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BOOKS
मंगलवार, 31 दिसंबर 2019
Year end 2019
शनिवार, 28 दिसंबर 2019
kavita 05: Hisab - Kitab
गुरुवार, 19 दिसंबर 2019
motivational : Rajesh kumar soni SDM in Haryana
मंगलवार, 17 दिसंबर 2019
motivational : Two aspirant
सोमवार, 9 दिसंबर 2019
Story : A Vegetable seller in delhi
धनिया पत्ती
बात कुछ पहले की है अब उतने महत्व की भी न रही पर लिख ही डालते है। कुकिंग बहुत बहुत पहले से करने लगा था, ज्यों 2 बड़ा हुआ त्यों 2 कुकिंग और ज्यादा व्यवस्थित होती गयी। धीरे 2 समझ आया कि धनिया पत्ते के बगैर तो कुछ भी बना हो स्वाद आता ही नहीं। कहने के मतलब कुछ भी हो धनिया पत्ते के अभाव में सब्जी न बनेगी।
पाठकों में पता नहीं कितने लोग सब्जी लेने जाते है या नहीं पर मुझे यह काम फिलहाल तो खुद ही करना पड़ता है। जब रूम पार्टनर थे तब यह उनकी जिम्मेदारी हुआ करती थी। सब्जी खरीदना भी बड़ी कला है पर मुझसे न होती है। अपन तो कपड़े भी 10 मिनिट में खरीद के निकलने वालों में है फिर सब्जी में कौन जांच परख में दिमाग लगाए। रुकते है वरना सब्जी खरीद शास्त्र लिख डालूंगा, धनिया पत्ते पर आते हैं।
पिछले दिनों मालूम है धनिया पत्ता के दाम कहाँ थे। 400 रुपये किलो यानी 10 रुपये की 25 ग्राम। आम तौर पर धनिया मिर्चा लोग फ्री में डलवा लेते हैं। उन दिनों भूल से भी ऐसी मांग नही की जा सकती थी। सब्जी वाले भड़क उठते थे। अगर आशंका होती कि फ्री में मांगेगा तो अक्सर बोल देते की है ही नहीं।
जैसा कि लोग कहते है कि विक्रेता गाड़ी देख के दाम बताते हैं, तमाम लोग इसी होशियारी में गाड़ी दूर खड़ी करके , फल खरीदने पीछे आते हैं। कुछ ऐसे भाव रहे होंगे जब मैंने उससे वैसी बात की।
उस दिन जब एक ठेले वाले से पूछा -
कि भाई धनिया पत्ती कैसे दिए ?
"40 की 100 ग्राम " उसने सर तक न उठाया , उसके सामने तमाम ग्राहक थे।
" यार कल तो उस ठेले वाले ने तो 30 रुपये में दिया था, क्या गाड़ी देख के दाम बता रहे हो ?" प्रसंगवश मैं रॉयल एनफील्ड से गया था।
" घर में दो दो खड़ी हैं...." ठेले वाले से कुछ ऐसे ही बड़बोले जबाब की ही उम्मीद मैंने की थी, आखिर मैं दिल्ली में खड़ा था।
" भाई, अब तीसरी भी जल्द खड़ी होने वाली है तेरे घर ..." मैंने मुस्कुरा कहा।
"क्या मतलब " सब्जी वाले ने अब सर उठाया।
" कुछ नहीं , तुम अमिधा ही समझ सकते हो, लक्षणा, व्यंजना तुम्हारे बस की बात नहीं" उस सब्जी वाले को, जिसके घर दो दो बुलट खड़ी थी, थोड़ा उलझन में डालकर आगे बढ़ आया।
उसको क्या खबर कि इस दिल्ली में किराए के पैसे से ऐश, मजे करने वालों के बीच ठेठ ग्रामीण परिवेश से आये भी लोग रहते है जो कितना ऊपर उठ जाए, उनसे बेफजूली खर्च चाहकर न हो पाती है।
( रेल सफर के बीच रचित )
9 दिसम्बर, 2019
© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तरप्रदेश।
शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019
Unnao : a sad truth
उन्नाव
उन्नाव फिर से चर्चा में है, मेरी व्यथा यह है कि यह हर बार अपराध के लिए ही राष्टीय स्तर पर चर्चा में आता है। कहते है जन्मभूमि स्वर्ग समान होती है, अपनी मिट्टी से बड़ा लगाव होता है। मेरी तमाम तरह से कोशिश होती है कि उन्नाव , पूरे भारत में बढ़िया चीजों के लिये जाना जाय। मेरी पोस्ट के अंत में हर बार जो उन्नाव का जिक्र देखते है उसके पीछे की मंशा उक्त ही है।
कलम व तलवार की धरती उन्नाव को न जाने कब अतीत वाला गौरव मिलेगा। प्रताप नारायण मिश्र, निराला, रामविलास शर्मा व चन्द्रशेखर आजाद की धरती को न जाने किसकी नजर लग गयी है। तमाम बार जब लोग पूछते है कि उन्नाव कहाँ पड़ता है तो कुछ भी बताओ तो लोग शायद ही समझ पाए पर अगर चर्चित रेप कांड का नाम ले लो या फिर वो बाबा के सपने में 1000 टन सोने की खुदाई वाली घटना का नाम ले लो फिर सब समझ जाते है। है न अजीब पर सत्य यही है। यह चीजें इसलिए कह रहा हूँ कि मुझे तमाम बार काफी बड़े मंचो व अति प्रतिष्ठित लोगों से मिलने पर बड़े गर्व से बताना होता है कि मैं उन्नाव से हूँ।
खैर
अच्छी उम्मीदों के साथ,
आपका ही
आशीष, उन्नाव।
7 दिसंबर, 2019
#unnao #Nirala #azad
That old days
शहर छूटा पर भाषा न छूटी
अहमदाबाद
2012 में जब अहमदाबाद में रहना शुरू किया तो भाषागत कुछ दिक्कतें आयी। जब हम घूमने को निकलते और किसी से कोई पता पूछते तो जो भी जबाब आता उसमें "चार रास्ता" का जिक्र जरूर आता जैसे कि अगले चार रस्ते से बाएं । कुछ दिनों में समझ आ गया कि अपने यहाँ के चौराहे को ही यहाँ चार रास्ता बोला जाता है। 7 साल हुए अब मेरे मुँह भी चार रास्ता ही निकलने लगा।
दिल्ली
कल मेट्रो माल से बाहर e रिक्शे वाले पूछा " मेरी अकेडमी तक चलोगे"
"किधर" रिक्शे वाले ने पूछा ।
" वो आगे जो डीएमसी ऑफिस वाला चार रास्ता है , उसी के पास "
" चार रास्ता ? " रिक्शे वाला बड़े कंफ्यूजन में दिखा।
" अरे भाई , यही अगला चार रास्ता ... अरे यार यही अगला चौराहा " दिमाग मेरा शून्य सा हो रहा था। मन से चौराहा ही निकला पर शब्दों में चार रास्ता।
मॉरल ऑफ द स्टोरी - शहर पीछे छूटते रहते हैं पर भाषा साथ जुड़ी रहती है।
7 दिसंबर, 2019
© आशीष, उन्नाव, उत्तर प्रदेश।
सोमवार, 2 दिसंबर 2019
Poem 2 : Uniqueness
अद्वितीयता
अपनी कुछ पुरानी, नाममात्र की सीमित उपलब्धिओं पर,
छाती फुलाये जाना,
चलना चौड़े से अकड़ कर
दोहराना उन्हीं सतही चीजों को
जतलाना जैसे कि बुद्धत्व मिल गया हो
हमेशा आतुर सुनने को कुछ प्रसंशा के शब्द
या कि अपना नाम लिया जाय महफिलों में बार बार।
बैठकर उसके सामने ,बोलते रहना उन्हीं चीजों पर
जो वो पहले भी सुन चुकी है कई बार,
हमेशा इस उम्मीद में कि वो हर बार
अपनी आँखों को विस्मय में भरकर बोलेगी
" आप गजब के इंसान हैं " और दे देगी
अपने नाजुक हाथ आपके हाथों में।
नहीं , कतई नहीं, जरा भी फर्क नहीं पड़ता दुनिया को,
आपकी सीमित, पुरानी नाममात्र की
उपलब्धिओं से,
अद्वितीयता भला कहीं दोहराने से आती है ।
3 दिसंबर, 2019
©आशीष कुमार, उन्नाव उत्तर प्रदेश।
गुरुवार, 7 नवंबर 2019
Three years in college
कॉलेज के वो तीन साल ।
हम वहाँ से आते है मतलब जहां आपको सब कुछ खुद ही करना है, गाइडेन्स नाम की कोई चीज नही होती है। बहुत समय से सोच रहा हूँ कि इस पर लिखू पर लगता था कि कॉलेज की आलोचना होगी पर कभी न कभी लिखना ही था।
मैंने भी तमाम लोगो की तरह की बीएससी की है। गणित, भौतिक विज्ञान व कंप्यूटर एप्लिकेशन में। स्वीकार करना कठिन है पर सच है कि तीनों ही में मुझे कुछ भी नही (स्नातक स्तर का ) आता। हमने ऐसे कॉलेज में एडमिशन लिया था जहाँ वर्षो से एक विकट समस्या चली आ रही थी। अध्यापक क्लास इस लिए नही लेते थे क्योंकि उन्हें शिकायत होती कि छात्र पढ़ने ही नही आते और छात्रों का कहना था कि अध्यापक पढ़ाने नहीं आते इसलिए वो क्लास नही जाते । ऐसे में होता यह कि अध्यापक अपने कॉमन रूम में बैठकर देश दुनिया का चिंतन करने में , समाज के नैतिक पतन, नेताओं की मक्कारी पर अपना कीमती समय देते। इससे उन्हें सन्तोष रहता कि वो हराम की कमाई नहीं ले रहे है। दूसरी ओर छात्र अपनी युवा ऊर्जा अन्य जगहों पर लगाते। हम जैसे कुछ जो गांव देहात से आते अपना ट्यूशन पढ़ाने जैसे कार्यों में लग जाते ताकि घर पर बोझ न बने।
मैं पूरे साल साईकल लेकर घर 2 ट्यूशन पढ़ाता रहता फिर एग्जाम के समय दुपतिया ( अलग 2 नामों से बिकती है जैसे कानपुर यूनिवर्सिटी में इजी नोट्स चलते है ) जैसी पतली किताबें पढ़कर पेपर देने जाते। पहले साल तो दुपितया लिया पर अगले साल वो भी न ली तब भी पास हो गया यह मेरे लिए भी खुद रहस्य है आखिर कैसे ? । तीसरे साल प्रैक्टिकल होते हैं ।
मेरे पिता जी को कुछ चीजों का बढ़िया ज्ञान था। उनकी सलाह के अनुसार एक गुरु जी के घर प्रैक्टिकल वाले दिन सुबह 2 देसी माठा ( छाछ ) , कुछ ताजे करेले लेके दे आया। उनका बेटा निकला तो उसको बोला कि पापा से बोल देना कि आप का स्टूडेंट हूँ नाम आशीष है।
इसी तरह से कंप्यूटर के प्रैक्टिकल वाले सर को मधुशाला की प्रति दी। ( यह सलाह एक नेक मित्र की थी।) यहाँ मेरे टीचर भड़क गए बोले कि यह बिल्कुल गलत है पर प्रैक्टिकल वाले सर ने किताब रख ली यह कहते हुए कि लड़कें की भावना समझो। हो सकता है कि मैंने उन्हें यह भी बोला हो कि sir मैं लेखन करता हूँ आदि आदि ) । प्रैक्टिकल के नाम पर 100 -100 रुपये भी जमा कराए गए थे। अब यह मत कहना कि आपने कभी नही जमा किये प्रैक्टिकल के नाम पर रुपये।
गणित में 45 में 42 अंक दिए गए। 40 से कम किसी को कम नही मिले थे। 2 अंक गुरु की सेवा के थे या नही कह पाना मुश्किल है। कंप्यूटर वाले सर ने कम अंक दिए थे। इसमें मुँह दिखाई ज्यादा चली थी। मेरी मधुशाला काम न आई। बाद के वर्षों में मुझे इस बात का बेहद अफसोस होता रहा कि मैंने तीन सालों में एक पन्ने (बीएससी से जुड़ी )की भी पढ़ाई न की। न तो मुझे किसी बुक का नाम पता था और न ही कौन 2 से पेपर होते हैं। हालांकि इस धक्का परेड डिग्री के विषयों की उपयोगिता कभी समझ न आई। अंकगणित मेरी बहुत अच्छी थी , इंग्लिश में सर के बल मेहनत की। gk में बचपन से बहुत मजा आता था। बस इन्ही के दम पर तमाम नौकरी मिली।
यह कड़वी सच्चाई है पर कुछ नामचीन यूनिवर्सिटी को छोड़ दे यथा इलाहाबाद / प्रयागराज, BHU, DU तो सब जगह की स्थिति ले देकर उक्त सी है। और नामचीन जगहों पर पढ़ने वाले लोग पूरे देश के ग्रेजुएट का कितना परसेंट होंगे। माफ करना यह 15 साल पुरानी बात है। हो सकता अब काफी बदलाव हो गया हो। क्योंकि अब देश में बदलाव की बयार आयी है हो सकता हो अब उन कॉलेज में उस वर्षो से चली आ रही समस्या का समाधान हो गया हो।
© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तर प्रदेश ।
7 नवंबर 2019, दिल्ली
गुरुवार, 19 सितंबर 2019
Story of a disciplined man
रविवार, 1 सितंबर 2019
Motivational story of amit chaudhry
शुक्रवार, 16 अगस्त 2019
My birthday : A thank you note
सामूहिक धन्यवाद ज्ञापन
आप सभी मित्रों, शुभचिंतकों को मेरे जन्मदिन पर , समय निकालकर अपने जो शुभकामनाएं दी, उनके लिए ह्रदय से धन्यवाद। आज कुछ बड़ी अनोखी बातें शेयर कर रहा हूँ, एक आध साल अपवाद को छोड़ दे तो कभी मैंने न तो बर्थडे केक काटा और न इसको कभी स्पेशल तरीके से ट्रीट किया। दरअसल मुझे बड़ी अजीब सी शर्म सी आती है, खासकर जब वो केक काटते समय गाने गाते है। दरअसल मुझे वो पूरा तामझाम ही बड़ा अजीब लगता है।
मैं अपने आसपास देखता हूँ तो बड़े अच्छे अच्छे लोग दिखते है , बहुत बढ़िया से अपना बर्थडे सलेब्रिट करते है। एक मित्र बर्बे कयु नेशन में जाकर पार्टी देते है, कुछ ऐसे भी लोग है जो पहले से बताएंगे कि अमुक दिन मेरा बर्थडे है और मुझे गिफ्ट क्या दोगे, इससे बढ़कर वो जो बोलकर मांगते है कि मुझे बर्थडे में अमुक चीज दे दो .उदाहरण के लिए वो I PHONE के कटे वाले हैडफोन ।
जब भी मैं अपने स्वभाव के विश्लेषण करता हूँ तो इन चीजों के उत्तर मिलते है। मैं समूह, भीड़ से अक्सर असहज रहता हूँ। मेरे एक एक कर या व्यक्तिगत संबंध हमेशा बहुत प्रगाढ़, मजबूत व आत्मीय बनजाते है पर समूह शायद ही कभी मेरे व्यवहार को स्वीकार करे ।
हर साल मुझे दो लोगों से एक विशेष तरह की शिकायत मिलती है, कि मैंने उन्हें बर्थडे विश क्यों न किया जबकि वो हर बार ध्यान से मुझे करते है। दोनों ही लोगों का बर्थडे ठीक एक दिन पहले यानी 15 अगस्त को होता है। इसबार एक लोगों का याद करके बैठा और उन्हें विश कर भी दिया पर कल शाम मुझे दूसरी शिकायत मिली। अब मुझसे कुछ कहते न बना। ये ऐसे लोग है जो पूरे साल गायब से रहते है प्रायः नाराज कि मैं बहुत बिजी रहता हूं पर बर्थडे पर विश जरूर करेंगे। उम्मीद करता हूँ कि पोस्ट लिखने से शायद मुझे अगले साल 15 अगस्त को याद रहे, कोई शिकायत न रहें।
