गुरुवार, 6 अक्टूबर 2016

DUM LGA KE HAISA


कल की रात गरबे के शोर में गयी . रात २ बजे तक सोसेइटी में अर्केरस्त्त्र बजता रहा . न तो मै उसे देखने गया ओर न ही सो पाया . इसे ही विडंबना कहते है . खैर आज मुझे कल की तरह से रात नही गुजरने थी .  इस लिए लगा कि अच्छा होगा लैपटॉप पर कोई फिल्म देखते हुए टाइम गुजारा जाय . 


दम लगा के हैएशा , इसे काफी पहले देख चूका था उस समय भी अच्छी लगी थी पर आज बहुत ही अच्छी लगी . बहुत ध्यान से देखा . हर पहलू पर नजर गयी . फिल्म इतनी सजीव लगती है कि ऐसा लगता है कि अपने ही आस पास की बात है , अन्शुमान खुराना , विक्की डोनर के समय से मुझे अलग लगने लगा था . मस्त , बिंदास ओर उसके बोलने की स्टाइल बिलकुल अलग है . भूमि का भी अभिनय बहुत सजीव है . संजय मिश्रा , हमेशा तरह जबरदस्त अभिनय करते है . संजय मिश्र के बारे में मेरे प्रयोगधर्मी दोस्त का कहना है कि वो अपने दम पर पूरी पिक्चर को उठा देते है . संजय मिश्र को नही जानते अरे वही " DHODHU JUST CHILL "  वाले . पूरी फिल्म आप को बांध कर रखने में कामयाब है बस शर्त यह कि आपको इस तरह की फिल्म पसंद आये . शाखा , का प्रसंग , उससे जुडी शुद्ध हिंदी बेहद रोचक लगती है . फिल्म का हर प्रसंग , बहुत जीवंत व सजीव है . 

फिल्म में प्रसंग  बेमेल विवाह का है . बेमेल विवाह , आज के समय कि कटु सच्चाई है . लगभग हर कोई इससे गुजरता है . समझदार , एडजस्ट कर लेते है बाकि अभिशप्त जीवन जीने के लिए बाध्य रहते है . साहित्य में भी इस मुद्दे पर खूब लिखा गया है . मोहन राकेश की कहानी " एक ओर जिन्दगी " ओर राजेंद्र यादव कि कालजयी कहानी " टूटना " में भी कुछ इस तरह का प्रसंग है जहाँ नायक , अपने बेमेल विवाह के चलते , दोहरे जीवन जीने के लिए बाध्य दिखाई देते है . फिल्मे में अच्छी बात है कि अंत सुखद है ऐसा कही से नही लगता कि यह सुखद अंत थोपा हुआ है . चीजे धीरे धीरे ही सुलझती है . फिल्म में सबसे मार्मिक द्रश्य वो है जो प्रेम के द्वारा आत्महत्या करने के प्रयास के बाद आते है . आप महसूस कर सकते है कि प्रेम कैसे पनपता है . आपको भी प्रेम की अनुभूति होती है .

मैंने कही पढ़ा था कि राजेद्र यादव का उपन्यास " सारा आकाश " , हर किसी नवविवाहित को पढ़ लेना चाहिए . इस उपन्यास पर फिल्म भी बनी है . मैंने यह नावेल पढ़ा तो जरुर है पर काफी पहले और बस टाइम पास की नजर से . इस नावेल में राजेंद्र ने भी दिखलाया है कि नई शादी के बाद , आपस में सामजस्य बनाना काफी कठिन होता है ओर इसके चलते शुरु के दिनों के आनंद से दंपत्ति वंचित रह जाते है . 

फिल्म के कुछ सीन से मुझे अपने बी.एड. के एक दोस्त याद आ गये . उनकी शादी , काफी पहले ही हो गयी थी तो वह अपने प्रसंग , हम बच्चो को बहुत मजे से सुनाते थे उम्र तो उनकी भी मुश्किल से २१ या २२ रही होगी पर अंतर यह था कि वह कक्षा के सीमित विवाहित परुष में एक थे . एक प्रसंग यह था कि रात में वो अपनी वाइफ का वेट करते थे वो अपने कमरे में होते हुए भी कान बाहर दिए रहते थे . अनुमान लगाते रहते कि अब वो बर्तन धुल रही होगी , अब अपनी सास के पैर दबा रही होगी . जैसे ही वो सारे काम खत्म करके आती , मेरे साथी जल्दी से अभिनय करते हुए सोने लगते . वाइफ कहती " सुनो जी , सो गये हो क्या ? " मित्र ,अपनी मीचते हुए कहते " क्या हुआ ". ब्स यही उनके विवरण रुक जाते . सच में , वो कमाल का दोस्त था . सम्पर्क टुटा हुआ है अगर कोई बाराबंकी का हो तो उसे यह स्टोरी पढ़ा देना . उसने LLB भी कर रखा था . कोई खजुरिया बाग एरिया का नाम बताया करता था . अब तो मुझे उसका नाम भी याद नही आ रहा है . बी.एड. हम दोनों ने दयानंद कॉलेज , बछरावां , रायबरेली से किया था . 



अब बस बाकि बाते फिर कभी ........................


ALL RIGHTS RESERVED - Asheesh Kumar 




सोमवार, 3 अक्टूबर 2016

Positive thinking

सुविचार

जैसे जैसे आप बड़े होते जाएंगे आप पाएंगे कि आपके पास दो हाथ है एक खुद के लिए तो दूसरा लोगों की मदद करने के लिए है-ब्रायन ट्रेसी

सोमवार, 26 सितंबर 2016

A boy with 3rd grade : motivational story

लड़का गाँधी डिवीजन वाला

शीर्षक पढ़ कर शायद आपको समझ में न आये कि मैं क्या कहना चाहता हूँ पर आप उसकी कहानी पढ़े यकीनन आप उससे बहुत कुछ सीखेगें ।

मेरी उससे दोस्ती कब हुयी यह ठीक से याद नही पर एक समय उससे मेरी सबसे गहरी पटती थी । हम दोनों को ही सस्ते , घटिया नावेल पढ़ने का शौक था । केसव पण्डित , रीमा भारती, वेद प्रकाश , गुलज़ार, और न जाने कितने ही नावेल हम दोनों आपस में शेयर कर पढ़े । दरअसल यह नावेल आपस में पूरा गाँव ही पढ़ता था पर खरीदता कौन था यह कभी जान न सका । सब आपस में ही लेन देन चलता था । किसी को कुछ नावेल दो उससे बदले में दूसरे ले लो ।

हम दोनों के पिता ही टीचर थे । मेरे प्राइवेट , उसके सरकारी । हमारे पिता जी से उनके पिता जी की खूब पटती थी । पिता जी से ही पता चला कि उसके पिता उससे बहुत परेसान रहते है   । उससे तरह तरह से जलील भी करते है । चूँकि वह 10 और 12 दोनों ही कक्षा में तृतीय डिवीजन से पास हुआ था इसलिए उसे गाँधी डिवीजन से पास है कहकर उसके पिता चिढाया करते थे । गाँधी डिवीजन का मतलब आज समझ में आता है कि गाँधी जी सदा तीसरे क्लास के डिब्बे में चलते थे इसीलिए उस लड़के के पिता उसे गाँधी डिवीजन के नाम से चिढ़ाते  और जलील करते थे ।  वो मुझसे 1 क्लास आगे था ।
उस लड़के ने काफी स्ट्रगल किया । घर में काफी संपत्ति होने के बावजूद , बीच में किसी फैक्ट्री में भी काम करने लगा । मेरा उससे संपर्क काफी पहले टूट गया था । मेरी नौकरी काफी पहले गयी थी और जॉब में आने के बाद मैं काफी रिज़र्व रहने लगा था । रिज़र्व रहने की वजह थी अभी मुझे और आगे तैयारी करने थी । यारी दोस्ती के लिए चाह कर भी समय नही था ।

उसकी खबर मुझे मिलती रही । मुझे ऐसा लगने लगा कि शायद वह भी गाँव की भीड़ में गुम हो जायेगा । पर नही ऐसा नही हुआ।

पिछले दिनों मुझे पता चला कि उसको इक काफी अच्छी सरकारी नौकरी मिल गयी है । एक पल को यकीन न हुआ पर जिसने मुझे खबर दी उसके मुताबिक वह पिछले 2 सालों से शहर में गोपनीय तरीके से तैयारी में लगा था इतना जुनून था कि किसी भी त्यौहार में घर नही आया था।

संपर्क में न होने के बावजूद , मुझे बहुत ख़ुशी हुयी । अभी हाल में घर गया था तो सामने दिख गया पर चाह कर उससे बात न हो पायी वजह भी अजीब थी । दरअसल वो बाइक लिए नल के पास खड़ा था और मैं कार से उधर से निकला था । अगर मैं उसे आवाज देता तो मुझे पता है कि वह जरूर भड़क जाता मैं उसे बहुत अच्छे से जनता हूँ उसमे बहुत ज्यादा ही स्वाभिमान भरा है । शायद किसी दिन हम दोनों किसी रोज अपने आवरण को हटा कर , मिले और सुरेन्द्र मोहन पाठक के नए नावेल पर डिस्कस करे।

दोस्तों, उसने अभी हाल में ही नौकरी पायी है । आज जब हर तरफ 1st डिवीजन का हर तरह बोल बाला है तब भी गाँधी डिवीजन वाले अच्छी नौकरी पा रहे है । इसलिए आप भी बस जुट जाइए । हा , अपनी सफलता की खबर मुझे जरूर देना । सफलता की कहानियां पढ़ने के लिए यहां पर बहुत से पाठक इंतजार करते रहते है ।

Copyright -Asheesh kumar

Dear friends, please give your feedback. मेरा मानना है कि हर किसी की अपनी  कहानी होती है । आप भी अपनी कहानी मुझे मुझे mail करिये ashunao@gmail.com पर । आधी अधूरी ही भेज दीजिये , पूरी मैं कर दूंगा ।

गुरुवार, 22 सितंबर 2016

Some lines


अहा जिंदगी का सितम्बर 16 का अंक पढ़ा । उसमें कुछ बहुत अच्छी लाइन्स मिली ।

1  तू अपनी आवाज में गुम है , मैं अपनी आवाज में चुप
दोनों बीच खड़ी है दुनिया आईना ए अल्फाज में चुप
- उबैदुलाह अलीम

2 समाज सामाजिक संबधो का जाल है - मैकाइवर और पेज

3 शब्द संसार में मौजूद सबसे प्रबल शक्ति है । हम इसका प्रयोग सृजन के लिए भी कर सकते है और ध्वंस के लिए भी - येहूदा बर्ग

4- कहती है प्रकति , बसंत की भाषा में
     चलो पार्टी की जाय - रोबिन विलियम

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

Set your priority list

काफी दिनों से मुझे मोटिवेशनल पोस्ट लिखने के लिए रिक्वेस्ट आ रही थी। मै इस समय ट्रेन म इ सफर कर रहा हूँ बस बैठे बैठे इस पोस्ट का  विचार आया । आशा है पोस्ट यह सबके लिए उपयोगी होगी ।

पायः हम सबकी लाइफ बहुत व्यस्त होती है । समझ में नही आता कि हमारा time कहा चला जाता है । ऐसे में आपके लिए एक बेहद उपयोगी टिप्स बता रहा हूँ आप हर रात सोने से पहले , अगले दिन के लिए plan बना ले । ज्यादा लम्बी चौड़ी लिस्ट नही बस 7 काम जो सबसे जरूरी हो । इससे ज्यादा नही , न ही इससे कम । इन कामों को प्राथमिकता के आधार पर नंबर दे दे । अगले दिन उन सबको जरूर पूरा करे और रात में उनका review करे ।
कहा जाता है कि कोई काम 21 दिन तक लगातार किया जाय तो habit बन जाती है । ऊपर वाली टिप्स अपना कर देखिये । बहुत कुछ बदलाव जरूर महसूस करेंगे ।

Written by -Asheesh kumar

गुरुवार, 15 सितंबर 2016

Experience Matter


पुराने पाठको को शायद मेरी एक लघुकथा याद हो -संत और बेरोजगार । उसमें विजय जी कहानी थी । वास्तव में विजय जी काल्पनिक पात्र न होकर , एक वास्तविक पात्र है । विजय जी , मुझसे एक बात कहा करते थे कि आशीष अनुभव की कोई किताब नही होती है । उनके कहने का मतलब यह था कि हर चीज आप किताबों से पढ़कर नही पा सकते ।
आज अनुभव के बारे में ही बात करते है । अनुभव , सच में ही बहुत काम की चीज है । इसका आपकी उम्र, परिवेश,लिंग से कोई लेना देना नही है । अनुभव सभी को होते है -अच्छे, बुरे ,खट्टे , मीठे , तीखे , कसैले, लिजलिजे ।
बहुत बार , अनुभव हमें खामोश कर जाते है और बहुत बार यह हमें जीने की वजह दे जाते है । experience को लिखते रहना चाहिए । हर चीज से कुछ न कुछ सिखने लायक होता है ।

बंजर

                               बंजर 
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हमारे घर से कुछ दूरी पर एक प्लॉट है जो वर्षों पहले बाउंडरी करवाकर रिक्त छोड़ दिया गया था। अभी तक इसमें लम्बे-लम्बे कुश उगे थे। एक दिन अचानक जब ध्यान इस ओर गया  देखा सारे कुश व अन्य तरह की घासें गायब। अब इस प्लॉट में एक झोपड़ी भी है और एक मजदूर फैमिली यहाँ रहने लगी है। दिनभर तो झोपड़े में सन्नाटा सा होता है ,शाम होते-होते यह फील्ड पर्याप्त चहल-पहल से भर जाती है। काफी वक्त से काउंट करने की कोशिश कर हूँ पर अभी तक ज्ञात न हो सका कि एक्चुअल में इस छोटे से झोपड़े में कुल कितने लोग रहते हैं।चाची ,मौसी ,बुआ .......  हर रोज नए -नए सम्बन्धी ;हँसते-खिलखिलाते चेहरे ..... कितनी समृद्धिशाली लगती है यह झोपड़ी !कितनी मजबूती से बंधे है ये एक दूसरे से ;कितने जानदार हैं इनके सम्बन्ध।इनकी  तुलना में मुझे मेरी लाइफ बंजर सी नज़र आती  है।छोटे से झोपड़े में इतने लोगो को आमंत्रित करने  वाला ह्रदय हमारी तुलना में बहुत अधिक विशाल होता है। मुग्ध हो जाती हूँ यह देखकर कि  १०० रूपये की आमद में से २० रूपये मौसी और उनके नवजात पोते व उसकी माँ का हाल -चाल जानने के लिए खर्च कर दिए जाते हैं और उस १५ मिनट की फोन  वार्तालाप को अगले कुछ दिनों तक याद कर -कर के खुश होते हैं। अगले दिन फिर २० का रिचार्ज करायेंगे और मामा  की खबर लेंगे। हममे इतनी सामर्थ्य कहाँ ........ हम तो पढ़े-लिखे कैलकुलेटिव हैं ....बगैर विशेष फायदे के कुछ भी इन्वेस्ट नहीं करते .......अपनी एक छोटी सी स्माइल भी नही। शायद इसीलिए ह्रदय बंजर  रहा है .....आत्मीय सम्बन्धों का भयंकर आकाल सा ... ....

Written by :- (SDG)

मंगलवार, 13 सितंबर 2016

Hindi Day

निज भाषा उन्नति अहे ,निज भाषा सब मूल
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटय न हिय को शूल
-भारतेंदु हरिश्चंद्र

आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाये ।

सोमवार, 12 सितंबर 2016

The Indian Express

जन धन योजना

इंडियन एक्सप्रेस कमाल का और मेरा पसन्दीदा अख़बार है । आज एक शानदार खुलासा किया है इसमें । जन धन योजना से जुड़ा ।
यह सबको पता है कि इस योजना में जितनी तेजी से बैंक में खाते खोले गए उससे गिनीज बुक में रिकॉर्ड बन गया पर उससे जुडी हकीकत बहुत ही शर्मनाक है ।
आज के इंडियन एक्सप्रेस के खुलासे से पता चला कि बहुतायत बैंक खातों में 1 रुपए , 10 पैसे , जितना रुपया खुद बैंक से जुड़े कर्मचारियों ने जमा करा दिए । इससे जीरो बैलेंस खातों की संख्या में तेजी से कमी आई। जुगाड़ निकाल कर बेवकूफ बनाना , भारत में बड़ी आम बात है ।

आज यह सब पढ़ा तो मुझे कुछ याद आ गया । जब यह योजना की शुरुआत जोरों से हुयी थी उन्ही दिनों मेरा अपने शहर उन्नाव जाना हुआ । मैंने अपने मकान मालिक का जिक्र शायद पहले भी किया है उनकी ज्यादा खूबियों का जिक्र न कर बस इतना ही कहूँगा कि डेढ़ सयाना इंसान है । उसने मुझसे पूछा कि इस खाते (जन धन)से क्या फायदा होगा ? मैंने उसे बैंक खाते के सामान्य लाभ बताने शुरू कर दिए । उसने बात काटते हुए कहा कि सरकार कुछ रूपये देगी क्या ? मैं उसकी बात फिर समझ नही पाया । काफी देर बात मुझे समझ आया कि वो काले धन 15 लाख की बात कर रहा है । उसके पास पहले से ही 4 , 5 खाते रहे होंगे । मुझे मन में बहुत हंसी आई उसकी चतुराई या भोलेपन पर यह कह पाना मुश्किल है ।

Copyright -asheesh kumar

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

Villages vs. Cities

आप ने यह बात बहुत दिनों या सालों से सुनी होगी कि सरकार का एक लक्ष्य यह भी ही सभी गांव को 24 घंटे बिजली मिल सके । कई योजनाएं भी चल रही है ।
पिछले कुछ दिनों से मुझे यह ख्याल आता है कि यह कभी नही होने वाला है क्योकि बिजली कितनी ही बना ली जाय वह शहर में ही खत्म हो जायेगी । सोचो कैसे । एक example देता हूँ अब शहर में आम लोगो के घरो में भी a.c. दिखने लगा है । बड़े घरो में हर कमरे में यह दिखने लगे है । मुझे ऐसा लगता है कि आने वाले समय में बिजली की खपत शहरों में कई गुना बढ़ने वाली है , बिजली चूँकि मूल्य चुकाने पर ही मिलती है इसलिए जिसके पास आमदनी होगी वह इसे खरीद सकेगा

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