BOOKS

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

Talk vs meeting

बात बनाम मुलाकात

प्रियतमा 
तुमने जो कहा
बात होते रहने 
जरूरी है बेहद

मैंने कहा बात के साथ
मुलाकात भी जरूरी है
समय समय पर

बात होने पर
भले ही तुम्हारे मधुर शब्द
मेरे अंतस में
घोलते है प्रेमरस

पर मुलाकात होने पर
तुम्हें नजरों से छुआ जा सकता है
आँखों से पिया जा सकता है
चंद पलों में 
असीम जिया जा सकता है

मादकता से भरपूर
नशे से चूर, 
तुम्हारे चन्दन बदन पर
अंगुलियों से बनाये जा सकते हैं
तमाम चमकते चाँद

पकड़ी जा सकती है पोरों से
तमाम जिंदा मछलियाँ
उगाये जा सकते है 
लाल दहकते गुलाब

© आशीष कुमार, उन्नाव।
14 अप्रैल, 2020 (लॉक डाउन दुबारा बढ़ने का दिन)



रविवार, 12 अप्रैल 2020

Neela Chand

नीला चाँद 

कल रात में अंततः इस उपन्यास का पठन पूरा हो गया। शिव प्रसाद सिंह द्वारा लिखे गए इस बहुचर्चित उपन्यास की विषय वस्तु 11 वी सदी के समय राजा विद्याधर के पौत्र कीर्ति वर्मा के द्वारा अपने खोये राज्य की वापसी का प्रयास है। उस समय काशी में दो राजा थे एक कलचुरी शासक कर्ण , दूसरा गहड़वाल मदन। उपन्यास में तमाम उतार चढ़ाव हैं ।

पुस्तक का शीर्षक " नीला चाँद " बड़ी रोचकता जगाता है।मन में बड़ी उत्सुकता थी कि आखिर क्या है नीला चांद। इसका खुलासा उपन्यास की इन आखिरी पंक्तियों में होता है - 

" .. बेटे , जैसे हर व्यक्ति के अंदर एक आंगन है, एक तुलसी चौरा है, वैसे ही सबके छोटे छोटे आकाश में एक नीला चाँद भी होता है। ढकोसलों से नहीं, नियति को जानने वाले दाम्भिकों की भविष्यवाणी से नहीं, तू खुद कालिमा में डूब कर अपने मन के आंगन में जगमगाता नीला चाँद देख लेगा, उसका नाम है अमोघ इच्छा शक्ति । "

यहाँ से उपन्यास खत्म हो जाता है। दरअसल कीरत ( कीर्ति वर्मा ) का शुरू में समय बेहद कठिन, संकट पूरित होता है जो वो समयांतर में अपने रण कौशल, अनुभव व जमीन से जुड़े लोगों के सहयोग से सुखांत में बदल देता है।

इस पुस्तक पढ़ने के पीछे की एक कहानी है। एक दिन मैं अपने वरिष्ठ के कक्ष में बैठा था। मैंने सर से पूछा कि आपके नाम के पीछे जो डॉ लगा है वो चिकित्सा वाला है या पीएचडी वाला। सर ने बताया कि उन्होंने साहित्य में पीएचडी की है। तीन उपन्यास को आधार बनाकर बनारस के पूर्व, मध्य व आधुनिक समाज को पिरोया है। उसमें " नीला चाँद " भी एक पुस्तक थी।

उन्हीं दिनों पुस्तकालय जाना हुआ, संयोग से यह उपन्यास सामने दिख गया। व्यास सम्मान, शारदा सम्मान (?) व साहित्य अकादमी पुरस्कार द्वारा इस कालजयी उपन्यास को पढ़ने के लिए काफी समय के साथ साथ हिंदी की बहुत अच्छी जानकारी होनी चाहिए। इसी उपन्यास से ऐसे 10 शब्दों के साथ तमाम हिंदी प्रेमी पाठकों को छोड़ रहा हूँ, इनमें एक का भी अर्थ मुझे पता न था।

स्तबक -
धम्मिल -
षंड-
प्रातराश-
क्वाथ-
धारायन्त्र -
वेशवास-
नागरमोथा-
प्रसेव-
त्वष्टा-


© आशीष कुमार, उन्नाव
12 अप्रैल, 2020।

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

POEM : HOPE

उम्मीद 

इन दिनों जबकि 
सारी दुनिया 
परेशान,बेबस व मजबूर
सी है,

इन दिनों जबकि
आदमी बेहद परेशान,
भयभीत है 
और उसको भरोसा
न रहा अपने जीवन का

ऐसे उदासी, बेजान
खामोशी भरे दिनों में
भी मैं रहता हूँ
प्रफुल्लित,जीवन्त 
उत्साह से भरा

वजह केवल इतनी
कि इनदिनों के गुजरने 
के बाद मुझे उम्मीद है
कि तुम एक रोज मेरे पास
आओगी उतने ही करीब
जितना इन दिनों के पहले थी

उम्मीद है कि फिर से
स्पर्श कर सकूँगा
तुम्हारे मन को 
अन्तःस्थल को

उम्मीद है कि
देखूँगा तुम्हारी झील सी
गहरी आँखों में,
अपने लिए
पहली सी चमक

© आशीष कुमार, उन्नाव
1 अप्रैल, 2020।


रविवार, 29 मार्च 2020

Reading Tips

पढ़ाई से जुड़े कुछ सूत्र 

काफी समय से इस विषय पर लिखा नहीं हैं, पिछले दिनों कुछ लोगों से बातचीत के आधार पर लगा कि कुछ अपने अनुभव साझा किए जाय। रही बात वायरस की तो उस पर इतना ज्ञान साझा हो चुका है हम अदने लोग क्या ही बोले। बस एक बात याद रखना कि आप जो कॉपी पेस्ट, फॉरवर्ड करने जा रहे है वो जरूरी नहीं सत्य ही हो। आइये उन चीजों पर बात करते है जो एक विद्यार्थी को हमेशा याद रखनी चाहिए -

1. अपने लक्ष्यों को स्पष्ट रूप में जाने, अगर आपको जिंदगी में करना क्या है यह अगर चीज समझ में आ गयी तो जीवन सरल, आसान व सुखद हो जाएगा।

2. अपने लक्ष्यों की समयसीमा तय करके रखे। क्या आपने इस पर विचार किया है कि हम बस पढ़ते चले जा रहे हैं पर कब तक ? आप अपने लक्ष्य की समय सीमा तय कर ले, इससे आप पर लक्ष्य को समय से पूरा करने का दबाव पड़ेगा।

3. आप अपने कोर्स से इतर विषयों पर भी किताबें पढ़ते रहें। किताबें पढ़ने की आदत, आपको हमेशा आगे रखेगी। 

4. तेजी से पढ़ने की आदत विकसित करें। यह एक ऐसी बात है जो ज्यादातर लोगों को पता नहीं होती है। तमाम लोगों से बात करने के आधार पर यह समझ आया है कि बहुधा लोग, किताब खोल कर बैठ जाते हैं पर उनका मन वहाँ पर नहीं होता है। इसके चलते कई बार वो कई घंटे बाद भी पहला पन्ना भी खत्म नहीं कर पाते हैं।

5.  तेजी से पढ़ना सीखने के लिए आपको गैर जरूरी चीजें  स्किप करना सीखना होगा। अपने कभी गौर किया है कि हर वाक्य, पैराग्राफ व कई बार पूरे पन्ने में गैरजरूरी चीजें होती हैं। आप मतलब की चीजें , निकलना सीख जाए तो आपके पढ़ने की गति बहुत तेज हो जाएगी। 

6. रुचि जगाये । अपने देखा होगा कि कई बार कॉमिक्स, नॉवेल जैसी चीजें पढ़ने में कभी न थकान होती है न ही बोरियत। इसकी वजह रुचि का होना होता है। इसलिए आपको पूरी रुचि के साथ किताबें में डूब कर पढ़ना चाहिए।

5. पिछले दिनों मैंने रॉबिन शर्मा की एक किताब The monk who sold his ferrari पढ़ी. इसके बारे में पहले सुना था पर लगा कि फालतू किताब होगी कोई योगी, अध्यात्म से जुड़ी, इसलिए कभी पढ़ने की कोशिस नहीं । पर अब पढ़कर लगा कि इस किताब को जितनी जल्दी हो, सबको पढ़ना चाहिए। इसमें बहुत सरल तरीके से अपने लक्ष्यों को पूरा करने, सच्ची सफलता के बारे में बात की गई है। गूगल में पीडीएफ मिल जाएगी, सर्च करके जरूर पढ़िए।

कुछ और भी बढ़िया किताबें पढ़ी जा रही है, इसलिए आगे भी कुछ ऐसी पोस्टों की उम्मीद के साथ विदा 😊

© आशीष कुमार, उन्नाव
30 मार्च, 2020।


गुरुवार, 19 मार्च 2020

My introduction with libraries

दो शब्द पुस्तकालयों के संदर्भ में 

पुस्तकालय से पहला परिचय मौरावां में हुआ, मेरे इंग्लिश की कोचिंग वाले रितेश सर ( गुड्डू भैया ) ने मुझे वहाँ की सदस्यता दिलवा दी। शायद 50 रुपए सदस्यता शुल्क था। बात कक्षा 11 की थी। इसके पहले गांव में यहाँ वहां से इधर उधर की किताबें जुटा कर पढ़ा करता था जिसमें प्रायः  मेरठ से छपने वाले सस्ते उपन्यास हुआ करते थे। वेद प्रकाश, ओम प्रकाश, रीता भारती, गुलशन नंदा आदि आदि। गांव में ये किताबे कौन लेता पता न चलता पर आदान प्रदान के जरिये पूरा गांव पढ़ा करता था। गर्मी की दोपहरी में दुछत्ती पर चारपाई में लेटकर पढ़ने का सुख, रात में चोरी से किरोसिन के दीपक में इन प्रेम, रहस्य, रोमांच, अपराध, मार धाड़ से लबरेज किताबों में डूबने के सुख को वही समझ सकते है जो इसे भोग चुके हैं।

मौरावां में भैया ने सदस्य बनवाने के साथ तमाम किताबे सुझाई जिनमें मंटो, शरत चन्द , इस्मत चुगताई जैसे कुछ नाम याद आते हैं। दो साल उस कस्बे में रहा और मेरे ख्याल से 200 से 250 किताबें पढ़ी होंगी। पिता जी ने पहले डॉट लगाई थी फिर बाद में वो भी मेरे कार्ड पर किताबें निकलवाने लगे, कई शाम हम दोनों किसी मोटी किताब लिए अपने अपने में डूबे रहते। इसका परिणाम मेरे 12वी के अंकों पर पड़ा, गणित में बस 100 में बस 37 अंक। खैर इससे फर्क क्या पड़ता था, पिता जी इसमें खुश थे कि पास हो गए यही क्या कम है।

इसके बाद उन्नाव के जिला मुख्यालय में स्नातक के लिए जाकर रहना शुरू हुआ। वहाँ जिला पुस्तकालय में सदयस्ता लेने के लिए बड़ी जहमत उठानी पड़ी,तमाम चीज़ो के साथ कचहरी से एफिडेविट भी मांगा गया। मुझे पढ़ने का इतना नशा कि उसी दिन दौड़ भाग कर सारी खाना पूर्ति की। शाम तक दो किताबें मेरे हाथ में थी, सोचो कौन सी ? देवकीनंदन खत्री कृत चंद्रकांता के दो भाग। वहां के तमाम किस्से , अलग अलग टुकड़ो में पहले लिख चुका हूँ। एक कार्ड पर दो किताबें निकलती थी, बाद में मैंने अपने दो कार्ड बनवा लिए और ताबड़ तोड़ ( सच में ) किताबें पढ़ी, शायद 300 से 400 के बीच।

उन्नाव में एक गांधी पुस्तकालय भी है जो शाम व सुबह के समय ही खुलता है शिवाय सिनेमा के पास। बाद में यह मेरे लिए ज्यादा अनुकूल पढ़ने लगा। शाम को ट्यूशन पढ़ाकर लौटते वक्त अपनी साइकिल वही रुकती और पुस्तकालय बन्द होने तक वही रहता। मेरी साईकल के हैंडल पर एक कैरियर लगा होता जो विशेषतौर पर इन्हीं किताबों के लिए लगवाया गया था। यहाँ भी दो कार्ड बने 200 से 300 किताबें पढ़ी गयी। बाद में कार्ड भाईयों को दे दिया और वो निकलवा कर पढ़ते रहे।

फिर अहमदाबाद में अलग अलग जगहों पर पुस्तकालय गया। मेमनगर वाली सरकारी लाइब्रेरी,शुभ लाइब्रेरी, स्पीपा की लाइब्रेरी, विवेकानंद लाइब्रेरी, राणिप, और आखिरी वो जहां से आखिरी अटेम्प्ट देना हुआ। यहाँ पर साहित्य की एक भी किताब न पढ़ना हुआ। सब में अपनी किताबें ले जाकर पढ़ना होता था। 2012 से 2019 तक अहमदाबाद के पुस्तकालयों में सिविल सेवा की ही किताबें पढ़ी गयी।

इसके बाद दिल्ली आना हुआ,  मेरी अकादमी का सरदार पटेल नाम से एक समद्ध पुस्तकालय हैं।यहाँ फिर से साहित्य पढ़ना शुरू हुआ। अब अपनी मन की किताबें यहाँ बोल कर ख़रीदवाई जा सकती थी। कुछ महत्वपूर्ण किताबे जो पढ़ने से रह गई, वो लिस्ट बना कर दे दिया। सब खरीदी गई। जब भी उधर जाना होता, इंचार्ज बोलते कि पढ़ तो बस आप ही रहे हो। अब मोटे उपन्यास की जगह पत्रिकाओं ने जगह ले ली, शायद समयाभाव।

इस लंबे चौड़े अतीत लेखन का उद्देश्य पोर्ट ब्लेयर के अनुभव को लिखना मात्र था।दरअसल अभी तक सभी पुस्तकालयों में किताबें लेने के लिए तमाम ताम झाम , मगजमारी करनी पड़ती थी। पोर्ट ब्लेयर में समय कट न रहा था। नेट स्पीड की मध्यम गति से परेशान , समय काटे न कटे। पुस्तकालय का ख्याल आया पर लगा कि मेंबर बनना काफी तामझाम रहेगा। 

खैर एक रोज पहुँच गए, परिचय दिया। इतना काफी था बड़ी गर्म जोशी के साथ स्वागत और यह छूट कि आप को जो भी, जितनी भी किताबें पढ़नी है निकलवा लीजिए। "आप लोगों के लिए अलग रजिस्टर है  नाम व मोबाइल no दे दीजिए बस" 
ऐसे समय में अपने पद व उसके साथ मिलने वाले इस तरह के विशेषाधिकार बड़े सुखद अनुभूति देते हैं, कहाँ तो वो दिन कि जब 2 किताबें के लिए दुनिया भर की कागजी कार्यवाही और अब ये दिन।

ऊपर दूसरे फ्लोर पर किताबें तलाश रहा था और साथ आया बन्दा, वहाँ बैठी सहायक को निर्देश देकर गया कि साहब की चुनी किताबें, लेकर नीचे साथ आना। यद्यपि मैंने उस सहायक को विनम्रतापूर्वक  अपनी किताबें उठाने से मना कर दिया तथापि पोर्ट ब्लेयर के मुख्य पुस्तकालय के कर्मचारियों की गर्मजोशी सदैव के लिए मानस पटल पर अंकित हो गयी।

© आशीष कुमार, उन्नाव 
दिनांक 19 मार्च, 2020
(हैडो, पोर्ट ब्लेयर)


शनिवार, 7 मार्च 2020

NO AGE LIMIT

"न उम्र की सीमा हो "

लिखने वाले के लिए यह जरूरी नहीं वो हमेशा अपने ही अनुभव लिखे। पिछले दिनों मुझे दूसरों के जरिये कुछ बड़े गजब के अनुभव सुनने को मिले, उन्हीं में से यह एक ..

तमाम लोगों को काम करने का इतना गहरा चस्का होता है या कुछ और ..जिस उम्र में शांति से घर में आराम करना चाहिए वो हिलते डुलते काम में लगे रहते हैं। मैं बात सरकारी सेवा की कर रहा हूँ। एक अकादमी में एक साहब   पढ़ाने आते थे। बहुत ज्यादा ही योग्य, जितनी हमारी उम्र उससे दोगुना उनका अनुभव । कितनी ही किताबें प्रकाशित हो चुकी थी। जब वो पढ़ाते तो खड़े खड़े काँपने लगते। थोड़ी में उनकी साँसे फूलने लगती,बेचारे बड़ी ही मेहनत से पढ़ाते अब यह अलग बात है कि साहब 15 क्लास में 5 पन्ने की भी विषयवस्तु न पढ़ाई होगी। वो खुद बताया करते कि उनके बच्चे मना करते है कि अब आप पढ़ाने न जाया करिये, मैं खुद न मानता हूँ। इस बीच क्लास में पीछे से आवाज आती कि हां हम लोग तो फालतू हैं, जाहिर है साहब के जर्जर हो चूके कानों  तक ये मजाक न पहुँच पाता।

खैर आज एक बहुत ही बड़े साहब की कहानी बतानी है। साहब इतने बड़े इतने बड़े हैं कि पुछो ही मत और उनकी अवस्था क्या हो चुकी है वो आप आगे पढ़ने जा रहे हैं।

जिनके मुख से मैंने यह घटना सुनी वो साथी भी सिविल सेवक हैं। मित्र का प्रशिक्षण चल रहा था। उन्हें पता चला कि बड़े वाले साहब का उनके क्षेत्र में दौरा है, साथी , साथी के बॉस सब लोग आनन फानन में क्षेत्र पहुँच गए। मित्र अपनी गाड़ी से उतर कर, बहुत बड़े वाले साहब के पास पहुँचे। बड़े वाले साहब अपनी कार से उतर ही रहे थे। मित्र ने जाकर अभिवादन किया और बड़े साहब उतर कर खड़े हुए। मित्र ने बड़े साहब से बताया कि सर अपने पिछले वर्ष  मेरे UPSC वाले साक्षात्कार में सदस्य थे, 

अब इसे संयोग कहे या क्या कहे ठीक उसी समय साहब की पैंट उतर ( दरअसल सरक ज्यादा उचित शब्द है) कर नीचे जूतों पर जा टिकी। मजे की बात यह कि साहब को इसका आभास ही नहीं, मित्र को बताना पड़ा कि साहब आपकी पैंट उतर गयी है। इसी बीच उनका सहायक आ गया और बड़े साहब की पैंट में दोनों तरफ से अंगुली फ़साई और कमर में लाकर टिका दी। ( आपको हेराफेरी फ़िल्म के बाबूराव याद आ रहे होंगे, बाबूराव थोड़ा जवान थे कम से कम झुक सकते थे पर ये साहब इस दशा में थे कि झुक भी न सकते थे )

मेरा हँस हँस कर पेट फूल गया और मैंने तिखार तिखारकर (तिखारना एक बैसवाड़ी बोली,अवधी का शब्द है जिसका अर्थ है खोद खोदकर/रस ले लेकर  पूछना ) खूब पूछा, विस्तृत जानकारी ली मसलन कि क्या साहब ने बेल्ट न पहनी थी या तुम्हारे कहते ही कि उन्होंने उसका साक्षात्कार लिया था, उनकी पैंट सरक गयी और उन्होंने आपके बोलने पर क्या बोला था आदि आदि।

हालांकि बड़े साहब की टीम बहुत ही बढ़िया कार्य में लगी है पर आप ही सोचिए ऐसा भी क्या जुनून कि इस अवस्था में कार्य करते रहा जाय। अनुभव व योग्यता कितनी ही अधिक क्यों न हो क्या देश के अन्य लोगों के लिए बड़े साहब को जगह खाली न कर देनी चाहिये। 

( अपनी बात : इन दिनों हम 4g चलाने वाले लोग, भटकते भटकते 2g स्पीड वाली जगह में चले आये हैं, अब तमाम चीजों के साथ हम लिखने पढ़ने वालों लोगों को मन्थर, जर्जर गति के नेट स्पीड से बड़ी दिक्कत हो रही है। रचनात्मकता उछाल मारती जा रही है पर नेट स्पीड है कि उसे दबाये ही जा रही है। तमाम मजेदार अनुभव संग्रह हो गए है, ऊपर वर्णित घटना इस कदर भायी कि लगा इसे पाठकों को कैसे भी हो जरूर पहुँचनी चाहिये।
कहानी सुनाने वाले मित्र बहुत डरे कि लिखना मत, मुझे टैग मत करना, वरना बड़े साहब तक अगर बात गयी तो मेरी पैंट उतरवा देंगे। हमने उन्हें भरोसा दिया कि शरलक होम्स भी आएंगे तो भी जान न पाएंगे कि बड़े साहब कौन थे, बशर्ते आप मुँह न खोले ) 

( उक्त रचना काल्पनिक है, किसी नाम, घटना से इसका कोई लेना देना नहीं है )

© आशीष कुमार, उन्नाव। 
8 मार्च, 2020 ( पोर्ट ब्लेयर से ) 

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

repetitions

#दोहराव के मायने 

तमाम बार जब तुम्हें
बुलाता हूँ अपने करीब
नहीं बेहद करीब 
और दोहराता हूँ 
वही बातें
कि तुम मुझे 
बेहद पसंद हो

या कि मैं तुम्हें बहुत 
ज्यादा चाहता हूँ,
करता हूँ जुनून से
शिद्दत से, तुमसे प्यार

तब तुम मेरे इन 
दोहराव से कभी
न परेशान होना
या कि ऊबना

इन तमाम दोहराव
में निहित अर्थ 
यही है कि तुम 
मेरे लिए हमेशा 
रहोगी सर्वोपरि
और मेरे तुम्हारे प्रति प्रेम
कभी न होगा जीर्ण 

© आशीष कुमार, उन्नाव।
( 17 जनवरी 2020 )

with you

#तुम्हारे साथ

मैं चाहता हूँ रहना
 हमेशा ही तुम्हारे साथ 
मैं चाहता हूँ जुनूनी प्रेम
ताउम्र तुम्हारे साथ,

मैं चाहता हूँ जीना भरपूर 
हर पल, हर क्षण
केवल व केवल 
तुम से ही , प्रिय केवल तुम्हारे साथ।

©आशीष कुमार , उन्नाव।
(17 जनवरी, 2020)

Death of love

#ठंड

कॉफी पीने के बाद वो बाहर खुली छत के किनारे खड़े थे। कई दिनों से वो मिल रहे थे तमाम बातें भी करते। दोनों ही एक दूसरे की बातें बड़े गौर से सुनते, प्रायः उनकी आंखों में खुशी की एक चमक दिखती। 
वो काफी देर से बाहर खड़े थे। लड़की अपनी धुन में बातें किये जा रही थी, लड़का हूँ हा करते हुए वो उसके गोरे, नाजुक हाथों को गौर से देख रहा था। वो बहुत देर से उन हाथों को छूना चाहता था पर अजब कसमकश थी। वो छू न पा रहा था। वो शंकित था कि पता नहीं उसके भावों को कहीं गलत न समझा जाय।लड़की ने अपने दोनो हाथ जीन्स की पॉकेट में डाल रखे थे।

लड़के से जब रहा न गया, उसने पूछा कि तुम्हारे हाथों को काफी ठंड लग रही है क्या ? 
"हां,आज काफी ठंड है । " कहते हुए उसने अपने हाथों को और भीतर कर लिया।

खलील जिब्रान ने कहा है कि जो कहा गया पर समझा नहीं  गया और जो समझा गया पर कहा न गया के बीच में तमाम मुहब्बत की मौत हो जाती है।

(17 जनवरी, 2020)
© आशीष कुमार, उन्नाव।

गुरुवार, 9 जनवरी 2020

poem :fresh rose

कविता : ताजा गुलाब 

"जब तुम मेरी करीब होती हो
मुक्त मन से, आवरण रहित,
तुम मुझे एक ताजे गुलाब 
सरीखी लगती हो
अति कोमल, नाजुक 
भीनी भीनी खुसबू से भरी"

10 जनवरी, 2020,😌
© आशीष कुमार, उन्नाव

सोमवार, 6 जनवरी 2020

wait

इंतजार

"मैं थोड़ी देर में करती हूँ"
"अरे कोई नहीं "
" अरे मैं करती हूँ, पक्का"...
और वो हमेशा की तरह उसके फ़ोन का इंतजार करता रहा, यह जानते हुए भी कि घर में हजार तरह के काम होते हैं।

6 जनवरी 2020
© आशीष कुमार, उन्नाव


Poem : promise

एक वादा

प्रिय सुनो,
मुझसे करो एक वादा
नहीं नहीं 
शंकित न हो
बस एक छोटा आसान सा वादा

वादे हमेशा ही
आसान व सहज होने 
चाहिए ताकि वो निभाये 
जा सके ताउम्र 
बगैर किसी दुविधा के।

मुझे करो बस इतना
वादा कि हम आज 
जितने करीब है
उतने करीब रहेंगे उम्रभर

जैसे पकड़ लेता हूँ हाथ
सुलझा देता हूँ आपके बाल
अपनी अगुलियों से
लगा लेता हूँ गले से
निःसंकोच,

वादा करो कि जैसे
तुम भी टिका देती हो 
अपना खूबसूरत चेहरा 
मेरे कंधों पर,
सिमिट आती हो आगोश में मेरे
बगैर किसी परवाह के
सहलाती हो मेरे हाथों को
कभी कभी अनायास ही

आ जाती हो कभी भी, कहीं भी
बुलाने पर मेरे
नहीं करती हो अस्वीकार
साथ में देखने को चलचित्र
पढ़ती हो मेरे चेहरे को 
समझती जाती हो मेरे हर इशारे को
और उन तमाम बातों को
जो प्रेम में कभी कही नहीं जाती है।

प्रिय, बस इतना सा वादा करो 
कि उम्र के किसी भी दौर में
कैसे भी मोड़ पर 
जब हम मिले तो
रहे कम से कम इतना करीब
जितना कि इन दिनों हैं।

*6 जनवरी, 2020
©आशीष कुमार, उन्नाव 


रविवार, 5 जनवरी 2020

कविता 6: A love latter

 कविता 6: एक प्रेमपत्र

एक सुहानी रात
तुमने कहा कि
मैं लिखूँ एक प्रेमपत्र
जिसमें बतलाऊँ कि
मेरे हदृय में क्या 
जगह है आपकी,
क्या मायने है आपके होने
मेरे जीवन में। 

सुनो प्रिय,
मैं कोई उपमा
नहीं दे सकता
जो परिभाषित कर
सके हमारे 
अनाम रिश्ते को

मैं अमिधा में 
ही कहूँगा कि
तुम सबसे खास हो
सबसे करीब,
सबसे राजदार

तुम्हें सुन सकता हूँ
अनवरत, अविचल
बोल सकता हूँ तुमसे
हर वो बात जो
किसी से कभी नहीं
कहता,

कर सकता हूँ वर्षों इंतजार
आपके आने का,
नहीं रखता अपेक्षा जरा सी भी
न ही कोई उम्मीद। 

तुम जब भी साथ होती हो
तब महसूस करता हूँ
दुनिया की सबसे अनमोल खुशी
आँखों में आ जाती है
बयाँ न कर सकने वाली चमक।

दिसंबर की सबसे ठंढी शाम 
पार्क की कोने वाली बेंच पर,
बैठ सकता हूँ कई घंटे
तुम्हारे साथ, 
बस हाथों में लेकर हाथ। 

दे सकता हूँ और भी 
लंबे, चौड़े व गहरे 
आत्मीय बयान 
शर्त यह है कि आप 
समझ सके मुझे 
और माप सके 
अपनी जगह को
मेरे हदृय में ।

*5 जनवरी, 2020
© आशीष कुमार, उन्नाव







बुधवार, 1 जनवरी 2020

2 पेन व डायरी

                                                           2 पेन व डायरी

कुछ दिन से वो चौकीदार अंकल बहुत याद आ रहे है। काफी साल पहले की बात है , वो हमारे पड़ोसी थे। उस घर में तमाम किरायेदार रहा करते थे। मेरा रूम , उनके सामने ही था। मस्त मौला आदमी थे। हमेशा कुछ न कुछ मजाकिया बातें किया करते थे। उनके कुछ छोटे २ किस्से याद आते हैं।

१.  पहला किस्सा वो था जिसमें वो एक ऐसे आदमी का जिक्र करते जो बिलकुल भी पढ़ा लिखा नहीं था। ऐसे लोग काफी गुनी होते हैं। उसने लोगों को देख देख कर कुछ बातें सीख ली। उन्हीं बातों में एक बात उस अनपढ़ आदमी ने यह भी सीखी। उसकी जेब में हमेशा दो पेन व एक छोटी पॉकेट डायरी जरूर होती। एक बारात में वो इस रूप में गया। अच्छे से बाल सवारे , साफ स्तरी किये हुए कपड़े, शर्ट की जेब में दो पेन , एक छोटी पॉकेट डायरी। उसी बारात में किसी लड़की ने इन सज्जन को देखा और उसके मन में बड़े मधुर विचार पनपे। लड़की पढ़ी लिखी व काफी समझदार थी। उसने हमेशा से सोचा था कि किसी पढ़े लिखे इंसान से प्रेम विवाह ही करेगी। अंकल खूब हसँते -हसँते  बताया करते थे कि इस तरह से एक अनपढ़ इंसान ने दो पेन व एक पॉकेट डायरी के सहारे सुंदर -पढ़ी लिखी समझदार बीवी पा ली।

२.  अंकल ने मुझको लेकर एक भविष्यवाणी की थी कि देखना आशीष तुम एक दिन बहुत बड़ी नौकरी पाओगे। जब मैं उनसे पूछता कि ऐसा क्यों लगता है तो कहते कि तुम इतनी मोटी -२ किताबें जो पढ़ते हो। मैं बहुत मुस्कुराता और कहता कि ये तो फालतू के नावेल हैं , जो बेरोजगार खाली इंसान समय गुजारने के पढ़ा करते हैं। उन दिनों गोर्की का मां, शरत बाबु का देवदास, टालस्टाय का वॉर एंड पीस, कामु का प्लेग जैसी किताबें मेरे बिस्तर पर पड़ी रहती। रूसी भाषा के कुछ अनुदित नावेल 700-800 पेज के हुआ करते थे। बाद के तमाम सालों में मुझे अंकल वो तर्क याद आता रहा कि जो मोटी 2 किताबें पढ़ सकता है वो बड़ी नौकरी करेगा।

तो अब कहानी खत्म करू, नहीं कहानी तब तक खत्म न होगी जब तक आपको यह न बता दूँ कि अंकल चौकीदार जरूर थे पर रात में भी वो अपनी शर्ट में दो पेन व एक छोटी डायरी लेकर जाया करते थे।

(1 जनवरी 2020, दिल्ली)
© आशीष कुमार, उन्नाव

मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

Year end 2019

 एक और साल बीत गया !

तमाम सालों से एक आदत सी पड़ गई है, डायरी में हर साल का विश्लेषण करना। यह साल कई मायनों में अलग रहा, इस साल सबसे कम पढ़ना हुआ, एक तरह से किताबों से दूर हो गया। लिखना भी कम ही हुआ पर हमेशा की तरह कम लिखा पर जोभी लिखा गया, कहीं न कहीं प्रकाशित हुआ, जिसमें कादम्बनी जैसी ख्यातिलब्ध पत्रिका में एक कविता "आत्मबोध" का प्रकाशित होना, एक रूप में काफी बढ़िया उपलब्धि रही। 
साल की सबसे अच्छी बातों में एक यह रहा कि इस साल फिटनेस के लिए अच्छा समय मिल और तमाम वर्षो की दबी हुई ख्वाहिश पूरी होने के करीब है। 14 kg वजन कम करना , खान पान से समझौता किये बगैर काफी सुखद, सुकून भरा रहा। 
इसी दिसम्बर से  सुबह उठने की भी आदत पड़ गई। कितने ही साल से मैं हमेशा देर रात तक जगता और सुबह 9 बजे उठा करता था। जिम के शौक के चलते, रात में जल्दी सोने की व सुबह जल्दी उठने की आदत पड़ गई है। सुबह जल्दी उठने के गजब मजे होते हैं, जिस्म में एक अलग सी स्फूर्ति महसूस होती है। लेट उठने से सारा दिन आलस बना रहता था।
साल के अंत में आते 2 दिल्ली भी भाने लगा। शुरू के कुछ महीने बड़े आलस में गुजरे थे, पिछले कुछ समय से खूब घूमना फिरना शुरू कर दिया। 
यात्रायें इस वर्ष तमाम हुई प्रायः सरकारी दौरे लक्षद्वीप से गंगोत्री तक खूब कदम फिरे। 
नए साल के लिए दो चीजें मुख्य फोकस पर रहेंगी
1. फिटनेस
2. लेखन
इनके साथ 2 यह भी उम्मीद करता हूँ कि आप सब मित्रों, पाठकों, आत्मीय जनों से सम्बंध और ज्यादा मधुर, गहरे व सुस्थाई होंगे। 
नए लक्ष्यों को निर्धारित करें, जो भी करें पूरे जुनून, उत्साह व साहस के साथ जीवन के मजे लेते हुए करें।
सभी को नया साल मुबारक .. 
आपका ही 
आशीष , उन्नाव। 

शनिवार, 28 दिसंबर 2019

kavita 05: Hisab - Kitab

कविता 5 : हिसाब किताब 

जब मैं कहता हूँ कि
तुम्हें पाने से पहले खो चुका हूँ
तो अक्सर तुम नहीं समझ पाती
कि मेरे कथन का निहितार्थ,
दरअसल तुम ज्यादा दूर की 
सोचती ही नहीं,
नहीं बनाती हो लंबे चौड़े 
सुव्यवस्थित, सौदेश्य नियम
तुम बस वर्तमान में जीती हो
हर पल, हर क्षण का रखती हो
पूरा हिसाब - किताब । 

मैं बनाता हूँ योजनाएं,
भविष्य के लिए तमाम नियम 
सोचता हूँ हर पहलू को
विचार करता हूँ नियति व प्रारब्ध पर
मनन करता हूँ 
तुम्हारे होने या न होने पर
इसलिए मेरे पास वर्तमान का कोई
हिसाब किताब न होता है। 

प्रेम दोनों को है
बहुत गहरा,नियत व स्थायी
बस हिसाब किताब जरा सा
अलग थलग सा है। 

28 दिसंबर , 2019
©आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तर प्रदेश।

गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

motivational : Rajesh kumar soni SDM in Haryana

#SDM
कभी 2 कुछ बड़ी सुखद खबरें अचानक मिलती है। कल रात में Rajesh Kumar Soni​​ का मैसेज मिला कि उनका हरियाणा सिविल सेवा में sdm पद पर चयन हो गया है। कुछ दिन पहले जब महिपाल ( UP SDM ) वाली पोस्ट लिखी थी तब इस तरह के विचार आये थे कि अभी एक्साइज एंड कस्टम विभाग के तमाम साथियों का चयन बाकी है, इनमें राजेश का भी ख्याल आया आया आया था। इनसे अहमदाबाद में परिचय हुआ था। वहाँ के सबसे करीबी 2 - 3 मित्रों में एक हैं। उनकी इस सफलता में लगभग हमेशा साथ रहा, बड़ी अफरा तफरी में इस बार और हरियाणा में पहली बार TRY किया था। इससे पहले आईएएस के तीन बार साक्षात्कार दे चुके थे और अब वो लगभग अपनी यात्रा खत्म मान चुके थे। पिछले कुछ टाइम से वो फील्ड पर थे, तैयारी के लिए वक़्त कम मिलता था। UPSC के बजाय अब स्टेट पर फोकस करने लगे थे। हरियाणा , UP में एग्जाम दे रहे थे। 
इंटरव्यू, मुख़्य परीक्षा हर चरण में बात होती रही, हमारे एक बैच मेट दीपक पुंडीर जोकि पहले हरियाणा सिविल सर्विस में थे, उनका सम्पर्क भी करवाया। मुझे जहां तक याद आता है हिंदी के लिए भी बात हुई थी कि व्यख्या आदि कैसे तैयार करूँ ? 

सफलता उनके लिए भी बड़ी सुखद आश्चर्य है , बताया कि मैं तो अपना रोल NO , लिस्ट में नीचे देख रहा था और लगा कि हुआ नहीं। अचानक मुझे अपना रोल NO , SDM वाली लिस्ट में दिखा। जब टाइम आता है तब ऐसा ही होता है। उन पर बात होती रहेगी। योग, अध्यात्म में उनकी भी गहरी रुचि हैं, हम तमाम संडे, अहमदाबाद के बाहर एक केंद में जाया करते थे। तमाम चीजें हैं बताने को। करीबी इतनी कि 31 दिसंबर 2018 को जब मैंने अहमदाबाद हमेशा के लिए छोड़ रहा था, आखिरी डिनर उनके घर ही हुआ था। अब हम दिल्ली, वो हरियाणा , सुबह 2 इतनी बढ़िया सकारात्मक खबर आप सभी से साझा कर बड़ी खुशी हो रही है। राजेश भाई, आपको बहुत 2 बधाई, आपकी सफलता मेरे तमाम पाठकों के लिए बड़ी प्रेरक है। 
- आशीष , उन्नाव । 

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

motivational : Two aspirant


वो जो हमेशा  रोते  रहते हैं 

पिछले दिनों मैं घूमने के लिए दिल्ली से बाहर गया था. इस दौरान कुछ जाने अनजाने प्रतियोगियों से मिला। दो  लोगों का जिक्र करूँगा। एक मेरे बहुत पहले के परिचित थे। दरअसल वो मुझे जानते थे पर मुझे ठीक से उनका चेहरा याद न था। एक साथी के जरिये मुलकात हुयी। उन्हें तैयारी करते लम्बा वक़्त हो गया है काफी परेशान लग रहे थे। कुछ देर की बात में ही तमाम बार बोले - " बड़ी दिक्क्त है " उनका मतलब पैसों से था। मेरे हिसाब से वो 12 साल से तैयारी कर रहे है। 

मैंने पूछा कि आईएएस pcs  के अलावा भी फॉर्म डालते हो। बोले हाँ पर फोकस नहीं कर पाता , फोकस केवल आईएएस pcs पर ही रहता है। मैंने पूछा - लेखपाल वाला फॉर्म डाला था। बोले हाँ पर उसमे हो नहीं पाया। बातों 2 में बता डाला कि शिक्षक भर्ती में भी मेरी मेरिट कम रह गयी। कुछ और बाते हुयी यथा कि उत्तर लेखन कैसे करूँ , टिप्स बता दो। फिर घूम फिर कर वही बात बड़ी दिक्क्त है अब घर से पैसे लेने का मन न होता है। किसी मित्र का नाम का नाम लिया और वो बोले की वो थोड़ी बहुत हेल्प कर देता है। 

अब मुझसे रहा न गया। " भाई , आप इतने दिनों से तैयारी कर रहे हो , लेखपाल का एग्जाम निकलता नहीं पर फोकस आईएएस पर। पैसे का रोना क्यों रोते हो वो भी मेरे सामने----- इतने योग्य तो हो ही कि एक दो ट्यूशन पकड़ लो। कब तक दूसरे के सहारे बैठे रहोगे। दिक्क्त -२ बोलकर कब सहानुभूति लेते रहोगे दुनिया की। या तो तुम मेरी कहानी जानते नहीं या फिर तुम्हे रोने की आदत लग गयी  है। " तमाम चीजें बोलता रहा यह भी बताते हुए कि मुझे ऐसे लोगों पर बड़ा गुस्सा आता है। ऐसे लोगो तमाम एक्सक्यूज़ भी देंगे कि ट्यूशन में टाइम बहुत बर्बाद होता है। मेरी समझ नहीं आता कि 24 घंटे पूरी तरह से पढ़ाई पर फोकस बना रहता है क्या। मेरे ख्याल से यह बस भरम है वरना  ठीक से 10 घंटे काफी है। 

मैं देखता हूँ लोग दिल्ली इलहाबाद में वर्षो जमे रहेंगे और बोलेंगे कि बड़ी दिक्क्त है पैसों की। अगर आप दिल्ली अलहाबाद में हो तो फिर वो जो ऐसे शहरों तक नहीं पहुंच पाते है उनको क्या --- पर उन पर नजर कभी जाएगी ही नहीं। वो जो 18 के भी नहीं होते है और ट्यूशन पढ़ाने लगते है उनको दिक्क्त नहीं है ------. 

काफी दिनों बाद इस पोस्ट के जरिये प्रतियोगी साथियों से बात कर रहा हूँ और उक्त कहानी बताने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि भाई अपनी  क्षमता  भी जान लो।  बेहतर तो यही होगा कि छोटे २ एग्जाम से शुरुआत करो. दिवा स्वप्न देखने बंद कर दो, अब दिन बदल गए है। 

खैर दूसरे मित्र का भी जिक्र कर लेता हूँ - पूरी तरह से अजनबी , फेसबुक पर कभी कभार एक दो मैसेज से बात हुयी थी। अंतिम समय में दौड़ते भागते स्टेशन पहुँच गए मिलने के लिए। 25 की उम्र भी न हुयी है पर नेट करके एक डिग्री कॉलेज में पढ़ाते भी है और तैयारी भी कर रहे हैं। लगातार pcs mains लिख रहे है। अब आईएएस भी देना शुरू करना चाहते है। ऐसे लोगों से मिलना सार्थक भी रहता है। एक विशेष बात का जिक्र भी करना चाहुँगा कि दीक्षित जी ने एक बार भी अपने जनरल होने का रोना भी नहीं रोया ( इस पर ज्यादा बात न करूंगा पर तमाम बार इस तरह की भी सामने आ जाती हैं ). दिल से आशीर्वाद निकला कि तुम जल्द ही sdm बनने वाले हो। मुख्य परीक्षा के लिए भी उनको काफी अच्छे से समझना , बड़ा अच्छा लगा।  

तो दो लोग आपके सामने है आपका दिल क्या कहता है -- कौन बेहतर दावेदार लग रहा है। स्वाभिमानी व्यक्ति कभी भी अपने अभावों को सामने नहीं रखेगा। जितना मैंने देखा सुना भोगा पाया है उससे यही कहूंगा कि स्वाभिमानी व्यक्ति को सफलता मिलती है न कि रोने वालों को।  

17 दिसंबर 2019 ,
© आशीष , उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

सोमवार, 9 दिसंबर 2019

Story : A Vegetable seller in delhi

                धनिया पत्ती

बात कुछ पहले की है अब उतने महत्व की भी न रही पर लिख ही डालते है। कुकिंग बहुत बहुत पहले से करने लगा था, ज्यों 2 बड़ा हुआ त्यों 2 कुकिंग और ज्यादा व्यवस्थित होती गयी। धीरे 2 समझ आया कि धनिया पत्ते के बगैर तो कुछ भी बना हो स्वाद आता ही नहीं। कहने के मतलब कुछ भी हो धनिया पत्ते के अभाव में सब्जी न बनेगी।

पाठकों में पता नहीं कितने लोग सब्जी लेने जाते है या नहीं पर मुझे यह काम फिलहाल तो खुद ही करना पड़ता है। जब रूम पार्टनर थे तब यह उनकी जिम्मेदारी हुआ करती थी। सब्जी खरीदना भी बड़ी कला है पर मुझसे न होती है। अपन तो कपड़े भी 10 मिनिट में खरीद के निकलने वालों में है फिर सब्जी में कौन जांच परख में दिमाग लगाए। रुकते है वरना सब्जी खरीद शास्त्र लिख डालूंगा, धनिया पत्ते पर आते हैं।

पिछले दिनों मालूम है धनिया पत्ता के दाम कहाँ थे। 400 रुपये किलो यानी 10 रुपये की 25 ग्राम। आम तौर पर धनिया मिर्चा लोग फ्री में डलवा लेते हैं। उन दिनों भूल से भी ऐसी मांग नही की जा सकती थी। सब्जी वाले भड़क उठते थे। अगर आशंका होती कि फ्री में मांगेगा तो अक्सर बोल देते की है ही नहीं।

जैसा कि लोग कहते है कि विक्रेता गाड़ी देख के दाम बताते हैं, तमाम लोग इसी होशियारी में गाड़ी दूर खड़ी करके , फल खरीदने पीछे आते हैं। कुछ ऐसे भाव रहे होंगे जब मैंने उससे वैसी बात की।

उस दिन जब एक ठेले वाले से पूछा -
कि भाई धनिया पत्ती कैसे दिए ?
"40 की 100 ग्राम " उसने सर तक न उठाया , उसके सामने तमाम ग्राहक थे।
" यार कल तो उस ठेले वाले ने तो 30 रुपये में दिया था, क्या गाड़ी देख के दाम बता रहे हो ?" प्रसंगवश मैं रॉयल एनफील्ड से गया था।

" घर में दो दो खड़ी हैं...." ठेले वाले से कुछ ऐसे ही बड़बोले जबाब की ही उम्मीद मैंने की थी, आखिर मैं दिल्ली में खड़ा था।

" भाई, अब तीसरी भी जल्द खड़ी होने वाली है तेरे घर ..." मैंने मुस्कुरा कहा।
"क्या मतलब " सब्जी वाले ने अब सर उठाया।

" कुछ नहीं , तुम अमिधा ही समझ सकते हो, लक्षणा, व्यंजना तुम्हारे बस की बात नहीं" उस सब्जी वाले को, जिसके घर दो दो बुलट खड़ी थी, थोड़ा उलझन में डालकर आगे बढ़ आया।

उसको क्या खबर कि इस दिल्ली में किराए के पैसे से ऐश, मजे करने वालों के बीच ठेठ ग्रामीण परिवेश से आये भी लोग रहते है जो कितना ऊपर उठ जाए, उनसे बेफजूली खर्च चाहकर न हो पाती है।

( रेल सफर के बीच रचित )

9 दिसम्बर, 2019
© आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तरप्रदेश।

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

Unnao : a sad truth

उन्नाव

उन्नाव फिर से चर्चा में है, मेरी व्यथा यह है कि यह हर बार अपराध के लिए ही राष्टीय स्तर पर चर्चा में आता है। कहते है जन्मभूमि स्वर्ग समान होती है, अपनी मिट्टी से बड़ा लगाव होता है। मेरी तमाम तरह से कोशिश होती है कि उन्नाव , पूरे भारत में बढ़िया चीजों के लिये जाना जाय। मेरी पोस्ट के अंत में हर बार जो उन्नाव का जिक्र देखते है उसके पीछे की मंशा उक्त ही है।
कलम व तलवार की धरती उन्नाव को न जाने कब अतीत वाला गौरव मिलेगा। प्रताप नारायण मिश्र, निराला, रामविलास शर्मा व चन्द्रशेखर आजाद की धरती को न जाने किसकी नजर लग गयी है। तमाम बार जब लोग पूछते है कि उन्नाव कहाँ पड़ता है तो कुछ भी बताओ तो लोग शायद ही समझ पाए पर अगर चर्चित रेप कांड का नाम ले लो या फिर वो बाबा के सपने में 1000 टन सोने की खुदाई वाली घटना का नाम ले लो फिर सब समझ जाते है। है न अजीब पर सत्य यही है। यह चीजें इसलिए कह रहा हूँ कि मुझे तमाम बार काफी बड़े मंचो व अति प्रतिष्ठित लोगों से मिलने पर बड़े गर्व से बताना होता है कि मैं उन्नाव से हूँ।
खैर
अच्छी उम्मीदों के साथ,

आपका ही
आशीष, उन्नाव।
7 दिसंबर, 2019

#unnao #Nirala #azad

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