वो कहानी वाली लड़की
" क्या सच में मै तुम्हारे लिए एक चरित्र मात्र ही थी ? " उसकी आवाज में न जाने कैसा दर्द था।
" हाँ , बस केवल एक चरित्र मात्र , इससे परे कुछ भी नही " मै बोला
" पर मैंने तो तुम्हे अपना सबकुछ मान लिया "
" कैसी बात कर रही हो , मुझसे कभी मिली तक नही और मुझे सबकुछ मान लिया। "
"भले ही आप से कभी रूबरू मुलाकात न हुई पर आप से कितनी बाते हुई है , हर विषय पर , हर पहलू पर और आप ने ही तो एक रोज कहा था कि तुम्हारे लिए तुम्हारे चरित्र सबसे करीबी होते है। आप से अपना अतीत शेयर करते हुए न जाने अपने दिल में आपको लेकर ख्वाब पाल बैठी। मुझे लगा आप के दिल में भी मेरे लिए कुछ है। इतनी रात गए आप मुझ से बात करते थे ……… उसके कोई मायने नही थे " उसकी आवाज भारी हो गयी थी।
" प्लीज, बात को समझिए , मै तो बस आपकी कहानी जानने के लिए उत्सुक था। उन सब बातों के सिर्फ यही मायने थे , मै एक सजीव चरित्र को खोज रहा था, कुछ ऐसी चीज की तलाश थी जिसे लिख कर.............. " मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
© Asheesh Kumar
( मेरी कहानी का एक अंश , अपने नियमित पाठकों के लिए विशेष प्रस्तुति। )
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