क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2018 तथा भारत में उच्च शिक्षा की दशा और दिशा
क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2018 में भारत के जिस संस्थान ने उच्चतम जगह पायी है वह है दिल्ली का आई आई टी। इसे 172 स्थान मिला है। रैंक 200 के भीतर अन्य दो संस्थान आईआईटी बॉम्बे , आईआईएससी बेंगलौर है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति कितनी खराब है। यद्धपि इस रैंकिंग की भी कुछ बिंदुओं पर आलोचना भी की जाती रही है कि इसके मानक पश्चिमी देशों के शिक्षा संस्थानों के ज्यादा अनुरूप है। इस आलोचना में भी कुछ हद तक सच्चाई भी है। इस रैंकिंग में आधे से ज्यादा भार संस्थान की रोजगार प्रदाता की नजर में प्रतिष्ठा को दिया गया है। इस तरह के मानक में भारत के सस्थान पिछड़ जाते है।
इसके बावजूद भारत की उच्च शिक्षा की बदहाल स्थिति को नकारा नहीं जा सकता है। भारत में उच्च शिक्षा में कई तरह की गंभीर समस्याए है। हर साल बड़ी संख्या में लाखो की तादाद में इंजीनियर , डॉक्टर निकल रहे है। बहुत अजीब लगता है जब एक उच्च शिक्षित इंजीनियर , प्राइमरी टीचर के लिए जॉब के लिए आवेदन करता है। बीच बीच में ऐसी भी खबर आती है कि चपरासी के पद के लिए पीएचडी वाले लोगों ने आवेदन किया। यह कल्पना से परे है कि वह व्यक्ति जो शोधकर के किसी सरकारी कार्यालय में बाबू या चपरासी की नौकरी करता होगा उसे कितनी घुटन होती होगी। एक परिचित जिसने एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय से गणित में एमएससी की थी लेखपाल की नौकरी करने को बाध्य है। वजह उसे पता है कि सरकारी नौकरी ही , सुरक्षा की गारंटी है। विदेशो में निजी क्षेत्र में भी उच्च शिक्षित लोगो के लिए बहुत अच्छे अवसर होते है पर भारत में भी यह स्वप्न ही है कि निजी क्षेत्र , सरकारी क्षेत्र से अच्छा और सुरक्षित हो सके।
शिक्षा में गुणवत्ता , उच्च शिक्षा संस्थान में प्रशासन जैसे मसलों पर भारत को ध्यान देने की विशेष जरूरत है। भविष्य में ज्ञान अर्थव्यस्था (KNOWLEDGE ECONOMY ) पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए भारत को शिक्षा खासकर उच्च शिक्षा को शीर्ष प्राथमिकता देना चाहिए। अभी हाल में उच्च शिक्षा के लिए हीरा (Higher Education Empowerment Regulation Agency) बनाने की घोषणा की गयी है। आशा की जानी चाहिए कि यह पूर्व की खामियों को दूर करने में सहायक होगा।
आशीष कुमार ,
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
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