डिजिटल दुनिया के खतरे
आउटलुक का 23 अप्रैल का अंक डिजिटल दुनिया के स्याह पहलुओं पर बारीकी से प्रकाश डालता है। फेसबुक और कैंब्रिज एनालिटिका प्रकरण के बाद आम आदमी की सोच और निणर्य लेने की क्षमता पर सवाल खड़े होने लगे है। प्रसंगवश मुझे रामधारी सिंह दिनकर की कुरुक्षेत्र में लिखी दो पंक्तियाँ याद आती है -
सावधान ! मनुष्य यदि विज्ञानं है तलवार
तो फेंक दे ,तज मोह , स्मृति के पार।
फेसबुक जोकि पहले सोशल साइट थी आज डेटा से सबसे बड़े भंडार के तौर पर एक परमाणु बम सरीखी लगने लगी है। हरवीर जी ने सम्पादकीय में बिलकुल सही कहा है -अगली पीढ़ी की तकनीक से सामने हम निहथे है। विश्व में अभी बड़ी तादाद में आबादी शिक्षा से वंचित है , डिजिटल शिक्षा उनके लिए दूर की कौड़ी है। ऐसे में डिजिटल शिक्षा से वंचित लोग आने वाले समय से सबसे कमजोर , सुभेद्य होंगे। इसलिए जब समावेशी विकाश की जब बात की जाय तो इसे केवल आवास , टायलेट , बैंक खाते तक न रखा वरन इसमें डिजिटल दुनिया के सभी पहलुओं पर ज्ञान को भी शामिल किया जाना चाहिए।
आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें