BOOKS

बुधवार, 7 नवंबर 2018

AN ARTICLE PUBLISHED IN KURUKSHETRA MAGAZINE

समावेशी शिक्षा के लिए नए कदम  

आशीष कुमार 


" शिक्षा सबसे ताकतवर हथियार है जिसका इस्तेमाल आप दुनिया बदलने के लिए कर सकते हैं " नेल्सन मंडेला 

          महात्मा गाँधी जी के अनुसार- "भारत की आत्मा गावों में बसती है।" यूँ तो आजादी के बाद गांव सरकार की नीतियों के क्रेन्द्र में रहा है तथापि इसके बावजूद ग्रामीण ढांचे में आशानुरूप बदलाव दृष्टिगत नहीं होते हैं । बात चाहे बिजली पानीसड़क जैसी आधारभूत संरचना की हो या फिर शिक्षा स्वास्थ्य कौशल विकास जैसी सामाजिक सेवाओं की हो। आज भी ग्रामीण भारत इन मसलों में  शहरों के मुकाबले कमतर नजर आता है। दरअसल आजादी के बाद ग्रामीण भारत के लिए जिस गहनता से प्रयास किये जाने चाहिए थे वह न हो सके। इस वर्ष  के बजट को जोकि  ग्रामीण विकास और शिक्षा पर केन्द्रित माना जा रहा हैभारत की आत्मा के लिए सभी लिहाज से बेहद मत्वपूर्ण समझा जा सकता है।   इस बार के बजट में ग्रामीण भारत के ढांचागत स्वरूप में। क्रांतिकारी बदलाव के बीज छुपे हैं  
सार्वभौमीकरण पर जोर दिया गया। इस नीति के तहत शिक्षा में सुधार के लिए विविध कार्यक्रम जैसे ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड , लोक जुम्बिश , महिला समाख्या , मिड डे मील कार्यक्रम , सर्व शिक्षा अभियान आदि चलाये गए। भारत में शिक्षा के लिए वर्ष 2009 सबसे अहम कहा जा सकता है , इसी वर्ष शिक्षा को हर बच्चे के लिए मूलभूत अधिकार के अनुरूप शिक्षा का अधिकार और निःशुक्ल शिक्षा अधिनयम लागू किया गया। 

सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने लिखा है कि भारत समय से अपनी प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य में पर्याप्त निवेश  न करने की कीमत भुगत रहा है ।  यह सच है कि किसी भी समाज की प्रगति की नींव शिक्षा की  मजबूत दशा व स्वास्थ्य के मुलभूत सुविधाओं की उपलब्धता  मानी गयी है। शिक्षा में भी प्राथमिक शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। प्राथमिक शिक्षा की मजबूती से ही समाज में समता का मार्ग खुलता है। यह व्यक्ति को तमाम कौशल विकास के लिहाज से भी अपरिहार्य मानी गयी है।  

शिक्षा के अधिकार में प्राथमिक स्तर पर प्रति अध्यापक 30 छात्र और जूनियर स्तर पर प्रति अध्यापक अधिकतम 35 छात्रों  की बात कही गयी थी।   ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा की खराब दशा का एक बड़ा कारण अप्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा शिक्षा दिया जाना है। इसके चलते ही शिक्षा की दशा जस की तस बनी हुयी थी। इस साल के बजट में शिक्षा के आधारभूत ढांचे में उन्नयन के लिए राइज योजना के तहत लाख करोड़  रूपये का बजट आवंटन किया गया है। यह अब तक का सबसे अधिक आवंटन है। सरकार ने 13 लाख अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण की बात कही गयी है। इसके लिए पिछले वर्ष शिक्षक दिवस ( 5 सितम्बर 2017 ) के अवसर पर स्थापित  दीक्षा पोर्टल से माध्यम से तकनीकी मदद दी जाएगी।  बड़ी मात्रा में अध्यापकों  की भर्ती के जरिये शिक्षक-छात्र अनुपात को सुधारा जायेगा। आशा की जा सकती है कि इससे शिक्षा के क्षेत्र  में काफी बदलाव आएगा।

 हमारे प्रधानमंत्री  जी  ने  कहा था  कि __________शौचालय नहीं होने से लड़कियाँ पढ़ाई लिखाई छोड़ने को विवश हो जाती हैं तथा आर्थिक गतिविधियों में योगदान नहीं दे पाती हैं।   इस वर्ष सरकार ने  स्वच्छ  भारत अभियान के तहत करोड़ शौचालय का निर्माण करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके तहत आंगनवाड़ी में भी शौचालय का निर्माण करवाया जायेगा। बाल शिक्षा में आंगनवाड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं । इस कदम से शिक्षा को स्वच्छता से जोड़  दिया गया है। इसका असर ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर भी  देखने को मिलेगा।

एक समय था कि गांव में छात्र  दीपक व लैंप जलाकर ही पढ़ाई किया करते थे। ग्रामीण क्षेत्र में बिजली तक _____पहुंच सुनिश्चित हो सके इसके लिए पिछले साल दिसंबर में सौभाग्य योजना की शुरुआत की गयी है। इसमें ग्रामीण परिवारों को बिजली के कनेक्शन दिलवाने पर जोर दिया जा रहा है। अगर सभी को बिजली मिलेगी तो  शिक्षा का प्रदर्शन उन्नत हो सकेगा।  

ग्रामीण क्षेत्रो में अभिवावकों में शिक्षा के प्रति उदासीनता का एक बड़ा कारण गरीबी नियमित आय न होना भी है। ग्रामीण अपने बच्चों को स्कूल न भेज कर खेतों में काम ______के लिए जोर देते है। इस बार के बजट में ग्रामीणों की आय में सुधार के लिए सरकार ने कृषि में लागत का  डेढ़ गुना मूल्य देने की बात कही है। इसके साथ ही देश कि 22000 ग्रामीण हाटों को उन्नत कर ग्रामीण बाजार में बदलने का निर्णय  लिया गया है। किसान इन बाजारों में  अपनी फसल सीधे व्यापारियों को बेच सकते हैं  और अच्छा लाभ कमा सकते हैं  । किसान की खराब होने वाली फसल आलू प्याज टमाटर आदि के संरक्षण के लिए  500 करोड़ रूपये से ऑपरेशन ग्रीन की शुरुआत की जाएगी।  जिस तरह ऑपरेशन फ्लड से गावों में दूध उत्पादन में अपार वृद्धि हुयी, उसी तरह से  यह योजना ग्रामीण परिवेश में सब्जी उत्पादकों के लिए काफी बदलाव लाएगी। इन कदमों से ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों  में वृद्धि होगी। जिसके चलते ग्रामीणो की आय बढ़ेगी और आय वृद्धि का असर ग्रामीण शिक्षा पर भी  पड़ेगा।

आज ग्रामीण इलाकों में भी तकनीक का  प्रचलन तेजी से  बढ़ रहा है। लगभग हर ------ किसी के पास मोबाइल है। स्मार्ट मोबाइल पर शिक्षा से जुड़े तमाम एप ग्रामीणों की मदद कर रहे है। इसरो ने एडुसैट का लांच क़र इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। विद्याज्ञान जैसे कार्यकमों के जरिए निजी क्षेत्र भी ग्रामीण शिक्षा में काफी मदद कर रहे हैं। 

सरकार ने देश के सभी स्कूलों में ब्लैकबोर्ड को स्मार्ट बोर्ड से परिवर्तित करने का निर्णय लिया है।  इस कदम से ग्रामीण शिक्षा ढांचागत बदलाव  आएंगे।    स्मार्ट बोर्ड में टीचर किसी विषय में उसकी डी इमेज दिखला सकता है। शिक्षा में इंटरैक्टिव लर्निंग पर शिक्षाविदों  द्वारा हमेशा से जोर दिया जाता रहा है।  इसके तहत बचपन से बच्चों को डिजिटल शिक्षा में दक्ष किये जाने पर जोर दिया जा रहा है। आज के चुनौतीपूर्ण समाज के लिए सिर्फ परम्परागत शिक्षा से हम भविष्य के ______नागरिक नहीं तैयार कर सकते हैं । आज जब  कृत्रिम बुद्धिमत्ता  इंटरनेट ऑफ़ थिंगबिग डाटा एनालिसिसडीप लर्निंग , ऑटोमेशन   जैसे नये विचारों को समाज में जगह मिल रही है तो हमे भी उसी के अनुरूप अपने बच्चों को शिक्षा देनी होगी। अगर हम इसमें पिछड़ गए तो अपनी जनसंख्या लाभांश का लाभ उठाने से वंचित रह जायेंगे।  डिजिटल डिवाइड जैसी  नूतन समस्या भी सरकार की नजर में हैं । इसीलिए सरकार बड़ी मात्रा में ग्रामीण इलाकों में तेज  ब्राडबैंड की पहुंच पर जोर दे रही है। नेशनल ऑप्टिक फाइबर मिशन के तहत  देश की सभी ढाई लाख ग्राम पंचायतों को तेज इंटरनेट नेटवर्क से जोड़ा जा रहा है 

इस बजट में सरकार ने कहा है कि लर्निंग आउटकम सभी कक्षाओं के लिए तैयार कर लिए गए हैं । इससे कोई भी अभिवावक शिक्षक यह जान सकेगा कि  बच्चा जिस क्लास में है क्या वह वाकई उसके योग्य है या नहीं इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ कमजोर छात्रों के लिए विशेष प्रयास किये जा सकेंगे।  माध्यमिक शिक्षा के लिए एक नवाचार फण्ड का गठन भी किये जाने की बात की गयी है। नवाचार पर सरकार इस समय खूब जोर दे रही है। नवाचार भविष्य के लिए एक  दीपक का कार्य करेगी।   नीति आयोग  राष्टीय शिक्षा मिशन के लिए जोर दे रही है। इसके अनुरूप सर्व शिक्षा अभियान और माध्यमिक शिक्षा अभियान तथा शिक्षक  प्रशिक्षण को मिला कर एक अम्ब्रेला कार्यकम तैयार किया जायेगा। शिक्षक प्रशिक्षण के लिए एकीकृत बीएड के लिए भी योजना बनाई जा रही है।  इन कदमों से शिक्षा के क्षेत्र में पूर्व में फैले बिखराव पर रोक लग सकेगी। शिक्षा में एकरूपता आएगी।    

सरकार ने बच्चों में स्कूल छोड़ने  की दर कम करने के लिए शिक्षा का अधिकार कक्षा-8 से आगे की कक्षाओ  तक विस्तार करने का विचार कर रही है। प्रायः देखा गया है कि ग्रामीण परिवेश में कक्षा-8 ---- बाद पढ़ने के लिए अभिवावक भी उत्त्साह नहीं दिखाते हैं । अगर निःशुक्ल और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान अगली कक्षा में लागू होगा तो निश्चित ही हम देश के लिए ज्यादा बेहतर नागरिक तैयार कर सकेंगे।  

राष्टीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के लिए 4213 करोड़ रूपये का बजट आवंटन किया गया है। इसमें 4.5 लाख अध्यापकों को सेवा के साथ परीक्षण की भी व्यस्था की गयी है।  1500 नए विद्यालयों में आई सी टी अवसंरचना उपलब्ध कराई जाएगी। लड़कियों के लिए 100 छात्रावासों का निर्माण किया जायेगा। इससे बालिका शिक्षा में काफी सुधार होगा। प्रायः देखा गया है कि छात्राओं में ड्राप आउट की दर ज्यादा होती है। इन छात्रावासों के जरिये काफी हद तक  ड्राप आउट दर में  ------ की आशा की जा सकती है। 600 नए माध्यमिक स्कूल खोले जाने का भी निर्णय इस बजट में लिया गया है।  बजट में इस योजना के मध्यावधि परिणाम के रूप में शिक्षा और शिक्षण परिणामों की गुणता में सुधार की आशा की गयी है। ज्यादा माध्यमिक विद्यालयों की उपलब्धता से ऊपरी कक्षा में बच्चों के नामांकन की दर में भी सुधार होगा। व्यवसायिक शिक्षा के लिए 1000 नए स्कूलों को शुरू किया जाना है। इसके जरिये स्कूलों में व्यवसायिक कौशल की व्यस्था होगी। भारत डेमोग्राफिक डिविडेंड का भी लाभ ले सकेगा। 

सरकार ने बालिका शिक्षा  को बढ़ावा देने के लिए  बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ अभियान को 22 जनवरी  2015 से शुरू किया है।   इस कार्यक्रम का असर लिंग अनुपात में सुधार के रूप मे देखा गया है।  इस साल  इस योजना के लिए पिछले वर्ष के  186.04 करोड़ रूपये के मुकाबले भारी वृद्धि करते हुए  280 करोड़ रूपये का आवंटन  किया गया है। कस्तूबरा गाँधी आवसीय बालिका विद्यालय  योजना की शुरूआत सन 2004 में उन लड़कियों के लिए की गयी थी जो किसी कारणवश अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ देती है। इन विद्यालयों में पढ़ाई के साथ साथ रहने व खाने के लिए निःशुल्क व्यवस्था की गयी है। 

पिछले कुछ समय से यह देखने में आ रहा था कि जनजातीय क्षेत्रों में अभिवावक आवासीय विद्यालयों को ज्यादा वरीयता देते है। इसकी वजह नक्सल , चरमपंथ आदि समस्याओं को माना जाता है। इन समस्याओं के चलते बच्चों की स्कूली शिक्षा बहुत प्रभावित होती है।   इस वर्ष सरकार ने जनजातीय समुदाय के शैक्षिक उन्नयन हेतु एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय खोलने की बात कही है। इसके तहत सन 2022 तक हर जनजातीय ब्लॉक ( ऐसे ब्लॉक जहां जनजातीय समुदाय का आबादी में 50 प्रतिशत से अधिक भाग हो ) में एक विद्यालय खोल दिया जायेगा। यह विद्यालय नवोदय विद्यालय के तर्ज पर खोले जायेंगे।  निश्चित ही ये  विद्यालय जनजातीय समुदाय के शैक्षिक उन्नति के लिए वरदान साबित होंगे।    
एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग रहता है। भारत सरकार इस वर्ष ग्रामीण भारत के लिए आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत की है । इस योजना के तहत हर साल 10 करोड़ परिवारों को  5 लाख रूपये स्वास्थ्य बीमा के रूप में मदद प्रदान की जाएगी। इसके साथ ही 1.5 लाख वैलनेस सेण्टर खोलने के लिए भी प्रावधान किया गया है।  ग्रामीण इलाके में बीमारी पर ख़र्च तेजी से बढ़ा है और प्रायः देखा गया है कि बड़ी संख्या में लोग बीमारी के इलाज में कर्ज लेते है और उसके जाल में उलझ कर रह जाते है। जिसका सीधा असर शिक्षा पर पड़ता है। आयुष्मान भारत योजना के तहत ग्रामीण इलाके में  बीमारी पर ख़र्च की लागत न के बराबर रह जाएगी और ग्रामीण पैसे के आभाव में अपने बच्चों को स्कूल से निकाल कर काम-काज पर भेजने के लिए मजबूर न होंगे।   

सर्व शिक्षा अभियान का उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरणअधिगम की गुणवत्ता में सुधार शिक्षा के जरिये सामाजिक न्याय की प्राप्ति आदि  है। यह भारत सरकार की शिक्षा के क्षेत्र में सर्वप्रमुख योजना है।  इस बार  बजट में 26128.81 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया है। इसमें 8.22 करोड़ रूपये की पाठ्य पुस्तकें  मुफ्त वितरित की जानी है।  क्लासरूम में बेहतर शिक्षक और छात्र अनुपात होगा। स्कूल में बेहतर उपलधता और पहुंच लगभग 96.5 प्रतिशत हो सकेगी।स्कूलों के बुनियादी ढांचे पर भी जोर दिया जायेगा। सरकार का उद्देश्य स्थानीय नवोन्मेषी सामग्री के जरिये सृजनशीलता को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान की शिक्षा और पाठ्यक्रम में लचीलेपन पर जोर दिया जायेगा। सरकार ने प्रारंभिक स्तर पर विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रति जिला 25 लाख  रूपये का आवंटन किया है। इससे ग्रामीण परिवेश के छात्र भी विज्ञान में न केवल ज्ञान अर्जित कर सकेंगे बल्कि वह राष्ट के विकास में भी मत्वपूर्ण भूमिका निभा पाएंगे।    

साक्षर भारत की शुरआत सन 2009 में अन्तर्राष्टीय साक्षरता दिवस के दिन हुई  थी। इसका  उद्देश्य गैर साक्षरों को शिक्षा देनास्त्री -पुरुष साक्षरता में अतंर को 10 प्रतिशत तक सीमित करना साक्षरता स्तर पर शहरी ग्रामीण असमानता को कम करना साक्षरता का अनुपात 2011  के स्तर 73 से बढ़ा कर 80 प्रतिशत करना है। पहले इसमें अक्षर ज्ञान पर जोर दिया गया था। अब इसको विस्तारित करते हुए इसमें विधिक शिक्षा के ज्ञान को भी  जोड़ा गया है। जिसकी मदद से ग्रामीण न केवल साक्षर बन सकेगें साथ ही वह कानूनी अधिकारों के बारे भी ज्यादा जागरूक हो सकेगें।  इसमें चुनाव डिजिटल साक्षरता के साथ साथ वित्तीय साक्षरता पर भी जोर दिया जा रहा है। इस बजट में इस कार्यक्रम के लिए 320 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है।  इसके तहत करोड़ गैर साक्षरों को मूलभूत साक्षरता दी जाएगी।

स्वयं पोर्टल - यह तकनीक का शिक्षा में अनुप्रयोग है। इसके तहत 593 ऑनलाइन कोर्स उपलब्ध है। जिसको डीटीएच टीवी से जोड़ दिया गया है। मैसिव ऑनलाइन ओपन कोर्स के लिए विस्तृत दिशा निर्देश तैयार किये गए है।  इसमें सबसे अच्छे अध्यापकों  द्वारा पढ़ाये गए पाठ्यक्रम उच्च गुणवत्ता वाले पाठन संसाधनों तक पहुंचसबके लिए सुनिश्चित की गयी है। इसके साथ साथ सारांशई-बस्ता , शाला-सिद्धिस्टेम स्कूलोविद्यांजलि योजना आदि के जरिये सरकार डिजिटल तकनीक को  जरिया बनाकर  शिक्षा की गुणवत्ता उन्नयन , समावेशी शिक्षा   आदि के लिए अथक प्रयास कर रही है।  
 ( समाप्त )

( कुरुक्षेत्र पत्रिका के बजट अंक मार्च 2018 में प्रकाशित लेख , साभार ) 
©आशीष कुमार 

दिनांक :- 13 .02.2018                                                                                                                                                                             

YOJNA LETTER





योजना का जुलाई अंक जोकि भारत की समकालीन बहुआयामी प्रगति का दर्पण था , बहुत भाया। पिछले दिनों , योजना की साइट पर इसके पुराने अंक देख रहा था। सबसे पहला अंक जोकि खुशवंत सिंह जी के संपादन में निकला था को भी देखा और पाया कि योजना हिंदी ने कितनी लंबी यात्रा पूरी कर चुकी है। उस समय इस पत्रिका में विकास पर आधारित कथा-कहानी को भी जगह दी जाती थी। आज योजना पत्रिका, अपने गुणवत्तापूर्ण लेखों के चलते जन सामान्य में अपनी गहरी पैठ बना चुकी है।  

जुलाई -18 के अंक का पहला लेख में हरदीप पूरी जी ने सरकार के समावेशी विकास को बयाँ करने वाले नारे " सबका साथ , सबका विकास " को आगे बढ़ाते हुए इसे सबका आवास तक पहुंचा दिया। वास्तव में आज भारत के किसी गांव में जाकर देखा जाय तो बड़ी मात्रा में टायलेट और आवास का निर्माण किया जा रहा है, जल्द ही हम सबको आवास उपलब्ध करा देंगे।  सबको बिजली मिले , इसके लिए भी विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। पहले गाँव को क्रेन्द्र में रख कर योजना बनाई जाती थी , इसके चलते गांव तो विद्युतीकरण में आ जाते पर वहाँ पर कई परिवारों को बिजली न मिल पाती थी। पिछले दिनों , इसके लिए " सौभाग्य " योजना अर्थात प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना भी लागु की गयी है। शिक्षा , अक्षय ऊर्जा तथा किसानों से जुड़े आलेख बहुत ही गुणवत्तापूर्ण बन पड़े है। 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

What to do right now ?

अब किया क्या जाय?


जब तक सिविल सेवा की तैयारी में व्यस्त रहे , समय का पता ही न चला। अब टाइम ही टाइम है पर समझ न आता कि क्या जाय ? यूँ तो घूमना, फिरना तब भी लगा रहता था अब जरा और  बढ़ गया है। तमाम चीजें कर रहा हूँ तब भी समझ न आता कि वास्तव में किस दिशा में क्या करना है। पिछले दिनों u tube पर वीडियो भी डाले, अनमने मन से। मुझे काफी समय से यह महसूस होने लगा था कि upsc के लिए गाइड करने वाला मामला अब मेरे बस की बात नही है।

दरअसल सच तो यह है कि मैं जो भी लिखता था उसका इकलौता उद्देश्य था अपने आप को मोटिवेट बनाये रखना। अब जब मैं इस cycle से निकल गया तो उद्देश्य न बचा। वैसे भी कभी कभी मुझे लगता है कि आज तैयारी करने से ज्यादा , तैयारी करवाने वाले लोग ज्यादा हो गए हैं।  

मंगलवार, 6 नवंबर 2018

Story of a Murderer



अतीत का एक गहरा राज 

आशीष कुमार

आर. के. नारायण की एक बहुत प्रसिद्ध कहानी है - an astrologer day . जिसमें  हत्यारा एक ज्योतिषी होता है और संयोग से उसकी एक दिन उस व्यक्ति से मुलाकात होती है , जिसकी हत्या का उस पर आरोप होता है। एक दिन मेरी भी एक ऐसे  व्यक्ति से मुलाकात हुयी जो अपने अतीत में बहुत गहरे राज छुपाये था।  


छात्र जीवन में विशेषकर जब नौकरी पाने के लिए जूझने वाला दौर होता है तब बहुतायत लोग ज्योतिष आदि पर भरोसा करने लगते है। चिंतक जी के बारे शायद आपको पहले कभी यह भी बताया हो कि उनका ज्योतिष पर बहुत गहरा विश्वास शुरू से रहा है। व्यक्ति इलाहाबाद ( माफ़ करना प्रयागराज ) से हो तो यह बड़ी ही स्वाभाविक बात है।  भागीदारी भवन लखनऊ के दिनों से मैं चिंतक जी इस कारगुजारी से परिचित था।  इतने पहुंचे  हुए थे कि भूले भटके कभी कोई आईएएस / pcs अगर अकादमी में आ गया तो वो उनकी नजर केवल अधिकारी के हाथ पर रहती। संयोग से अगर उस अधिकारी का  हाथ खुला दिख गया तो बस उनका काम हो गया। अधिकारी क्या टिप्स दे रहा , इससे उनका कोई लेना देना न था.  इन दिनों वो शादी के लिए लड़की तलाश रहे है तो सबसे पहले लड़की के हाथेलियों की तस्वीर मगवाते है और ख़ारिज पर ख़ारिज करते जा रहे है। कभी उन्हें लड़की चरित्रहीन लगती है तो कभी उनका ज्योतिष बताता है कि लड़की छत से कूद कर आत्महत्या कर लेगी। उनके प्रसंग बहुत लम्बे है उन्हें रहने देते है।  

 उनकी  संगत का असर मुझ पर  पड़ना स्वाभाविक था। सूर्य रेखा , मौत की  रेखा , चन्द्रमा , उठे पहाड़ आदि का ज्ञान थोड़ा बहुत सीखा और बस मजे एक लिए ही हाथ देखने लगा। यह ऐसी चीजें है जिनमे अनायास रूप में ख्याति बहुत तेजी से फैलती है। उन्नाव में जहाँ किराये पर रहता था , उसी मकान में एक अंकल भी किराये पर रहते थे। अपनी पत्नी व अकेले बेटे के साथ रहते थे। एक स्कूल में चौकीदार थे। सीधी साधी आम जिंदगी। बड़े मजाकिया थे। बड़ी मजेदार वाकये बताया करते थे। अब यह कहानी लिखते वक़्त उनकी कुछ और कहानियाँ भी याद आ गयी है मसलन एक अनपढ़ की बढ़िया शादी ( जल्द उस पर लिखूंगा )।  

एक रविवार वो छत पर वो धुप  खा रहे थे , मैं भी एक किताब लिए , आँगन के जाले पर लेटकर धुप के मजे ले रहा था। अंकल पास आये और बोले "मेरा भी हाथ देखो।" मैं मुस्कराया और बोला " अरे , बस ऐसे ही टाइम पास करता हूँ " . हाथ पकड़ा पर वो बोले  " नहीं देखो , कुछ भी बताओ " . मैंने हाथ पर नजर डाली और ऐसे ही बातें बताने लगा। वो काफी गंभीर थे बोले- " नहीं तुम कुछ भी नहीं बता पर रहे हो।  देखो इसमें कही लिखा है कि मैंने मर्डर किया है " . एक पल को मैं सन्न रह गया। अंकल मेरे पास और खिसक आये और गुप्तगू करने लगे।

लगभग 10 पहले एक मर्डर की कहानी बताने लगे। चम्बल इलाके के किसी गावँ से थे। उनके गावं में कुछ दबंग लोग रहा करते थे और इन्हें आय दिन परेशान करते थे। उसी परिवार में कोई मलेट्री में नौकरी पा गया तो उस परिवार की दबंगई और बढ़ गयी। ऐसे ही किसी मौके पर अंकल की और उनके परिवार की शरेआम खूब पिटाई की होगी। उसी रात अंकल ने कहीं से देशी असलहे की व्यस्था की और मलेट्री मैन और उसके भाई को गावं में दौड़ा दौड़ा कर मारा। उसके परिवार के साथ साथ सारे गांव वाले हैरान थे कि अंकल जैसा सीधा साधा आदमी ऐसा कर सकता है। पर जब आदमी हर तरफ से परेशान होता है तो उसको कुछ सूझता नहीं।

मर्डर करके वो जंगल तरफ भाग गए। वो सोचते थे कि किसी डाकू के गैंग में शामिल होकर बाकि जीवन उन्हीं साथ काटेंगे। अंकल को काफी खोजने के बाद भी कोई गैंग मिला नहीं। कुछ रोज जंगल में काटी और एक दिन पुलिस में जाकर सरेंडर कर दिया। इसके बाद उनके परिवार ने जमीन बेचना शुरू किया। उनकी जमानत आदि में लगभग सारी जमा पूंजी खत्म हो गयी। बहुत लम्बी कहानी है , काफी दिन तक किसी जज के घर माली /नौकर बने पड़े रहे।  फिर  किसी संस्था के शिविर में महीनों रहे । फिर इस स्कूल में चौकीदार के रूप में ड्यूटी करने लगे।  उन्हीं दिनों हम से मुलाकात हुयी थी। कुछ साल बाद जब हम वापस उनसे मिलने गए तब वो वहाँ नहीं थे। उन्हें मर्डर करने का बहुत अफ़सोस था। मुझे आज वो शब्द याद हैं - " जोश में आकर कभी किसी  मर्डर न करना चाहिए। आदमी बिक जाता है मुकदमे आदि में।"  उनको अपने एकलौते बेटे की भी चिंता रहा करती थी। क्या पता उसकी जान के लिए , इस तरह से मेरे शहर में छुप कर रह रहे हो।   

एक और बड़ी रोचक बात याद आ रही है। वो बहुत ज्यादा पढ़े लिखे न थे पर उनको  जीवन के तमाम अनुभव थे.  उन दिनों मुझे नावेल पढ़ने का बड़ा शौक था। अंकल मेरे हाथ में मोटी मोटी किताबें देखते तो कहते कि तुम्हारी नौकरी जरूर लगेगी। मैं मुस्करा कर कहता - यह किताबें तो बस टाइमपास है। बेरोजगारी के दौर में एक छोटी सी सरकारी नौकरी , बहुत ही बड़ा ख्वाब हुआ करती थी। नावेल पढ़ते पढ़ते कब विपिन चंद्र , मजीद हुसैन व  लक्ष्मीकांत को पढ़ने लगा पता ही न लगा। खैर , आज पलट के देखता हूँ तो लगता है उनके शब्दों में सरस्वती थी।

( कहानी की तरह पढ़े। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से इसका कोई लेना देना नहीं है )

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

रविवार, 4 नवंबर 2018

Story of a great teacher : Pro. Anil Gupta


वो अध्यापक जिनके पढ़ाये लड़के करोड़ो की जॉब पाते है


( प्राक्क्थन :- तमाम युवा लड़कों की भांति मैं जब इस तरह की खबर अख़बार में पढ़ता  था कि अमुक लड़को को करोड़ो का पैकेज मिला तो मन में सबसे पहले यही सवाल उठता कि यार इनको क्या पढ़ाया जाता होगा और इनको पढ़ाने वाले कौन लोग होंगे। मन में कहीं इच्छा थी ऐसे लोगों से मिलने की और एक दिन उनसे मुलाकात हो ही गयी )

अहमदाबाद में स्पीपा नामक लोक प्रसाशन का महत्वपूर्ण संस्थान है। उसके दो सेण्टर है।  एक जो इसरो के सामने है वो इन दिनों तोड़ कर फिर से बनाया जा रहा है। यह उन दिनों की बात है जब यहाँ पर एक बड़ा सा सेमिनार हाल था। उस हाल में मैंने प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल( प्रसिद्द आलोचक व पूर्व सदस्य , संघ लोक सेवा आयोग ) , इरा सिंघल मैडम ( आईएएस   )जैसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व को सुना और समझा था। ऐसे ही एक सेमिनार में उनको देखा। मैं जब पहुँचा तब उनका लेक्चर शुरू हो चुका था। न नाम पता था और वो क्या है यह भी नहीं जानता था। 

बात हो रही थी ग्रास रुट इनोवेशन की। अगर हिंदी में कहे तो जमीनी स्तर के नवाचारों की। लगभग 1 घंटे उनको सुना और बस सुनता ही रहा। ऐसे ऐसे विचार कि दिमाग के तंतु खुल जाये। प्रथम दृष्ट्या लगा कि वो दिव्य विभूति है। लेक्चर खत्म हो गया।   संचालक मृणाल पटेल ( मृणाल।ऑर्ग ) ने घोषणा की कि सर ने अपना मानदेय स्पीपा को ही छात्र हित संवर्धन हेतु वापस कर दिया है । दरअसल स्पीपा में हर लेक्चर देने वाले को कुछ मानदेय देने की व्यस्था है। सेमिनार हाल में बहुत भीड़ थी पता नहीं यह बात कितने लोगों ने सुनी व् नोटिस की थी। मुझे तो यह चीज और भी  प्रभावित कर गयी।

मैं उनसे मिलना चाहता था इसलिए दौड़ कर बाहर निकला। सर , तेजी से निकले और उनको गाड़ी लेकर चली गयी। यह 2015 / 2016  की बात होगी.बाद में उनके बारे में मैंने जानकारी जुटाई।  उनका नाम प्रो अनिल गुप्ता था और वो आईआईएम अहमदाबाद में पढ़ाते थे। मन में उनसे मिलने की बड़ी इच्छा था पर जब तक समय न हो तक चीजे घटती नहीं है। 

इस साल (2018 )  फरवरी में जब स्पीपा जब upsc के लिए मॉक इंटरव्यू आयोजित कर रहा था , एक में अनिल सर को बुलाया गया था। दुर्भाग्य से उस दिन मुझे घर आना पड़ा था ।  इसलिए उनसे मिलते  मिलते रह गया। 

भला हो मनोज सोनी ( ममता संस्थान , गाँधीनगर ) सर का।  उन्होंने अनिल सर से समय लिया और इंटरव्यू देने वाले  जिन छात्रों को रूचि थी उनको लेकर सर  के घर गए।  घर के बेसमेंट में सर ने ऑफिस बना रखा है। उस दिन 10 से भी कम लोग थे , इसलिए बढ़िया से जानने व् सुनने का मौका मिला। वही पर बैठे बैठे मन में ख्याल आया कि सर इतने योग्य है , इनको कोई पुरुस्कार क्यों नहीं दिया गया. बाद में गूगल किया तो पता चला कि उन्हें तो २००४ के आस पास ही पदम् श्री दिया जा चूका है।

इन दिनों नवाचारों पर बड़ा जोर दिया जा रहा है। सर , की ख्याति वैश्विक स्तर पर इस क्षेत्र में है। कई वैश्विक संस्थानों  के वो सदस्य है।   हनी बी नेटवर्क , नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन , शोध यात्रा आदि के बारे में अपने सुना हो तो समझ लीजिये इनके पीछे उनके ही विचार है। इस दिन वो अपनी अनोखी बातों व विचारों से गहरे तक प्रभावित किया। उन्होने एक ऐसे विषय पर बात की जिस पर मुझसे upsc के वास्तविक इंटरव्यू में उसी विषय पर बात हुयी। 

रिज़ल्ट आने के बाद एक बार फिर से उनसे मिलने का अवसर मिला । मिठाई , गिफ्ट की औपचारिकता  के बहाने मिला । इस बार भी समय बहुत कम मिला पर कम समय में भी वो तमाम गहरी बातें समझा देते है।  सर उन्ही दिनों कच्छ की तरफ शोध यात्रा पर जा रहे थे. ऑफर किया हो "चलो" । मन में बड़ी इच्छा होते हुए भी एकाएक छुट्टी आदि के लफड़े के चलते  जा न  सका। इतना जरूर है कभी न कभी उसमें जाऊंगा जरूर। सर व उनकी टीम गांव में जाकर जमीनी नवाचारों को संस्थागत जरूरी सहयोग मुहैया करती है। धन्य है ऐसे गुरुजन। उन्हें शत शत नमन।  

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

शनिवार, 3 नवंबर 2018

मोटिवेशनल

जरूरी नहीं कि आप पर किसी टॉपर की रणनीति काम ही आये, अक्सर हर किसी की अपनी ही कहानी होती है। सुने , समझे पर आँख मूंद कर किसी  अनुकरण न करें

- आशीष

बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

send me donation


"चंदा भिजवा देना" 

           
(प्राक्थन : बहुत ही लम्बी पोस्ट है और काफी हद तक ओछी भी। कहानी का तारतम्य न टूटे इसलिए इसे   पार्ट में पोस्ट न  करके एक साथ ही पोस्ट कर रहा हूँ।    यह कहानी कई बार अलग अलग लोगों से बताई है पर अब वक़्त  है कि इसे शब्दों में ढाल दिया जाय। कहानी पढ़कर आपको तमाम ख्याल आ सकते हैं , मैं खुद काफी दिनों तक दुविधा में रहा कि जाने दो वो पुराने दिनों की बात है पर आपने  अक्सर सुना होगा कि लोग कहते है कि  आदमी अक्सर कुछ बनने के बाद बदल जाता है , घमंडी हो जाता है।  इस पोस्ट में सालों पुरानी बात का जबाब दिया है और कुछ नहीं। एक लिहाज से यह पोस्ट ओछी भी है पर तलाशने वाले इसमें मोटिवेशन भी तलाश सकते हैं। आप यह भी सोच सकते है कि इस तरह की पोस्ट मुझे अब शोभा नहीं देती पर मन मे जब अन्तर्द्वन्द बढ़ जाए तो उसे शब्द रूप देना ही पड़ता है। बाकि इंसान बदलता या घमंडी नहीं होता हाँ वो पहले जिन चीजों पर चुप रह जाता है , उनपर जबाब देना सीख लेता है।)


गाँधी जी की आत्मकथा पढ़े हुए काफी समय बीत चुका है पर मुझे एक घटना याद  आती है। गाँधी जी के व्यायाम शिक्षक ने उन्हें देर से आने के लिए डाटा था गाँधी  जी ने जब  देरी से आने का   कारण बदली ( क्लाउड्स )  को को दिया तो उन्हे गलत समझा गया । जब मैंने यह घटना पढ़ी थी तो मुझे लगा कि घटना भले छोटी हो पर गांधी जी के बाल मन पर इसका गहरा असर पड़ा था । कुछ ऐसी ही बात है जिसे 16 साल बीत गए है पर मुझे शब्दवत याद है ।


यह  काफी पहले की बात है। मैं इंटर का छात्र था।   2003 में जब फ़ाइनल एग्जाम होने वाले थे ।  ट्यूशन का आखिरी महीना ( ( सम्भवतः फरवरी 200 3 ) ) था. मैं उन दिनों दो जगह ट्यूशन पढ़ने जाता था। एक जगह फीस थी 140 रूपये/ महीने । दूसरी जगह जहाँ इंग्लिश पढ़ता था वहां फीस थी ६० रूपये/महीने । इंग्लिश वाले सर ने पहले महीने को छोड़ दोनों साल ( कक्षा 11 व 12 ) फीस नहीं ली। वहाँ के बारे में पहले भी पोस्ट लिख चूका हूँ। मैं उनका प्रिय छात्र  था और इंग्लिश में मेरे सबसे ज्यादा अंक आये थे।

आज वहाँ की बात करता हूँ जहाँ गणित , फिजिक्स , केमिस्ट्री पढ़ता था। प्रसंगवश मैं एक सरकारी स्कूल में पढ़ता था जहाँ दोनों साल को मिलाकर 10 क्लास भी न चली होंगी। इसलिए  ट्यूशन क्लासेस का जोर था। आखिरी महीने में सर ने एक दिन कहा कि "आशीष अपनी फीस जमा कर दो।"  मैं चौक गया क्योंकि मैंने पहले ही फीस जमा कर दी थी। मैंने कहा कि "सर फीस तो मैंने पहले ही  दे दी है।" उन्होंने कहा कि " देख लो , पापा से पूछ लेना शायद भूल गए हो "। मै अब कुछ परेशान हो गया था। यह एक प्रकार से मेरे चरित्र पर आरोप था । उसी बीच एक डेढ़ सयाना लड़का चट से  बोला कि" महावीर हलवाई के यहाँ समोसे खा डाले होंगे" । पाठको को जिज्ञासा हो रही होगी कि यह लड़का कौन था । मै उसका नाम नही लिख रहा हूँ पर अंत मे आप समझ जरूर जाएंगे मै किसकी बात कर रहा था । वैसे वो फ़ेल हो चुका था और हम जूनियर के साथ फिर से पढ़ रहा था ।  मै रोने को हो आया ,मेरे पास  अपनी सच्चाई  का कोई सबूत न था । सारी क्लास मे मुझे शक के तौर पर देखा जा रहा था आखिर गुरु पर प्रश्न कोई नही उठा सकता था । गुरु जी कुछ और भी बाते कही- यथा कि "मै वैसे ही किसी लड़के को कुछ खाना पीना होता है तो  10 / 20 रुपए लास्ट मे छोड़ ही देता हूँ । तुम मुझसे बता कर ले लेते" । मै उनसे क्या कहता कि 2 साल मे भी आप यह समझ ही न पाये मै उस तरह का लड़का हूँ ही नही ।

मैंने पापा से भी यह बात बताई कि उन्होने भी मुझ पर एक भी सवाल किए यही कहा कि वो भूल गए होंगे और अब दोबारा फीस देने की जरूरत नही है । उन दिनो पिता जी एक प्राइवेट स्कूल मे टीचर थे और मासिक वेतन 1000 रुपए मात्र था । ऐसे मे हर पैसे का निश्चित  हिसाब होता था । एक रोज अपने केएनपीएन स्कूल के बड़े वाले मैदान मे घास पर  बैठकर  जब हम एक साथी के साथ गणित के सवाल हल कर रहे थे तो उस  साथी से भी यही जिक्र किया । दोस्त का नाम कुलदीप सिंह था । संपर्क मे नही है , उनके ग्राम का नाम पता नही । इतना जरूर याद है कि ठाकुर थे ( कोई उनके सम्पर्क में हो तो मुझे उनसे जोड़िये ,प्लीज ) । उसकी बात से मुझे बहुत दिलासा मिली । उसने कहा कि " सर को तो हर रोज कोई न कोई फीस देता है , सैकड़ो लड़को में आपकी फीस लिखना भूल गए होंगे "। सर ने अनुसार वो हर रोज अपने घर जाकर फीस नोट करते थे । रसीद आदि की सिस्टम न था ।

खैर फीस दुबारा देने का कोई तुक नही था और यह भी कहूँगा कि सर ने ज्यादा कहा भी नही । मेरे लिहाज अब  सब ठीक था, पर मै गलत था  । काफी दिनो बाद एक मित्र ने मुझसे एक बात बताई । किसी दिन मै वहाँ पढ़ने नही गया हूँगा उसी दिन वो बात हुयी । मित्र के अनुसार - सर ने मेरे पीठ पीछे  कहा कि "पटेल ठीक लड़का नही है" । मैंने मित्र से पूछा किस प्रसंग मे वो ये बात कह रहे थे । उसने बोला "वही फीस के संदर्भ मे "। उस दिन के बाद से उनके प्रति सभी भाव मर गए । मै हमेशा से अपने गुरुजनों का बहुत सम्मान करता रहा हूँ पर उनको उसी दिन से गुरु के श्रेणी से हटा दिया ।

शुरू के कुछ साल तक उधर जाना हुआ तो उनकी कोचिंग भी गया । चरण स्पर्श भी करता  था पर मुझे वो बात भुलाए भूली नही ।


अभी पिछले दिनो की बात है (  सितम्बर 2018 ) , एक मित्र का फोन मौरावा से आया और बोला कि "सर बात करेंगे"  । मुझे मित्र पर जरा गुस्सा भी आया पर बात तो करनी ही थी । दरअसल खुद्दारी का भाव बचपन से ही कूट कूट कर भरा है और जीवन के कुछ उसूल है कि एक बार कोई नजर उतर जाए तो लाख कोशिस कर लूँ दिल के तार जुड़ नही पाते। कई लोगों ने कोशिस कि उनसे संपर्क करवाने की पर मैंने उक्त घटना का जिक्र करते हुये मना कर दिया ।

सर ने पूछा " कैसे हो" ,
मैंने कहा कि "ठीक हूँ "।

मै उम्मीद कर रहा था कि मुझे आईएएस की परीक्षा पास करने की बधाई मिलेगी आखिर हर  शिष्य उम्मीद करता है कि उनके टीचर  सफलता  पाने पर शाबाशी दे । भारत मे आईएएस के एक्जाम बड़ा और सम्मानीय क्या हो सकता है विशेषकर अगर आप छोटी जगह से हो तो इसके और भी मायने बढ़ जाते है । पर  सर तो किसी दूसरे मूड मे थे । बोले कि इस दिवाली एक कार्यक्र्म का आयोजन कर रहा हूँ आना जरूर । मैंने कहा कि सर दिवाली मे टिकिट की बहुत दिक्कत है , बड़ी मुश्किल से दशहरे की टिकिट मिली है जिसमे घर आना होगा । उन्होने कहा कि "आना चाहे न आना पर चंदा जुरुर भेजवा देना "। मेरे मुह से तुरंत निकला - सर किस बात का चंदा ? दरअसल वो चुनाव भी लड़ते है इसलिए उन्हें  नेता भी कहा जा सकता है । उन्होने कहा कि 4000 / 5000 लोगों को बुला रहा हूँ , 1 लाख रुपए तक खर्चा आयेगा उसी लिए । एक पल लगा कि उसी वक़्त उनको सारी बात बता दूँ और बोलू कि "पटेल तो पहले से बुरा लड़का है"  पर शांत रहा । एक ही चीज समझ आई कि यह बड़ा ही स्वार्थी इंसान है । फोन रखने से पहले एक बात और भी बोल दी कि" मुझे बार बार फोन करने की आदत नही है , समझ रहे हो न"। इसमे भी   मुझे बड़प्पन की बु आई । मुझे इतना जरूर यकीन है कि यह आयोजन छात्र मिलन समारोह के बहाने राजनीतिक आकांक्षा की पूर्ति की कोसिश जरूर होगी । दरअसल जहां से राजनीति शुरू होती है वही से हम दूर से प्रणाम कर लेते है ।

मौरावा मे इस चीज का हमेशा से बहस होती रही है कि दोनों अध्यापकों मे अच्छा कौन है । इसलिए कुछ बात अंग्रेजी वाले सर की भी बात कर लिया जाय। ऐसा नही है कि वो बहुत अमीर थे इसलिए मुझसे फीस नही लेते थे । कोई पारिवारिक रिश्ता भी तो न था। बस वो चीजों को समझ सकते थे कि हम उन दिनों आर्थिक संघर्ष से जूझ रहे थे । मै इन्हीं  करणों से  अपार श्रदा भी रखता हूँ  ।


यूं तो तमाम बाते है करने को एक दो ही उल्लेख कर रहा हूँ । उनकी चंदे वाली बात को मैने  कई बार सोचा कि आखिर किस हक से उन्होंने ने वो बात कही थी , लगा कि टीचर , किसी के भविष्य को बनाता है इसलिए वो शिष्य पर हक जतलाता है पर उन पर तो यह भी बात लागू नही होती । उन्हे पता नही कि इंटर की गणित मे मुझे आज तक सबसे कम अंक आए है , हर विषय से भी  कम । 100 मे सिर्फ 37 अंक । यूं तो सबकी अपनी अपनी मेहनत होती है पर मै इतना तो कमजोर न था । वस्तुत मेरे तो गणित मे हमेशा से अच्छे अंक आते रहे है । दरअसल आपकी क्लास मे आपके भी कुछ प्रिय छात्र थे , जिनके सवाल ही आप बताते थे , बाकी लोग सिर्फ सुना ही करते थे । यह तो भला हो कि प्रतियोगी परीक्षाओ मे सिर्फ अंकगणित मे दक्षता काफी होती है वरना अपनी लुटिया कब की डूब चुकी होती । दूसरी और अँग्रेजी की क्लास तो बगैर फीस दिये पढ़ी थी और उसमे क्लास मे सबसे अच्छे अंक आए । बाद मे प्रतियोगी परीक्षाओ मे उन दिनों की अँग्रेजी का ज्ञान बड़ा सहायक बना ।


दूसरी बात भी बड़ी सामान्य ( काफी हद तक ओछी भी )  है पर जिक्र करना जरूरी है, अँग्रेजी वाले गुरु जी इस साल सिविल सेवा मे सफलता के बाद , खुद मेरे घर तक आए , दूसरी ओर आप एक बार गावं आए थे पर वोट माँगने । आपको याद आया कि इस गाव मे मै भी रहता हूँ तो अपने नंबर लिया होगा किसी से और कॉल की थी वोट व  सपोर्ट के लिये  ।

इन बातों को यही बंद कर देते है , थोड़ी बात उस डेढ़ सयाने लड़के की भी कर लेते है । एक दिन सर्दी के दिनों मे लखनऊ से अपनी कार मे लौट रहा था ।  बसहा तिराहे  से आगे बढ़ा तो एक नजर उधर गयी । मुँह मे गोल गोल  मफलर लपेटे वो  एक तसले मे पानी मे साइकल का ट्यूब डुबो डुबो  कर वो  पंचर चेक कर रहा था । आप यह मत सोचे कि मैं किसी के व्यवसाय पर टिप्पड़ी कर रहा हूँ बस यह देखे  कि उस दिन उसकी टिप्पड़ी "महावीर हलवाई के यहाँ समोसे खा डाले होंगे"  से मुझे कितनी चोट पहुँची थी। उस दिन मैं कमजोर , बेबस  व लाचार था। अगर मैं उसी के संस्कारों का होता तो गाड़ी रोकता और पूछता - "भाई कैसे हो , कैसी चल रही है लाइफ, तुम्हारा जातीय दम्भ, एकलौते लड़के होने की ठसक  कहाँ गयी।"  तो वास्तव मे न्याय का अहसास होता पर मै आगे बढ़ आया यह सोचते हुये कि जैसी करनी वैसी भरणी ।



©  आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

A CUP OF COFFEE


अ कप ऑफ़ कॉफी 


" चाय/कॉफी सिर्फ पेय पदार्थ नहीं है वरन मैत्री , अपनत्व , घनिष्ठता जतलाने के उपक्रम भी है। "

इस साल गर्मियों में मैं पुणे में था। वहाँ से महाबळेश्वर घूमने गया था। पहले की एक पोस्ट (पुरन्दर का किला ) में इसका जिक्र किया है कि यह यात्रा पुणे के एक मित्र नवनाथ गिरे के साथ बाइक पर की थी। जब मैं पहाड़ियों के बीच से गुजर रहा था तो मैंने एक साइन बोर्ड देखा - भारत का पहला पुस्तक गावँ भिलार ।  

मुझे कुछ कुछ इसके बारे में याद आया। वास्तव में पुस्तक गांव से क्या आशय था मुझे पता न था पर यह जानकर बहुत खुशी हो रही थी कि भिलार गांव मेरे रास्ते में ही था। यह एक प्रकार से बोनस था मैं तो बस महाबळेश्वर घूमने जा रहा था बीच में पुस्तक गांव मिलना सुखद आश्चर्य सरीखा था। वैसे भी जब यह इस तरह की बात हो कि भारत में पहला , तो उत्सुकता और बढ़ जाती है कि आखिर वहाँ है क्या। 

बाइक होने के अपने फायदे थे जहाँ मन हो वहाँ रुको, जिधर जाना है उधर जाओ। पुस्तक गाँव पंचगनी पहाड़ियों के पास था। यह मुख्य रास्ते से हट कर था , मुझे लगता है कि 3 या 4 किलोमीटर भीतर होगा। गाँव पहुंचने पर मुझे कुछ बोर्ड दिखे , उनको फॉलो करते हुए हम आगे बढ़े। उधर इतनी चढ़ाई थी कि दोनों लोग एक साथ बैठकर बाइक से चढ़ पाना मुश्किल था। ऊपर चढ़े तो कुछ दिखा नहीं , एक और बोर्ड था। लगा कि वापस लौट  लिया जाये क्योंकि थोड़ी थोड़ी बारिश भी होने लगी थी , ज्यादा देर करने का मतलब था कि महाबळेश्वर के लिए देरी करना। बोर्ड को फॉलो करते आगे बढ़े तो एक सूंदर सा मकान दिखा। 

बाहर एक नौकर कार धो रहा था। हम लोगों ने बाइक खड़ी की और आने का उद्देश्य बताया। दरअसल उस समय तक हमे जरा भी पता नहीं था कि पुस्तक गांव का मतलब क्या था। इस निर्जन में बने सुंदर बड़े  घर में पुस्तकों से जुड़ा  कुछ नजर न आ रहा था। नौकर ने इंतजार करने को बोला।



तब तक मकान मालिक बाहर आ गए। उनका नाम अनिल भिलारे था।  मकान के एक कोने में एक अच्छा सा कमरा था जहाँ बड़ी आरामदायक कुर्सी पड़ी थी। अनिल भिलारे  जी ने पुस्तक गांव का उद्देश्य बताया। 

उनके अनुसार महाराष्ट्र सरकार के किसी मंत्री ( शायद संस्कृति ) ने अपनी ब्रिटेन यात्रा के दौरान ऐसा ही गांव देखा था। ब्रिटेन में हे -ऑन- वे नामक जगह का विकास कुछ ऐसा ही किया गया है। इस गाँव में लगभग 25 लोगों को तमाम किताबें व आधारभूत ढांचा यथा अलमारी , फर्नीचर आदि के लिए सरकारी सहायता उपलब्ध कराई गयी है। कही पर नाटक , किसी घर में कविता , संगीत आदि के लिए ऐसे इंतजाम किये गए है।

भिलारे जी ने अपने घर में परीक्षा की तैयारी से जुडी किताबें के लिए व्यवस्था की थी। उनका कहना था कि आस पास के गाँव के होनहार लड़कों को एक जगह पर परीक्षा विशेष कर महाराष्ट्र सिविल सेवा  से जुडी तमाम किताबें मिल जाये , उनका यही उद्देश्य था। नवनाथ जी जब जिक्र किया कि मैंने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की है तो वो बड़े खुश हुए। मैंने उनसे कहा कि अगर उनकी इच्छा हुयी और मेरा इधर प्लान बना तो मैं वहां के युवाओं को सिविल सेवा के लिए सहर्ष लेक्चर दे सकता हूँ।


( बीच में अनिल भिलारे जी, पुणे के मित्र नवनाथ और मैं  ) 

 दरअसल उस जगह गए तो अनजान बनकर थे पर बात कुछ ऐसी छिड़ी कि लगा हम वर्षो के मित्र है। अनिल जी वास्तुकार हैं, युवा अवस्था में उन्होंने खूब मेहनत की , पैसे कमाए। पिछले कुछ समय से उनको बैकबोन की प्रॉब्लम है इसलिए अपने काम से अपने को अलग कर लिया। उनकी बेटियाँ किसी अच्छी जगह पढ़ रही है। अब वो अपने कार्य से मुक्त होकर यहां समाज सेवा के साथ सकून की जिंदगी जी रहे है। यह उनका पैतृक घर था। घर के सामने ही उनका स्ट्राबेरी का बाग था।

चारों तरफ हरियाली , असीम शांति की जगह थी वो। तमाम बातें हुयी , साथ में फोटो खींची गयी। हमने चलने की इजाजत मांगी तो उन्होंने कहा " एक कप कॉफी तो पीकर जाइये " और अपने पत्नी को आवाज दी कि कॉफी बना लाओ। थोड़ी न नुकुर के बाद हम तैयार हो गए। सच कहूँ उस वक़्त मुझे , इस अपनत्व को लेकर ख़ुशी हो रही थी। अपने घर से कितनी दूर , इस अनजाने जगह पर इस तरह की मैत्री हो गयी। 

चाय / कॉफी सिर्फ पेय पदार्थ नहीं है वरन मैत्री , अपनत्व , घनिष्ठता जतलाने के उपक्रम भी है। अनिल जी का रोड पर कहीं गेस्ट हॉउस/मिनी होटल  भी है उन्होने वहाँ रुकने का ऑफर भी दिया। मैंने उनको धन्यवाद दिया और बोला फिर कभी आना होगा तो जरूर रुकेंगे।

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018

That streat vendor


वो कनपुरिया पान वाला 

 काफी पहले किसी कक्षा में अंग्रेजी लेखक विलियम सी डगलस की एक कहानी A GIRL WITH BASKET पढ़ी थी। जिसमें लेखक को भारत की एक छोटी सी लड़की ने किसी रेलवे स्टेशन पर अपने स्वाभिमान से प्रभावित किया था। उस रोज कानपुर में एक छोटी से गुमटी में एक पानवाले ने मुझे निरुत्तर कर दिया।  

हमारी संस्कृति में पान की जगह बड़ी महत्वपूर्ण हैं। पान खाना  दरअसल पूरी तरह से नशे का रूप नहीं माना जाता। हाँ , रंगे हुए दाँत भद्दे जरूर लगते है। पान भी कई तरह के होते है। एक होता है -मीठा पान। जिससे जुडी एक कहानी आज लिख रहा हूँ। 

अगर मैं कहूँ कि मैं भी मीठा पान खाता हूँ तो इसका यह मतलब मत निकाल लीजियेगा कि मैं पान का लती हूँ। दरअसल मेरे पान खाने की दर साल में दर्जन /2 दर्जन से ज्यादा न होगी। कभी शादी -बरात , किसी मित्र का ख़ास आग्रह या फिर यूँ ही कभी कभार ऑफिस से लंच के बाद , बाहर टहलते हुए मीठा पान खा लेता हूँ। 

पान से याद आया कि बचपन में इसे खाने का विशेषकर शादी -बारात में, एक ही उद्देश्य होता था कि हमारे ओठ कितने लाल होते है ? हमारे उत्तर प्रदेश में पान का चलन खूब है। शादी /बारात /गोद भराई /मुण्डन /छेदन कार्यक्रम कोई भी हो अगर मेहमानों को खाना खिला रहे है तो खाने के बाद पान पेश करना बनता ही है। 

ऐसा कम ही हो सकता है  कि  भारत में रहते हो और बनारसी पान के बारे में न सुना हो। भारतीय सिनेमा का महानायक अमिताभ बच्चन भी इसकी महिमा का वर्णन कर चुके है - 

"  खाइके पान बनारस वाला , खुली जाय बंद अक्ल का ताला " 

हिंदी साहित्य में भी पान का वर्णन खूब हुआ है। सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु ने तो " लाल पान की बेगम " शीर्षक से एक कहानी भी लिखी है जो महिला सशक्तिकरण को बखूबी बखानती है।   

इधर अहमदाबाद में मीठे पान को सिंगोड़ा पान बोलते है। प्रायः पनवारी पान बनाकर फ्रिज में रख देते हैं और ग्राहकों को ठंडा पान पेश करते है। इसके दाम अमूमन 20 रूपये हैं। नेशनल हैंडलूम , रानिप के बाहर 15 रूपये में मिलेगा और ठन्डे पान के ऊपर  गरी -बुरादा लपेट कर दिया जाता है। मेरे ख्याल से यहाँ सबसे सही पान मिलता है। मिलने को तो मानिक चौक ( अहमदाबाद में खान -पान के सबसे प्रसिद्ध जगह , जहाँ आप रात के 2 बजे तक खाना /फास्टफूड खा सकते है। ) में 10 रूपये का भी मिल जायेगा। हाल में ही उधर गया था तो एक आदमी साइकिल पर 10  रूपये का पान बेच रहा था। 

आप सोच रहे होंगे कि मैंने शीर्षक में जिस पान वाले का जिक्र किया है , उसकी कहानी क्यों नहीं बता रहा हूँ। दरअसल ऊपर भूमिका बताना जरूरी था वरना आप उस रोज घटित घटना के मर्म को न समझ पाएंगे। 

मेरे ख्याल से पिछले साल  इन्हीं दिनों में uppcs की परीक्षा का pre एग्जाम था। वही जिसका मैन्स अभी जून 2018 में हुआ है और जिसमे हिंदी के पेपर में गड़बड़ी हो गयी थी। मैं एग्जाम देने कानपुर गया था। मेरा सेण्टर DAV डिग्री कॉलेज था। हाँ , वही जो ग्रीन पार्क स्टेडियम के सामने है। पहला पेपर देने के बाद , लंच के लिए बाहर आया। 

कॉलेज के बगल की गली में एक चाय की दुकान थी। चाय पी। चाय थी 6 रूपये की। संयोग से 5 रूपये खुले थे। भीड़ की मारामारी इतनी थी कि उसके पास खुले रूपये देने का वक़्त न था क्योंकि मैंने उसके 50 रूपये देने की कोशिश तो उसने यह बोलते हुए मना कर दिया कि चलेगा।

चाय पीकर मैं रोड के दूसरी तरफ खड़ा हो गया और समोसे /चाय के लिए परेशान भीड़ को देखने लगा। दूसरे पेपर शुरु होने में कुछ देर ही बाकी थी , तभी उस पर नजर गयी। जहाँ मैंने चाय पी थी उसके बगल में ही सरकारी नाली के ऊपर उसकी गुमटी रखी थी। गुमटी के दो पैर नाली के इस तरफ , दो दूसरी तरफ थे। कहने का मतलब जगह का खूब सदुपयोग किया गया था। 

गुमटी ? अरे भाई , लकड़ी की बनी दुकान। वैसे कानपूर में गुमटी नामक एक जगह भी है। उसी गुमटी में पूरी तल्लीनता से वो पान बनाने में जुटा था। अगर निराला जी के शब्दों में कहूं तो -

"वो पान बनाता हुआ , 
मैंने देखा उसे  , कानपूर की एक दुकान पर"


मुझे लगा कि मीठा पान खाये , एक अरसा हो गया है । एक और भी प्रबल कारण था -दरअसल मुझे चाय वाले के 1 रूपये का अहसान काफी परेशान कर रहा था। सोचा पान के बहाने , रूपये खुले करा लेता हूँ। मैं रोड पार करके , फिर उधर आ गया और उससे जाकर पूछा -
"भइया मीठा पान कितने का ? "
" सात रूपये " 
" तो बनाइये फिर " . मैं फिर एक बार सोच में पड़ गया कि यहां भी टूटे रूपये का लफड़ा होगा। मैंने उससे कहा - " हमारे अहमदाबाद में तो 20 रूपये का मिलता है मीठा पान ( कुछ वैसा ही जैसा कि विजय राज , रन फिल्म में बोलते है कि हमारे यहाँ तो 4 लेग पीस मिलते है )।

"एक काम करो , सब चीजे अच्छे से डाल दो और मैं 10 रूपये दे दूँगा " 

इतनी देर बाद , उसने नजर उठा कर मेरी तरफ देखा और बोला - " यह चुतियापा ( इस शब्द के प्रयोग बगैर कानपुर का अहसास न होगा ) हमसे न होगा। पान 7 रूपये का ही बनेगा और खा कर देखो तब कहना " .

मैंने उससे बोला कि" दरअसल मैं सीधा 10 रूपये देना चाहता था ताकि खुले रुपयों का लफड़ा न हो। " 

" उसके लिए परेशान क्यों हो , मैं दूंगा खुले रूपये लेकिन हमारा पान 20 रूपये वाले पान से कम न होगा " . मैं निरुत्तर था। शायद उसकी नजर में  मैंने उसके 7 रूपये वाले पान को कम आंक कर , उसके स्वाभिमान को चोट पहुंचा दी थी।

उसने खूब तल्लीनता से एक शानदार मीठा पान बना कर दिया। उससे टूटे रूपये लेकर , मैंने बगल में चाय वाले को 1 रुपया दिया। वो समझ न सका किस बात के 1 रूपये। मैंने वो कड़क पान गटकते हुए , अगला पेपर दिया और शानदार अंको से पास हुआ यह अलग बात है कि मुझे उसका  मैन्स देने की जरूरत न पड़ी। 

© आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

मौलिकता प्रमाण पत्र 
मैं आशीष कुमार , प्रमाणित करता हूँ कि उक्त लेख मौलिक व अप्रकाशित है। 

दिनांक - 09.10.2018 
अहमदाबाद


परिचय : युवा लेखक आशीष कुमार शौकिया तौर पर हिंदी लेखन करते है। उनकी कुछ रचनाएँ पुनर्नवा ( दैनिक जागरण ), कुरुक्षेत्र, बाल भारती जैसी पत्रिकाओं  में प्रकाशित हो चुकी हैं। पिछले 7 सालों से अहमदाबाद में एक्साइज एंड कस्टम विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर सेवारत। हाल में वो संघ लोक सेवा आयोग की  भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में भी चयनित हुए है।

संपर्क - 382 , ईशापुर , चामियानी , उन्नाव , ( उत्तर प्रदेश ) - 209827
ईमेल -ashunao@gmail.com







रविवार, 7 अक्टूबर 2018

9 years in UPSC


नौ साल upsc की तैयारी में 


प्रिय पाठकों , यह लेख एक लोकप्रिय  पुस्तक के लिखे लेख का सम्पादित अंश है। पुस्तक में जब प्रकाशित होगा तब उसका जिक्र करूंगा , अभी आप इस रूप में पढ़िए , उम्मीद करता हूँ आपको इससे प्रेरणा मिलेगी। 

अपनी बात आगे बढ़ाने से पहले अपना  छोटा सा परिचय दे दूँ। मै आशीष कुमार , उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले से हूँ। इस वर्ष (2017 ) सिविल सेवा परीक्षा में हिंदी माध्यम और हिंदी साहित्य विषय के साथ रैंक  817 से साथ चयनित हुआ हूँ।  कुछ और जरूरी बातें भी साझा कर रहा हूँ। यह मेरा 9th और अंतिम प्रयास था। इससे पहले 5 मैन्स और 2 इंटरव्यू दे चूका था। 

उन्नाव जिले के मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर मेरा गांव है। मेरी पूरी पढ़ाई गांव व उन्नाव जिले में ही हुयी है। गणित विषय के साथ स्नातक , इतिहास विषय के साथ परास्नातक हूँ। मैं कभी भी  पढ़ने में बहुत अच्छा नहीं रहा हूँ , प्राय दितीय श्रेणी में ही पास होता रहा हूँ। 

अगर मैं  यह कहूँ कि सिविल सेवा में आने का मेरा बचपन से सपना रहा है तो गलत होगा। दरअसल एक आम ग्रामीण परिवार की तरह मेरी इच्छा बस एक अदद सरकारी नौकरी तक ही थी। इसीलिए मैंने पहले एक दिवसीय परीक्षाओं की शुरू की थी। उन दिनों में ही सिविल सेवा के बारे में पता चला तो मैंने 2009 से ही इस परीक्षा में बैठने लगा। तमाम रिश्तेदारों , मित्रों ने मजाक उड़ाया कि " एक नौकरी तक मिलती नहीं , सीधे आईएएस बनने का ख्वाब देखने लगे " . 

घर के आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी। इसे सौभाग्य कहे या मेहनत कहे , मुझे 23 साल की उम्र से ही सरकारी नौकरी मिल गयी। इससे पहले भी मै 17 साल की आयु से टुअशन पढ़ाकर , काफी हद तक आत्मनिर्भर हो चूका था। 

सरकारी नौकरी मिलने से आर्थिक सम्बल तो मिला पर अब समय कम पड़ने लगा। 1 साल अध्यापक की नौकरी , 1 साल सिविल आर्मी में ऑडिटर ( कर्मचारी चयन आयोग ) के बाद, 2010 में एक्साइज एंड कस्टम विभाग में इंस्पेक्टर की जॉब के साथ मैंने एक दिवसीय एग्जाम देना बंद कर दिया। अब एकलौता  लक्ष्य सिविल सेवा था। 

विडम्बना यह हुयी कि मेरे जॉब गैर हिंदी भाषी ( गुजरात ) में होने के चलते , हिंदी से जुडी सामग्री मिलना जरा मुश्किल थी। धीरे धीरे चीजे व्यवस्थित हुयी। सिविल सेवा में लगातार उतार -चढ़ाव लगे रहे। 2010 में मैन्स , 2011 में इंटरव्यू , 2012 में प्री फैल , 2013 मैन्स , 2014 मैन्स में इंग्लिश में फेल , 2015 में इंटरव्यू , 2016 में फिर प्री फेल होना मुझे कुछ हद तक अंदर से तोड़ चुका था। 

2017 में अंतिम बार सिविल में बैठना था। पिछले 8 सालों के अनुभव , कमजोरियों को दूर करते हुए , अपना सर्वोत्तम देने  का प्रयास किया। अंततः मुझे अपना नाम चयनित सूची में देखने को मिला। रैंक अपेक्षा के अनुरूप न मिली पर मैं बहुत खुश हूँ। मुझे हमेशा से चीजों के सुखद पक्ष को देखने की आदत है।  इस साल मुझे हिंदी साहित्य में 296 अंक मिले है , इसका श्रेय अपने साहित्य के प्रति रुझान को  दूंगा। 

 पाठकों से एक विशेष बात साझा करना चाहूंगा कि मैं मुखर्जी नगर, दिल्ली से दूर , बगैर किसी कोचिंग किये, जॉब करते हुए  सिविल सेवा में सफल हुआ हूँ। इसलिए तमाम मिथकों यथा अच्छे विश्वविद्यालय , मॅहगी कोचिंग , बहुत मेधावी की ज्यादा परवाह करने की जरूरत नहीं है। हर साल upsc में कम संख्या में ही सही, पर बेहद सामान्य परिवेश में पले -बढ़े जैसे लोग सफल होते ही है। 

तमाम पाठकों को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।  

- आशीष कुमार ,  उन्नाव उत्तर प्रदेश।     

शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

DANGAL OF MY VILLAGE : PART02

दंगल : जो अब नहीं होता 

कुश्ती के बीच बीच में कमेंट्रेटर घोषणा करते रहते कि रात में रंगारंग प्रोगाम भी होगा। मुझे जहाँ तक याद आता है कि उस रंगारंग कार्यक्रम में गांव के लड़के ही अभिनय करते थे। इसे आप ड्रामा कह सकते है।

किसी भी दंगल की पहचान , उसकी इनामी राशि से होती थी. मेरे गांव का दंगल कुछ खास बड़ा नहीं माना जाता था। उससे बड़ा दंगल मगरायर का होता था उससे भी बड़ा दंगल कठार का होता था। मैंने कभी कठार का दंगल नहीं देखा , हाँ मगरायर का दंगल जरूर देखने गया हूँ।

 प्रसंगवश मगरायर  की ख्याति हिंदी के प्रसिद्ध छायवादी आलोचक नन्द दुलारे बाजपेयी की जन्म स्थली से है। उसकी के पास गढ़ाकोला गांव है , जो ख्यातिलब्ध , छायावाद के आधारस्तम्भ , मुक्त छंद के प्रवर्तक, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी की कर्म स्थली रही है। बिल्लेसुर बकरिया , चतुरी चमार, जैसी रचनाओं  पात्र निराला जी ने इसी गढ़ाकोला गांव में पाए थे।

अब जब  बात साहित्य की चल रही है तो उचगाव सानी गांव का नाम भला कैसे छूट सकता है।  हिंदी के मूर्धन्य रचनाकार ,  मार्क्सवादी आलोचना के पितामह, डा. राम विलास शर्मा जी की जन्मस्थली उचगांव सानी ही है। ये तीनो जगह मेरे घर से बमुश्किल 5 किलोमीटर की दुरी पर होगी।

उत्तर प्रदेश का उन्नाव जिला कलम व तलवार के लिए जाना जाता है। प्रताप नारायण मिश्र , चित्रलेखा जैसे कालजयी उपन्यास के लेखक भगवती चरण वर्मा कुछ और बड़े नाम है , बाकि लिखने बैठूँ तो तमाम पन्ने भरे जा सकते हैं। साहित्य से लगाव रखने वाले लोग अक्सर उन्नाव भ्रमण पर आते रहते हैं।

बात दंगल की हो रही थी. मुझे पता ही न चला कब और कैसे दंगल बंद हो गया। अब उस जमीन पर एक सरकारी अस्पताल बना दिया गया है। काफी बड़ा अस्पताल है कभी गया नहीं पर इतना सुनता रहता हूँ कि डॉक्टर साहब वहाँ कभी कभार ही आते हैं। अब हर कोई डॉ प्रशांत ( मैला आंचल वाले ) जैसी भावना तो नहीं रख सकता है।

दंगल न रहा , पिता जी भी न रहे।  अब वो पहलवान लोग भी न रहे। मोहल्ले में एक बुजुर्ग रहा करते थे। जवानी में पहलवानी की होगी इसलिए उनके नाम के साथ पहलवान जुड़ गया था। कई साल हुए पढ़ाई , नौकरी के चलते गांव से दूर चला आया। 4 -6 महीने में जब भी जाना होता , वो बाबा अक्सर मिलते प्रायः गांव की चक्की पर। लाठी लेकर चलते थे। मैं  सामने पड़ जाता तो हाल - चाल जरूर ले लेते। मैं कहाँ हूँ और कैसा हूँ , घरवालों से पूछते रहते। मन में था कि एक बार कभी उनके साथ घंटो बैठकर बात करूंगा और उन्हें तमाम चीजे खिलाऊंगा। नौकरी , पढ़ाई और सिविल सेवा की तैयारी में ही उलझा रहा और एक दिन भाई का फ़ोन आया कि वो नहीं रहे। मन बड़ा दुखी हुआ। धीरे धीरे गांव के बुजुर्ग अपनी अंतिम यात्रा में जाते जा रहे है , हम शहरी दौड़ में उलझे और अकेले पड़ते जा रहे है। आज दंगल के बहाने ही सही उन पुराने दिनों , लोगों को याद कर बहुत सकून मिल रहा है।

( समाप्त )

©आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।

मंगलवार, 25 सितंबर 2018

Dangal of my village :01


दंगल : जो अब नहीं होता 

हमारा अतीत कई चीजों से जुड़ा होता है जैसे मौसम। कल यूँ ही शाम को हल्की हल्की ठंड का अहसास हुआ तो अपने गावं का दंगल याद आ गया। कुछ ऐसे ही दिन हुआ करते थे जब गांव में दंगल का आयोजन होता था। ठीक से याद नहीं पर शायद यह 2 अक्टूबर को हुआ करता था। बरसों बीत गए हैं पर उन दिनों की याद अभी ताजा हैं। 

मेरा गाँव काफी बड़ा है दरअसल इसमें कई मजरे जुड़े है। दंगल का आयोजन गांव के दूसरे छोर पर होता था। वह मेरे गाँव के लिहाज से थोड़ी ऊंची जगह है। एक तरफ साँचिल बाबा का मंदिर है. यह काफी प्राचीन मंदिर है। एक धर्मशाला है जो तब भी वीरान रहती थी और आज भी वैसी ही है। मंदिर के एक  तरफ नौटंकी का मंच बना है। 
दूसरी ओर रामलीला का भी एक मंच बना है। 

इसी जगह के एक  ओर दंगल का अखाड़ा हुआ करता था। जमीन से 2 फुट मिट्टी , एक गोलाकार जगह में इकठ्ठा थी। जो साल भर खाली पड़ी रहती। दंगल के समय उस जगह जो अच्छे से जोतकर , मिट्टी को भुरभुरी कर दिया जाता। उस अखाड़े के चारों तरफ दर्शक घेर कर , कुश्ती देखते। आगे के लोग जमीन में ही बैठ जाते , पीछे लोग खड़े रहते। 

जिस दिन दंगल होता , मुझे बहुत ख़ुशी होती। उस दिन मुझे 2 रूपये या 5 रूपये दिए जाते। कई बार दस रूपये भी पर कभी भी दस रूपये से अधिक न मिले। उन दिनों इतने रूपये काफी होते थे , वैसे मेरे कुछ सहपाठी 50 रूपये भी ले जाते थे। अगर कभी मैं अधिक रूपये के लिए बोलू भी तो ज्यादा न मिलते। दरअसल ज्यादा रूपये होते ही नहीं थे घर में। काफी कम उम्र में ही , कम पैसे से कैसे काम चलाया जाय , इसकी आदत पड़ गयी. 

दंगल देखने पहले पापा के साथ उनकी साइकिल पर आगे डंडे पर , दोनों पैर लटका के बैठ कर जाया करता था। डंडे पर कोई कपड़ा लपेट दिया जाता , ताकि ज्यादा लगे नहीं। बाद के सालों में जब कुछ बड़ा तो खुद अकेले जाने लगा। 

दंगल का अखाडा , घर से 2 किलोमीटर की दुरी पर था। जब ही मैं पहुँचता तो दंगल शुरू हो चूका होता। दूर से ही कानों में लॉउडीस्पीकर की आवाज सुनाई पड़ने लगती। कदम काफी तेज हो जाते। दंगल के अखाड़े पास , रास्ते में मेला लग जाता। 

प्रायः गांव के दुकान वाले ही वहाँ अस्थायी दुकान लगा देते। खुले में गर्मागर्म जलेबी बन रही होती। गैस वाले गुब्बारे , इमली और कैथे  वाले , चाट और पानी के बताशे वाले , समोसे यह कुछ वह चीजें है जो सबसे ज्यादा बिका करती। मेले में काफी चीजे हुवा करती करती , कहीं कोने पर कुछ लड़के कंचे खेलते तो कुछ लड़के गुल्ली डंडा भी खेला करते। 

मैं जैसे ही मेला पहुँचता तो कुछ खाने पीने के बजाय जल्दी से अखाड़े की  भीड़ चीर कर आगे बैठने की कोशिश करता। अखाड़े में कुछ कुशल ढोल /डुगडुगी ( सही शब्द नहीं मिल रहा है , आपको पता हो तो  बता दीजेगा ) पीटते हुए घूमते रहते। कुछ पहलवान नंगे बदन लाल लंगोट पहने , कुछ पुरे कपड़ो में अखाड़े के चारों चक्कर लगाया करते। 
एक तरफ मंच से एक मास्टर साहब जोशीली कमेंट्री करते रहते और बीच बीच में पहलवानों के लिए ईनाम बोलते रहते - लाल लंगोट पर 1000 रूपये , आगे वाले पहलवान पर 2000 रूपये। ऐसे में कुछ पहलवान आते और पहलवानों से हाथ मिलाते। अगर पहलवान ने हाथ मिला लिया तो जोड़ पक्का। 

अखाड़े में कुछ रेफरी भी हुआ  करते थे , यह रेफरी पुराने समय के पहलवान थे जो अब कुश्ती में यह भूमिका निभाया करते। कई बार कुश्ती , बराबर में छूटती , तब ईनाम बराबर बाँट दिया जाता। सबसे रोचक कुश्ती वो हुवा करती थी जब कोई दुबला पतला पहलवान , किसी जोरदार पहलवान को अपनी कलाकारी के चलते पटक दिया करता था। अगर आप को सही दावं पता है और विपक्षी उसमें फस गया है तो समझ लो उसका हारना /चित होना तय है। 

( जारी ________________)

  ©आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

Jodhpur Visit :3

जोधपुर :3 

अंग्रेजी फिल्मों में एक बड़ा नाम क्रिस्टोफर नोलन का हैं जिन्होंने बड़ी कमाल की फिल्में निर्देशित की हैं। उन्होंने एक फिल्म बैटमैन राइज भी डायरेक्ट की।

आप सोच रहे होंगे कि जोधपुर के महल की कहानी बताते बताते , मैं बैटमैन और नोलन की बात क्यों करने लगा। दरअसल आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मेहरानगढ़ किले को आप बैटमैन राइज में भी देख सकते हैं। याद करें जब ब्रूस , एक गहरे कुवें से निकलने के लिए सीढ़ी चढ़ता और गिरता है। अंततः जब वो निकलता है तो मेहरानगढ़ के बाहरी परिसर में ही निकलता हैं। जोधपुर में तमाम फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।

बात हो रही थी जब किले से रानियाँ जौहर के लिए निकलती थी। किले के अंदर जाते ही एक  रेस्तरॉ है। किले के भीतर तमाम चीजे थे। पत्थरों की बहुत बारीक़ जालियाँ है जिनसे आप बाहर से कुछ नहीं देख सकते है जबकि भीतरी भाग में मौजूद व्यक्ति बाहर का  सब कुछ देख सकता है। अंदर तमाम हथियार , पेटिंग्स , राजसी कपड़े के लिए अलग अलग कमरे हैं। अगर एक एक चीज पर गौर करने जाये तो पूरा दिन इसीमे निकल सकता है।  हमने वहाँ पर 4 या 5 घंटे बिताये होंगे।

किले के पास ही जसवंत थड़ा है। इसे जोधपुर का ताजमहल कहा जाता है। राजपरिवार के तमाम  सदस्यों को  यहाँ पर दफन किया गया है। सफेद संगमरमर की इमारत में बहुत सकून महसूस होता है। राजेश और  हम दोनों बहुत थक चुके थे।  उम्मेद भवन पैलेस , किले से दिखता है , प्लान बना कल दोपहर बाद देखा जायेगा।

लौटते समय हम घंटाघर से आये। वहाँ पर कुछ स्थानीय नाश्ता किया , जैसे पालक पकौड़ी और चाय। यह चाय की बहुत प्रसिद्ध दुकान थी और अनोखे तरीके से चाय बन रही थी। एक तरफ चाय का पानी उबल रहा था और एक ओर दूध उबाल कर रखा गया था। चाय का टेस्ट बहुत बढ़िया था पर दुकान में साफ सफाई, जगह की कमी हैं। राजेश को चाय इतनी बढ़िया लगी कि उसने 2 गिलास पी।

घंटाघर , जोधपुर के प्रमुख मार्किट है। सैकड़ो की संख्या में विदेशी सैलानी दिख रहे थे। हमने भी कुछ शॉपिंग की और  घर लौट आये। अगले दिन राजेश का ras का पेपर था , मैं भी उसके साथ निकला और सेण्टर पर उसका इंतजार करता रहा। पेपर देने के बाद हम उम्मेद भवन पैलेस की ओर निकल गए।

उम्मेद भवन पैलेस , जोधपुर के महराजा का निजी सम्पत्ति है। महल का कुछ हिस्साा आम दर्शकों के लिए खोल दिया गया है। जहाँ तक याद आता है , इसके कुछ हिस्से में ताज होटल ग्रुप ने एक हेरिटेज होटल बना दिया है और उसके कुछ कमरो का किराया एक रात का 2 लाख रूपये तक है। एक दिन का  न्यूनतम 50000 रूपये है। 

उम्मेद भवन एक पहाड़ी पर बना है। भीतर विंटेज कारों का एक म्यूज़ियम भी है। रोल्स रॉयस , कडियाक, मरसडीज और भी न जाने कौन कौन सी कारे खड़ी है। कारे 1920 से आगे के दशक की हैं और देखने में बहुत भव्य है। रॉल्स रॉयस के इंजन किसी रेल के इंजन सरीखा दिखता है। 

महल घूमने के बाद हमें जोरों की भूख लगी थी। काफी देर हम वहीं पता करते रहे कि जोधपुर में सबसे अच्छी जगह खाने की कौन सी और कहाँ है। एक युवा ने जिप्सी रेस्तरॉ का नाम बोला। नाम सुनकर ही लगा कि वहाँ जरूर जाना चाहिए।

जिस्पी पहुँच कर देखा कि वहाँ तो वेटिंग क्यू है। 4 बज रहे थे। बाहर इंडिया टुडे की एक पेपर कटिंग लगी थी और जिप्सी को उसमें काफी अच्छी जगहों में शुमार किया था. अगस्त का यह पहला रविवार था और शायद यह फ्रेंडशिप डे भी था। सामने एक बेकरी की दुकान थी। कुछ लड़कियाँ और लड़के फ्रेंडशिप डे सेलिब्रेट करने के लिए उधर जा रहे थे। उन्हें देख लगा कि जोधपुर , फैशन के मामले में काफी एडवांस हैं।

यह शहर में कुछ पॉश एरिया होते है। शायद हम जोधपुर की सबसे महत्वपूर्ण जगह पर थे। जिप्सी में अंदर जाकर पता चला कि उनकी जोधपुरी थाली वैगरह 3 बजे तक ही रहती है और शाम को 7 बजे के बाद फिर से शुरू होगी। इस बीच सिर्फ चुनी हुयी चीजे मिल पाएंगी। हमने दाल मखनी और गार्लिक नॉन लिया। स्वाद और सबसे  महत्वपूर्ण साफ सफाई में जिप्सी का जबाब नहीं। गूगल से पता चला तो होटल का मालिक किसी आईपीएस का बेटा था और शौक के तौर पर इसे शुरू किया था जो अब बहुत अच्छे से चलने लगा था।

हमारी रात की ट्रैन थी। मेरी सीट कन्फर्म न थी उसी दिन टिकट बुक किया था। हालाकि सुमित ,  राजेश की सीट कन्फर्म थी। मुझे उनकी सीट पर बैठ कर रात काटनी थी। उन्होंने कहा की tt से बात करलो, अपना परिचय दे दो  शायद कोई सीट हो। मैं मुस्कराया परिचय से ही बात बनानी होती तो सीट पहले ही कन्फर्म होती। जब तक घोर जरूरत न हो , आम बन कर ही जीने में मजा है।

उन दिनों नेटफ्लिक्स पर मैं वाइल्ड वाइल्ड कंट्री सीरीज देख रहा था। काफी रात तक उन्हें देखता रहा। सुमित रात में कई बार उठ कर मुझे सोने के लिए ऑफर किया पर मैं साइड सीट पर बैठा रहा और सोचता रहा यही तो जीवन है , दो साल फ्लाइट से चलने के बाद इस तरह स्लीपर डिब्बे में साइड सीट पर रात जागते हुए काटना , ये भी तो जरूरी अनुभव है। आखिर मेरा फलसफा है कि अनुभव ही जीवन है और जीवन ही लेखन है।

(यात्रा के जुड़ी तमाम तस्वीरें मेरी इंस्टाग्राम प्रोफाइल @asheeshunaoo पर अपलोड हैं, उनके साथ आप इस यात्रा विवरण का बेहतर चित्र मनस पटल पर खींच सकते हैं. यात्रा विविरण लिखना काफी जटिल कार्य है विशेषकर प्रामणिक सूचना के लिहाज से, जब यात्रा की थी विकी और गूगल से खूब जानकारी जुटाई थी पर यह जरूरी नहीं कि इस यात्रा विवरण में सब प्रामाणिक ही हो, आलस के चलते लिखते समय बस स्मृति का सहारा लिया है।  )
(समाप्त )
©आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश।

Featured Post

SUCCESS TIPS BY NISHANT JAIN IAS 2015 ( RANK 13 )

मुझे किसी भी  सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE  में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेर...