बुद्धिजीवियों के विचारों पर पहरेदारी
देश की सर्वश्रेष्ठ वैचारिक पत्रिका सरिता के अक्टूबर (प्रथम ) 2018 अंक में भारत भूषण जी के लेख को पढ़ा। समकालीन समय की विसंगति को यह लेख बखूबी दिखलाता है। निश्चित तौर पर अभिव्यक्ति की आजादी, ही किसी देश के लोकत्रांत्रिक मूल्यों का सही मायने में पैमाना होती है।
देश के संविधान में अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की आजादी को भारतीय नागरिकों को मूल अधिकार के रूप में उपलब्ध कराई गयी है। इसमें कुछ शर्तों का भी उल्लेख है। अक्सर देखा गया है कि इन्हीं शर्तो के आधार पर , समय समय पर नागरिकों की अभिव्यक्ति की आजादी को कुचला जाता रहा है।
ऐसे में लोकत्रंत के तीसरे स्तम्भ व संविधान की सटीक व्याख्या करने का अधिकार रखने वाली न्यापालिका का दायित्व व जबाबदेही सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है कि वह भारत में यहाँ के नागरिकों को सही मायने में अपनी बात रखने का माहौल बनाये रखने में मदद करे। प्रसंगवश मुझे किसी कवि की बड़ी गहरी पंक्तियाँ याद आ रही है -
बुरे लोग दुनिया का खतरा नहीं ,
शरीफों की चुप्पी खतरनाक है।
आज जब मीडिया सस्थानों की भूमिका पर अक्सर सवाल खड़े किये जा रहे है , दिल्ली प्रेस समूह की पत्रिकाओं विशेषकर सरिता में ऐसे ज्वलंत लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा। संपादक महोदय व उनकी टीम को हार्दिक धन्यवाद ।
आशीष कुमार ,
ईमेल - ashunao@gmail.com
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