आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
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भीड़ का हिस्सा न बने ।
प्रिय दोस्तों, काफी समय बाद एक आपके लिहाज से एक महत्वपूर्ण पोस्ट करने जा रहा हूँ । वैसे पोस्ट में अपनी ही बात है पर वह आपके भी काफी काम की है ।
टॉपिक से ही पता चल रहा होगा कि मसला क्या है । मैं शुरू से इस बात पर जोर देता रहा कि हमेशा अपने आप को विशिष्ट माने और इस बात का अपने भीतर attitude भी रखें । लीक से हट कर चले, सोचे और करें बस शर्त यह है कि आप में इतनी समझ होनी चाहिए कि आप कभी भी गलत नही करेंगे ।
आज के समय भेड़ चाल बढ़ती ही जा रही है । आप तमाम लोगों से मिले, बात करे और यहाँ तक कि आप उनसे प्रभावित भी हो जाये पर अनोखापन मिलना काफी दुर्लभ है वजह विचार में नवीनता व अनोखापन तभी आएगा जब आप नई नई किताबों को पढ़ने के साथ साथ चिंतन करने की आदत डाले। चिंतन व मनन की आदत ही आपको भेड़ चाल से रोक सकेगी । जीवन का उद्देश्य सिर्फ स्कूली शिक्षा में दक्षता और एक अदद सरकारी नौकरी नही हो सकता । हो सकता है कि आप हमेशा सफल होते रहे और टॉप करते रहे और आप ने सब हासिल कर लिया पर एक दिन , हाँ एक विशेष दिन आपको यह अहसास हो कि आप में और दूसरों में कोई फर्क नही है ।
बस इतना ही, बाकि टॉपिक असीम है और वक़्त कम । अंत रूसो की महान पंक्ति से करना चाहता हूँ कि व्यक्ति स्वत्रंत पैदा होता है परन्तु सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा रहता है । आशय समझ रहे है न __
आशीष , उन्नाव
दिल है कि मानता नही ।
इन दिनों , मैं हिंदी भाषी क्षेत्र में नही रहता हूँ, इसके बावजूद कोई साहित्य का विशेषांक 17 साल बाद आये तो कैसे भी करके उसको हासिल कर ही लेता हूँ । इंडिया टुडे के शुरू के कुछ विशेषांक , किसी कबाड़ी वाले के ठेले से खरीदे थे , शायद अभी भी पैतृक घर के किसी कोने में पड़े हो । उन दिनों जब मैं ट्यूशन पढ़ाया करता था तो कबाड़ी वाले के ठेले अक्सर मेरे लिए काफी रूचि का विषय होते थे कई बार उनके कुछ पुरानी खाली डायरी, नावेल, सरिता, कादम्बनी आदि के अंक किलो के हिसाब से खरीद लेता था । घर में कुछ रहा हो या न रहा हो जब से मैं बड़ा हुआ किताबों का भण्डार लगा रहा तमाम कॉमिक्स,लुगदी साहित्य और न जाने क्या क्या । अक्सर घरों में दीवाली, होली में साफ सफाई के दौरान पुरानी किताबें कबाड़ समझ कर बेच दी जाती है , आप उनसे बचना , क्योंकि किताबें आपके घर की हैसियत भले न बताये पर आपके वक्तित्व का पता जरूर बताती है ।
आशीष, उन्नाव ।
नीरज मुसाफिर की दो किताबे
दो किताबें और आ गयी । अब लग रहा कि काफी लोड हो गया है । अब जब तक सारा खत्म न हो जाये तब तक कोई नया आर्डर नही ।
आज जो किताबे आई है वो यात्रा विवरण है । नीरज जी के बारे में अभी हाल में ही सुना था फेसबुक पर ।
दुनिया में विरला ही कोई होगा जिसे घूमना पसंद न हो । पर यायावरी करना सबके बस की बात नही । जरूरी नही कि आपके पास बहुत पैसा हो तो घूम सको। ये किताबे कम पैसे में घूमने का विवरण देती है । एक में तो सायकल से ही घूमने का विवरण है ।
समय मिलने पर , मैं भी घूमने का प्लान बना ही लेता हूँ पर अभी तक पुरे मन के साथ नही घूम सका हूँ, कुछ प्रतिबद्धता है ।
भारत सरकार, अपने कर्मचारी को हर 4 साल में भारत घूमने का ख़र्चा देती है (LTC)।
मेरी एक लैप्स हो गयी निकल ही न पायाअब जब भी निकलूंगा तो एक बार में ही सब खत्म कर दूंगा पता नही जिन्दगीं की दौड़ भाग कब खत्म होगी ।
पुष्पेश पंत जी की एक बुक
पहले पहल इनके लेख किसी पेपर में पढ़े थे । बहुत अच्छे लगे थे । फिर इन्हें एक रोज शुक्रवार पत्रिका में कढ़ी के बारे बताते पढ़ा तो चौक गया , लगा कि ir का एक्सपर्ट आदमी ये क्या करने लगा पर कुछ लोग बहुआयामी पतिभा के धनी होते है । पंत जी का लेखन भी बहुआयामी है ।
ये किताब मैंने जून 17 में अमेज़न से ली थी । बुक के आर्डर में भी एक बवाल हो गया था सोचा था उस बवाल पर अलग से पोस्ट लिखूंगा पर वक़्त न मिला । आज जिक्र हुआ तो कुछ बता देता हूँ दरअसल ये बुक का प्राइस 125 रूपये था और डिलीवरी चार्ज 175 रूपये, जबकि मैंने कई बुक एक साथ ली थी ताकि फ्री डिलेवरी मिले । जब आर्डर दिया था तब अमेज़न ने फ्री डिलेवरी दिखाया था ।
मैंने इसके बिल को भी सभाल कर रखा था ताकि अपने तमाम पाठको को अमेज़न की लूट दिखा सकूँ वो किस तरह से ठगते है ।
खैर , मेरी प्रवत्ति तो 10 रूपये भी बर्बाद न करने की है यहाँ तो बात 175 की थी। यह तो वही मसल हो गयी 9 की लकड़ी और 90 रूपये चिराई । अब ज्यादा विस्तार में न बताने का वक़्त नही है बस अंत में हुआ ये कि मुझे सेलर ने सम्मानपूर्वक 175 रूपये का चेक भेज दिया साथ में यह आग्रह कि उसे मैं अमेज़न पर 5 स्टार दे दू । गनीमत यह है उसका नाम नही बता रहा हूँ यही काफी है ।
अब पुस्तक के बारे में।कुछ पुस्तके होती सरल है पर आप चाह कर भी तेजी से नही पढ़ सकते वजह उनमे ज्ञान दबा दबा कर भरा जाता है।इस पुस्तक में बहुत से कांसेप्ट है जो बेहद सरलता से समझाये गए है,
मजा आ गया पढ़ कर , यह अलग बात है देखने में यह बुक बेहद पतली है पर इसको पढ़ने में काफी वक़्त लग गया । कम से कम एक दर्जन बैठक में खत्म हो पायी है । यह पुस्तक सीधा सीधा upsc के mains के gs के कोर्स से जुडी है पर आप इसे शौकिया तौर भी पढ़ सकते है ।
आशीष , उन्नाव ।
मुझे किसी भी सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेर...