भारत और श्री लंका के संबंध : एक नया दौर
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की 14 वे वैशाख दिवस के अवसर पर श्रीलंका की गयी यात्रा कई मायनों बेहद अहम है। भारत श्रीलंका के सम्बन्ध शुरू से ही काफी मधुर रहे है। अलगावादी लिट्टे संगठन से निपटने में भारत ने बहुआयामी सहयोग की भूमिका अदा की थी। यद्पि पूर्व राष्टपति महेंद्र राजपक्षे के समय इन सम्बन्धो में गिरावट आ गयी थी। महेंद्र के कार्यकाल में श्रीलंका ने चीन से ज्यादा लगाव दिखाया था। हंबनटोटा बंदरगाह , कोलंबो पोर्ट सिटी जैसी प्रोजेक्ट में चीन ने भारी निवेश किया था। इस समय चीन को लेकर श्रीलंका विशेष उत्साह नहीं दिखा रहा है क्यूकि चीन पर राष्टपति के चुनाव में महेंद्र राजपक्षे का सहयोग करने के आरोप लगे थे साथ ही चीन द्वारा निवेश को लेकर आक्रामक नीति को लेकर भी वहां की कंपनियों में असंतोष है।
इस समय मैत्रीपाला सिरिसेना के नेतृत्व में श्रीलंका ने भारत से सम्बन्धो को नई उचाई पर ले जाने के लिए विशेष रूचि दिखाई है। पिछले दिनों भारत द्वारा दश्रिण एशिया उपग्रह का प्रक्षेपण के माध्यम से स्पेस डिप्लोमेसी की शुरुआत की गयी है। यह भारत द्वारा विदेशी नीति के अहम पहलू गुजराल डॉक्ट्रिन का एक सशक्त उदाहरण है जिसमे भारत को अपने पड़ोसी देशों से बगैर किसी अपेक्षा के सहयोग करने की बात कही गयी थी।
भारत को श्रीलंका से मछुवारों के प्रति एक पारदर्शी नीति लागू करवाने पर भी जोर देना होगा। अक्सर तमिल मछुवारे , श्रीलंका द्वारा पकड़ लिए / मार दिए जाते है। कचातीव द्वीप 1976 में भारत ने श्रीलंका को दे दिया था यद्पि उस करार में भारत के मछुवारो को द्वीप के पास तक मछली मारने का हक दिया गया था। आपसी सहयोग से इस संवेदनशील मुद्दे पर भी सहमति बनानी होगी।
इस समय चीन द्वारा भारत के प्रति स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल की नीति , वन बेल्ट वन रोड की नीति के अपना रहा है। इसमें भारत के पड़ोसी देशो में चीन द्वारा भारी मात्रा में निवेश किया जा रहा है। चुकि भारत की आर्थिक स्थिति , चीन से कमतर है ऐसे में भारत को हार्ड पावर का जबाब सॉफ्ट पावर की नीति से देना होगा।
आशीष कुमार
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें