पर्यावरणीय नैतिकता
1. पर्यावरणीय नैतिकता , नैतिकता का ही एक अंग है जो मनुष्य तथा पर्यावरण के मध्य सम्बन्ध को प्रदर्शित करती है। इसके अनुसार मनुष्य एक ऐसे समाज का हिस्सा है जिसमे मानव जाति के साथ सभी प्राणी , जीव जन्तु तथा पेड़ पौधे भी शामिल है। यह मानवीय मूल्यों तथा नैतिक सिद्धान्तों के आधार पर इनमे सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास है तथा मानव को इसके पर्यावरण के प्रति उसकी जवाबदेही को दर्शाया जाता है।
2. पर्यावरणीय नैतिकता का अध्यनन आवश्यक है क्योकि पेड़- पौधे पर्यावरण के महत्वपूर्ण भाग है, साथ ही ये मनुष्य के जीवन का भी अहम हिस्सा है। अतः मनुष्य की यह जिम्मेदारी की उनका संरक्षण करे।
मनुष्य को कोशिश करना चाहिए उसके कार्यों से पर्यावरण, जीव- जन्तु, पेड़-पौधे किसी भी प्रकार से खतरे में न आये। मनुष्य अगर उनका उपयोग करता है तो उनकी सुरक्षा उसकी नैतिक जिम्मेदारी भी है।
3. इसके अध्यनन से मनुष्य द्वारा पर्यावरणीय संसाधनों के विवेकतापूर्ण प्रयोग को सुनिश्चित किया जा सके।मनुष्यों में उनकी भंडार क्षमता तथा उनकी उपयोगिता के बारे में भी जागरूक किया जा सके।
4. पर्यावरणीय नैतिकता से सम्बंधित कुछ मुद्दे- जल प्रदूषण के कारण पौधों में प्रकाश संश्लेषण की दर में कमी आती है तथा कुछ पौधों की प्रजातियां तक समाप्ति की कगार तक पहुंच जाती है।
वायु प्रदूषण के कारण अम्लवर्षा होती है जो पेड़ो को नष्ट कर देती साथ ही झीलों और तालाबों के जल को दूषित कर यहाँ की जीव-जंतुओं को भी प्रभावित करती है।वहां की इमारतों को भी क्षति पहुंचाती है।
ओज़ोन परत में छेद जो मानवीय कारकों की ही देन है जिससे न केवल पौधे और प्राणी प्रभावित होते है साथ ही इसका प्रभाव मनुष्य पर भी होता है।
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