कैसे समय गुजर रहा है सफलता के बाद ?
"कभी कभी जब करने के लिए कुछ खास न हो तो हम सबसे ज्यादा ऊबे हुए होते है "
उन दिनों जब मैं सिविल सेवा में असफल था, एक सवाल मन में बार बार आता था कि सफलता के बाद कैसा लगता होगा।2 महीने गुजर गए है दरअसल गुजरे नही है, सच कहूँ कि मैं ही जानता हूँ कि कैसे घिसट घिसट के काटे जा रहे है। 9 सालों से upsc में इस कदर घुस गया था कि बस वही दुनिया नजर आती थी। समय कम पड़ता था किसी के लिए भी। न कही जाना, न फ़ोन कॉल। किसी के लिए भी वक़्त नहीं था। कुछ बेहद अहम, कोमल रिश्ते, upsc की तैयारी में भेंट चढ़ गए। तमाम लोगों की नजर में मैं एक स्वार्थी इंसान था। मुझे अक्सर झूठ बोलना पड़ता था । यह शादी के मामले में होता था, कुछ मित्र बड़ी उम्मीद से कार्ड देते और मैं बोलता कि जरूर आऊँगा पर कभी न जा पाया। मेरा pre, mains और इंटरव्यू का चक्र पूरे साल चलता रहता और जॉब तो थी ही, लेखन भी निरन्तर चलता रहता। खैर अब उन बातों को क्या याद करना, सांझेप में मैं दुनिया का सबसे व्यस्त इंसान था।
अब मैं कुछ भी नही करता। पूरा दिन बोरियत भरा गुजरता है। जॉब में भी इस समय लोड जरा कम है। सारा दिन मैं फोन पर तमाम दोस्तो से बातें करता हूँ। अमेज़ॉन प्राइम पर कुछ मूवी देखता हूँ। फेसबुक पर कुछ लोगों ने बात करने के लिए no दिए थे, मैं तमाम सालों से जो मुझे पता था, उसमें उन्हें गाइड करता आ रहा हूँ पर पता नही क्यों अब जरा भी मन नही होता कि कोई मुझसे upsc की तैयारी की बात करे। समझ नही आता कि बोरियत बढ़ती क्यों जा रही है। तमाम लोगों ने ऑफिस में सलाह दी छुटी ले लो अब इस टाइम को एन्जॉय करो। मैं जानता हूँ कि अगर छुटी ली तो करने के लिए कुछ भी न बचेगा। अभी आफिस जाता हूं, तो लगता है कि कुछ घंटे कट जाए जाएंगे। लौटते वक्त शाम को पूल में 1 घंटे तक तैरता हूँ। काफी तरोताजा महसूस होता है , इसके बावजूद मन एक प्रकार से ढीला सा पड़ा है। रात में नावेल पढ़ता हूँ, प्रायः सुरेंद्र मोहन पाठक के , कभी कभी इंगलिश अगस्त्य जैसा स्तरीय नावेल भी।
बड़ा अजीब है कि नावेल खत्म नही कर पा रहा हूँ कोई भी। कुछ पन्ने पढ़ने के बाद छोड़ देता हूँ। घूमने भी काफी जगह जा रहा हूँ पर मजा नही आ रहा है। सफल मित्रों ने तमाम व्हाट ap पर ग्रुप बना दिये है -फाउंडेशन, हॉबी, सर्विस, स्टेट वाइज । सब एन्जॉय कर रहे है और इंतजार कर रहे है-? अब लिखने का भी मन नही होता, इसी साल मार्च में कुरुक्षेत्र हिंदी में एक बड़ा आर्टिकल लिखा था। एक बाल कहानी भी। उसके बाद कुछ अन्य महत्वपूर्ण जगहों से कहानी के लिए आफर आये पर उन संपादक को एक थैंक्यू लेटर भी न लिखा गया। हो क्या गया है , मुझे। शायद मैं इतने सालों के अनवरत थकान के लिए आराम के मोड में हूँ। पता नही कब तक यह आराम चलेगा पर यह अटल सत्य है कि मैं फिर एक रोज उठूँगा और कुछ नए मुकाम के लिए , नई योजनायों के साथ।
तमाम बातों के बीच एक सवाल जरूर आ जाता है कि कब आ रहा है सर्विस एलोकेशन ? ठीक वैसे जैसे - होली कब है , कब है होली ?
© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तर प्रदेश।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें