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गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

ADOLESCENCE / किशोरावस्था


जब मै B. Ed. कर रहा था मुझे उसके Course एक बात अभी तक याद रह गयी है उसमे  दूसरा पेपर Psychology होता है , उसमे किसी Western Philosopher  ने कहा थाकिशोर अवस्था बहुत ही तनाव, संघर्ष और तुफानो की अवस्था होती है . इस बात को मै बहुत सोचता था , इसको अपने पर भी  apply  करके देखता था और पाता था कि  सच में बात बहुत पते की गयी है .
मित्रो , सच में  adolescence period  यानि १६  से २० -२२ की उम्र बहुत जटिल होती है , हमारे विचारो में instability  होती है , हम अपने  decision पर अडिग नही रह पाते है . हम समझ में नही आता कि करना क्या है , हम अपने Parents  से , friends  से , Relatives  से तो असहमत होते है इसके साथ , हम खुद से भी असहमत होते है . हम जो कदम उठाते है , उस पर हमे यकीन नही हो पाता .
इसको example के तौर पर समझाता हूँ . पहले तो हमे पढाई में समझ नही आता कि आगे क्या पढ़े . Inter तक तो math  से पढ़ लिए था आगे समझ नही आता कि B.Sc. करू या B.A. पिता ने कहा B.Sc.  करो . आज उनके logic को सोचता हूँ तो अजीब लगता है उनका मानना था कि इससे तुम्हे  पढ़ाने के लिए अच्छे tution मिलेगे . पिता जी highly qualified  थे पर बेरोजगार . ऐसे में उनकी आस्था डिग चुकी थी , Government Service  उनके लिए दूर की कौड़ी थी .
बीएससी के तीन साल कैसे गुजरे पता चला . कोई book नही खरीदी . साल के अंत में कुंजी type notes खरीदता और उसे exam दे आता . पुरे साल मै हिंदी के  Novel , History  की Books  पढने में busy रहा करता . सच कहूँ तो हिंदी और इतिहास की गहन पढाई से ही अपनी Personality Development कर रहा था . बीएससी के Subjects , Math , Physics, Computer Application को तो समझ पा रहा था और उनकी utility  भी नही दिख रही थी .
बीएससी का बाद रोजगार के लिए बहुत दबाव पड़ने लगा . ऐसे में बी एड के फॉर्म एक सुभचिन्तक ने भरा दिए . Polytechnic का भी फॉर्म डाला. तीन फॉर्म पड़े थे दो बीएड के , एक  का Polytechnic . तीनो में ही नाम आया पर अतिम तौर पर ...
Polytechnic से कुछ याद आया. जहाँ मै किराये पर रहता था वहां पर एक भइया का भी घर था . भइया B.T.C करके Primary Teacher थे और ias ki preparation  करते थे . उनके पास शाम को कुछ और साथी पढने आते थे . मेरा बड़ा मन होता था कि मै भी उनके पास जाकर  कुछ सीखू पर हिम्मत होती थी .
Competition Success Review नामक   एक पत्रिका आती है. उन दिनों उसमे एक gk quiz  आती थी . उन दिनों  मै हर उस चीज में भाग लेने की कोशिस करता जिसमे कुछ prize  मिलने की आशा होती . भइया के पास कुछ quiz  के सवाल पूछने जाने लगा . खैर उस quiz में कभी मुझे कोई prize नही मिला . हा उस पत्रिका के लिए मेरे दो दर्जन essay  जुरूर  चयनित  हुए .

एक रोज भैया ने पूछा किआगे क्या plan  है ? मैंने कहा मुझे भी ias की   prepration  करनी है , पर अभी  का Polytechnic का  exam  दिया है उसमे नाम आया है . वो बहुत हैरान हुए बोले Polytechnic के चक्कर में क्यू पड़े हो . सीधे आईएस की तैयारी क्यू नही करते . मैंने बोला side carrier  बनना चाहता हूँ ... सच में उन दिनों , समझ में नही आता था कि वास्तव में life  में करना क्या है . बहुत भटकाव की अवस्था थी . 
( जारी.....) 

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

Maila Anchal : by renu

 मैला आँचल 





  • फणीश्वर  नाथ रेणु  द्वारा रचित 1954 में PUBLISHED 
  • कथानक - बिहार के पूर्णिया जिला का मेरीगंज गावं 
  •  " इसमें फूल भी है शूल भी , धूल भी , गुलाब भी , कीचड़ भी चन्दन भी सुंदरता भी है , कुरूपता भी - मै  किसी से दामन  बचाकर निकल नहीं पाया " 
  • " अरे , जात -धरम ! फुलिया तू हमारी रानी है , तू हमारी जाति , तू ही धरम , सबकुछ ---" सहदेव मिसिर फुलिया से।  देह भोग के लिए है। तुलनीय गोदान की  सिलिया -मातादीन 
  • आंचलिक LANGUAGE वहां की संस्कृति को दर्शाता है।
  • लोक गीत , लोक उत्सव की बहुलता -बिदापत नाच , बिदेशिया , सदाब्रिज -सुरंगा की कथा, फगुआ गीत , बौडवा , चैती  , ' सिरवा पर्व ' , ' बधना पर्व ( संथाल ) , जाट - जट्टिन  ( वर्षा के लिए आयोजन ), बारहमासा , भकतिया ( मृदंग पर देवी का गीत )
  •  
  • " ऐसी मचाओ होरी हो, कनक भवन श्याम मचाओ होरी "  
  • अंधविस्वास - गणेशी की नानी डायन 
  • "भारत माता अब भी रो रही हैं बालदेव "  बावनदास  वजह दुलार चंद्र  कापरा जैसे डाकू स्मगलर लोग कटहा थाने का सिकेटरी हो गया है।  चुन्नी गोसाई , सोसलिस्ट पार्टी में चला जाता है 
  • बावनदास जैसा त्यागी आदमी की आत्मा -जलेबी और तारावती देवी की देह भोगने के लिए लालायित हो जाता है - इसीलिए मैला आँचल  में धूल है , कीचड़ है।  
  • ऊपरी INCOME की बात गोदान में भी है , यहां भी है - " देवनाथ मल्लिक सिर्फ ५ रूपया माहवारी पर बहाल  हुए थे।  लेकिन ऊपरी आमदनी ? तीन साल बीतते -२ असि  नब्बे बीघे धनहर जमीन के मालिक बन गए थे।  ऊपरी आमदनी ही असल आमदनी है।  
  • बेगारी - मारपीट - " मारो साले  को दस जूता " 
  • बेवजह की मुकदमेबाजी , रिश्वतबाजी 
  • " पुराने तहसीलदार ( विश्वनाथ ) यदि नागनाथ थे तो यह नया तहसीलदार-हरगौरी  सपनाथ है। " 
  •  " हुजूर , लड़की की जात बिना दवा -दारू के ही आराम हो जाती है। "  बूढ़ा - 
  • वर्णनात्मक शैली , कहीं कहीं पर  छोटे छोटे संवाद के माध्यम से कथानक आगे बढ़ता है 
  •   " साला दुसाध , घोड़ी पर चढ़ेगा ! " टहलू पासवान के गुरु को सिंह जी गिरा कर जुटे मारने लगे। जातिगत शोषण 
  • ममता के LETTER में उस समय  CITY के चित्र दिखलाया गया है -" महराज महता की बेटी जो पिछले साल दूध पीने आती थी और ताली बजा कर नाचती थी------पोलिस ने 'सिटी ' के एक पार्क में उसे कराहते हुए पाया--- फूलमतिया का बयान है - टेढ़ी नीम गली के पास एक मोटर गाड़ी रुक गयी और दो आदमियों ने पकडकर उसे मोटर में बिठा दिया --- बड़े बड़े बाबू लोग थे ! "   उस समय और आज के TIME में कोई बदलाव नही दिखता--- 
  • ' विदेशी WINE की दस दुकाने खुल गयी है ' 
  • अमलेश सिन्हा अपनी ही चचेरी बहन वीणा के पीछे हाथ धोकर पीछे पड़ गया 
  • मगला देवी - ' अबला नारी हर जगह अबला ही है।  रूप और जवानी ? … नही यह भी गलत  औरत होना चाहिए , रूप और उम्र की कोई कैद नही -- एक असहाय औरत देवता ने संरक्षण में भी सूख -चैन से नही सो सकती। मंगलादेवी के लिए जैसा घर वैसा बाहर - 
  • " अरे, कांग्रेसी राज है तो क्या जमीदारो को घोलकर पी जायेगा ?" हरगौरी 
  • संथाल टोली में मादल  बज रहा है - डा डिग्गा , डा डिग्गा  ! रि  रि  ता धिन ता !
  • " गरीबी और जहालत - इस रोग के दो कीटाणु है - डॉ प्रशांत 
  • घाघ की सूक्ति - मुसिन पूछे मुस से कहाँ के  रखबधन " 


रविवार, 11 अक्टूबर 2015

NOVEL Mahabhoj : BY Mannu bhandari


महाभोज 


  • 1979  में मन्नू भंडारी द्वारा रचित , 
  • रचनाकार ने अपने परिवेश के प्रति ऋण शोध के तौर पर लिखा है -
  • " घर में जब आग लगी तो। …… "  उस समय के समाज -राष्ट का स्पष्ट चित्र खीचने की आकांक्षा 
  • POLITICS , अपराध , MEDIA , POLICE की साठ -गाठ से किस तरह से लोकत्रांतिक मूल्य विघटित हुए है इसका सटीक वर्णन। 
  • " महाभोज " का अर्थ किसी की मौत पर दिए गए भोज  से होता है। इस NOVEL में बिसू  नामक  दलित की मौत  होती है। 
  • पर महाभोज उसकी मौत का न होकर , आजादी के बाद लोकत्रांत्रिक मूल्य , SOCIAL VALUE के विघटन का है।
  • INDIAN POLITICS का नग्न यथार्थ , राजनीति में जाति महत्व , 
  • राजनीति में अवसरवादिता ( राव , चौधरी ) , ELECTION में धन -बल का प्रयोग ( घरेलू कार्य योजना , सुकुल बाबू की बाद वाली सभा में रूपये और खाने के नाम पर भीड़ जुटाना )  , अयोग्य उम्मीदवार ( लखन ), पुलिसिया रॉब ( थानेदार ) , बयान लेने का दिखावा ( सक्सेना ) , मीडिया का बिकना ( मशाल के सम्पादक दत्ता बाबू  ) , बुद्धिजीवी वर्ग की  निष्क्रियता ( महेश बाबू ), दलित चेतना ( बिसू , बिंदा ) , शोषक वर्ग ( जोरावर सिंह ) , परजीवी वर्ग ( बिहारी भाई , काशी , पांडे जी ),  पदलोलुप नौकरशाह ( सिन्हा ) , विपक्ष की स्वार्थपूर्ण नीति ( सुकुल ) , ईमानदार राजनीति करने वाले का कोई मूल्य नही ( लोचन बाबू ) , सत्ता दल में की शक्ति एक व्यक्ति में , गैर लोकत्रांत्रिक ( दा साहब ) , 
  • संवाद बेहद चुस्त , चरम नाटकीयता की व्याप्ति , उचित गति में NOVEL आगे बढ़ता है।  
  • यथार्थ के चित्र होने के चलते नावेल में नकारात्मकता ज्यादा जगह दिखती है , इसके बावजूद , सक्सेना के माध्यम से एक आशा अभी जी जीवित है।  " अग्निलीक जो बिसू , बिंदा के बाद खत्म नही होती वरन सक्सेना में समा जाती है। 
  • लेखिका ने उन चिरकालिक मुद्दों को उठाया है जिससे नावेल की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी। 
  •   " सरोहा " गावं पर शहर से नियंत्रित 
  • "मशाल" , गोदान के " बिजली " से तुलनीय  
  • लोचन बाबू  , मैला आंचल के " बावनदास " से तुलनीय , दोनों ही आदर्शवादी पर मुख्य धारा से परित्यक्त 
  • गोदान के " राय साहब " मैला आंचल के " विश्वनाथ " और महाभोज के " जोरावर सिंह " में समता , तीनो ही जनता का शोषण कर रहे है बस स्वरूप अलग अलग है।  
  • हरिजनों को जलाये जाना का इशारा , नागार्जुन ने भी ऐसी ही INCIDENT पर " हरिजन गाथा " लिखते है।    



बुधवार, 7 अक्टूबर 2015

GODAN : A NOVEL BY PREMCHAND



गोदान


  • प्रेमचन्द्र द्वारा १९३६ में रचित , उनका अंतिम और MOST IMPORTANT NOVEL 
  • ग्रामीण संस्कृति , उत्सव , पर्व 
  • धार्मिक कुरीतियाँ , अशिक्षा , अन्धविश्वास 
  • महाजनी , उधार  लेने की प्रवत्ति 
  • ग्रामीण -शहर के मध्य का अंतर -गोबर की चेतना में बदलाव इसके चलते दातादीन को सिर्फ ७० रूपये देने की बात करता है 
  • परस्त्री गमन 
  • दलित चेतना -ब्राह्मण मातादीन को हरखू और चमारों  द्वारा हड्डी मुँह  में डालना 
  • बालमन का सूक्ष्म , सटीक चित्रण -रूपा और सोना के संवादों में 
  • JOINT FAMILY र का टूटना - गोबर को झुनिया का शहर ले जाना 
  • सास-बहू  का झगड़ा -झुनिया -धनिया 
  • उस समय की HEALTH सुविधाओं की कमी का जिक्र - धनिया के २ पुत्र बीमारी में मर गए 
  • तंखा -दलबदलू , दलाल वर्ग के प्रतिनिधि 
  • दहेज की समस्या - रायसाहब की बेटी का विवाह 
  • बेवजह की मुकदमेबाजी , कमीशनबाजी -राय साहब से खन्ना का कमीशन मांगना 
  • " मगर यह समझ लो कि  धन ने आज तक नारी के ह्रदय पर विजय नही पायी , और न कभी पायेगा।  "  मालती  का खन्ना को जबाब - प्रेम की व्याख्या 
  • मुहावरो का बहुलता से USE - अपना सोना खोटा तो सोनार  दोस , 
  • लोकगीत - हिया जरत रहत दिन रैन , आम की डरिया  कोयल बोले , तनिक न आवत चैन " होरी 
  • पूँजीवाद - जिंगरी सिंह जोर से हसा -तुम क्या कहते हो पंडित , क्या तब संसार बदल जायेगा ? कानून और न्याय उसका है , जिसके पास पैसा है। 
  • मुठी भर अनाज के लिए सिलिया -मातादीन में विवाद 
  • बाल विवाह , CHILD MARRIAGE 
  • बेमेल विवाह --नोहरी -भोला ( नोहरी ने मारे जूतों के भोला की चाँद गंजी कर दी.) मीनाक्षी ने दिग्विजय पर सटा सट हंटर जमाये।  
  • मरजाद - " खेती -बारी  बेचने की मै सलाह न दूंगी। कुछ नही है , मरजाद तो है। " दुलारी होरी से कहती है। धनियां -" यह तो गौरी महतो की भलमनसी है ; लेकिन हमें  भी तो अपने मरजाद का निबाह करना है। "  जरा सोच लेने दो महराज ! आज तक कुल में कभी ऐसा नही हुआ।  उसकी मरजाद भी तो रखना है। होरी का दातादीन से कथन जब वह रूपा का विवाह रामसेवक से करना चाहते थे। 
  • जवान रूपा का किसी लड़के से कोई RELATION  न बन जाये इसका भी डर होरी को है 
  • बेटा अपने पिता को लातो से मारता है वजह पिता ने बुड्ढे होने के बावजूद दूसरी शादी कर ली ( कामता -भोला प्रकरण )
  • नारी के मन का बहुत बारीकी से चित्रण - "नोहरी मर्दो को नचाने की कला जानती थी।  अपने जीवन में उसने यही विद्या सीखी थी। "
  • मिल मजदूर -हड़ताल की समस्या 
  • ह्दय परिवर्तन -गोबर का झुनिया के प्रति , खन्ना का गोविंदी के प्रति , मेहता का मालती के प्रति 
  • प्रेमचंद की परखी नजर का एक उदाहरन -" सिलिया जब सोना के घर रात में गयी तो उसे मथुरा ने रात में दबोचना चाहा " . मानव के चरित्र का जितना सटीक चित्रण गोदान में है उतना और कहाँ। मथुरा लम्पट न था फिर भी 
  • नारी परीक्षा नही प्रेम चाहती है - मालती मेहता से 
  • पीढ़ीगत अंतर - रायसाहब - रुद्र्पाल, होरी -गोबर 
  • " संकटों में ही हमारी आत्मा को जाग्रति मिलती है बुढ़ापे में कौन अपनी जवानी की भूलो पर दुखी नही होता " मिर्जा खुर्सेद के विचार , वेशाओ की नाटक मण्डली खोलना 
  • " जो अपना धरम पाले , वही  ब्राह्मण है , जो धरम से मुँह  मोड़े  , वही  चमार "- मातादीन के कथन में सामाजिक बदलाव की झलक 
  • गोदान में तात्कालिक भारत का सम्रग चित्र , देखा जा सकता है। 
  • सारा कथानक " मरजाद " यानि मर्यादा के परिधि में घूमता है , किसान टूट गया है फिर भी " मरजाद " के लिए विचलित है।  

रविवार, 27 सितंबर 2015

MISSION EKLAVYA


परहित सरिस धर्म नही भाई ....


तुलसी जी की इन पक्तियों का आशय यह है कि दुसरो का हित ही सबसे बड़ा धर्म है ..
HINDI  माध्यम से देने वाले मेधावी अक्सर ECONOMIC PROBLEM से दो चार होते है ...आप लोगो के लिए एक अच्छी खबर  है .....अगर आप गंभीरता से CIVIL SERVICE की तैयारी कर रहे है और आर्थिक तंगी से जूझ रहे है तो आपके लिए "मिशन एकलव्य" योजना दृष्टि COACHING की ओर से बढिया OPTION है , इसमें वह सबकुछ जिसकी सभी मेधावी को जरूरत होती है .. .. .मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत अच्छा लगा जान कर की कोई मदद के लिए सामने आया ... DELHI में कोचिंग से लोगो ने करोड़ो रूपये कमाए ..पर शायद ही किसी ने कभी किसी जरूरतमंद की HELP की हो .. 

आप कोशिस करे कि ज्यादा से ज्यादा लोगो तक इसे पहुचाये ..ध्यान रखियेगा कि समाज के हाशिये पर खड़े YOUTH को इसका लाभ मिल सके . मैंने ज्यादा DETAIL में नही पढ़ा है ..कोई अगर इसमें आवेदन कर रहा है या कर चूका है तो कृपया अपने विचार SHARE करे ..


ज्यादा जानकारी के लिए आप लिंक पर क्लिक करे ..
http://missioneklavya.com/

POSITION OF HINDI MEDIUM IN CIVIL SERVICES

बुधवार, 23 सितंबर 2015

SUCCESS TIPS BY NISHANT JAIN IAS 2015 ( RANK 13 )

मुझे किसी भी  सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE  में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेरणादायक है . आज उनके दिए TIPS  जिसे मैंने उनसे जुड़े विविध विडिओ और उनकी POST के आधार पर तैयार किया है .

  • समाज में सक्रिय रहिये , बंद कमरे में रह कर ज्यादा कुछ हासिल नही होता है। 
  • सरकारी स्कूल में पढ़ाई की है।  
  • ENGLISH से डरने की जरूरत नही है। 
  • हिंदी माध्यम से स्टूडेंट  किसी भी तरह के पूर्वाग्रह से बचे।   
  • SOCIAL SITES  पर सक्रिय रहिये।  
  • वैकल्पिक करियर जरूर रखिये 
  • तैयारी इतनी खामोशी  से करे कि  अपने परिवेश को भी पता न चलने दे। 
  • कर्म करे फल की इच्छा न करे।  
  • अनेकांतवाद यानि दूसरो के विचारों का आदर करें।  
  • हमेशा बड़ा सोचे। 
  • कमरे में बल्ब उंचाई पर लग कर ही ज्यादा LIGHT दे पाता है।  
  • संवेदनशील बने। 
  • सोचे SOCIETY  के लिए  क्या लिए क्या करना है। 
  • अपने कोर्स के आलावा पुस्तके जरूर पढ़े। अहा जिंदगी , कदंबनी जैसी MAGAZINE पढ़ कर अपनी सोच , समझ विकसित करे। 
  • किताबों सूची  
  • कुछ वक़्त POST OFFICE में भी कार्य किया है।  
  • हिंदी कविता लेखन और मंच पर कविता पाठ का शौक है।  
  • इसके पूर्व पहले प्रयास में PRE  में असफल हो गए थे।  
  • लोक सभा सचिवालय में हिंदी विभाग में कार्यरत थे।  
  • हिंदी विषय में , दिल्ली विश्वविद्यालय से M.FIL किया है।  
  • असफल होने के सपने भी आ जाते थे।  
  • बहुत अधिक घंटे पढ़ने की जरूरत नही है , बस  समझदारी की जरूरत है।  




मंगलवार, 22 सितंबर 2015

BHARTENDU MANDAL / भारतेंदु मंडल

भारतेंदु मंडल
  •   भारतेंदु हरिश्चंद के समय लेखक और कवियों का एक GROUP तैयार हो गया था जो आपस में साहित्य लेखन पर चर्चा , परिचर्चा करता था . इसे ही हिंदी साहित्य के इतिहास में भारतेंदु मंडल कहा जाता है . 
  • इसके MEMBER में भारतेंदु हरिश्चंद , प्रताप नारायण मिश्र , बालकृष्ण भट्ट , ठाकुर जगमोहन सिंह , अम्बिका चरण व्यास , राधा चरण गोस्वामी , बद्री नारायण चौधरी 'प्रेमघन ' आदि थे . 
  • आधुनिक हिंदी साहित्य के उत्थान में इन सभी ने महती ROLE निभाई . 
  • किसी ने कविता ने तो किसी ने ESSAY , किसी ने DRAMA को क्रेंद में रख कर उस विधा का उन्नयन किया . 
  • इसी मंडल से ही ' समस्या पूर्ति " नामक विधा को गति मिली जिसमे POETS  को किसी दिए गये विषय पर / पंक्ति को COMPLETE करना होता था . जैसे -  " चित चैन की चादनी चाह भरी , चर्चा चलिबे  की चलियेया  न " प्रेमघन की प्रसिद्ध  समस्या पूर्ति है . 
  • "  यह ब्यारि तबै बदलैगी कछू, पपिहा जब पूछिहै पीव कहाँ? '' प्रताप नारायण मिश्र की  समस्या पूर्ति है . 
  • इन सभी ने बोल चाल की ब्रज भाषा का USE किया है . 
  • इस समय से PROSE में खड़ी बोली पर प्रयोग होने लगा था . 
  • WRITING SKILL

सोमवार, 21 सितंबर 2015

CALL TO ACTION

कॉल टू एक्शन सम्मेलन(27-28 अगस्त 2015) यूनाइटेड नेशनल जनरल असेंबली के दौरान आयोजित होने वाली यूनाइटेड नेशन समिट टू अडॉप्ट दी पोस्ट 2015 डेवलपमेंट एजेंडा-2015 का प्रारम्भिक सम्मेलन था। इसका आयोजन दिल्ली में किया गया। भागीदार- 1.स्वास्थ्य एवम् परिवार कल्याण मंत्रालय( भारत सरकार) 2. स्वास्थ्य मंत्रालय(इथियोपिया सरकार) 3.यूनिसेफ 4.बिल और मेलिंडा गेट फाउंडेशन 5.टाटा ट्रस्ट 6.यूएसएआईडी इसका मुख्य उद्देश्य मातृत्व तथा शिशु मृत्यु दर को कम करना था। इसके लिए सभी राष्ट्रों के साथ भागीदारी को बढ़ाना, तकनीकों तथा प्रौधोगिकी का परस्पर एक दूसरे के साथ मिलकर प्रयोग करना। इसमें भारत ने सभी राष्ट्रों को सहयोग करने के लिए कहा है भारत इससे पहले अपनी टेक्नोलॉजी को सार्क राष्ट्रों के साथ भी साझा कर चुका है। सहस्र विकास से सतत विकास की तरफ एक बढ़ता कदम है। इस सम्बन्ध में भारत द्वारा चलाये गए कार्यक्रम- 1.मिशन इंद्रधनुष 2.कायाकल्प योजना 3.विशेष नवजात देखभाल यूनिट (special newborn care unit) 4.मातृत्व तथा शिशु स्वास्थ्य ट्रैकिंग सिस्टम 5. स्वच्छ भारत मिशन 6.जननी सुरक्षा योजना 7.राष्ट्रिय स्वास्थ्य मिशन सम्मेलन में प्रमुख समझौते- 1.कॉर्पोरेट भागेदारी 2.स्वास्थ्य वित पोषण 3.नवाचार 4. समाजिक दायित्व 5.पोषण 6.सफाई के क्षेत्र में विस्तृत चर्चा की गई।
PART: 2 हरी सिगरेट वाला आदमी

रविवार, 20 सितंबर 2015

सरस्वती पत्रिका

सरस्वती पत्रिका 
  • सन १९०० में नागरी प्रचारणी सभा , काशी की सहायता से प्रकाशन 
  • संपादक - श्याम सुंदर दास , किशोरी लाल गोस्वामी , कार्तिक प्रसाद खत्री 
  • AIM - HINDI भाषा का परिमार्जन 
  • १९०३ से इसका सम्पादन - आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी  
  • इस पत्रिका में विविध विषयो यथा जीवन चरित् , प्रकति , यात्रा वर्णन , फोटोग्राफी , विज्ञानं के बारे में भी लेख लिखने को प्रोत्साहन दिया गया।  
  • दिवेदी जी ब्रज भाषा के बजाय खड़ी बोली पर गद्य और पद्य में लिखने पर जोर दिया।  
  • भाषा का परिष्कार तथा मानकता पर जोर दिया। 
  • हिंदी की शब्दावली निर्माण पर जोर दिया। 
  • अरबी , फ़ारसी , उर्दू के प्रचलित शब्दों को HINDI LITERATURE  में शामिल करने से कोई संकोच नही किया।  
  • भारतेंदु युग में जिन नई विधाओ की हिंदी साहित्य में शुरुआत हो चुकी थी उन्हें इस काल  में " सरस्वती " के माध्यम से विकास के नई भूमि मिली।  
  • पण्डिताऊपन तथा गँवारूपन से खड़ी बोली को मुक्त कर इसे MORDERN संवेदना को व्यक्त करने सक्षम बनाया।  
  • बैगर कोचिंग कैसे सफलता पाये ?

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

भारतेंदु युग की 'नए चाल की हिंदी'


भारतेंदु युग की 'नए चाल की हिंदी'


भारतेंदु युग को संभवत आधुनिक युग का प्रवेश द्वार भी कह सकते है,यह एक तरह से प्राचीन तथा नवीन का संधि काल था। भारतेंदु ने अपने समय की परिस्थितयों का यथार्थ चित्रण किया है।यहाँ साहित्य की भाषा, शिल्प,प्रवृतियां तथा चिंतन में वृहद बदलाव देखने को मिला।1873 में भारतेंदु जी ने कहा था की 'हिंदी नई चाल से चली है'।


1. हिंदी में खड़ी बोली का प्रयोग- मध्यकालीन युग में साहित्य की भाषा के रूप में अवधी, बृज भाषा तथा मैथिलि का प्रयोग होता था वहीं आधुनिक साहित्य या भारतेंदु युग में खड़ी बोली साहित्य में समाती गई।केवल गद्द में ही नही पद्द में भी खड़ी बोली का विकास प्रारम्भ हो गया।उनके कहने का अर्थ था की हिंदी साहित्य का स्वरूप अब निरंतर परिवर्तन की ओर बढ़ चला है।

2. जहाँ मध्यकालीन साहित्य का विषय प्रकृति, राजा, भगवान या अलौकिक संसार था वही भारतेंदु युग में साहित्य के केंद्र में मानव तथा मानवता रहा बाकि विषय मानो हाशिये पर चले गए थे।
जैसे भारतेंदु मंडल के कवि आयोद्धा सिंह द्वारा 'प्रिय प्रवास' खड़ी बोली का FIRST महाकाव्य माना जाता है। भारतेंदु की पत्रिका कवि वाचन खड़ी बोली में नवीन चेतना के प्रसार का कार्य कर रही थी।

3.NEW विषय राष्ट्रीयता की भावना तथा देशभक्ति साहित्य रचनाओं के CENTER  रहे।

 
4. हिंदी का USE साहित्य में सामाजिक कुरीतयों तथा उपनिवेशिक शासन के विरुद्ध योद्धा के रूप में किया जा रहा था।

5.. हिंदी में अब ज्ञान -विज्ञान का प्रसार बढ़ा था।
 6. साहित्य का समाजीकरण हो रहा था तथा समाज चेतना का विस्तार हो रहा था। जैसे भारतेंदु का नाटक-नील देवी, भारत दुर्दशा 7.नारी उत्थान तथा दलित जीवन आदि भी इस समय साहित्य के केंद्र में थे।
आईएएस के लिए सही कोचिंग का चुनाव कैसे करे ?
 
इस तरह खड़ी बोली तथा परिवर्तित विधाएँ तथा चेतनाएं आधुनिकता के साथ साथ भारतीय साहित्य में में प्रवेश कर गयी।हिंदी में आ रहे इन्ही परिवर्तनों के आधार पर भारतेंदु जी हिंदी के विकास को 'हिंदी की नई चाल' के नाम से उद्घाटित करते हैं।

fort william college/ फोर्ट विलियम कॉलेज

फोर्ट विलियम कॉलेज 

  • १८०० में लार्ड वेलेजली द्वारा स्थापित 
  • अंग्रेजो को INDIAN LANGUAGE  के ज्ञान पाने में सहायता हेतु 
  • प्रशासन , कानून , तथा खड़ी बोली के बारे में शिक्षा दी जाती थी। 
  • कर्मचारियों की नैतिक दशा सुधारना , देश की भाषा , रीति -रिवाज से परिचित करना , उन्हें ADMINISTRATION में कुशल बनाना इसका AIM  था 
  • कंपनी  भाषा नीति जोकि  फ़ारसी पर आधारित थी , अब हिंदी को IMPORTANCE देने लगी थी। 
  • १८२५ में विलियम प्राइस ( हिंदी विभाग के प्रमुख ) ने पहली बार हिंदी भाषा  को हिंदुस्तानी से अलग एक प्रमुख भाषा के तौर पर स्वीकारा।  
  • १८२६ में इससे जुड़े प. गंगा प्रसाद शुक्ल ने हिंदी भाषा का एक शब्दकोष तैयार किया।  
  • १८०७ में बाइबिल का हिंदी अनुवाद प्रकाशित हुआ।  
  • १९५४ में डलहौजी के समय इसे CLOSE कर दिया गया। 
  • उल्लेखनीय है कि हिंदी के प्रारंभिक विकास में , इस कॉलेज ने महती भूमिका निभाई।  
  • एकांतवास का महत्व 

रविवार, 13 सितंबर 2015

some ethical terms

वस्तुनिष्टता : किसी भी तरह के पूर्वाग्रह से परे जा कर निर्णय / चयन करना ही वस्तुनिष्टता है .
यथा : एक महिला पुलिस अधिकारी , किसी पुरुष अपराधी को अगर मात्र उसके पुरुष होने से ज्यादा कड़ा रुख अपनाती है क्युकि उसे पहले से लगता है कि पुरुष अपराधी स्वभाव के होते है तो यहाँ पर महिला की वस्तुनिष्टता के बजाय आत्म्निष्टिता हावी है जोकि प्रशासन में स्वीकार्य नही है .
सत्यनिष्ठा : किसी भी परिस्थिति में अपने नैतिक निर्णय पर टिके रहना . किसी तरह के दवाब में निर्णय न बदलना .
यथा : अगर आप सत्यनिष्ट व्यक्ति है तो आप उस समय में जब आपको कोई देख नही रहा है तब भी आप किसी तरह के गलत कार्य नही करते है .
शिष्टाचार : वे मूल्य जो हमे अच्छे और बुरे में , सही व गलत में फर्क करना सिखाते है . यह व्यक्ति सापेक्ष होते है .
यथा : ईमानदारी ,
नैतिक दुविधा : एक ऐसी परिस्थिति जिसमे दो विकल्प में एक को अपने बनाये नैतिक आधार पर चुनना हो . किसी को भी चुनने पर दुसरे विकल्प से उत्पन्न दुविधा .
यथा : एक भूखे व्यक्ति द्वारा किसी दुकान से खाने के लिए चोरी करने के अपराध पर निर्णय देना . हमे पता है कि उसने चोरी करके के अपराध किया है पर क्या पता उसकी क्या मजबूरी रही हो . इस तरह के केस में सजा सुनते वक्त कोई भी नैतिक व्यक्ति दुविधा में पड़ जायेगा .
मूल्य : ऐसे गुणों का समुच्य है जिन्हें हम जन्म से , परिवार से , समाज से अर्जित करते है यह एक प्रकार से हमारी मान्यताओ को दिखलाते है . यह सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों तरह के हो सकते है . वास्तव में यह व्यक्ति सापेक्ष होते है .
यथा : नाजी सेना द्वारा यहूदीयों का जनसंहार किया जाना उनके मूल्यों से चलते उन्हें अनैतिक नही लगता था . उस सेना के मूल्य ही ऐसे थे जिसके चलते वह ऐसे कृत्य करते थे .

गुरुवार, 10 सितंबर 2015

Payment Bank


भुगतान बैंक भुगतान बैंक में बैंकिंग प्रणाली की सभी विशेषतायें नही होती।एक अधिकृत भुगतान बैंक केवल जमाये स्वीकार( केवल चालू खाता तथा बचत खाता)करता है तथा पैसे भेजने में मदद करता है। ये कभी भी उधार की सुविधा प्रदान नही करता है।इन बैंको की स्थापना भारत में वित्तीय समावेशन को बढ़ाने के लिए की गई है । इसका प्रमुख लक्ष्य स्थानांतरित श्रमिक तथा असंगठित समूह के कर्मचारियों छोटे व्यापारी तथा निम्न आय वाले लोग हैं। नचिकेत मोर कमेटी की अनुसंशाओं पर भुगतान बैंको की स्थापना का निर्णय लिया गया। नियम- 1.न्यूनतम पूंजी -100 करोड़ रुपए 2.प्रथम 5 वर्षों के लिए प्रवर्तकों का हिस्सा कम से कम 40% हो,10 वर्षो तक 30%तथा 12 वर्षों तक 26%हो 3.निजी बैंको पर लागू विदेशी प्रत्यक्ष निवेश से सम्बंधित नियम समान रूप से लागू 4.वोट के अधिकार का प्रयोग से सम्बंधित नियम आर बी आई द्वारा नियमित किये जाते है। 5. 5% से अधिक के किसी भी अधिग्रहण में आर बी आई की अनुमति अनिवार्य 6.डायरेक्टर की नियुक्ति आर बी आई के दिशा निर्देश के अनुसार की जायेगी। 7.ये बिल स्वीकार कर सकता है। 8. ये गैर बैंकिंग गतिविधियों के लिए सहायक कंपनी नही रख सकते। 9. भुगतान बैंकक ग्राहक से 1 लाख से अधिक जमा स्वीकार नही कर सकते। 10.इन्हें 'भुगतान बैंक' शब्द का प्रयोग करना अनिवार्य है ताकि ये अन्य बैंको से भिन्न प्रतीत हों। 11. बैंक डेबिट कार्ड जारी कर सकते है लेकिन क्रेडिट कार्ड नही। 12. भुगतान बैंक को सीआरआर तथा एसएलआर को बनाये रखना होता है अन्य सभी बैंको की तरह। 13. भुगतान बैंक किसी व्यापारिक बैंक के सहायक के रूप में हो सकते है

दो शब्द आधी आबादी के नाम

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