शुक्रवार, 2 जून 2017

Paris Agreement of climate Change and America


पेरिस जलवायु संधि और अमेरिका का इससे बाहर निकलना 


जैसा ट्रम्प ने चुनाव में वादा किया था और कयास लगाए जा रहे थे अमेरिका ने पेरिस जलवायु परिवर्तन संधि से बाहर निकलने की घोषणा कर दी। ऐसा करके अमेरिका ने एक प्रकार से वैश्विक नेता के पद से पीछे हटने की बात की है। शीत युद्ध के बाद विश्व का नेतृत्व अमेरिका करता आ रहा है पर अब ऐसा लगता है कि उसकी जगह चीन स्वाभाविक रूप से ले लेगा।  

पेरिस संधि अब तक की जलवायु परिवर्तन पर सबसे महत्वपूर्ण संधि है। इसकी विशिष्ट बात यह कि यह आम सहमति पर आधारित संधि है जिसमे अलग अलग देशो ने स्वैच्छिक रूप से कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने की बात कही थी। ट्रम्प ने अपने सम्बोधन में चीन के साथ साथ भारत पर कई तरह के आरोप लगाए है। अमेरिका को यह याद रखना चाहिए कि चीन और भारत अभी विकासशील देश है जबकि अमेरिका ने 100 पहले ही इतना कार्बन उत्सर्जन करने लगा था जिसका परिणाम आज सारा विश्व भुगत रहा है। अगर प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की बात करे तो अमेरिका अभी भी पहले स्थान पर है। 

जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा है इसको किसी एक देश की जिम्मेदारी कह कर छोड़ा नहीं जा सकता है। अमेरिका ने कम नौकरी सृजन के मुद्दे पर जलवायु संधि से अलग हुआ है। यह काफी हास्यपद होगा कि पथ्वी के भविष्य की चिंता के बजाय उन्हें नौकरी की पडी है। उन्हें शायद यह अंदाजा नहीं होगा कि चीन या भारत में अभी उपभोक्तावाद नहीं है जितना अमेरिका में है। जो विकसित देश  है उनकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है कि वैश्विक मुद्दों को आम सहमति से सुलझाए। अमेरिका को सीरिया में हस्तक्षेप करने , सऊदी अरब को हथियार बेचने में कुछ गलत नहीं लगता पर जलवायु परिवर्तन संधि उसके लिए हानिकारक है। अंत में यही कहा जा सकता है कि अमेरिका का ट्रम्प के हाथो में ही अंत होगा अर्थात कुशासन , भड़काऊ फैसले , प्रतिकियावादी नीति के चलते भविष्य में अमेरिका को राजनीतिक , आर्थिक व सामरिक मसले पर काफी निम्न स्तर देखना पड़ेगा।  

आशीष कुमार, 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

गुरुवार, 1 जून 2017

Ken-betwa Link Project


केन -बेतवा नदी सम्पर्क योजना 

केन नदी को बेतवा नदी से जोड़ने की योजना को हाल में पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति मिल गयी है। १०,०००  करोड़ रूपये की लागत वाली इस महत्वपूर्ण योजना से कई तरह के लाभ यथा ६ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिचाई , १५ लाख लोगों को पेयजल तथा 50 मेगावाट बिजली के उत्पादन की बात कही जा रही है। इसके साथ साथ बाढ़ नियंत्रण , सूखा प्रबंधन आदि में भी इस योजना से काफी सहायता मिलेगी। 

भारत में नदी जोड़ो योजना को लेकर कई तरह के मतभेद रहे है। नेशनल जल ग्रिड बनाने की बात काफी समय से कही जा रही है। इसमें कुल 30 नदियों के जोड़ने की बात कही जाती रही है। इस तरह की योजना की लागत , पर्यावरण दुष्प्रभाव , विस्थापन आदि समस्याओं को लेकर आशंका जताई जाती रही है। केन बेतवा परियोजना  में भी पन्ना रिज़र्व का काफी हिस्सा जलमग्न हो जाएगा। इसके लिए इस योजना की लागत का 5 फीसदी , पन्ना के संरक्षण पर ख़र्च करने का प्रावधान किया गया है। इस तरह के विशेष प्रावधान , नेशनल जल ग्रिड के लिए एक अच्छे संकेत के तौर पर देखा जा सकता है।  

भारत जैसे देश में जल प्रबंधन में दक्षता , समय की मांग है। नदी जोड़ो परियोजना , इसके के लिए अच्छा विकल्प हो सकती है। जरूरत है इस विषय से जुड़े हितधारकों से आम सहमति बनाने की। 

आशीष कुमार ,
उन्नाव , उत्तर प्रदेश। 

World Bank Report : Women Workforce in India

विश्व बैंक रिपोर्ट : भारतीय कामकाजी महिला की दशा और दिशा 

हाल में जारी के विश्व बैंक की महिलाओं पर जारी एक रिपोर्ट में भारत को 131 देशों की सूची में 120 वा स्थान , भारत की कामकाजी महिलाओं का अर्थव्यस्था में निम्न योगदान दिखलाता है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोजगार में महिलाओं की भागीदारी 2005 से हर साल काम होती जा रही है। भारत में महिलाओं के लिए सेवा के क्षेत्र में 20 प्रतिशत से कम रोजगार उपलब्ध है।महिलाओं के लिए कृषि क्षेत्र में ज्यादा रोजगार उपलब्ध है।  

चीन व ब्राजील की अर्थव्यस्था में महिलाओ की भागीदारी की उच्च दर ( 65-70 प्रतिशत) के चलते वहां पर विषमता कम है साथ ही विकास दर भी तेज है।भारत में यह दर मात्र 27 प्रतिशत है। विश्व बैंक के अनुमान के  अनुसार , अगर भारत अपनी रोजगार में महिलाओ के लिए भागीदारी बढता है तो इसकी विकास दर दो अंको में जा सकती है।  
भारत को इसके लिए शिक्षा ,स्वाथ्य जैसे सामाजिक क्षेत्र में काफी निवेश करना होगा। भारत में कामकाजी महिला को दोहरी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। उसे नौकरी के साथ साथ घर पर भी सारी जिम्मदारी उठानी पड़ती है।कार्यस्थल पर उसके लिए अभी भी कई तरह की समस्याएं है यद्पि इस दिशा में सरकार ने कई कानून बनाये है। भारत वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान के लिए कई तरह के प्रयास कर रहा है पर उसकी  इन आकांक्षाओं पर इस तरह की रिपोर्ट में निम्न स्थान कई मायनो में सबक देने वाला रहता है। एक चीज और भी ध्यान में रखनी चाहिए कि कोई भी सुधार मात्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, क्रन्तिकारी बदलाव के लिए हमे अपने बीच से शुरआत करनी होगी। समय है समाज में महिलाओं के प्रति अपनी जीर्ण मानसिकता में बदलाव लाने की।  

आशीष कुमार , 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

मंगलवार, 30 मई 2017

Indian Agriculture & pre mansoon

भारतीय कृषि तथा मानसून 

भारत एक कृषि प्रधान देश है. भारत की लगभग 60 प्रतिशत आबादी अभी भी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। भारत की कृषि में वर्षा का यानि अच्छे व समय से आये मानसून का बहुत महत्व है। इस साल समय से पहले मानसून आना , भारत की अर्थव्यस्था के लिए शुभ संकेत है। इसमें बंगाल की खाड़ी में आये  मोरा चक्रवात की भूमिका भी मानी जा रही है। 
भारत विश्व के उन गिने चुने देशो में एक है जहां पर अच्छी बारिश होती है। इसके बावजूद कई दशकों से , तकनीकी व आर्थिक प्रगति के बावजूद भारत में वर्षा जल के सही प्रबंधन का अभाव देखा जा सकता है। हर साल बाढ़ व सूखा से देश के कई राज्य एक साथ जूझते है। बाढ़ व सूखा से निपटने के लिए बहुत सी योजनाये बनाई गयी है , इसके बावजूद हर साल इन आपदाओं के चलते बड़ी मात्रा में जान , माल की हानि होती है। 

वर्षा जल का सही प्रयोग देश की अर्थव्यस्था में काफी योगदान दे सकता है। आने वाले समय में जल संकट बढ़ता जायेगा। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि जल संकट को लेकर तीसरा विश्व युद्ध भी हो सकता है। इस लिए भारत को अपनी विशेष अवस्थिति का गहनता से लाभ उठाने के लिए वर्षा जल का सर्वोत्तम तरीके से प्रबंधन करना चाहिए। भारत इस संदर्भ में इजरायल से काफी सीख ले सकता है जहाँ पर बहुत सीमित वर्षा होती है। इजरायल ने वर्षा जल प्रबंधन की नवाचारी , वहनीय तकनीक विकसित की है। आशा की जानी चाहिए कि भारत इस सदर्भ में पूर्व के सबक लेते हुए , इस गंभीर विषय में उचित कदम उठाएगा।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

India -Germany Relations


भारत -जर्मनी द्विपक्षीय सम्बन्ध 

चार देशों की यात्रा पर गए भारत के प्रधानमंत्री द्वारा जर्मनी को पहले चुनना विशेष नजर से देखा जा रहा है। ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से अलग होने के बाद, यूरोपीय यूनियन का भविष्य , जर्मनी पर निर्भर करता है। जर्मनी भारत के लिए बड़ा निवेश भी है। तकनीक के मामले में जर्मनी विश्व के सबसे अगुवा देशों में एक है। 
भारत जर्मनी के साथ आतंकवाद , जलवायु परिवर्तन (climate change )   व वैश्विक सस्थाओं में सुधार के मुद्दे पर आम सहमति रखता है। अमेरिका के राष्ट्पति डोनाल्ड ट्रम्प ने पेरिस संधि से अलग होने की बात कह चुके है। ऐसे में अन्य देशो को मिलकर अमेरिका पर दबाव डालना होगा कि वह विश्व के भविष्य पर साथ बना रहे। भारत जर्मनी संयक्त राष्ट की सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की मांग कर रहे है। जापान और ब्राज़ील के साथ इन दोनों देशो ने इस संदर्भ में ग्रुप 4 का निर्माण भी किया है। आशा की जानी चाहिए कि भारत के प्रधानमंत्री की यह यात्रा जर्मनी के साथ सम्बन्धो को और मजबूती प्रदान करेगी। 

आशीष कुमार ,
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

रविवार, 28 मई 2017

Tejas Express : Some issue regarding our social behavior


तेजस एक्सप्रेस का पहला सफर 

पिछले दिनों मुम्बई से गोवा के लिए हाई स्पीड ट्रैन 'तेजस ' को लांच किया गया। विविध अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इस ट्रैन के पहले सफर ने यह साफ जतला दिया कि अभी भी भारत में ऐसे लोग भरे पड़े है जो निम्न सोच, स्वार्थ व  निकम्मेपन के आदी है। ट्रैन के सफर के बाद पता चला कि कुछ सीट से हाई क्वालिटी के हेड फ़ोन ( high quality headphone )  गायब है , कुछ स्क्रीन में स्क्रैच है, बायो टायलेट चोक कर गए है। निश्चित ही इस तरह की घटनाएं हमारे सभ्य समाज पर धब्बा है।  

हम विकसित देश बनने की आकांक्षा रखते है पर जब तक हम अपनी सोच को नहीं बदलेंगे कितनी भी उन्नति कर ले चीजे नहीं बदलेंगी। भारत के किसी भी शहर में रोड पर आप बहुतायत लोगों को बगैर हेलमेट , सीट बेल्ट लगाए देख सकते है। सड़क , सरकारी कार्यालय में पान की पीक , सार्वजनिक शौचालय की गंदगी , रोड को कूड़ेघर बना देना , भारत के लिए आम बात है। 

दरअसल इस तरह की चीजों को  कानून का सहारा लेकर ठीक नहीं किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है अपनी सोच व् व्यवहार में बदलाव लाया जाय। इसको शिक्षा भी से नहीं जोड़ा जा सकता है आख़िरकार तेजस में सफर करने वाले लोग आम , निम्न , अशिक्षित लोग नहीं है फिर इस तरह की तुच्छ चीजों के प्रदर्शन से हमे यह विचार करने पर विवश कर देती है कि क्या शिक्षा लोगो को सभ्य नहीं बनाती। शायद इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए हमारी शिक्षा में नैतिकता का समावेश करना , समकालीन समय की महती जरूरत बन गयी है।  

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।    

शनिवार, 27 मई 2017

Manchester terror attack

ब्रिटेन में आतंकी हमला 

पिछले दिनों ब्रिटेन के मेनचेस्टर में एक संगीत कार्यकम में हुए आतंकी हमले ने ब्रिटेन के साथ साथ विश्व को स्तब्ध कर दिया है। यूरोप में आतंकी हमले लगातार बढ़ते जा रहे है। इसके पीछे कई तरह के कयास लगाये जाते रहे है। पश्चिम एशिया विशेषकर सीरिया में आतंक का भयावह रूप कई वर्षो से देखने को मिल रहा है। इस देश की अस्थिरता , गृहयुद्ध में पश्चिमी देशो अमेरिका , ब्रिटेन तथा रूस का हस्तक्षेप  माना जाता रहा है।  

ब्रिटेन में ८ जून को चुनाव होने है। इस हमले के बाद सभी दलों ने अपना चुनाव अभियान रोक दिया है।ब्रिटेन ने सेना को भी शहर के महत्वपूर्ण जगहों पर नियुक्त किया है। इसे ऑपरेशन टेम्पेरेर नाम दिया है।पेरिस , स्पेन , जर्मनी में भी इस तरह के हमले हो चुके है। 

पश्चिम के देशो को इस हमले ने  एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आतंकवाद , किस तरह से सम्पूर्ण मानवता के लिए खतरनाक रूप धारण करता जा रहा है। देखा जाय तो यह इन देशो का विश्व युद्ध के बाद बोये गए बीज का परिणाम है यह आंतकवाद।

आशीष कुमार , 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

शुक्रवार, 26 मई 2017

Kashmir Issue



जम्मू -कश्मीर : एक रिसता घाव 

जटिल से जटिल समस्याओं को संवाद से हल किया जा सकता है न कि युद्ध से - लेक वालेसा ( पोलैंड )

जम्मू एवं कश्मीर भारत में विलय के समय से ही एक दुविधा में रहा है। महाराजा हरी सिंह ने तब आजाद रहना चाहा जब तक उन्हें पाकिस्तान से हमले का खतरा न लगा। इस तरह दुविधा में भारत में सम्मलित होने का कदम , आने वाले समय में कई तरह की मुसीबत पैदा करता रहा। 

जम्मू एवं कश्मीर की जनता के लिए आजादी सबसे महत्वपूर्ण रही है। कई बार यह हर तरह की सीमा पार कर जाती रही है। लोकत्रंत में आपको अपनी आजादी के साथ कुछ हद तक समझौता करना ही पड़ता है विशेषकर जब जम्मू कश्मीर की भू-राजनीतिक स्थिति सभी मायनों में जुदा है। 

जनता आजादी चाहती है इसलिए पत्थर फेकती है , सेना कार्यवाही करती है क्यूकि जनता कानून अपने हाथ में ले लेती है। कहने का आशय यह कि  दोनों पक्ष ही अपने कार्यो को उचित ठहराते है। यह काफी लम्बे समय से चला आ रहा है और अगर स्थिति नहीं बदली है तो कही न कहीं शासन की पहुंच जनता तक न हो पायी। 

तर्क और कुतर्क से ऊपर उठ कर हमें अपनी पहुंच वहां की जनता के प्रति ज्यादा बनानी होगी। शिक्षा , रोजगार , आधारभूत ढांचे के विकास , तकनीक , स्वास्थ्य सेवाये की उपलब्धता बढ़ानी होगी। भारत जम्मू व् कश्मीर में किसी भी अन्य राज्य की तुलना में ज्यादा धन ख़र्च करता है इसके बावजूद वहां पर चीजे बदल नहीं पा रही है तो हमे उन कारणों को खोजना होगा। कश्मीर की जनता को भी सोचना होगा कि आखिर क्या वजह है कि बुरहान वानी को हीरो बना दिया गया और उमर फैयाज को मार दिया गया। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि उमर फैयाज का रास्ता ही जम्मू कश्मीर के अस्तित्व की हिमायत करेगा न कि बुरहान वानी का। 

गुरुवार, 25 मई 2017

India's progress in infrastructure project


अवसंरचना के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम 


किसी भी राष्ट्र की प्रगति के लिए मजबूत , विकसित अवसंरचना बेहद अहम भूमिका निभाती है। भारत के लिए ऐसा कहा जाता रहा है कि यहाँ पर प्राथमिक क्षेत्र के विकास के बाद सीधे तृतीयक क्षेत्र अर्थात सेवा क्षेत्र का विकास हुआ, इसके चलते यहां पर अवसंरचना का विकास अवरुद्ध रहा। 

आज असम में भारत के सबसे बड़े नदी पुल धोला -सदिया  का उद्घाटन , भारत सरकार द्वारा इस क्षेत्र के विकास के लिए प्रतिबद्धता का अच्छा उदाहरण है। ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी लोहित पर 9. 20  किलोमीटर लम्बे पुल के निर्माण में लगभग 950  करोड़ का खर्च आया है। इस पुल के निर्माण से पूर्वी भारत में भारत की पहुंच तेज होगी।  असम से अरुणाचल प्रदेश में पहुंचने में 4 घंटे समय की बचत होगी। इस पुल से लगभग 60 टन वजनी सेना का टैंक गुजर सकता है। इससे भारत पूर्व में अपनी सेना की तेज पहुंच सुनिश्चित कर सकेगा। विदित हो कि अरुणाचल को लेकर चीन के साथ भारत के सम्बन्ध तनावपूर्ण रहे है।  

इससे पूर्व मार्च में जम्मू से श्रीनगर सम्पर्क मार्ग में भारत की सबसे लम्बी रोड सुरंग ,  9. 2  किलोमीटर लम्बे रोड टनल चेन्नी -नाशरी  का भी उद्द्घाटन हो चूका है। उक्त उद्धरण भारत की अवसंरचना निर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दिखलाते है।   

आशीष कुमार 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

मंगलवार, 23 मई 2017

India & Africa relations


भारत -अफ्रीका सम्बन्ध 


पिछले दिनों , गांधीनगर में अफ्रीकन डेवेलपमेंट बैंक की 52 वी ( भारत में पहली बार )बैठक , भारत - अफ्रीका के प्रगाढ़ होते सम्बन्धो का सजीव उदाहरण है। भारत के अफ्रीका के साथ सम्बन्ध बहुत लम्बे समय से मधुर रहे है। उपनिवेशवाद के दौर में भारत ने अपनी आजादी मिलते ही अफ्रीकी देशो की जल्द आजादी की हिमायत की थी।  
समकालीन समय में अफ्रीका , समस्त विश्व के लिए निवेश के लिए सबसे मुफीद जगह मानी जाती रही है क्यूकि इस महाद्वीप का पिछड़ापन काफी सम्भावनाये रखता है। भारत एक उभरती अर्थव्यस्था के तौर पर अफ्रीका को एक बाजार के तौर पर भी देखता है। भारत से सस्ती दवा का निर्यात , कई अफ़्रीकी देशो के स्वास्थ्य सुरक्षा के लिहाज के काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 

पेरिस जलवायु संधि के एक रूप में भारत ने अंतर्राष्टीय सौर गढ़बंधन ( गुरुग्राम में मुख्यालय ) का नेतृत्व कर रहा है। जलयायु परिवर्तन से लड़ने के लिहाज से अहम मानी जा रही इस संधि की सफलता में अफ्रीका महाद्वीप काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कई अफ्रीकी देश भारत से इस संधि पर समझौता कर चुके है।  
भारत ने इस बैठक में एशिया - अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर के विकास के लिए प्रस्ताव रखा है। जापान इस परियोजना में अहम भूमिका निभाने की बात कर चूका है। चीन के महत्वपूर्ण परियोजना 'वन बेल्ट वन रोड ' से अलग हटकर भारत ने इस नए आर्थिक गलियारे की घोषणा करके चीन की विकास नीति के समक्ष अपनी विशिष्ट कूटनीति का मजबूती से प्रदर्शन किया है। यद्पि चीन अफ्रीका में सबसे बड़ा निवेशक बना हुआ तथापि उसकी शोषक आर्थिक नीति की हमेशा से आलोचना होती रही है, समझौता और विकास के नाम पर दी गयी सहायता में छिपी शोषक आर्थिक नीति , अब अफ्रीकन देशों के लिए पुरानी बात हो चुकी है। समकालीन समय में भारत की सस्ती , खुली और उपयोगी आर्थिक व तकनीकी सहायता की चाह लगभग हर अफ्रीकी देश को है। भारत को इस महाद्वीप में छिपी सम्भावनाओ को पहचान कर इस दिशा में बहुआयामी कदम उठाने चाहिए। 


आशीष कुमार, 
उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

Featured Post

SUCCESS TIPS BY NISHANT JAIN IAS 2015 ( RANK 13 )

मुझे किसी भी  सफल व्यक्ति की सबसे महतवपूर्ण बात उसके STRUGGLE  में दिखती है . इस साल के हिंदी माध्यम के टॉपर निशांत जैन की कहानी बहुत प्रेर...