गाँव के बिल्लू बार्बर
ये घटना कानों की सुनी है आँखो की देखी नही। इसलिए ज्यादा दिमाग मत खपायिगा। मै उसके बारे में ज्यादा जानता नही बस इस घटना की याद थोड़ी थोड़ी है। उसका वास्तविक नाम पता याद नही आ रहा है पर उसे बिल्लू कह सकते है। उसकी कोई बाल बनाने की दुकान नही थी । जब किसी के घर में शादी बारात होती तो उसे काम के लिए बुला लिया जाता था।
तकनीक और जमाना चाहे कितना ही बदल गया हो पर शादी के जब तक कार्ड लोगो तो नही मिलते तब तक शादी के निमंत्रण को पूरा नही माना जाता है। अगर आप की शादी होने जा रही हो तो मजाल है किसी रिश्तेदार को आप कार्ड देना भूल जाये। उनका मुँह तुरंत फूल जायेगा। कुछ तो रिश्तेदार इतना ज्यादा भाव खाते है कि कार्ड भी दो और उन्हें शादी के लिए लिवाने भी जाओ।
गांव में किसी की शादी थी। बिल्लू को कार्ड बाटने को दिए गए। बिल्लू अपनी पुरानी साइकिल से पास के गावो में उसके रिस्तेदारोे को कार्ड देने गए। बारात वाले दिन जिनको कार्ड भेजा गया उनमे कोई भी शादी में नही पहुंचा। खैर जैसे तैसे बारात विदा हो गयी।
बाद में जब पता लगाया गया तो पता चला कि उन सब रिश्तेदारों को कोई कार्ड ही नही मिला था। बिल्लू से पूछा गया तो उसने कहा कि सबको कार्ड पहुंचा दिए थे। बिल्लू के पूरे व्यकित्व पर प्रकाश डालने का वक़्त नही है सीधी और सरल बातों में कहु तो उनका दिमाग कुछ ढीला था। बिल्लू सबसे खुलते भी नही थे। सबको लग रहा था कि बिल्लू ने कुछ न कुछ खुरापात की है पर पता कैसे लगाया जाय ?
काफी दिनों बाद एक बुजुर्ग ने बिल्लू का रहस्य खोला। गाँव के पास से ही एक नदी बहती है लोन नदी ( इस नदी का नाम लोन क्यू है इसकी कहानी फिर कभी ) . उस दिन जब बिल्लू शादी के कार्ड ले कर निकले तो उन्हें न जाने क्या हुआ। उस नदी के पुल पर जा कर बैठ गए और शादी के कार्ड एक एक कर निकालने लगे। कार्ड में जिसका नाम लिखा था उसको जोर जोर से पढ़ा-----
" रामसेवक कानपुर वाले , तुम्हारा कार्ड आ रहा है------ दुबे जी उन्नाव वाले तुम्हारा कार्ड आ रहा रहा है----- बीघापुर वाली बुआ , तुम्हारा कार्ड आ रहा है----------. "
और सारे कार्ड एक एक कर नदी में बहा दिए।
( © आशीष। आशा है आप भी इससे कुछ सबक लेंगे। वरना आपके कार्ड नदी में जायेगे और रिश्तेदार मुँह फुलाए घूमेंगे )
ये घटना कानों की सुनी है आँखो की देखी नही। इसलिए ज्यादा दिमाग मत खपायिगा। मै उसके बारे में ज्यादा जानता नही बस इस घटना की याद थोड़ी थोड़ी है। उसका वास्तविक नाम पता याद नही आ रहा है पर उसे बिल्लू कह सकते है। उसकी कोई बाल बनाने की दुकान नही थी । जब किसी के घर में शादी बारात होती तो उसे काम के लिए बुला लिया जाता था।
तकनीक और जमाना चाहे कितना ही बदल गया हो पर शादी के जब तक कार्ड लोगो तो नही मिलते तब तक शादी के निमंत्रण को पूरा नही माना जाता है। अगर आप की शादी होने जा रही हो तो मजाल है किसी रिश्तेदार को आप कार्ड देना भूल जाये। उनका मुँह तुरंत फूल जायेगा। कुछ तो रिश्तेदार इतना ज्यादा भाव खाते है कि कार्ड भी दो और उन्हें शादी के लिए लिवाने भी जाओ।
गांव में किसी की शादी थी। बिल्लू को कार्ड बाटने को दिए गए। बिल्लू अपनी पुरानी साइकिल से पास के गावो में उसके रिस्तेदारोे को कार्ड देने गए। बारात वाले दिन जिनको कार्ड भेजा गया उनमे कोई भी शादी में नही पहुंचा। खैर जैसे तैसे बारात विदा हो गयी।
बाद में जब पता लगाया गया तो पता चला कि उन सब रिश्तेदारों को कोई कार्ड ही नही मिला था। बिल्लू से पूछा गया तो उसने कहा कि सबको कार्ड पहुंचा दिए थे। बिल्लू के पूरे व्यकित्व पर प्रकाश डालने का वक़्त नही है सीधी और सरल बातों में कहु तो उनका दिमाग कुछ ढीला था। बिल्लू सबसे खुलते भी नही थे। सबको लग रहा था कि बिल्लू ने कुछ न कुछ खुरापात की है पर पता कैसे लगाया जाय ?
काफी दिनों बाद एक बुजुर्ग ने बिल्लू का रहस्य खोला। गाँव के पास से ही एक नदी बहती है लोन नदी ( इस नदी का नाम लोन क्यू है इसकी कहानी फिर कभी ) . उस दिन जब बिल्लू शादी के कार्ड ले कर निकले तो उन्हें न जाने क्या हुआ। उस नदी के पुल पर जा कर बैठ गए और शादी के कार्ड एक एक कर निकालने लगे। कार्ड में जिसका नाम लिखा था उसको जोर जोर से पढ़ा-----
" रामसेवक कानपुर वाले , तुम्हारा कार्ड आ रहा है------ दुबे जी उन्नाव वाले तुम्हारा कार्ड आ रहा रहा है----- बीघापुर वाली बुआ , तुम्हारा कार्ड आ रहा है----------. "
और सारे कार्ड एक एक कर नदी में बहा दिए।
( © आशीष। आशा है आप भी इससे कुछ सबक लेंगे। वरना आपके कार्ड नदी में जायेगे और रिश्तेदार मुँह फुलाए घूमेंगे )