बुधवार, 21 मई 2014

ENGLISH LANGUAGE COMPULSORY TIPS IN HINDI

असमंजस का दौर चल रहा है ठीक से पता नही कि एग्जाम का नया पैटर्न क्या होगा। जाहिर है पढ़ाई में मन नही लग रहा होगा। कुछ भी पढ़ने बैठते है तो मन उचट जाता है  कि क्या पढ़े ? मैन्स के साथ साथ प्री में भी बदलाव होने की अफवाहे फ़ैल रही है।
ऐसी समय में अपनी निरंतरता बनाये रखने के लिए कुछ नया और रोचक काम किया जाय। यहाँ पर ज्यादातर दोस्त हिंदी माध्यम से है। हमारे साथ एक सामान्य समस्या होती है वह है english से जुड़ा भय। अब मैन्स के साथ प्री में भी english आ रही है। इस बार के mains में जिस स्तर का इंग्लिश का पेपर था उसे देख कर बहुत अच्छे इंग्लिश एक्सपर्ट को भी पसीना सकता है। बहुत बड़ा और जटिल। न तो पैसेज , एस्से , प्रेसी ,या ग्रामर किसी भी हिस्से में कुछ समझ न आया। अपवादों को छोड़ दे तो मेरी बात से आप जरूर सहमत होगे।
इंग्लिश में इस तरह की कठिनाई की मुख्य वजह उस पर टाइम न देना है। हम सारा वर्ष अपने सब्जेक्ट तैयार करते रहते है। सामान्य अध्यन की तैयारी करते रहते है पर इंग्लिश को लास्ट टाइम १ , २ दिन पढ़ कर मैन्स देने चले जाते है। upsc की तैयारी से जुड़े लोग यह अच्छे से जानते है कि अगर आप इंग्लिश के पेपर में निर्र्धारित अंक नही लाते है तो अपनी दूसरी कॉपी चेक नही की जाती है आप को अपने अंक जानने का अवसर नही मिल पता है।
इसलिए क्यों न इन दिनों इस समस्या को कुछ कम कर किया जाय। इस बार की क्रॉनिकल में विजय अग्रवाल जी काफी टिप्स दिए है उनको फॉलो कर सकते है।
मैंने पहले भी इंग्लिश पर एक पोस्टENGLISH TIPS लिखी थी। इस बार उसमे कुछ और नई चीजे जोड़ सकते है।
१. मैन्स के पेपर में आपकी इंग्लिश की क्षमता को जांचने का तरीका है कि आप इंग्लिश में अपने विचार व्यक्त कर पाते है कि नही। मेरे विचार से अगर हम नियमित तौर पर किसी पेपर के सम्पादकीय को हिंदी से इंग्लिश में translate करे और इंग्लिश पेपर की न्यूज़ को हिंदी में translate करे तो काफी हद तक mains वाले पेपर में सहज हो सकते है।

मै भी इंग्लिश में विशेष एक्सपर्ट नही हूँ। पर इतना जरूर जानता हूँ कि  अभ्यास से  इंग्लिश में बहुत सहजता हासिल की जा सकती है। अगर किसी ने अपने आप इंग्लिश में दक्षता हासिल की हो तो प्लीज शेयर चीजो की शुरुआत कैसे की जाय।  बहुत से लोग ias main के इंग्लिश पेपर जिसकी मैंने बात की देखने के लिए उत्सुक होगे। वह पेपर आप upsc की वेब से डाउनलोड कर सकते है या फिर इस नाम(ias ki prepration hindi me ) के ग्रुप FACEBOOK में मैंने pdf फाइल upload की है वहाँ से देख सकते है। पेपर को सरसरी निग़ाह से पढ़ने के बजाय उसे पूरा हल करने की कोशिस करे फिर अपना अनुभव यहाँ पर शेयर करे।  

सोमवार, 19 मई 2014

विषय : भाग्य साहसी का साथ देता है (दूसरा और अंतिम भाग )

विषय : भाग्य साहसी का साथ देता है (दूसरा और अंतिम भाग )

History में ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जायेगे जिसमें साहसी नायको की अप्रत्याशित जीत हुई। उनके साथ मिथक जुड़ गया कि उनमें दैवीय गुण है। उनका भाग्य बहुत अच्छा है। Napoleon bonaparte का जीवन ऐसे बहुत से उदाहरणों से भरा है। उसकी सेना को अपराजेय माना जाता था। नेपोलियन कहता था कि Impossible नामक शब्द उसे शब्दकोष में नही है। नेपोलियन के समकालीनों ने उसे बहुत भाग्यशाली माना था पर क्या सच में ऐसा था। वह तो बहुत ही साधारण परिवार में पैदा हुआ था। शिक्षा -दीक्षा भी बहुत साधारण हुई थी तो फिर ये कहना कहाँ उचित है कि वो बहुत भाग्यशाली था। वास्तव में नेपोलियन को जब भी अवसर मिला उसने साहस के साथ निर्णय लिया। अपनी क्षमता -योग्यता को साबित किया। उसकी निर्भीकता ने ही उसको अप्रत्याशित सफलताये दिलायी। इस प्रकार देखा जा सकता है कि Luck भी साहसी व्यक्ति का ही साथ देता है। 

इस संसार में विविध विचारो वाले लोग रहते है। कुछ लोग हमेशा अपने संसाधनो का रोना रोते रहते है। उन्हें हर चीज से शिकायत रहती है। उन्हें अफ़सोस होता है कि काश वो किसी दौलतमंद के यहाँ पैदा होते , जीवन की सभी सुख सविधाओं का उपभोग करते। यह कितनी ख़राब सोच है। वो भूल जाते है कि सभी दौलतमंद भी कभी सामान्य आदमी थे। उन्होंने या उनके पूर्वजो ने अथक परिश्रम से ये मुकाम हासिल किया है। वैसे भी हमारे शास्त्रो में कहा गया है कि धन (लक्ष्मी) भी कर्म न करने वालो का साथ छोड़ जाती है। ऐसे लोग बहुत जल्दी भाग्य जैसी चीजो पर यकीन करने लगते है। तरह तरह के कर्मकांड , पूजा , मनौती , आदि के माध्यम से अपना समय बदलने का प्रयास करते है। अनपढ़ो कि बात छोड़ दीजिए , ऐसा करने वाले आपको उच्च शिक्षित ज्यादा मिल जायगे।
पर आप इस बारे में कभी सोचा है कि वास्तव में ये सब करने से कैसे समय बदल सकता है। यह world गतिमान है यहाँ पर हर घटना के पीछे कोई न कोई कारण होता है। ऊपर जिनका मैंने जिक्र किया है क्या वो reason हो सकते है। नही कदापि नही। 
हर सफल व्यक्ति के कहानी के मूल में एक ही कारण होता है। उसने सही Direction में लगातार प्रयास किया। सफलता असफलता से परे उसने सिर्फ कर्म पर जोर दिया। इसलिए ऐसा भी कहा गया है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता खुद होता है। जिम रो के अनुसार किताबी शिक्षा आपको जीविका दे सकती है पर स्व शिक्षा आपको बताएगी कि भाग्य वास्तव में क्या होता है। आप क्या सीखते है कैसे सीखते है इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है। आप का नजरिया ही आपके भाग्य का निर्माण करता है। हमे हमेशा चीजो को सकारात्मक तौर पर देखना चाहिए। 
लुइस पैस्टर के अनुसार भाग्य केवल सक्रिय दिमाग का साथ देता है। इसका मतलब है कि हमे हमेशा सक्रिय रहना चाहिए। अवसरो के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। आप हमेशा से सुनते आ रहे है कि अवसर एक बार आपके दरवाजे पर दस्तक देता है। तो क्या आप अपने अवसर की उसकी प्रतीक्षा करेगे कि कब वह आपके दरवाजे पर दस्तक दे और आप उस अवसर का लाभ उठाये। नही मित्र नही आज के समय के अनुसार बी. सी. फोर्ब्स का कथन याद रखना चाहिए “ अवसर शायद ही कभी आपके दरवाजे पर दस्तक दे। आप खुद अवसर के दरवाजे पर दस्तक दे कर प्रवेश कर जाईये। आज का समय चुनौतियों से भरा है। अवसर कम , प्रतिभागी ज्यादा। ऐसे में आप को दुसरो से बेहतर तरीके से अपने आप को प्रस्तुत करना होगा। 
नेपोलियन हिल के अनुसार सभी प्रकार के भाग्य का शुरुवाती बिंदु विचार होते है। सच में विचारों की Energy जिसने पहचान ली उसका समय बदलते देर नही लगती है। वास्तव में हम वैसा ही बनते है जैसे हमारे विचार होते है। अपने विचारों को सदा सकारात्मक रखिये। मन में हमेशा खुशी महसूस कीजिये। यही Life का फलसफा है। अपने लक्ष्य के बारे में हर पल सोचते रहे। अपने संसाधनो की कमी का रोना रोने के बजाय , यह सोचे कि आप अपना सर्वोतम , best कैसे दे सकते है। अपने वो पंक्तियाँ तो सुनी ही होगी पंखो से कुछ नही होता है हौसलों से उड़ान होती है। 
थामस फुलर के अनुसार एक बुद्धिमान व्यक्ति अवसर को एक अच्छे भाग्य में बदल देता है। इसलिए यह सोचना कि मेरा भाग्य खराब है, उचित नही है। ऐसी सोच लेकर आप अपना कीमती समय नष्ट न करें। स्वंय को मिले अवसरो को सफलता में बदल दीजिये। सफलता को अपनी आदत बना लीजिये। हमारे आस पास ऐसे कई लोग होते है जो सदैव सफल होते है। क्या आप ने इस बारे में विचार किया है कि उनकी सफलता का secret क्या है ? आप उनसे बात करे उनका Answer निश्चित ही यही होगा कि उनके मन में डर नाम कि कोई चीज नही है। 
वर्जिल के अनुसार डर कमजोर दिमाग की निशानी है इसलिए अपने दिमाग से डर को हमेशा के लिए निकल देना चाहिए। डर के चलते ही शंका का जन्म होता है। शंका व्यक्ति के मन में कमजोरी लाती है। धीरे धीरे व्यक्ति की सोच नकारात्मक हो जाती है। ऐसे में उसका असफल होना स्वाभाविक है। लगातार असफलता व्यक्ति के साहस को खत्म कर देती है और जैसे ही साहस ने साथ छोड़ा , भाग्य भी आप का साथ छोड़ जाता है।
Friends इस लिए अपनी असफलताओ को भूल कर नये सिरे से पयास करे । Geeta की शिक्षा फल की इच्छा छोड़ कर कर्म करने पर यकीन करते रहे । धीरे धीरे आपका भी समय बदलेगा। जीवन में आये अवसरों को पहचाने , साहस के साथ निर्णय ले। अपने निर्णय पर अडिग रहे। आप भी एक दिन कह उठेगे कि भाग्य साहसी का ही साथ देता है।

गुरुवार, 1 मई 2014

पेरणादायक कहानी

बहुत बार हम इतना हताश होते हैं कि कुछ भी नहीं सूझता है आज एक ऎसी ही सत्य कथा... कुछ बरस पहले इसे दैनिक जागरण ने सबसे पेरणादायक कहानी के तौर पर पकाशित कर चुका है । शेयर करना मत भूलना हो सकता है किसी को नयी राह दिख जाय

मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

विषय : भाग्य साहसी का साथ देता है (पहला भाग )

विषय : भाग्य साहसी का साथ देता है   (पहला भाग )
                       


प्राचीन यूनानी कवि वर्जिल ने उस समय के युवाओ को सम्बोधित करते हुए लिखा था कि  fortune favors the brave. भाग्य को किसी निश्चित रूप में परिभाषित करना कठिन है।  यदि कोई लगातार सफल होता है तो कहा  जाता है कि  वह किस्मत का धनी है।  उसका luck अच्छा है जहाँ सफलता की सम्भावना न्यूनतम हो पर सफलता मिल जाय तो भाग्य को श्रेय दिया जाता है।  वास्तव में जो सफल होता है उसे पता होता है कि भाग्य जैसी कोई चीज नही थी।  उससे जुड़े लोग होते है जो व्यक्ति की मेहनत , उसके साहस को श्रेय देने के बजाय व्यक्ति के भाग्य पर जोर देने लगते है।
    इस संसार में दो तरह के लोग होते है जो success  को कुछ निश्चित गुणों पर आधारित मानते है।  दूसरे वो है जो सफलता भाग्य आधारित मानते हैं।  देखा जाय तो असफल आदमी ही भाग्य पर अधिक जोर देते है। वास्तव में भाग्य जैसी कोई चीज होती ही नही है। यह सबकुछ साहस ही होता है जो व्यक्ति को लगातार सफलता दिलाता है।  जिसके भीतर साहस है व्यक्ति सफल है।  साहसी व्यक्ति चुनौती स्वीकार करता है।  निर्भीकता से हर तरह की कठनाईयों पर विजय पाता है।  साहसी व्यक्ति काटों भरे पथ पर चलने के लिए तत्पर रहता है।  डर  क्या होता है वह नही जानता है। ऐसे व्यक्ति ही भाग्यवान कहलाते है।
     मुहम्म्द अली ने courage  के बारे में लिखा है जो व्यक्ति जीवन में ज्यादा खतरे नही उठता  है वो एक साधारण जिंदगी जीने से ज्यादा कुछ नही कर सकता है। अली के इस कथन में बहुत मतलब का तत्व छुपा है। अगर आप ने जीवन में साहस नही दिखाया तो निश्चित है आप कुछ भी उल्लेखनीय नही कर सकते है।  साहस एक ऐसा मानवीय गुण है जो व्यक्ति की सफलता की  संभावना  को बड़ी मात्रा में बढ़ा देता है।  साहसी व्यक्ति के mind में हिचक नही होती है।  उसे निर्णय लेने में असमंजस का सामना नही करना पड़ता है।  एक बार जो निर्णय ले लेता है उस पर अडिग रहता है भले ही कितनी कठनाईयों का सामना क्यों ही न करना पड़े।
हम प्रायः किसी विचार को फलक पर उतारने से पहले ही अन्य लोग क्या कहेगे , कही कोई हँस न दे जैसे कारणो के चलते ही अपना मनोबल कम कर लेते है।  वास्तव में लीक तोडना , परम्परागत नियमो की अवहेलना करके अपना खुद का रास्ता बनाना आसान कर्म नही है।  साहसी लोग ही  result के बारे में विचार किये बगैर कर्म में लीन रहते है। साहसी व्यक्ति में असफलता का ख्याल आता ही नही है। वह अपनी सम्पूर्ण क्षमता , energy   अपने लक्ष्य को पाने में लगा देते है।  वास्तव में सफलता के लिए मानसिक तौर पर मजबूत होना बहुत जरूरी है।  मानसिक मजबूती , व्यक्ति को लक्ष्य के लिए हमेशा motivate करती रहती है।

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

इलाहाबाद पूर्व का आक्सफोर्ड (2)

इलाहाबाद पूर्व का आक्सफोर्ड (2)

पूर्व में मैने जिक्र किया था कि लगातार पढाई करने में इलाहाबाद का कोई जवाब नहीं है । एक वाकया याद आ रहा है मेरी ट्रेन पयाग स्टेशन से रात में 3.50 बजे थी मै पास ही एक लाज में वऱिष्ठ गुरु के पास ठहरा था मै परेशान था कि मै उतने सुबह कैसे उठ पाउगा ? गुरु ने कहा कि परेशान मत मैं उठा दूगा । मै बहुत थका था लेटते ही नींद आ गई । गुरु जी वर्णवाल वाली भूगोल पढ़ रहे थे । रात में १ बजे नींद खुली तब भी गुरु जी पढ़ रहे थे । मैं पुनः एक सो गया । 3 बजे मुझे उठाया तब भी वह पढ़ रहे थे मुझे बहुत आश्चर्य हुआ मैंने पूछा कि क्या मेरे लिए जग रहे थे? वो बोले कि मैं तो रोज ही 4 बजे तक जग कर पढता हूँ । यह 2008-09 की बात होगी मुझे यह बात बहुत नयी लगी । एक स्कूल के दिनों में मम्मी रोज सुबह मुझे 5 बजे उठा देती थी मैं कम्बल या चद्दर ओढ कर बैठता था उसका बहुत सहारा मिला करता था मौका देख कर सो जाता था पर मम्मी बहुत सख्त थी बीच बीच में पूछती रहती सो रहे हो मैं चिल्ला कर कहता कहॉ सो रहा हूँ । पर वो अक्सर मुझे सोते देख मेरे सामने से किताब हटा कर पूछती पढ़ रहे हो? जाहिर है कि मैं पकड़ा जाता क्योंकि चौक कर जगने पर देखता कि किताब सामने न होने पर भी चिल्ला कर बोल रहा हूँ ।
तैयारी के दिनों मे कुछ घन्टे खुद ही पढ़ने लगा पर इलाहबाद वाले गुरु की लगन देख कर असली गति आयी । पढ़ने का जनून सा हो गया । चितक जी की भी बात जोड कर कहूं तो चाहे जितनी गर्मी लगे चाहे जितना पसीना बहे पढते रहो कितना ही जाड़ा क्यों न हो पढते रहो किसी के लिए नहीं अपने लिए । आप एक सफलता के लिए परेशान हो मैं कहता हूँ आप इतना करो तो सही असफलता नामक शब्द आप के शब्द कोश से मिट जायेगा ।

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

जो परेशान है

जो परेशान है 
इस ब्लॉग  के जरिए बहुत से नये और अच्छे मित्रों से परिचित होने का अवसर मिला है. आज कुछ ऎसी बात करन जा रहा हूँ जो हर किसी से जुड़ी है . कुछ दिनों पहले यहाँ  पर मुझे एक मैसेज मिला. एक मित्र विदेश में जाब कर रहे हैं बहुत परेशान थे देश आने के लिए और सरकारी सेवक बनने के लिए... इस के पहले एक दोस्त का व्हाट एप पर मैसेज आया था कि सर कोई नावेल बताये बहुत परेशान हूँ कुछ प्रेरणादायक हो. 

आज भी इक मैसेज मिला सार था कि संघर्ष कर रहे हैं. 
मैंने सबसे वादा किया था कि एक पोस्ट इस पर जरूर करूगा आज मन हल्का करने का प्रयास करता हूँ. 
सच तो यह है मेरे दोस्त कि यहाँ हर कोई परेशान है जो बेरोजगार है नौकरी पाने के लिए परेशान है जो नौकरी में है वह सरकारी नौकरी पाने के लिए परेशान है जो सरकारी नौकरी में है वह बड़ी नौकरी पाने को परेशान है और जो बड़ी नौकरी में है वह कलेक्टर बनने के लिए परेशान है थोड़ा और बात करें तो जो मुख्यमंत्री है वह पधानमंत्री बनने के लिए परेशान है और जो पधानमंत्री है वह इतना परेशान है कि खामोशी इख्तियार कर लेता है. 
सच तो यह है कि परेशान मैं भी हूँ आप भी है हर कोई परेशान है. वजह पता क्या है ? जो होना चाहिए और जो है उसके बीच का अंतर । आप जो बनना चाहते थे और जो बन पाए उसके बीच का तनाव । जो बेरोजगारी झेल रहे हैं उन्हें यह जानकर बहुत हैरानी होगी पर सच यही है कि आप से कहीं ज्यादा तनावग्रस्त नौकरी कर रहे मित्र उठा रहे हैं । ( आशा करता हूँ मैं आप के मन की बात रख पाया हूँ पोस्ट अधूरी है बहुत सी बातें हैं अगला भाग आपके कमेंट पर निर्भर करेगा । मैं कभी अपनी पोस्ट के लिए लाइक या शेयर का आग्रह नहीं करता हूँ वजह मुझे लगता है कि पोस्ट में गुणवत्ता होगी तो लोग इक रोज खुद ही साथ आ जायेेगे । यह पोस्ट अपवाद सरीखी है सबको नही पर जिसको इस की जऱूरत उनके साथ इसे जरूर शेयर करे. पेज पर भीड़ बढ़ाने का उद्देश्य जरा भी नहीं है पर समान विचार धारा के लोगो को इससे जरूर जोडे. )

इलाहाबाद : पूर्व का आक्सफोर्ड वाला शहर

इलाहाबाद : पूर्व का आक्सफोर्ड वाला शहर 

मेरे बड़ी हसरत रही है कि किसी नामचीन विश्वविद्यालय से पढाई करू और तैयारी करने के लिए इलाहाबाद में रहूँ । दोनों ही इच्छा अधूरी रह गयी । इलाहबाद से मेरी दोनों तरह की यादें जुड़ी हैं । इसी शहर में मेरे सारे पढाई से जुड़े मूल डाक्यूमेंट रेलवे स्टेशन पर किसी ने पार कर दिया तो दूसरी ओर चिंतक जी जैसे अजीज दोस्त दिये । इन्द्रजीत राना, अरविन्द चौधरी (दोनों असिस्टेंट कमांडेंट ), शिवेन्द (सीपियो इंसपेक्टर ), अमित गुप्ता ( पी. सी. एस. आयोग ) अनिल साहू (टी. जी टी ) जैसे मित्रों की लम्बी फेरहिस्त है जिनकी कहानी सुनकर सुस्त से सुस्त युवा भी दिलोजान से पढाई करने लगे.. जिनकी जीवन कथा मायूस, हताश युवा के लिए अमृत से कम न होगी । इस ब्लॉग  के माध्यम से बहुत नये इलाहाबादी मित्र जुड़ गए हैं मुझे टूटे हुए अंतराल जुड़ने की ख़ुशी है ।
मुझे जरा हिचक हो रही हैं इस पर  ऐसी पोस्ट करते हुए क्योंकि इसमें डायरेक्ट पढाई से जुड़ा कुछ भी नहीं है । पोस्ट करने के पीछे कुछ मित्रों का इलाहाबाद से जुड़े संस्मरण लिखने का पुराना आग्रह था । पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ कि मैं इलाहाबाद में कभी भी नियमित नही रहा हूँ । मेरे सारी पढाई मेरे शहर उन्नाव में ही हुई हैं । इलाहाबाद मैं २ , ३ महीने में एक दो दिन के किताबें खरीदने जाता था इस दौरान ही मैने इस खूबसूरत शहर को जाना । २० , २५ दिनों के अनुभवों के आधार पर ही लिखने की जुर्रत कर रहा हूँ । गलती से अगर शहर के अनुरूप न बन पड़े तो माफ करना । यह 2006 से 2010 तक के दौरान का इलाहाबाद है ।
मैने बताया कि इलाहाबाद किताबो के लिए जाता था पता है क्यों क्योंकि इलाहाबाद का खरा दावा है कि उससे सस्ती किताबें कोई शहर उपलब्ध नहीं करा सकता है । आप हैरानी होगी कि यहाँ योजना, कुरूक्षेत्र मे भी कुछ ऱुपये की छूट मिल जाती हैं. दर्पण, कृानिकल की बात ही मत करिए ।
इलाहाबाद की सबसे अच्छी बात, चीजों का सस्ता होना है उन दिनों समोसा और चाय 1 रूपये में मिला करती थी (ताज़ा रेट क्या है? ) । किसी यार दोस्त की आवभगत 10 रूपये में अच्छे से की जा सकती है । शहर में बहुत ही मिठास है यहाँ पर अनजान मित्र का भी स्वागत बहुत हर्ष से किया जाता है । खाना बनाने खासकर पनीर में बड़े बड़े खानसामे मात खा जाय । खाने से याद आया कि दोपहर में बहुतायत साथी दाल चावल ही बनाते हैं (थे ) इससे दोहरा फायदा होता है समय की बचत और पेट भी हल्का (है न सीखने वाली बात ) । दोपहर में हल्की नींद लेना वहाँ के जीवन का अनिवार्य हिस्सा हैं.. अ.. अ.. क्या लगता कि वो यह सब करते हैं तो पढते कब है?
अगर आप को कभी कोई इलाहाबादी यह कहे कि पढ़ने में अभी तुम बच्चे हो तो बुरा मत मानना । जितनी देर, एकाग्र होकर वह पढ सकते हैं आप से शायद ही हो पाये । चिंतक जी वाली कहानी याद है न कैसे मुझे डॉटा था कि इस कमरे में भी बात नहीं होगी । सब बातें ठीक है पर एकाग्रता से समझौता नहीं ।
इलाहाबाद से मैने बहुत कुछ सीखा है पर एक जरुरी चीज़ न सीख पाया.. वह है सर कहना । शायद यह छोटे शहर के, साधारण कालेज की पढ़ाई का नतीजा है कि हमउम्र के लिए सर नहीं निकल पाता । इलाहाबाद मे सर के विशेष मायने है सर मतलब केवल रोब गाठने से नहीं है । सर आप के हर काम में मदद करते हैं... कमरा दिलाना, सामान, किताबें, प्रेम मोहब्बत से लेकर मार पीट तक... ( भागीदारी भवन में एक सर काफी परेशान लग रहे थे पता चला कि किसी को साथी के रूम पर पुलिस गई थी सर उसको हास्टल में छुपाने के लिए परेशान थे ) भागीदारी भवन में ही मुझे किताब की जरूरत थी मैने एक मित्र को रूपये दिए । मित्र जब किताब लाये तो पता चला कि उसके दाम बढ़ गये । मैने जब रूपये देने चाहे तो नाराज होकर बोले कि सर कहने के मायने जानते हो । इलाहाबाद मैं सच में नहीं जानता था ( राना सर किरण इतिहास के 10 रूपये आज भी मुझ पर उधार है पर मैं उन्हें चुका नही सकता शायद कभी नहीं )


यदि आप इस बार आईएएस के प्रीएग्जाम में बैठने जा रहे है तो आपके लिए कुछ जरूरी सलाह



नोट: इस पोस्ट के लिए अपने गैलेक्सी फोन का जिसके चलते इतनी बड़ी पोस्ट हिंदी में लिख पाया और एक ३ घण्टे के ट्रेन सफर का आभारी हूँ । इलाहाबाद क्या आप इसे पढ़ रहे है ? पोस्ट जारी रहेगी । इलाहाबाद के मित्र कृपया इसे शेयर करे.. बदलाव के बारे में बताएं

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

न्यू डील कार्यक्रम


न्यू डील कार्यक्रम : 1929की मंदी से निपटने के लिएअमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट ने1933 से इसकी शुरूआत की । इसमें रिलीफ, रिकवरी रिफोर्म परजोर दिया गया । इसे 3 आर केनाम से भी जाना जाता है ।रिलीफ यानी राहत गरीबी भुखमरी बेरोजगारी से दी गई ।रिकवरी का संबंध अर्थव्यवस्था से था । रिफोर्म यानी सुधार वित्तीय संस्थानों मेंकिया गया ।

विश्व आर्थिक मंदी

विश्व आर्थिक मंदी : 1929 में अमेरिका के शेयर बाजार में गिरावट के साथ इसकी शुरूआत मानी जाती है । पहले विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका में वस्तुओं के उत्पादन में बहुत तेजी आई । उत्पादन में इस तेजी के अनुकूल बाजार में खरीदने की शक्ति का विकास न हुआ था । यूरोप के देश जो अमरीका के लिए बजार थे पहले विश्व युद्ध की मार से पीड़ित थे। इस प्रकार इस संकट का कारण वस्तुओं की कमी न हो कर उनका अति उत्पादन था । बड़े स्तर पर बेरोजगारी, उत्पादन में कमी, गरीबी और भुखमरी इस मंदी के परिणाम थे. 1933 में रूजवेल्ट अमेरिका के राष्ट्रपति बने जिन्होंने ने " न्यूडील " कार्यक्रम लागू किया । इसमें मजदूरों की दशा सुधारने और रोजगार पैदा करने के लिए सरकारी कदम उठाये गए

रविवार, 13 अप्रैल 2014

संगम साहित्य

संगम साहित्य :  दक्षिण भारत के प्राचीन समय के  इतिहास के बारे में संगम साहित्य की उपयोगिता अनन्य है . इस साहित्य में उस समय के तीन राजवंसो के बारे में जिक्र है  चोल , चेर , पाण्ड्य . संगम तमिल कवियों का संघ था . यह पाण्ड्य शासको के संरक्षण में हुए थे . कुल तीन संगम का जिक्र हुआ है . प्रथम संगम मदुरा में अगस्त्य ऋषि के अध्यक्षता में हुआ था . तोल्क्पियम , सिल्प्दिकाराम , मणिमेखले कुछ महत्वपूर्ण संगम महाकाव्य है . जैसा कि प्राचीन भारतीय इतिहास ग्रंथो में अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णनों की भरमार मिलती है संगम साहित्य भी इसका अपवाद नही है . इसलिए इन ग्रंथो को आधार मानकर इतिहास लिखना उचित नही माना गया है फिर भी   दक्षिण भारत के प्राचीन समय के  इतिहास की रुपरेखा जानने में यह बहुत सहायक है .

बुधवार, 2 अप्रैल 2014

EVERGREEN TOPICS FOR UPSC IN HINDI


       वैसे तो सिविल सेवा में कहा जाता है कि सूरज और उसके नीचे आने वाली सभी चीजो के बारे में पूछा जा सकता है और यह बात सही भी है। कभी भी एक तरह का ट्रेंड नही रखा जाता है। फिर भी कुछ ऐसे टॉपिक है जो हमेशा ही आयोग की  नजरो में रहे है। यहाँ पर मै कुछ ऐसे ही टॉपिक के बारे में बात कर रहा हूँ जिनको एग्जाम से ठीक पहले दोहराना , काफी लाभदायक हो सकता है। आप इनसे जुड़े सभी आयामों के बारे गहराई से जानने का प्रयास करे।
पेसा १९९६ 
नीति निर्देशक तत्व , मूल अधिकार , मौलिक कर्त्तव्य 
१९०९ , १९१९, १९३५  के अधिनियमों के प्रावधान 
संसद , इसकी सीमितियां , कार्य संचालन 
संकटापन्न जातियाँ  
पंचायती राज 
वनो के विविध प्रकार 
मिट्टियाँ 
मुद्रास्फीति कारण और इसे स्थिर करने के उपाय 
पूजीगत लाभ 
भारतीय बैंकिंग प्रणाली
रिज़र्व बैंक 
विविध प्रकार के घाटे यथा राजस्व घट , राजकोषीय घाटा , प्राथमिक घाटा आदि 
न्यायिक प्रणाली ,सर्वोच्च न्यायालय  

(आशा है आपको मेरा यह प्रयास पसंद आया होगा। समय मिलने पर इसका अगला भाग लिखने का प्रयास करुँगा। कृपया ध्यान दें इन टॉपिक के परे  भी बहुत कुछ आता है इसलिए प्लीज अपने स्तर पर भी प्रयास करते रहे , धन्यवाद।  इलेक्शन ड्यूटी के चलते मैं ३० दिनों के लिए स्टैटिक मजिस्ट्रेट के तौर पर व्यस्त रहने वाला हूँ इसलिए पोस्ट कुछ छोटी और अनियमित हो सकती है। मेरी पूरी कोशिस रहेगी कि यहाँ कुछ वक़त देता रहूँ। 





बुधवार, 26 मार्च 2014

चिंतक ( तीसरा और फिलहाल अंतिम भाग )


चिंतक ( तीसरा और फिलहाल अंतिम भाग )

         जिंदगी में हमेशा वैसा ही नही  होता जैसा आप सोचते है। चिंतक जी के साथ यही हुआ।  मई में दिल्ली चले गये थे। अगस्त में प्री का रिजल्ट आया।  उनका हुआ नही था।  अब आप विचार करे उनकी कैसी दशा  रही होगी पर चिंतक जी उनमे थे जो टूट नही सकते थे। हमेशा कुछ न कुछ खोज ही लेते थे। अब कोचिंग में उतना मन तो लगता नही था। खाली समय में बोर न हो इसलिए एक अजीब शौक पाल लिया था। हिन्दू समाचार पत्र से तस्वीरे काट काट कर एक फ़ाइल बनाने लगे।   दिल्ली से लौटने के बाद मै उनसे इलाहाबाद मिलने गया तो मैंने उनके पास बहुत सी चीजो में इस फ़ाइल को भी देखा था।

    (समय के अभाव में मै उनकी कहानी पूरी नही कर रहा हूँ। चिंतक जी के बारे जितना लिखना चाहता था उससे ज्यादा मेरे पास विचार जमा हो गये है। समय मिलने पर मै उनकी कहानी जरुर पूरी करुँगा।  वित्त वर्ष का अंत हो रहा है विभागीय सक्रियता काफी बढ़ गयी है।  अगले माह चुनाव ड्यूटी में काफी समय मिलने की आशा है तब इस पूरा करुगा। चिंतक जी के बारे में आपकी काफी जिज्ञासा होगी कि वो अब कहाँ और क्या कर रहे है ? संक्षेप में , यही बता सकता हुँ। इस वर्ष की शुरुवात में मेरी उनसे बात हुई तो मुझे उनकी एक बात याद रह गयी। कह रहे थे कि बेरोजगारी क्या होती है तुम क्या जानो। यह उनका दुःख था वरना वह मुझे उन दिनों से जानते थे जब मै टुअशन पढ़ाकर अपना खर्च निकला करता था। मैंने उन्हें कोई जबाब नही दिया। उनके बारे में बात होती ही रहेगी पर एक बात जरुर कहना चाहुँगा सही समय पर सही निर्णय  न लेने से आपका जीवन बहुत कष्ट में पड़ सकता है। निर्णय हमेशा यथार्थवादी ले। ) 

मंगलवार, 25 मार्च 2014

चिंतक (भाग २ )

चिंतक (भाग २ )

भागीदारी भवन में मैंने चिंतक जी से बहुत सी बाते सीखी।  उनकी हर चीज अनोखी होती थी। जाड़े के दिनों में वह कम कपड़े पहनकर पढ़ाई करते थे उनका कहना कि जब शरीर में जाड़ा लगेगा तो नींद नही आयेगी। सुबह जल्दी उठ कर पढ़ने बैठ जाते थे। यह बात विरलो में ही होती है मैंने कितनी कोशिस कि पर सुबह उठकर पढ़ाई करना न सीख पाया। एक और अनोखी बात और याद आ रही है एक दिन मैंने उन्हें भारत का मानचित्र लिए देखा मै उनके पास १ घंटे बैठा रहा पर उन्होंने मेरी और न देखा। काफी देर बाद वो मेरी और मुखातिब हुए मैंने उनसे काफी विनती कि वो नक़्शे में क्या देख रहे थे पर वो बोले समय आने पर बताऊगा। वो समय तब आया जब मुझे भी सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा देने का अवसर मिला। चिंतक जी ने मुझे बताया कि मैप से भी पढ़ाई करनी चाहिए। उनके अनुसार मैप पर प्रतिदिन कुछ समय देना चाहिए। सच में ये चीज हटकर लगी। 
 चिंतक जी जब मेरी मुलाकात हुई थी तब उनके सिविल सेवा में २ अवसर समाप्त हो चुके थे। पहली बार मुख्य परीक्षा देने के बाद दूसरी बार में उनका प्री में ही न हुआ था। उन्हीं दिनों वह मुखर्जी नगर के बारे में बाते करने लगे। मुझसे बताने लगे कि इल्लाहाबाद में कोचिंग करने से कुछ ने होगा। दिल्ली में गति है वहाँ एक बार कोचिंग करलो बस। मैंने उनसे बताया कि मै आपके साथ न चल सकुंगा। बात ५०००० हजार रुपयों की थी। मैंने उनसे पूछा कि तुम इतने रुपए कहा से लाओगे तो उनका जबाब था कि आप के अंदर लगन हो तो सब कुछ हो जाता है। अगर जिंदगी में रिस्क नही लोगे तो पिछड़ जाओगे। उनका कहना सही था पर मुझे पता था कि मेरे घर में ऐसा प्रस्ताव कभी न स्वीकारा  जायेगा। खैर अगले साल वो प्री देने के तुरंत  बाद दिल्ली चले गये। पैसे उनके रिश्तेदारों , मित्रो ने जुटाया था। सबको चिंतक जी पर यकीन था। मुझे उनकी मेहनत पर भरोसा था।
मेरी उनसे बात होती रहती थी। वो मुझे हर बात शेयर करते थे हर तरह की बात करते थे। एक जरूरी बात तो छूट ही गयी चिंतक जी मुझसे मिलने के कुछ दिनों बाद ही बता दिया था कि सफलता के लिए ब्रम्ह्चर्य सबसे जरूरी चीज है उनके अनुसार ज्यादातर लोग इसके लिए ही असफल हो जाते है। अब आप समझ सकते है वो कैसी शख्सियत के मालिक थे। समय आने पर मै उनका सबसे करीबी बन गया पर याद नही आता कि वो कभी घटिया मजाक तक किया हो। 
उनके दिल्ली के दिनों की कुछ बाते याद आ रही है। जाते ही उन्होने  १५०-१५०  रुपए वाली ६ , ७ टी शर्ट खरीद ली। मुझसे बताया कि  ऐसा करके वह रोज क्लास करने टी शर्ट  बदल बदल कर जाते रहे और अपनी सही स्थिति को छुपा लिया। चिंतक जी से कोई भी मिले तो निश्चित ही उनसे  प्रभावित हो जायेगा। कितना ही पढ़ाकू क्यों न हो पर उसे खुद लगेगा कि पढ़ाई के नाम पर मै तो कुछ नही कर रहा हु असली पढ़ाई तो मुझे इस शख्श से सीखना चाहिए। इतिहास और हिंदी साहित्य उनके  विषय था। दोनों विषयो के नामी संस्थानो में एडमिशन लिया था। हिंदी साहित्य वाली क्लास में पहली बार उनका मन भटकने लगा। कोई लड़की उनके पास रोज बैठने लगी थी नोट्स भी मांगा होगा। मुश्किल से चार पांच रोज हुए होगे चिंतक जी को अपनी गलती का अहसास हुआ। वो अपने कमरे में आकर ग्लानि से अपना सर दीवार में पटक दिया। उन्हें इस बात का पश्चाताप हो रहा था कि उधार ले कर वो यहाँ प्रेम मोहब्ब्त करने नही आये है। यह उन लोगो के साथ धोखा होता जिन लोगो ने उनके लिए रुपए जुटाए थे। ( मुझे एक लोगो का जिक्र करना जरूरी लग रहा है। उनके एक दोस्त है जिनकी पत्नी सरकारी स्कूल में शिक्षामित्र है  शिक्षामित्र का वेतन तो आपको पता ही है कितना होता है ३००० रुपए। ऐसे लोगो ने उन्हें धन दिया था कि एक रोज चिंतक जी सफल होगे तो उनके भी दिन  बदल जायेगे।)  ये बात उन्होंने मुझे से खुद बतायी थी  ये बात भी मेरे लिए अनोखी थी। मानव  मन कितना चंचल होता उस पर चिंतक जी ने मन पर विजय पाली थी।   