तो दिन भले मेरा सामान्य सा गुजरे पर फेसबुक पर जब तक आप जैसे लोगों है तबतक हमारे जीवन में 16 अगस्त विशिष्ट या कहे जलवा कायम रहेगा। पुनश्च आपको बहुत बहुत शुक्रिया, आभार, अभिनंदन।
आपका - आशीष कुमार, उन्नाव ( उत्तर प्रदेश)
शनिवार, 22 जून 2019
kabir singh : a story
शुक्रवार, 7 जून 2019
Brida
काफी दिनों बाद , पाउलो कोएल्हो को पढ़ने जा रहा हूँ। उनके उपन्यास अलकेमिस्ट ने मेरे व्यक्तिगत जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव डाला था, जोकि मैंने पहली बार लखनऊ के भागीदारी भवन के पुस्तकालय में पाया था।
वैसे पिछले मैंने विनोद कुमार शुक्ल का प्रसिद्ध उपन्यास ' दीवार में एक खिड़की रहती थी ' पढ़ा। उसकी समीक्षा, मेरी उस नावेल के प्रति समझ लिखना बाकि है।
प्रसंगवश यह दोनों नावेल और शुक्ल जी का नॉवेल और भी हिंदी की प्रसिद्ध किताबें, मैंने अपनी अकादमी के पुस्तकालय में आग्रह करके मंगवाया है, धीरे धीरे उनको पढ़ना जारी रखूँगा।
शनिवार, 11 मई 2019
Happy mother's day
मां तुम्हें नमन
बच्चों की उपलब्धि उनके संस्कारों पर निर्भर करती है। संस्कार, परिवार से मिलते हैं। परिवार की नींव मां होती है। मुझे बचपन से याद है कि मेरी माँ की सबसे बड़ी चिंता, हमारी पढ़ाई थी। बेहद संघर्ष भरे दिनों में हमारे परिवार की आखिरी उम्मीद, हम बच्चें ही थे। कैसे भी करके कोई भी छोटी मोटी सरकारी नौकरी का सपना, बचपन से डाल दिया गया था।
शुरू के कुछ सालों तक यानी कक्षा 8 तक हम पढ़ने में काफी ठीक माने जाते थे, फिर धीरे धीरे उम्मीदें टूटने लगी। हम खुद तो कभी अपने को कमजोर न समझे पर समाज मे बुद्धिमत्ता के प्रतिमान जैसे कि 10वी, 12 में प्रथम दर्जे से पास होना, पर खरे न उतर सके।
10 में जब सेकंड डिवीज़न आयी तो एक रिश्तेदार ने बोला कि तुमको जो बनना था बन गए। आगे भी सेकंड ही आता रहा। लोग ऐसे ही बोलते रहे। मां ने कभी उम्मीद न छोड़ी।
कभी निजी भावनायें, ऐसे सार्वजनिक करने की आदत न रही पर आज मदर डे पर उनको ऐसे नमन करना बनता ही है। मेरी तमाम सफलताओं की नींव मेरी माँ ही रही हैं। मुझे गर्व है कि वो काफी पढ़ी है और अपने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं। देश की सबसे कठिन समझी जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने का सपना और उसे हकीकत में बदलने का जज़्बा मेरा जैसा सामान्य स्टूडेंट अगर कर सका है तो उसके पीछे मां के असीम आशीर्वाद,प्रेरणा ही रही है।
-आशीष
शनिवार, 13 अप्रैल 2019
PRATEEK BAYAL : IAS TOPPER 2018 WHO HAS DEEP INTEREST IN FITNESS
रविवार, 7 अप्रैल 2019
Apana time ayega..
जिनको अभी भी और संघर्ष करना है
तमाम सफल लोगों के बीच उन लोगों भी याद करना लाजमी है जो लगातार संघर्ष करने के लिए बाध्य हैं या कहे कि अभिशप्त से हो गए हैं ।
इस बार जब से सिविल सेवा का रिजल्ट आना था , तब से मन मे बार 2 आ रहा था कि यार इस बार उन दोनों का जरूर हो जाय। दो लोग है, हिंदी माध्यम से। नाम नहीं लिख रहा हूँ पर लगभग उनको बहुतायत लोग जान ही जायेंगे । दोनों लोग राजस्थान से है।
पहले मित्र jnu से है, इतिहास विषय से देते है। शायद उनका 5 या 6 लगातार इंटरव्यू था पर न हुआ। पिछले साल 1 या 2 अंको से चयन रह गया था।
दूसरे साथी काफी अच्छे लेखक है, दैनिक जागरण, दैनिक भाष्कर आदि तमाम पेपर में उनके लेख आते रहते हैं।शायद भूगोल विषय है उनका। पहले दिल्ली में थे अब जयपुर में शिफ्ट हो गए हैं। उनका लगातार तीसरा इंटरव्यू था।
जिस दिन रिजल्ट आया , उनका दोनों के नाम एक मित्र से सर्च करवाया पर दोनों का ही न हुआ। सबसे खलने वाली बात यह है कि दोनों अभी किसी वैकल्पिक करियर को न बना सके है, इसलिए उन पर तमाम तरह के दबाव भी। अभी बात करने की हिम्मत न हुई उनसे। मुझसे बहुत ज्यादा गहरे , अंतरंग संबंध भी न है। बाद वाले साथी से कभी मिलना भी न हुआ, jnu वाले मित्र भी एक आध बार इंटरव्यू के दौरान upsc परिसर में भेट हुई है पर दोनों संर्घष के चलते अपने से लगते है।
मित्रों हो सकता है कि आप इस पोस्ट को पढ़े या कोई आप तक इसे पहुँचा दे। अब आप लोग उस स्तर पर है कि ज्यादा कुछ कहने या समझाने का अर्थ नही बचता। बस समय का फेर है, यह बस हिंदी माध्यम का बुरा दौर है। अभी आप दोंनो के प्रयास बचे है , अंतिम प्रयास में भी सफ़लता मिलती है, इसलिए एक और प्रयास सही। गुनगुनाते हुए लगिये- अपना टाइम आएगा ।
- आशीष कुमार
उन्नाव, उत्तर प्रदेश।
Featured Post
SUCCESS TIPS BY NISHANT JAIN IAS 2015 ( RANK 13 )
मुझे किसी भी सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेर...
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एक दुनिया समानांतर संपादक - राजेंद्र यादव एक दुनिया समानांतर , राजेद्र यादव द्वारा सम्पादित नयी कहनियों का ...
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निबंध में अच्छे अंक लाने के लिए जरूरी है कि उसमे रोचकता और सरसता का मिश्रण हो.........आज से कुछ लाइन्स या दोहे देने की कोशिश करता हूँ......
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पिछले दिनों किसी ने इस बारे में रिक्वेस्ट की थी। आज मैंने कुछ टॉपिक्स जुटाने की कोशिस की है। भूगोल बहुत बड़ा विषय है। इसमें बहुत से टॉपिक ...