तेजस एक्सप्रेस का पहला सफर
पिछले दिनों मुम्बई से गोवा के लिए हाई स्पीड ट्रैन 'तेजस ' को लांच किया गया। विविध अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इस ट्रैन के पहले सफर ने यह साफ जतला दिया कि अभी भी भारत में ऐसे लोग भरे पड़े है जो निम्न सोच, स्वार्थ व निकम्मेपन के आदी है। ट्रैन के सफर के बाद पता चला कि कुछ सीट से हाई क्वालिटी के हेड फ़ोन ( high quality headphone ) गायब है , कुछ स्क्रीन में स्क्रैच है, बायो टायलेट चोक कर गए है। निश्चित ही इस तरह की घटनाएं हमारे सभ्य समाज पर धब्बा है।
हम विकसित देश बनने की आकांक्षा रखते है पर जब तक हम अपनी सोच को नहीं बदलेंगे कितनी भी उन्नति कर ले चीजे नहीं बदलेंगी। भारत के किसी भी शहर में रोड पर आप बहुतायत लोगों को बगैर हेलमेट , सीट बेल्ट लगाए देख सकते है। सड़क , सरकारी कार्यालय में पान की पीक , सार्वजनिक शौचालय की गंदगी , रोड को कूड़ेघर बना देना , भारत के लिए आम बात है।
दरअसल इस तरह की चीजों को कानून का सहारा लेकर ठीक नहीं किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है अपनी सोच व् व्यवहार में बदलाव लाया जाय। इसको शिक्षा भी से नहीं जोड़ा जा सकता है आख़िरकार तेजस में सफर करने वाले लोग आम , निम्न , अशिक्षित लोग नहीं है फिर इस तरह की तुच्छ चीजों के प्रदर्शन से हमे यह विचार करने पर विवश कर देती है कि क्या शिक्षा लोगो को सभ्य नहीं बनाती। शायद इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए हमारी शिक्षा में नैतिकता का समावेश करना , समकालीन समय की महती जरूरत बन गयी है।
आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें