PART: 2 हरी सिगरेट वाला आदमी
मै काफी उत्सुकता से उसकी ओर देख रहा था । वो कहाँ से चढ़ा था पता नही और कहाँ जा रहा था ये भी नही पता। उसका चेहरा इतना भावहीन था कुछ पता नही लग पा रहा था। उसके कपड़ो में जरा भी सिलवटे नही थी। इतनी रात तरोताजा लग रहा था। काश उसका सिगरेट वाला ऑफर स्वीकार ही कर लिया होता तो कम से कम इतनी उत्सुकता न होती। खुद कोई पहल करने की हिम्मत न हो रही थी ऐसा लग रहा था कुछ भी पूछूँगा तो अटपटा जबाब ही देगा। 5 मिनट हो गये थे उसकी सिगरेट खत्म न हुई। उसने मेरी ओर सिगरेट बढ़ा दी। अब मना करने का कोई मतलब नही था वैसे भी इस अजीब सिगरेट से धुँआ भी नही निकल रहा था। अगर एक सिगरेट शेयर करने से बातचीत शुरू हो जाती है तो अच्छा है। मैंने सिगरेट हाथ में ले ली। आम सिगरेट से जरा लम्बी थी और उसका कलर अजीब लग रहा था। आमतौर पर वाइट कलर की सिगरेट होती है अगर बहुत एडवांस शौकीन है तो ब्लैक पर यह बिलकुल अलग थी। रात के ११ बजने को होंगे डिब्बे में अब धीरे धीरे लोग सोने लगे थे। मै सिगरेट को लेकर बहुत दुविधा में पड़ गया। डिब्बे में इतनी रौशनी न थी कि उसका कलर साफ साफ दिख जाये पर इतना जरुर था वो सिगरेट तो नही थी भला वाइट और ब्लैक के अलावा कोई सिगरेट भी आती है। शायद उसने मेरी दुविधा भाप ली थी उसने एक बहुत बारीक़ मुस्कान के साथ वो अनोखी चीज वापस ले ली। मै भी मुस्कराने लगा मैंने कहा दरअसल मै सिगरेट पीता नही। " किसने कहा ये सिगरेट है ? " उसने जबाब दिया। यार मै कहाँ फस गया हूँ। इससे अच्छा वो लडकी ही थी कम कम शांति के साथ सफर का आनंद तो ले पाता। ये न जाने कौन है इतना बेरुखा आदमी आज तक मुझे नही मिला था। उपर वाले ने मुझे भी अच्छी शक्लो सूरत दी है रोचक बाते भी करनी आती है ज्यादा देर नही लगती है अजनबियों से घुलने मिलने में पर इस व्यक्ति से कोई तुक ही नही बैठ रहा था। जाने दो मेरा स्टेशन कल शाम को आ जायेगा तब किसी तरह चुपचाप बैठ कर काट लेता हूँ। पर वो सच में कोई असाधारण इन्सान था। जैसे ही मैंने शांत बैठने को सोचा उसने मुझसे कहा " मेरा स्टेशन आ रहा है तुम भी उतरोगे क्या ? ". ये सच में बहुत अजीब इन्सान था। स्टेशन उसका आया था और पूछ मुझसे रहा था यहाँ उतरोगे क्या ?
मैंने जबाब दिया " मै अनजानी जगह क्यू उतरु ? "
" अपने स्टेशन पर तो हमेशा ही उतरते हो आज अजनबी स्टेशन पर उतरकर देखो। अच्छा लगेगा। " उसने कहा।
बात उसकी सोचने लायक थी। ऐसा कौन करता है होगा जो अपने स्टेशन पर उतरने के बजाय बीच में ही किसी अजनबी स्टेशन पर उतर जाये वो भी बगैर कोई मतलब के। दिवाली का त्यौहार था बस यही लग रहा था कि कितनी जल्दी घर पहुंच जाऊ। मुझे सोचते देख उसने फिर कहा
" इतना मत सोचो। कभी कभी बगैर सोचे भी कुछ कर के देखो तुम उन रहस्यों को जान सकोगे जो हमेशा अनजाने रह जाते है। "
मै सम्मोहित सा हो गया था। उसकी बातें बहुत गहरी लगी। मुझे उसके बारे में जानने की और उत्सुकता होने लगी। ट्रेन ने हॉर्न दिया और उसकी गति कम होने लगी। उसका स्टेशन आ रहा था। रात के बाहर १२ बज रहे थे। बाहर बहुत गहरा अधेरा था। कोई छोटा सा स्टेशन लग रहा था। राजस्थान या मध्य प्रदेश में गाड़ी थी।
वो अजनबी साथी अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और साथ में मै भी---- पता नही क्यू बस ऐसा लगा कि मुझे भी इसके साथ जाना चाहिए। गाड़ी रुक चुकी थी। मै उस अजनबी के साथ दरवाजे पर आ गया। अरे.…… वो वाइट सूट वाली लड़की अभी भी दरवाजे के पास खड़ी अपना फ़ोन चार्ज कर रही थी।
( कहानी जारी है >>>>>>>) © आशीष कुमार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें