भारतेंदु युग की 'नए चाल की हिंदी'
भारतेंदु युग को संभवत आधुनिक युग का प्रवेश द्वार भी कह सकते है,यह एक तरह से प्राचीन तथा नवीन का संधि काल था। भारतेंदु ने अपने समय की परिस्थितयों का यथार्थ चित्रण किया है।यहाँ साहित्य की भाषा, शिल्प,प्रवृतियां तथा चिंतन में वृहद बदलाव देखने को मिला।1873 में भारतेंदु जी ने कहा था की 'हिंदी नई चाल से चली है'।
1. हिंदी में खड़ी बोली का प्रयोग- मध्यकालीन युग में साहित्य की भाषा के रूप में अवधी, बृज भाषा तथा मैथिलि का प्रयोग होता था वहीं आधुनिक साहित्य या भारतेंदु युग में खड़ी बोली साहित्य में समाती गई।केवल गद्द में ही नही पद्द में भी खड़ी बोली का विकास प्रारम्भ हो गया।उनके कहने का अर्थ था की हिंदी साहित्य का स्वरूप अब निरंतर परिवर्तन की ओर बढ़ चला है।
2. जहाँ मध्यकालीन साहित्य का विषय प्रकृति, राजा, भगवान या अलौकिक संसार था वही भारतेंदु युग में साहित्य के केंद्र में मानव तथा मानवता रहा बाकि विषय मानो हाशिये पर चले गए थे।
जैसे भारतेंदु मंडल के कवि आयोद्धा सिंह द्वारा 'प्रिय प्रवास' खड़ी बोली का FIRST महाकाव्य माना जाता है। भारतेंदु की पत्रिका कवि वाचन खड़ी बोली में नवीन चेतना के प्रसार का कार्य कर रही थी।
4. हिंदी का USE साहित्य में सामाजिक कुरीतयों तथा उपनिवेशिक शासन के विरुद्ध योद्धा के रूप में किया जा रहा था।
6. साहित्य का समाजीकरण हो रहा था तथा समाज चेतना का विस्तार हो रहा था। जैसे भारतेंदु का नाटक-नील देवी, भारत दुर्दशा
7.नारी उत्थान तथा दलित जीवन आदि भी इस समय साहित्य के केंद्र में थे।
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इस तरह खड़ी बोली तथा परिवर्तित विधाएँ तथा चेतनाएं आधुनिकता के साथ साथ भारतीय साहित्य में में प्रवेश कर गयी।हिंदी में आ रहे इन्ही परिवर्तनों के आधार पर भारतेंदु जी हिंदी के विकास को 'हिंदी की नई चाल' के नाम से उद्घाटित करते हैं।
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