मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

How to double former income


[ This letter has been published in yojna hindi feb 2018 issue .]

'बैकिंग सुधार' पर क्रेन्द्रित योजना का जनवरी 2018 अंक मिला। आजादी के बाद से ही भारतीय अर्थव्यवस्था में बैंको की बेहद अहम भूमिका रही है। 2008 के वैश्विक मंदी के दौर में जब अमेरिका के बेहद मजबूत बैंक , एक एक कर धराशायी हो रहे थे , भारतीय बैंक बेहद मजबूती के साथ टिके रहे। पिछले कुछ वर्षों से  भारतीय बैंक "अनर्जक परिसम्पतियों" के भार से जूझ रहे है।इसका प्रभाव , भारत की सकल वृद्धि दर पड़ रहा  है। भारत सरकार ने बैंको की मजबूती के लिए कई अहम कदम उठाये हैं यथा इंद्रधनुष योजना , बैड बैंक का गठन , दिवालिया कानून में संशोधन आदि। पिछले दिनों सरकार ने बैंको में 2.11 लाख करोड़ रूपये पूँजी निवेश कर इनको बड़ा सहारा दिया है। इस पूंजी के चलते बैंको को जहाँ अपने घाटे को कम करने में मदद मिलेगी , जिसके चलते वह बेसल -3 मानक के अनुरूप बन सकेंगे , दूसरी ओर वह ऋण के प्रवाह को बढ़ा सकेंगे। इस तरह से सकल अर्थवयस्था में तेजी आएगी। 

जरा हटके स्तम्भ के तहत युद्धवीर मलिक के का "भारतमाला" पर आलेख बहुत अच्छा लगा। निश्चित ही भारत को वैश्विक महाशक्ति बनने में राजमार्गो प्रमुख भूमिका निभा सकते है। भारत में मॉल परिवहन विकसित देशो से तुलनात्मक रूप में बेहद शिथिल है।  राजमार्गों के विस्तार , उन्नतिकरण के जरिये भारत आंतरिक व्यापार के साथ साथ वैश्विक स्तर पर अपने उत्पाद तेजी से पहुंचा सकता है। सन्नी कुमार जी ने अपने लेख में बैंको की कृषि विकास में भूमिका को स्पष्ट  किया है। अगर हमें किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करनी है तो कृषि में भारी पूंजी निवेश के जरिये कोल्ड चेन स्टोरेज , उन्नत कृषि यंत्रो की खरीद , बीज शोधन , सिंचाई की नूतन तकनीक को अपनाना होगा। 

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

Muktibodh ki kvita

मर गया देश , जीवित रह गए तुम 


                  'आजकल' का प्रगतिवादी कवि मुक्तिबोध की जन्मशती पर केंद्रित अंक समय पर डाक द्वारा मिला। लेखों पर राय देने के पूर्व मै आजकल की पूरी टीम को उनकी मेहनत के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ विशेष रूप से पत्रिका की ऑनलाइन सदस्य्ता की सुविधा के लिए। इसके चलते पाठकों को बहुत ज्यादा सुविधा हुयी है। मैंने अपने कुछ मित्रो को इस सुविधा का लाभ दिलवाया है। 

                  'मुक्तिबोध' को आसानी से नहीं समझा जा सकता है। उनकी कविता की संवेदना , उनके फैंटेंसी शिल्प की समझ के लिए पाठक को बहुत गहराई में पैठना पड़ता है ठीक जैसे उनकी ब्रम्हराक्षस कविता में ब्रम्हराक्षस बावड़ी की गहन गहराइयों में डूबा हुआ है। मुक्तिबोध के लिए कविता समाज की दशा को सटीकता से दिखलाने तथा उसको वांछित दिशा देने का अचूक जरिया थी। उनके ही शब्दों में- 
" जो है उससे बेहतर चाहिए , 
पूरी दुनिया को साफ करने के लिए मेहतर चाहिए
और जो मै हो नहीं पाता हूँ। "  

         मुक्तिबोध की कविता में व्यक्ति व समाज की टकराहट है। वह बुद्धिजीवियों की निष्क्रियता, उदासीनता पर जमकर चोट करते है।  तभी वह लिखते है - 
"लिया बहुत बहुत , दिया बहुत कम 
अरे मर गया देश , जीवित रह गए तुम।।"

         इस अंक में रोचक व सरस् संपादकीय , डबराल जी के लेख की गहनता , प्रभा दीक्षित जी के लेख की रोचकता तथा सुनीता जी के संक्षिप्त किन्तु विशिष्ट लेख बहुत पसंद ही सुंदर बन पड़े है। रंगमंच पर कविता जी लेख मोहन राकेश जी के नाट्य कर्म को रोचकता से प्रस्तुत किया गया है। समग्रतः यह अंक पठनीय होने के साथ साथ संग्रहणीय बन पड़ा है।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

Banking Charges

कितने उचित है बैंकिंग सेवाओं पर शुल्क ?


पिछले दिनों कुछ बैंक द्वारा विविध सेवाओं के लिए ग्राहकों से शुल्क वसूलने या उनमें वृद्धि  के लिए घोषणा की गयी है। भारत में अभी भी बहुत से लोग वित्तीय समावेशन से महरूम है। सरकार ने जन धन योजना के माध्यम से करोड़ो की संख्या में खाते खुलवाए है। इन खातों के माध्यम से , गरीब , पिछड़े आम तबके के लोगों को संस्थागत वित्तीय प्रणाली में बने रहने के उद्देश्य की पूर्ति के लिहाज से बैंकिंग सेवाओं पर शुल्क उचित नहीं कहे जा सकते है। निश्चित तौर पर बैंक इनके जरिये अपनी आमदनी बढ़ा कर , अपने घाटे की पूर्ति करना चाहते है। यहाँ पर प्रश्न उठता है कि करोड़ो रूपये की अनर्जक परिसम्पति के घाटे की कीमत आम खाता धारक क्यों उठाये। आखिरकार इन बढ़े शुल्कों के बदले में खाताधारक के कौन से हितों की पूर्ति होगी। यह कौन सा न्याय है कि बड़े कर्जदारों की चोरी का परिणाम , आम खाताधारक भुगते। सरकार को इसमें हस्तझेप कर इसे रोकना चाहिए ताकि जन धन योजना जैसे वित्तीय समवेशी उपायों का लाभ समुचित रूप से आम जन उठा सके। 


आशीष कुमार 
उन्नाव  , उत्तर प्रदेश।   

GST implementation

कैसे रहे जीयसटी  के 6 माह ?



आजादी के बाद सबसे बड़े कर सुधार के रूप में प्रचारित जीयसटी  को लागु किये  6 माह बीत चुके है। जीयसटी  में तीन प्रमुख हितधारक है - सरकार , निर्माता और उपभोक्ता। तीनों के लिए फायदे के लिए ही जीयसटी  लाया गया था। सरकार के लिए कर लाभ , कर आधार बढ़ना था। निर्माता के लिए कर भुगतान सरल होना था तथा उपभोक्ता ले लिए वस्तुओं के दाम कम होने थे। देखा जाय तो तीनों ही हितधारक असंतुष्ट है। कर संग्रह गिरता जा रहा है। निर्माता , जीयसटी  के रिटर्न भरने में हलकान है और उपभोक्ता को कर दरों का लाभ नहीं मिल पा रहा है। हालांकि सरकार ने उपभोक्ता हितों के लिए एंटी प्रॉफ़िटिंग अथॉरिटी का भी गठन किया है. दरअसल जीयसटी  जैसे बड़े व क्रांतिकारी बदलाव के वास्तविक परिणामों का मूल्यांकन के  लिए 6 माह काफी कम समय है विशेषकर जब अभी यह पूरे  मोड में लागु नहीं है। इवे बिल , इनवॉइस मैचिंग जैसे कांसेप्ट अभी शुरू नहीं हो पाए है.उम्मीद की जानी चाहिए कि इस साल के अंत में जीयसटी  अपने तीनों हितधारकों को उचित लाभ वितरित करने लगेगा।  

आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

Importance Aadhar Card

कितना उपयोगी है आधार कार्ड


आधार कार्ड की उपयोगिता पर किसी तरह का संदेह नहीं हो सकता है , भारत जैसे देश में जहाँ पर फर्जी पहचान , बनवाना बेहद आसान था , आधार कार्ड की शुरुआत के दोहराव की समाप्ति हुयी है। इसके जरिये विविध सब्सिडी को तर्कसंगत तरीके से जरूरतमंद लोगों तक पहुँचाया जा सकता है। पहल योजना के तहत सरकार ने गैस सब्सिडी में बचत के साथ , रिसाव को भी कम किया है। आधार कार्ड पर सरकार इसलिए जोर दे रही है क्युकि इस कार्ड को बनवाने के लिए व्यक्ति को बायो मीट्रिक पहचान देनी होती है जिसके चलते इस को फर्जी बनवा पाना कठिन है। भारत जैसे देश में विविध योजनाओ में रूपये का बहुत रिसाव होता रहा है। काफी पहले राजीव गाँधी ने कहा था कि दिल्ली से जारी 1 रूपये में मात्र 15 पैसे ही वांछित व्यक्ति तक पहुंच पाते है। चाहे पैन कार्ड हो , या राशन कार्ड या फिर ड्राइविंग लाइसेंस , बड़ी संख्या में लोग फर्जी   तरीके से इसे बनवा लेते है। आधार कार्ड का उपयोग निश्चित ही नवाचारी कहा जा सकता है।  आज नहीं तो कल इसे अपना ही पड़ेगा। इसलिए इसका विरोध उचित नहीं कहा जा सकता। इसके साथ ही सरकार को आधार कार्ड के डाटा की गोपनीयता का विश्वास दिलाना होगा।

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।       

how to double farmers income ?


किसानों की आय कैसे दोगुनी होगी ?

देश की अर्थव्यस्था में कृषि का बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। पिछले कुछ वर्षो से देश का किसान अपनी फसल की लागत भी निकल नहीं पा रहा है। इसी समस्या से निपटने के लिए सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिल सके , इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का उपाय किया गया है। जरूरत है इस योजना के प्रभावी क्रियान्वन तथा विस्तार की। देश के सभी हिस्सों में यह लागु नहीं है साथ ही कई महत्वपूर्ण फसलों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। दूसरी प्रमुख समस्या बिचौलियों की है। सरकार ने इससे निपटने के लिए ई मंडी और ई रकम  जैसे उपाय किये है ताकि किसान , सीधे अपनी फसल बेच सके और  उनको सही दाम मिल सके। भारत में अभी बड़ी मात्रा में भंडारण हेतु गोदामों , कोल्ड स्टोर आदि की कमी है , जिसके चलते किसानों की फसल का भण्डारण न हो पाता है और उसे फसल कटने के समय ही अपनी फसल को कम दाम पर बेचने के लिए बाध्य होना पड़ता है। सरकार को इस दिशा में गावं के स्तर पर छोटे छोटे गोदाम बनाने पर जोर देना चाहिए। उक्त उपायों से 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।  

आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

शनिवार, 13 जनवरी 2018

Supreme court issue

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा अपनी ही संस्था को लेकर सवाल खड़े किये गए हैं।उन्होंने सही किया या गलत इसको लेकर अलग अलग राय हैं । मेरे विचार से हमारे देश में सर्वोच्च स्थान संविधान का है। सुप्रीम कोर्ट  संविधान का संरक्षक है । उसी संविधान के हवाले से मैं एक बात की ओर ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ। संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत में ही कहा गया है ' हम भारत के लोग ....' अर्थात जनता ही देश में सर्वोच्च है। इस लिहाज से जनता के समक्ष अपनी बात रखने में कोई बुराई नही है । भारत की न्यायपालिका के कामकाज पर दबे स्वरों में ही सही पर सवाल तो उठते रहे हैं । भाई भतीजावाद के आरोप भी समय समय पर उठते रहे है। ऐसा कई खबरों में आ चूका है कि देश के कुछ विशिष्ट गिने चुने परिवारों के सदस्य ही इस संस्था में चुने जाते हैं।ऐसे में अगर कुछ लोग साहस दिखाते हुए, खामियों को जनता के समक्ष  रखते हैं तो उन पर किसी तरह से प्रश्न चिन्ह नहीं लगाना चाहिये। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि उन साहसी लोगों ने अपनी बात पहले चिठ्ठी लिख कर रखी थी ताकि संस्थान की छवि बनी रहे जब उस पर किसी तरह का रुख न मिला तब जाकर ही उनको अपनी बात का खुलासा मिडिया के समक्ष रखना पड़ा। देखा जाय तो इस सारे प्रकरण से जनता के समक्ष , इस संस्थान की जबाबदेही बढ़ी ही है। प्रेमचंद ने पंचो को परमेश्वर की संज्ञा दी थी। वर्तमान में भी सभी पंचो को अपनी गरिमा बनाये रखने के लिए , किसी तरह की राजनीति से परे , निष्पक्षता से अपनी दायित्वों का निर्वहन पूर्ण निष्ठा के साथ करना चाहिए।

आशीष कुमार
उन्नाव उत्तर प्रदेश।

सोमवार, 8 जनवरी 2018

Food processing is key to improve income of farmers

आलू से सोना बनाने वाली मशीन कहाँ  है ?

पिछले साल यह मशीन काफी चर्चा में रही थी , काश यह मशीन होती तो उत्तर प्रदेश के तमाम आलू उत्पादकों को अपनी फसल , लखनऊ के सड़को पर न डालनी पड़ती । इनके उत्पादन में कितना पानी, खाद, मेहनत लगी होगी, यह एक किसान ही समझ सकता है । इन दिनों आवारा जानवरों से अपनी फसल बचाना सबसे मेहनत का काम है । रात दिन एक करके अपनी फसल तैयार करना, उनको मिट्टी से बाहर निकलना पड़ता है , उसके बाद अगर कोई अपनी फसल , यूँ ही बर्बाद तो न करेगा ।
बहुत कष्ट होता है जब ऐसी घटना सुनने में आती है, आखिर इन लोगों की बात कौन समझेगा । किसानो की आय दोगुनी करने का लक्ष्य 2022 तक रखा गया है।  यह कैसे पूरा होगा पता नही । कल आलू खरीदने गया तो 20 रूपये किलो मिली, जबकि किसानों को 5 रूपये की भी कीमत नही मिल पा रही है । ऐसी प्रणाली में उत्पादक के साथ साथ उपभोक्ता भी परेसान है । खाद्य प्रसंस्करण की काफी बात हो रही है इन दिनों।अगर इन आलू से चिप्स बना दिए जाये तो आलू की फसल का मूल्यवर्धन कई गुना बढ़ जायेगा। चिप्स लगभग 150 से 200 रूपये किलो बिकता है अगर इसका निर्यात किया जाये तो यह 1000 रूपये किलो तक पहुँच सकता है। निर्यात से विदेशी मुद्रा की आवक होगी , जिसका उपयोग सरकार, विवध सामाजिक योजनाओं में कर सकती है । इस तरह से ही आलू से सोना बन सकता है , न कि चुनावी सभा में भाषण देने से ।

आशीष कुमार
उन्नाव, उत्तर प्रदेश।

शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

Inequality



कभी कभी जब आप यह सोचे कि आजादी के बाद हमने क्या खोया और क्या पाया तो बहुत हताशा होती है। ऑक्सफेम की विषमता पर जो रिपोर्ट आती है उससे पता चलता है कि आजादी के समय अमीर और गरीब में जो फासला था वह आज के मुकाबले काफी कम था। इसका सीधा और साफ मतलब यह निकलता है कि पिछले 70 सालों में खूब विकास तो जरूर किया पर विकास के लाभ तो समावेशी तरीके से वितरित न कर पाए। एक और जहां साधन -सपन्न लोग ने तेजी से प्रगति की तो दूसरी और समाज के हाशिये पर खड़े लोग , बुनियादी जरूरतों के लिए भी संघर्षरत रहे। हम केवल भ्र्ष्टाचार को ही विषमता के लिए दोष नहीं दे सकते है। प्रगति के लिए बुनियादी जरूरत के लिए शिक्षा , स्वास्थ्य , शुद्ध पेयजल , आवास को माना गया है। हमें केवल यह नहीं देखना चाहिए कि ये बुनियादी जरुरते कितने को मिल रही है , हमें यह भी देखना होगा कि इन जरूरतों की गुणवत्ता क्या है। शिक्षा , वह भी है जो सरकारी पाठशाला में दी जाती है , शिक्षा महंगे कान्वेंट स्कूल में भी दी जाती है। पीने का पानी नदी , तालाब , कुआँ , पक्का कुंआ , नल आदि में भी मिलता है और पिया जाता है दूसरी ओर आधुनिक तकनीक पर आधारित आर ओ से भी शुद्ध कर पिया जाता है। इलाज , सरकारी अस्पताल में भी होता है तो दूसरी ओर फोर्टिस , मैक्स , अपोलो जैसे प्राइवेट अस्पतालों में भी। 

कुछ शहरों में  वायु प्रदूषण बहुत ज्यादा बढ़ गया है। क्या लगता है कि इसकी मार सब पर बराबर पड़ रही है नहीं , सक्षम लोग एयर शुद्ध करने वाली मशीन लगा रहे है। सक्षम लोग , महंगी कार से चलते है , जिसके अदंर वो साफ सुथरे रहते है पर बाइक से , साइकिल से या पैदल चलने वाले लोगों का क्या। झुग्गी झोपडी में रहने वालो का क्या। विकास की  कीमत आखिर कब तक गरीब , शोषित वर्ग चुकाता रहेगा। हम अक्सर समाचार में सुनते है कि अमुक ने इतने लाख रूपये की रिश्वत ली है , फलां अधिकारी ने इतने लाख की सम्पत्ति जुटा ली पर सोचते है कि इस तरह के लोगों की वजह से ही देश पिछड़ रहा है पर बेस इरोजन प्रॉफिट शिफ्टिंग, राउंड ट्रिपिंग  जैसे जटिल किंतु सुरक्षित तरीके से अरबों , खरबों रूपये की कर चोरी करना , अपने लाभ को टैक्स हैवन देशों में भेजने वाले बड़े कॉर्पोरेट घरानों  , सेलब्रिटी ( पनामा पेपर के अनुसार ) आदि के बारे आम जनता को ज्यादा न तो पता चलता है और न ही फर्क पड़ता है। कोई दो जून की रोटी को तरस रहा है तो कोई अपने परिवार के हर मेंबर के लिए फरारी , ऑडी खरीद रहा है या खरीदने के लिए संपत्ति जुटाने में व्यस्त है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या है क्लाइमेट चेंज या फिर ग्लोबल वार्मिंग। चाहे गर्मी बढ़े या सर्दी , उनके लिए ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। सोचें तो जिन्हें सर पर छत मोहताज नहीं , सोचे वो जिन्हें बदन पर ढकने के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।   








  

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

Consumer Protection

उपभोक्ता की सजगता सबसे अहम 

 भारत में उपभोक्ता  के संरक्षण  के अनुरूप विविध प्रावधान किये गए है।  इस भावना के अनुरूप ही वस्तु एवं सेवा कर के तहत मुनाफखोरी रोकने के लिए , नेशनल एंटी प्रोफिटिरिंग अथॉरिटी का गठन भी किया है। जो कर दरों में कमी का लाभ , निर्माता की जगह , उपभोक्ता तक पहुंच को सुनिश्चित करता है।  रियल स्टेट सेक्टर में रेरा लाया गया है। इसके बावजूद आम जनता को लूटने व ठगने का दौर जारी है।   आम जनता द्वारा चिकित्सा पर अपनी गाढ़ी कमाई, उपभोक्ता जागरूकता के अभाव के  चलते  बर्बाद हो रही है। दवा के नाम पर तरह तरह से ठगी की जा रही है। नियम से किसी भी दवा को पूरी स्ट्रिप के साथ बेचा जाना चाहिए ताकि हमें पता चल सके कि दवा के दाम , एक्सपायरी व कंटेंट आदि  क्या है।   विदेशों में  ऐसा ही  होता है। भारत में प्रायः 1 गोली , दो गोली खरीदने व बेचने का चलन है। एक आम उपभोक्ता को इससे बचना चाहिए। डॉक्टरों  को कैपिटल लेटर में दवा लिखने के निर्देश है पर इसका अनुपालन शायद ही कोई डॉक्टर करता हो। जैसा कि कहा गया है  ज्ञान ही शक्ति है , बाजारवाद के दौर में उपभोक्ता की सजगता , सतर्कता ही उसकी शक्ति है। उसे अपने अधिकारों के प्रति हमेशा जागरूक व सजग रहना चाहिए।    

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

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