दिनकर की कविता मे राष्ट चेतना
- भावों के आवेग प्रबल
मचा रहे उर में हलचल रेणुका - पूछेगा बूढ़ा विधाता तो मैं कहूँगा
हाँ तुम्हारी सृष्टि को हमने मिटाया। - रे रोक युद्धिष्ठिर को न यहाँ
जाने दे उनको स्वर्ग धीर
पर फिरा हमें गांडीव गदा
लौटा दे अर्जुन भीम वीर। हिमालय - कितनी मणियाँ लुट गईं! मिटा
कितना मेरा वैभव अशेष
तू ध्यानमग्न ही रहा, इधर
वीरान हुआ प्यारा स्वदेश। - धर्म का दीपक, दया का दीप
कब जलेगा, कब जलेगा
विश्व में भगवान। कुरुक्षेत्र - दूध दूध ओ वत्स तुम्हारा दूध खोजने जाता हूँ मैं
हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने आता हूँ मैं हाहाकार - चढ़ कर विजित श्रृंगों पर झंडा वही उड़ाते हैं।
अपनी ही उँगली पर जो खंजर की जंग छुड़ाते हैं। - सारी दुनिया उजड़ चुकी है गुजर चुका है मेला;
ऊपर है बीमार सूर्य नीचे मैं मनुज अकेला। अंतिम मनुष्य-सामधेनी' - आशा के स्वर का भार पवन को लेकिन लेना ही होगा
जीवित सपनों के लिए मार्ग मुर्दों को देना ही होगा। - कलम आज उनकी जय बोल !
जला अस्थियाँ बारी बारी
छिटकाई जिनने चिनगारी
जो चढ़ गए पुष्प वेदी पर लिए बिना गरदन का मोल 'हुंकार
यह पोस्ट भी आईएएस के लिए हिन्दी साहित्य विषय लेकर तैयारी कर रहे मित्रो के लिए है । ऊपर लिखी लाइंस इधर उधर से साभार कॉपी किया है । दिनकर भी इन दिनो यूपीएससी के काफी म्हत्वपूर्ण हो गए है । लाइंस अगर याद रहेगी तो बाकी आप लिख ही लेंगे ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें