योजना का जुलाई अंक जोकि भारत की समकालीन बहुआयामी प्रगति का दर्पण था , बहुत भाया। पिछले दिनों , योजना की साइट पर इसके पुराने अंक देख रहा था। सबसे पहला अंक जोकि खुशवंत सिंह जी के संपादन में निकला था को भी देखा और पाया कि योजना हिंदी ने कितनी लंबी यात्रा पूरी कर चुकी है। उस समय इस पत्रिका में विकास पर आधारित कथा-कहानी को भी जगह दी जाती थी। आज योजना पत्रिका, अपने गुणवत्तापूर्ण लेखों के चलते जन सामान्य में अपनी गहरी पैठ बना चुकी है।
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BOOKS
बुधवार, 7 नवंबर 2018
YOJNA LETTER
योजना का जुलाई अंक जोकि भारत की समकालीन बहुआयामी प्रगति का दर्पण था , बहुत भाया। पिछले दिनों , योजना की साइट पर इसके पुराने अंक देख रहा था। सबसे पहला अंक जोकि खुशवंत सिंह जी के संपादन में निकला था को भी देखा और पाया कि योजना हिंदी ने कितनी लंबी यात्रा पूरी कर चुकी है। उस समय इस पत्रिका में विकास पर आधारित कथा-कहानी को भी जगह दी जाती थी। आज योजना पत्रिका, अपने गुणवत्तापूर्ण लेखों के चलते जन सामान्य में अपनी गहरी पैठ बना चुकी है।
What to do right now ?
मंगलवार, 6 नवंबर 2018
Story of a Murderer
लगभग 10 पहले एक मर्डर की कहानी बताने लगे। चम्बल इलाके के किसी गावँ से थे। उनके गावं में कुछ दबंग लोग रहा करते थे और इन्हें आय दिन परेशान करते थे। उसी परिवार में कोई मलेट्री में नौकरी पा गया तो उस परिवार की दबंगई और बढ़ गयी। ऐसे ही किसी मौके पर अंकल की और उनके परिवार की शरेआम खूब पिटाई की होगी। उसी रात अंकल ने कहीं से देशी असलहे की व्यस्था की और मलेट्री मैन और उसके भाई को गावं में दौड़ा दौड़ा कर मारा। उसके परिवार के साथ साथ सारे गांव वाले हैरान थे कि अंकल जैसा सीधा साधा आदमी ऐसा कर सकता है। पर जब आदमी हर तरफ से परेशान होता है तो उसको कुछ सूझता नहीं।
मर्डर करके वो जंगल तरफ भाग गए। वो सोचते थे कि किसी डाकू के गैंग में शामिल होकर बाकि जीवन उन्हीं साथ काटेंगे। अंकल को काफी खोजने के बाद भी कोई गैंग मिला नहीं। कुछ रोज जंगल में काटी और एक दिन पुलिस में जाकर सरेंडर कर दिया। इसके बाद उनके परिवार ने जमीन बेचना शुरू किया। उनकी जमानत आदि में लगभग सारी जमा पूंजी खत्म हो गयी। बहुत लम्बी कहानी है , काफी दिन तक किसी जज के घर माली /नौकर बने पड़े रहे। फिर किसी संस्था के शिविर में महीनों रहे । फिर इस स्कूल में चौकीदार के रूप में ड्यूटी करने लगे। उन्हीं दिनों हम से मुलाकात हुयी थी। कुछ साल बाद जब हम वापस उनसे मिलने गए तब वो वहाँ नहीं थे। उन्हें मर्डर करने का बहुत अफ़सोस था। मुझे आज वो शब्द याद हैं - " जोश में आकर कभी किसी मर्डर न करना चाहिए। आदमी बिक जाता है मुकदमे आदि में।" उनको अपने एकलौते बेटे की भी चिंता रहा करती थी। क्या पता उसकी जान के लिए , इस तरह से मेरे शहर में छुप कर रह रहे हो।
एक और बड़ी रोचक बात याद आ रही है। वो बहुत ज्यादा पढ़े लिखे न थे पर उनको जीवन के तमाम अनुभव थे. उन दिनों मुझे नावेल पढ़ने का बड़ा शौक था। अंकल मेरे हाथ में मोटी मोटी किताबें देखते तो कहते कि तुम्हारी नौकरी जरूर लगेगी। मैं मुस्करा कर कहता - यह किताबें तो बस टाइमपास है। बेरोजगारी के दौर में एक छोटी सी सरकारी नौकरी , बहुत ही बड़ा ख्वाब हुआ करती थी। नावेल पढ़ते पढ़ते कब विपिन चंद्र , मजीद हुसैन व लक्ष्मीकांत को पढ़ने लगा पता ही न लगा। खैर , आज पलट के देखता हूँ तो लगता है उनके शब्दों में सरस्वती थी।
( कहानी की तरह पढ़े। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से इसका कोई लेना देना नहीं है )
© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
रविवार, 4 नवंबर 2018
Story of a great teacher : Pro. Anil Gupta
शनिवार, 3 नवंबर 2018
मोटिवेशनल
जरूरी नहीं कि आप पर किसी टॉपर की रणनीति काम ही आये, अक्सर हर किसी की अपनी ही कहानी होती है। सुने , समझे पर आँख मूंद कर किसी अनुकरण न करें
- आशीष
बुधवार, 31 अक्टूबर 2018
send me donation
(प्राक्थन : बहुत ही लम्बी पोस्ट है और काफी हद तक ओछी भी। कहानी का तारतम्य न टूटे इसलिए इसे पार्ट में पोस्ट न करके एक साथ ही पोस्ट कर रहा हूँ। यह कहानी कई बार अलग अलग लोगों से बताई है पर अब वक़्त है कि इसे शब्दों में ढाल दिया जाय। कहानी पढ़कर आपको तमाम ख्याल आ सकते हैं , मैं खुद काफी दिनों तक दुविधा में रहा कि जाने दो वो पुराने दिनों की बात है पर आपने अक्सर सुना होगा कि लोग कहते है कि आदमी अक्सर कुछ बनने के बाद बदल जाता है , घमंडी हो जाता है। इस पोस्ट में सालों पुरानी बात का जबाब दिया है और कुछ नहीं। एक लिहाज से यह पोस्ट ओछी भी है पर तलाशने वाले इसमें मोटिवेशन भी तलाश सकते हैं। आप यह भी सोच सकते है कि इस तरह की पोस्ट मुझे अब शोभा नहीं देती पर मन मे जब अन्तर्द्वन्द बढ़ जाए तो उसे शब्द रूप देना ही पड़ता है। बाकि इंसान बदलता या घमंडी नहीं होता हाँ वो पहले जिन चीजों पर चुप रह जाता है , उनपर जबाब देना सीख लेता है।)
आज वहाँ की बात करता हूँ जहाँ गणित , फिजिक्स , केमिस्ट्री पढ़ता था। प्रसंगवश मैं एक सरकारी स्कूल में पढ़ता था जहाँ दोनों साल को मिलाकर 10 क्लास भी न चली होंगी। इसलिए ट्यूशन क्लासेस का जोर था। आखिरी महीने में सर ने एक दिन कहा कि "आशीष अपनी फीस जमा कर दो।" मैं चौक गया क्योंकि मैंने पहले ही फीस जमा कर दी थी। मैंने कहा कि "सर फीस तो मैंने पहले ही दे दी है।" उन्होंने कहा कि " देख लो , पापा से पूछ लेना शायद भूल गए हो "। मै अब कुछ परेशान हो गया था। यह एक प्रकार से मेरे चरित्र पर आरोप था । उसी बीच एक डेढ़ सयाना लड़का चट से बोला कि" महावीर हलवाई के यहाँ समोसे खा डाले होंगे" । पाठको को जिज्ञासा हो रही होगी कि यह लड़का कौन था । मै उसका नाम नही लिख रहा हूँ पर अंत मे आप समझ जरूर जाएंगे मै किसकी बात कर रहा था । वैसे वो फ़ेल हो चुका था और हम जूनियर के साथ फिर से पढ़ रहा था । मै रोने को हो आया ,मेरे पास अपनी सच्चाई का कोई सबूत न था । सारी क्लास मे मुझे शक के तौर पर देखा जा रहा था आखिर गुरु पर प्रश्न कोई नही उठा सकता था । गुरु जी कुछ और भी बाते कही- यथा कि "मै वैसे ही किसी लड़के को कुछ खाना पीना होता है तो 10 / 20 रुपए लास्ट मे छोड़ ही देता हूँ । तुम मुझसे बता कर ले लेते" । मै उनसे क्या कहता कि 2 साल मे भी आप यह समझ ही न पाये मै उस तरह का लड़का हूँ ही नही ।
मैंने पापा से भी यह बात बताई कि उन्होने भी मुझ पर एक भी सवाल किए यही कहा कि वो भूल गए होंगे और अब दोबारा फीस देने की जरूरत नही है । उन दिनो पिता जी एक प्राइवेट स्कूल मे टीचर थे और मासिक वेतन 1000 रुपए मात्र था । ऐसे मे हर पैसे का निश्चित हिसाब होता था । एक रोज अपने केएनपीएन स्कूल के बड़े वाले मैदान मे घास पर बैठकर जब हम एक साथी के साथ गणित के सवाल हल कर रहे थे तो उस साथी से भी यही जिक्र किया । दोस्त का नाम कुलदीप सिंह था । संपर्क मे नही है , उनके ग्राम का नाम पता नही । इतना जरूर याद है कि ठाकुर थे ( कोई उनके सम्पर्क में हो तो मुझे उनसे जोड़िये ,प्लीज ) । उसकी बात से मुझे बहुत दिलासा मिली । उसने कहा कि " सर को तो हर रोज कोई न कोई फीस देता है , सैकड़ो लड़को में आपकी फीस लिखना भूल गए होंगे "। सर ने अनुसार वो हर रोज अपने घर जाकर फीस नोट करते थे । रसीद आदि की सिस्टम न था ।
खैर फीस दुबारा देने का कोई तुक नही था और यह भी कहूँगा कि सर ने ज्यादा कहा भी नही । मेरे लिहाज अब सब ठीक था, पर मै गलत था । काफी दिनो बाद एक मित्र ने मुझसे एक बात बताई । किसी दिन मै वहाँ पढ़ने नही गया हूँगा उसी दिन वो बात हुयी । मित्र के अनुसार - सर ने मेरे पीठ पीछे कहा कि "पटेल ठीक लड़का नही है" । मैंने मित्र से पूछा किस प्रसंग मे वो ये बात कह रहे थे । उसने बोला "वही फीस के संदर्भ मे "। उस दिन के बाद से उनके प्रति सभी भाव मर गए । मै हमेशा से अपने गुरुजनों का बहुत सम्मान करता रहा हूँ पर उनको उसी दिन से गुरु के श्रेणी से हटा दिया ।
शुरू के कुछ साल तक उधर जाना हुआ तो उनकी कोचिंग भी गया । चरण स्पर्श भी करता था पर मुझे वो बात भुलाए भूली नही ।
अभी पिछले दिनो की बात है ( सितम्बर 2018 ) , एक मित्र का फोन मौरावा से आया और बोला कि "सर बात करेंगे" । मुझे मित्र पर जरा गुस्सा भी आया पर बात तो करनी ही थी । दरअसल खुद्दारी का भाव बचपन से ही कूट कूट कर भरा है और जीवन के कुछ उसूल है कि एक बार कोई नजर उतर जाए तो लाख कोशिस कर लूँ दिल के तार जुड़ नही पाते। कई लोगों ने कोशिस कि उनसे संपर्क करवाने की पर मैंने उक्त घटना का जिक्र करते हुये मना कर दिया ।
सर ने पूछा " कैसे हो" ,
मैंने कहा कि "ठीक हूँ "।
मै उम्मीद कर रहा था कि मुझे आईएएस की परीक्षा पास करने की बधाई मिलेगी आखिर हर शिष्य उम्मीद करता है कि उनके टीचर सफलता पाने पर शाबाशी दे । भारत मे आईएएस के एक्जाम बड़ा और सम्मानीय क्या हो सकता है विशेषकर अगर आप छोटी जगह से हो तो इसके और भी मायने बढ़ जाते है । पर सर तो किसी दूसरे मूड मे थे । बोले कि इस दिवाली एक कार्यक्र्म का आयोजन कर रहा हूँ आना जरूर । मैंने कहा कि सर दिवाली मे टिकिट की बहुत दिक्कत है , बड़ी मुश्किल से दशहरे की टिकिट मिली है जिसमे घर आना होगा । उन्होने कहा कि "आना चाहे न आना पर चंदा जुरुर भेजवा देना "। मेरे मुह से तुरंत निकला - सर किस बात का चंदा ? दरअसल वो चुनाव भी लड़ते है इसलिए उन्हें नेता भी कहा जा सकता है । उन्होने कहा कि 4000 / 5000 लोगों को बुला रहा हूँ , 1 लाख रुपए तक खर्चा आयेगा उसी लिए । एक पल लगा कि उसी वक़्त उनको सारी बात बता दूँ और बोलू कि "पटेल तो पहले से बुरा लड़का है" पर शांत रहा । एक ही चीज समझ आई कि यह बड़ा ही स्वार्थी इंसान है । फोन रखने से पहले एक बात और भी बोल दी कि" मुझे बार बार फोन करने की आदत नही है , समझ रहे हो न"। इसमे भी मुझे बड़प्पन की बु आई । मुझे इतना जरूर यकीन है कि यह आयोजन छात्र मिलन समारोह के बहाने राजनीतिक आकांक्षा की पूर्ति की कोसिश जरूर होगी । दरअसल जहां से राजनीति शुरू होती है वही से हम दूर से प्रणाम कर लेते है ।
मौरावा मे इस चीज का हमेशा से बहस होती रही है कि दोनों अध्यापकों मे अच्छा कौन है । इसलिए कुछ बात अंग्रेजी वाले सर की भी बात कर लिया जाय। ऐसा नही है कि वो बहुत अमीर थे इसलिए मुझसे फीस नही लेते थे । कोई पारिवारिक रिश्ता भी तो न था। बस वो चीजों को समझ सकते थे कि हम उन दिनों आर्थिक संघर्ष से जूझ रहे थे । मै इन्हीं करणों से अपार श्रदा भी रखता हूँ ।
यूं तो तमाम बाते है करने को एक दो ही उल्लेख कर रहा हूँ । उनकी चंदे वाली बात को मैने कई बार सोचा कि आखिर किस हक से उन्होंने ने वो बात कही थी , लगा कि टीचर , किसी के भविष्य को बनाता है इसलिए वो शिष्य पर हक जतलाता है पर उन पर तो यह भी बात लागू नही होती । उन्हे पता नही कि इंटर की गणित मे मुझे आज तक सबसे कम अंक आए है , हर विषय से भी कम । 100 मे सिर्फ 37 अंक । यूं तो सबकी अपनी अपनी मेहनत होती है पर मै इतना तो कमजोर न था । वस्तुत मेरे तो गणित मे हमेशा से अच्छे अंक आते रहे है । दरअसल आपकी क्लास मे आपके भी कुछ प्रिय छात्र थे , जिनके सवाल ही आप बताते थे , बाकी लोग सिर्फ सुना ही करते थे । यह तो भला हो कि प्रतियोगी परीक्षाओ मे सिर्फ अंकगणित मे दक्षता काफी होती है वरना अपनी लुटिया कब की डूब चुकी होती । दूसरी और अँग्रेजी की क्लास तो बगैर फीस दिये पढ़ी थी और उसमे क्लास मे सबसे अच्छे अंक आए । बाद मे प्रतियोगी परीक्षाओ मे उन दिनों की अँग्रेजी का ज्ञान बड़ा सहायक बना ।
दूसरी बात भी बड़ी सामान्य ( काफी हद तक ओछी भी ) है पर जिक्र करना जरूरी है, अँग्रेजी वाले गुरु जी इस साल सिविल सेवा मे सफलता के बाद , खुद मेरे घर तक आए , दूसरी ओर आप एक बार गावं आए थे पर वोट माँगने । आपको याद आया कि इस गाव मे मै भी रहता हूँ तो अपने नंबर लिया होगा किसी से और कॉल की थी वोट व सपोर्ट के लिये ।
इन बातों को यही बंद कर देते है , थोड़ी बात उस डेढ़ सयाने लड़के की भी कर लेते है । एक दिन सर्दी के दिनों मे लखनऊ से अपनी कार मे लौट रहा था । बसहा तिराहे से आगे बढ़ा तो एक नजर उधर गयी । मुँह मे गोल गोल मफलर लपेटे वो एक तसले मे पानी मे साइकल का ट्यूब डुबो डुबो कर वो पंचर चेक कर रहा था । आप यह मत सोचे कि मैं किसी के व्यवसाय पर टिप्पड़ी कर रहा हूँ बस यह देखे कि उस दिन उसकी टिप्पड़ी "महावीर हलवाई के यहाँ समोसे खा डाले होंगे" से मुझे कितनी चोट पहुँची थी। उस दिन मैं कमजोर , बेबस व लाचार था। अगर मैं उसी के संस्कारों का होता तो गाड़ी रोकता और पूछता - "भाई कैसे हो , कैसी चल रही है लाइफ, तुम्हारा जातीय दम्भ, एकलौते लड़के होने की ठसक कहाँ गयी।" तो वास्तव मे न्याय का अहसास होता पर मै आगे बढ़ आया यह सोचते हुये कि जैसी करनी वैसी भरणी ।
© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
A CUP OF COFFEE
चारों तरफ हरियाली , असीम शांति की जगह थी वो। तमाम बातें हुयी , साथ में फोटो खींची गयी। हमने चलने की इजाजत मांगी तो उन्होंने कहा " एक कप कॉफी तो पीकर जाइये " और अपने पत्नी को आवाज दी कि कॉफी बना लाओ। थोड़ी न नुकुर के बाद हम तैयार हो गए। सच कहूँ उस वक़्त मुझे , इस अपनत्व को लेकर ख़ुशी हो रही थी। अपने घर से कितनी दूर , इस अनजाने जगह पर इस तरह की मैत्री हो गयी।
© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018
That streat vendor
हिंदी साहित्य में भी पान का वर्णन खूब हुआ है। सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु ने तो " लाल पान की बेगम " शीर्षक से एक कहानी भी लिखी है जो महिला सशक्तिकरण को बखूबी बखानती है।
मैंने उससे बोला कि" दरअसल मैं सीधा 10 रूपये देना चाहता था ताकि खुले रुपयों का लफड़ा न हो। "
दिनांक - 09.10.2018
अहमदाबाद
परिचय : युवा लेखक आशीष कुमार शौकिया तौर पर हिंदी लेखन करते है। उनकी कुछ रचनाएँ पुनर्नवा ( दैनिक जागरण ), कुरुक्षेत्र, बाल भारती जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। पिछले 7 सालों से अहमदाबाद में एक्साइज एंड कस्टम विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर सेवारत। हाल में वो संघ लोक सेवा आयोग की भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में भी चयनित हुए है।
संपर्क - 382 , ईशापुर , चामियानी , उन्नाव , ( उत्तर प्रदेश ) - 209827
ईमेल -ashunao@gmail.com
रविवार, 7 अक्टूबर 2018
9 years in UPSC
अपनी बात आगे बढ़ाने से पहले अपना छोटा सा परिचय दे दूँ। मै आशीष कुमार , उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले से हूँ। इस वर्ष (2017 ) सिविल सेवा परीक्षा में हिंदी माध्यम और हिंदी साहित्य विषय के साथ रैंक 817 से साथ चयनित हुआ हूँ। कुछ और जरूरी बातें भी साझा कर रहा हूँ। यह मेरा 9th और अंतिम प्रयास था। इससे पहले 5 मैन्स और 2 इंटरव्यू दे चूका था।
शुक्रवार, 28 सितंबर 2018
DANGAL OF MY VILLAGE : PART02
किसी भी दंगल की पहचान , उसकी इनामी राशि से होती थी. मेरे गांव का दंगल कुछ खास बड़ा नहीं माना जाता था। उससे बड़ा दंगल मगरायर का होता था उससे भी बड़ा दंगल कठार का होता था। मैंने कभी कठार का दंगल नहीं देखा , हाँ मगरायर का दंगल जरूर देखने गया हूँ।
प्रसंगवश मगरायर की ख्याति हिंदी के प्रसिद्ध छायवादी आलोचक नन्द दुलारे बाजपेयी की जन्म स्थली से है। उसकी के पास गढ़ाकोला गांव है , जो ख्यातिलब्ध , छायावाद के आधारस्तम्भ , मुक्त छंद के प्रवर्तक, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी की कर्म स्थली रही है। बिल्लेसुर बकरिया , चतुरी चमार, जैसी रचनाओं पात्र निराला जी ने इसी गढ़ाकोला गांव में पाए थे।
अब जब बात साहित्य की चल रही है तो उचगाव सानी गांव का नाम भला कैसे छूट सकता है। हिंदी के मूर्धन्य रचनाकार , मार्क्सवादी आलोचना के पितामह, डा. राम विलास शर्मा जी की जन्मस्थली उचगांव सानी ही है। ये तीनो जगह मेरे घर से बमुश्किल 5 किलोमीटर की दुरी पर होगी।
उत्तर प्रदेश का उन्नाव जिला कलम व तलवार के लिए जाना जाता है। प्रताप नारायण मिश्र , चित्रलेखा जैसे कालजयी उपन्यास के लेखक भगवती चरण वर्मा कुछ और बड़े नाम है , बाकि लिखने बैठूँ तो तमाम पन्ने भरे जा सकते हैं। साहित्य से लगाव रखने वाले लोग अक्सर उन्नाव भ्रमण पर आते रहते हैं।
बात दंगल की हो रही थी. मुझे पता ही न चला कब और कैसे दंगल बंद हो गया। अब उस जमीन पर एक सरकारी अस्पताल बना दिया गया है। काफी बड़ा अस्पताल है कभी गया नहीं पर इतना सुनता रहता हूँ कि डॉक्टर साहब वहाँ कभी कभार ही आते हैं। अब हर कोई डॉ प्रशांत ( मैला आंचल वाले ) जैसी भावना तो नहीं रख सकता है।
दंगल न रहा , पिता जी भी न रहे। अब वो पहलवान लोग भी न रहे। मोहल्ले में एक बुजुर्ग रहा करते थे। जवानी में पहलवानी की होगी इसलिए उनके नाम के साथ पहलवान जुड़ गया था। कई साल हुए पढ़ाई , नौकरी के चलते गांव से दूर चला आया। 4 -6 महीने में जब भी जाना होता , वो बाबा अक्सर मिलते प्रायः गांव की चक्की पर। लाठी लेकर चलते थे। मैं सामने पड़ जाता तो हाल - चाल जरूर ले लेते। मैं कहाँ हूँ और कैसा हूँ , घरवालों से पूछते रहते। मन में था कि एक बार कभी उनके साथ घंटो बैठकर बात करूंगा और उन्हें तमाम चीजे खिलाऊंगा। नौकरी , पढ़ाई और सिविल सेवा की तैयारी में ही उलझा रहा और एक दिन भाई का फ़ोन आया कि वो नहीं रहे। मन बड़ा दुखी हुआ। धीरे धीरे गांव के बुजुर्ग अपनी अंतिम यात्रा में जाते जा रहे है , हम शहरी दौड़ में उलझे और अकेले पड़ते जा रहे है। आज दंगल के बहाने ही सही उन पुराने दिनों , लोगों को याद कर बहुत सकून मिल रहा है।
( समाप्त )
©आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
मंगलवार, 25 सितंबर 2018
Dangal of my village :01
मंगलवार, 18 सितंबर 2018
Jodhpur Visit :3
आप सोच रहे होंगे कि जोधपुर के महल की कहानी बताते बताते , मैं बैटमैन और नोलन की बात क्यों करने लगा। दरअसल आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मेहरानगढ़ किले को आप बैटमैन राइज में भी देख सकते हैं। याद करें जब ब्रूस , एक गहरे कुवें से निकलने के लिए सीढ़ी चढ़ता और गिरता है। अंततः जब वो निकलता है तो मेहरानगढ़ के बाहरी परिसर में ही निकलता हैं। जोधपुर में तमाम फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।
बात हो रही थी जब किले से रानियाँ जौहर के लिए निकलती थी। किले के अंदर जाते ही एक रेस्तरॉ है। किले के भीतर तमाम चीजे थे। पत्थरों की बहुत बारीक़ जालियाँ है जिनसे आप बाहर से कुछ नहीं देख सकते है जबकि भीतरी भाग में मौजूद व्यक्ति बाहर का सब कुछ देख सकता है। अंदर तमाम हथियार , पेटिंग्स , राजसी कपड़े के लिए अलग अलग कमरे हैं। अगर एक एक चीज पर गौर करने जाये तो पूरा दिन इसीमे निकल सकता है। हमने वहाँ पर 4 या 5 घंटे बिताये होंगे।
किले के पास ही जसवंत थड़ा है। इसे जोधपुर का ताजमहल कहा जाता है। राजपरिवार के तमाम सदस्यों को यहाँ पर दफन किया गया है। सफेद संगमरमर की इमारत में बहुत सकून महसूस होता है। राजेश और हम दोनों बहुत थक चुके थे। उम्मेद भवन पैलेस , किले से दिखता है , प्लान बना कल दोपहर बाद देखा जायेगा।
लौटते समय हम घंटाघर से आये। वहाँ पर कुछ स्थानीय नाश्ता किया , जैसे पालक पकौड़ी और चाय। यह चाय की बहुत प्रसिद्ध दुकान थी और अनोखे तरीके से चाय बन रही थी। एक तरफ चाय का पानी उबल रहा था और एक ओर दूध उबाल कर रखा गया था। चाय का टेस्ट बहुत बढ़िया था पर दुकान में साफ सफाई, जगह की कमी हैं। राजेश को चाय इतनी बढ़िया लगी कि उसने 2 गिलास पी।
घंटाघर , जोधपुर के प्रमुख मार्किट है। सैकड़ो की संख्या में विदेशी सैलानी दिख रहे थे। हमने भी कुछ शॉपिंग की और घर लौट आये। अगले दिन राजेश का ras का पेपर था , मैं भी उसके साथ निकला और सेण्टर पर उसका इंतजार करता रहा। पेपर देने के बाद हम उम्मेद भवन पैलेस की ओर निकल गए।
उम्मेद भवन पैलेस , जोधपुर के महराजा का निजी सम्पत्ति है। महल का कुछ हिस्साा आम दर्शकों के लिए खोल दिया गया है। जहाँ तक याद आता है , इसके कुछ हिस्से में ताज होटल ग्रुप ने एक हेरिटेज होटल बना दिया है और उसके कुछ कमरो का किराया एक रात का 2 लाख रूपये तक है। एक दिन का न्यूनतम 50000 रूपये है।
उम्मेद भवन एक पहाड़ी पर बना है। भीतर विंटेज कारों का एक म्यूज़ियम भी है। रोल्स रॉयस , कडियाक, मरसडीज और भी न जाने कौन कौन सी कारे खड़ी है। कारे 1920 से आगे के दशक की हैं और देखने में बहुत भव्य है। रॉल्स रॉयस के इंजन किसी रेल के इंजन सरीखा दिखता है।
महल घूमने के बाद हमें जोरों की भूख लगी थी। काफी देर हम वहीं पता करते रहे कि जोधपुर में सबसे अच्छी जगह खाने की कौन सी और कहाँ है। एक युवा ने जिप्सी रेस्तरॉ का नाम बोला। नाम सुनकर ही लगा कि वहाँ जरूर जाना चाहिए।
जिस्पी पहुँच कर देखा कि वहाँ तो वेटिंग क्यू है। 4 बज रहे थे। बाहर इंडिया टुडे की एक पेपर कटिंग लगी थी और जिप्सी को उसमें काफी अच्छी जगहों में शुमार किया था. अगस्त का यह पहला रविवार था और शायद यह फ्रेंडशिप डे भी था। सामने एक बेकरी की दुकान थी। कुछ लड़कियाँ और लड़के फ्रेंडशिप डे सेलिब्रेट करने के लिए उधर जा रहे थे। उन्हें देख लगा कि जोधपुर , फैशन के मामले में काफी एडवांस हैं।
यह शहर में कुछ पॉश एरिया होते है। शायद हम जोधपुर की सबसे महत्वपूर्ण जगह पर थे। जिप्सी में अंदर जाकर पता चला कि उनकी जोधपुरी थाली वैगरह 3 बजे तक ही रहती है और शाम को 7 बजे के बाद फिर से शुरू होगी। इस बीच सिर्फ चुनी हुयी चीजे मिल पाएंगी। हमने दाल मखनी और गार्लिक नॉन लिया। स्वाद और सबसे महत्वपूर्ण साफ सफाई में जिप्सी का जबाब नहीं। गूगल से पता चला तो होटल का मालिक किसी आईपीएस का बेटा था और शौक के तौर पर इसे शुरू किया था जो अब बहुत अच्छे से चलने लगा था।
हमारी रात की ट्रैन थी। मेरी सीट कन्फर्म न थी उसी दिन टिकट बुक किया था। हालाकि सुमित , राजेश की सीट कन्फर्म थी। मुझे उनकी सीट पर बैठ कर रात काटनी थी। उन्होंने कहा की tt से बात करलो, अपना परिचय दे दो शायद कोई सीट हो। मैं मुस्कराया परिचय से ही बात बनानी होती तो सीट पहले ही कन्फर्म होती। जब तक घोर जरूरत न हो , आम बन कर ही जीने में मजा है।
उन दिनों नेटफ्लिक्स पर मैं वाइल्ड वाइल्ड कंट्री सीरीज देख रहा था। काफी रात तक उन्हें देखता रहा। सुमित रात में कई बार उठ कर मुझे सोने के लिए ऑफर किया पर मैं साइड सीट पर बैठा रहा और सोचता रहा यही तो जीवन है , दो साल फ्लाइट से चलने के बाद इस तरह स्लीपर डिब्बे में साइड सीट पर रात जागते हुए काटना , ये भी तो जरूरी अनुभव है। आखिर मेरा फलसफा है कि अनुभव ही जीवन है और जीवन ही लेखन है।
सोमवार, 17 सितंबर 2018
Jodhpur Visit : Part 02
(यात्रा के जुड़ी तमाम तस्वीरें मेरी इंस्टाग्राम प्रोफाइल @asheeshunaoo पर अपलोड हैं, उनके साथ आप इस यात्रा विवरण का बेहतर चित्र मनस पटल पर खींच सकते हैं )
शनिवार, 15 सितंबर 2018
Jodhpur Visit : part 1
( जारी_________)
© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
गुरुवार, 13 सितंबर 2018
NETFLIX: WILD WILD COUNTRY
शनिवार, 1 सितंबर 2018
Life means travel and meeting with friends
शुक्रवार, 31 अगस्त 2018
letter
गुरुवार, 30 अगस्त 2018
Questions and answers
सवाल व जबाब
हम कई मसलों में जबाब देने के योग्य होते हैं और कई बार हमें खुद सवालों से घिरे होते है। दोनों ही मसलों में हमें बहुत मितव्ययिता बरतनी चाहिए । सवालों का अंत नही है और हर किसी से अपने सवालों को नहीं साझा करना चाहिए । उत्त्तर देने में भी हमें संयम बरतना चाहिए । जितने अधिक आप उत्तर देने जाओगे , अपने महत्व को कम करते जाओगे। कई बार , चुप रहना भी सबसे बेहतर जबाब होता है।
-आशीष, उन्नाव
सोमवार, 27 अगस्त 2018
Motivational : Three star of Hindi Medium
बुधवार, 22 अगस्त 2018
Vo jo ankho se ek pal n ojhal huye
Featured Post
SUCCESS TIPS BY NISHANT JAIN IAS 2015 ( RANK 13 )
मुझे किसी भी सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेर...
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एक दुनिया समानांतर संपादक - राजेंद्र यादव एक दुनिया समानांतर , राजेद्र यादव द्वारा सम्पादित नयी कहनियों का ...
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निबंध में अच्छे अंक लाने के लिए जरूरी है कि उसमे रोचकता और सरसता का मिश्रण हो.........आज से कुछ लाइन्स या दोहे देने की कोशिश करता हूँ......
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पिछले दिनों किसी ने इस बारे में रिक्वेस्ट की थी। आज मैंने कुछ टॉपिक्स जुटाने की कोशिस की है। भूगोल बहुत बड़ा विषय है। इसमें बहुत से टॉपिक ...