सोमवार, 24 मार्च 2014

LESSONS FORM A CIVIL ASPIRANT

ये पोस्ट का ख्याल बहुत लम्बे समय से था पर लगता था कि लिखू किसके लिए।  पर अब सही वक्त  है उसकी कहानी बताने का। यह कहानी सच्ची है मेरे दोस्त से जुडी है।सुविधा के लिए उसका नाम चिंतक रख लेते है।  उसका सही नाम नही लिख रहा हु पर शहर का जिक्र सही सही कर रहा हु। यह कहानी किसी कि भी हो सकती है मेरी आपकी आपके दोस्त की किसी की भी। सफल लोगो की कहानी बहुत सुनी होगी , बहुत से साक्षात्कार पढ़े होगे पर आप ने कभी किसी हारे हुए इंसान से बात की है। वास्तव में एक सफल व्यक्ति से कही ज्यादा असफल व्यक्ति से सीखा  जा सकता है। 
वो कक्षा १० में था तब उसके किसी टीचर ने बताया कि सबसे बड़ी नौकरी आईएएस की  होती है बस इतना काफी था उसके लिए। बहुत जुनूनी था वह। उसने सोच लिया कि कुछ भी हो जाये पर वह आईएएस बन कर ही मानेगा। जैसा कि हर कथा नायक के साथ होता है हमारे इस कथा नायक इस आर्थिक दशा बहुत खराब थी। इलाहाबाद के एक छोटे से गाव से वह था घर में एक छोटी सी दुकान थी जिसमे उसके पिता बैठते थे। खेती इतनी कम थी कि वह और उसकी माँ उसे टैक्टर या बैलों से जुतवाने के बजाय  फावड़े से ही जोत लेते थे। ये सब इस लिए बता रहा हु ताकि पता चले इतनी विकट परिस्थिति में भी वो अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित था। 
मेरी उसके मुलाकात लखनऊ के भागीदारी भवन में हुई थी। भागीदारी भवन , आर्थिक रूप से कमजोर पर मेधावान छात्रो के लिए निःशुल्क आवास , कोचिंग , सलाह देने के लिए है (कभी उसके बारे में विस्तार से लिखूगा ) . 
भागीदारी भवन में १०० लड़को में वो अलग था। हमेशा रूम में रहना , किसी से भी बात न करना , समय पर नास्ते के लिए निकलना। एक कमरे में दो लोग रहते थे। मेरी पहली बार उसके रूम में ही मुलाकात हुई थी। उसके रूम पार्टनर से मै कुछ पूछ रहा था चिंतक जी ने  बहुत तेज आवाज ने कहा इस कमरे में बात नही होगी। उन दिनों मेरी दशा खरगोश जैसी थी हमेशा डरा हुआ। छोटे शहर से , साधारण कॉलेज से पढ़ा और बहुत साधारण नम्बरो से पास।चिंतक जी पूर्व के ऑक्सफ़ोर्ड कहे जाने वाले इल्हाबाद विश्वविदालय से पढ़ कर निकले थे।  सबसे बड़ी बात स्नातक की परीक्षा पास करते ही आईएएस का एग्जाम दिया और  पहली ही बार में आईएएस की प्री परीक्षा पास कर ली थी। ये बात २००७ की है।  ऐसे में चिंतक जी द्वारा डॉट दिया जाना बुरा नही लगा। महान गुरु तो पहले पहल डाटते ही है लोगो के पहचान करना मुझे आता था मैंने भी सोच लिया था कि अगर कुछ सीखना है तो चिंतक जी से ही सीखना है। । सच कहु तो अगर आज जो भी मैंने पाया है जो भी सफलता पायी है इसमें चिंतक जी का अप्रत्यक्ष  रूप में हाथ है। उनके जोश और जूनून को देखते ही बनता था। मैंने उन्हें कभी अपने अभावो का रोना रोते नही देखा। उन दिनों सिविल सेवा में कुछ ऐसे लोग सफल हो रहे थे जो बहुत ही साधारण थे। रिक्शे वाले के लड़के , मजदूर , सब्जी बेचने वाली  की  बेटी। जो ऎसी खबरो को बहुत गम्भीरता से पढ़ते। मै ऎसे परिवार से था जहाँ ज्यादा आभाव तो नही था पर जिम्मेदारी जल्द उठानी थी। मै कर्मचारी चयन आयोग की तैयारी कर रहा था। आईएएस को ज्यादा महत्व नही देता था  क्योकि मुझे लगता था एक जॉब मिल जाये बस। चिंतक जी से मिलने के बाद मै भी सिविल सेवा में कूद पडा पर साथ में कुछ और एग्जाम भी देता रहा। चिंतक जी की सोच थी कि सिविल सेवा के अलावा दूसरी परीक्षा देने से भटकाव होगा। अर्जुन की तरह केवल एक लक्ष्य। बस यही पर मेरा उनसे मतभेद था। मेरा यह सोचना था कि जोश और जूनून कितना क्यों न हो। धन के आभाव में ये सब व्यर्थ है।

चिंतक जी से जुडी पोस्ट पढने के लिए क्लिक करिये .


शनिवार, 22 मार्च 2014

असफलता के मायने

असफलता के मायने 
               मित्रो सफलता और असफलता में बहुत ही बारीक़ अंतर होता है पर सफल व्यक्ति के साथ खुशियाँ बाटने के लिए भीड़ जुट जाती है। असफल व्यक्ति को अकेले ही दुःख सहन करना पड़ता है।  बहुत दिनों से मै उन साथियो के लिए पोस्ट लिखना चाहता था जो गम्भीरतापूर्वक तैयारी करने के बावजूद असफल हो गये है या होते जा रहे है। कोई स्वीकारे या न स्वीकारे पर मै जानता हुँ कि आप योग्य है आप में साहस है। असफलता के कई कारण हो सकते है। हो सकता है कि आप के पास समय कि कमी हो (जॉब करने कि वजह से ) या संसाधन न हो (आर्थिक तौर पर कमजोर ) पर इससे आप आईएएस बनने के योग्य नही है ऐसा कहना सरासर गलत होगा। मेरा हमेशा से इस बात पर यकीन रहा है कि यदि आप में नये लीक से हट कर विचार है तो समय भले लगे पर एक रोज आप अपने आप को साबित करके ही रहेगे। आईएएस न सही किसी और जगह किसी और रूप में। (मेरी दिली इच्छा है ऐसे लोगो के बारे में जान सकू जो आईएएस के इंटरव्यू से अंतिम तौर पर बाहर हो जाने के बाद कहा और किस रूप में है ? यदि आप किसी जो जानते है या खुद ऐसी ही स्थिति का सामना किया है तो प्लीज् अपने अनुभव को शेयर करे। सार्वजानिक तौर पर न कर सके तो मुझे मेसेज करे मै उसे कहानी के रूप में बदल कर लोगो से साझा करुगा। ) 

बुधवार, 19 मार्च 2014

5 सबसे महत्वपूर्ण किताबे

5 सबसे महत्वपूर्ण किताबे
यूँ तो CIVIL SERVICE के लिए जितनी भी किताबे पढ़ ले आप को कम लगेंगी।  हममे से ज्यादातर लोगो को प्रारम्भ में पता ही नही होता है कि कौन सी किताब पढ़नी चाहिए और किनको साइड में रखना चाहिए।  आप किसी भी सफल व्यक्ति से बात करे तो वह इस बात पर विशेष जोर देगा कि चुनिंदा किताबे पढ़े। जितना ज्यादा तरह की किताबे पड़ेगे उतना ही अधिक भटकाव होगा। यहाँ पर मै 5 किताबो का जिक्र कर रहा हु जिनकी महत्ता पिछले 2 -3 सालों से देख रहा हुँ। वैसे भी प्रारम्भिक परीक्षा में करंट के प्रश्न न के बराबर पूछे जा रहे है।  सामान्य अध्धयन के 5 प्रमुख भाग होते है। इतिहास , भूगोल , राज्यववस्था , अर्थशास्त्र , साइंस और टेक्नोलॉजी। इस 5 भागो को निम्न 5 किताबो को पढ़कर काफी हद तक पहले पेपर को कवर किया जा सकता है।


 इतिहास                           विपिन चन्द्र 
भूगोल ---                          माजिद हुसैन/ वर्णवाल 
भारत की राज्यववस्था          एम  लक्मीकांत 
अर्थववस्था                        लाल एंड लाल 
विज्ञानं और तकनीक            स्पेकट्रम 

तीसरा संवाद


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