पिछले दिनों कुछ और किताबे पढ़ी गयी। दरअसल कई वर्षो बाद , अब फिर से वही पुरानी आदत यानि नावेल पढ़ना को समय दे पा रहा हूँ।
१. दो मुर्दो के लिए गुलदस्ता - सुरेंद्र वर्मा का लिखा नावेल है। विषयवस्तु में दो नायक भोला और नील की कहानी है जो बॉम्बे में चलती है। दोनों दिल्ली छोड़ कर बॉम्बे जाते है और वहाँ की महानगरीय जिंदगी जीने के लिए बाध्य होते है , जिसमें धन है पर सकूँन नहीं है। नील पुरुष वेश्या बन जाता है और पारुल वाले प्रकरण के चलते उसकी हत्या कर दी जाती है। इससे पहले वर्मा का मुझे चाँद चाहिए नावेल पढ़ा था। वह स्तरीय था। उसमें वर्षा वशिष्ठ की कहानी थी। मेरे कमिश्नर सर ने यह नावेल दिया था और हम दोनों का नावेल पढ़ने के बाद एक निष्कर्ष निकला था कि लेखन में कामुकता , नग्नता का पुट डालना शायद बाजार की मांग सी हो गयी है। कुछ पल को मुझे लगा कि मैं लुगदी साहित्य की परम्परागत कथा पढ़ रहा हूँ। भाषा जरूर स्तरीय है पर विषय वस्तु , हमेशा से दोहराई जाने वाली।
२. मदारी - वेद प्रकाश शर्मा - इस सप्ताहांत मदारी को नेट से डाउनलोड करके पढ़ा। वेद प्रकाश को पहले खूब पढ़ा है। जीवन की तमाम दोपहर उनके नावेल पढ़ने में बीती है। मदारी में राजदान नामक एक व्यक्ति अपनी मौत के बाद अपने बुने जाल में फसा कर, अपने कातिलों का जीना हराम कर देता है।
3. आखिरी शिकार - सुरेंद्र मोहन पाठक - यह भी कल (रविवार ) नेट से डाउनलोड करके पढ़ा। सुनील सीरीज का नावेल है। घटनाक्रम लन्दन का है। रहस्य और रोमांच से भरपूर , पढ़ाकर मजा आ गया।
-आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
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