BOOKS

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

how to double farmers income ?


किसानों की आय कैसे दोगुनी होगी ?

देश की अर्थव्यस्था में कृषि का बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। पिछले कुछ वर्षो से देश का किसान अपनी फसल की लागत भी निकल नहीं पा रहा है। इसी समस्या से निपटने के लिए सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिल सके , इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का उपाय किया गया है। जरूरत है इस योजना के प्रभावी क्रियान्वन तथा विस्तार की। देश के सभी हिस्सों में यह लागु नहीं है साथ ही कई महत्वपूर्ण फसलों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। दूसरी प्रमुख समस्या बिचौलियों की है। सरकार ने इससे निपटने के लिए ई मंडी और ई रकम  जैसे उपाय किये है ताकि किसान , सीधे अपनी फसल बेच सके और  उनको सही दाम मिल सके। भारत में अभी बड़ी मात्रा में भंडारण हेतु गोदामों , कोल्ड स्टोर आदि की कमी है , जिसके चलते किसानों की फसल का भण्डारण न हो पाता है और उसे फसल कटने के समय ही अपनी फसल को कम दाम पर बेचने के लिए बाध्य होना पड़ता है। सरकार को इस दिशा में गावं के स्तर पर छोटे छोटे गोदाम बनाने पर जोर देना चाहिए। उक्त उपायों से 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।  

आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

शनिवार, 13 जनवरी 2018

Supreme court issue

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा अपनी ही संस्था को लेकर सवाल खड़े किये गए हैं।उन्होंने सही किया या गलत इसको लेकर अलग अलग राय हैं । मेरे विचार से हमारे देश में सर्वोच्च स्थान संविधान का है। सुप्रीम कोर्ट  संविधान का संरक्षक है । उसी संविधान के हवाले से मैं एक बात की ओर ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ। संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत में ही कहा गया है ' हम भारत के लोग ....' अर्थात जनता ही देश में सर्वोच्च है। इस लिहाज से जनता के समक्ष अपनी बात रखने में कोई बुराई नही है । भारत की न्यायपालिका के कामकाज पर दबे स्वरों में ही सही पर सवाल तो उठते रहे हैं । भाई भतीजावाद के आरोप भी समय समय पर उठते रहे है। ऐसा कई खबरों में आ चूका है कि देश के कुछ विशिष्ट गिने चुने परिवारों के सदस्य ही इस संस्था में चुने जाते हैं।ऐसे में अगर कुछ लोग साहस दिखाते हुए, खामियों को जनता के समक्ष  रखते हैं तो उन पर किसी तरह से प्रश्न चिन्ह नहीं लगाना चाहिये। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि उन साहसी लोगों ने अपनी बात पहले चिठ्ठी लिख कर रखी थी ताकि संस्थान की छवि बनी रहे जब उस पर किसी तरह का रुख न मिला तब जाकर ही उनको अपनी बात का खुलासा मिडिया के समक्ष रखना पड़ा। देखा जाय तो इस सारे प्रकरण से जनता के समक्ष , इस संस्थान की जबाबदेही बढ़ी ही है। प्रेमचंद ने पंचो को परमेश्वर की संज्ञा दी थी। वर्तमान में भी सभी पंचो को अपनी गरिमा बनाये रखने के लिए , किसी तरह की राजनीति से परे , निष्पक्षता से अपनी दायित्वों का निर्वहन पूर्ण निष्ठा के साथ करना चाहिए।

आशीष कुमार
उन्नाव उत्तर प्रदेश।

सोमवार, 8 जनवरी 2018

Food processing is key to improve income of farmers

आलू से सोना बनाने वाली मशीन कहाँ  है ?

पिछले साल यह मशीन काफी चर्चा में रही थी , काश यह मशीन होती तो उत्तर प्रदेश के तमाम आलू उत्पादकों को अपनी फसल , लखनऊ के सड़को पर न डालनी पड़ती । इनके उत्पादन में कितना पानी, खाद, मेहनत लगी होगी, यह एक किसान ही समझ सकता है । इन दिनों आवारा जानवरों से अपनी फसल बचाना सबसे मेहनत का काम है । रात दिन एक करके अपनी फसल तैयार करना, उनको मिट्टी से बाहर निकलना पड़ता है , उसके बाद अगर कोई अपनी फसल , यूँ ही बर्बाद तो न करेगा ।
बहुत कष्ट होता है जब ऐसी घटना सुनने में आती है, आखिर इन लोगों की बात कौन समझेगा । किसानो की आय दोगुनी करने का लक्ष्य 2022 तक रखा गया है।  यह कैसे पूरा होगा पता नही । कल आलू खरीदने गया तो 20 रूपये किलो मिली, जबकि किसानों को 5 रूपये की भी कीमत नही मिल पा रही है । ऐसी प्रणाली में उत्पादक के साथ साथ उपभोक्ता भी परेसान है । खाद्य प्रसंस्करण की काफी बात हो रही है इन दिनों।अगर इन आलू से चिप्स बना दिए जाये तो आलू की फसल का मूल्यवर्धन कई गुना बढ़ जायेगा। चिप्स लगभग 150 से 200 रूपये किलो बिकता है अगर इसका निर्यात किया जाये तो यह 1000 रूपये किलो तक पहुँच सकता है। निर्यात से विदेशी मुद्रा की आवक होगी , जिसका उपयोग सरकार, विवध सामाजिक योजनाओं में कर सकती है । इस तरह से ही आलू से सोना बन सकता है , न कि चुनावी सभा में भाषण देने से ।

आशीष कुमार
उन्नाव, उत्तर प्रदेश।

शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

Inequality



कभी कभी जब आप यह सोचे कि आजादी के बाद हमने क्या खोया और क्या पाया तो बहुत हताशा होती है। ऑक्सफेम की विषमता पर जो रिपोर्ट आती है उससे पता चलता है कि आजादी के समय अमीर और गरीब में जो फासला था वह आज के मुकाबले काफी कम था। इसका सीधा और साफ मतलब यह निकलता है कि पिछले 70 सालों में खूब विकास तो जरूर किया पर विकास के लाभ तो समावेशी तरीके से वितरित न कर पाए। एक और जहां साधन -सपन्न लोग ने तेजी से प्रगति की तो दूसरी और समाज के हाशिये पर खड़े लोग , बुनियादी जरूरतों के लिए भी संघर्षरत रहे। हम केवल भ्र्ष्टाचार को ही विषमता के लिए दोष नहीं दे सकते है। प्रगति के लिए बुनियादी जरूरत के लिए शिक्षा , स्वास्थ्य , शुद्ध पेयजल , आवास को माना गया है। हमें केवल यह नहीं देखना चाहिए कि ये बुनियादी जरुरते कितने को मिल रही है , हमें यह भी देखना होगा कि इन जरूरतों की गुणवत्ता क्या है। शिक्षा , वह भी है जो सरकारी पाठशाला में दी जाती है , शिक्षा महंगे कान्वेंट स्कूल में भी दी जाती है। पीने का पानी नदी , तालाब , कुआँ , पक्का कुंआ , नल आदि में भी मिलता है और पिया जाता है दूसरी ओर आधुनिक तकनीक पर आधारित आर ओ से भी शुद्ध कर पिया जाता है। इलाज , सरकारी अस्पताल में भी होता है तो दूसरी ओर फोर्टिस , मैक्स , अपोलो जैसे प्राइवेट अस्पतालों में भी। 

कुछ शहरों में  वायु प्रदूषण बहुत ज्यादा बढ़ गया है। क्या लगता है कि इसकी मार सब पर बराबर पड़ रही है नहीं , सक्षम लोग एयर शुद्ध करने वाली मशीन लगा रहे है। सक्षम लोग , महंगी कार से चलते है , जिसके अदंर वो साफ सुथरे रहते है पर बाइक से , साइकिल से या पैदल चलने वाले लोगों का क्या। झुग्गी झोपडी में रहने वालो का क्या। विकास की  कीमत आखिर कब तक गरीब , शोषित वर्ग चुकाता रहेगा। हम अक्सर समाचार में सुनते है कि अमुक ने इतने लाख रूपये की रिश्वत ली है , फलां अधिकारी ने इतने लाख की सम्पत्ति जुटा ली पर सोचते है कि इस तरह के लोगों की वजह से ही देश पिछड़ रहा है पर बेस इरोजन प्रॉफिट शिफ्टिंग, राउंड ट्रिपिंग  जैसे जटिल किंतु सुरक्षित तरीके से अरबों , खरबों रूपये की कर चोरी करना , अपने लाभ को टैक्स हैवन देशों में भेजने वाले बड़े कॉर्पोरेट घरानों  , सेलब्रिटी ( पनामा पेपर के अनुसार ) आदि के बारे आम जनता को ज्यादा न तो पता चलता है और न ही फर्क पड़ता है। कोई दो जून की रोटी को तरस रहा है तो कोई अपने परिवार के हर मेंबर के लिए फरारी , ऑडी खरीद रहा है या खरीदने के लिए संपत्ति जुटाने में व्यस्त है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या है क्लाइमेट चेंज या फिर ग्लोबल वार्मिंग। चाहे गर्मी बढ़े या सर्दी , उनके लिए ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। सोचें तो जिन्हें सर पर छत मोहताज नहीं , सोचे वो जिन्हें बदन पर ढकने के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।   








  

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

Consumer Protection

उपभोक्ता की सजगता सबसे अहम 

 भारत में उपभोक्ता  के संरक्षण  के अनुरूप विविध प्रावधान किये गए है।  इस भावना के अनुरूप ही वस्तु एवं सेवा कर के तहत मुनाफखोरी रोकने के लिए , नेशनल एंटी प्रोफिटिरिंग अथॉरिटी का गठन भी किया है। जो कर दरों में कमी का लाभ , निर्माता की जगह , उपभोक्ता तक पहुंच को सुनिश्चित करता है।  रियल स्टेट सेक्टर में रेरा लाया गया है। इसके बावजूद आम जनता को लूटने व ठगने का दौर जारी है।   आम जनता द्वारा चिकित्सा पर अपनी गाढ़ी कमाई, उपभोक्ता जागरूकता के अभाव के  चलते  बर्बाद हो रही है। दवा के नाम पर तरह तरह से ठगी की जा रही है। नियम से किसी भी दवा को पूरी स्ट्रिप के साथ बेचा जाना चाहिए ताकि हमें पता चल सके कि दवा के दाम , एक्सपायरी व कंटेंट आदि  क्या है।   विदेशों में  ऐसा ही  होता है। भारत में प्रायः 1 गोली , दो गोली खरीदने व बेचने का चलन है। एक आम उपभोक्ता को इससे बचना चाहिए। डॉक्टरों  को कैपिटल लेटर में दवा लिखने के निर्देश है पर इसका अनुपालन शायद ही कोई डॉक्टर करता हो। जैसा कि कहा गया है  ज्ञान ही शक्ति है , बाजारवाद के दौर में उपभोक्ता की सजगता , सतर्कता ही उसकी शक्ति है। उसे अपने अधिकारों के प्रति हमेशा जागरूक व सजग रहना चाहिए।    

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

Year 2017: An important year of Indian Economic History


वर्ष 2017 पर एक नजर 


वर्ष 2017 भारत के आर्थिक इतिहास में काफी महत्वपूर्ण माना जायेगा।  इस साल के शुरआत में देश विमुद्रीकरण के चलते नकदी की कमी से जूझ रहा था , जिसके चलते असंगठित क्षेत्र के कारोबारी काफी हलकान हुए। जैसा कि शंकर आचार्य ने अपने लेख ( 26 दिसंबर -17 ) को लिखा कि कानपुर , तिरुपुर , लुधियाना जैसे महत्वपूर्ण बिजनेस  हब में इसकी मार सबसे ज्यादा  देखी गयी।   मई और अप्रैल में जब देश में पर्याप्त नगदी हो गयी , एक बार फिर उन्हें बड़े संस्थागत बदलाव की कीमत चुकानी पड़ी।  1 जुलाई 2017 से वस्तु एवं सेवा कर लागु होने से काफी अफरा तफरी मच गयी। हालांकि सरकार ने अपने स्तर से हमेशा ही कारोबारियों की मदद करने के लिए तैयार दिखी। इसका बड़ा और सटीक उदाहरण हम विश्व बैंक द्वारा ईज ऑफ़ डूइंग बिजिनेस रैंकिंग में देख सकते है , जिसमे सरकार ने 30 स्थानों का महत्वपूर्ण सुधार किया। कारोबार की दिशा और दशा जानने के लिए , हम सकल घरेलू उत्पाद में परिवर्तन को भी ले सकते है। भारत ने अपनी पहली तिमाही में अनुमान से कही नीचे वृद्धि दर हासिल की , उसके बाद में थोड़ा सा सुधार हुआ। सार रूप में यह कहा जा सकता है कि इस  साल भारत के कारोबारियों को विविध संस्थागत बदलाव की कीमत चुकानी पड़ी है और उनके  सकल लाभ में  काफी गिरावट आयी है। नए साल में आशा की  जानी चाहिए कि पिछले साल के विविध बदलाव , एक व्यवस्थित रूप में स्थिर होकर , देश की अर्थव्यवस्था की सुढृढ़ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।   

आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

रविवार, 24 दिसंबर 2017

Never became part of Crowd

भीड़ का  हिस्सा न बने ।

प्रिय दोस्तों, काफी समय बाद एक आपके लिहाज से एक महत्वपूर्ण पोस्ट करने जा रहा हूँ । वैसे पोस्ट में अपनी ही बात है पर वह आपके भी काफी काम की है ।

टॉपिक से ही पता चल रहा होगा कि मसला क्या है । मैं शुरू से इस बात पर जोर देता रहा कि हमेशा  अपने आप को विशिष्ट माने और इस बात का अपने भीतर attitude भी रखें । लीक से हट कर चले, सोचे और करें बस शर्त यह है कि आप में इतनी समझ होनी चाहिए कि आप कभी भी गलत नही करेंगे ।

आज के समय भेड़ चाल बढ़ती ही जा रही है । आप तमाम लोगों से मिले, बात करे और यहाँ तक कि आप उनसे प्रभावित भी हो जाये पर अनोखापन मिलना काफी दुर्लभ है वजह विचार में नवीनता व अनोखापन तभी आएगा जब आप नई नई किताबों को पढ़ने के साथ साथ चिंतन करने की आदत डाले। चिंतन व मनन की आदत ही आपको भेड़ चाल से रोक सकेगी । जीवन का उद्देश्य सिर्फ स्कूली शिक्षा में दक्षता और एक अदद सरकारी नौकरी नही हो सकता । हो सकता है कि आप हमेशा सफल होते रहे और टॉप करते रहे और आप ने सब हासिल कर लिया पर एक दिन , हाँ एक विशेष दिन आपको यह अहसास हो कि आप में और दूसरों में कोई फर्क नही है ।

बस इतना ही, बाकि टॉपिक असीम है और वक़्त कम । अंत रूसो की महान पंक्ति से करना चाहता हूँ कि व्यक्ति स्वत्रंत पैदा होता है परन्तु सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा रहता है । आशय समझ रहे है न __

आशीष , उन्नाव

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

Books are so precious

दिल है कि मानता नही ।

इन दिनों , मैं हिंदी भाषी क्षेत्र में नही रहता हूँ, इसके बावजूद कोई साहित्य का विशेषांक 17 साल बाद आये तो कैसे भी करके उसको हासिल कर ही लेता हूँ । इंडिया टुडे के शुरू के कुछ विशेषांक , किसी कबाड़ी वाले के ठेले से खरीदे थे , शायद अभी भी पैतृक घर के किसी कोने में पड़े हो । उन दिनों जब मैं ट्यूशन पढ़ाया करता था तो कबाड़ी वाले के ठेले अक्सर मेरे लिए काफी रूचि का विषय होते थे कई बार उनके कुछ पुरानी खाली डायरी, नावेल, सरिता, कादम्बनी आदि के अंक किलो के हिसाब से खरीद लेता था । घर में कुछ रहा हो या न रहा हो जब से मैं बड़ा हुआ किताबों का भण्डार लगा रहा तमाम कॉमिक्स,लुगदी साहित्य और न जाने क्या क्या । अक्सर घरों में दीवाली, होली में साफ सफाई के दौरान पुरानी किताबें कबाड़ समझ कर बेच दी जाती है , आप उनसे बचना , क्योंकि किताबें आपके घर की हैसियत भले न बताये पर आपके वक्तित्व का पता जरूर बताती है ।

आशीष, उन्नाव ।  

मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

Two book of Neeraj Musafir

नीरज मुसाफिर की दो किताबे

दो किताबें और आ गयी । अब लग रहा कि काफी लोड हो गया है । अब जब तक सारा खत्म न हो जाये  तब तक कोई नया आर्डर नही ।

आज जो किताबे आई है वो यात्रा विवरण है । नीरज जी के बारे में अभी हाल में ही सुना था फेसबुक पर ।
दुनिया में विरला ही कोई होगा जिसे घूमना पसंद न हो । पर यायावरी करना सबके बस की बात नही । जरूरी नही कि आपके पास बहुत पैसा हो तो घूम सको। ये किताबे कम पैसे में घूमने का विवरण देती है । एक में तो सायकल से ही घूमने का विवरण है ।

समय मिलने पर , मैं भी घूमने का प्लान बना ही लेता हूँ पर अभी तक पुरे मन के साथ नही घूम सका हूँ, कुछ प्रतिबद्धता है ।
भारत सरकार, अपने कर्मचारी को हर 4 साल में भारत घूमने का ख़र्चा देती है (LTC)।
मेरी एक लैप्स हो गयी निकल ही न पायाअब जब भी निकलूंगा  तो एक बार में ही सब खत्म कर दूंगा पता नही जिन्दगीं की   दौड़ भाग कब खत्म होगी ।

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

Pushpashpant ji ki ek book

पुष्पेश पंत जी की एक बुक

पहले पहल इनके लेख किसी पेपर में पढ़े थे । बहुत अच्छे लगे थे । फिर इन्हें एक रोज शुक्रवार पत्रिका में कढ़ी के बारे बताते पढ़ा तो चौक गया , लगा कि ir का एक्सपर्ट  आदमी  ये क्या  करने लगा पर कुछ लोग बहुआयामी पतिभा के धनी होते है । पंत जी का लेखन भी बहुआयामी है ।
ये किताब मैंने जून 17 में अमेज़न से ली थी । बुक के आर्डर में भी एक बवाल हो गया था सोचा था उस बवाल पर अलग से पोस्ट लिखूंगा पर वक़्त न मिला । आज जिक्र हुआ तो कुछ बता देता हूँ दरअसल ये बुक का प्राइस 125 रूपये था और डिलीवरी चार्ज 175 रूपये, जबकि मैंने कई बुक एक साथ ली थी ताकि फ्री डिलेवरी मिले । जब आर्डर दिया था तब अमेज़न ने फ्री डिलेवरी दिखाया था ।
मैंने इसके बिल को भी सभाल कर रखा था ताकि अपने तमाम पाठको को अमेज़न की लूट दिखा सकूँ वो किस तरह से ठगते है ।
खैर , मेरी प्रवत्ति तो 10 रूपये भी बर्बाद न करने की है यहाँ तो बात 175 की थी। यह तो वही मसल हो गयी 9 की लकड़ी और 90 रूपये चिराई । अब ज्यादा विस्तार में न बताने का वक़्त नही है बस अंत में हुआ ये कि मुझे सेलर ने सम्मानपूर्वक 175 रूपये का चेक भेज दिया साथ में यह आग्रह कि उसे मैं अमेज़न पर 5 स्टार दे दू । गनीमत यह है उसका नाम नही बता रहा हूँ यही काफी है ।
अब पुस्तक के बारे में।कुछ पुस्तके होती सरल है पर आप चाह कर भी तेजी से नही पढ़ सकते वजह उनमे ज्ञान दबा दबा कर भरा जाता है।इस पुस्तक में बहुत से कांसेप्ट है जो बेहद सरलता से समझाये गए है,
मजा आ गया पढ़ कर , यह अलग बात है देखने में यह बुक बेहद पतली है पर इसको पढ़ने में काफी वक़्त लग गया । कम से कम एक दर्जन बैठक में खत्म हो पायी है । यह पुस्तक सीधा सीधा upsc के mains के gs के कोर्स से जुडी है पर आप इसे शौकिया तौर भी पढ़ सकते है ।

आशीष , उन्नाव ।

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

diwaswapn : A novel by GijuBhai



दिवास्वप्न : गिजुभाई का एक नावेल 


पिछले कुछ दिनों से गिजुभाई का प्रसिद्ध नावेल दिवास्वप्न पढ़ रहा था। वैसे गिजुभाई का नाम शायद आपके लिए नया हो। मैंने भी इनके बारे काफी देर से जाना। ये गुजरात के प्रसद्धि शिक्षाविद थे। इन्होने ने शिक्षण पर बहुत सुंदर पुस्तकें लिखे है। इनका जोर प्राथमिक शिक्षा में अमूल चूल बदलाव पर था।  यह खेल के जरिये शिक्षा देने पर जोर देते थे। रटने पर जोर देने के बजाय , बच्चों को खेल के जरिये सरल तरीके से ज्ञान देने पर जोर था। गाकर , अभिनय , चित्र बनाकर बच्चों को भाषा , व्याकरण , भूगोल आदि विषय को आसानी से बच्चों को सिखाया जा सकता है।  

दिवास्वप्न (1932 ) में प्रकाशित हुआ था। इसमें एक शिक्षक लक्ष्मीशंकर एक विद्यालय में अपने अनूठे प्रयोग करते है। वह बच्चो को साफ सफाई , अनुशासन आदि के बारे सरलता से अपने प्रयोगों के जरिये प्रेरित करते है। उनको , अन्य शिक्षक के प्रतिरोध , व्यंग्य आदि का सामना करना पड़ता है पर अंत में वह सफल होते है।  

आज के समय में भी गिजुभाई जैसे शिक्षको की जरूरत है। पिछले दिनों , मेरी एक मित्र से बात हुयी उन्होंने बताया कि उनकी ढाई साल की बेटी पढ़ने के लिए स्कूल जाने लगी है। दिल्ली से है वो। कम उम्र में बच्चों को स्कूल भेजने की बात सुनी थी पर इतनी कम उम्र में , मुझे बहुत हैरानी हुयी। उन्होंने बताया की 10000 फ़ीस ली है। मेरे ख्याल से इतने रूपये के अगर बच्चे को खिलौने दे दिए जाय या फिर उसे नई नई जगहों पर घुमा दिया जाय तो बच्चे का मनोरंजन के साथ साथ ज्ञान परिवर्धन भी हो जायेगा।  प्लेस्कूल के नाम पर इन दिनों कम उम्र के बच्चों के मन पर बहुत बोझ डाला जाने लगा है। दिवास्वप्न का डिजिटल अंक , इंटरनेट पर मुफ्त उपलब्ध है। इसके न केवल शिक्षको वरन अभिवावकों के साथ साथ शिक्षा नीति निर्माण से जुड़े लोगों को जरूर पढ़ना चाहिए।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  




शनिवार, 9 दिसंबर 2017

Vyas prize Mamta kaliya



ममता कालिया जी को व्यास सम्मान दिया गया है । पिछले दिनों उनके एक नावेल दौड़ के बारे में लिखा था ।
व्यास सम्मान उनके नावेल दुखम सुखम् के लिए दिया गया है, आपको अगर यह नावेल पढ़ने की इच्छा हो तो आप गूगल में hindisamay की वेबसाइट पर जाकर उपन्यास सेक्शन में ममता कालिया लिंक पर पा सकते है, दौड़ भी वहाँ पर उपलब्ध है ।.

जल्द ही मैं भी उसे पढ़ने वाला हूँ, आप भी पढ़े और अपनी राय दे तो अच्छा लगेगा ।Ias की तैयारी करने वाले अक्सर अपनी हॉबी को लेकर बहुत sure नही होते । अगर आप भी किसी दुविधा से गुजर रहे हो तो मेरी राय माने और अपनी हॉबी रीडिंग नावेल बना ले , हिंदी या अंग्रेजी अपनी सुविधानुसार । नावेल मैं बताता रहूंगा काफी नावेल ऑनलाइन pdf में free में ही मिल जायेगे । 

इस हॉबी की सबसे खास बात यह है कि ias या pcs में सेलेक्ट न भी हुए तो आपको ज्यादा दुःख न होगा क्योंकि नावेल रीडिंग , आपके जीवन में , आपकी सोच में अलग किस्म का बदलाव लाएगी ।



आशीष, unnao।

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

Daar se bichhudi : A novel By Krishna Sobti

डार से बिछुड़ी : कृष्णा सोबती जी का एक नावेल 





कृष्णा सोबती जी को इस साल (2017 ) ज्ञानपीठ अवार्ड दिया गया है। काफी पहले उनके कुछ नावेल पढ़े थे पर समझ न आये , वजह उनकी पंजाबी मिश्रित हिंदी। मुझे कुछ कुछ मित्रों मरजानी का कथानक याद भी है।  

आईएएस मैन्स के लिहाज से भी कृष्णा जी काफी महत्वपूर्ण है। इस साल भी उन पर टिप्पणी  पूछी गयी थी।राजेंद्र यादव द्वारा सम्पादित एक दुनिया समानांतर में भी उनकी एक कहानी  ' बादलो के घेरे ' संकलित है।  

कल उनका चर्चित नावेल , डार से बिछुड़ी पढ़ा।  इसमें पाशो की कहानी है। पाशो , खत्री परिवार में जन्मी होती है पर सारा जीवन उसे भटकना पड़ता है , उसकी माँ शेखों के घर भाग जाती है , इसके चलते पाशो को उसके मामा , मामी बहुत तंग करते है। पाशो एक दिन घर छोड़ कर भाग जाती है , पहले शेखो के घर , फिर बूढ़े दिवान एक घर।  वहां उसे एक बच्चा होता है पर बूढ़े दीवान मर जाते है तो उस बूढ़े दीवान का भाई शोषण करता है और उसे बेच देता है। पाशो , अब जिस घर जाती है वहां पर एक बूढ़ा और उसके 3 बेटे होते है। मझला बेटा पाशो को महत्व देता है। इस दौरान चिलियाँ वाली लड़ाई (1849) शुरू हो जाती है , फिरंगी और पंजाबी लोगों के बीच। एक रोज मझला भी मारा जाता है। पाशो भटकती रहती है। अंत में , उसे उसका भाई , माँ मिल जाती है। तमाम संघर्ष , शोषण के बाद नावेल का सुखद अंत दिखाया गया है। नावेल पढ़ते समय मुझे यशपाल कृत दिव्या याद आया। दिव्या भी इस तरह भटकती और अंत में मारिश के साथ सुखद अंत होता है।  

( चित्र में कृष्णा जी का एक और नावेल ऐ लड़की का भी दिख रहा है। उसको भी पढ़ चूका जल्द ही उस पर भी लिखूंगा ) 

अशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

Desh Birana : A Novel by Suraj Prakash


देश बिराना : सूरज प्रकाश जी का लिखा एक नावेल 



204 पन्नों में सिमिटा यह नावेल (2010 में प्रकाशित ) कुछ रोज पहले पढ़ना शुरू किया था। पीडीऍफ़ में निःशुल्क उपलब्ध है। ऑफिस में समय मिलने पर पढ़ता गया। कुछ पङने पढ़ कर लेखक के बारे में जिज्ञासा हुयी , तुरत फुरत उन्हें मेल भी कर दिया , उधर से दूसरे रोज जबाब भी आ गया। अच्छा लगा कि बड़े लोग , इतने भी व्यस्त नहीं होते। 

नावेल के बारे में बात कर ली जाय। नावेल के क्रेन्द्र में सिख नौजवान गगनदीप  है जो 14 साल में घर से भाग जाता है , पहले बॉम्बे भी लन्दन। सेल्फ मेड है , लंदन में छल से उसकी शादी होती है गौरी से पर उसके साथ हो घुटता रहता है , अंत में उसे मालविका से साथ जुड़ते , वापस लौटते दिखाया जाता है। मालविका भी एक पंजाबी लड़की है जो लन्दन में योगा टीचर है , जिसका अतीत बहुत कड़वा है। उसके घर वाले लन्दन में रहने वाले बलविंदर नाम झूठे इंसान के साथ शादी कर देते है। नावेल में दीप के घर के कड़ुए प्रसंग भी चलते रहते है , उसके पिता उसे बस पैसे के लिए ही मतलब रखते है , बहन की दहेज हत्या हो जाती है। नावेल में समकालीन समय के तमाम विसंगतियों के बारे में चर्चा है। आपकी पढ़ने की इच्छा हो तो मै सूरज प्रकाश जी साइट का लिंक दे रहा हूँ , जैसा कि उन्होंने बताया था कि उनका सारा लेखन ऑनलाइन निशुल्क उपलब्ध है , आप भी पढ़िए , अच्छा लगेगा।  

( एक योजना के तहत मै समकालीन समय के हिंदी नावेल को पढ़ रहा हूँ, उम्मीद से अधिक तेजी से नावेल खत्म हो रहे है बस उनका रिव्यु लिखने में थोड़ा आलस हो रहा है , फिर भी समय समय पर आपको छोटा ही सही पर उनसे परिचय करता चुलुंगा।  ) 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

सोमवार, 4 दिसंबर 2017

neem ka ped

नीम का पेड़ 


यह नावेल , राही मासूम रजा ने लिखा था। यह भी लघु नावेल और उनकी लिखी अंतिम कृति  है। कभी मुझे उनका आधा गावं भी पढ़ने को मिला था पर पढ़ न सका। वजह उस नावेल की भाषा। वैसे भी आधा गांव को हिंदी के कुछ प्रसिद्ध आंचलिक उंपन्यास में गिना जाता है। आधा गांव , में गंगोली गांव की भाषा मेरे लिए काफी अवरोध वाली थी। इसलिए जब नीम का पेड़ पढ़ने बैठा तो लगा यह भी पूरा न पढ़ सकूगा।  

धीरे धीरे पढ़ा और 3 बैठक में खत्म हो गया। लघु नावेल ( 100 से भी कम पन्ने ) जरूर है पर कथा काफी विस्तार में है। कहानी नीम का पेड़ कहता है जिसे बुधिया ( दलित ) ने अपने बेटे सुखिया के जन्म पर लगाया था। देखा जाय तो यह नावेल आजादी के बाद की राजनीति को क्रेन्द्र में रखता है। दलित , मुस्लिम के m.p. , mla बनना , दूषित राजनीति के बारे में कथा है। जमींदारी के ढलान , उसका राजनीति में परिवर्तन को दिखाया गया है। देश के टुकड़े होने तथा आजादी के बाद सपने टूटने की कथा है। 
राही जी को महाभारत के डायलॉग लेखन के लिए भी जाना जाता है। नीम के पेड़ में मुस्लिम समाज के बारे में लिखा गया है इसलिए भाषा थोड़ी , बहुत कठिन लग सकती है पर ज्यादा अवरोध नहीं है। कथा , सरस , रोचक है। इस नावेल पर  टीवी सीरियल भी बना था , जिसमे पंकज कपूर ने बुधई राम का रोल निभाया था।   

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

Ta ta professor by Manohr shyam joshi

ट टा प्रोफेसर

पिछले दिनों 10 नावेल मंगवाए है ऑनलाइन । कृष्णा सोबती, राही मासूम रजा , मनोहर स्याम जोशी आदि की किताबें है । 

अभी जोशी जी का संक्षिप्त किंतु बहुत रोचक नावेल खत्म किया । जोशी जी को बहुत पहले पढ़ा था । उन्नाव के गांधी पुस्तकालय में एक ही पुस्तक में उनके तीन नावेल सकलित थे , कसप, हरिया हरक्लिज की हैरानी , एक और जिसका नाम अब याद नही । उस समय जोशी जी को पढ़ना बहुत अच्छा लगा । उनके कुछ प्रसंग बहुत भाये थे जैसे एक चरित् था जो किसी के घर जाता और जैसे ही उससे चाय के बारे पूछा जाता वो समझ जाता कि अब यहाँ से विदा लेने का वक़्त आ गया ।

जोशी जी की एक खास लेखन शैली है , उनकी कथा शैली में बहुत रोचकता होती है, अनोखे व्यंग्य होते है । टाटा प्रोफेसर एक उत्तर आधुनिक नावेल है । एक प्रोफेसर पर क्रेंद्रित इस नावेल का सार यह है कि 'काम मनुष्य को कामुक से अधिक कामिक बनाता है और अस्तित्व को एक कॉमिक कामुक और कास्मिक त्रासदी बना देता है । '

नावेल को पढ़ते हुए मुझे लगा कि भूमिका पढ़ रहा हूँ पर नावेल उसी रूप में ही खत्म हो गया । जोशी जी कहानी लिख नही रहे बल्कि वो कहानी कह रहे है ।
वैसे आपको यह पता ही होगा कि जोशी जी दूरदर्शन पर आने वाले लोकप्रिय सीरियल हम लोग, बुनियाद के लेखक भी रहे है और उन्हें उत्तर आधुनिक समय के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार माना जाता है । जादुई यथार्थवाद को भी उनसे जोड़ा जाता है ।वैसे अपने सुधी पाठकों से जानना चाहता हूँ कि उत्तर आधुनिक और जादुई यथार्थ वाद से आप क्या समझते है ?☺

ASHEESH KUMAR 

गुरुवार, 30 नवंबर 2017

Creativity


रचनाशीलता का सीधा संबंध मन की मुक्ति से होता है यानि जितना आप सहज और सुकून में होंगे उतना ही आपके पास विचारों का जमावड़ा होगा। आपको बहुत कुछ नया और अनोखा सूझेगा करने के लिए।

पिछले कुछ महीनों में मैं छुट्टी पर था न जाने कितने ही विचार , संकल्पना। सोचता था यह लिखूंगा , वह लिखूंगा। बिलकुल अलग , अनूठी चीजे। जैसे ही ऑफिस जॉइन किया , धीरे धीरे सब ठप होने लगा। वही रूटीन सी जिंदगी। वैसे भी लम्बी छुट्टी से लौटने पर ऑफिस में बहुत काम जमा हो जाता है , जम कर काम पड़ रहा है। यह लगातार तीसरा शनिवार होगा जिसमें भी काम जारी रहेगा। अब न वो पहले सा सकून है , न ही वे अनूठे विचार। कितनी ही चीजों पर लिखने के लिए वादे कर रखे है खुद से पर ऐसा लगता है वो सुनहरे दिन आने से रहे। बहुत पहले गेहूं और गुलाब ( रामवृक्ष बेनीपुरी ) पर एक निबंध पढ़ा था। चाहत तो गुलाब की है पर गेहूं बगैर काम नहीं चल सकता। मतलब यह कि नौकरी न करोगे तो गेहूं कैसे मिलेगा। इसलिए गुलाब के बारे में यानि सौंदर्य के बारे सोचना , कल्पना करना अच्छी बात है पर गेहूं की फ़िक्र में गुलाब के ख्याल मरते जा रहे है।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

रविवार, 12 नवंबर 2017

one year of Demonetization


नोटबंदी के १ साल 

नोटबंदी के एक साल पूरे हो गए है। इतना समय किसी योजना का सटीक विश्लेषण करने के लिए  काफी होता है। नोटबंदी के लाभ और हानि को लेकर विद्वान एक मत नहीं है। नोट बंदी के होने वाले लाभों में सबसे महत्वपूर्ण से कुछ कर-आधार का बढ़ना , बैंको के पास काफी मात्रा में पूंजी जमा होना , कर अनुपालन की दर  बढ़ना को माना जा सकता है। निश्चित ही इन बिंदुओं के आधार पर नोटबंदी का कदम भारत की इकोनॉमी के लिहाज से काफी लाभदायक रहा  है। आयकर विभाग के पास बहुत विशाल मात्रा में डाटा इकठ्ठा हो गया है जरूरत है उसका सही विश्लेषण कर, कर चोरी करने वालो को पकड़ना और उनको सख्त सजा देना। आयकर विभाग प्रोजेक्ट इनसाइट जैसी योजना के जरिये बड़ी लगन से जुटा है। 

अगर नोटबंदी के दूसरे पहलू की बात की जाय तो नोट छापने की लागत , लगभग 99 प्रतिशत नोटों का वापस आना दिखलाता है कि इस कदम के काफी उद्देश्य पूरे न हुए। नोटबंदी  भारत के  असंगठित क्षेत्र के लिए बेहद घातक रही  है। बहुतायत छोटी फर्म बंद होने की कगार में आ गयी। इसका असर बेरोजगारी  पर पड़ा साथ ही कृषि पर दबाव भी बढ़ा। चूँकि कृषि , उद्योग अन्योन्याश्रित होते है इसके चलते भारत की विकास दर निम्नतर स्तर पर आ गयी है। उम्मीद की जा रही थी कि भारत 2017 में लगभग 9 प्रतिशत की दर से विकास करेगा पर यह 5.7 प्रतिशत पर ही आगे बढ़ रहा है। डिजिटल पेमेंट के लिए कई तरह के कदम यथा भीम एप , प्रोत्साहन जैसे लकी ग्राहक योजना आदि के बावजूद इसका प्रचलन उम्मीद से कम हो रहा है। शुरू के दो महीनों की तेजी को छोड़ दे तो भारतीय , डिजिटल पेमेंट के लिए अनिच्छुक दिखते है।

समग्रतः नोटबंदी के 1 साल बाद भारत अपनी पूर्ण क्षमताओं के बावजूद  भले ही कई तरह की चुनौतियों से जूझ रहा है पर भारत की इकोनॉमी असंगठित से संगठित होने की ओर  तेजी से बढ़ रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह भारत में समावेशी विकास में सहायक होगी।  


आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।    












A very motivational story : Finally she got a government job


और अंततः उसे सरकारी नौकरी मिल गयी


भूमिका - काफी समय से पहले मैंने एक योजना के तहत मोटिवेशनल स्टोरी /लेख लिखना बंद कर दिया था और अपना लेखन समंसामियक विषयों की ओर मोड़ लिया था। हालांकि मोटिविशनल लेख को लोग ज्यादा पसंद कर रहे थे उसके बावजूद मैंने अपनी योजना के अनुरूप उनको लिखना बंद कर दिया था।

पिछले काफी समय से जब मै एकांतवास कर रहा था ( मतलब फेसबुक , ब्लॉग आदि से कटा था ) मुझे तीन कहानियां लिखने के विचार सूझ रहे थे। पहली कथा डॉक्टर की , दूसरी कथा रोबोट की और तीसरी एक लड़की की। इनका यही क्रम था। जब डॉक्टर के बारे में लिखने के बारे में सोच रहा था तो लगा कि इसकी कहानी शानदार है। फिर रोबोट के बारे जब सोचना शुरू किया तो लगा कि यह पोस्ट तो लोगों के दिलों में पढ़ाई की आग लगा देगी। आपको जिज्ञासा हो रही होगी कि आखिर रोबोट कौन है? दरअसल पिछले दिनों में  लड़का मिला जिसको देखकर लगा कि चिंतक जी के बाद यही गुरु बनाने के लायक है , उसके बारे  ज्यादा बाते फिर कभी , बस रोबोट के मतलब बता देता हूँ उसके पढ़ाई के घंटे  देख कर मेरे मन में शीर्षक के तौर पर रोबोट का ही खायल आया।  आईये आप उसकी बात शुरू करे जिसकी कहानी आज आप पढ़ने वाले है। कॉपी पेस्ट के दौर में आपको सचेत करते हुए बता दू यह कहानी आशीष कुमार , उन्नाव , उत्तर प्रदेश द्वारा उनके ब्लॉग व फेसबुक पेज  हेतु लिखी गयी है। )


मुझे ठीक से यह  याद नहीं  है  कि बात 2013 या 2014 की है पर इतना जरूर याद है कि शुरुआती दिनों में मैंने उसे झिड़क दिया था ( उसके मुताबिक मै उन दिनों भाव खाता था ) वजह थी उसके हर रोज , सुबह , शाम गुड मॉर्निंग तथा गुड नाईट के मेसेज। मेरी यह समस्या रही है कि लोगो की हेल्प करना तो बहुत अच्छा लगता है पर जैसे मुझे अहसास होता है कि मेरे समय जाया हो रहा तो बहुत ऊबता हूँ। यही कारण था कि उसकी यह हरकत मुझे अच्छी न लगती थी। उस डॉट के बाद जब उसने अपने बारे में बताया तो मुझे बहुत दुःख हुआ।

वो एक गावं से थी। पिता जी की मौत हो गयी थी। माँ और एक छोटे भाई के साथ जीवन संघर्ष कर रही थी। वह टूशन पढ़ाती थी (  इंटर मैथ के , मेरे लिए यह काफी महत्व की थी , दरअसल इंटर के दिनों से ही मेरी मैथ खराब होती गयी। हलांकि मैंने  मैथ से b.sc. कर रखा है और सेन्ट्रल गवर्नमेंट की उस जॉब में हूँ जिसके लिए अच्छी मैथ सबसे जरूरी है। दरअसल अपनी अंकगणित शानदार रही है और एग्जाम में वही काम आती है। कैलकुलस को मैंने जॉब के एग्जाम में ज्यादा उपयोगी न पाया। ). चुकि वो गांव से थी , गरीब थी ,छोटी उम्र में आत्मनिर्भर थी , मेरे उसके साथ सम्पर्क गहन होते गए। मुझे ऐसे लोगों से बहुत जुड़ना बहुत अच्छा लगता है जो अपनी दम पर , अपनी किस्मत बदलने के लिए जूझते है। 

अपनी बात का कोई निश्चित टाइम न था। 3  महीने , 6 महीने में उसकी काल आती थी। उन दिनों जिओ का जमाना न था , उसके फ़ोन जब तक रूपये होते तब तक बात करती -नहीं तो पुरे हक से कहती मुझे काल करो। बात अपनी 30 से ४० मिनट होती। वही पढ़ाई लिखाई की बाते , घर की , माँ की , गांव की बाते। अक्सर वो आईएएस के बारे  पूछती , किताबे के नाम आदि। सच कहु तो मुझे उसे झूठी दिलाशा देनी पड़ती कि पढ़ती रहो  जॉब जरूर लगेगी। वो उस राज्य से है जहां पर सरकारी जॉब के लिए सबसे ज्यादा करप्शन है , समझ रहे हो न अरे वही जहाँ एक पूर्व  cm जेल में है। खैर समय गुजरता रहा। लोग आते है जुड़ते है और चले जाते है वजह मेरे स्वभाव को झेलना, सबके वश की बात नहीं। वो जुडी रही और अपने संघर्ष में लगी रही। बीच में कोई प्राइवेट स्कूल ज्वाइन कर लिया था। तमाम बाते है पर उनका कोई विशेष मतलब नहीं। एक और बात जरूरी लग रही है बताना , कभी उसने अपने घर के संघर्ष के चलते परेशान होकर  जहर पीकर आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी और यह राज उसके अनुसार मेरे अलावां दुनिया में कोई नहीं जानता कि वो आत्महत्या थी। मुझे लगता है कि इतना काफी है यह समझने के लिए वो किस परिवेश से थी , वो अपने खेत में काम करती , भैंस का दूध दुहती , गोबर फेकती और मन में कही न कही आगे बढ़ने की आस लिए जीवन जीती जा रही थी।

इस ऑक्टूबर एक रोज मुझे अपने नंबर पर मैसेज मिला कि उसने मुझे कॉल लगाई थी। दरअसल पिछले ३ महीनों से मेरा मोबाइल अक्सर बंद ही रहता। यह वह समय था जब  मुझे अपने 10 मिनट भी  बहुत कीमती लग रहे थे पता नही  क्या सोचा और उसे फ़ोन लगाया।  कुछ फॉर्मल बातों यथा कैसे हो , घर में सब ठीक है आदि के बाद उसने कहा सर, एक ख़ुशख़बरी है। मेरा  क्रेन्दीय विद्यालय में टीचर के पद पर सिलेक्शन हो गया है। सफलता की खबर हमेशा बहुत ऊर्जादायक होती है। अपने आँखो से मैंने न जाने कितने लोगो को संघर्ष करते और सफल होते देखा था पर इसकी बात निराली थी। काफी देर तक बात होती रही , उसका कहना था कि इस सफलता की एक बड़ी वजह आप है आपसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। देखा जाय तो मैंने तो समय ( वैसे यह बहुत कीमती चीज है ) को छोड़ कुछ न दिया। फेसबुक की दोस्ती , कभी कोई रूबरू मुलाकात नहीं फिर भी मुझे बेहद खुशी हुयी शायद आपको भी पढ़कर बहुत खुशी महसूस हो रही होगी।

मैंने इन दिनों लोगों तो तमाम तरह का रोना देखा है - जनरल कैटगरी से हूँ , वेकन्सी नहीं आती है , सब पैसे से होता है , नौकरी पाने के लिए अच्छी कोचिंग की जरूरत होती , लड़की  हूँ , घर में पढ़ाई का माहौल नहीं है। मेरे घर वाले एग्जाम दिलाने बाहर नहीं जाते। वो भी जनरल कैटेगरी से ही है बाकि परिवेश ऊपर बता ही चूका हूँ। मैंने उससे हर पहलू पर विस्तार से बात  की  मसलन इंटरव्यू देने कहाँ गयी , कैसे गयी , क्या पहना था आदि आदि। उसे 60 में 52 अंक मिले , उसका कहना था कि अगर उसके पास शूज होते तो शायद 55 मिल जाते क्युकी उनके बगैर सैंडल में अटपटा महसूस कर रही थी।

उसकी जॉइनिंग भी हो गयी है। उसका कहना था कि वो काफी बदल गयी है , मुझे लग रहा था कि शायद पहनावे में बदलाव हुआ पर नहीं मैंने उसे हमेशा कम आँका। पिछले 4 सालों से टच में होने के बावजूद मेरे पास उसकी कोई तस्वीर न थी। एक आध बार उसने व्हाट एप  पर अपनी किसी फोटो की फोटो खींच कर भेजी थी पर मेरे दिमाग में उसका कोई चित्र था। हालांकि फेसबुक पर मै कभी किसी लड़की को रिक्वेस्ट सेंड नहीं करता और लड़की की  रिक्वेस्ट आने पर उसकी तस्वीर मांगने पर पूरा जोर देता हूँ वजह हमेशा यही लगता है कि आखिर कोई अनजान लड़की मुझे रिक्वेस्ट क्यू सेंड करेगी। इसको कभी इंसिस्ट न किया। ग्रामीण परिवेश , अपने आप में विश्वास की वजह होता है।  

मै  अभी उसके व्यक्तित्व में आये बदलाव की बात कर रहा था। जोइनिंग के बाद उसने अपनी नई तस्वीर भेजी। सच कहता हूँ मै स्तब्ध रहा गया। उसने अपने बॉब कट बाल कटा लिए थे। सबसे पहला ख्याल दंगल  गर्ल ( वो दंगल फिल्म का वो गाना तो सुना ही होगा , नेकर और टी शर्ट पहन कर आया ----------)  का आया। संयोग से यह भी उसी स्टेट से है। मैंने पूछा यह क्यों और कब क से। "बस मेरी मर्जी , पिछले कई महीनों  से ऐसे ही हूँ।" उसने कहा।  

अब जा कर यही निष्कर्ष निकला जा सकता है। उसे अपनी मर्जी से जीना था। रूढ़ियाँ उसे पसंद नहीं। यह अंतिम बात सुनकर आपको कैसा लग रहा है। भारतीय समाज में लड़की के बाल , लड़कों जैसे रखने का चलन नहीं है।  मुझे तो उसके बाल कटाने में भी लड़कियों की मुक्ति नजर आयी। हर लड़की की यह इच्छा होती है कि वह अपनी मर्जी से जिए , उसे कोई रोके , टोके न। मैंने इस बात तो हमेशा जोर दिया है कि अगर तुम्हे आजादी चाहिए , अपनी जिंदगी अपनी शर्तो पर जीनी है तो अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ। रात दिन एक कर दो। जरूरी नहीं कि आईएएस , pcs ही बनो पर कुछ न कुछ अपने दम पर करो। 

मेरे तमाम पाठकों , विशेष कर लड़कियों के लिए इससे उम्मदा, मोटिवेशनल उदाहरण कोई नहीं हो सकता है।  अब वो आईएएस की तैयारी में लगी है ,  होगा या न होगा अलग बात है पर उसने  जो आदर्श सामने रखा है , उससे मै बहुत प्रभावित हुआ। जाते जाते आपके लिए एक प्रश्न छोड़ कर जाता हूँ उत्तर जरूर देना।  

एक लड़की जिसके माता पिता दोनों क्लास वन अधिकारी , 4 साल दिल्ली में आईएएस की कोचिंग , दिल्ली के नामचीन कॉलेज से पढ़ाई , अनुसूचित जाति ( इसका उल्लेख करना जरूरी न था पर इसको लेकर काफी बवाल हुआ था उस वक़्त अपनी राय न रखा था आज रख रहा हूँ , भारत में आरक्षण एक बड़ा और जटिल मुद्दा है। निश्चित ही कम से कम इतने आमिर और सशक्त परिवेश की लड़की द्वारा आरक्षण का लाभ लेना उचित न था। ऐसा करके वह अपने ही समुदाय / वर्ग का हिस्सा खा रही है। उन दिनों जब आईएएस टॉपर को लेकर विवाद हुआ था तो मेरी यही सोच थी कि इसका सलेक्शन तो तय ही था पर कोटे को लेकर वह अपने ही वर्ग की गरीब , कमजोर लड़की का हिस्सा , सीट खा गयी ) की लड़की आईएएस में जबरदस्त रैंक लाती है। पहला प्रयास , 21  साल की आयु , नाम का उल्लेख जरूरी नहीं पर आईएएस की तैयारी से जुड़ा हर कोई समझ सकता है कि मै किसकी बात कर रहा हूँ ?

आपके सामने दो लड़कियों की कहानी रख दी है। ऊपर वाली लड़की की नौकरी कोई बड़ी नहीं है , नीचे वाली लड़की की नौकरी सबसे बड़ी है। आप बताईये आप के लिए कौन ज्यादा प्रेरक है , सारी बातों को ध्यान  में रख कर सोचिये , किसकी  उपलब्धि बड़ी है और क्यों ? 

( Dear reader, above mentioned girl is one of from you , even your views & comments will be read by her . Thanks , keep reading .)

- आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  
( e mail- ashunao@gmail.com )

शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

Rehan pr Ragghu : a novel by Kashinath Singh


रेहन पर रग्घू 


कल और आज दोनों दिन में काशीनाथ सिंह का कालजयी उपन्यास रेहन पर रग्घू पढ़ डाला। काशीनाथ को मैंने काफी देर से जाना पर जब से जाना तब से वह मेरे पसंदीदा लेखक रहे है। काशी का अस्सी को काफी पहले पढ़ लिया था। देखा जाय तो काशी का अस्सी उनका अब तक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। उनको साहित्य अकादमी का हिंदी के लिए 2011  पुरुस्कार रेहन पर रग्घू ( 2008 में प्रकाशित ) के लिए दिया गया 

यह नावेल काफी हद तक ममता कालिया के नावेल दौड़ से समता रखता है। इसका फलक हालांकि ज्यादा विस्तृत है। नावेल में रघुनाथ क्रेद्रिय चरित्र है उसकी , उसके 2 पुत्र संजय व धनन्जय तथा बेटी सरला की कहानी ही विस्तार लेती है। बड़ा बेटा संजय बहुत महत्वाकांक्षी है, अमेरिका जाने के लिए पिता की मर्जी के खिलाफ सोनल  से शादी करता है बाद में यह अमेरिका में अंजली से शादी कर लेता है , वजह क्युकि आरती के पिता गुजराती आमिर है। सोनल  भी अमेरिका से लौटकर बनारस में अपने पुराने प्रेमी समीर के साथ रहने लगती है। 

रघुनाथ के छोटा बेटा अपने बड़े भाई से भी आगे निकल जाता है। नोयडा में एक विधवा के साथ , उसकी दौलत के लालच में साथ रहता है। रघुनाथ की बेटी सरला , अपने घर से दूर रहती है। पिता की इज्जत और अपनी मर्जी की शादी के निर्णय के बीच दुविधा में रहती है। शादी तो नहीं करती पर वह एक नीची जाति के pcs अधिकारी के साथ घूमती फिरती है। यह pcs अधिकारी शादीशुदा है पर पत्नी के साथ नहीं रहता है। 

नावेल में और भी बहुत कुछ है पर सब कुछ बेहद निर्मम यथार्थ। बनारस के एक गांव पहाड़पुर की कहानी है जो कुछ समय के लिए बनारस के आनंद विहार में चलती है जहां पर रघुनाथ की बहु सोनल अपने प्रेमी समीर के साथ रहती है हालाकि सोनल ने अपने ससुर रघुनाथ तथा सास शीला की खूब सेवा की है। नावेल के अंत में रघुनाथ को अपने आप अपहरण होते दिखाया गया है वह जानना चाहते है कि क्या उसके आमिर बेटे , उसे बचाने के लिए फिरौती देना पसंद करेंगे। यह प्रश्न अनुत्तरित रहता है।  

नावेल पढ़कर मुझे कई तरह के भाव आये। निश्चित ही यह अपने समय की विद्रूपता को ही वर्णित करता है। रिश्तों में कोई मिठास नहीं , हर कोई उलझा हुआ है। सबके अवैध सम्बन्ध है किसी न किसी के साथ। रघुनाथ जोकि एक टीचर है अपनी सहायक टीचर के साथ जुड़े है। अतीत में लारा के साथ भी उसका छोटा सा प्रकरण है। इसी तरह सरला भी अपने टीचर के साथ जुडी थी। पुरे नावेल में ऐसे प्रसंग यत्र तत्र बिखरे पड़े है। गांव व शहर का टकराव , उलझाव भी है। मैला आंचल की तरह इस नावेल में गांव में जाति की प्रबलता , बदलाव को दिखलाया गया है। ठाकुर , अहीर तथा चमार के सम्बन्ध को काफी गहनता से चर्चा की गयी है। दशरथ के बेटे जसवंत ने टैक्टर का लेकर गांव की इकॉनमी को बदल दिया। पहले चमार , ठाकुर के खेत जोतते थे, अब अहीर दसरथ के सामने ठाकुरों को खेत जुटाने के लिए टाइम लेना पड़ता है। गोदान में सिलिआ ( चमार ) और पंडित के लड़के में प्रसंग में जो दलित चेतना ( पंडित के बेटे के मुँह में हड्डी डालकर अशुद्ध करना ) दिखाई गयी थी वह इस नावेल में काफी आगे बढ़ी दिखाई गयी है।  इसमें चमारों ने पुरे प्लान के तहत एक ठाकुर पहलवान को बेहद बुरी तरह ( जननांग काट कर ) से मार देते है वजह वही पहलवान , चमार की बीवी के साथ जोर व दबाव के सम्बन्ध बनाये दिखाई देता है।   

काशीनाथ की भाषा , उनकी कथा को काफी रोचक व सरस् बना देती है। लोचे ( इसमें बड़े लोचे है ), लौड़े ( तुम जैसे लौंडो को मै पढ़ाया करता था ), जैसे शब्द समकालीन यथार्थ को बखूबी दिखलाने में सक्षम है।  

--आशीष कुमार 
    उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

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