योजना का जुलाई अंक जोकि भारत की समकालीन बहुआयामी प्रगति का दर्पण था , बहुत भाया। पिछले दिनों , योजना की साइट पर इसके पुराने अंक देख रहा था। सबसे पहला अंक जोकि खुशवंत सिंह जी के संपादन में निकला था को भी देखा और पाया कि योजना हिंदी ने कितनी लंबी यात्रा पूरी कर चुकी है। उस समय इस पत्रिका में विकास पर आधारित कथा-कहानी को भी जगह दी जाती थी। आज योजना पत्रिका, अपने गुणवत्तापूर्ण लेखों के चलते जन सामान्य में अपनी गहरी पैठ बना चुकी है।
जुलाई -18 के अंक का पहला लेख में हरदीप पूरी जी ने सरकार के समावेशी विकास को बयाँ करने वाले नारे " सबका साथ , सबका विकास " को आगे बढ़ाते हुए इसे सबका आवास तक पहुंचा दिया। वास्तव में आज भारत के किसी गांव में जाकर देखा जाय तो बड़ी मात्रा में टायलेट और आवास का निर्माण किया जा रहा है, जल्द ही हम सबको आवास उपलब्ध करा देंगे। सबको बिजली मिले , इसके लिए भी विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। पहले गाँव को क्रेन्द्र में रख कर योजना बनाई जाती थी , इसके चलते गांव तो विद्युतीकरण में आ जाते पर वहाँ पर कई परिवारों को बिजली न मिल पाती थी। पिछले दिनों , इसके लिए " सौभाग्य " योजना अर्थात प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना भी लागु की गयी है। शिक्षा , अक्षय ऊर्जा तथा किसानों से जुड़े आलेख बहुत ही गुणवत्तापूर्ण बन पड़े है।
आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें