तहलका के 31 दिसंबर 2017 के अंक में विजय माथुर जी के लेख में समाज के विकृत पहलू पर बारीकी से विचार किया गया है। रेगर ने उदयपुर के राजसमंद में जो 6 दिसंबर को बर्बर कृत्य किया है , वह लोकत्रांत्रिक , धर्म निरपेक्ष भारत पर एक धब्बा सरीखा है। कानून को अपने हाथ में लेने की इजाजत किसी को नहीं है। अफ़राजुल , एक मुस्लिम होने से पहले इंसान था जो अपनी आजीविका के लिए , अपने घर से दूर पड़ा था। समाज में सही संदेश जाय , इसलिए जरूरी है कि इस बर्बर घटना में पूरा न्याय दिया जाय ताकि इस तरह की घटनाये भविष्य में न हो।
आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश
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