पेरिस जलवायु संधि और अमेरिका का इससे बाहर निकलना
जैसा ट्रम्प ने चुनाव में वादा किया था और कयास लगाए जा रहे थे अमेरिका ने पेरिस जलवायु परिवर्तन संधि से बाहर निकलने की घोषणा कर दी। ऐसा करके अमेरिका ने एक प्रकार से वैश्विक नेता के पद से पीछे हटने की बात की है। शीत युद्ध के बाद विश्व का नेतृत्व अमेरिका करता आ रहा है पर अब ऐसा लगता है कि उसकी जगह चीन स्वाभाविक रूप से ले लेगा।
पेरिस संधि अब तक की जलवायु परिवर्तन पर सबसे महत्वपूर्ण संधि है। इसकी विशिष्ट बात यह कि यह आम सहमति पर आधारित संधि है जिसमे अलग अलग देशो ने स्वैच्छिक रूप से कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने की बात कही थी। ट्रम्प ने अपने सम्बोधन में चीन के साथ साथ भारत पर कई तरह के आरोप लगाए है। अमेरिका को यह याद रखना चाहिए कि चीन और भारत अभी विकासशील देश है जबकि अमेरिका ने 100 पहले ही इतना कार्बन उत्सर्जन करने लगा था जिसका परिणाम आज सारा विश्व भुगत रहा है। अगर प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की बात करे तो अमेरिका अभी भी पहले स्थान पर है।
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा है इसको किसी एक देश की जिम्मेदारी कह कर छोड़ा नहीं जा सकता है। अमेरिका ने कम नौकरी सृजन के मुद्दे पर जलवायु संधि से अलग हुआ है। यह काफी हास्यपद होगा कि पथ्वी के भविष्य की चिंता के बजाय उन्हें नौकरी की पडी है। उन्हें शायद यह अंदाजा नहीं होगा कि चीन या भारत में अभी उपभोक्तावाद नहीं है जितना अमेरिका में है। जो विकसित देश है उनकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है कि वैश्विक मुद्दों को आम सहमति से सुलझाए। अमेरिका को सीरिया में हस्तक्षेप करने , सऊदी अरब को हथियार बेचने में कुछ गलत नहीं लगता पर जलवायु परिवर्तन संधि उसके लिए हानिकारक है। अंत में यही कहा जा सकता है कि अमेरिका का ट्रम्प के हाथो में ही अंत होगा अर्थात कुशासन , भड़काऊ फैसले , प्रतिकियावादी नीति के चलते भविष्य में अमेरिका को राजनीतिक , आर्थिक व सामरिक मसले पर काफी निम्न स्तर देखना पड़ेगा।
आशीष कुमार,
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
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