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सोमवार, 17 सितंबर 2018

Jodhpur Visit : Part 02

जोधपुर :2 

सुमित के घर पहुंच कर चाय , नाश्ता किया। मैं और राजेश , ऊपरी मंजिल पर  फ्रेश होने गए , इसी बीच सुमित ने कहा कि खाना खा कर ही निकलना। सुमित की माँ ने शाही पनीर बनाया था। खाने के साथ घेवर भी था। सुनकर बड़ा अजीब लगे , पर घेवर से पहली बार रूबरू हो रहा था। सुमित ने कहा कि यहाँ खाने के साथ मीठा खाने का रिवाज है। बातों बातों में पता चला कि जोधपुर के प्रसिद्ध चीजों में प्याज कचोरी , मावा कचौरी आदि हैं। 
दिन शनिवार था। सुमित ने मोटा मोटा कार्यक्रम समझा दिया था कि कैसे घूमना। मैं और राजेश , सुमित के घर से बाइक लेकर निकले। मैं ड्राइव कर रहा था और राजेश पीछे बैठकर गूगल मैप की मदद से रास्ता बता रहे थे। गूगल मैप के चलते अब चीजे काफी आसान हो गयी हैं। 

 सबसे पहली जगह थी मछिया बायो पार्क। बहुत साफ सुथरी जगह। छोटी सी पहाड़ी पर , हवा काफी शीतल और ताजगी भरी  बह रही थी. पार्क में कई स्कूलों के बच्चे आये थे।  इसके बावजूद ज्यादा भीड़ न थी। पहले लगा कि यह ज़ू है और ज़ू इतने देखे हैं कि अब इसमें ज्यादा उत्साह नहीं रहा। बाद में पता चला कि पार्क की महत्ता जैव विविधता के लिए ज्यादा है। एक विशेष भवन में जोधपुर के आस पास पायी जाने वाली तमाम पेड़ , पौधे , फूल के नमूने इकठ्ठा करके रखे गए हैं। 1 या डेढ़ घंटे में ही इसे पूरा घूम लिया। मैप में पार्क के पास कोई झील दिखा रहा था , काफी प्रयास करने के बाद भी झील की लोकेशन समझ न आयी। 

पार्क के बाद अगला पड़ाव था जिसे पूरी यात्रा का सबसे खास आकर्षण कह सकते हैं -जोधपुर फोर्ट। पुणे यात्रा में मैंने अपने देखे कुछ फोर्ट का विवरण साझा किया था। एकदम निश्चित तो नहीं पर संख्या के लिहाज से यह मोटे तौर पर १२वा या १३वा फोर्ट होगा। किले घूमने का अपना ही मजा होता है। सुमित ने एक बात बता दी थी कि जोधपुर की धुप बड़ी कड़क होती है। 11 बजे से ही धुप का असर काफी तेज हो चला था। एसी में रहने वाला शरीर कुछ ज्यादा ही नाजुक हो जाता है। 

पार्क से जोधपुर किले की ओर जाते समय , एक बात समझ आयी कि जोधपुर शहर में ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं है। सड़के चौड़ी है और मकान की बड़ी बड़ी कतारे कम दिखती है। आप दो चीजें सुनकर शायद चौंके - एक राजस्थान का मतलब अक्सर रेत से लगा लेते है और जोधपुर के आसपास पहाड़ी इलाके हैं। जैसे कि राजेश कह रहे थे कि यहॉँ पहाड़ी देख कर हैरानी होती है। 

जोधपुर का किला काफी दूर से दिखने लगता है और ठीक ठाक ऊंचाई पर बना है।  दूर से महल की भव्यता देख दिल खुश हो गया। किले के बाहर काफी पार्किंग की जगह पर काफी भीड़ भाड़ थी। धुप अब और भी कड़क हो गयी थी। बाहर पार्किंग के पास पीने के ठन्डे पानी की बढ़िया इंतजाम था। लगे हाथ बता दूँ कि पुरे जोधपुर में जगह जगह पर वाटर कूलर लगे है कम कम जिन जगहों पर मै घूमा। इस बात की जितनी तारीफ की कम है। अमीर हो या गरीब , हर किसी के लिए कड़ी गर्मी में ठंडा पानी मिलना , बहुत सकून की बात होती है। 

सुमित से उसके घर में पूछा था कि इस टाइम  जोधपुर में विदेशी सैलानी आते है क्या ? उसने कहा था कि आते तो काफी है पर शायद  इस टाइम शायद न दिखे। वो गलत था मुझे फोर्ट के परिसर में सैकड़ो विदेशी सैलानी दिख रहे थे। जहाँ मैं पानी पी रहा था वहाँ एक अंग्रेज गर्मी से परेशान अपने मुँह को ठन्डे पानी से धो रहा था। चेहरे को गीला कर उसने एक सिगरेट निकली , एक कश लिया और आँखे बंद करके बहुत धीरे से धुँवा छोड़ा। मेरे मन तमाम ख्यालों यह बात आयी - आखिर यह हजारों मील दूर यहाँ गर्मी में क्यू आया होगा ? 

मैंने बाइक स्टैंड में लगाई , राजेश बैग व हेलमेट रखने के लिए दूसरी जगह गए। किले के प्रवेश द्वार पर टिकट मिल रही थी। यूनिफार्म अफसर के लिए आधे दाम थे। अच्छा लगा। हम कितने ही बड़े क्यू न हो जाये कही पर छूट मिले तो बड़ा बढ़िया लगता है। टिकट विंडो पर एक लड़का , झगड़ रहा था कि हम स्टूडेंट ही है पर हमारा i कार्ड नहीं बना है। गाइड 400 रूपये में था। इसका विकल्प मिला रिकार्डेड हेडफोन। बड़ी बढ़िया व्यस्था थी। जगह जगह नंबर दर्ज थे , जिनके जरिये आप किले के अतीत के बारे में प्रामाणिक जानकारी जुटा सकते है। मसलन भीतर के दरवाजे पर कुछ छेद बने थे , हेडफोन से पता चला कि यह तोप के गोले के निशान हैं। आगे एक किशोर एक वाद्ययंत्र में बड़ी मधुर धुन निकाल रहा था। किले के मुख्य द्वार पहुंचने में ही काफी वक़्त लग गया। 

इस गेट के पास दो लोग  नक्कारा बजा रहे थे। पर्यटक को देख वो अनुमान लगाते कि  कुछ निछावर देगा , तब ही वो बजाते थे। हम दोनों को देख भी बजाया , राजेश बोला इनको कुछ दे दो। मैं पास जाकर 10 रूपये रख दिए , एक ने नोट देख एतराज सा किया , दूसरे ने उसे चुप रहने का इशारा किया। नीचे देखा वहाँ पर 100 , 500 रूपये की ही नोट रखी थी। मन में लगा कि वो सोच रहा था कि एक वो दौर भी होता था कि राजा महराजा खुश हो गए तो अपने गले से हीरे -जवाहरात उतार कर दान दिया करते थे और आज ये 10 रूपये का नोट _________. 

इस किले अपनी विशालता और बनावट की जटिलता आप को बहुत प्रभावित करेगी। मुख्य द्वारा भी कला से बनाया गया है। सीधे न होकर यह साइड में खुलता है। ताकि पुराने समय में हाथी के जरिये तोडा न जा सके। वैसे भी यह काफी उचाई पर था , कितना ही बलवान हाथी क्यूँ न हो , यहाँ तक आने में उसकी दम निकल जाएगी और दरवाजा साइड में है तो उसे तोड़ने के लिए जगह  न बचती है। अंदर कुछ हाथों के निशान बने थे , हेडफोन से पता चला कि ये वो निशान है जब किले की रानियाँ जौहर के लिए निकलती थी तो आखिर बार अपनी निशानी महल में छोड़ कर जाती थी।
(यात्रा के जुड़ी तमाम तस्वीरें मेरी इंस्टाग्राम प्रोफाइल @asheeshunaoo पर अपलोड हैं, उनके साथ आप इस यात्रा विवरण का बेहतर चित्र मनस पटल पर खींच सकते हैं )
जारी ___________
©आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।

शनिवार, 15 सितंबर 2018

Jodhpur Visit : part 1


जोधपुर यात्रा (01 )

जोधपुर यात्रा का प्लान पहले से न था , कुछ मित्र (राजेश सोनी  , सुमित गोयल )  राजस्थान प्रशासनिक परीक्षा का प्री एग्जाम (05 अगस्त 2018 ) देने जा रहे थे। बोले साथ चलो घूमना हो जायेगा। बस ट्रैन की  टिकट एक समस्या थी जो अंतिम समय में हल हो गयी। साबरमती स्टेशन , अहमदाबाद से सीधे ट्रैन थी भगत की कोठी तक। स्टेशन समय से पहले पहुँच गए और ट्रैन आने तक दो कहानियाँ घट गयी। एक अभी बताता हूँ , दूसरी कहानी कुछ ज्यादा ही रोचक है जो फिर कभी स्वत्रंत कहानी के रूप में रचूंगा। 

हुआ यह कि मै और राजेश प्लेटफार्म नंबर 2 पर यूँ ही टहल रहे थे कि किसी ने मुझे नाम से पुकारा। सामने देखा तो एक अजनबी सा चेहरा नजर आया। उसने मुस्करा कर कहा -बधाई हो। मैंने कुछ हैरान सा धन्यवाद दिया। उसने मेरी परेशानी समझते हुए बोला - " आप शुभ लाइब्रेरी (शास्त्री नगर , अहमदाबाद ) में पढ़ने आते थे न वही से हूँ। अब तो लाइब्रेरी में सिविल सेवा में चयन के बाद आपकी फोटो लगा दी गयी है। " अब मुझे कुछ कुछ उसका चेहरा याद आने लगा। 7 होने को आये अहमदाबाद में पर इस शहर में ज्यादा घुल मिल नहीं पाया। इस तरह से उस मित्र का स्टेशन पर मिलना और आत्मीयता - बहुत अच्छा लगा। ट्रैन कुछ लेट थी। हमने तमाम बातें की , उसने कुछ पीने के लिए ऑफर किया। मैं इनकार करता रहा पर वो न माने। जब मैं , उस दोस्त के साथ प्लेटफार्म पर दुकान की तरफ बढ़ रहे थे। मैंने राजेश जोकि हमारे बैग की रखवाली कर रहा था , मैंने जोर से आवाज दी - यार कुछ पियोगे ? 

मैंने दो कहानियों की बात की है , एक तो ऊपर बता चूका हूँ , दूसरी कहानी  का थोड़ा सा हिंट दे देता हूँ। ये जो आवाज दी थी उसको किसी और अजनबी ने भी सुना और समझा कि हम ड्रिंक करने जा रहे हैं। ड्रिंक का यहाँ मतलब वाइन से ही है। खैर यह बहुत जाना माना तथ्य है कि प्रायः लोग गलत अनुमान ही लगाते है। इसका एक बढ़िया उदाहरण मेरी फेसबुक की टाइम लाइन पर एक पिक्चर है , जिसमें मै एक कांच की बोतल से गिलास में पानी डाल रहा हूँ और बहुतायत लोग हैरान है कि मै खुलेआम----------- 

 एक और जरूरी बात याद आ रही है , स्टेशन पर मुझे कुछ अलग सा अहसास हो रहा था। गौर किया तो समझ आया कि लगभग 2 साल बाद ट्रैन से सफर करने जा रहा हूँ। पिछले दो सालों में समय , पैसे की तुलना में समय कही ज्यादा कीमती था , संयोग ऐसे बने कि चाहे दिल्ली जाना हो , लखनऊ या फिर पुणे। हवाई सफर ज्यादा सरल , सहज लगा। ट्रैन की यात्रा समय तो लेती है पर यात्रा का आनंद भी इसी में आता है , विशेषकर कोई साथी हो तो आनंद ही आनंद। राजेश , मेरे ग्रुप में सबसे कूल , सहज माना जाता है। उसके साथ सफर बहुत मजे में कट गया।  

सुबह सवेरे ही भगत की कोठी में मेरी ट्रैन रुकी। स्टेशन से बाहर निकले तो जोधपुर का ख्यातिप्राप्त विश्वविद्यालय (  jnv ) दिख गया। इस विद्यालय का बहुत नाम सुना था। स्टेशन के बाहर , ऑटो वालों का वही पुराना ड्रामा। शुक्र है कि सुमित अपने गाड़ी लेकर लिवाने आ गए। सुमित , हमारे सहकर्मी है और जोधपुर में उनके घर पर ही रुकना हुआ। मेरे मन में थोड़ा झिझक थी , सोचा था कि कोई होटल देख लिया जायेगा पर सुमित का घर में रुकना बहुत सही निर्णय था। बड़ा सा घर , स्वादिष्ट खाना और जोधपुर से जुडी तमाम जानकारी।

( जारी_________)

©  आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

NETFLIX: WILD WILD COUNTRY

नेटफ्लिक्स : वाइल्ड वाइल्ड कंट्री 


काफी पहले मुझे किसी ने सुझाव दिया था कि आप ओशो को भी पढ़िए। कई बार बुक स्टाल पर ओशो से जुडी मैगज़ीन देखी पर पल्ले कुछ भी न पड़ा। उनकी पुस्तक सम्भोग से समाधि के बारे सुना बहुत पहले था पर विवादित विषय होने के चलते उसे ज्यादा तलाशने की कोशिस भी न की। 

पिछले दिनों जब सेक्रेड गेम्स की धूम मची थी और हर कोई फेसबुक पर "कभी कभी लगता है कि अपुन ही भगवान है " जैसे डायलॉग लिख , जतला रहा था कि उसने नेटफ्लिक्स तक अपनी पहुँच बना ली है। हमने भी गणेश गाईतोंडे को देखा और सुना। नेटफ्लिक्स को लेकर कुछ और जिज्ञासा बढ़ी  तो वाइल्ड वाइल्ड कंट्री के बारे में भी सुना। 

बात चूँकि ओशो से जुडी थी इसलिए उस सीरीज के 6 भाग एक एक देख डाला। गणेश को लगता था कि वो भगवान है पर ओशो को लोगों ने भगवान मान लिया था। वाइल्ड वाइल्ड कंट्री में ओशो के जीवन का वह भाग है जिसमें वह अमेरिका के ओरेगन प्रान्त जाते है और एक नया शहर बसाते है। पूरी सीरीज मंत्रमुग्ध होकर देखता रहा और हैरान था कि कुछ दशक पहले ऐसा भी हुआ था। डॉक्यूमेंट्री के रूप में इस सीरीज में कई लोगों के इंटरव्यू ,  वीडियो क्लिप्स के आधार पर अतीत को फिर से लिखा गया है। शीला का चरित्र काफी रोचक है। 

सीरीज देखने के बाद से ओशो से जुडी चीजे नेट पर तलाशा तो देर सारी चीज उपलब्ध हैं। धीरे धीरे उन्हें देख रहा हूँ। ओशो में बहुत कुछ है जो सीखा जा सकता है। अक्सर उनके विवादों पर बात होती है पर विवाद से इतर भी तमाम चीजें है उनके सटीक तर्क , गहन अनुभव व विस्तृत  ज्ञान का कोई जोड़ नहीं है। मन की तमाम उलझनें , उनके विचारों से सुलझायी जा सकती है।  

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

शनिवार, 1 सितंबर 2018

Life means travel and meeting with friends

जीवन यानी यात्रा और मित्रों से मिलना

प्रिय मित्रों, मेरा अगले सप्ताह यानी 7 से 11 तारीख को मैं दिल्ली आना होगा। प्रयोजन कुछ पुराने मित्रों से मुलाकात करना है। हालांकि हर किसी से बात करना और अलग अलग मुलाकात करना काफी कठिन है। पिछली बार इस तरह का जब प्रोग्राम बना था तो काफी मुश्किलें हुई थी। मुखर्जी नगर के एक पार्क में अंततः 3 लोग मिले, उसमें एक विशेष तौर बस मिलने के लिए  अलीगढ से आया था। 
इस बार दिल्ली, गाजियाबाद और नोयडा में रहने का प्लान है। यात्रा पूरी  से घूमने और सिविल सेवा में पूर्व में चयनित मित्रों से मिलने के लिए प्लान की है।

जो लोग दिल्ली आने पर मिलने के लिए लंबे समय से कह रहे थे , प्लीज अपना पता और मोबाइल इनबॉक्स कर दे। अगर बात बनी यानी मेरे रूट में आप है तो निश्चित ही मुलाकात होगी।
-आशीष,

शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

letter


योजना का सामाजिक सशक्तिकरण पर क्रेन्द्रित अगस्त 2018 का रोचक अंक मिला। हमारे समाज के समुचित उत्थान के लिए यह सबसे जरूरी है कि समाज की कमजोर कड़ी पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाय। देखा जाय तो महिलाएं , बच्चे , दिव्यांग व बुजुर्ग समाज के सबसे भेद्य कड़ी है। वर्तमान सरकार ने इन वर्गों के समावेशी विकास हेतु कई महत्वपूर्ण योजनाओं यथा प्रधानमंत्री जन धन योजना , सुगम्य भारत अभियान , प्रधानमंत्री वय वंदना योजना की शुरुआत की है। इनके जरिये हम समावेशी विकास हासिल कर सकेंगे जोकि सामाजिक सशक्तिकरण की नींव माना जाता है। वस्तुतः तेज विकास के तब तक कोई मायने नहीं है जब तक हम विकास के लाभ को समाज के हाशिये पर खड़े लोगों तक न पहुंचा सकें। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद मोदी जी ने भी हमेशा इसी बात पर जोर दिया है कि सबका साथ , सबका विकास। योजना के इस अंक में समाजिक सशक्तिकरण के लिए जरूरी कई पहलुओं पर रोचक , सारगर्भित जानकारी मिली। तमाम शोधपरक लेखों से सुसज्जित यह अंक संग्रहणीय बन पड़ा है।  

आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

Questions and answers

सवाल व जबाब

हम कई मसलों में जबाब देने के योग्य होते हैं और कई बार हमें खुद सवालों से घिरे होते है। दोनों ही मसलों में हमें बहुत मितव्ययिता बरतनी चाहिए । सवालों का अंत नही है और हर किसी से अपने सवालों को नहीं साझा करना चाहिए । उत्त्तर देने में भी हमें संयम बरतना चाहिए । जितने अधिक आप उत्तर देने जाओगे , अपने महत्व को कम करते जाओगे। कई बार , चुप रहना भी सबसे बेहतर जबाब होता है।

-आशीष, उन्नाव

सोमवार, 27 अगस्त 2018

Motivational : Three star of Hindi Medium

हिंदी माध्यम इनका हमेशा ऋणी रहेगा
हिंदी माध्यम से सिविल सेवा की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स से मैं कई सालों से जुड़ा हूँ , जो मैंने सीखा , अनुभव पाया। उसे समय समय पर अपने पेज व ब्लॉग पर लिखता रहा हूँ। सैकड़ो अनजाने लोगों से बात हुयी है। इधर मेरे चयन के बाद , फ़ोन कॉल के लिए तादाद कुछ ज्यादा बढ़ गयी है। पिछले दिनों mrunal .org पर मेरी सफलता की कहानी प्रकाशित होने के बाद भी बड़ी मात्रा में मेल मिले।
आज भी एक फ़ोन पर बात करते करते मैंने एक चीज नोटिस की। पिछले कुछ समय से मैं अपनी बातों के साथ साथ हर किसी से यह चीज जरूर कहने लगा हूँ कि अगर हिंदी माध्यम से हो तो तीन नाम नोट करो - श्री निशांत जैन , आईएएस राजस्थान कैडर , श्री गंगा सिंह राजपुरोहित , आईएएस गुजरात कैडर , श्री राहुल धोटे , आईएएस मध्यप्रदेश कैडर और इनसे जुड़े जितने भी u tube वीडियो मिले देख डालो। बहुत गौर से उन्हें सुनना , उन्होंने बहुत ही ईमानदारी से अपनी बातें रखी है , उनका अनुसरण करिये , सफलता जरूर मिलेगी।
अपने उन्हें सुना होगा पर क्या उन्होंने जो बातें कही है उन्हें नोटिस किया। 2016 तक मेरे 8 प्रयास हो चुके थे , इसके बावजूद अगर मैंने अपने आखिरी यानी 9 प्रयास में बगैर निराशा के पूरी मेहनत से अपने आप को झोका तो इसके पीछे एक बड़ी जरूरी बात थी। श्री गंगा सिंह जी ने अपने दृष्टि वाले वीडियो में एक बड़ी जरूरी बात कही थी कि उन्होंने एक दिन में तीन-तीन टेस्ट लिखे हैं और उनकी अंगुलियों में छाले तक पढ़ गए थे। यह बात मेरे मन में बैठ गयी और मैंने भी gs के 22 टेस्ट और वैकल्पिक विषय के 7 टेस्ट और 5 निबंध लिखे , जिसका असर मेरे मैन्स के अंको में देखा जा सकता है। इसी तरह से निशांत जी से भी कई बातें सीखी जा सकती है - " अपनी लकीर बड़ी करो " " अनेकांतवाद वाली बात " और राहुल धोटे जी की " मैन्स के लिए कीप थ्योरी " . अगर अपने उल्लिखित लोगों के वीडियो देखने के बाद भी इन चीजे से परिचित नहीं है तो एक बार फिर से उन्हें सुने।
हिंदी माध्यम के लिए जितनी भी शिकायतें / समस्याएं हैं या हो सकती है , उनके जबाब /समाधान इन लोगों में अपने समय में बखूबी दिए हैं जो आज भी प्रासंगिक है। टॉपर से बात ही हो यह जरूरी नहीं है , कई बार आस्था भी बहुत काम की चीज होती है। मैंने इन लोगों से सम्पर्क करने का खूब प्रयास किया था पर सफल न हुआ। पिछले दिनों , निशांत जी और गंगा जी से काफी लम्बी लम्बी और बड़ी ही आत्मीय बात हुयी , बहुत अच्छा लगा। सच में इन लोगों ने अपने समय पर ऐसे कमाल किये है जो हिंदी माध्यम को लंबे समय तक प्रेरणा देते रहेंगे।
© आशीष कुमार ,उन्नाव उत्तर प्रदेश.

बुधवार, 22 अगस्त 2018

Vo jo ankho se ek pal n ojhal huye


वो जो आँखो से एक पल न ओझल  हुए , लापता हो गए देखते देखते 

कभी कभी ऐसे गाने बनते है जो बहुत ही सुंदर , कर्णप्रिय होते है। आतिफ असलम ने समय समय पर कुछ बहुत ही बेहतरीन गाने गाये है यथा तेरे लिए (प्रिंस ) . उक्त वर्णित गीत भी कमाल का लग रहा है. शब्द , संगीत ,आवाज और भावनाएं चारों ही कसौटिओं पर खरा है. अपने एक बात शायद नोटिस की हो ,  पिछले कुछ समय के  कुछ अति लोकप्रिय  गीतों वो है जो दशकों पहले नुसरत फतेह अली खान ने गाये थे। बात चाहे "  मेरे रश्के कमर " हो या फिर " नित खैर  मंगा " हो। आतिफ असलम को सुने तो नुसरत साहब की बेहतरीन आवाज में भी सुने - सोचता हूँ कि वो कितने मासूम से थे , क्या से क्या हो गए देखते देखते।  

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।      

रविवार, 19 अगस्त 2018

Success tips for upsc

अगर आप कोचिंग कर पाने में सक्षम नही हैं तो 2 चीजे जरूर ध्यान रखना
1. किताबें जितनी ज्यादा खरीद सको, खरीदते रहना।
2. जितना ज्यादा पढ़ सकते तो पढ़ते रहना

एक मजेदार तरीके में कहूं तो मैंने अपने वजन के 10 गुना ज्यादा किताबें खरीदी होंगी और उनमें कुछ 4 या 5 बार से ज्यादा पढ़ी गयी होंगी।

-आशीष कुमार

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

That day


वो दिन 

आज भी घूम फिर कर बात उसी दिन पर आ टिकी थी।  उन दोंनो के शार्ट  रिलेशन में वो दिन बहुत महत्वपूर्ण था। यूँ तो उन्होंने कोई ब्रेकअप की बात न की थी पर वो धीरे धीरे दूर होते गए। चैटिंग से जो रिश्ता शुरू हुआ था उसका चरम वो दिन था। उस दिन के बाद धीरे धीरे मरता हुआ रिश्ता अब फिर चैटिंग पर भी आ कर रुका था। लगभग 5 साल होने को थे उनके रिलेशन को।  

वो एक सफल इंसान था जो अपनी धुन में मस्त था। दूसरी ओर गीत का कॉलेज का आखिरी साल था। गीत उम्र के उस पड़ाव पर थी जहाँ उसे किसी अपने की बेहद जरूरत थी। उसे खुद नहीं पता कि वो क्यू तनहा सा महसूस करने लगी थी। उन्ही दिनों , गीत ने उसे देखा। हाँ , फेसबुक पर ही। चैटिंग शुरू हुयी , बात आगे बढ़ी। कुछ दिनों में वो घंटो बातें करने लगे। दोनों ने कुछ भी न सोचा , बस बातें करते रहे। उन बातों में बहुत रस था। बेकरारी , बेचैनी , मिलने की घोर तड़प सब कुछ था उस खूबसूरत रिश्ते में। दोनों को अपनी दुनिया बहुत सुंदर दिखती थी।  

उनके रिश्ते को महीना होने वाला था जब वो मिले। वो जुलाई का एक सुहाना दिन था। पिछले दिन बारिश हुयी थी। वो बाइक लेकर , उसका वेट कर था। गीत पहली बार अपने घर से झूठ बोलकर निकली थी। उसे घर से निकलने में जरा देर हो गयी थी वजह उसकी नेलपॉलिश बनने की जगह बिगड़ गयी थी। दरअसल उसने गीत से कहा था कि उसे लड़कियों की पतली अंगुलियों में करीने से लगी नेलपॉलिश बहुत अच्छी लगती है। 

जब वो  मिले तब नेल पोलिश की बात न हुयी। बातें कुछ और ही होती रही। एक मिनट , सच कह रहा हूँ उन्होंने केवल बातें की। ऐसा नहीं कि उन्हें एकांत न मिला , वो एक कम व्यस्त जगह मिल रहे थे। कई मौके थे पर उन्होंने सिर्फ बात की। काफी देर तक वो बाइक पर घूमते रहे। उसने एक हाथ से बाइक को साधा और अपने दूसरे हाथ से गीत के बालों सहलाया। गीत , आगे झुक सी गयी। उसने अपने हैंडबैग को जो दोनों के बीच में था , हटा लिया और उसकी पीठ के सहारे आगे झुक आयी। 

उन्होंने एक कॉफीहॉउस में काफी पी। हाथों में हाथ लेकर तमाम बातें की। दोनों बहुत खुश थे। उसने उसी कॉफीहाउस से एक मग खरीद कर गीत को भेंट के तौर पर दिया। शाम को जब गीत ने उससे विदा ली तो दोनों संसार के सबसे खुश इंसान थे। गीत ने पहले ही उसके लिए एक वालेट खरीद कर रख लिया था। गीत ने अपनी एक तस्वीर , उस वालेट में रखी और चलते समय उसे दे दी। 

बस यही दिन और एकलौता यही दिन , दोनों के जीवन का सबसे खूबसूरत दिन है। सवाल तमाम हैं कि आखिर वो साथ क्यूँ न है ? आखिर क्या हुआ जो दोंनो अलग हो गए। जबाब भला मैं क्या जानू , मेरा काम तो कहानी कहना था जो मैंने कह दी। देखिये शायद गीत और वो आपके आस -पास ही होंगे। हो सकता है वो आपके भीतर ही हों। 

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तरप्रदेश।   


















सोमवार, 6 अगस्त 2018

Continuity

निरंतरता

जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए निरंतरता सबसे महत्वपूर्ण होती है। सिविल सेवा में चयन के बाद से काफी खालीपन महसूस कर रहा था वजह क्योंकि अब किसी चीज के लिए पढ़ना न था। कोई लक्ष्य नजर न आ रहा था कि अब किया क्या जाय ?

पिछले दिनों कुछ अच्छे दोस्तों की सलाह , सुझाव के चलते अपने लिए कुछ नया काम तलाश लिया है, मजा आ रहा है क्योंकि फिर से पढ़ाई में व्यस्तता बढ़ रही है। देखा जाय तो सीखने के लिए इतनी चीजे है कि आप पूरे जीवन विद्यार्थी बने रह सकते है ।

©आशीष, उन्नाव

रविवार, 29 जुलाई 2018

वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन


हैदराबाद में आयोजित वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन भारत की अर्थव्यस्था के लिहाज से काफी अहम कहा जा सकता है। भारत में स्टार्टअप को बढ़ावा दिया जा रहा है।  भारत सरकार ने युवाओं को स्वरोजगार के लिए तरह तरह से प्रोत्साहित कर रही है। वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन में महिलाओ की सहभागिता पर फोकस किया गया है। इससे आने वाले समय में भारतीय महिलाओं को वैश्विक स्तर पर अपनी नेतृत्व क्षमता दिखलाने का सुनहरा मौका मिलेगा। 

आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

New India


नव भारत की ओर 

योजना का फरवरी 2018 का अंक एक जीवंत लोकत्रंत के लिहाज से अपरिहार्य  , भारत में शिकायत निपटान की नूतन प्राविधियों के बारे में विस्तार से चर्चा करता है। किसी भी राष्ट की प्रगति ,स्थायित्व तथा जीवंतता , वहाँ के नागरिकों की शासन  के प्रति शिकायतो के प्रभावी निपटान पर निर्भर करती है। भारत में सुशासन और विकास पर जोर देने वाले माननीय प्रधानमंत्री जी ने सभी राज्यों में विकास कार्यो पर सटीक निगरानी रखने के लिए प्रगति संवाद जैसे नूतन व प्रभावी कदम लिए हैं। इसके साथ नागरिक घोषणा पत्र , सेवा का अधिकार , उमंग एप , सभी प्रमुख मंत्रलयों के ट्विटर हैंडल , फेसबुक पेज , सीपीग्राम आदि प्रणाली , नागरिकों की शिकायतों के निपटान का आसान जरिया बन गयी हैं। इनके जरिये 2022 के लिए नव भारत का संकल्प भी पूर्ण किया जा सकता है। जरा हटके  स्तंभ में परमेश्वरन अय्यर जी स्वच्छ भारत के व्यवहार परिवर्तन पर जोर देते हुए सारगर्भित लेख में सभी पहलुओं को समेटा है। निश्चित ही स्वच्छ भारत अभियान , आजादी के बाद लागु योजनाओं में सबसे तेजी से क्रियान्वित होने वाली योजना है। कुल 9 राज्य खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। भारत में 2014 के मुकाबले 2017 में स्वच्छता कवरेज 39 से 77 फीसदी तक पहुंच गया है। आने वाले वर्षों में इसका असर भारतीय नागरिकों के अच्छे स्वास्थ्य पर भी देखा जा सकेगा। 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

Health Bima


कैसे कारगर हो स्वास्थ्य बीमा योजना ?

स्वास्थ्य बीमा योजना की सफलता के लिए इससे जुड़े हितधारकों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रहेगी। विशेषकर अस्पताल। चुकि हमारे पास इस योजना के पहले अनुभव यही बताते है कि कई अस्पतालों में 30000 रूपये को हासिल करने के लिए तमाम फर्जी ऑपरेशन तक भी कर दिए गए। अब तो 5 लाख रूपये है तो इस पहलू पर काफी सतर्क रहना होगा। सोशल ऑडिट , रियल टाइम मॉनिटरिंग , लाभार्थी के खाते में सीधे लाभ का वितरण, आधार का उपयोग काफी हद तक फर्जीवाड़े पर लगाम लगा सकती है। इस बड़ी योजना में क्रेन्द्र के साथ साथ राज्यों को भी उत्साहपूर्वक शामिल होने पर ही इसे सुचारु रूप से लागु किया जा सकेगा और वास्तव में समाज को सामाजिक सुरक्षा मिल सकेगी। इसके साथ साथ हमें स्वच्छ वातावरण , शुद्ध पेयजल , पौष्टिक भोजन , स्वास्थ्य जागरूकता आदि पर भी जोर देना होगा ताकि हम बीमार ही कम पड़े और अस्पताल जाने की नौबत कम आये।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

Budget

कैसा रहा आम बजट 

इस वर्ष का बजट कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण है। किसान , गरीब पर क्रेन्द्रित इस बजट ने समय की मांग के अनुरूप कई महत्वपूर्ण फैसले लिए है। देश में पिछले कुछ वर्षो से किसान सबसे ज्यादा पीड़ित व उपेक्षित रहा है। सरकार ने किसानों को उनकी फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने की बात कही है। स्वामीनाथन समिति (2006 ) के अनुसंशा के अनुरूप , इस फैसले को दूरगामी कदम माना जा रहा है। किसानों के लये ऋण 10 लाख करोड़ से बढ़ा कर 11 लाख करोड़ दिए जाने की बात की गयी है।  आयुष्मान भारत योजना के तहत 10 करोड़ परिवारों को हर साल 5 लाख रूपये का चिकित्सा बीमा दिए जाने की घोषणा काफी उत्साहजनक है। 46 उत्पादों पर कॉस्टम ड्यूटी बढ़ा कर सरकार ने घरेलू क्षेत्र को मदद देने का प्रयास किया है। इसका असर रोजगार सृजन पर भी पड़ेगा। शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के मद्देनजर कई बेहद अहम कदम उठाये जाने की बात कही गयी है। समग्रतः यह आम बजट , आम लोगों के लिए बेहद खास रहा है।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

Bank Fraud

बैंक घोटालों से बचने के उपाय ?
बैंक में घोटाले का सबसे सरल और सक्रिय तरीका अपनी क्षमता से अधिक लोन पास करवाना और उसे चुकाने में हीलाहवाली करना है। इसमें प्रायः बैंक अधिकारियों की मिली भगत रहती है। इनसे बचने का सबसे अच्छा तरीका यही हो सकता है कि किसी भी लोन को पास करने से पूर्व उससे जुडी गारंटी को सटीकता से मापा जाय। फर्जी आधार पर पास लोन में लोन लेने वाले से साथ साथ बैंक कर्मचरियों पर भी तेजी से कार्यवाही की जाय। रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया को भी अपनी नियामक वाली भूमिका को और प्रभावी करने की जरूरत है। सात सूत्रीय इंदधनुष योजना को शीघ्रता से लागु किया जाय। 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 


शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

Mission Imposible :6

इथान हंट कभी आपको को निराश नहीं करते हैं


MI सीरीज के फ़िल्म की कुछ खास बातें होती हैं। फ़िल्म की शुरुआत में टॉम क्रूज किसी गुप्त, अनजानी जगह पर होते हैं। उन्हें उनकी एजेंसी IMF से संदेश मिलेगा, जो 5 सेकंड में नष्ट भी हो जाता है। उसके बाद एक एक्शन सीन , फिर वही पुरानी जानी पहचानी धुन।

उसके बाद शुरू होता है, विज्ञान, तकनीक, जांबाजी का शानदार मिश्रण। हर बार कुछ खास स्टंट किये जाते है, कभी दुनिया की सबसे ऊंची बिल्डिंग से कूदना, कभी पानी में 4 मिनट तक सांस रोकना । सुपर बाइक से रोड पर ट्रैफिक की विपरीत दिशा में दौड़ लगाना तो खैर होता ही है। इस बार एक हेलीकॉप्टर का स्टंट सबसे रोमांचक लगा। कहानी तो खैर अलग, उम्दा होती है। दुनिया खत्म होने से, पहले इथान हंट अपनी टीम के साथ खतरे को टाल देते है।मिशन इम्पॉसिबल : फॉलआउट , एक बढ़िया देखने लायक फ़िल्म है। तमाम नई अनोखे गैजेट से भरपूर , फ़िल्म आपको मन्त्र मुग्ध कर देगी।

आशीष, उन्नाव।

मंगलवार, 24 जुलाई 2018

Look your positive side

हर हाल में मुस्कराना है 


आखिरी अटेम्ट होने के कुछ अपने फायदे व नुकसान होते है। रह रह कर ख्याल आता कि अगर अबकी बार मिस किया तो पूरी उम्र आईएएस के लिए तड़पते रहोगे। इसलिए पूरी तरह से कमर कस ली और सकारात्मक चीजो पर नजर डाली। मैंने सोचा, अगर तुम पास हुए और अपने एटेम्पट दुनिया के सामने रखे तो लोग नजीर देंगे। यह सोच, मुझे हर पल मेहनत के लिए प्रेरित करती रही।


आशीष, सिविल सेवा 17 में चयनित

#मोटिवेशनल



Purandar Fort (03), Pune

पुरन्दर का किला नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा (03 )

आशीष कुमार 

अंततः किले के दरवाजे तक पहुंच गए। अब उसमें कोई लकड़ी का दरवाजा नहीं है। पूरी तरह से सन्नाटे से भरा, अजीब सीलन से भरी महक, गेट में लोहे के पुराने कुंडे में दरवाजे के कुछ अवशेष और न जाने कितनी घटनाओं का साक्षी। इस दरवाजे तक पहुँचने में पूरी तरह से पसीने से कपड़े गीले हो चुके थे. अब  पुराने पत्थरो की सीढियाँ बनी थी. एक भी सीढ़ी चढ़ी न जा पा रही थी पर अब हम पहुंचने ही वाले थे।  ऊपर जा कर देखा तो कुछ नहीं था। बस पहाड़ , कही कही पर कुछ पुराने दीवारे। यहाँ दूर तराई में गांव छोटे छोटे दिख रहे थे।  

यहाँ से नवनाथ जी कुछ बड़ी रोचक बातें बताई , जैसे पुराने दिनों में इन किलों में हाथी भी रहा करते थे जो बहुतों को आश्चर्य का विषय लगता। लोग सोचते कि इतने ऊपर हाथी कैसे चढ़ कर आते ? दरअसल हाथी के छोटे छोटे बच्चो को ही ऊपर चढ़ा दिया जाता था और वही बाद में बड़े हो जाते थे। किले के ऊपर भी साल/२ साल तक के लिए पानी , अनाज की भी व्यवस्था हुआ करती थी। पुराने दौर में जब सेना की मजबूती घोड़े , हाथी की सेना समझी जाती थी, ऐसे किले जीतना बहुत ही कठिन था। ऊपर तक चढ़कर आने में ही सेना थक जाती फिर वो किसी भी लड़ाई में नकाम रहती। बहुत बार , जैसे ही दुश्मन का पता लगता , ऊपर से बड़े बड़े पत्थर लुढ़का दिए जाते। यही कारण था कि मराठा लम्बे समय तक अजेय बने रहे। 
(ऊपर से तस्वीर तो नहीं ले पाया पर यह ज़ूम तस्वीर बता रही है कि काफी ऊंचाई चढ़नी है )


तमाम लोगों को यह लग सकता है कि यहाँ देखा क्या जाय ? ज्यादातर जगह पथरीली थी. अच्छा हुआ जो नवनाथ जी साथ थे। उन्होंने मुझे ऊपर पानी को इकठ्ठा करने वाली जगह दिखाई। सामने एक जगह पीने का पानी था जो वर्षा से अपने आप इक्क्ठा हो जाता था। दूर पहाड़ी पर एक मंदिर दिख रहा था जो किले का हिस्सा था। वो दिखने में ही बहुत दूर लग रहा था। हिम्मत जरा भी न था कि अब वहाँ क्या जाया जाय। नवनाथ जी जोर दिया और मैंने भी सोचा कि अब यहां तक आ गए तो वहाँ तक भी चला जाय। 

(समझ सकते है कि हम कितने ऊपर चढ़ कर गए थे )

किले का ऊपरी भाग काफी हद तक समतल है। रास्तें में एक परिवार सुस्ता रहा था। हम आगे बढ़े और रास्ते में पानी को इक्क्ठा करने के कई स्थान मिले। मोबाइल बहुत याद आ रहा था कि काश ये सब जगहें , तस्वीरों में कैद कर ली जाये। नवनाथ जी तमाम बातें बताते चल रहे थे , जैसे कि आस पास के युवा कभी कभी किसी खास मौके पर आकर इन पानी की जगहों को साफ कर जाते है। ज्यादतर जगहों पर लगभग 10 लाख लीटर तक पानी जमा हो सकता था। 

मंदिर की सीढ़िया अब पास लगने लगी थी। ऊपर दो आदमी और कुछ बंदर नजर आ रहे थे। पास जाने पर पता चला कि वो दोनों सेना के जवान थे। उनकी ड्यूटी खत्म हो रही थी , अब बाद में कोई दो और जवान आएंगे। इतनी ऊंची जगह पर चढ़ना और ड्यूटी करना , सच में टफ टास्क था। यह शिव जी का प्राचीन मंदिर था। अंदर बहुत सकूँन महसूस हुआ। यहाँ पर हवा बहुत स्फूर्तिदायक थी। सारी थकान दूर हो गयी। और भी तमाम रोचक बातें है पर उन बातों को रहने देते हैं।  काफी लम्बी सीरीज हो गयी है , आप भी पढ़ते पढ़ते तक गए होंगे। बस उपसंहार पढ़ लीजिये अच्छा है। 

लौटे समय इतना थका हुआ था कि डैम देखने का प्लान कैंसिल कर दिया। भोर से पुणे की बस ली। रात 8 बजे पुणे एयरपोर्ट पर था। सबसे ज्यादा कमर और तलुवे दर्द कर रहे थे। नाइके के हलके वाले शूज होने के चलते चढ़ाई में आराम तो मिला पर पत्थरों की चुभन बहुत दर्द दे रही थी। फ्लाइट 11 बजे थी। एक जगह पर मसाज चेयर दिखी। उनके विज्ञापन पर नजर गयी। "रिलैक्स एंड गो" का दावा था कि उनकी मसाज चेयर में 5 मिनट , एक एक्सपर्ट मसाज देने वाले के 30 मिनट के बराबर है। मैंने 20 मिनट वाला , जोकि सबसे बड़ा और फुल पैकेज था , लिया और आँख बंद कर लेट गया। एक एक्सपर्ट मसाज करने वाले के दो घंटे के बराबर मसाज कराने के बाद और एक आम व्यक्ति के पुरे दिन की कमाई के बराबर रुपए देने के बाद जब उठा तो कम से कम कमर और तलुवे की हालत काफी ठीक हो चुकी थी।

पास में चाय वाले से चाय पूछी।
"80 रूपये "
"मिल्क है "
"नहीं मिल्क पावडर है "
"क्या यार इतनी मॅहगी चाय और दूध भी नहीं "
"मिल्क पावडर 600 रूपये किलो वाला है "

इसीलिए एयरपोर्ट पर कुछ लेने से , सिनेमाघर में पॉपकॉर्न खाने से बचता हूँ , उस दिन मन मार कर 600 रूपये किलो वाले मिल्कपॉवडर की चाय पी। पुणे में आखिरी अंतिम घंटे  थे. यहाँ  जीवन में तमाम नए अनुभव मिले थे।  भारत में दक्षिण की ओर इतनी दूर तक पहली बार आया था। बहुत  सारे रोमांचक, सुखद अनुभवों  के साथ यात्रा समाप्त हुयी। 

( समाप्त )

© आशीष कुमार,उन्नाव उत्तर प्रदेश।   

सोमवार, 23 जुलाई 2018

Purandar Fort (02), Pune

पुरन्दर का किला नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा (02 )

आशीष कुमार 

बाला जी के मंदिर के मंदिर से निकले तो पास के पहाड़ी पर काले काले बादल घिर आये थे, मन में थोड़ी चिंता भी बढ़ी। नवनाथ जी बता चुके थे कि इधर बारिश आती है तो कई कई दिन तक लगातार होती रहती है। मुझे भोर (पुणे का एक तालुका ) में दो दिन हो चुके थे अभी तक तो सब ठीक था। जब गया उसके पहले तक बारिश हुयी थी। खैर बारिश होगी तब देखा जायेगायह सोच कर आगे बढ़ गए। 

रास्ता काफी उतार -चढ़ाव , घुमावदार था। मदिंर से थोड़ा आगे बढ़ने पर ही ऊपर पहाड़ी पर किले की काला ढांचा दिखने लगा था। बहुत दुँधला था। इससे पहले मैंने इलहाबाद का किला (अकबर) , दिल्ली का लाल किला (शाहजहाँ ), रानी लक्ष्मीबाई का किला ( झांसी ), विजय विलास पैलेस ( कच्छ गुजरात , यहाँ पर हम दिल दे चुके सनम की शूटिंग हुयी थी ) , सिटी पैलेस ( उदयपुर) , आगरा का लाल किला देख चूका था। इन सबमें लक्ष्मीबाई का किला /महल सबसे दुर्गम और रोमांचक लगा था। सिटी पैलेस काफी भव्य है और टिकट सबसे ज्यादा महँगी  है।

पुरन्दर की संधि (1665 ) के बारे में आप सब ने पढ़ा ही होगा। यह वही जगह थी। मन में बहुत रोमांच था कि उन्हीं जगहों में घूम रहा हूँ जहाँ लगभग 350 वर्ष पहले शिवा जी के नेत्तृत्व में मराठों ने मुगलों को दर्जनों बार कड़ी चुनौती थी।  इतिहास में मुझे मराठों का समय सबसे रोमांचककारी लगता है। बचपन में एक कहानी पढ़ी थी " गढ़ आया पर सिंह गया " शायद यह ताना जी की कहानी थी , जिसमें वो रस्सी की मदद से किसी किले को जीत लेते है पर अपनी शहादत की कीमत पर। शिवा जी के बचपन की तमाम कहानी भी पढ़ी है। बड़ी ही कम उम्र में उन्होंने तमाम किले जीत लिए थे।  अब जब अपनी आँखों से ऐसे किले देखने जा रहा था तो महसूस हुआ कि इन किलों को जीतना सच में बहुत ही कठिन था। कठिन क्यों था यह आगे बताऊंगा अभी अपनी यात्रा आगे बढ़ाये।  




यहाँ प्रवेशद्वार से आप किले की धुंधली तस्वीर देख सकते है
(यहाँ प्रवेशद्वार से आप किले की धुंधली तस्वीर देख सकते है )



रास्ता काफी सकून भरा था , भीड़ न थी। चारो तरफ हरियाली थी। खेतों में एक्का दुक्का लोग काम करते नजर आ रहे थे। किला दिखा गया था पर काफी ऊंचाई पर था। पहाड़ी जगहों में दुरी का अनुमान लगाना कठिन है पर कम से कम ४ किलोमीटर के घुमावदार रास्ते में पहाड़ पर चढ़ने के बाद , मिल्ट्री का चेक पॉइंट मिला। आज  ज्यादातर किले सेना के अधीन हैं। नवनाथ ने बताया कि पहले यह किले के दूसरे भाग में थे अब यहां तक इन्होने अपनी मौजूदगी बना ली है। पहले नीचे से ऊपर आने के लिए कोई रोड न थी। लोग ऊपर आने में भी आधा दिन लगा देते थे। 





(ऊपर सेना के पॉइंट से आगे बढ़ने के बाद )



सेना ने बाहर ही बाइक रुका दी और हम पैदल ही आगे बढ़े। ऊपर करीब 500 मीटर दूर किले की दीवारे अब स्पष्ट होने लगी थी। आगे एक और सेना का पॉइंट मिला। यहाँ हम से हमारे हथियार ( मोबाइल ) के लिए गए। बड़ा कष्ट हुआ कि अब आगे कैसे तस्वीरें निकाली जाएँगी। खैर अब अपनी चढ़ाई शुरू हुयी। एकदम खड़ी चढ़ाई , कोई सीढ़ी नहीं , बस पथरीला रास्ता। जोश था , खूब तेजी से चढ़े और थोड़ी ही देर में पस्त हो गए। बाहर से कही कोई गेट नजर नहीं आ रहा था.जंगली पेड़ , पौधों के बीच में हम गुजर रहे थे। बमुश्किल  5  फिट चौड़ा ही  रास्ता होगा। रास्ते में एक जगह एक दादा अपने पोते से के साथ मिले , वह वापस लौट रहे थे और उस जगह रुक का सुस्ता रहे थे। उस जगह पर बिलकुल खड़ी चढ़ाई पर एक शार्ट कट रास्ता था. 20 फिट की खड़ी चढ़ाई चढ़ो या फिर 50 मीटर घूम कर आओ। हमारे मेजबान ने कहा- सर चढ़ना मुश्किल और जोखिम भरा है और थक भी जाओगे। मैंने कहा मै जरूर चढूँगा। महानगरों में इस तरह की  दीवालों चढ़ने के लिए 100/200  रुपए ले लेते है और रस्सी का सहारा भी होता है। नवनाथ इकहरे शरीर के है और उनके लिए यह बहुत आम बात थी। पलक छपकते ही बगैर कोई सहारा लिए , ऊपर चढ़ गए। मैं भी चढ़ा , धीरे से बैठ कर। दोनों ही लोग जूते पहने थे। मुझे जूतों के फिसलने का डर था।


(ज़ूम करने बाद , समझ सकते है कि यह काफी उचाई पर है )


ऊपर नवनाथ बोल रहे थे  कि सर नीचे मत देखना। मेरा जरा भी पैर फिसलता तो काफी नीचे गिरता , मौत तो नहीं पता पर उठने लायक न बचता , इतना निश्चित था। बिलकुल चिपक कर , पत्थर पकड़ कर ऊपर चढ़ा और धीरे धीरे ऊपर पहुँच गया। सांस बहुत जोर से चल रही थी , ऐसा लगा कि 1 किलोमीटर की दौड़ लगा ली हो। खड़ा हुआ और आगे बढ़ा वजह आज रात में ही पुणे से फ्लाइट थी और मुझे कम समय में ज्यादा घूमना था। अगर सुस्ताने लगता तो पूरा किला देखा पाना मुश्किल था। थकान होने के बावजूद बहुत मजा आ रहा था। मैं अपने दोस्तों को मिस कर रहा था , सोच रहा था वो होते और मजा आता। 

जारी>>>>> 

© आशीष कुमार , उन्नाव। 

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